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मिखाइल शोलोखोव

सूची मिखाइल शोलोखोव

मिखाइल शोलोख़ोव (1905-1984) रूसी साहित्य के सुप्रसिद्ध कथाकार एवं साहित्य के क्षेत्र में 1965 के नोबेल पुरस्कार विजेता हैं। .

15 संबंधों: द्वितीय विश्वयुद्ध, निकोलाई गोगोल, नोबेल पुरस्कार, फ़ासीवाद, बोलशेविक पार्टी, मास्को, मैक्सिम गोर्की, रुसी भाषा का साहित्य, रूसी साम्राज्य, लाल सेना, लेव तोलस्तोय, साहित्य में नोबेल पुरस्कार, सोवियत संघ, गृहयुद्ध, उपन्यासकार

द्वितीय विश्वयुद्ध

द्वितीय विश्वयुद्ध १९३९ से १९४५ तक चलने वाला विश्व-स्तरीय युद्ध था। लगभग ७० देशों की थल-जल-वायु सेनाएँ इस युद्ध में सम्मलित थीं। इस युद्ध में विश्व दो भागों मे बँटा हुआ था - मित्र राष्ट्र और धुरी राष्ट्र। इस युद्ध के दौरान पूर्ण युद्ध का मनोभाव प्रचलन में आया क्योंकि इस युद्ध में लिप्त सारी महाशक्तियों ने अपनी आर्थिक, औद्योगिक तथा वैज्ञानिक क्षमता इस युद्ध में झोंक दी थी। इस युद्ध में विभिन्न राष्ट्रों के लगभग १० करोड़ सैनिकों ने हिस्सा लिया, तथा यह मानव इतिहास का सबसे ज़्यादा घातक युद्ध साबित हुआ। इस महायुद्ध में ५ से ७ करोड़ व्यक्तियों की जानें गईं क्योंकि इसके महत्वपूर्ण घटनाक्रम में असैनिक नागरिकों का नरसंहार- जिसमें होलोकॉस्ट भी शामिल है- तथा परमाणु हथियारों का एकमात्र इस्तेमाल शामिल है (जिसकी वजह से युद्ध के अंत मे मित्र राष्ट्रों की जीत हुई)। इसी कारण यह मानव इतिहास का सबसे भयंकर युद्ध था। हालांकि जापान चीन से सन् १९३७ ई. से युद्ध की अवस्था में था किन्तु अमूमन दूसरे विश्व युद्ध की शुरुआत ०१ सितम्बर १९३९ में जानी जाती है जब जर्मनी ने पोलैंड पर हमला बोला और उसके बाद जब फ्रांस ने जर्मनी पर युद्ध की घोषणा कर दी तथा इंग्लैंड और अन्य राष्ट्रमंडल देशों ने भी इसका अनुमोदन किया। जर्मनी ने १९३९ में यूरोप में एक बड़ा साम्राज्य बनाने के उद्देश्य से पोलैंड पर हमला बोल दिया। १९३९ के अंत से १९४१ की शुरुआत तक, अभियान तथा संधि की एक शृंखला में जर्मनी ने महाद्वीपीय यूरोप का बड़ा भाग या तो अपने अधीन कर लिया था या उसे जीत लिया था। नाट्सी-सोवियत समझौते के तहत सोवियत रूस अपने छः पड़ोसी मुल्कों, जिसमें पोलैंड भी शामिल था, पर क़ाबिज़ हो गया। फ़्रांस की हार के बाद युनाइटेड किंगडम और अन्य राष्ट्रमंडल देश ही धुरी राष्ट्रों से संघर्ष कर रहे थे, जिसमें उत्तरी अफ़्रीका की लड़ाइयाँ तथा लम्बी चली अटलांटिक की लड़ाई शामिल थे। जून १९४१ में युरोपीय धुरी राष्ट्रों ने सोवियत संघ पर हमला बोल दिया और इसने मानव इतिहास में ज़मीनी युद्ध के सबसे बड़े रणक्षेत्र को जन्म दिया। दिसंबर १९४१ को जापानी साम्राज्य भी धुरी राष्ट्रों की तरफ़ से इस युद्ध में कूद गया। दरअसल जापान का उद्देश्य पूर्वी एशिया तथा इंडोचायना में अपना प्रभुत्व स्थापित करने का था। उसने प्रशान्त महासागर में युरोपीय देशों के आधिपत्य वाले क्षेत्रों तथा संयुक्त राज्य अमेरीका के पर्ल हार्बर पर हमला बोल दिया और जल्द ही पश्चिमी प्रशान्त पर क़ब्ज़ा बना लिया। सन् १९४२ में आगे बढ़ती धुरी सेना पर लगाम तब लगी जब पहले तो जापान सिलसिलेवार कई नौसैनिक झड़पें हारा, युरोपीय धुरी ताकतें उत्तरी अफ़्रीका में हारीं और निर्णायक मोड़ तब आया जब उनको स्तालिनग्राड में हार का मुँह देखना पड़ा। सन् १९४३ में जर्मनी पूर्वी युरोप में कई झड़पें हारा, इटली में मित्र राष्ट्रों ने आक्रमण बोल दिया तथा अमेरिका ने प्रशान्त महासागर में जीत दर्ज करनी शुरु कर दी जिसके कारणवश धुरी राष्ट्रों को सारे मोर्चों पर सामरिक दृश्टि से पीछे हटने की रणनीति अपनाने को मजबूर होना पड़ा। सन् १९४४ में जहाँ एक ओर पश्चिमी मित्र देशों ने जर्मनी द्वारा क़ब्ज़ा किए हुए फ़्रांस पर आक्रमण किया वहीं दूसरी ओर से सोवियत संघ ने अपनी खोई हुयी ज़मीन वापस छीनने के बाद जर्मनी तथा उसके सहयोगी राष्ट्रों पर हमला बोल दिया। सन् १९४५ के अप्रैल-मई में सोवियत और पोलैंड की सेनाओं ने बर्लिन पर क़ब्ज़ा कर लिया और युरोप में दूसरे विश्वयुद्ध का अन्त ८ मई १९४५ को तब हुआ जब जर्मनी ने बिना शर्त आत्मसमर्पण कर दिया। सन् १९४४ और १९४५ के दौरान अमेरिका ने कई जगहों पर जापानी नौसेना को शिकस्त दी और पश्चिमी प्रशान्त के कई द्वीपों में अपना क़ब्ज़ा बना लिया। जब जापानी द्वीपसमूह पर आक्रमण करने का समय क़रीब आया तो अमेरिका ने जापान में दो परमाणु बम गिरा दिये। १५ अगस्त १९४५ को एशिया में भी दूसरा विश्वयुद्ध समाप्त हो गया जब जापानी साम्राज्य ने आत्मसमर्पण करना स्वीकार कर लिया। .

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निकोलाई गोगोल

निकोलाई गोगोल (पूरा नाम- निकोलाई वसील्येविच गोगोल, अन्य उच्चारण- निकोलाय गोगल, निकोलाई वसीलिविच गोगल; २० मार्च, १८०९- २१ फरवरी, १८५२ ई०) यूक्रेन मूल के रूसी साहित्यकार थे जिन्होंने कहानी, लघु उपन्यास एवं नाटक आदि विधाओं में युगीन आवश्यकताओं के अनुरूप प्रभूत लेखन किया है। गोगोल रूसी साहित्य में प्रगतिशील विचारधारा के आरंभिक प्रयोगकर्ताओं में प्रमुख थे व उनकी साहित्यिक प्राथमिकता जनोन्मुखता का पर्याय थी। आरंभिक लेखन में प्रेम-प्रसंग तत्त्व के आधिक्य होने पर भी बहुत जल्दी गोगोल सामाजिक जीवन का व्यापकता तथा गहराई से बहुआयामी चित्रण की ओर केंद्रित होते गये। मीरगोरोद में संकलित कहानियाँ इस तथ्य का जीवंत साक्ष्य हैं। पीटर्सबर्ग की कहानियाँ में संकलित रचनाओं में भी विसंगतियों एवं विडंबनाओं का मार्मिक चित्रण हास्य एवं सूक्ष्म व्यंग्य के माध्यम से अद्भुत है; और इनकी बड़ी विशेषता सामान्य जन के साथ-साथ साहित्यकारों की एक पूरी पीढ़ी को प्रभावित करना भी है। कहानियों के साथ-साथ नाटकों के माध्यम से गोगोल का मुख्य प्रकार्य युगीन आवश्यकताओं को इस प्रकार साहित्य में ढालना रहा है जिससे जन-सामान्य की स्थिति में परिवर्तनकारी भूमिका निभाने के साथ-साथ वस्तुतः साहित्य की 'साहित्यिकता' भी सुरक्षित रहे, और इसमें आलोचकों ने उसे सफल माना है। .

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नोबेल पुरस्कार

नोबेल फाउंडेशन द्वारा स्वीडन के वैज्ञानिक अल्फ्रेड नोबेल की याद में वर्ष १९०१ में शुरू किया गया यह शांति, साहित्य, भौतिकी, रसायन, चिकित्सा विज्ञान और अर्थशास्त्र के क्षेत्र में विश्व का सर्वोच्च पुरस्कार है। इस पुरस्कार के रूप में प्रशस्ति-पत्र के साथ 14 लाख डालर की राशि प्रदान की जाती है। अल्फ्रेड नोबेल ने कुल ३५५ आविष्कार किए जिनमें १८६७ में किया गया डायनामाइट का आविष्कार भी था। नोबेल को डायनामाइट तथा इस तरह के विज्ञान के अनेक आविष्कारों की विध्वंसक शक्ति की बखूबी समझ थी। साथ ही विकास के लिए निरंतर नए अनुसंधान की जरूरत का भी भरपूर अहसास था। दिसंबर १८९६ में मृत्यु के पूर्व अपनी विपुल संपत्ति का एक बड़ा हिस्सा उन्होंने एक ट्रस्ट के लिए सुरक्षित रख दिया। उनकी इच्छा थी कि इस पैसे के ब्याज से हर साल उन लोगों को सम्मानित किया जाए जिनका काम मानव जाति के लिए सबसे कल्याणकारी पाया जाए। स्वीडिश बैंक में जमा इसी राशि के ब्याज से नोबेल फाउँडेशन द्वारा हर वर्ष शांति, साहित्य, भौतिकी, रसायन, चिकित्सा विज्ञान और अर्थशास्त्र में सर्वोत्कृष्ट योगदान के लिए दिया जाता है। नोबेल फ़ाउंडेशन की स्थापना २९ जून १९०० को हुई तथा 1901 से नोबेल पुरस्कार दिया जाने लगा। अर्थशास्त्र के क्षेत्र में नोबेल पुरस्कार की शुरुआत 1968 से की गई। पहला नोबेल शांति पुरस्कार १९०१ में रेड क्रॉस के संस्थापक ज्यां हैरी दुनांत और फ़्रेंच पीस सोसाइटी के संस्थापक अध्यक्ष फ्रेडरिक पैसी को संयुक्त रूप से दिया गया। अल्फ्रेड नोबेल .

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फ़ासीवाद

नेशनल फैसिस्ट पार्टी का लोगो फासीवाद या फ़ासिस्टवाद (फ़ासिज़्म) इटली में बेनितो मुसोलिनी द्वारा संगठित "फ़ासिओ डि कंबैटिमेंटो" का राजनीतिक आंदोलन था जो मार्च, 1919 में प्रारंभ हुआ। इसकी प्रेरणा और नाम सिसिली के 19वीं सदी के क्रांतिकारियों- "फासेज़"-से ग्रहण किए गए। मूल रूप में यह आंदोलन समाजवाद या साम्यवाद के विरुद्ध नहीं, अपितु उदारतावाद के विरुद्ध था। .

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बोलशेविक पार्टी

रूसी सोशल डेमाक्रेटिक लेबर पार्टी का वह पक्ष बोलशेविक पार्टी कहलाया, जो दूसरे पक्ष से अपेक्षाकृत अधिक उग्र था और बुर्जुआवर्ग के विरुद्ध सीधी क्रांति में विश्वास रखता था। 1898 में नौ मार्क्सवादियों ने मिंस्क में रूसी सोशल डेमॉक्रेटिक पार्टी की स्थापना की थी। वस्तुत: रूस में मार्क्सवादी आंदोलन की श्रृंखला "श्रमिक-मुक्ति-संघर्ष-संघ" (यूनिअन फ़ॉर द स्ट्रगल फ़ॉर इमैंसिपेशन ऑव लेबर) की स्थापना के साथ 1883 में आरंभ हो गई थी। इस संगठन का प्राथमिक लक्ष्य औद्योगिक श्रमिकों में मार्क्स और एंजेल्स के दर्शन का प्रचार करना था। 1890 के पश्चात् रूस के प्राय: सभी मुख्य औद्योगिक केंद्रों - मास्को, कीएव और एकातिरीनोस्लाव - में इस क्रांतिकारी आंदोलन की जड़ें गहराई से पैठ गई। शु डिग्री से ही इस आंदोलन को सुधारवादी अर्थशास्त्रियों और ऐसे पक्षों से संघर्ष करना पड़ा जो (1) श्रमिक आंदोलन का आर्थिक समाधान तक ही सीमित रखना चाहते थे और (2) तत्कालीन उदारवादी बुर्जुआ आंदोलन से समझौता कर लेना चाहते थे। 20वीं सदी के आरंभ में निकोलाई लेनिन, जो सोशल डिमॉक्रेटिक लेबर पार्टी का सर्वाधिक प्रभावशाली नेता था, पार्टी के मुखपत्र इस्क्रा (चिनगारी) का प्रधान संपादक था। पार्टी के द्वितीय अधिवेशन (ब्रूसेल्स और लंदन, जुलाई-अगस्त, 1903) में सदस्यों में फूट पड़ गई और उसके दो भाग बोलशिंस्त्वो बहुमत और मेनशिंस्त्वों (अल्पमत) हो गए। बाद में दोनों बोलशेविक और मेनशेविक कहलाए, जिनका नेतृत्व क्रमश: लेनिन और मार्तोव कर रहे थे। इस समय ट्राट्स्की बड़े ढीले-ढाले तरीके से मेनशेविकों से जुड़ा हुआ था। 1903 की फूट नीति के प्रश्न पर नहीं, अपितु संगठन के प्रश्न पर हुई थी। बाद में दोनों के बीच प्रक्रियात्मक मतभेद भी पनपे। फिर भी, फूट के बावजूद दोनों पक्ष सोशल डेमॉक्रेटिक लेबर पार्टी के अधिवेशनों में भाग लेते रहे। पार्टी के प्राग अधिवेशन (1918) में बोलशेविकों ने एक निर्णयात्मक कदम उठाकर मेनशेविकों को पार्टी से निकाल दिया। बोलशेविकों ने बुर्जुआ वर्ग के विरुद्ध सीधे संघर्ष और सर्वहारा के अधिनायकवाद का नारा दिया था। दूसरी ओर मेनशेविक क्रमिक परिवर्तन और संसदीय तथा संवैधानिक पद्धतियों द्वारा जार की एकशाही समाप्त करने के पक्षपाती थे। मार्च, 1917 में बोलशेविक पार्टी ने अपना संघर्ष छेड़ने की अंतिम घोषणा कर दी। संपूर्ण क्रांति (नवंबर, 1917) के बाद बोलशेविक पार्टी का नाम कम्युनिस्ट पार्टी हो गया और उसके बाद के रूस का इतिहास ही पार्टी का इतिहास है। भारत में बोलशेविक पार्टी की स्थापना वर्तमान शती के पाँचवें दशक में कुछ मार्क्सवादी-लेनिनवादी तत्वों ने की थी। इसके संस्थापक भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी से विलग होनेवाले लोग थे। सहकारी खेती, पूर्ण नागरिक आजादी, मुफ्त शिक्षा, विदेशी पूँजी की जब्ती, बुनियादी उद्योगों - बैंक और बीमा - का राष्ट्रीयकरण, समाजवादी देशों से विशेष संबंध और व्यापार, भारत पाक एकता और राष्ट्रमंडल से संबंध विच्छेद पार्टी की नीति के अंग हैं। पार्टीं आरंभ से बंगाल में ही सीमित रही और अब तो इसका अस्तित्व केवल कलकत्ता नगर में ही सिमटकर रह गया है। .

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मास्को

thumb मास्को स्थित रेड स्केव्यर का एक दृश्य मास्को या मॉस्को (रूसी: Москва́ (मोस्कवा)), रूस की राजधानी एवं यूरोप का सबसे बडा शहर है, मॉस्को का शहरी क्षेत्र दुनिया के सबसे बडे शहरी क्षेत्रों में गिना जाता है। मास्को रूस की राजनैतिक, आर्थिक, धार्मिक, वित्तीय एवं शैक्षणिक गतिविधियों का केन्द्र माना जाता है। यह मोस्कवा नदी के तट पर बसा हुआ है। ऐतिहासिक रूप से यह पुराने सोवियत संघ एवं प्राचीन रूसी साम्राज्य की राजधानी भी रही है। मास्को को दुनिया के अरबपतियों का शहर भी कहा जाता है जहां दुनिया के सबसे ज्यादा अरबपति बसते हैं। २००७ में मास्को को लगातार दूसरी बार दुनिया का सबसे महंगा शहर भी घोषित किया गया था। .

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मैक्सिम गोर्की

मैक्सिम गोर्की मैक्सिम गोर्की (रूसी भाषा में उच्चारण मक्सीम गोर्की) (२८ मार्च १८६८ - १८ जून १९३६) रूस/सोवियत संघ के प्रसिद्ध लेखक तथा राजनीतिक कार्यकर्ता थे। उनका असली नाम "अलिक्सेय मक्सीमविच पेश्कोव" (रूसी भाषा में - Алексе́й Макси́мович Пе́шков or Пешко́в) था। उन्होने "समाजवादी यथार्थवाद" (socialist realism) नामक साहित्यिक परिभाषा की स्थापना की थी। सन् १९०६ से लेकर १९१३ तक और फिर १९२१ से १९२९ तक वे रूस से बाहर (अधिकतर, इटली के कैप्री (Capri) में) रहे। सोवियत संघ वापस आने के बाद उन्होने उस समय की सांस्कृतिक नीतियों को स्वीकार किया किन्तु उन्हें देश से बाहर जाने की आज़ादी नहीं थी। .

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रुसी भाषा का साहित्य

सेंट पिट्सबर्ग स्थित '''रूसी साहित्य संस्थान''' रूसी साहित्य से आशय रूस में रचित साहित्य के अलावा रूसी भाषा में रचित उन अनेकों देशों के साहित्य से है जो कभी रूसी साम्राज्य या सोवियत संघ के भाग थे। रूसी साहित्य की रचना मध्यकाल में आरम्भ हुई थी जब पुरानी रूसी में महाकाव्य तथा इतिहास की रचना हुई थी। १८३० के दशक के आरम्भ में रूसी काव्य, गद्य और नाटक का स्वर्णयुग आ चुका था। पुरानी स्लाव भाषा सभी स्लाविक भाषाओं की मूलभाषा है। पुरानी स्लाव भाषा 3 वर्गों में बँटी हुई थी–.

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रूसी साम्राज्य

सन् १८६६ में रूसी साम्राज्य (हरे रंग में) रूसी साम्राज्य (रूसी: Российская Империя, रोसिस्काया इम्पेरिया) सन् १७२१ से १९१७ तक की रूसी क्रांति तक अस्तित्व में रहने वाला एक साम्राज्य था। रूसी साम्राज्य से पहले रूस में रूसी त्सार-राज्य था और उसके बाद बहुत कम अवधि के लिए रूसी गणतंत्र चला और उसके उपरान्त सोवियत संघ स्थापित हुआ। रूसी साम्राज्य दुनिया के सब से बड़े साम्राज्यों में से एक था और केवल मंगोल और ब्रिटिश साम्राज्य ही क्षेत्रफल में उस से बड़े रहे हैं। सन् १८६६ में रूसी साम्राज्य पूर्वी यूरोप से लेकर सुदूर पूर्व एशिया तक और फिर समुद्र के पार उत्तर अमेरिका के कुछ इलाक़ों पर विस्तृत था। १८९७ में सामराज्य की जनसँख्या १२.५६ करोड़ थी।, Jane Burbank, David L. Ransel, Indiana University Press, 1998, ISBN 978-0-253-21241-2,...

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लाल सेना

सोवियत सैनिकों ने जर्मनी की राजधानी पर क़ब्ज़ा करके राईख़श्टाग (जर्मन संसद) के ऊपर फहराया था एक सोवियत फ़ौजी अफ़सर अपने सैनिकों को जर्मन फ़ौजियों पर हमला करने के लिए ललकारते हुए (सन् १९४२, द्वितीय विश्वयुद्ध) मज़दूरों और किसानों की लाल सेना (रूसी: Рабоче-Крестьянская Красная Армия, राबोचे-क्रेस्तयान्स्काया क्रासनाया आर्मिया) का आरम्भ सन् १९१८-१९२२ के रूसी गृहयुद्ध में सोवियत संघ के क्रांतिकारी साम्यवादी लड़ाकू दलों के रूप में हुआ था। सोवियत संघ की स्थापना के बाद यह बढ़कर उस देश की राष्ट्रीय सेना बन गई और १९३० के दशक तक इतिहास की सब से बड़ी फ़ौजों में से एक बन चुकी थी। उसे लाल सेना इसलिए कहा जाता था क्योंकि साम्यवाद का पारम्परिक रंग लाल है। २५ फ़रवरी १९४६ को लाल सेना का नाम औपचारिक रूप से बदलकर 'सोवियत सेना' कर दिया गया। द्वितीय विश्वयुद्ध में सोवियत-अमेरिकी-ब्रिटिश गुट की जर्मनी के ऊपर जीत का बहुत श्रेय लाल सेना को दिया जाता है, क्योंकि उन्होंने ही लगभग ८०% जर्मन फ़ौज से लड़कर उन्हें हराया।, Norman Davies, Penguin, 2008, ISBN 978-0-14-311409-3,...

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लेव तोलस्तोय

लेव तोलस्तोय (रूसी:Лев Никола́евич Толсто́й, 9 सितम्बर 1828 - 20 नवंबर 1910) उन्नीसवीं सदी के सर्वाधिक सम्मानित लेखकों में से एक हैं। उनका जन्म रूस के एक संपन्न परिवार में हुआ था। उन्होंने रूसी सेना में भर्ती होकर क्रीमियाई युद्ध (1855) में भाग लिया, लेकिन अगले ही वर्ष सेना छोड़ दी। लेखन के प्रति उनकी रुचि सेना में भर्ती होने से पहले ही जाग चुकी थी। उनके उपन्यास युद्ध और शान्ति (1865-69) तथा आन्ना करेनिना (1875-77) साहित्यिक जगत में क्लासिक रचनाएँ मानी जाती है। धन-दौलत व साहित्यिक प्रतिभा के बावजूद तोलस्तोय मन की शांति के लिए तरसते रहे। अंततः 1890 में उन्होंने अपनी धन-संपत्ति त्याग दी। अपने परिवार को छोड़कर वे ईश्वर व गरीबों की सेवा करने हेतु निकल पड़े। उनके स्वास्थ्य ने अधिक दिनों तक उनका साथ नहीं दिया। आखिरकार 20 नवम्बर 1910 को अस्तापवा नामक एक छोटे से रेलवे स्टेशन पर इस धनिक पुत्र ने एक गरीब, निराश्रित, बीमार वृद्ध के रूप में मौत का आलिंगन कर लिया। .

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साहित्य में नोबेल पुरस्कार

1901 में सुली प्रुधोम (1839-1907), एक फ्रांसीसी कवि और निबंधकार, साहित्य में नोबेल पुरस्कार प्राप्त करने वाले प्रथम व्यक्ति थे। 1901 से, साहित्य के क्षेत्र में नोबेल पुरस्कार (Nobelpriset i litteratur) वार्षिक रूप से किसी भी देश के उस लेखक को दिया जाता है जिसने, सर अल्फ्रेड नोबेल की वसीयत के अनुसार, "साहित्य के क्षेत्र में महत्वपूर्ण योगदान दिया हो" (मूल स्वीडिश den som inom litteraturen har producerat det utmärktaste i idealisk riktning)। यद्यपि व्यक्ति का काम कभी कभी विशेष रूप से उल्लेखनीय नहीं होता, यहां पर काम से तात्पर्य पूरी तरह से लेखक के काम से है। इस बात का निर्णय स्वीडिश अकादमी ही लेती है कि किस वर्ष में यह पुरस्कार किसे दिया जाये.

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सोवियत संघ

सोवियत संघ (रूसी भाषा: Сове́тский Сою́з, सोवेत्स्की सोयूज़; अंग्रेज़ी: Soviet Union), जिसका औपचारिक नाम सोवियत समाजवादी गणतंत्रों का संघ (Сою́з Сове́тских Социалисти́ческих Респу́блик, Union of Soviet Socialist Republics) था, यूरेशिया के बड़े भूभाग पर विस्तृत एक देश था जो १९२२ से १९९१ तक अस्तित्व में रहा। यह अपनी स्थापना से १९९० तक साम्यवादी पार्टी (कोम्युनिस्ट पार्टी) द्वारा शासित रहा। संवैधानिक रूप से सोवियत संघ १५ स्वशासित गणतंत्रों का संघ था लेकिन वास्तव में पूरे देश के प्रशासन और अर्थव्यवस्था पर केन्द्रीय सरकार का कड़ा नियंत्रण रहा। रूसी सोवियत संघीय समाजवादी गणतंत्र (Russian Soviet Federative Socialist Republic) इस देश का सबसे बड़ा गणतंत्र और राजनैतिक, सांस्कृतिक और आर्थिक केंद्र था, इसलिए पूरे देश का गहरा रूसीकरण हुआ। यही कारण रहा कि विदेश में भी सोवियत संघ को अक्सर गलती से 'रूस' बोल दिया जाता था। .

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गृहयुद्ध

स्पेनी गृहयुद्ध के दौरान दो सैनिक अपने ज़ख़्मी साथी को ले जाते हुए श्रीलंका के गृहयुद्ध के दौरान कुछ लोग जो अपने घर या सम्बन्धी खो बैठे गृहयुद्ध एक ही राष्ट्र के अन्दर संगठित गुटों के बीच में होने वाले युद्ध को कहते हैं। कभी-कभी गृह युद्ध ऐसे भी दो देशों के युद्ध को कहा जाता है जो कभी एक ही देश के भाग रहे हों। गृहयुद्ध में लड़ने वाले गिरोहों के ध्येय भिन्न प्रकार के होते हैं। कुछ पूरे देश पर नियंत्रण पाकर अपनी मनचाही व्यवस्था लागू करना चाहते हैं, कुछ देश की सरकारी नीतियाँ बदलना चाहते हैं और कुछ देश को विभाजित करके अपने क्षेत्र को स्वतन्त्र बनाना चाहते हैं। गृहयुद्धों अक्सर बहुत घातक होते हैं - लाखों मर सकते हैं, करोड़ों बेघर हो सकते हैं, देश में दशकों तक चलने वाली भयंकर ग़रीबी और भुखमरी फैल सकती है और देश का उद्योग लम्बे अरसे के लिए चौपट हो सकता है। बर्मा, अंगोला और अफ़्ग़ानिस्तान ऐसे देश हैं जिनका भविष्य कभी बहुत उज्वल माना जाता था लेकिन गृहयुद्ध की चपेट में आने से यह दुनिया के सबसे पिछड़े और असुरक्षित देशों में गिने जाने लगे। गृहयुद्धों के दौरान अक्सर विदेशी ताक़तें भी देश को कमज़ोर पाकर उसमें हस्तक्षेप करने लगती हैं, जैसा की १९७५-१९९० तक चलने वाले लेबनान के गृहयुद्ध में हुआ।, Marie Olson Lounsbery, Frederic Pearson, University of Toronto Press, 2009, ISBN 978-0-8020-9672-2 .

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उपन्यासकार

उपन्यास के लेखक को उपन्यासकार कहते हैं। यह साहित्य की एक गद्य विधा है जिसमें किसी कहानी को विस्तृत रूप से कहा जाता है।। यह साहित्य की अत्यंत प्रचिलित विधा है इसलिये उपन्यासकार भी बहुत से मिलते हैं। उनमे से कुछ प्रमुख इस प्रकार से हैं - प्रेमचन्द नरेन्द्र कोहली शिवानी आचार्य चतुरसेन चार्ल्स डिकेंस आचार्य गणपतिचंद्र गुप्त ने उपन्यासों के वैज्ञानिक वर्गीकरण की चर्चा करते हुए निम्न वर्गीकरण किया है। श्रेणी:साहित्यकार.

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