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कर्म आधारित शिक्षा

सूची कर्म आधारित शिक्षा

वर्क बेस्ड लर्निंग या कर्म-आधारित शिक्षा वह कार्यक्रम है जिसमे पाठशाला के विद्यार्थी एक उद्योग या व्यापार में काम करते है और उसकी जानकारी प्राप्त करते है| इस कार्यक्रम का मुख्य विचार यह है की विद्यार्थी कर्म द्वारा अपना अध्याय पूरा करे| कर्म करने से विद्यार्थियों को विभिन तरह के ज़िम्मेदारियों की समझ आती है| यह ज़िम्मेदारी शैक्षिक, तकनीकी एवं सामाजिक रूप के हो सकते है| इस कार्यक्रम द्वारा पाठशाला में पढ़े हुए विषय तथा कर्म के विवरण का ग्यान मिलता है| इस शिक्षा कुछ दिनों से लेकर कुछ साल तक की अवधि के लिए होती है| इस दौरान विद्यार्थी को वेतन भी दिया जा सकता है| वर्क बेस्ड लर्निंग के सफल समाप्ति के लिए निम्नलिखित व्यक्तियों का भाग बहुत ज़रूरी है -.

3 संबंधों: प्रशिक्षुता, व्यापार, उद्योग

प्रशिक्षुता

प्रशिक्षुता या इन्टर्नशिप शब्द प्रायः नया व्यवसाय या नौकरी आरंभ करने वाले उन महाविद्यालयी छात्रों, विश्वविद्यालय के छात्रों या युवकों के लिये प्रयोग किया जाता है, जो इस क्षेत्र में नये उतरे होते हैं और प्रशिक्षण के साथ ही व्यवसाय आरंभ करते हैं। इन्हें हिन्दी में प्रशिक्षु भी कहा जाता है। इंटर्न एक अंग्रेज़ी शब्द है, जिसका शाब्दिक अर्थ है कैद। इस क्रिया को इंटर्नशिप कहा जाता है। यह उनके लिये एक ऐसा अवसर होता है, जो उनके लिए आकर्षक व्यवसाय की राह को सुगम बनाता है। इस काल के दौरान उन्हें व्यावसायिक कार्यों का व्यावहारिक अनुभव मिलता है, जो वे अब तक मात्र अपनी पाठय़पुस्तकों में ही पढ़े हुए होते हैं।। लाइव हिन्दुस्तान। ३ जून २०१० अधिकांश नियोक्ताओं का विचार होता है कि मात्र कॉलिजों में पढ़ायी गयी पाठय़पुस्तकों की सामग्री काम के लिए उस व्यावहारिक दक्षता को उत्पन्न करने में पूरी तरह सक्षम नहीं रहती, जो किसी प्रत्याशी के लिए कार्यस्थल पर आवश्यक होती है। उन्हें व्यवहारिक ज्ञान के साथ ही विषय की बारीकियों को समझने का अवसर भी मिलता है। इंटर्नशिप की अवधि में सीखी गई मूलभूत उनके भविष्य निर्माण में सहायक सिध्द होती हैं।। दैनिक भास्कर। ५ मई २०१०। कूलएज रिपोर्टर इसी कारण से इंटर्नशिप व्यावसायिक क्षेत्र के नवागन्तुकों के लिये अत्यंत उपयोगी सिद्ध होती है। इस अवधि में इन्टर्न गणों को अपने समय का अधिक से अधिक भाग सीखने में लगाना चाहिये। इन्टर्नशिप की अवधि ६-१२ सप्ताह या ६ माह से एक वर्ष तक हो सकती है। कॉलिजों में पढ़ायी गई पाठय़पुस्तकें और सत्र के गृहकार्य (टर्म एसाइनमेंट) छात्रों को वास्तविक कार्यस्थिति का अनुभव देने में अक्षम रहते हैं। इनकी कमी ही इन्टर्नशिप द्वारा पूरी की जाती है। किसी संगठन में इंटर्न के रूप में यह सीखने को मिलता है कि अन्य सहकर्मी किस तरह विभिन्न उत्पादों पर काम करते हैं। इस तरह कक्षा में सीखे गए सिद्धांतों को व्यवहार में लागू करने का अवसर मिलता है। व्यवसाय की राह में पहले चरण के रूप में इंटर्नशिप कार्यक्रम के तहत व्यावसायिक संबंध स्थापित करने में भी उन्हें काफी मदद मिलती है। व्यवसाय के बाद के वर्षो में यह बात काफी लाभदायक सिद्ध होती है। साथ ही अन्य साथी इन्टर्न भी साथ में अपने अनुभव बांटते हैं। इंटर्नशिप स्वयं की कार्य पद्धति, मजबूत और कमजोर पक्ष को क्षेत्र विशेष में पूर्णकालिक व्यवसाय निर्माण से पूर्व सीखने और समझने का स्वर्णिम अवसर होता है। कार्यस्थल पर काम करके इन्टर्न यह समझ पाते हैं कि वे किस क्षेत्र में बेहतर काम कर सकते हैं और बाद में उन्हें किस काम के लिए आवेदन करना चाहिए। कई ऐसी कंपनियां होती हैं जो नवागन्तुकों को अपने यहां इन्टर्न रूप में रखती हैं और उन्हें प्रशिक्षण देती हैं। इंटर्नशिप किये हुए लोगों को उस कंपनी में अन्य अनानुभवी प्रत्याशियों पर वरीयता दी जाती है। प्रायः इंटर्न्स इस आशा के साथ किसी कंपनी में जाते हैं कि संभवतः वहीं उनकी पहली नौकरी का आरंभ हो जाए। यह रास्ता इंटर्नशिप की अवधि में उनके प्रदर्शन पर निर्भर करता है। एक नियोक्ता के अनुसार इन्तर्न्स के लिए तीन बातों का ध्यान रखना अत्यावश्यक होता हैं। ये हैं - रवैया (एटिट्यूड), प्रवीणता (स्किल्स) और बर्ताव। उनके अनुसार, कंपनी में पहले से कार्यरत अन्य कर्मचारियों के मुकाबले स्वयं को बेहतर सिद्ध करने के लिए इंटर्न को सकारात्मक रवैया दर्शाना चाहिए।|नवभारत टाइम्स|२८ अप्रैल २०१० .

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व्यापार

उनीसवीं शताब्दी के उत्तरार्ध में पुणे के शनिवार पेठ का दृष्य व्यापार (Trade) का अर्थ है क्रय और विक्रय। दूसरे शब्दों में, एक व्यक्ति (या संस्था) से दूसरे व्यक्ति (या संस्था) को सामानों का स्वामित्व अन्तरण ही व्यापार कहलाता है। स्वामित्व का अन्तरण सामान, सेवा या मुद्रा के बदले किया जाता है। जिस नेटवर्क (संरचना) में व्यापार किया जाता है उसे 'बाजार' कहते हैं। आरम्भ में व्यापार एक सामान के बदले दूसरा सामान लेकर (वस्तु-विनिमय या बार्टर) किया जाता था। बाद में अधिकांश वस्तुओं के बदले धातुएँ, मूल्यवान धातुएँ, सिक्के, हुण्डी (bill) अथवा पत्र-मुद्रा से हुईँ। आजकल अधिकांश क्रय-विक्रय मुद्रा (मनी) द्वारा होता है। मुद्रा के आविष्कार (तथा बाद में क्रेडिट, पत्र-मुद्रा, अभौतिक मुद्रा आदि) से व्यापार में बहुत सरलता और सुविधा आ गयी। .

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उद्योग

एक औद्योगिक क्षेत्र का दृश्य किसी विशेष क्षेत्र में भारी मात्रा में सामान का निर्माण/उत्पादन या वृहद रूप से सेवा प्रदान करने के मानवीय कर्म को उद्योग (industry) कहते हैं। उद्योगों के कारण गुणवत्ता वाले उत्पाद सस्ते दामों पर प्राप्त होते है जिससे लोगों का रहन-सहन के स्तर में सुधार होता है और जीवन सुविधाजनक होता चला जाता है। औद्योगिक क्रांति के परिणामस्वरूप यूरोप एवं उत्तरी अमेरिका में नये-नये उद्योग-धन्धे आरम्भ हुए। इसके बाद आधुनिक औद्योगीकरण ने पैर पसारना अरम्भ किया। इस काल में नयी-नयी तकनीकें एवं उर्जा के नये साधनों के आगमन ने उद्योगों को जबर्दस्त बढावा दिया। उद्योगों के दो मुख्य पक्ष हैं: १) भारी मात्रा में उत्पादन (मॉस प्रोडक्सन) उद्योगों में मानक डिजाइन के उत्पाद भारी मात्रा में उत्पन्न किये जाते हैं। इसके लिये स्वतः-चालित मशीनें एवं असेम्बली-लाइन आदि का प्रयोग किया जाता है। २) कार्य का विभाजन (डिविजन ऑफ् लेबर) उद्योगों में डिजाइन, उत्पादन, मार्कटिंग, प्रबन्धन आदि कार्य अलग-अलग लोगों या समूहों द्वारा किये जाते हैं जबकि परम्परागत कारीगर द्वारा निर्माण में एक ही व्यक्ति सब कुछ करता था/है। इतना ही नहीं, एक ही काम (जैसे उत्पादन) को छोटे-छोटे अनेक कार्यों में बांट दिया जाता है। सकल घरेलू उत्पाद (Gross domestic product/GDP) हरा - कृषि, लाल - उद्योग, नीला - सेवा क्षेत्र .

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