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राजकुमार शुक्ल

सूची राजकुमार शुक्ल

राजकुमार शुक्ल (१८७५ -) भारत के स्वतंत्रता संग्राम के समय बिहार के चंपारण के निवासी और स्वतंत्रता सेनानी थे। दिसंबर 1916 में कांग्रेस के राष्ट्रीय अधिवेशन में बिहार के किसानों के प्रतिनिधि बनकर वह लखनऊ गए और चंपारण के किसानों की दुर्दशा को शीर्ष नेताओं के समक्ष रखा। नील की खेती करनेवाले रैयत राजकुमार शुक्ल के अनुरोध पर महात्मा गाँधी चंपारण आने को तैयार हुए। राजकुमार शुक्ल के साथ बापू १० अप्रैल १९१७ को कोलकाता से पटना और मुजफ्फरपुर होते हुए मोतिहारी गए। नील की फसल के लागू तीनकठिया खेती के विरोध में गाँधीजी ने चंपारण में सत्याग्रह का पहला सफल प्रयोग किया। अंग्रेजों की तत्कालीन तीन कठिया व्यवस्था के तहत हर बीघे में 3 कट्ठे जमीन पर नील की खेती करने की किसानों के लिए विवशता उत्पन्न करने का विरोध करते हुए पंडित राजकुमार शुक्ल ने वहां किसान आंदोलन की शुरुआत की, जिसके एवज में दंड स्वरूप उन्हें कई बार अंग्रेजों के कोड़े और प्रताड़ना का शिकार होना पड़ा। क्षेत्र के किसानों की बदहाल स्थिति को देखते हुए पंडित शुक्ल ने महात्मा गांधी को बार-बार वहां आने का आग्रह किया तो गांधीजी इनकार नहीं कर सके। वे चंपारण पहुंचे और फिर वहां के किसानों के आंदोलन को जो धार मिली, उन्होंने देश को आजादी के मुकाम तक पहुंचा दिया। दरअसल, चंपारण किसान आंदोलन ही देश की आजादी का असली संवाहक बने था। वहां के किसानों के त्याग, बलिदान और संघर्ष की वजह से आज हम आजाद भारत में सांसें लेने के लिए स्वतंत्र हैं। .

13 संबंधों: चम्पारण सत्याग्रह, चंपारण, तीनकठिया खेती, पटना, बिहार, भारत, महात्मा गांधी, मुजफ्फरपुर, मोतिहारी, लखनऊ, लोमराज सिंह, कांग्रेस, कोलकाता

चम्पारण सत्याग्रह

गांधीजी १९१७ मेंगांधीजी के नेतृत्व में बिहार के चम्पारण जिले में सन् १९१७-१८ में एक सत्याग्रह हुआ। इसे चम्पारण सत्याग्रह के नाम से जाना जाता है। गांधीजी के नेतृत्व में भारत में किया गया यह पहला सत्याग्रह था। .

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चंपारण

चंपारण बिहार प्रान्त का एक जिला था। अब पूर्वी चंपारण और पश्चिमी चंपारण नाम के दो जिले हैं। भारत और नेपाल की सीमा से लगा यह क्षेत्र स्वाधीनता संग्राम के दौरान काफी सक्रिय रहा है। महात्मा गाँधी ने अपनी मशाल यहीं से अंग्रेजों के खिलाफ नील आंदोलन से जलायी थी। बेतियापश्चिमी चंपारण का जिला मुख्यालय है और मोतिहारी पूर्वी चम्पारण का। चंपारण से ३५ किलोमीटर दूर दक्षिण साहेबगंज-चकिया मार्ग पर लाल छपरा चौक के पास अवस्थित है प्राचीन ऐतिहासिक स्थल केसरिया। यहाँ एक वृहद् बौद्धकालीन स्तूप है जिसे केसरिया स्तूप के नाम से जाना जाता है। .

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तीनकठिया खेती

तीनकठिया खेती अंग्रेज मालिकों द्वारा बिहार के चंपारण जिले के रैयतों (किसानों) पर नील की खेती के लिए जबरन लागू तीन तरीकों मे एक था। खेती का अन्य दो तरीका 'कुरतौली' और 'कुश्की' कहलाता था। तीनकठिया खेती में प्रति बीघा (२० कट्ठा) तीन कट्ठा जोत पर नील की खेती करना अनिवार्य बनाया गया था। 1860 के आसपास नीलहे फैक्ट्री मालिक द्वारा नील की खेती के लिए ५ कट्ठा खेत तय किया गया था जो 1867 तक तीन कट्ठा या तीनकठिया तरीके में बदल गया। इस प्रकार फसल के पूर्व में दिए गए रकम के बदले फैक्ट्री मालिक रैयतों के जमीन के अनुपात में खेती कराने को बाध्य करते थे। अप्रैल १९१७ में राजकुमार शुक्ल के आमंत्रण पर महात्मा गाँधी के आगमन और अंग्रेज अधिकारियों के साथ लगातार बातचीत और विरोध के बाद यह तरीका खत्म हुआ। भारतीय स्वतंत्रता इतिहास में गाँधीजी के सत्याग्रह का यह पहला प्रयोग था।.

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पटना

पटना (पटनम्) या पाटलिपुत्र भारत के बिहार राज्य की राजधानी एवं सबसे बड़ा नगर है। पटना का प्राचीन नाम पाटलिपुत्र था। आधुनिक पटना दुनिया के गिने-चुने उन विशेष प्राचीन नगरों में से एक है जो अति प्राचीन काल से आज तक आबाद है। अपने आप में इस शहर का ऐतिहासिक महत्व है। ईसा पूर्व मेगास्थनीज(350 ईपू-290 ईपू) ने अपने भारत भ्रमण के पश्चात लिखी अपनी पुस्तक इंडिका में इस नगर का उल्लेख किया है। पलिबोथ्रा (पाटलिपुत्र) जो गंगा और अरेन्नोवास (सोनभद्र-हिरण्यवाह) के संगम पर बसा था। उस पुस्तक के आकलनों के हिसाब से प्राचीन पटना (पलिबोथा) 9 मील (14.5 कि॰मी॰) लम्बा तथा 1.75 मील (2.8 कि॰मी॰) चौड़ा था। पटना बिहार राज्य की राजधानी है और गंगा नदी के दक्षिणी किनारे पर अवस्थित है। जहां पर गंगा घाघरा, सोन और गंडक जैसी सहायक नदियों से मिलती है। सोलह लाख (2011 की जनगणना के अनुसार 1,683,200) से भी अधिक आबादी वाला यह शहर, लगभग 15 कि॰मी॰ लम्बा और 7 कि॰मी॰ चौड़ा है। प्राचीन बौद्ध और जैन तीर्थस्थल वैशाली, राजगीर या राजगृह, नालन्दा, बोधगया और पावापुरी पटना शहर के आस पास ही अवस्थित हैं। पटना सिक्खों के लिये एक अत्यंत ही पवित्र स्थल है। सिक्खों के १०वें तथा अंतिम गुरु गुरू गोबिंद सिंह का जन्म पटना में हीं हुआ था। प्रति वर्ष देश-विदेश से लाखों सिक्ख श्रद्धालु पटना में हरमंदिर साहब के दर्शन करने आते हैं तथा मत्था टेकते हैं। पटना एवं इसके आसपास के प्राचीन भग्नावशेष/खंडहर नगर के ऐतिहासिक गौरव के मौन गवाह हैं तथा नगर की प्राचीन गरिमा को आज भी प्रदर्शित करते हैं। एतिहासिक और प्रशासनिक महत्व के अतिरिक्त, पटना शिक्षा और चिकित्सा का भी एक प्रमुख केंद्र है। दीवालों से घिरा नगर का पुराना क्षेत्र, जिसे पटना सिटी के नाम से जाना जाता है, एक प्रमुख वाणिज्यिक केन्द्र है। .

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बिहार

बिहार भारत का एक राज्य है। बिहार की राजधानी पटना है। बिहार के उत्तर में नेपाल, पूर्व में पश्चिम बंगाल, पश्चिम में उत्तर प्रदेश और दक्षिण में झारखण्ड स्थित है। बिहार नाम का प्रादुर्भाव बौद्ध सन्यासियों के ठहरने के स्थान विहार शब्द से हुआ, जिसे विहार के स्थान पर इसके अपभ्रंश रूप बिहार से संबोधित किया जाता है। यह क्षेत्र गंगा नदी तथा उसकी सहायक नदियों के उपजाऊ मैदानों में बसा है। प्राचीन काल के विशाल साम्राज्यों का गढ़ रहा यह प्रदेश, वर्तमान में देश की अर्थव्यवस्था के सबसे पिछड़े योगदाताओं में से एक बनकर रह गया है। .

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भारत

भारत (आधिकारिक नाम: भारत गणराज्य, Republic of India) दक्षिण एशिया में स्थित भारतीय उपमहाद्वीप का सबसे बड़ा देश है। पूर्ण रूप से उत्तरी गोलार्ध में स्थित भारत, भौगोलिक दृष्टि से विश्व में सातवाँ सबसे बड़ा और जनसंख्या के दृष्टिकोण से दूसरा सबसे बड़ा देश है। भारत के पश्चिम में पाकिस्तान, उत्तर-पूर्व में चीन, नेपाल और भूटान, पूर्व में बांग्लादेश और म्यान्मार स्थित हैं। हिन्द महासागर में इसके दक्षिण पश्चिम में मालदीव, दक्षिण में श्रीलंका और दक्षिण-पूर्व में इंडोनेशिया से भारत की सामुद्रिक सीमा लगती है। इसके उत्तर की भौतिक सीमा हिमालय पर्वत से और दक्षिण में हिन्द महासागर से लगी हुई है। पूर्व में बंगाल की खाड़ी है तथा पश्चिम में अरब सागर हैं। प्राचीन सिन्धु घाटी सभ्यता, व्यापार मार्गों और बड़े-बड़े साम्राज्यों का विकास-स्थान रहे भारतीय उपमहाद्वीप को इसके सांस्कृतिक और आर्थिक सफलता के लंबे इतिहास के लिये जाना जाता रहा है। चार प्रमुख संप्रदायों: हिंदू, बौद्ध, जैन और सिख धर्मों का यहां उदय हुआ, पारसी, यहूदी, ईसाई, और मुस्लिम धर्म प्रथम सहस्राब्दी में यहां पहुचे और यहां की विविध संस्कृति को नया रूप दिया। क्रमिक विजयों के परिणामस्वरूप ब्रिटिश ईस्ट इण्डिया कंपनी ने १८वीं और १९वीं सदी में भारत के ज़्यादतर हिस्सों को अपने राज्य में मिला लिया। १८५७ के विफल विद्रोह के बाद भारत के प्रशासन का भार ब्रिटिश सरकार ने अपने ऊपर ले लिया। ब्रिटिश भारत के रूप में ब्रिटिश साम्राज्य के प्रमुख अंग भारत ने महात्मा गांधी के नेतृत्व में एक लम्बे और मुख्य रूप से अहिंसक स्वतन्त्रता संग्राम के बाद १५ अगस्त १९४७ को आज़ादी पाई। १९५० में लागू हुए नये संविधान में इसे सार्वजनिक वयस्क मताधिकार के आधार पर स्थापित संवैधानिक लोकतांत्रिक गणराज्य घोषित कर दिया गया और युनाईटेड किंगडम की तर्ज़ पर वेस्टमिंस्टर शैली की संसदीय सरकार स्थापित की गयी। एक संघीय राष्ट्र, भारत को २९ राज्यों और ७ संघ शासित प्रदेशों में गठित किया गया है। लम्बे समय तक समाजवादी आर्थिक नीतियों का पालन करने के बाद 1991 के पश्चात् भारत ने उदारीकरण और वैश्वीकरण की नयी नीतियों के आधार पर सार्थक आर्थिक और सामाजिक प्रगति की है। ३३ लाख वर्ग किलोमीटर क्षेत्रफल के साथ भारत भौगोलिक क्षेत्रफल के आधार पर विश्व का सातवाँ सबसे बड़ा राष्ट्र है। वर्तमान में भारतीय अर्थव्यवस्था क्रय शक्ति समता के आधार पर विश्व की तीसरी और मानक मूल्यों के आधार पर विश्व की दसवीं सबसे बडी अर्थव्यवस्था है। १९९१ के बाज़ार-आधारित सुधारों के बाद भारत विश्व की सबसे तेज़ विकसित होती बड़ी अर्थ-व्यवस्थाओं में से एक हो गया है और इसे एक नव-औद्योगिकृत राष्ट्र माना जाता है। परंतु भारत के सामने अभी भी गरीबी, भ्रष्टाचार, कुपोषण, अपर्याप्त सार्वजनिक स्वास्थ्य-सेवा और आतंकवाद की चुनौतियां हैं। आज भारत एक विविध, बहुभाषी, और बहु-जातीय समाज है और भारतीय सेना एक क्षेत्रीय शक्ति है। .

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महात्मा गांधी

मोहनदास करमचन्द गांधी (२ अक्टूबर १८६९ - ३० जनवरी १९४८) भारत एवं भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन के एक प्रमुख राजनैतिक एवं आध्यात्मिक नेता थे। वे सत्याग्रह (व्यापक सविनय अवज्ञा) के माध्यम से अत्याचार के प्रतिकार के अग्रणी नेता थे, उनकी इस अवधारणा की नींव सम्पूर्ण अहिंसा के सिद्धान्त पर रखी गयी थी जिसने भारत को आजादी दिलाकर पूरी दुनिया में जनता के नागरिक अधिकारों एवं स्वतन्त्रता के प्रति आन्दोलन के लिये प्रेरित किया। उन्हें दुनिया में आम जनता महात्मा गांधी के नाम से जानती है। संस्कृत भाषा में महात्मा अथवा महान आत्मा एक सम्मान सूचक शब्द है। गांधी को महात्मा के नाम से सबसे पहले १९१५ में राजवैद्य जीवराम कालिदास ने संबोधित किया था।। उन्हें बापू (गुजराती भाषा में બાપુ बापू यानी पिता) के नाम से भी याद किया जाता है। सुभाष चन्द्र बोस ने ६ जुलाई १९४४ को रंगून रेडियो से गांधी जी के नाम जारी प्रसारण में उन्हें राष्ट्रपिता कहकर सम्बोधित करते हुए आज़ाद हिन्द फौज़ के सैनिकों के लिये उनका आशीर्वाद और शुभकामनाएँ माँगीं थीं। प्रति वर्ष २ अक्टूबर को उनका जन्म दिन भारत में गांधी जयंती के रूप में और पूरे विश्व में अन्तर्राष्ट्रीय अहिंसा दिवस के नाम से मनाया जाता है। सबसे पहले गान्धी ने प्रवासी वकील के रूप में दक्षिण अफ्रीका में भारतीय समुदाय के लोगों के नागरिक अधिकारों के लिये संघर्ष हेतु सत्याग्रह करना शुरू किया। १९१५ में उनकी भारत वापसी हुई। उसके बाद उन्होंने यहाँ के किसानों, मजदूरों और शहरी श्रमिकों को अत्यधिक भूमि कर और भेदभाव के विरुद्ध आवाज उठाने के लिये एकजुट किया। १९२१ में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की बागडोर संभालने के बाद उन्होंने देशभर में गरीबी से राहत दिलाने, महिलाओं के अधिकारों का विस्तार, धार्मिक एवं जातीय एकता का निर्माण व आत्मनिर्भरता के लिये अस्पृश्‍यता के विरोध में अनेकों कार्यक्रम चलाये। इन सबमें विदेशी राज से मुक्ति दिलाने वाला स्वराज की प्राप्ति वाला कार्यक्रम ही प्रमुख था। गाँधी जी ने ब्रिटिश सरकार द्वारा भारतीयों पर लगाये गये नमक कर के विरोध में १९३० में नमक सत्याग्रह और इसके बाद १९४२ में अंग्रेजो भारत छोड़ो आन्दोलन से खासी प्रसिद्धि प्राप्त की। दक्षिण अफ्रीका और भारत में विभिन्न अवसरों पर कई वर्षों तक उन्हें जेल में भी रहना पड़ा। गांधी जी ने सभी परिस्थितियों में अहिंसा और सत्य का पालन किया और सभी को इनका पालन करने के लिये वकालत भी की। उन्होंने साबरमती आश्रम में अपना जीवन गुजारा और परम्परागत भारतीय पोशाक धोती व सूत से बनी शाल पहनी जिसे वे स्वयं चरखे पर सूत कातकर हाथ से बनाते थे। उन्होंने सादा शाकाहारी भोजन खाया और आत्मशुद्धि के लिये लम्बे-लम्बे उपवास रखे। .

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मुजफ्फरपुर

मुज़फ्फरपुर उत्तरी बिहार राज्य के तिरहुत प्रमंडल का मुख्यालय तथा मुज़फ्फरपुर ज़िले का प्रमुख शहर एवं मुख्यालय है। अपने सूती वस्त्र उद्योग, लोहे की चूड़ियों, शहद तथा आम और लीची जैसे फलों के उम्दा उत्पादन के लिये यह जिला पूरे विश्व में जाना जाता है, खासकर यहाँ की शाही लीची का कोई जोड़ नहीं है। यहाँ तक कि भारत के राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री को भी यहाँ से लीची भेजी जाती है। 2017 मे मुजफ्फरपुर स्मार्ट सिटी के लिये चयनित हुआ है। अपने उर्वरक भूमि और स्वादिष्ट फलों के स्वाद के लिये मुजफ्फरपुर देश विदेश मे "स्वीटसिटी" के नाम से जाना जाता है। मुजफ्फरपुर थर्मल पावर प्लांट देशभर के सबसे महत्वपूर्ण बिजली उत्पादन केंद्रो मे से एक है। .

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मोतिहारी

मोतीहारी बिहार राज्‍य के पूर्वी चंपारण जिले का मुख्‍यालय है। बिहार की राजधानी पटना से 170 किमी दूर पूर्वी चम्‍पारण बिल्‍कुल नेपाल की सीमा पर बसा है। इसे मोतिहारी के नाम से भी लोग जानते है। ऐतिहासिक दृष्टि से भी इस जिले को काफी महत्‍वपूर्ण माना जाता है। किसी समय में चम्‍पारण, राजा जनक के मिथिला राज्य का अभिन्‍न भाग था। स्‍वतंत्रता संग्राम में महत्‍वपूर्ण भूमिका निभाने वाले महात्‍मा गांधी ने तो अपने राजनीतिक आंदोलन की शुरुआत यही से की थी। पर्यटन की दृष्टि यहां सीताकुंड, अरेराज, केसरिया, चंडी स्‍थान जैसे जगह घूमने लायक है। .

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लखनऊ

लखनऊ (भारत के सर्वाधिक आबादी वाले राज्य उत्तर प्रदेश की राजधानी है। इस शहर में लखनऊ जिले और लखनऊ मंडल के प्रशासनिक मुख्यालय भी स्थित हैं। लखनऊ शहर अपनी खास नज़ाकत और तहजीब वाली बहुसांस्कृतिक खूबी, दशहरी आम के बाग़ों तथा चिकन की कढ़ाई के काम के लिये जाना जाता है। २००६ मे इसकी जनसंख्या २,५४१,१०१ तथा साक्षरता दर ६८.६३% थी। भारत सरकार की २००१ की जनगणना, सामाजिक आर्थिक सूचकांक और बुनियादी सुविधा सूचकांक संबंधी आंकड़ों के अनुसार, लखनऊ जिला अल्पसंख्यकों की घनी आबादी वाला जिला है। कानपुर के बाद यह शहर उत्तर-प्रदेश का सबसे बड़ा शहरी क्षेत्र है। शहर के बीच से गोमती नदी बहती है, जो लखनऊ की संस्कृति का हिस्सा है। लखनऊ उस क्ष्रेत्र मे स्थित है जिसे ऐतिहासिक रूप से अवध क्षेत्र के नाम से जाना जाता था। लखनऊ हमेशा से एक बहुसांस्कृतिक शहर रहा है। यहाँ के शिया नवाबों द्वारा शिष्टाचार, खूबसूरत उद्यानों, कविता, संगीत और बढ़िया व्यंजनों को हमेशा संरक्षण दिया गया। लखनऊ को नवाबों के शहर के रूप में भी जाना जाता है। इसे पूर्व की स्वर्ण नगर (गोल्डन सिटी) और शिराज-ए-हिंद के रूप में जाना जाता है। आज का लखनऊ एक जीवंत शहर है जिसमे एक आर्थिक विकास दिखता है और यह भारत के तेजी से बढ़ रहे गैर-महानगरों के शीर्ष पंद्रह में से एक है। यह हिंदी और उर्दू साहित्य के केंद्रों में से एक है। यहां अधिकांश लोग हिन्दी बोलते हैं। यहां की हिन्दी में लखनवी अंदाज़ है, जो विश्वप्रसिद्ध है। इसके अलावा यहाँ उर्दू और अंग्रेज़ी भी बोली जाती हैं। .

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लोमराज सिंह

लोमराज सिंह (१८३२ - १९२८) चंपारण सत्याग्रह के पुरोधा तथा किसान नेता थे। उनके अदम्य साहस, आशा, जुझारूपन के कारण ही पीपरा व तुरकौलिया की नीलही कोठियों के हजारों-हजार किसान अत्याचार, अनाचार और शोषण के विरुद्ध आंदोलन पर उतर गये थे। लोमराज सिंह जगीरहां कोठी के जमादार थे। नीलहों द्वारा किसानों व मजदूरों के साथ अत्याचार होता को देख लोमराज सिंह ने नीलहों की नौकरी को लात मार दी थी। भारतीय स्वातंत्र्य का महत्वपूर्ण अध्याय चम्पारण सत्याग्रह के महत्वपूर्ण पुरोधा थे बाबू लोमराज सिंह और इनके अदम्य उत्साह, अप्रतिम आष्तां और जुझारु संघर्ष का ही प्रतिफल हूआ कि चम्पारण सत्याग्रह का केन्द्र बिन्दु बना इनका गाँव जसौली जो आज जसौली पट्टी के नाम से जाना जाता है। ये सच्चे अर्थ में किसान नेता थे जिनकी अगुआइ में पीपरा एवं तुरकौलिया नीलही कोठियों से सम्बद्ध हजारों किसान नीलहे साहबों के अत्याचार, अनाचार और षोषण के विरुद्ध निर्णायक आन्दोलन पर उतर गये थे। उक्त आन्दोलन को ही निर्णायक मोड़ तक पहुँचाने के लिए 1917 में कांग्रेस नेता मोहनदास करमचंद गाँधी चंपारण आये थे, जो यहाँ ‘ बाबा ’ कहलाये और महात्मा गाँधी बन कर लौटे। गाँधी जी ने 15 अप्रैल 1917 को चंपारण आगमन के बाद अपना कार्य प्रारंभ करने के लिए बाबू साहेब को ही चूना था। 16 अप्रैल की सुबह जसौली के लिए चल पडे़ जहाँ किसान आंदोलन को कुचलने के लिए इनके साथ दमनात्मक कारवाई की गई थी। गाँधी जी के लिए उस समय चंपारण में जसौली से अधिक उपयुक्त धरती नहीं थी जहाँ वे सत्याग्रह का बीज डाल सकें। गाँधी जी की जसौली यात्रा से नीलीहों के ही नहीं जिला प्रशासन तथा तत्कालीन ब्रिटीश सरकार के कान खड़े हो गए तथा उनके भ्रमण पर प्रतिबन्ध लगाते हुए तत्कालीन कलक्टर मि0 हेकौक ने उन्हें जिला छोड़ने का आदेश दिया। गाँधी जी अपने धुन के पक्के थे तथा बाबू लोमराज सिंह भी अपने इरादे के मजबूत। सरकारी प्रतिबंध से दोनो में किसी का उद्देश्य बाधित नहीं हुआ। गाँधी जी रास्ते में चंद्रहिया के पास से स्वयं सरकार से निबटने के लिए जिला मुख्यालय मोतिहारी लौट गए लेकिन उन्होंने अपने सहयोगी रामनवमी प्रसाद, धरनीधर प्रसाद दोनों वकील तथा अन्य को चंपारण सत्याग्रह का सूत्रपात करने के लिए जसौली भेजा। बाबू साहेब ने उन्हें लेकर जसौली आए। जहाँ उनलोगों ने बाबू साहेब के विरुद्ध की गइ दमनात्मक कारवाइयों को देखा तथा चंपारण सत्याग्रह का सूत्रपात करते हुए उन्हीं के दरवाजे पर किसानो का पहला बयान दर्ज कर एक पोथी बनाइ जो आगे चलकर महीने भर में चंपारण सत्याग्रह का पोथा हो गयी। जिसमें किसानों पर अत्याचार कि करुण कथा दर्ज थी। बाबू लोमराज सिंह ने 1857 के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम ”सिपाही विद्रोह“ को उभरते तथा विफल होते देखा था। बेतिया राज को पराभूत होते तथा उससे पट्टे पर जमीन लेकर नीलहें साहबों को उभरते, निरीह किसानो को उनकी दमन चक्की में पिसते तथा इस अन्याय के साथ सरकार की शक्ति को सहयोग करते देखा था और उनकी आत्मा चित्कार कर उठी थी। उनके अन्दर विरोध की चिनगारी फूट रही थी लेकिन वे उसे शोला बनाने का अवसर देख रहे थे। वे शक्ति संग्रह कर रहे थे तथा लोक विश्वास जुटा रहे थे। इस बीच अंग्रजों से लोहा लेने के लिए वर्तमान पश्चिमी चम्पारण के किसान शेख गुलाब और शीतल राय, पीरमोहम्मद मुनिश आदि उठे लेकिन उन्हें दबा दिया गया। उस समय चंपारण में शिक्षा की बेहद कमी थी तथा उनके अभाव में संघर्ष सफल नहीं हो रहा था। कोइ पढ़ा-लिखा व्यक्ति अंग्रेजों के खिलाफ आगे नहीं आ रहा था। इसी बीच अंग्रेज साहब मि0 एमन के दमन के शिकार पं0 राजकुमार शुक्ला हुए। पं0 शुक्ला ने जब विरोध का झंडा उठाया तो उन्हें बाबू लोमराज सिंह की शक्ति मिल गयी। बाबू साहेब तो लम्बे समय से अंग्रेजों से कानूनी लड़ाई लड़ रहे थे लेकिन इन्हें समुचित सफलता नहीं मिल रही थी। मुकदमें में धन का अपव्यय भी सीमा छू रही थी जिसमें बाबू साहेब को अपने मोतिहारी के वकील टोली का शहरी आवास वकील साहेब की फीस में ही गंवाना पड़ा था। लेकिन इस बीच वे तुरकौलीया तथा पीपरा कोठी क्षेत्र के किसानों को एक जुट कर कोटवा गाँव के मिठुआ वर के पास एक बड़ी सभा करने में सफल रहे थे। उन्होंने तिरहुत कमिश्नर को सात सौ किसानों के हस्ताक्षर के युक्त बढ़े हुए लगान (सहरबेसी) के विरुद्ध चिनगारी को शोला बना लिया लेकिन वह तब धधका जब आन्दोलन में पं0 राज कुमार शुक्ला शामिल हो गये तथा बाबू साहेब के वकील बाबू गोरख प्रसाद की बुद्धि उसमें मिल गयी। गोरख बाबू ने ही इन लोगों को गाँधी द्वारा द0 अफ्रिका में किये गये कार्यों की जानकारी तथा सुझाव दिया की अगर वे चम्पारण की स्थिति आकर देख लें तो यहाँ का भी उद्धार हो जाय। इसके लिए पं0 शुक्ला के नेतृत्व में किसानों का एक जत्था चम्पारण से लखनऊ कांग्रेस में भाग लेने गया जिसमें बाबू लोमराज सिंह ने तन-मन-धन से सहयोग किया। गाँधी जी चम्पारण कैसे आये यह तो सर्वविदित है लेकिन यह इतिहास के पन्नों में दब कर रह गया है कि पटने की तकलीफ के बाद जब गाँधी जी मगन लाल को पत्र लिख कर अपना कार्यक्रम बदल कर लौटने की तैयारी कर रहे थे तो बाबू लोमराज सिंह ही ऐसे आदमी थे जिन्होंने गाँधी जी से कहा था कि उन्होंने अपना सब कुछ गंवाया है गाँधी की आशा और विश्वास पर अगर गाँधी चंपारण नहीं गए तो वे गंगा नदी में कूद कर आत्महत्या कर लेंगे परन्तु लोक विश्वास गंवाने चंपारण नहीं जायेंगे और गाँधी जी को अपना मन बदल कर चम्पारण आना पड़ा था फिर जो हुआ यह भी सभी जानते हैं। चंपारण एग्रेरीयन एक्ट गाँधी के चंपारण सत्याग्रह के साथ बाबू लोमराज सिंह के किसान आन्दोलन की सफलता थी। बाबू लोमराज सिंह के बड़े मददगार उनके चचेरे भाई भिखु सिंह थे जो अंग्रेजों की जमादारी छोड़कर किसान आन्दोलन में कुद पड़े थे। अंग्र्रेज साहबों के पत्र तथा सरकारी प्रतिवेदनों से ज्ञात होता है कि पीपरा और तुरकौलीया कोठी के साहबों पर इन दोनो भाईयों का खौफ था। अपनी जनता में ये इतना लोकप्रिय थे कि लोमराज सिंह को लोग सोराज (स्वराज) सिंह पुकारने लगे थे। पीपरा के साहेब मि0 नॉरमेन ने कलेक्टर मि0 हेकौक को बताया था कि सोराज (लोमराज) के विरुद्ध कोई गवाह मिलना मुश्किल है और कलक्टर लोमराज सिंह की इतनी लोकप्रियता की जानकारी अपने पत्र द्वारा अधिकारियों को दी थी तथा चम्पारण में किसान आन्दोलन भड़कने की स्थिति को रेखांकित किया था। बाबू साहेब का मनोबल तब उच्च हो गया जब पं0 राजकुमार शुक्ला समय से कलकते गाँधी जी को लाने प्रस्थान कर गये। इसी समय जगिरहाँ कोठी का साहब मि0 कौम्प भी इनका मनोबल तोड़ने इनके सामने आ गया। तब अपनी बंसवारी से अंग्रेजों के आदमियों को बाँस काटने कि सूचना मिलते ही बाबू साहेब उन्हें रोकने के लिए निहत्थे चल दिये और इनके पीछे पड़ा जन सैलाब। जिसपर मि0 कैम्प घोड़े दौड़ा-दौड़ा कोड़े बरसाने लगा। बाबू साहेब ने ललकारा तो लोगों ने उसे घोड़े पर से गिरा कर उसकी भोजपुरीया पिटाइ कर दी, उसके शरीर में लाठी धांस दी। इसमें अंग्रेजों ने अपने अस्तित्व के विरोद्ध चुनौती मानी तथा जसौली में पलटन भेज कर तबाही मचायी, मुकदमें किये। मुकदमें में बाबू साहेब तो रिहा हुए लेकिन उस मुकदमें में मखन सिंह, विसुन सिंह, त्रिवेणी सिंह, राजाधरी राय, रामफल राय, महींगन कुवर सहीत अनेक लोग बक्सर जेल से सजा काट कर आये। बाबू साहेब के अच्छे सहयोगी बारा (चकिया) का देव परिवार था। बाबू साहेब तथा उनके भाई भिखु सिंह स्वयं ही अंग्रजों से नहीं लड़ते अन्य लड़ाकू किसानों की आर्थिक मदद करने का प्रणाम मिला है। बाबू लोमराज सिंह ने पटने में गाँधी जी को किया गया वादा 18 अप्रौल 1917 को मोतिहारी के कचहरी में मुकदमें की सुनवाई के दौरान पीपरा और तुरकौलीया क्षेत्र के 10 हजार किसानों को समर्थन में जमा कर निभाया। बाबू साहेब की यहीं साख थी कि महात्मा गाँधी 1934 में भूकंप की बर्वादी देखने आये तो उन्होंने उनकी तथा पं0 शुक्ला की खोज की लेकिन तब तक वे लोग दिवेगत हो गये थे। बाबू साहेब ने स्वतंत्रता तो नहीं देखी लेकिन उनके किसान आन्दोलन का प्रभाव हुआ कि नीलहों को बेतिया राज को लीज लौटा कर भागना पड़ा। मि0 कैम्प ने उनका घर तो तोड़वा दिया लेकिन उनकी इंर्ट से अपना घोड़सार नहीं बनवा सका पर बाबू लोमराज सिंह ने मरने के पहले उसकी कोठी तोड़वा कर उसकी ईंट से अपना शौचालय बनवा लिया। .

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कांग्रेस

कांग्रेस का आशय इन सब से है।.

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कोलकाता

बंगाल की खाड़ी के शीर्ष तट से १८० किलोमीटर दूर हुगली नदी के बायें किनारे पर स्थित कोलकाता (बंगाली: কলকাতা, पूर्व नाम: कलकत्ता) पश्चिम बंगाल की राजधानी है। यह भारत का दूसरा सबसे बड़ा महानगर तथा पाँचवा सबसे बड़ा बन्दरगाह है। यहाँ की जनसंख्या २ करोड २९ लाख है। इस शहर का इतिहास अत्यंत प्राचीन है। इसके आधुनिक स्वरूप का विकास अंग्रेजो एवं फ्रांस के उपनिवेशवाद के इतिहास से जुड़ा है। आज का कोलकाता आधुनिक भारत के इतिहास की कई गाथाएँ अपने आप में समेटे हुए है। शहर को जहाँ भारत के शैक्षिक एवं सांस्कृतिक परिवर्तनों के प्रारम्भिक केन्द्र बिन्दु के रूप में पहचान मिली है वहीं दूसरी ओर इसे भारत में साम्यवाद आंदोलन के गढ़ के रूप में भी मान्यता प्राप्त है। महलों के इस शहर को 'सिटी ऑफ़ जॉय' के नाम से भी जाना जाता है। अपनी उत्तम अवस्थिति के कारण कोलकाता को 'पूर्वी भारत का प्रवेश द्वार' भी कहा जाता है। यह रेलमार्गों, वायुमार्गों तथा सड़क मार्गों द्वारा देश के विभिन्न भागों से जुड़ा हुआ है। यह प्रमुख यातायात का केन्द्र, विस्तृत बाजार वितरण केन्द्र, शिक्षा केन्द्र, औद्योगिक केन्द्र तथा व्यापार का केन्द्र है। अजायबघर, चिड़ियाखाना, बिरला तारमंडल, हावड़ा पुल, कालीघाट, फोर्ट विलियम, विक्टोरिया मेमोरियल, विज्ञान नगरी आदि मुख्य दर्शनीय स्थान हैं। कोलकाता के निकट हुगली नदी के दोनों किनारों पर भारतवर्ष के प्रायः अधिकांश जूट के कारखाने अवस्थित हैं। इसके अलावा मोटरगाड़ी तैयार करने का कारखाना, सूती-वस्त्र उद्योग, कागज-उद्योग, विभिन्न प्रकार के इंजीनियरिंग उद्योग, जूता तैयार करने का कारखाना, होजरी उद्योग एवं चाय विक्रय केन्द्र आदि अवस्थित हैं। पूर्वांचल एवं सम्पूर्ण भारतवर्ष का प्रमुख वाणिज्यिक केन्द्र के रूप में कोलकाता का महत्त्व अधिक है। .

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