लोगो
यूनियनपीडिया
संचार
Google Play पर पाएं
नई! अपने एंड्रॉयड डिवाइस पर डाउनलोड यूनियनपीडिया!
इंस्टॉल करें
ब्राउज़र की तुलना में तेजी से पहुँच!
 

राजस्थान के दुर्गों की सूची

सूची राजस्थान के दुर्गों की सूची

राजस्थान एक प्राचीन धरोहर है यहाँ अनेक राजाओं ने लंबे समय तक शासन किया। इस दौरान अपने शासन काल में उन्होंने अपनी तथा अपनी प्रजा की सुरक्षा हेतु दुर्गों अर्थात् किलों का निर्माण करवाया। .

25 संबंधों: चित्तौड़गढ़ दुर्ग, नागौर, नीमराना, बीकानेर, महाराणा कुम्भा, मेहरानगढ़, रणथम्भोर दुर्ग, राजस्थान, राव जोधा, सिरोही, सवाई माधोपुर, जय सिंह द्वितीय, जयपुर, जयगढ़ दुर्ग, जालौर, जालौर दुर्ग, जूनागढ़ बीकानेर, जोधपुर, खिमसर का किला, आमेर दुर्ग, कुचामन का किला, कुम्भलगढ़ दुर्ग, अलवर, अहिछत्रगढ़ किला, उदयपुर

चित्तौड़गढ़ दुर्ग

चित्तौड़गढ़ दुर्ग भारत का सबसे विशाल दुर्ग है। यह राजस्थान के चित्तौड़गढ़ में स्थित है जो भीलवाड़ा से कुछ किमी दक्षिण में है। यह एक विश्व विरासत स्थल है। चित्तौड़ मेवाड़ की राजधानी थी। इस किले ने इतिहास के उतार-चढाव देखे हैं। यह इतिहास की सबसे खूनी लड़ाईयों का गवाह है। इसने तीन महान आख्यान और पराक्रम के कुछ सर्वाधिक वीरोचित कार्य देखे हैं जो अभी भी स्थानीय गायकों द्वारा गाए जाते हैं। चित्तौड़ के दुर्ग को २०१३ में युनेस्को विश्व विरासत स्थल घोषित किया गया। .

नई!!: राजस्थान के दुर्गों की सूची और चित्तौड़गढ़ दुर्ग · और देखें »

नागौर

नागौर भारत के राज्य राजस्थान का एक प्रमुख शहर एवं लोकसभा क्षेत्र है। यह नागौर जिला मुख्यालय है। नागौर राजस्थान का एक छोटा सा शहर है। ऐतिहासिक रूप से भी यह जगह काफी महत्वपूर्ण है। नागौर बलबन की जागीर थी जिसे शेरशाह सूरी ने 1542 ने जीत लिया था। इसके अलावा महान मुगल सम्राट अकबर ने यहां मस्जिद का निर्माण करवाया था। इस मस्जिद का नाम अकबरी जामा मस्जिद है। यह मस्जिद शहर के बीचों बीच दड़ा मोहल्ला गिनाणी तालाब के पास स्थित है। इस मस्जिद के दो ऊंचे मीनार गुंबद मुगलकालीन निर्माण कला के गवाह हैं। इसके अलावा गिनाणी तालाब की उत्तरी दिशा की तरफ ही आलिशान दरगाह बनी हुई है। इस दरगाह को हजरत सूफी हमीदुद्दीन नागौरी रहमतुल्लाह अलैह की दरगाह शरीफ कहा जाता है। इस दरगाह में ख्वाजा गरीब नवाज हजरत मइनुद्दीन चिश्ती के खास खलीफा हजरत सूफी हमीदुद्दीन नागौरी की मजार शरीफ है। नागौर विशेष रूप में प्रत्येक वर्ष लगने वाले पशु मेले के लिए भी काफी प्रसिद्ध है। इस मेले में हर साल काफी संख्या में पर्यटक आते हैं। इसके अतिरिक्त यहां कई महत्वपूर्ण मंदिर और स्मारक भी है। .

नई!!: राजस्थान के दुर्गों की सूची और नागौर · और देखें »

नीमराना

नीमराना (वास्तविक उच्चारण:नीमराणा) भारत के राजस्थान प्रदेश के अलवर जिले का एक प्राचीन ऐतिहासिक शहर है, जो नीमराना तहसील में दिल्ली-जयपुर राजमार्ग पर दिल्ली से 122 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। यह 1947 तक चौहानों द्वारा शासित 14 वीं सदी के पहाड़ी किले का स्थल है। नीमराना का स्वामित्व मात्र 16 साल की उम्र के कुट्टू के पास है, जो इसके अंतिम शासक है और उन्होंने प्रीवी पर्स के उन्मूलन के बाद किले के रखरखाव में असमर्थ होने के कारण इसे नीमराना होटल्स नामक एक समूह को बेच दिया, जिसे इसने एक हेरिटेज (विरासत) होटल में बदल दिया.

नई!!: राजस्थान के दुर्गों की सूची और नीमराना · और देखें »

बीकानेर

बीकानेर राजस्थान राज्य का एक शहर है। बीकानेर राज्य का पुराना नाम जांगल देश था। इसके उत्तर में कुरु और मद्र देश थे, इसलिए महाभारत में जांगल नाम कहीं अकेला और कहीं कुरु और मद्र देशों के साथ जुड़ा हुआ मिलता है। बीकानेर के राजा जंगल देश के स्वामी होने के कारण अब तक "जंगल धर बादशाह' कहलाते हैं। बीकानेर राज्य तथा जोधपुर का उत्तरी भाग जांगल देश था राव बीका द्वारा १४८५ में इस शहर की स्थापना की गई। ऐसा कहा जाता है कि नेरा नामक व्यक्ति गड़रिया था, जब राव बीका ने नेरा से एक शुभ जगह के बारे में पूछा तो उसने इस जगह के बारे में एक जवाब दिया उसने कहा की इस जगह पर मेरी एक भेड़ का मेमना ३ दिन तक भेड़ के साथ ७ सियारों के बीच एकला रहा और सियारों ने भेड़ और उसके बच्चे को कोई नुकसान नहीं पहुचायां और उसने इस बात के साथ एक शर्त रख दी की उसके नाम को नगर के नाम के साथ जोड़ा जाए। इसी कारण इसका नाम बीका+नेर, बीकानेर पड़ा। अक्षय तृतीया के यह दिन आज भी बीकानेर के लोग पतंग उड़ाकर स्मरण करते हैं। बीकानेर का इतिहास अन्य रियासतों की तरह राजाओं का इतिहास है। ने नवीन बीकानेर रेल नहर व अन्य आधारभूत व्यवस्थाओं से समृद्ध किया। बीकानेर की भुजिया मिठाई व जिप्सम तथा क्ले आज भी पूरे विश्व में अपनी विशिष्ट पहचान रखती हैं। यहां सभी धर्मों व जातियों के लोग शांति व सौहार्द्र के साथ रहते हैं यह यहां की दूसरी महत्वपूर्ण विशिष्टता है। यदि इतिहास की बात चल रही हो तो इटली के टैसीटोरी का नाम भी बीकानेर से बहुत प्रेम से जुड़ा हुआ है। बीकानेर शहर के ५ द्वार आज भी आंतरिक नगर की परंपरा से जीवित जुड़े हैं। कोटगेट, जस्सूसरगेट, नत्थूसरगेट, गोगागेट व शीतलागेट इनके नाम हैं। बीकानेर की भौगोलिक स्तिथि ७३ डिग्री पूर्वी अक्षांस २८.०१ उत्तरी देशंतार पर स्थित है। समुद्र तल से ऊंचाई सामान्य रूप से २४३मीटर अथवा ७९७ फीट है .

नई!!: राजस्थान के दुर्गों की सूची और बीकानेर · और देखें »

महाराणा कुम्भा

महाराणा कुम्भा महल महराणा कुम्भा या महाराणा कुम्भकर्ण (मृत्यु १४६८ ई.) सन १४३३ से १४६८ तक मेवाड़ के राजा थे। महाराणा कुंभकर्ण का भारत के राजाओं में बहुत ऊँचा स्थान है। उनसे पूर्व राजपूत केवल अपनी स्वतंत्रता की जहाँ-तहाँ रक्षा कर सके थे। कुंभकर्ण ने मुसलमानों को अपने-अपने स्थानों पर हराकर राजपूती राजनीति को एक नया रूप दिया। इतिहास में ये 'राणा कुंभा' के नाम से अधिक प्रसिद्ध हैं। महाराणा कुंभा राजस्थान के शासकों में सर्वश्रेष्ठ थे। मेवाड़ के आसपास जो उद्धत राज्य थे, उन पर उन्होंने अपना आधिपत्य स्थापित किया। 35 वर्ष की अल्पायु में उनके द्वारा बनवाए गए बत्तीस दुर्गों में चित्तौड़गढ़, कुंभलगढ़, अचलगढ़ जहां सशक्त स्थापत्य में शीर्षस्थ हैं, वहीं इन पर्वत-दुर्गों में चमत्कृत करने वाले देवालय भी हैं। उनकी विजयों का गुणगान करता विश्वविख्यात विजय स्तंभ भारत की अमूल्य धरोहर है। कुंभा का इतिहास केवल युद्धों में विजय तक सीमित नहीं थी बल्कि उनकी शक्ति और संगठन क्षमता के साथ-साथ उनकी रचनात्मकता भी आश्चर्यजनक थी। ‘संगीत राज’ उनकी महान रचना है जिसे साहित्य का कीर्ति स्तंभ माना जाता है। .

नई!!: राजस्थान के दुर्गों की सूची और महाराणा कुम्भा · और देखें »

मेहरानगढ़

मेहरानगढ़ दुर्गचामुंडा माता मंदिर मेहरानगढ दुर्ग भारत के राजस्थान प्रांत में जोधपुर शहर में स्थित है। पन्द्रहवी शताब्दी का यह विशालकाय किला, पथरीली चट्टान पहाड़ी पर, मैदान से १२५ मीटर ऊँचाई पर स्थित है और आठ द्वारों व अनगिनत बुर्जों से युक्त दस किलोमीटर लंबी ऊँची दीवार से घिरा है। बाहर से अदृश्य, घुमावदार सड़कों से जुड़े इस किले के चार द्वार हैं। किले के अंदर कई भव्य महल, अद्भुत नक्काशीदार किवाड़, जालीदार खिड़कियाँ और प्रेरित करने वाले नाम हैं। इनमें से उल्लेखनीय हैं मोती महल, फूल महल, शीश महल, सिलेह खाना, दौलत खाना आदि। इन महलों में भारतीय राजवेशों के साज सामान का विस्मयकारी संग्रह निहित है। इसके अतिरिक्त पालकियाँ, हाथियों के हौदे, विभिन्न शैलियों के लघु चित्रों, संगीत वाद्य, पोशाकों व फर्नीचर का आश्चर्यजनक संग्रह भी है। यह किला भारत के प्राचीनतम किलों में से एक है और भारत के समृद्धशाली अतीत का प्रतीक है। राव जोधा जोधपुर के राजा रणमल की २४ संतानों मे से एक थे। वे जोधपुर के पंद्रहवें शासक बने। शासन की बागडोर सम्भालने के एक साल बाद राव जोधा को लगने लगा कि मंडोर का किला असुरक्षित है। उन्होने अपने तत्कालीन किले से ९ किलोमीटर दूर एक पहाड़ी पर नया किला बनाने का विचार प्रस्तुत किया। इस पहाड़ी को भोर चिडिया के नाम से जाना जाता था, क्योंकि वहाँ काफ़ी पक्षी रहते थे। राव जोधा ने १२ मई १४५९ को इस पहाडी पर किले की नीव डाली महाराज जसवंत सिंह (१६३८-७८) ने इसे पूरा किया। मूल रूप से किले के सात द्वार (पोल) (आठवाँ द्वार गुप्त है) हैं। प्रथम द्वार पर हाथियों के हमले से बचाव के लिए नुकीली कीलें लगी हैं। अन्य द्वारों में शामिल जयपोल द्वार का निर्माण १८०६ में महाराज मान सिंह ने अपनी जयपुर और बीकानेर पर विजय प्राप्ति के बाद करवाया था। फतेह पोल अथवा विजय द्वार का निर्माण महाराज अजीत सिंह ने मुगलों पर अपनी विजय की स्मृति में करवाया था। राव जोधा को चामुँडा माता मे अथाह श्रद्धा थी। चामुंडा जोधपुर के शासकों की कुलदेवी होती है। राव जोधा ने १४६० मे मेहरानगढ किले के समीप चामुंडा माता का मंदिर बनवाया और मूर्ति की स्थापना की। मंदिर के द्वार आम जनता के लिए भी खोले गए थे। चामुंडा माँ मात्र शासकों की ही नहीं बल्कि अधिसंख्य जोधपुर निवासियों की कुलदेवी थी और आज भी लाखों लोग इस देवी को पूजते हैं। नवरात्रि के दिनों मे यहाँ विशेष पूजा अर्चना की जाती है। मेहरानगढ दुर्ग की नींव में ज्योतिषी गणपत दत्त के ज्योतिषीय परामर्श पर ज्येष्ठ शुक्ल एकादशी (तदनुसार, 12 मई 1459 ई) वार शनिवार को राजाराम मेघवाल को जीवित ही गाड़ दिया गया। राजाराम के सहर्ष किये हुए आत्म त्याग एवम स्वामी-भक्ति की एवज में राव जोधाजी राठोड़ ने उनके वंशजो को मेहरानगढ दुर्ग के पास सूरसागर में कुछ भूमि भी दी (पट्टा सहित), जो आज भी राजबाग के नाम से प्रसिद्ध हैं। होली के त्यौहार पर मेघवालों की गेर को किले में गाजे बाजे के साथ जाने का अधिकार हैं जो अन्य किसी जाति को नही है। राजाराम का जन्म कड़ेला गौत्र में केसर देवी की कोख से हुआ तथा पिता का नाम मोहणसी था। .

नई!!: राजस्थान के दुर्गों की सूची और मेहरानगढ़ · और देखें »

रणथम्भोर दुर्ग

रणथंभोर दुर्ग दिल्ली-मुंबई रेल मार्ग के सवाई माधोपुर रेल्वे स्टेशन से १३ कि॰मी॰ दूर रन और थंभ नाम की पहाडियों के बीच समुद्रतल से ४८१ मीटर ऊंचाई पर १२ कि॰मी॰ की परिधि में बना एक दुर्ग है। दुर्ग के तीनो और पहाडों में प्राकृतिक खाई बनी है जो इस किले की सुरक्षा को मजबूत कर अजेय बनाती है। यूनेस्को की विरासत संबंधी वैश्विक समिति की 36वीं बैठक में 21 जून 2013 को रणथंभोर को विश्व धरोहर घोषित किया गया। यह राजस्थान का एक महत्वपूर्ण पर्यटन स्थल है। .

नई!!: राजस्थान के दुर्गों की सूची और रणथम्भोर दुर्ग · और देखें »

राजस्थान

राजस्थान भारत गणराज्य का क्षेत्रफल के आधार पर सबसे बड़ा राज्य है। इसके पश्चिम में पाकिस्तान, दक्षिण-पश्चिम में गुजरात, दक्षिण-पूर्व में मध्यप्रदेश, उत्तर में पंजाब (भारत), उत्तर-पूर्व में उत्तरप्रदेश और हरियाणा है। राज्य का क्षेत्रफल 3,42,239 वर्ग कि॰मी॰ (132139 वर्ग मील) है। 2011 की गणना के अनुसार राजस्थान की साक्षरता दर 66.11% हैं। जयपुर राज्य की राजधानी है। भौगोलिक विशेषताओं में पश्चिम में थार मरुस्थल और घग्गर नदी का अंतिम छोर है। विश्व की पुरातन श्रेणियों में प्रमुख अरावली श्रेणी राजस्थान की एक मात्र पर्वत श्रेणी है, जो कि पर्यटन का केन्द्र है, माउंट आबू और विश्वविख्यात दिलवाड़ा मंदिर सम्मिलित करती है। पूर्वी राजस्थान में दो बाघ अभयारण्य, रणथम्भौर एवं सरिस्का हैं और भरतपुर के समीप केवलादेव राष्ट्रीय उद्यान है, जो सुदूर साइबेरिया से आने वाले सारसों और बड़ी संख्या में स्थानीय प्रजाति के अनेकानेक पक्षियों के संरक्षित-आवास के रूप में विकसित किया गया है। .

नई!!: राजस्थान के दुर्गों की सूची और राजस्थान · और देखें »

राव जोधा

राव जोधा जी का जन्म २८ मार्च, १४१६, तदनुसार भादवा बदी 8 सं.

नई!!: राजस्थान के दुर्गों की सूची और राव जोधा · और देखें »

सिरोही

सिरोही राजस्थान प्रान्त का एक शहर है। पहलें सिरोही रियासत बड़ी रियासतों में अपना स्थान रखती थी। इसका साम्राज्य बहुत फैला हुआ था। १२वी सदी में यहाँ देवड़ा ओ का राज था। देश आजाद होने के बाद इसे ज़िला बना दिया। इसका काफ़ी एरिया पाली, व जालौर ज़िले में चला गया। सिरोही जिले में कालंद्री गाँव में श्री ब्रह्माजी का १३५० वर्ष पुराना मंदिर है। इस मन्दिर का जीर्णोद्धार हो रहा हे। सिरोही- सिर और ओही का मतलब है सिर काटने कि हिम्मत रखने वाले। गुजराती के महान लेखक झवेरचन्द मेघाणी ने अपनी किताब सोराष्ट्र नी रसधार में लिखा है सिरोही की तलवार और लाहौर कि कटार। कहते हैं कि सिरोही में ऐसी तलवार बनती थी जिसको पानी के प्रपात से तलवार को धार दी जाती थी। आज भी सिरोही कि तलवार प्रसिद्ध है। सिरोही से 15 किमी की दूरी पर एक गाव है तेलपुर। कहते है पाडीव से कुछ देवडा राजपुतों ने आ कर तेलपुर बसाया था। वो लोग लड़ने में तेज थे अतः सिरोही के महाराजा उनको तेज कह कर बुलाते थे। इसी लिये उस समय तेलपुर का नाम तेजपुर रखा था। लेकिन धीरे-धीरे कालंतर में उस का नाम तेलपुर हो गया। .

नई!!: राजस्थान के दुर्गों की सूची और सिरोही · और देखें »

सवाई माधोपुर

सवाई माधोपुर भारत के राजस्थान का एक प्रमुख शहर एवं लोकसभा क्षेत्र है। यह जिला रणथम्‍भौर राष्‍ट्रीय उद्यान के लिए जाना जाता है, जो बाघों के लिए प्रसिद्ध है। सवाई माधोपुर जिले में निम्‍न तहसीलें हैं- गंगापुर सिटी, सवाई माधोपुर, चौथ का बरवाड़ा, बौंली, मलारना डूंगर, वजीरपुर, बामनवास और खण्डार.

नई!!: राजस्थान के दुर्गों की सूची और सवाई माधोपुर · और देखें »

जय सिंह द्वितीय

सवाई जयसिंह या द्वितीय जयसिंह (०३ नवम्बर १६८८ - २१ सितम्बर १७४३) अठारहवीं सदी में भारत में राजस्थान प्रान्त के नगर/राज्य आमेर के कछवाहा वंश के सर्वाधिक प्रतापी शासक थे। सन १७२७ में आमेर से दक्षिण छः मील दूर एक बेहद सुन्दर, सुव्यवस्थित, सुविधापूर्ण और शिल्पशास्त्र के सिद्धांतों के आधार पर आकल्पित नया शहर 'सवाई जयनगर', जयपुर बसाने वाले नगर-नियोजक के बतौर उनकी ख्याति भारतीय-इतिहास में अमर है। काशी, दिल्ली, उज्जैन, मथुरा और जयपुर में, अतुलनीय और अपने समय की सर्वाधिक सटीक गणनाओं के लिए जानी गयी वेधशालाओं के निर्माता, सवाई जयसिह एक नीति-कुशल महाराजा और वीर सेनापति ही नहीं, जाने-माने खगोल वैज्ञानिक और विद्याव्यसनी विद्वान भी थे। उनका संस्कृत, मराठी, तुर्की, फ़ारसी, अरबी, आदि कई भाषाओं पर गंभीर अधिकार था। भारतीय ग्रंथों के अलावा गणित, रेखागणित, खगोल और ज्योतिष में उन्होंने अनेकानेक विदेशी ग्रंथों में वर्णित वैज्ञानिक पद्धतियों का विधिपूर्वक अध्ययन किया था और स्वयं परीक्षण के बाद, कुछ को अपनाया भी था। देश-विदेश से उन्होंने बड़े बड़े विद्वानों और खगोलशास्त्र के विषय-विशेषज्ञों को जयपुर बुलाया, सम्मानित किया और यहाँ सम्मान दे कर बसाया। .

नई!!: राजस्थान के दुर्गों की सूची और जय सिंह द्वितीय · और देखें »

जयपुर

जयपुर जिसे गुलाबी नगर के नाम से भी जाना जाता है, भारत में राजस्थान राज्य की राजधानी है। आमेर के तौर पर यह जयपुर नाम से प्रसिद्ध प्राचीन रजवाड़े की भी राजधानी रहा है। इस शहर की स्थापना १७२८ में आमेर के महाराजा जयसिंह द्वितीय ने की थी। जयपुर अपनी समृद्ध भवन निर्माण-परंपरा, सरस-संस्कृति और ऐतिहासिक महत्व के लिए प्रसिद्ध है। यह शहर तीन ओर से अरावली पर्वतमाला से घिरा हुआ है। जयपुर शहर की पहचान यहाँ के महलों और पुराने घरों में लगे गुलाबी धौलपुरी पत्थरों से होती है जो यहाँ के स्थापत्य की खूबी है। १८७६ में तत्कालीन महाराज सवाई रामसिंह ने इंग्लैंड की महारानी एलिज़ाबेथ प्रिंस ऑफ वेल्स युवराज अल्बर्ट के स्वागत में पूरे शहर को गुलाबी रंग से आच्छादित करवा दिया था। तभी से शहर का नाम गुलाबी नगरी पड़ा है। 2011 की जनगणना के अनुसार जयपुर भारत का दसवां सबसे अधिक जनसंख्या वाला शहर है। राजा जयसिंह द्वितीय के नाम पर ही इस शहर का नाम जयपुर पड़ा। जयपुर भारत के टूरिस्ट सर्किट गोल्डन ट्रायंगल (India's Golden Triangle) का हिस्सा भी है। इस गोल्डन ट्रायंगल में दिल्ली,आगरा और जयपुर आते हैं भारत के मानचित्र में उनकी स्थिति अर्थात लोकेशन को देखने पर यह एक त्रिभुज (Triangle) का आकार लेते हैं। इस कारण इन्हें भारत का स्वर्णिम त्रिभुज इंडियन गोल्डन ट्रायंगल कहते हैं। भारत की राजधानी दिल्ली से जयपुर की दूरी 280 किलोमीटर है। शहर चारों ओर से दीवारों और परकोटों से घिरा हुआ है, जिसमें प्रवेश के लिए सात दरवाजे हैं। बाद में एक और द्वार भी बना जो 'न्यू गेट' कहलाया। पूरा शहर करीब छह भागों में बँटा है और यह १११ फुट (३४ मी.) चौड़ी सड़कों से विभाजित है। पाँच भाग मध्य प्रासाद भाग को पूर्वी, दक्षिणी एवं पश्चिमी ओर से घेरे हुए हैं और छठा भाग एकदम पूर्व में स्थित है। प्रासाद भाग में हवा महल परिसर, व्यवस्थित उद्यान एवं एक छोटी झील हैं। पुराने शह के उत्तर-पश्चिमी ओर पहाड़ी पर नाहरगढ़ दुर्ग शहर के मुकुट के समान दिखता है। इसके अलावा यहां मध्य भाग में ही सवाई जयसिंह द्वारा बनावायी गईं वेधशाला, जंतर मंतर, जयपुर भी हैं। जयपुर को आधुनिक शहरी योजनाकारों द्वारा सबसे नियोजित और व्यवस्थित शहरों में से गिना जाता है। देश के सबसे प्रतिभाशाली वास्तुकारों में इस शहर के वास्तुकार विद्याधर भट्टाचार्य का नाम सम्मान से लिया जाता है। ब्रिटिश शासन के दौरान इस पर कछवाहा समुदाय के राजपूत शासकों का शासन था। १९वीं सदी में इस शहर का विस्तार शुरु हुआ तब इसकी जनसंख्या १,६०,००० थी जो अब बढ़ कर २००१ के आंकड़ों के अनुसार २३,३४,३१९ और २०१२ के बाद ३५ लाख हो चुकी है। यहाँ के मुख्य उद्योगों में धातु, संगमरमर, वस्त्र-छपाई, हस्त-कला, रत्न व आभूषण का आयात-निर्यात तथा पर्यटन-उद्योग आदि शामिल हैं। जयपुर को भारत का पेरिस भी कहा जाता है। इस शहर के वास्तु के बारे में कहा जाता है कि शहर को सूत से नाप लीजिये, नाप-जोख में एक बाल के बराबर भी फ़र्क नहीं मिलेगा। .

नई!!: राजस्थान के दुर्गों की सूची और जयपुर · और देखें »

जयगढ़ दुर्ग

जयगढ़ दुर्ग (राजस्थानी: जयगढ़ क़िला) भारत के पश्चिमी राज्य राजस्थान की राजधानी जयपुर में अरावली पर्वतमाला में चील का टीला नामक पहाड़ी पर आमेर दुर्ग एवं मावता झील के ऊपरी ओर बना किला है। इस दुर्ग का निर्माण जयसिंह द्वितीय ने १७२६ ई. में आमेर दुर्ग एवं महल परिसर की सुरक्षा हेतु करवाया था और इसका नाम उन्हीं के नाम पर रखा गया है। Jaigarh Fort Aravalli Hills from Jaigarh Fort जयगढ़ दुर्ग को जीत का किला भी कहा जाता है। यह दुर्ग आमेर में स्थित है, जयपुर शहर सीमा मे यह किला १७२६ में बनकर तैयार हुआ था। यहाँ पर विश्व की सबसे बड़ी तोप रखी हुई है। File:Rajasthan-Jaipur-Jaigarh-Fort-compound-Apr-2004-00.JPG|Jaigarh Fort compound area, Jaipur, Rajasthan File:Rajasthan-Jaipur-Jaigarh-Fort-compound-Apr-2004-01.JPG|Jaigarh Fort compound area, Jaipur, Rajasthan File:Rajasthan-Jaipur-Jaigarh-Fort-perimeter-walls-Apr-2004-00.JPG|Jaigarh Fort fortifications, Jaipur, Rajasthan File:Rajasthan-Jaipur-Jaigarh-Fort-perimeter-walls-Apr-2004-01.JPG|Jaigarh Fort fortifications, Jaipur, Rajasthan File:Rajasthan-Jaipur-Jaigarh-Fort-water-supply-Apr-2004-01.JPG|Jaigarh Fort water supply, Jaipur, Rajasthan File:Jaigarh_fort_cannon.jpg .

नई!!: राजस्थान के दुर्गों की सूची और जयगढ़ दुर्ग · और देखें »

जालौर

जालौर राजस्थान राज्य का एक एतिहसिक शहर है। यह शहर प्राचीनकाल में 'जाबालिपुर' के नाम से जाना जाता था। जालौर जिला मुख्यालय यहाँ स्थित है। लूनी नदी की उपनदी सुकरी के दक्षिण में स्थित जालौर राजस्थान का ऐतिहासिक जिला है। पहलें बहुत बड़ी रियासतों मे ऐक थी। जालौर रियासत, चित्तौड़गढ़ रियासत के बाद मे अपना स्थान रखती थी। पच्चीमी राजस्थान (राजपुताना) मे प्रमुख रियासत थी। .

नई!!: राजस्थान के दुर्गों की सूची और जालौर · और देखें »

जालौर दुर्ग

जालौर दुर्ग पर विभिन्न कालों में प्रतिहार, परमार, चालुक्य, चौहान, राठौर, इत्यादि राजपुत राजवंशों ने शासन किया।किले पर परमार कालीन कीर्ती स्तम्भ कला का उत्कृष्ट नमूना है, दुर्ग का निर्माण परमार राजाओं ने १०वीं शताब्दी में करवाया था। जालौर के किले का तोपखाना बहुत आकर्षक है। इसके विषय में कहा जाता है कि यह परमार राजा भोज द्वारा निर्मित संस्कृत पाठशाला थी, जो कालान्तर में दुर्ग के मुस्लिम अधिपतियों द्वारा मस्जिद परिवर्तित कर दी गयी तथा तोपखाना मस्जिद कहलाने लगी। तथा यह एक जल दुर्ग हैं। 1956 में यह दुर्ग संरक्षित स्मारक की श्रेणी में रखा गया। .

नई!!: राजस्थान के दुर्गों की सूची और जालौर दुर्ग · और देखें »

जूनागढ़ बीकानेर

जूनागढ़ बीकानेर। रंगों भरा राजस्थान, जहाँ के जनजीवन का उत्साह, गढ़ी,गढ़ और राजमहलों में सिमटा है, अपने सोंदर्य और शोर्य गाथाओं को सम्मोहित करने में बेजोड़ है। इन गढो में बीकानेर का जूनागढ़ स्थापत्य शिल्प, भौगोलिक स्थिति, विलक्षण कला सज्जा का आर्श्चयजनक उदहारण है। थार के रेतीले टीलों के बीच, जो कभी जांगलू प्रदेश के नाम से जाना जाता था: एक से बढ़कर एक अट्टालिकाएँ, हवेलियाँ और महलों की कतार अपने आप में आर्श्चय है। बीकानेर किले को जूनागढ़ के नाम से भी जाना जाता है। इस शहर की स्थापना जोधपुर के शासक राव जोधा के पुत्र राव बीका ने की थी। और इसे सही रूप राजा राय सिंह ने दिया तथा इसे आधुनिक रूप देने का श्रेय महाराजा गंगा सिंह जी को दिया जाता है। बीकानेर के इस जूनागढ़ की नीवं ३० जनवरी १५८६ को रखी गयी थी और यह इसका निर्माण आठ साल बाद 17 फ़रवरी १५९४ को पूरा हुआ। गढ़ की सरंचना मध्ययुगीन स्थापत्य-शिल्प में गढ़, महल और सैनिक जरूरतों के अनुरूप बना है। जूनागढ़ बहुत कुछ आगरे के के किले से मिलता जुलता है। चतुर्भुजाकार ढांचे में डेढ़ किलोमीटर के दायरे में किला पत्थर व रोडों से निर्मित है। परकोटे की परिधि ९६८ मीटर है जिसके चारों और नौ मीटर चौडी व आठ मीटर गहरी खाई है। किले ३७ बुर्जे बनी है जिन पर कभी तोपें रखी जाती थी। किले पर लाल पत्थरों को तराश कर बनाए गए कंगूरे देखने में बहुत ही सुन्दर लगते हैं। गढ़ के पूरब और पश्चिम के दरवाजों को कर्णपोल और चांदपोल कहते हैं। मुख्य द्वार सूरजपोल के अलावा दौलतपोल, फतहपोल, तरनपोल और धुर्वपोल है। प्रवेश द्वार की चौडी गली पार करने के बाद दोनों और काले पत्थरों की बनी महावत सहित हाथियों की ऊँची प्रतिमाएं बनी है। ऊपर गणेश जी की मूर्ति और राजा राय सिंह की प्रशस्ति है। सूरजपोल जैसलमेर के पीले पत्थरों से बना है। दौलतपोल में मेहराब और गलियारे की बनावट अनूठी है। किले के भीतरी भाग में आवासीय इमारते, कुँए, महलों की लम्बी श्रंखला है जिनका निर्माण समय समय पर विभिन्न राजाओं ने अपनी कल्पना अनुरूप करवाया था। सूरजपोल के बाद एक काफी बड़ा मैदान है और उसके आगे नव दुर्गा की प्रतिमा | समीप ही जनानी ड्योढी से लेकर त्रिपोलिया तक पांच मंजिला महलों की श्रंखला है पहली मंजिल में सिलहखाना, भोजनशाला, हुजुरपोडी बारहदरिया, गुलाबनिवास, शिवनिवास, फीलखाना और गोदाम के पास पाचों मंजिलों को पार करता हुआ ऊँचा घंटाघर है। दूसरी मंजिल में जोरावर हरमिंदर का चौक और विक्रम विलास है। रानियों के लिए ऊपर जालीदार बारहदरी है। भैरव चौक, कर्ण महल और ३३ करौड़ देवी देवताओं का मंदिर दर्शनीय है। इसके बाद कुंवर-पदा है जहाँ सभी महाराजाओं के चित्र लगे हैं। जनानी ड्योढी के पास संगमरमर का तालाब है फिर कर्ण सिंह का दरबार हाल है जिसमे सुनहरा काम उल्लेखनीय है। पास में चन्द्र महल, फूल महल, चौबारे, अनूप महल, सरदार महल, गंगा निवास, गुलाबमंदिर, डूंगर निवास और भैरव चौक है। चौथी मंजिल में रतननिवास, मोतीमहल, रंगमहल, सुजानमहल और गणपतविलास है। पांचवी मंजिल में छत्र निवास पुराने महल, बारहदरिया आदि महत्वपूर्ण स्थल है। अनूप महल में सोने की पच्चीकारी एक उत्कृष्ट कृति है। इसकी चमक आज भी यथावत है। गढ़ के सभी महलों में अनूप महल सबसे ज्यादा सुन्दर व मोहक है। महल के पांचो द्वार एक बड़े चौक में खुलते हैं। महल के नक्काशीदार स्तम्भ, मेहराब आदि की बनावट अनुपम है। फूल महल और चन्द्र महल में कांच की जडाई आमेर के चन्द्र महल जैसी ही उत्कृष्ट है। फूल महल में पुष्पों का रूपांकन और चमकीले शीशों की सजावट दर्शनीय है। अनूप महल के पास ही बादल महल है। यहाँ की छतों पर नीलवर्णी उमड़ते बादलों का चित्रांकन है। बादल महल के सरदार महल है। पुराने ज़माने में गर्मी से कैसे बचा जा सकता था, इसकी झलक इस महल में है। गज मंदिर व गज कचहरी में रंगीन शीशों की जडाई बहुत अच्छी है। छत्र महल तम्बूनुमा बना है जिसकी छत लकड़ी की बनी है। कृष्ण-रासलीला की आकर्षक चित्रकारी इस महल की विशेषता है। पास ही रिहायसी इमारते हैं जिनमे राजाओं की बांदियाँ और रखैले रहती थी। इन महलों में हाथी दांत का सुन्दर काम भी देखने योग्य है। महलों में वास्तुकला राजपूत, मुग़ल गुजराती शैली का सम्मिलित रूप है। पश्चिम देशों की वास्तुकला की छाप भी कई महलों में देखि जा सकती है। इन सबको देखकर जूनागढ़ को कलात्मक-जगत का अदभूत केंद्र की संज्ञा दी जा सकती है। .

नई!!: राजस्थान के दुर्गों की सूची और जूनागढ़ बीकानेर · और देखें »

जोधपुर

जोधपुर भारत के राज्य राजस्थान का दूसरा सबसे बड़ा नगर है। इसकी जनसंख्या १० लाख के पार हो जाने के बाद इसे राजस्थान का दूसरा "महानगर " घोषित कर दिया गया था। यह यहां के ऐतिहासिक रजवाड़े मारवाड़ की इसी नाम की राजधानी भी हुआ करता था। जोधपुर थार के रेगिस्तान के बीच अपने ढेरों शानदार महलों, दुर्गों और मन्दिरों वाला प्रसिद्ध पर्यटन स्थल भी है। वर्ष पर्यन्त चमकते सूर्य वाले मौसम के कारण इसे "सूर्य नगरी" भी कहा जाता है। यहां स्थित मेहरानगढ़ दुर्ग को घेरे हुए हजारों नीले मकानों के कारण इसे "नीली नगरी" के नाम से भी जाना जाता था। यहां के पुराने शहर का अधिकांश भाग इस दुर्ग को घेरे हुए बसा है, जिसकी प्रहरी दीवार में कई द्वार बने हुए हैं, हालांकि पिछले कुछ दशकों में इस दीवार के बाहर भी नगर का वृहत प्रसार हुआ है। जोधपुर की भौगोलिक स्थिति राजस्थान के भौगोलिक केन्द्र के निकट ही है, जिसके कारण ये नगर पर्यटकों के लिये राज्य भर में भ्रमण के लिये उपयुक्त आधार केन्द्र का कार्य करता है। वर्ष २०१४ के विश्व के अति विशेष आवास स्थानों (मोस्ट एक्स्ट्रा ऑर्डिनरी प्लेसेज़ ऑफ़ द वर्ल्ड) की सूची में प्रथम स्थान पाया था। एक तमिल फ़िल्म, आई, जो कि अब तक की भारतीय सिनेमा की सबसे महंगी फ़िल्मशोगी, की शूटिंग भी यहां हुई थी। .

नई!!: राजस्थान के दुर्गों की सूची और जोधपुर · और देखें »

खिमसर का किला

खिमसर का किला राजस्थान के नागौर में स्थित है। यह किला नागौर राष्ट्रीय राजमार्ग नं.

नई!!: राजस्थान के दुर्गों की सूची और खिमसर का किला · और देखें »

आमेर दुर्ग

आमेर दुर्ग (जिसे आमेर का किला या आंबेर का किला नाम से भी जाना जाता है) भारत के राजस्थान राज्य की राजधानी जयपुर के आमेर क्षेत्र में एक ऊंची पहाड़ी पर स्थित एक पर्वतीय दुर्ग है। यह जयपुर नगर का प्रधान पर्यटक आकर्षण है। आमेर का कस्बा मूल रूप से स्थानीय मीणाओं द्वारा बसाया गया था, जिस पर कालांतर में कछवाहा राजपूत मान सिंह प्रथम ने राज किया व इस दुर्ग का निर्माण करवाया। यह दुर्ग व महल अपने कलात्मक विशुद्ध हिन्दू वास्तु शैली के घटकों के लिये भी जाना जाता है। दुर्ग की विशाल प्राचीरों, द्वारों की शृंखलाओं एवं पत्थर के बने रास्तों से भरा ये दुर्ग पहाड़ी के ठीक नीचे बने मावठा सरोवर को देखता हुआ प्रतीत होता है। लाल बलुआ पत्थर एवं संगमर्मर से निर्मित यह आकर्षक एवं भव्य दुर्ग पहाड़ी के चार स्तरों पर बना हुआ है, जिसमें से प्रत्येक में विशाल प्रांगण हैं। इसमें दीवान-ए-आम अर्थात जन साधारण का प्रांगण, दीवान-ए-खास अर्थात विशिष्ट प्रांगण, शीश महल या जय मन्दिर एवं सुख निवास आदि भाग हैं। सुख निवास भाग में जल धाराओं से कृत्रिम रूप से बना शीतल वातावरण यहां की भीषण ग्रीष्म-ऋतु में अत्यानन्ददायक होता था। यह महल कछवाहा राजपूत महाराजाओं एवं उनके परिवारों का निवास स्थान हुआ करता था। दुर्ग के भीतर महल के मुख्य प्रवेश द्वार के निकट ही इनकी आराध्या चैतन्य पंथ की देवी शिला को समर्पित एक मन्दिर बना है। आमेर एवं जयगढ़ दुर्ग अरावली पर्वतमाला के एक पर्वत के ऊपर ही बने हुए हैं व एक गुप्त पहाड़ी सुरंग के मार्ग से जुड़े हुए हैं। फ्नोम पेन्ह, कम्बोडिया में वर्ष २०१३ में आयोजित हुए विश्व धरोहर समिति के ३७वें सत्र में राजस्थान के पांच अन्य दर्गों सहित आमेर दुर्ग को राजस्थान के पर्वतीय दुर्गों के भाग के रूप में युनेस्को विश्व धरोहर स्थल घोषित किया गया है। .

नई!!: राजस्थान के दुर्गों की सूची और आमेर दुर्ग · और देखें »

कुचामन का किला

कुचामन का किला राजस्थान के नागौर में स्थित है। यह किला राजस्थान के सबसे पुराने किलों में से है। यह किला पर्वत के सबसे ऊपरी हिस्से पर स्थित है जैसे के एक चील का घोंसला होता है। इसका निर्माण क्षत्रिय प्रतिहार राजवंश के सम्राट नागभट्ट प्रथम ने 750 ईo में कराया। कुचामन का किला अपने प्रखर और भीमकाय परकोटो, 32 दुर्गों, 10 द्वारो और विभिन्न प्रतिरोधक क्षमता वाला किला है। यह एकमात्र अनोखी वास्तुकला वाला किला है। इस किले में जल संरक्षण और प्रबंधन के अच्छे इंतेजाम है।। किले में कई भूमिगत टैंक आज भी विद्यमान है कुचामन किले में कई भूमिगत गुप्त ठिकाने, प्राचीन अंधकूप, कारागार हैं जिन्हें आज भी देखा जा सकता है। वर्तमान मे अब ये हेरिटेज होटल में तब्दील हो गया है और यहा बौलीवुड फिल्मो की सूटिंग होती है। श्रेणी:नागौर श्रेणी:राजस्थान के किले.

नई!!: राजस्थान के दुर्गों की सूची और कुचामन का किला · और देखें »

कुम्भलगढ़ दुर्ग

कुम्भलगढ़ दुर्ग का विशालकाय द्वार; इसे '''राम पोल''' कहा जाता है। कुम्भलगढ़ का दुर्ग राजस्थान ही नहीं भारत के सभी दुर्गों में विशिष्ठ स्थान रखता है। उदयपुर से ७० किमी दूर समुद्र तल से १,०८७ मीटर ऊँचा और ३० किमी व्यास में फैला यह दुर्ग मेवाड़ के यशश्वी महाराणा कुम्भा की सूझबूझ व प्रतिभा का अनुपम स्मारक है। इस दुर्ग का निर्माण सम्राट अशोक के द्वितीय पुत्र संप्रति के बनाये दुर्ग के अवशेषों पर १४४३ से शुरू होकर १५ वर्षों बाद १४५८ में पूरा हुआ था। दुर्ग का निर्माण कार्य पूर्ण होने पर महाराणा कुम्भा ने सिक्के डलवाये जिन पर दुर्ग और उसका नाम अंकित था। वास्तुशास्त्र के नियमानुसार बने इस दुर्ग में प्रवेश द्वार, प्राचीर, जलाशय, बाहर जाने के लिए संकटकालीन द्वार, महल, मंदिर, आवासीय इमारतें, यज्ञ वेदी, स्तम्भ, छत्रियां आदि बने है। बादल महल .

नई!!: राजस्थान के दुर्गों की सूची और कुम्भलगढ़ दुर्ग · और देखें »

अलवर

अलवर भारत के राजस्थान प्रान्त का एक शहर है। यह नगर राजस्थान के मेवात अंचल के अंतर्गत आता है। दिल्ली के निकट होने के कारण यह राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में शामिल है। राजस्थान की राजधानी जयपुर से करीब १६० कि॰मी॰ की दूरी पर है। अलवर अरावली की पहाडियों के मध्य में बसा है। अलवर का प्राचीन नाम 'शाल्वपुर' था। चारदीवारी और खाई से घिरे इस शहर में एक पर्वतश्रेणी की पृष्ठभूमि के सामने शंक्वाकार छन्द की पहाड़ी पर स्थित बाला क़िला इसकी विशिष्टता है। 1775 में इसे अलवर रजवाड़े की राजधानी बनाया गया था। वर्तमान में अलवर राजस्थान का महत्त्वपूर्ण औधोगिक नगर हैं तथा आठवाँ बड़ा नगर हैं। अलवर को राजस्थान का सिंह द्वार भी कहते हैं। अलवर यादव बाहुल्य जिला है। मतस्य प्रदेश अथवा अलवर का राठ क्षेत्र(बहरोड तथा नीमराना का क्षेत्र)पूरे जिले में अपना अलग ही प्रभाव रखता है। राठ के बारे में एक बात कही जाती है "ना राठ नवै, ना राठ मनै"। अर्थात राठ ना तो झुकाने से झुकता है और ना ही मनाने से मानता है,राठ क्षेत्र अपनी मर्जी से चलता है। .

नई!!: राजस्थान के दुर्गों की सूची और अलवर · और देखें »

अहिछत्रगढ़ किला

नगौर दुर्ग अचित्रागढ़ किला राजस्थान के नागौर में स्थित है। इस किले का निर्माण चौथी शताब्दी में हुआ था। इस किले में तीन दरवाजे हैं। पहले दरवाजे को सिरहे, दूसरे को बीच का पोल और तीसरे को कचेहरी पोल कहा जाता है। इस किले में कुछ प्रमुख महल जैसे- हादी रानी महल, दीपक महल, भक्त सिंह महल, अमर सिंह महल, अकबरी महल और रानी महल के अलावा दो मंदिर कृष्णा मंदिर एवं गणेश मंदिर तथा शाह जहानी का स्मारक भी है श्रेणी:नागौर श्रेणी:राजस्थान के किले.

नई!!: राजस्थान के दुर्गों की सूची और अहिछत्रगढ़ किला · और देखें »

उदयपुर

उदयपुर राजस्थान का एक नगर एवं पर्यटन स्थल है जो अपने इतिहास, संस्कृति एवम् अपने अाकर्षक स्थलों के लिये प्रसिद्ध है। इसे सन् 1559 में महाराणा उदय सिंह ने स्थापित किया था। अपनी झीलों के कारण यह शहर 'झीलों की नगरी के नाम से भी जाना जाता है। उदयपुर शहर सिसोदिया राजवंश द्वारा ‌शासित मेवाड़ की राजधानी रहा है। .

नई!!: राजस्थान के दुर्गों की सूची और उदयपुर · और देखें »

निवर्तमानआने वाली
अरे! अब हम फेसबुक पर हैं! »