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महाबन्धुल

सूची महाबन्धुल

महाबन्धुल (बर्मी भाषा: မဟာဗန္ဓုလ; 6 नवम्बर 1782 – 1 अप्रैल 1825) १८२१ से १८२५ में अपनी मृत्यु तक शाही बर्मी सेना का सेनापति था। उसने प्रथम आंग्ल-बर्मी युद्ध में अंग्रेजों से लोहा लिया था। बर्मा में महाबन्धुल को नायक के रूप में सम्मान प्राप्त है। .

5 संबंधों: प्रथम आंग्ल-बर्मी युद्ध, बर्मी भाषा, म्यान्मा का इतिहास, म्यान्मार, सेनापति

प्रथम आंग्ल-बर्मी युद्ध

प्रथम आंग्ल-बर्मी युद्ध (5 मार्च 1824 - 24 फ़रवरी 1826), 19वीं शताब्दी में ब्रिटिश शासकों और बर्मी साम्राज्य के मध्य हुए तीन युद्धों में से प्रथम युद्ध था। यह युद्ध, जो मुख्यतया उत्तर-पूर्वी भारत पर अधिपत्य को लेकर शुरू हुआ था, पूर्व सुनिश्चित ब्रिटिश शासकों की विजय के साथ समाप्त हुआ, जिसके फलस्वरूप ब्रिटिश शासकों को असम, मणिपुर, कछार और जैनतिया तथा साथ ही साथ अरकान और टेनासेरिम पर पूर्ण नियंत्रण मिल गया। बर्मी लोगों को 1 मिलियन पाउंड स्टर्लिंग की क्षतिपूर्ति राशि की अदायगी और एक व्यापारिक संधि पर हस्ताक्षर के लिए भी विवश किया गया था। यह सबसे लम्बा तथा ब्रिटिश भारतीय इतिहास का सबसे महंगा युद्ध था। इस युद्ध में 15 हज़ार यूरोपीय और भारतीय सैनिक मारे गए थे, इसके साथ ही बर्मी सेना और नागरिकों के हताहतों की संख्या अज्ञात है। इस अभियान की लागत ब्रिटिश शासकों को 5 मिलियन पाउंड स्टर्लिंग से 13 मिलियन पाउंड स्टर्लिंग तक पड़ी थी, (2005 के अनुसार लगभग 18.5 बिलियन डॉलर से लेकर 48 बिलियन डॉलर), जिसके फलस्वरूप 1833 में ब्रिरिश भारत को गंभीर आर्थिक संकट का सामना करना पड़ा था। बर्मा के लिए यह अपनी स्वतंत्रता के अंत की शुरुआत थी। तीसरा बर्मी साम्राज्य, जिससे एक संक्षिप्त क्षण के लिए ब्रिटिश भारत भयाक्रांत था, अपंग हो चुका था और अब वह ब्रिटिश भारत के पूर्वी सीमांत प्रदेश के लिए किसी भी प्रकार से खतरा नहीं था। एक मिलियन पाउंड (उस समय 5 मिलियन यूएस डॉलर के बराबर) की क्षतिपूर्ति राशि अदा करने से, जोकि उस समय यूरोप के लिए भी एक बहुत बड़ी राशि थी, बर्मी लोग आने वाले कई वर्षों के लिए स्वतः ही आर्थिक रूप से नष्ट हो जाते.

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बर्मी भाषा

बर्मी भाषा बोलने वाले क्षेत्र बर्मी भाषा (बर्मी भाषा में: မြန်မာဘာသာ / म्रन्माभासा), स्वतंत्र देश म्यांमार (बर्मा) की राजभाषा है। यह मुख्य रूप से ब्रह्मदेश (बर्मा का संस्कृत नाम) में बोली जाती है। म्यांमार की सीमा से सटे भारतीय राज्यों असम, मणिपुर एवं अंडमान और निकोबार द्वीप समूह में भी कुछ लोग इस भाषा का प्रयोग करते हैं। .

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म्यान्मा का इतिहास

म्यांमार का इतिहास बहुत पुराना एवं जटिल है। इस क्षेत्र में बहुत से जातीय समूह निवास करते आये हैं जिनमें से मान (Mon) और प्यू संभवतः सबसे प्राचीन हैं। उन्नीसविं शताब्दी में बर्मन (बामार) लोग चीन-तीब्बत सीमा से विस्थापित होकर यहाँ इरावती नदी की घाटी में आ बसे। यही लोग आज के म्यांमार पर शासन करने वाले बहुसंख्यक लोग हैं। म्यांमार का क्रमबद्ध इतिहास सन्‌ 1044 ई. में मध्य बर्मा के 'मियन वंश' के अनावराहता के शासनकाल से प्रारंभ होता है जो मार्कोपोलो के यात्रा संस्मरण में भी उल्लिखित है। सन्‌ 1287 में कुबला खाँ के आक्रमण के फलस्वरूप वंश का विनाश हो गया। 500 वर्षों तक राज्य छोटे छोटे टुकड़ों में बँटा रहा। सन्‌ 1754 ई. में अलोंगपाया (अलोंपरा) ने शान एवं मॉन साम्राज्यों को जीतकर 'बर्मी वंश' की स्थापना की जो 19वीं शताब्दी तक रहा। बर्मा में ब्रिटिश शासन स्थापना की तीन अवस्थाएँ हैं। सन्‌ 1826 ई. में प्रथम बर्मायुद्ध में अँग्रेजों ने आराकान तथा टेनैसरिम पर अधिकार प्राप्त किया। सन्‌ 1852 ई. में दूसरे युद्ध के फलस्वरूप वर्मा का दक्षिणी भाग इनके अधीन हो गया तथा 1886 ई. में संपूर्ण बर्मा पर इनका अधिकार हो गया और इसे ब्रिटिश भारतीय शासनांतर्गत रखा गया। 1937 से पहले ब्रिटिश ने बर्मा को भारत का राज्य घोषित किया था लेकिन फिर अंगरेज सरकार ने बर्मा को भारत से अलग करके उसे ब्रिटिश क्राउन कालोनी (उपनिवेश) बना दिया। द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान जापान ने बर्मा के जापानियों द्वारा प्रशिक्षित बर्मा आजाद फौज के साथ मिल कर हमला किया। बर्मा पर जापान का कब्जा हो गया। बर्मा में सुभाषचंद्र बोस के आजाद हिन्द फौज की वहां मौजूदगी का प्रभाव पड़ा। 1945 में आंग सन की एंटीफासिस्ट पीपल्स फ्रीडम लीग की मदद से ब्रिटेन ने बर्मा को जापान के कब्जे से मुक्त किया लेकिन 1947 में आंग सन और उनके 6 सदस्यीय अंतरिम सरकार को राजनीतिक विरोधियों ने आजादी से 6 महीने पहले उन की हत्या कर दी। आज आंग सन म्यांमार के 'राष्ट्रपिता' कहलाते हैं। आंग सन की सहयोगी यू नू की अगुआई में 4 जनवरी, 1948 में बर्मा को ब्रिटिश राज से आजादी मिली। बर्मा 4 जनवरी 1948 को ब्रिटिश उपनिवेशवाद के चंगुल से मुक्त हुआ और वहाँ 1962 तक लोकतान्त्रिक सरकारें निर्वाचित होती रहीं। 2 मार्च, 1962 को जनरल ने विन के नेतृत्व में सेना ने तख्तापलट करते हुए सत्ता पर कब्ज़ा कर लिया और यह कब्ज़ा तबसे आजतक चला आ रहा है। 1988 तक वहाँ एकदलीय प्रणाली थी और सैनिक अधिकारी बारी-बारी से सत्ता-प्रमुख बनते रहे। सेना-समर्थित दल बर्मा सोशलिस्ट प्रोग्राम पार्टी के वर्चस्व को धक्का 1988 में लगा जब एक सेना अधिकारी सॉ मॉंग ने बड़े पैमाने पर चल रहे जनांदोलन के दौरान सत्ता को हथियाते हुए एक नए सैन्य परिषद् का गठन कर दिया जिसके नेतृत्व में आन्दोलन को बेरहमी से कुचला गया। अगले वर्ष इस परिषद् ने बर्मा का नाम बदलकर म्यांमार कर दिया। ब्रिटिश शासन के दौरान बर्मा दक्षिण-पूर्व एशिया के सबसे धनी देशों में से था। विश्व का सबसे बड़ा चावल-निर्यातक होने के साथ शाल (टीक) सहित कई तरह की लकड़ियों का भी बड़ा उत्पादक था। वहाँ के खदानों से टिन, चांदी, टंगस्टन, सीसा, तेल आदि प्रचुर मात्रा में निकले जाते थे। द्वितीय विश्वयुद्ध में खदानों को जापानियों के कब्ज़े में जाने से रोकने के लिए अंग्रेजों ने भारी मात्र में बमबारी कर उन्हें नष्ट कर दिया था। स्वतंत्रता के बाद दिशाहीन समाजवादी नीतियों ने जल्दी ही बर्मा की अर्थ-व्यवस्था को कमज़ोर कर दिया और सैनिक सत्ता के दमन और लूट ने बर्मा को आज दुनिया के सबसे गरीब देशों की कतार में ला खड़ा किया है। .

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म्यान्मार

म्यांमार यो ब्रह्मदेश दक्षिण एशिया का एक देश है। इसका आधुनिक बर्मी नाम 'मयन्मा' (မြန်မာ .

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सेनापति

कोई विवरण नहीं।

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