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मुनि की रेती का इतिहास

सूची मुनि की रेती का इतिहास

उत्तराखंड के इतिहास में मुनि की रेती की एक खास भूमिका है। यही वह स्थान है जहां से परम्परागत रूप से चार धाम यात्रा शुरु होती थी। यह सदियों से गढ़वाल हिमालय की ऊंची चढ़ाईयों तथा चार धामों का प्रवेश द्वार था। जब तीर्थ यात्रियों का दल मुनि की रेती से चलकर अगले ठहराव गरुड़ चट्टी (परम्परागत रूप से तीर्थ यात्रियों के ठहरने के स्थान को चट्टी कहा जाता था) पर पहुंचाते थे तभी यात्रा से वापस आने वाले लोगों को मुनि की रेती वापस आने की अनुमति दी जाती थी। बाद में सड़कों एवं पूलों के निर्माण के कारण मुनि की रेती से ध्यान हट गया। प्राचीन शत्रुघ्न मंदिर, मुनि की रेती का एक पवित्र स्थान था जहां से यात्रा वास्तव में शुरु होती थी। सम्पूर्ण भारत से आये भक्तगण इस मंदिर में सुरक्षित यात्रा के लिए प्रार्थना करते थे, गंगा में स्नान करने के बाद आध्यात्मिक शांति के लिए पैदल यात्रा शुरु करते थे। श्री विनोद द्रिवेदी द्विवेदी, एक स्कूल शिक्षक जो इस शहर के इतिहास को जानने में अधिक रुचि रखते हैं, के अनुसार इस मंदिर की स्थापना नौंवी शताब्दी में आदि शंकराचार्य के द्वारा की गई। मुनि की रेती टिहरी रियासत का एक हिस्सा था तथा शत्रुघ्न मंदिर की देखभाल टिहरी के राजा करते थे। वास्तव में, वहां जहां आज लोक निर्माण विभाग का आवासीय क्वार्टर है पहले रानी का घाट था यहां पहले टिहरी की रानी तथा उनकी दासिया स्नान करने आती थीं। इससे थोड़ी दूर राजधराने के मृतकों के दाह-संस्कार का स्थान तथा फुलवाडी थे। दुर्भाग्य से उस स्थान पर अब कुछ भी पुराना मौजूद नहीं है। इस शहर के एक बुजुर्ग निवासी, श्री एच एल बदोला कहते हैं कि “टिहरी के राजा लालची नहीं थे, उन्होंने बहुत सारी जमीन जैसे देहरादून तथा मसुरी अंग्रेजों को दे दी। उन्होंने ऋषिकेश में रेलवे निर्माण के लिए जमीन दी तथा ऋषिकेश के रावत ने ऋषिकेश तक रेल स्टेशन बनाने का खर्च दिया। राजा ने अगर थोड़ा और भी सोचा होता तो आसानी से रेल मार्ग मुनि की रेती तक पहूंच जाता।” उन दिनों रेलवे स्टेशन से मुनि की रेती तक बैलगाड़ी से पहूंचा जाता था और जब तक कि चन्द्रभाग पुल का निर्माण रियासत सरकार द्वारा न कराया गया तब तक हाथी के पीठ पर बैठकर नदी पार किया जाता था। श्री बदोला कहते हैं कि खास इसी मकसद के लिए राजा मुनि की रेती में एक हाथी रखते थे। कैलाश आश्रम की स्थापना वर्ष 1880 में हुई और इस आश्रम के आस-पास धीरे-धीरे शहर का विकास हुआ जहां चाय की कुछ दूकानें थी, जो आध्यात्मिक ज्ञान सीखने आये लोगों के लिए बनी थी। वर्ष 1932 में शिवानन्द आश्रम की स्थापना हुई जिनका इस शहर को योग एवं वेदान्त केन्द्र के रूप में विकास के लिए एक बड़ा योगदान है। इसका श्रेय इसके संस्थापक स्वामी शिवानन्द को जाता है जिन्होंने योग एवं वेदान्त को आसानी से समझने लायक बनाकर पश्चिम के देशों में प्रसिद्ध किया। वर्ष 1986 में महर्षि महेश योगी ट्रांसेन्डेन्टल आश्रम (जो अभी मरम्मत के अभाव में गिर चुका है, तथा नोएडा में स्थानांतरित हो चुका है) में बीटल्स के आगमन ने भी मुनि की रेती को अन्तर्राष्ट्रीय प्रसिद्धि दिलाई। लेकिन इतिहास के जिस भी समय की बात करें मुनि की रेती ने आध्यात्मिक महत्व एवं विचारों के पौराणिक ज्ञान के केन्द्र के रूप में अग्रणीय स्थान पाया है। श्रेणी:मुनि की रेती श्रेणी:टिहरी जिला.

3 संबंधों: मुनि की रेती, कैलाश आश्रम, उत्तराखण्ड

मुनि की रेती

मुनि की रेती - पवित्र चार धाम तीर्थयात्रा का एक समय में प्रवेश द्वार - आज गलतीवश ऋषिकेश का एक भाग समझा जाता है। लेकिन पवित्र गंगा के किनारे तथा हिमालय की तलहटी में अवस्थित इस छोटे से शहर की एक खास पहचान है। मुनि की रेती भारत के योग, आध्यात्म तथा दर्शन को जानने के उत्सुक लोगों का केन्द्र है, यहां कई आश्रम हैं जहां स्थानीय आबादी के 80 प्रतिशत लोगों को रोजगार मिलता है और यह जानकर आश्चर्य नहीं होगा कि यह विश्व का योग केन्द्र है। अनुभवों के खुशनुमा माहौल में प्राचीन मंदिरों, पवित्र पौराणिक घटना के कारण जाने वाली स्थानों, तथा एक सचमुच आध्यात्मिक स्वातंत्र्य का एक ठोस वास्तविक अहसास - और वो भी आरामदायक आधुनिक होटलों, रेस्टोरेन्ट तथा भीड़भाड़ वाले बाजारों में - उपलब्ध है। यहां इजराइली तथा इटालियन व्यंजनों के साथ शुद्ध शाकाहारी भोजन मिलता है, भजन-कीर्तन एंव आरती के साथ टेकनो संगीत, एक ओर पर्यटक गंगा में राफ्टिंग करते हैं और दुसरी और भक्त इसमें स्नान करते हैं; इनमें से जो भी आप ढुंढ रहे हैं, मुनि की रेती में ही आपको मिल जायेगा। मुनि की रेती में इतिहास, पौराणिक परम्परा तथा आधुनिकता का एक जादुई मिश्रण है। जबकि यहां के लोग तथा सभ्यता रामायण तथा इससे भी पहले के युग से जुड़े हैं, यह शहर वर्तमान तथा भविष्य का एक बड़ा हिस्सा है। गंगा नदी के किनारे स्थित इस शहर का पर्यावरण प्रेरणा तथा शांत दोनों प्रदान करता है। मुनि की रेती के स्थानीय आकर्षणों में अनेकानेक प्राचीन मंदिर, आश्रम, परंपरागत स्थल शामिल हैं तथा भारत के वास्तविक रूप का आनंद उठाने का तीव्र मिश्रण है। शहर के आस-पास सैर-सपाटा आपको प्रसन्नता तथा शांति दोनो प्रदान करेगा। .

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कैलाश आश्रम

ब्रहमविदंयापीठ श्री कैलाश आश्रम की स्थापना वर्ष 1880 में श्रीमत्स्यास्वामी धनराज गिरीजी महाराज ने की। आज भी वे आदरपूर्वक आदि महाराज जी के नाम से पुकारे जाते हैं। आम विश्वास है कि उन्हें स्वप्न में भगवान शिव ने आश्रम में एक शिवलिंग की स्थापना का आदेश दिया था। इसके अतिरिक्त टिहरी के राजा के अनुरोध पर उन्होंने ग्रंथों को सुरक्षित रखने के लिए एक भवन खंड का निर्माण महामंडलेश्वर श्रीमत्स्यास्वामी विदयानन्द गिरीजी महाराज का आवास है। यही शिवलिंग आज भी श्री अभिनव चंद्रेश्वर भगवान (शिव) का रूप धारण करता है। .

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उत्तराखण्ड

उत्तराखण्ड (पूर्व नाम उत्तरांचल), उत्तर भारत में स्थित एक राज्य है जिसका निर्माण ९ नवम्बर २००० को कई वर्षों के आन्दोलन के पश्चात भारत गणराज्य के सत्ताइसवें राज्य के रूप में किया गया था। सन २००० से २००६ तक यह उत्तरांचल के नाम से जाना जाता था। जनवरी २००७ में स्थानीय लोगों की भावनाओं को ध्यान में रखते हुए राज्य का आधिकारिक नाम बदलकर उत्तराखण्ड कर दिया गया। राज्य की सीमाएँ उत्तर में तिब्बत और पूर्व में नेपाल से लगी हैं। पश्चिम में हिमाचल प्रदेश और दक्षिण में उत्तर प्रदेश इसकी सीमा से लगे राज्य हैं। सन २००० में अपने गठन से पूर्व यह उत्तर प्रदेश का एक भाग था। पारम्परिक हिन्दू ग्रन्थों और प्राचीन साहित्य में इस क्षेत्र का उल्लेख उत्तराखण्ड के रूप में किया गया है। हिन्दी और संस्कृत में उत्तराखण्ड का अर्थ उत्तरी क्षेत्र या भाग होता है। राज्य में हिन्दू धर्म की पवित्रतम और भारत की सबसे बड़ी नदियों गंगा और यमुना के उद्गम स्थल क्रमशः गंगोत्री और यमुनोत्री तथा इनके तटों पर बसे वैदिक संस्कृति के कई महत्त्वपूर्ण तीर्थस्थान हैं। देहरादून, उत्तराखण्ड की अन्तरिम राजधानी होने के साथ इस राज्य का सबसे बड़ा नगर है। गैरसैण नामक एक छोटे से कस्बे को इसकी भौगोलिक स्थिति को देखते हुए भविष्य की राजधानी के रूप में प्रस्तावित किया गया है किन्तु विवादों और संसाधनों के अभाव के चलते अभी भी देहरादून अस्थाई राजधानी बना हुआ है। राज्य का उच्च न्यायालय नैनीताल में है। राज्य सरकार ने हाल ही में हस्तशिल्प और हथकरघा उद्योगों को बढ़ावा देने के लिये कुछ पहल की हैं। साथ ही बढ़ते पर्यटन व्यापार तथा उच्च तकनीकी वाले उद्योगों को प्रोत्साहन देने के लिए आकर्षक कर योजनायें प्रस्तुत की हैं। राज्य में कुछ विवादास्पद किन्तु वृहत बाँध परियोजनाएँ भी हैं जिनकी पूरे देश में कई बार आलोचनाएँ भी की जाती रही हैं, जिनमें विशेष है भागीरथी-भीलांगना नदियों पर बनने वाली टिहरी बाँध परियोजना। इस परियोजना की कल्पना १९५३ मे की गई थी और यह अन्ततः २००७ में बनकर तैयार हुआ। उत्तराखण्ड, चिपको आन्दोलन के जन्मस्थान के नाम से भी जाना जाता है। .

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