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मिल्लर रैबिन नंबर अभाज्यता टेस्ट

सूची मिल्लर रैबिन नंबर अभाज्यता टेस्ट

मिल्लर रैबिन टेस्ट एक रैंडमाईज़ड अल्गोरिद्म है जो पोलीनोमिअल टाइम में बताता है कि कोई नंबर अभाज्य है या नहीं (कंप्यूटर विज्ञान में पोलीनोमिअल टाइम में उत्तर देने वाले अल्गोरिद्मों को तेज माना जाता है)। .

3 संबंधों: ए॰ के॰ ऐस॰ नंबर अभाज्यता टेस्ट, अभाज्य संख्या, अल्गोरिद्म

ए॰ के॰ ऐस॰ नंबर अभाज्यता टेस्ट

ए॰ के॰ ऐस॰ नंबर अभाज्यता टेस्ट पहला पोलीनोमिअल टाइम है अल्गोरिद्म (कंप्यूटर विज्ञान में पोलीनोमिअल टाइम अल्गोरिद्मों को तेज माना जाता है) जो बताता है कि कोई नंबर अभाज्य है या नहीं। इसका आविष्कार 2002 में भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान कानपुर के तीन कंप्यूटर वैज्ञानिकों – मणीन्द्र अग्रवाल, नीरज कयाल और नितिन सक्सेना ने किया था। किसी भी अल्गोरिद्म के लिए चार आवश्यकताएँ होती है: 1) वो हर इनपुट के लिए आउटपुट देता हो, 2) वो जल्दी उत्तर देता हो (more precisely: वो पोलीनोमिअल टाइम में उत्तर देता हो), 3) वो कभी गलत उत्तर न देता हो और 4) वो किसी अप्रमाणित परिकल्पना पर निर्भर न करता हो। नंबर की अभाज्यता जांचने के लिए इस से पहले के सभी अल्गोरिद्म इन चार में से अधिक से अधिक तीन आवश्यकताओं को पूर्ण करते थे। ये पहला अल्गोरिद्म है जो इन चारों आवश्यकताओं को पूर्ण करता है।.

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अभाज्य संख्या

वे १ से बड़ी प्राकृतिक संख्याएँ, जो स्वयं और १ के अतिरिक्त और किसी प्राकृतिक संख्या से विभाजित नहीं होतीं, उन्हें अभाज्य संख्या कहते हैं। वे १ से बड़ी प्राकृतिक संख्याएँ जो अभाज्य संख्याँ (whole number) नहीं हैं उन्हें भाज्य संख्या कहते है। अभाज्य संख्याओं की संख्या अनन्त है जिसे ३०० ईसापूर्व यूक्लिड ने प्रदर्शित कर दिया था। १ को परिभाषा के अनुसार अभाज्य नहीं माना जाता है। प्रथम २५ अभाज्य संख्याएं नीचे दी गयीं हैं- 2, 3, 5, 7, 11, 13, 17, 19, 23, 29, 31, 37, 41, 43, 47, 53, 59, 61, 67, 71, 73, 79, 83, 89, 97 अभाजय संख्याओं का महत्व यह है कि किसी भी अशून्य प्राकृतिक संख्या के गुणनखण्ड को केवल अभाज्य संख्याओं के द्वारा व्यक्त किया जा सकता है और यह गुणनखण्ड एकमेव (unique) होता है। इसे अंकगणित का मौलिक प्रमेय कहा जाता है। .

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अल्गोरिद्म

महत्तम समापवर्तक (HCF) निकालने के लिए यूक्लिड के अल्गोरिद्म का फ्लोचार्ट गणित, संगणन तथा अन्य विधाओं में किसी कार्य को करने के लिये आवश्यक चरणों के समूह को कलन विधि (अल्गोरिद्म) कहते है। कलन विधि को किसी स्पष्ट रूप से पारिभाषित गणनात्मक समस्या का समाधान करने के औजार (tool) के रूप में भी समझा जा सकता है। उस समस्या का इनपुट और आउटपुट सामान्य भाषा में वर्णित किये गये रहते हैं; इसके समाधान के रूप में कलन विधि, क्रमवार ढंग से बताता है कि यह इन्पुट/आउटपुट सम्बन्ध किस प्रकार से प्राप्त किया जा सकता है। कुछ उदाहरण: १) कुछ संख्यायें बिना किसी क्रम के दी हुई हैं; इन्हें आरोही क्रम (ascending order) में कैसे सजायेंगे? २) दो पूर्णांक संख्याएं दी हुई हैं; उनका महत्तम समापवर्तक (Highest Common Factor) कैसे निकालेंगे ? .

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