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माँग

सूची माँग

माँग और आपूर्ति द्वारा क़ीमत निर्धारण एक निश्चित मूल्य पर समय की निश्चित इकाई के भीतर क्रय की जानेवाली वस्तु का परिमाण ही माँग (Demand) है। माँग, मूल्य और वस्तु की मात्रा का वह संबंध व्यक्त करती है, जो उस भाव पर समय की निश्चित इकाई में क्रय की जाए। इसलिये माँग मूल्याश्रित है; साथ ही वह किसी विशेष समय की होती है। इसी मूल्याश्रय के कारण माँग एवं आवश्यकता एक ही तत्व नहीं है, भले ही माँग का मूलाधार आवश्यकता हो। माँग का नियम, उपयोगिता ह्रास सिद्धांत (Law of diminishing utility) पर आधृत है। यदि सभी कुछ यथावत् रहे तो वस्तु की माँग उसके मूल्य के घटने के साथ-साथ बढ़ती जाएगी और वस्तु के मूल्य में वृद्धि के साथ उसकी माँग घटती जाएगी। यही माँग का नियम है। बाजार में माँग की सूची की सहायता से माँग की रेखा बनाई जाती है जो श्रीमती राबिंस के अनुसार 'इस बात का प्रतिनिधित्व करती है कि एक बाजार में किसी विशेष समय पर भिन्न भिन्न मूल्यों पर वस्तु की कितनी मात्रा खरीदी जाए। माँग का सिद्धांत सार्वभौम नहीं है। निम्नांकित चार अवस्थाओं में वस्तुओं का मूल्य बढ़ जाने पर भी वस्तुओं की माँग में वृद्धि होती है.

2 संबंधों: माँग और आपूर्ति, सीमान्त उपयोगिता

माँग और आपूर्ति

किसी वस्तु का मूल्य (P) वह बिन्दु है जहाँ आपूर्ति वक्र (supply, S) और माँग वक्र (demand, D) मिलते हैं। इस चित्र में माँग में वृद्धि (D1 से D2) तथा उसके कारण किसी उत्पाद के मूल्य में वृद्धि एवं विक्रित मात्रा (Q) में वृद्धि को दर्शाया गया है। अर्थशास्त्र में माँग और आपूर्ति की सहायता से पूर्णतः प्रतिस्पर्धी बाजार में बेचे गये वस्तुओं कीमत और मात्रा की विवेचना, व्याख्या और पुर्वानुमान लगाया जाता है। यह अर्थशास्त्र के सबसे मुलभूत प्रारुपों में से एक है। क्रमश: बड़े सिद्धान्तों और प्रारूपों के विकास के लिए इसका विशद रूप से प्रयोग होता है। माँग किसी नियत समयकाल में किसी उत्पाद की वह मात्रा है, जिसे नियत दाम पर उपभोक्ता खरीदना चाहता है और खरीदने में सक्षम है। माँग को सामान्यतः एक तालिका या ग्राफ़ के रूप में प्रदर्शित करते हैं जिसमें कीमत और इच्छित मात्रा का संबन्ध दिखाया जाता है। आपूर्ति वस्तु की वह मात्रा है जिसे नियत समय में दिये गये दाम पर उत्पादक या विक्रेता बाजार में बेचने के लिए तैयार है। आपूर्ति को सामान्यतः एक तालिका या ग्राफ़ के रूप में प्रदर्शित करते हैं जिसमें कीमत और आपूर्ति की मात्रा का संबन्ध दिखाया जाता है। .

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सीमान्त उपयोगिता

अर्थशास्त्र में, किसी वस्तु या सेवा के उपभोग में इकाई वृद्धि करने पर प्राप्त होने वाले लाभ को उस वस्तु या सेवा की सीमान्त उपयोगिता (marginal utility) कहते हैं। अर्थशास्त्री कभी-कभी ह्रासमान सीमान्त उपयोगिता के नियम (law of diminishing marginal utility) की बात करते हैं जिसका अर्थ यह है कि किसी उत्पाद या सेवा के प्रथम अंश से जितना उपयोगिता प्राप्त होती है उतनी उपयोगिता उतने ही बाग से बाद में नहीं मिलती। .

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