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यान्त्रिक अनुवाद

सूची यान्त्रिक अनुवाद

कम्प्यूटर साफ्टवेयर की सहायता से एक प्राकृतिक भाषा के टेक्स्ट या कही गयी बात (स्पीच) को दूसरी प्राकृतिक भाषा के टेक्स्ट या वाक में अनुवाद करने को मशीनी अनुवाद या यांत्रिक अनुवाद कहते हैं। .

9 संबंधों: भाषा, मशीनी अनुवाद के अनुप्रयोगों की परस्पर तुलना, मोसेस् (अनुवादक प्रोग्राम), सांख्यिकीय मशीनी अनुवाद, संगणक सहायित अनुवाद, कृत्रिम बुद्धि, अनुवाद, अनुवाद स्मृति, अपर्तिअम्

भाषा

भाषा वह साधन है जिसके द्वारा हम अपने विचारों को व्यक्त करते है और इसके लिये हम वाचिक ध्वनियों का उपयोग करते हैं। भाषा मुख से उच्चारित होनेवाले शब्दों और वाक्यों आदि का वह समूह है जिनके द्वारा मन की बात बतलाई जाती है। किसी भाषा की सभी ध्वनियों के प्रतिनिधि स्वन एक व्यवस्था में मिलकर एक सम्पूर्ण भाषा की अवधारणा बनाते हैं। व्यक्त नाद की वह समष्टि जिसकी सहायता से किसी एक समाज या देश के लोग अपने मनोगत भाव तथा विचार एक दूसरे पर प्रकट करते हैं। मुख से उच्चारित होनेवाले शब्दों और वाक्यों आदि का वह समूह जिनके द्वारा मन की बात बतलाई जाती है। बोली। जबान। वाणी। विशेष— इस समय सारे संसार में प्रायः हजारों प्रकार की भाषाएँ बोली जाती हैं जो साधारणतः अपने भाषियों को छोड़ और लोगों की समझ में नहीं आतीं। अपने समाज या देश की भाषा तो लोग बचपन से ही अभ्यस्त होने के कारण अच्छी तरह जानते हैं, पर दूसरे देशों या समाजों की भाषा बिना अच्छी़ तरह नहीं आती। भाषाविज्ञान के ज्ञाताओं ने भाषाओं के आर्य, सेमेटिक, हेमेटिक आदि कई वर्ग स्थापित करके उनमें से प्रत्येक की अलग अलग शाखाएँ स्थापित की हैं और उन शाखाकों के भी अनेक वर्ग उपवर्ग बनाकर उनमें बड़ी बड़ी भाषाओं और उनके प्रांतीय भेदों, उपभाषाओं अथाव बोलियों को रखा है। जैसे हमारी हिंदी भाषा भाषाविज्ञान की दृष्टि से भाषाओं के आर्य वर्ग की भारतीय आर्य शाखा की एक भाषा है; और ब्रजभाषा, अवधी, बुंदेलखंडी आदि इसकी उपभाषाएँ या बोलियाँ हैं। पास पास बोली जानेवाली अनेक उपभाषाओं या बोलियों में बहुत कुछ साम्य होता है; और उसी साम्य के आधार पर उनके वर्ग या कुल स्थापित किए जाते हैं। यही बात बड़ी बड़ी भाषाओं में भी है जिनका पारस्परिक साम्य उतना अधिक तो नहीं, पर फिर भी बहुत कुछ होता है। संसार की सभी बातों की भाँति भाषा का भी मनुष्य की आदिम अवस्था के अव्यक्त नाद से अब तक बराबर विकास होता आया है; और इसी विकास के कारण भाषाओं में सदा परिवर्तन होता रहता है। भारतीय आर्यों की वैदिक भाषा से संस्कुत और प्राकृतों का, प्राकृतों से अपभ्रंशों का और अपभ्रंशों से आधुनिक भारतीय भाषाओं का विकास हुआ है। सामान्यतः भाषा को वैचारिक आदान-प्रदान का माध्यम कहा जा सकता है। भाषा आभ्यंतर अभिव्यक्ति का सर्वाधिक विश्वसनीय माध्यम है। यही नहीं वह हमारे आभ्यंतर के निर्माण, विकास, हमारी अस्मिता, सामाजिक-सांस्कृतिक पहचान का भी साधन है। भाषा के बिना मनुष्य सर्वथा अपूर्ण है और अपने इतिहास तथा परम्परा से विच्छिन्न है। इस समय सारे संसार में प्रायः हजारों प्रकार की भाषाएँ बोली जाती हैं जो साधारणतः अपने भाषियों को छोड़ और लोगों की समझ में नहीं आतीं। अपने समाज या देश की भाषा तो लोग बचपन से ही अभ्यस्त होने के कारण अच्छी तरह जानते हैं, पर दूसरे देशों या समाजों की भाषा बिना अच्छी़ तरह सीखे नहीं आती। भाषाविज्ञान के ज्ञाताओं ने भाषाओं के आर्य, सेमेटिक, हेमेटिक आदि कई वर्ग स्थापित करके उनमें से प्रत्येक की अलग अलग शाखाएँ स्थापित की हैं और उन शाखाओं के भी अनेक वर्ग-उपवर्ग बनाकर उनमें बड़ी बड़ी भाषाओं और उनके प्रांतीय भेदों, उपभाषाओं अथाव बोलियों को रखा है। जैसे हिंदी भाषा भाषाविज्ञान की दृष्टि से भाषाओं के आर्य वर्ग की भारतीय आर्य शाखा की एक भाषा है; और ब्रजभाषा, अवधी, बुंदेलखंडी आदि इसकी उपभाषाएँ या बोलियाँ हैं। पास पास बोली जानेवाली अनेक उपभाषाओं या बोलियों में बहुत कुछ साम्य होता है; और उसी साम्य के आधार पर उनके वर्ग या कुल स्थापित किए जाते हैं। यही बात बड़ी बड़ी भाषाओं में भी है जिनका पारस्परिक साम्य उतना अधिक तो नहीं, पर फिर भी बहुत कुछ होता है। संसार की सभी बातों की भाँति भाषा का भी मनुष्य की आदिम अवस्था के अव्यक्त नाद से अब तक बराबर विकास होता आया है; और इसी विकास के कारण भाषाओं में सदा परिवर्तन होता रहता है। भारतीय आर्यों की वैदिक भाषा से संस्कृत और प्राकृतों का, प्राकृतों से अपभ्रंशों का और अपभ्रंशों से आधुनिक भारतीय भाषाओं का विकास हुआ है। प्रायः भाषा को लिखित रूप में व्यक्त करने के लिये लिपियों की सहायता लेनी पड़ती है। भाषा और लिपि, भाव व्यक्तीकरण के दो अभिन्न पहलू हैं। एक भाषा कई लिपियों में लिखी जा सकती है और दो या अधिक भाषाओं की एक ही लिपि हो सकती है। उदाहरणार्थ पंजाबी, गुरूमुखी तथा शाहमुखी दोनो में लिखी जाती है जबकि हिन्दी, मराठी, संस्कृत, नेपाली इत्यादि सभी देवनागरी में लिखी जाती है। .

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मशीनी अनुवाद के अनुप्रयोगों की परस्पर तुलना

कोई विवरण नहीं।

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मोसेस् (अनुवादक प्रोग्राम)

मोसेस् (Moses), यांत्रिक अनुवाद का एक मुक्तस्रोत सॉफ्टवेयर है। इसके द्वारा किया गया अनुवाद सांख्यिकीय मशीनी अनुवाद है। .

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सांख्यिकीय मशीनी अनुवाद

सांख्यिकीय मशीनी अनुवाद (Statistical machine translation (SMT)) मशीनी अनुवाद का ऐसा अल्गोरिद्म है जो दोनो भाषाओं के द्विभाषी शब्दराशि (टेक्स्ट कॉर्पस) के अध्ययन से निर्मित सांख्यिकीय मॉडल पर निर्भर करता है। यह विधि नियम पर आधारित मशीनी अनुवाद (rule-based machine translation) तथा उदाहरण पर आधारित मशीनी अनुवाद (example-based machine translation) से बिलकुल अलग है। विश्व प्रसिद्ध गूगल अनुवादक इसी सिद्धान्त के प्रयोग से अनुवाद करता है। .

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संगणक सहायित अनुवाद

संगणक सहायित अनुवाद (Computer Assisted Translation / CAT) किसी व्यक्ति द्वारा किया गया ऐसा अनुवाद है जिसमें कम्प्यूटर प्रोग्रामों की भी सहायता ली जाती है। इससे भिन्न मशीनी अनुवाद की प्रक्रिया में सम्पूर्ण अनुवाद प्रक्रिया में मानव का कोई हस्तक्षेप नहीं होता। कुछ उन्नत प्रकार के मशीन सहायित अनुवादों में नियंत्रित मशीन अनुवाद का सहारा लिया जाता है। .

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कृत्रिम बुद्धि

कृत्रिम बुद्धि (क्रत्रिम होशियारी, आर्टिफ़िशियल इंटेलिजेंस या एआई) इंसानों और अन्य जानवरों द्वारा प्रदर्शित प्राकृतिक बुद्धि के विपरीत मशीनों द्वारा प्रदर्शित बुद्धि है। कंप्यूटर विज्ञान में कृत्रिम बुद्धि के शोद को "होशियार एजेंट" का अध्ययन माना जाता है.

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अनुवाद

किसी भाषा में कही या लिखी गयी बात का किसी दूसरी भाषा में सार्थक परिवर्तन अनुवाद (Translation) कहलाता है। अनुवाद का कार्य बहुत पुराने समय से होता आया है। संस्कृत में 'अनुवाद' शब्द का उपयोग शिष्य द्वारा गुरु की बात के दुहराए जाने, पुनः कथन, समर्थन के लिए प्रयुक्त कथन, आवृत्ति जैसे कई संदर्भों में किया गया है। संस्कृत के ’वद्‘ धातु से ’अनुवाद‘ शब्द का निर्माण हुआ है। ’वद्‘ का अर्थ है बोलना। ’वद्‘ धातु में 'अ' प्रत्यय जोड़ देने पर भाववाचक संज्ञा में इसका परिवर्तित रूप है 'वाद' जिसका अर्थ है- 'कहने की क्रिया' या 'कही हुई बात'। 'वाद' में 'अनु' उपसर्ग उपसर्ग जोड़कर 'अनुवाद' शब्द बना है, जिसका अर्थ है, प्राप्त कथन को पुनः कहना। इसका प्रयोग पहली बार मोनियर विलियम्स ने अँग्रेजी शब्द टांंसलेशन (translation) के पर्याय के रूप में किया। इसके बाद ही 'अनुवाद' शब्द का प्रयोग एक भाषा में किसी के द्वारा प्रस्तुत की गई सामग्री की दूसरी भाषा में पुनः प्रस्तुति के संदर्भ में किया गया। वास्तव में अनुवाद भाषा के इन्द्रधनुषी रूप की पहचान का समर्थतम मार्ग है। अनुवाद की अनिवार्यता को किसी भाषा की समृद्धि का शोर मचा कर टाला नहीं जा सकता और न अनुवाद की बहुकोणीय उपयोगिता से इन्कार किया जा सकता है। ज्त्।छैस्।ज्प्व्छ के पर्यायस्वरूप ’अनुवाद‘ शब्द का स्वीकृत अर्थ है, एक भाषा की विचार सामग्री को दूसरी भाषा में पहुँचना। अनुवाद के लिए हिंदी में 'उल्था' का प्रचलन भी है।अँग्रेजी में TRANSLATION के साथ ही TRANSCRIPTION का प्रचलन भी है, जिसे हिंदी में 'लिप्यन्तरण' कहा जाता है। अनुवाद और लिप्यंतरण का अंतर इस उदाहरण से स्पष्ट है- इससे स्पष्ट है कि 'अनुवाद' में हिंदी वाक्य को अँग्रेजी में प्रस्तुत किया गया है जबकि लिप्यंतरण में नागरी लिपि में लिखी गयी बात को मात्र रोमन लिपि में रख दिया गया है। अनुवाद के लिए 'भाषांतर' और 'रूपांतर' का प्रयोग भी किया जाता रहा है। लेकिन अब इन दोनों ही शब्दों के नए अर्थ और उपयोग प्रचलित हैं। 'भाषांतर' और 'रूपांतर' का प्रयोग अँग्रेजी के INTERPRETATION शब्द के पर्याय-स्वरूप होता है, जिसका अर्थ है दो व्यक्तियों के बीच भाषिक संपर्क स्थापित करना। कन्नडभाषी व्यक्ति और असमियाभाषी व्यक्ति के बीच की भाषिक दूरी को भाषांतरण के द्वारा ही दूर किया जाता है। 'रूपांतर' शब्द इन दिनों प्रायः किसी एक विधा की रचना की अन्य विधा में प्रस्तुति के लिए प्रयुक्त है। जैस, प्रेमचन्द के उपन्यास 'गोदान' का रूपांतरण 'होरी' नाटक के रूप में किया गया है। किसी भाषा में अभिव्यक्त विचारों को दूसरी भाषा में यथावत् प्रस्तुत करना अनुवाद है। इस विशेष अर्थ में ही 'अनुवाद' शब्द का अभिप्राय सुनिश्चित है। जिस भाषा से अनुवाद किया जाता है, वह मूलभाषा या स्रोतभाषा है। उससे जिस नई भाषा में अनुवाद करना है, वह 'प्रस्तुत भाषा' या 'लक्ष्य भाषा' है। इस तरह, स्रोत भाषा में प्रस्तुत भाव या विचार को बिना किसी परिवर्तन के लक्ष्यभाषा में प्रस्तुत करना ही अनुवाद है।ज .

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अनुवाद स्मृति

अनुवाद स्मृति (translation memory, or TM) एक डेटाबेस है जिसमें स्रोत भाषा के किसी खण्ड (वाक्यांश, वाक्य, मुहावरा, अनुच्छेद आदि) के संगत लक्ष्य भाषा का खण्ड भण्डारित रहता है। स्रोत भाषा एवं लक्ष्य भाषा के ये युग्म पहले से मानव अनुवादकों द्वारा तैयार किये गये होते हैं। अनुवाद स्मृति में शब्द और उसका अनुवाद नहीं भण्डारित किया जाता बल्कि ये अनुवाद शब्दावली में दिये गये होते हैं। अनुवाद-स्मृति का उपयोग मानव अनुवादकों की सहायता करने के लिये किया जाता है। अनुवाद-स्मृति का प्रयोग आमतौर पर कम्प्यूटर सहायित अनुवाद (CAT), शब्द संसाधक प्रोग्रामों, शब्दावली-प्रबन्धन प्रणालियों, बहुभाषी शब्दकोशों तथा 'कच्चे' मशीनी अनुवाद के साथ मिलकर किया जाता है (न कि अकेले)।;उदाहरण अनुवाद-स्मृति में "Don't loose temper" के लिये "क्रोधित मत हो" तथा "Do come tomorrow" के लिये "कल जरूर आना" संचित किया जा सकता है। किसी बड़े टेक्स्ट (पाठ) का अनुवाद करते समय मशीन देखती है कि इसका कोई अंश (या उससे मिलता-जुलता खण्ड) अनुवाद-स्मृति में मौजूद है या नहीं। यदि है तो यह स्मृति से ले लिया जाता है और माना जाता है कि अनुवाद शत-प्रतिशत शुद्ध हो गया। जो खण्ड स्मृति में नहीं पाये जाते उन्हें अन्य विधि का सहारा लेते हुए अनुवाद किया जाता है। वे प्रोग्राम जो 'अनुवाद स्मृति' फाइल के निर्माण, उसको व्यवस्थित करने, उसमें नये अनुवाद-युग्म जोडने, अनुवाद-युग्म हटाने, एक प्रकार की अनुवाद-स्मृति फाइल को दूसरे प्रकार में बदलने आदि का कार्य करते हैं उन्हें अनुवाद स्मृति प्रबन्धक (translation memory managers या TMM) कहते हैं। .

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अपर्तिअम्

अपर्तिअम् (Apertium) मशीनी अनुवाद का एक मुक्तस्रोत प्रोग्राम है। यह नियमाधारित मशीनी अनुवाद करता है। यह ऐसी भाषाओं के लिये विशेष रूप से उपयोगी है जिनमें निकट का सम्बन्ध हो (जैसे सभी भारतीय भाषाएँ; या यूरोप की भाषाएँ)। निकट के रिश्ते वाली भाषाओं में परस्पर अनुवाद के लिये अपर्तिअं सचमुच अप्रतिं है। जिसका आरम्भ GNU के अंतर्गत किया गया था। .

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यहां पुनर्निर्देश करता है:

मशीनी अनुवाद, यांत्रिक अनुवाद

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