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रेज़िन

सूची रेज़िन

रेज़िन, जिसमें एक कीड़ा फँसा हुआ है राल या रेज़िन (अंग्रेज़ी: resin) गोंद जैसा हाइड्रोकार्बन द्रव्य होता है जो वृक्षों की छाल और लकड़ी से निकलता है। अन्य पेड़ों की तुलना में चीड़ जैसे कोणधारी (कॉनिफ़ॅरस) पेड़ों से रेज़िन अधिक मात्रा में निकलता है। रेज़िन का प्रयोग गोंद, लकड़ी की रोग़न (वार्निश), सुगंध और अगरबत्तियाँ बनाने के लिए सदियों से होता आया है। कभी-कभी रेज़िन जमकर पत्थरा जाता है और बड़े डलों का रूप ले लेता है जो समय के साथ ज़मीन में दफ़्न हो जाते हैं। लाखों साल बाद यह कहरुवे (ऐम्बर) के नाम से बहुमूल्य पत्थरों की तरह निकाले जाते हैं और आभूषणों में इस्तेमाल होते हैं।, श्यामसुंदर दास, बालकृष्ण भट्ट, नागरीप्रचारिणी सभा,...

11 संबंधों: चीड़, लाख (लाह), संस्कृत भाषा, हाइड्रोकार्बन, गंधराल, गोंद, कहरुवा, कोणधारी, अर्क, अंग्रेज़ी भाषा, छाल

चीड़

चीड़ (अंग्रेजी:Pine), एक सपुष्पक किन्तु अनावृतबीजी पौधा है। यह पौधा सीधा पृथ्वी पर खड़ा रहता है। इसमें शाखाएँ तथा प्रशाखाएँ निकलकर शंक्वाकार शरीर की रचना करती हैं। इसकी ११५ प्रजातियाँ हैं। ये ३ से ८० मीटर तक लम्बे हो सकते हैं। चीड़ के वृक्ष पृथ्वी के उत्तरी गोलार्ध में पाए जाते हैं। इनकी 90 जातियाँ उत्तर में वृक्ष रेखा से लेकर दक्षिण में शीतोष्ण कटिबंध तथा उष्ण कटिबंध के ठंडे पहाड़ों पर फैली हुई हैं। इनके विस्तार के मुख्य स्थान उत्तरी यूरोप, उत्तरी अमेरिका, उत्तरी अफ्रीका के शीतोष्ण भाग तथा एशिया में भारत, बर्मा, जावा, सुमात्रा, बोर्नियो और फिलीपींस द्वीपसमूह हैं। .

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लाख (लाह)

लाख, या लाह संस्कृत के ' लाक्षा ' शब्द से व्युत्पन्न समझा जाता है। संभवत: लाखों कीड़ों से उत्पन्न होने के कारण इसका नाम लाक्षा पड़ा था। लाख एक प्राकृतिक राल है बाकी सब राल कृत्रिम हैं। इसी कारण इसे 'प्रकृति का वरदान' कहते हैं। लाख के कीट अत्यन्त सूक्ष्म होते हैं तथा अपने शरीर से लाख उत्पन्न करके हमें आर्थिक सहायता प्रदान करते हैं। वैज्ञानिक भाषा में लाख को 'लेसिफर लाखा' कहा जाता है। 'लाख' शब्द की उत्पत्ति संस्कृत के 'लक्ष' शब्द से हुई है, संभवतः इसका कारण मादा कोष से अनगिनत (अर्थात् लक्ष) शिशु कीड़ों का निकलना है। लगभग 34 हजार लाख के कीड़े एक किग्रा.

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संस्कृत भाषा

संस्कृत (संस्कृतम्) भारतीय उपमहाद्वीप की एक शास्त्रीय भाषा है। इसे देववाणी अथवा सुरभारती भी कहा जाता है। यह विश्व की सबसे प्राचीन भाषा है। संस्कृत एक हिंद-आर्य भाषा हैं जो हिंद-यूरोपीय भाषा परिवार का एक शाखा हैं। आधुनिक भारतीय भाषाएँ जैसे, हिंदी, मराठी, सिन्धी, पंजाबी, नेपाली, आदि इसी से उत्पन्न हुई हैं। इन सभी भाषाओं में यूरोपीय बंजारों की रोमानी भाषा भी शामिल है। संस्कृत में वैदिक धर्म से संबंधित लगभग सभी धर्मग्रंथ लिखे गये हैं। बौद्ध धर्म (विशेषकर महायान) तथा जैन मत के भी कई महत्त्वपूर्ण ग्रंथ संस्कृत में लिखे गये हैं। आज भी हिंदू धर्म के अधिकतर यज्ञ और पूजा संस्कृत में ही होती हैं। .

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हाइड्रोकार्बन

मिथेन एक प्रमुख हाइड्रोकार्बन है। इसके अणु का त्रि-बिमीय 'बाल ऐण्ड स्टिक मॉडल' हाइड्रोकार्बन कार्बनिक यौगिक होते हैं जो हाइड्रोजन और कार्बन के परमाणुओं से मिलकर बने होते हैं। इनका मुख्य स्रोत भूतैल है। प्राकृतिक गैस में भी केवल हाइड्रोकार्बन पाए जाते हैं। हाइड्रोकार्बन संतृप्त तथा असंतृप्त दो प्रकार के होते हैं। .

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गंधराल

विभिन्न प्रकार के रोजिन गंधराल या रोज़िन (Rosin), रेजिन का एक ठोस रूप है। रोज़िन और रेज़िन एक पदार्थ नहीं हैं। ये दोनों भिन्न भिन्न पदार्थ है। चीड़ और कुछ अन्य वृक्षों से एक स्राव ओलियो रोज़िन (oleo-resin) प्राप्त होता है। इसमें रोज़िन के साथ साथ तारपीन का तेल रहता है। इसके आसवन से तारपीन का तेल आसुत हो निकल जाता है और असवनपात्र में जो अवशिष्ट अंश रह जाता है, वही गंधराल है। रोज़िन बड़े महत्व की व्यापारिक वस्तु है। कई प्रकार के रोज़िन बाजारों में बिकते हैं। उनके रंग, स्वच्छता, साबुनीकरण मान और मृदुभवन बिंदु एक से नहीं होते। रोजिन, अर्ध-पारदर्शी होता है। इसका रंग पीला से लेकर काला तक कुछ भी हो सकता है। सामान्य ताप पर यह भंगुर (ब्रिटल) है। रोजिन में मुख्यतः विभिन्न प्रकार के गंधराल अम्ल (विशेषतः अबीटिक अम्ल / abietic acid) होते हैं। .

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गोंद

एक वृक्ष से स्रावित होता गोंद गोंद पौधा का एक उत्सर्जी पदार्थ है जो कोशिका भित्ति के सेलूलोज के अपघटन के फलस्वरूप बनता है। सूखी अवस्था में यह रवा के रूप में पाया जाता है, किन्तु पानी में डालने पर यह फूलकर चिपचिपा बन जाता है। इसका उपयोग कागज आदि विभिन्न पदार्थों को चिपकाने में होता है। अकेशिया सेनीगल से हमें सबसे अच्छा गोंद मिलता है। बबूल, आम और नीम आदि पौधों से भी गोंद निकलता है इसका उपयोग दवा बनाने एवं विभिन्न उद्योग धंधों में होता है। श्रेणी:उत्सर्जन.

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कहरुवा

मालाओं में लगे कहरुवे कहरुवा या तृणमणि (जर्मन: Bernstein, फ्रेंच: ambre, स्पेनिश: ámbar, अंग्रेज़ी: amber, ऐम्बर) वृक्ष की ऐसी गोंद (सम्ख़ या रेज़िन) को कहते हैं जो समय के साथ सख़्त होकर पत्थर बन गई हो। दूसरे शब्दों में, यह जीवाश्म रेजिन है। यह देखने में एक कीमती पत्थर की तरह लगता है और प्राचीनकाल से इसका प्रयोग आभूषणों में किया जाता रहा है। इसका इस्तेमाल सुगन्धित धूपबत्तियों और दवाइयों में भी होता है। क्योंकि यह आरम्भ में एक पेड़ से निकला गोंदनुमा सम्ख़ होता है, इसलिए इसमें अक्सर छोटे से कीट या पत्ते-टहनियों के अंश भी रह जाते हैं। जब कहरुवे ज़मीन से निकाले जाते हैं जो वह हलके पत्थर के डले से लगते हैं। फिर इनको तराशकर इनकी मालिश की जाती है जिस से इनका रंग और चमक उभर आती है और इनके अन्दर झाँककर देखा जा सकता है। क्योंकि कहरुवे किसी भी सम्ख़ की तरह हाइड्रोकार्बन के बने होते हैं, इन्हें जलाया जा सकता है।, Faya Causey, Getty Publications, 2012, ISBN 978-1-60606-082-7,...

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कोणधारी

उत्तरी कैलीफ़ोरनिया में एक कोणधारियों का जंगल कोणधारी या शंकुधारी (अंग्रेज़ी: coniferous, कॉनिफ़ॅरस) वृक्षों की एक क़िस्म है। यह ठन्डे या कम गरम इलाक़ों में पनपते हैं और इनपर कोण या शंकु उगते हैं। इन पेड़ों का जनन इन्ही कोणों के ज़रिये होता है। ऐसे पेड़ों के पत्ते भी अक्सर चपटे होने की बजाए लम्बी तीलियों जैसे होते हैं। वैज्ञानिक रूप से इन पेड़ों को 'पाइनोफ़ाइटा' (Pinophyta), 'कॉनिफ़ॅरोफ़ाइटा' (Coniferophyta) या कॉनिफ़ॅरे (Coniferae) कहा जाता है। चीड़ (पाइन), तालिसपत्र (यू), प्रसरल (स्प्रूस), सनोबर (फ़र) और देवदार (सीडर) के पेड़ इसी कोणधारियों की श्रेणी में आते हैं।, Helena Curtis, N. Sue Barnes, Macmillan, 1994, ISBN 978-0-87901-679-1,...

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अर्क

एक मंडराता पक्षी मेपल वृक्ष का मीठा अर्क पीते हुए अर्क, निर्यास या जीवनरस (अंग्रेज़ी: sap, सैप) वृक्षों की दारु (ज़ाइलेम) और वल्कल (फ़्लोएम) नामक नसों में चलने वाले तरल (फ़्लुइड) को कहते हैं जो पेड़ के हर भाग में आहार, पानी, हारमोन और जीवन के लिए आवश्यक अन्य रसायन पहुँचाता है। अर्क का इस्तेमाल बहुत से अन्य जीव भी करते हैं। बहुत से कीड़े पेड़ों की शाखाएँ छेदकर इसे पीते हैं। ठंडे इलाक़ों में भूर्ज की टहनियाँ छेदकर उसका मीठा अर्क एकत्रित किया जाता है जिसका प्रयोग खाने-पीने में और शराब बनाने के लिए किया जाता है। दक्षिण भारत में ताड़ (एक प्रकार का खजूर) के पेड़ के ताने से निकले अर्क की 'ताड़ी' (toddy) नामक शराब बनती है। कनाडा में मेपल के वृक्ष के अत्यंत मीठे अर्क को एकत्रिक करके उसका एक शहद-जैसी चाशनी बनती है।, State Pomological Society of Michigan, by Authority, 1875,...

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अंग्रेज़ी भाषा

अंग्रेज़ी भाषा (अंग्रेज़ी: English हिन्दी उच्चारण: इंग्लिश) हिन्द-यूरोपीय भाषा-परिवार में आती है और इस दृष्टि से हिंदी, उर्दू, फ़ारसी आदि के साथ इसका दूर का संबंध बनता है। ये इस परिवार की जर्मनिक शाखा में रखी जाती है। इसे दुनिया की सर्वप्रथम अन्तरराष्ट्रीय भाषा माना जाता है। ये दुनिया के कई देशों की मुख्य राजभाषा है और आज के दौर में कई देशों में (मुख्यतः भूतपूर्व ब्रिटिश उपनिवेशों में) विज्ञान, कम्प्यूटर, साहित्य, राजनीति और उच्च शिक्षा की भी मुख्य भाषा है। अंग्रेज़ी भाषा रोमन लिपि में लिखी जाती है। यह एक पश्चिम जर्मेनिक भाषा है जिसकी उत्पत्ति एंग्लो-सेक्सन इंग्लैंड में हुई थी। संयुक्त राज्य अमेरिका के 19 वीं शताब्दी के पूर्वार्ध और ब्रिटिश साम्राज्य के 18 वीं, 19 वीं और 20 वीं शताब्दी के सैन्य, वैज्ञानिक, राजनीतिक, आर्थिक और सांस्कृतिक प्रभाव के परिणाम स्वरूप यह दुनिया के कई भागों में सामान्य (बोलचाल की) भाषा बन गई है। कई अंतरराष्ट्रीय संगठनों और राष्ट्रमंडल देशों में बड़े पैमाने पर इसका इस्तेमाल एक द्वितीय भाषा और अधिकारिक भाषा के रूप में होता है। ऐतिहासिक दृष्टि से, अंग्रेजी भाषा की उत्पत्ति ५वीं शताब्दी की शुरुआत से इंग्लैंड में बसने वाले एंग्लो-सेक्सन लोगों द्वारा लायी गयी अनेक बोलियों, जिन्हें अब पुरानी अंग्रेजी कहा जाता है, से हुई है। वाइकिंग हमलावरों की प्राचीन नोर्स भाषा का अंग्रेजी भाषा पर गहरा प्रभाव पड़ा है। नॉर्मन विजय के बाद पुरानी अंग्रेजी का विकास मध्य अंग्रेजी के रूप में हुआ, इसके लिए नॉर्मन शब्दावली और वर्तनी के नियमों का भारी मात्र में उपयोग हुआ। वहां से आधुनिक अंग्रेजी का विकास हुआ और अभी भी इसमें अनेक भाषाओँ से विदेशी शब्दों को अपनाने और साथ ही साथ नए शब्दों को गढ़ने की प्रक्रिया निरंतर जारी है। एक बड़ी मात्र में अंग्रेजी के शब्दों, खासकर तकनीकी शब्दों, का गठन प्राचीन ग्रीक और लैटिन की जड़ों पर आधारित है। .

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छाल

काष्ठीय वृक्षों के तना, शाखा, जड़ आदि के सबसे ऊपरी आवरण को छाल या वल्क (Bark) कहते हैं। 'छाल' तकनीकी शब्द नहीं है। छाल को दो भागों में बंटा हुआ मान सकते हैं - आन्तरिक वल्क और वाह्य वल्क। आन्तरिक वल्क में जीवित ऊतक होते हैं जबकि वाह्य वल्क में मृत ऊतक। श्रेणी:पादप कार्यिकी.

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यहां पुनर्निर्देश करता है:

राल, रेजिन, सम्ख़

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