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मनुष्य मातृवंश समूह

सूची मनुष्य मातृवंश समूह

मनुष्यों की आनुवंशिकी (यानि जॅनॅटिक्स) में मातृवंश समूह उस वंश समूह या हैपलोग्रुप को कहते हैं जिसका किसी भी व्यक्ति (स्त्री या महिला) के माइटोकांड्रिया के गुण सूत्र पर स्थित डी॰एन॰ए॰ की जांच से पता चलता है। अगर दो व्यक्तियों का मातृवंश समूह मिलता हो तो इसका अर्थ होता है के उनकी हजारों साल पूर्व एक ही महिला पूर्वज रही है, चाहे आधुनिक युग में यह दोनों व्यक्ति अलग-अलग जातियों से सम्बंधित ही क्यों न हों। .

45 संबंधों: डीऑक्सीराइबो न्यूक्लिक अम्ल, मनुष्य पितृवंश समूह, मातृवंश, मातृवंश समूह टी, मातृवंश समूह ऍन, मातृवंश समूह ऍफ़, मातृवंश समूह ऍम, मातृवंश समूह ऍल०, मातृवंश समूह ऍल१, मातृवंश समूह ऍल२, मातृवंश समूह ऍल३, मातृवंश समूह ऍल४, मातृवंश समूह ऍल५, मातृवंश समूह ऍल६, मातृवंश समूह ऍस, मातृवंश समूह ऍक्स, मातृवंश समूह ए, मातृवंश समूह एच, मातृवंश समूह एचवी, मातृवंश समूह डब्ल्यू, मातृवंश समूह डी, मातृवंश समूह पी, मातृवंश समूह बी, मातृवंश समूह यु, मातृवंश समूह सी, मातृवंश समूह सीज़ॅड, मातृवंश समूह ज़ॅड, मातृवंश समूह जे, मातृवंश समूह जेटी, मातृवंश समूह जेटी-पूर्व, मातृवंश समूह जी, मातृवंश समूह ई, मातृवंश समूह वाए, मातृवंश समूह वी, मातृवंश समूह आर, मातृवंश समूह आर०, मातृवंश समूह आई, मातृवंश समूह क्यु, मातृवंश समूह के, सर्वप्रथम मातृवंशी नारी, सूत्रकणिका, वंश समूह, गुणसूत्र, आनुवंशिकी, अंग्रेज़ी भाषा

डीऑक्सीराइबो न्यूक्लिक अम्ल

डीएनए के घुमावदार सीढ़ीनुमा संरचना के एक भाग की त्रिविम (3-D) रूप डी एन ए जीवित कोशिकाओं के गुणसूत्रों में पाए जाने वाले तंतुनुमा अणु को डी-ऑक्सीराइबोन्यूक्लिक अम्ल या डी एन ए कहते हैं। इसमें अनुवांशिक कूट निबद्ध रहता है। डी एन ए अणु की संरचना घुमावदार सीढ़ी की तरह होती है। डीएनए की एक अणु चार अलग-अलग रास वस्तुओं से बना है जिन्हें न्यूक्लियोटाइड कहते है। हर न्यूक्लियोटाइड एक नाइट्रोजन युक्त वस्तु है। इन चार न्यूक्लियोटाइडोन को एडेनिन, ग्वानिन, थाइमिन और साइटोसिन कहा जाता है। इन न्यूक्लियोटाइडोन से युक्त डिऑक्सीराइबोस नाम का एक शक्कर भी पाया जाता है। इन न्यूक्लियोटाइडोन को एक फॉस्फेट की अणु जोड़ती है। न्यूक्लियोटाइडोन के सम्बन्ध के अनुसार एक कोशिका के लिए अवश्य प्रोटीनों की निर्माण होता है। अतः डी इन ए हर एक जीवित कोशिका के लिए अनिवार्य है। डीएनए आमतौर पर क्रोमोसोम के रूप में होता है। एक कोशिका में गुणसूत्रों के सेट अपने जीनोम का निर्माण करता है; मानव जीनोम 46 गुणसूत्रों की व्यवस्था में डीएनए के लगभग 3 अरब आधार जोड़े है। जीन में आनुवंशिक जानकारी के प्रसारण की पूरक आधार बाँधना के माध्यम से हासिल की है। उदाहरण के लिए, एक कोशिका एक जीन में जानकारी का उपयोग करता है जब प्रतिलेखन में, डीएनए अनुक्रम डीएनए और सही आरएनए न्यूक्लियोटाइडों के बीच आकर्षण के माध्यम से एक पूरक शाही सेना अनुक्रम में नकल है। आमतौर पर, यह आरएनए की नकल तो शाही सेना न्यूक्लियोटाइडों के बीच एक ही बातचीत पर निर्भर करता है जो अनुवाद नामक प्रक्रिया में एक मिलान प्रोटीन अनुक्रम बनाने के लिए प्रयोग किया जाता है। वैकल्पिक भानुमति में एक कोशिका बस एक प्रक्रिया बुलाया डीएनए प्रतिकृति में अपने आनुवंशिक जानकारी कॉपी कर सकते हैं। डी एन ए की रूपचित्र की खोज अंग्रेजी वैज्ञानिक जेम्स वॉटसन और के द्वारा सन १९५३ में किया गया था। इस खोज के लिए उन्हें सन १९६२ में नोबेल पुरस्कार सम्मानित किया गया। .

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मनुष्य पितृवंश समूह

मनुष्यों की आनुवंशिकी (यानि जॅनॅटिक्स) में पितृवंश समूह उस वंश समूह या हैपलोग्रुप को कहते हैं जिसका पुरुषों के वाए गुण सूत्र (Y-क्रोमोज़ोम) पर स्थित डी॰एन॰ए॰ की जांच से पता चलता है। अगर दो पुरुषों का पितृवंश समूह मिलता हो तो इसका अर्थ होता है के उनका हजारों साल पूर्व एक ही पुरुष पूर्वज रहा है, चाहे आधुनिक युग में यह दोनों पुरुष अलग-अलग जातियों से सम्बंधित ही क्यों न हों। .

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मातृवंश

उत्तर अफ़्रीका के त्वारेग लोगों का समाज मातृवंशीय है मातृवंश पूर्वजों का ब्यौरा देने की उस प्रणाली को कहते हैं जिसमें माता और फिर उसकी स्त्री पूर्वजाओं को देखते हुए वंश खींचा जाए। मातृवंशीय व्यवस्था किसी उस सामाजिक प्रणाली को कहते हैं जिसमें कोई व्यक्ति पारिवारिक रूप से अपनी माता और उसके मातृवंश का भाग माना जाता है। आम तौर से मातृवंश व्यवस्था में कुल पुत्रियों के द्वारा चलता है और परिवार का नेतृत्व उस परिवार में पैदा हुई सबसे अधिक उम्र की महिला करती है। ऐसे समाजों में सम्पत्ति और उपाधियाँ भी बेटियों को मिला करती है। .

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मातृवंश समूह टी

आयरलैंड के बहुत से लोग मातृवंश समूह टी के वंशज होते हैं मनुष्यों की आनुवंशिकी (यानि जॅनॅटिक्स) में मातृवंश समूह टी या माइटोकांड्रिया-डी॰एन॰ए॰ हैपलोग्रुप T एक मातृवंश समूह है। भारतीय उपमहाद्वीप के उत्तर-पश्चिम के लोग और मध्य पूर्व और यूरोप के लोग अक्सर इसके वंशज होते हैं। यूरोप के १०% से थोड़े कम लोग इसके वंशज पाए गए हैं, लेकिन आयरलैंड में यह संख्या अधिक है।, The Genographic Project वैज्ञानिकों की मान्यता है के जिस स्त्री के साथ इस मातृवंश की शुरुआत हुई वह आज से क़रीब १०,००० से १२,००० साल पहले इराक़, तुर्की, सीरिया या उन्ही के आस-पास कहीं रहती थी। .

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मातृवंश समूह ऍन

मानवों के अफ़्रीका से निकलने के बाद, मातृवंश समूह ऍम और ऍन (और उनकी उपशाखाओं) के वंशजों नें एशिया और यूरोप को आबाद किया मनुष्यों की आनुवंशिकी (यानि जॅनॅटिक्स) में मातृवंश समूह ऍन या माइटोकांड्रिया-डी॰एन॰ए॰ हैपलोग्रुप N एक मातृवंश समूह है। इस मातृवंश समूह और मातृवंश समूह ऍम ने मानव इतिहास में बहुत बड़ा किरदार अदा किया है क्योंकि अफ़्रीका के बहार जितने भी मानव हैं वे इन दोनों या इनकी उपशाखाओं के वंशज हैं। मातृवंश समूह ऍन और मातृवंश समूह ऍम मातृवंश समूह ऍल३ की दो उपशाखाएँ हैं। माना जाता है के जब मनुष्य अफ़्रीका के अपने जन्मस्थल से पहली बार निकले तो जो महिला या महिलाएँ अफ़्रीका से बाहर निकलीं वे इसी मातृवंश समूह ऍल३ की वंशज थी। मातृवंश समूह ऍन की उपशाखाएँ विश्व भर में मिलती हैं लेकिन उप-सहारा अफ़्रीका में बहुत कम संख्या में मिलती है। वैज्ञानिकों का अंदाज़ा है के अफ़्रीका में जो इस मातृवंश के लोग हैं उनके पूर्वज यूरेशिया से अफ़्रीका आये थे। इसकी मातृवंश समूह ऍन५ उपशाखा ज़्यादातर भारतीय महाद्वीप में ही मिलती है। अनुमान है के जिस स्त्री से यह मातृवंश शुरू हुआ वह आज से लगभग ७१,००० वर्ष पहले एशिया या पूर्वी अफ़्रीका की निवासी थी। .

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मातृवंश समूह ऍफ़

जापान के कुछ लोग मातृवंश समूह ऍफ़ के वंशज होते हैं मनुष्यों की आनुवंशिकी (यानि जॅनॅटिक्स) में मातृवंश समूह ऍफ़ या माइटोकांड्रिया-डी॰एन॰ए॰ हैपलोग्रुप F एक मातृवंश समूह है। यह मातृवंश समूह जापान, पूर्वी चीन और दक्षिण पूर्वी एशिया में मिलता है। अनुमान है के जिस स्त्री से यह मातृवंश शुरू हुआ वह आज से लगभग ४३,००० वर्ष पहले पूर्वी एशिया की निवासी थी। ध्यान दें के कभी-कभी मातृवंशों और पितृवंशों के नाम मिलते-जुलते होते हैं (जैसे की पितृवंश समूह ऍफ़ और मातृवंश समूह ऍफ़), लेकिन यह केवल एक इत्तेफ़ाक ही है - इनका आपस में कोई सम्बन्ध नहीं है। .

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मातृवंश समूह ऍम

मातृवंश समूह ऍम की उपशाखाएँ विश्व भर में मिलती हैं मनुष्यों की आनुवंशिकी (यानि जॅनॅटिक्स) में मातृवंश समूह ऍम या माइटोकांड्रिया-डी॰एन॰ए॰ हैपलोग्रुप M एक मातृवंश समूह है। इस मातृवंश समूह और मातृवंश समूह ऍन ने मानव इतिहास में बहुत बड़ा किरदार अदा किया है क्योंकि अफ़्रीका के बहार जितने भी मानव हैं वे इन दोनों या इनकी उपशाखाओं के वंशज हैं। मातृवंश समूह ऍम और मातृवंश समूह ऍन मातृवंश समूह ऍल३ की दो उपशाखाएँ हैं। माना जाता है के जब मनुष्य अफ़्रीका के अपने जन्मस्थल से पहली बार निकले तो जो महिला या महिलाएँ अफ़्रीका से बाहर निकलीं वे इसी मातृवंश समूह ऍल३ की वंशज थी। मातृवंश समूह ऍम की उपशाखाएँ विश्व भर में मिलती हैं। कुछ तो अफ़्रीका में भी मिलती हैं - इनपर वैज्ञानिकों में आपसी विवाद है के यह अफ़्रीका में उत्पन्न हुई या एशिया में उत्पन्न होने के बाद अफ़्रीका में जा पहुंची।Rajkumar et al.

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मातृवंश समूह ऍल०

उप-सहारा अफ़्रीका की बुशमैन जनजातियों के स्त्री ओर पुरुष अक्सर मातृवंश समूह ऍल० के वंशज होते हैं मनुष्यों की आनुवंशिकी (यानि जॅनॅटिक्स) में मातृवंश समूह ऍल० या माइटोकांड्रिया-डी॰एन॰ए॰ हैपलोग्रुप L0 एक अत्यंत प्राचीनतम मातृवंश समूह है। इस मातृवंश समूह के सदस्य व्यक्ति (स्त्री ओर पुरुष दोनों) ज़्यादातर उप-सहारा अफ़्रीका में पाए जाते हैं। इस इलाक़े के खोइसान जनजाति के ७३% लोग, !कुंग जनजाति की नामीबिया वाली शाखा के ७९% लोग ओर !कुंग जनजाति की बोत्सवाना वाली शाखा के १००% लोग इसके वंशज हैं। अनुमान है के जिस नारी से यह मातृवंश शुरू हुआ वह आज से लगभग ११२,२०० से १८८,००० वर्ष पूर्व पूर्वी अफ़्रीका में रहती थी। .

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मातृवंश समूह ऍल१

मध्य अफ़्रीका की पिग्मी जनजातियों के स्त्री ओर पुरुष अक्सर मातृवंश समूह ऍल१ के वंशज होते हैं मनुष्यों की आनुवंशिकी (यानि जॅनॅटिक्स) में मातृवंश समूह ऍल१ या माइटोकांड्रिया-डी॰एन॰ए॰ हैपलोग्रुप L1 एक अत्यंत प्राचीनतम मातृवंश समूह है। इस मातृवंश समूह के सदस्य व्यक्ति (स्त्री ओर पुरुष दोनों) ज़्यादातर मध्य ओर पश्चिम अफ़्रीका में पाए जाते हैं। इस इलाक़े की पिग्मी जनजाति की अम्बेंगा शाखा के लोगों में यह मातृवंश सब से अधिक मिलता है। अनुमान है के जिस नारी से यह मातृवंश शुरू हुआ वह आज से लगभग १५०,००० से १७०,००० वर्ष पहले पूर्वी अफ़्रीका में रहती थी। .

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मातृवंश समूह ऍल२

उत्तर-मध्य अफ़्रीका के चाड देश के लोग अक्सर मातृवंश समूह ऍल२ के वंशज होते हैं मनुष्यों की आनुवंशिकी (यानि जॅनॅटिक्स) में मातृवंश समूह ऍल२ या माइटोकांड्रिया-डी॰एन॰ए॰ हैपलोग्रुप L2 एक मातृवंश समूह है। इस मातृवंश की उपशाखाएँ अफ़्रीका के पश्चिमी, उत्तरी ओर पूर्वी हिस्सों में कई स्थानों पर ओर कई समुदायों में मिलती हैं। चाड देश के लगभग ३८% लोग इसके वंशज हैं, लेकिन यह बहुत से और देशों में भी मिलता है। अनुमान है के जिस नारी से यह मातृवंश शुरू हुआ वह आज से लगभग ६८,१०० से १११,१०० वर्ष पहले जीवित थी। कुछ वैज्ञानिकों का मानना है के वह पूर्वी अफ़्रीका की निवासी थी, लेकिन इस को लेकर वैज्ञानिकों में काफ़ी आपसी मतभेद है। .

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मातृवंश समूह ऍल३

अफ़्रीका से बाहर मिलने वाले सारे मातृवंश मातृवंश समूह ऍल३ से उत्पन्न हुई शाखाएँ हैं मनुष्यों की आनुवंशिकी (यानि जॅनॅटिक्स) में मातृवंश समूह ऍल३ या माइटोकांड्रिया-डी॰एन॰ए॰ हैपलोग्रुप L3 एक मातृवंश समूह है। इस मातृवंश की मानव इतिहास में बहुत ही अहम भूमिका रही है, क्योंकि जब मनुष्य अफ़्रीका के अपने जन्मस्थल से पहली बार निकले तो जो महिला या महिलाएँ अफ़्रीका से बाहर निकलीं वे इसी की वंशज थी। अफ़्रीका के महाद्वीप से बाहर विश्व-भर में मिलने वाले जितने भी मातृवंश हैं, वे सब इसी मातृवंश समूह ऍल३ से उत्पन्न हुई शाखाएँ हैं। मातृवंश समूह ऍल३ के सीधे वंशज (यानि इसकी बड़ी ग़ैर-अफ़्रीकी उपशाखाओं के नहीं) ज़्यादातर पूर्वी अफ़्रीका में मिलते हैं, जैसे की इथियोपिया और सोमालिया में। अनुमान है के जिस स्त्री से यह मातृवंश शुरू हुआ वह आज से लगभग ८४,००० से १०४,००० वर्ष पहले पूर्वी अफ़्रीका की निवासी थी। .

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मातृवंश समूह ऍल४

तानज़ानिया के हदज़ा समुदाय के ६०-८३% लोग मातृवंश समूह ऍल४ के वंशज हैं मनुष्यों की आनुवंशिकी (यानि जॅनॅटिक्स) में मातृवंश समूह ऍल४ या माइटोकांड्रिया-डी॰एन॰ए॰ हैपलोग्रुप L4 एक मातृवंश समूह है। इस मातृवंश समूह के सदस्य स्त्रियों और पुरुषों की तादाद ज़्यादा नहीं है, लेकिन वे पूर्वी अफ़्रीका और अफ़्रीका के सींग के कई समुदायों में मिलते हैं। तंज़ानिया के हदज़ा समुदाय के ६०-८३% लोग और संदावे समुदाय के ४८% लोग इसके वंशज हैं। वैज्ञानिकों के मुताबिक़ आज से हज़ारों साल पहले जिस स्त्री से इस मातृवंश की शुरुआत हुई वह पूर्वी अफ़्रीका की वासी थी। .

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मातृवंश समूह ऍल५

मध्य अफ़्रीका की पिग्मी जनजातियों के कुछ स्त्री ओर पुरुष मातृवंश समूह ऍल५ के वंशज हैं मनुष्यों की आनुवंशिकी (यानि जॅनॅटिक्स) में मातृवंश समूह ऍल५ या माइटोकांड्रिया-डी॰एन॰ए॰ हैपलोग्रुप L5 एक मातृवंश समूह है। इस मातृवंश समूह के सदस्य स्त्रियों और पुरुषों की तादाद ज़्यादा नहीं है, लेकिन वे पूर्वी और मध्य अफ़्रीका के कुछ समुदायों में मिलते हैं। पिग्मी जनजाति की अम्बूटी शाखा के १५% लोग इसके वंशज हैं और तंज़ानिया के संदावे समुदाय के में भी कम तादाद में इसके वंशज मिलते हैं। अफ़्रीका से बाहर बहुत कम तादाद में इसके वंशज साउदी अरब में भी पाए गए हैं। वैज्ञानिकों के मुताबिक़ जिस स्त्री से इस मातृवंश की शुरुआत हुई वह पूर्वी अफ़्रीका में आज से लगभग ११४,२०० से १२६,२०० साल पहले रहती थी। .

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मातृवंश समूह ऍल६

यमन के कुछ स्त्री ओर पुरुष मातृवंश समूह ऍल६ के वंशज हैं, जिसका फैलाव विश्व में काफ़ी सीमित है मनुष्यों की आनुवंशिकी (यानि जॅनॅटिक्स) में मातृवंश समूह ऍल६ या माइटोकांड्रिया-डी॰एन॰ए॰ हैपलोग्रुप L6 एक मातृवंश समूह है। इस मातृवंश समूह के सदस्य स्त्रियों और पुरुषों की तादाद ज़्यादा नहीं है, लेकिन वे यमन और इथियोपिया के कुछ समुदायों में मिलते हैं। वैज्ञानिकों के मुताबिक़ जिस स्त्री से इस मातृवंश की शुरुआत हुई वह पूर्वी अफ़्रीका में आज से लगभग ८१,५०० से १२९,८०० साल पहले रहती थी। .

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मातृवंश समूह ऍस

ऑस्ट्रेलिया के आदिवासी अक्सर मातृवंश समूह ऍस के वंशज होते हैं मनुष्यों की आनुवंशिकी (यानि जॅनॅटिक्स) में मातृवंश समूह ऍस या माइटोकांड्रिया-डी॰एन॰ए॰ हैपलोग्रुप S एक मातृवंश समूह है। यह मातृवंश ज़्यादातर ऑस्ट्रेलिया के आदिवासियों में पाया जाता है। ध्यान दें के कभी-कभी मातृवंशों और पितृवंशों के नाम मिलते-जुलते होते हैं (जैसे की पितृवंश समूह ऍस और मातृवंश समूह ऍस), लेकिन यह केवल एक इत्तेफ़ाक ही है - इनका आपस में कोई सम्बन्ध नहीं है। .

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मातृवंश समूह ऍक्स

विश्व में मातृवंश समूह ऍक्स का फैलाव मनुष्यों की आनुवंशिकी (यानि जॅनॅटिक्स) में मातृवंश समूह ऍक्स या माइटोकांड्रिया-डी॰एन॰ए॰ हैपलोग्रुप X एक मातृवंश समूह है। यह मातृवंश ज़्यादातर यूरोप, पश्चिमी एशिया और उत्तरी अफ़्रीका में और कुछ मूल अमेरिकी आदिवासी समुदायों में पाया जाता है। यूरोप, मध्य पूर्व और उत्तरी अफ़्रीका की लगभग २% आबादी इस मातृवंश की वंशज है। वैज्ञानिकों ने अंदाज़ा लगाया है के जिस स्त्री के साथ इस मातृवंश की शुरुआत हुई थी वह आज से ३०,००० साल पहले ईरान-ईराक़ के पास कहीं पश्चिमी एशिया में रहती थी। उनके लिए यह एक पहेली है के यह मातृवंश उत्तरी अमेरिका में कैसे जा पहुंचा जबकि इसकी शुरुआत दूर पश्चिमी एशिया में हुई थी। इसकी सोच अब यह है के इस मातृवंश की वंशज महिलाऐं मध्य एशिया के अल्ताई पर्वत श्रंखला के इलाक़े से होती हुई पहले साइबेरिया और फिर अलास्का के ज़रिये उत्तरी अमेरिका में दाख़िल हुईं। याद रहे के हालांकि मातृवंश बताने वाले माइटोकांड्रिया मर्दों और औरतों दोनों में होतें हैं, संतानों को यह केवल अपनी माताओं से ही मिलते हैं। .

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मातृवंश समूह ए

बहुत से एस्किमो लोग मातृवंश समूह ए के वंशज होते हैं मनुष्यों की आनुवंशिकी (यानि जॅनॅटिक्स) में मातृवंश समूह ए या माइटोकांड्रिया-डी॰एन॰ए॰ हैपलोग्रुप A एक मातृवंश समूह है। यह मातृवंश मूल अमेरिकी आदिवासी समुदायों, पूर्वी साइबेरिया के लोगों और कुछ पूर्वोत्तर एशिया के लोगों में पाया जाता है। चुकची, एस्किमो और अमेरिका की ना-देने जनजातियों में यह सब से आम मातृवंश है। ७.५% जापानी और २% तुर्की लोगों में भी यह पाया जाता है। अनुमान लगाया जाता है के जिस स्त्री के साथ इस मातृवंश की शुरुआत हुई वह आज से लगभग ५०,००० साल पहले पूर्वी एशिया या मध्य एशिया की निवासी थी। ध्यान दें के कभी-कभी मातृवंशों और पितृवंशों के नाम मिलते-जुलते होते हैं (जैसे की पितृवंश समूह ए और मातृवंश समूह ए), लेकिन यह केवल एक इत्तेफ़ाक ही है - इनका आपस में कोई सम्बन्ध नहीं है। .

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मातृवंश समूह एच

लगभग १०% पंजाबी लोग मातृवंश समूह एच के वंशज होते हैं मनुष्यों की आनुवंशिकी (यानि जॅनॅटिक्स) में मातृवंश समूह एच या माइटोकांड्रिया-डी॰एन॰ए॰ हैपलोग्रुप H एक मातृवंश समूह है। यूरोप में यह सब से अधिक पाया जाने वाले मातृवंश है। यूरोप के ५०%, मध्य पूर्व और कॉकस के २०%, ईरान के १७% और पाकिस्तान, उत्तर भारत और मध्य एशिया के १०% से ज़रा कम लोग इस मातृवंश के वंशज हैं। फ़ारस की खाड़ी के इर्द-गिर्द के इलाक़ों में भी १०% से ज़रा कम लोग इसके वंशज हैं। वैज्ञानिकों की मान्यता है के जिस स्त्री के साथ इस मातृवंश की शुरुआत हुई वह आज से क़रीब २५,००० से ३०,००० साल पहले मध्य पूर्व में कहीं रहती थी। .

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मातृवंश समूह एचवी

कॉकस क्षेत्र के लोग अक्सर मातृवंश समूह एचवी के वंशज होते हैं मनुष्यों की आनुवंशिकी (यानि जॅनॅटिक्स) में मातृवंश समूह एचवी या माइटोकांड्रिया-डी॰एन॰ए॰ हैपलोग्रुप HV एक मातृवंश समूह है। मातृवंश समूह एच और मातृवंश समूह वी इसी से उत्पन्न हुई बड़ी उपशाखाएँ हैं। मातृवंश समूह एचवी मध्य पूर्व, दक्षिण रूस के कॉकस क्षेत्र, ईरान और अनातोलिया में काफ़ी लोगों में पाया जाता है। इसके अलावा इसके वंशज हलकी मात्रा में भारत और इर्द-गिर्द के इलाक़ों में और दक्षिण यूरोप के कुछ क्षेत्रों में भी मिलते हैं। अनुमान है के जिस स्त्री से यह मातृवंश शुरू हुआ वह आज से लगभग २५,००० से ३०,००० वर्ष पहले मध्य पूर्व या कॉकस क्षेत्र की निवासी थी।B.

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मातृवंश समूह डब्ल्यू

कुछ पंजाबी लोग मातृवंश समूह डब्ल्यू के वंशज होते हैं मनुष्यों की आनुवंशिकी (यानि जॅनॅटिक्स) में मातृवंश समूह डब्ल्यू या माइटोकांड्रिया-डी॰एन॰ए॰ हैपलोग्रुप W एक मातृवंश समूह है। यह मातृवंश ज़्यादातर यूरोप, पश्चिमी एशिया और भारतीय उपमहाद्वीप में पाया जाता है। इन इलाकों में सब जगह इसके वंशज हलकी मात्रा में ही मिलते हैं और उनका सबसे भारी जमावड़ा उत्तरी पाकिस्तान में है। वैज्ञानिकों ने अंदाज़ा लगाया है के जिस स्त्री के साथ इस मातृवंश की शुरुआत हुई थी वह आज से २३,९०० साल पहले ईरान-ईराक़ के पास कहीं पश्चिमी एशिया में रहती थी। .

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मातृवंश समूह डी

साइबेरिया की याकूत जनजाति के लोग अक्सर मातृवंश समूह डी के वंशज होते हैं मनुष्यों की आनुवंशिकी (यानि जॅनॅटिक्स) में मातृवंश समूह डी या माइटोकांड्रिया-डी॰एन॰ए॰ हैपलोग्रुप D एक मातृवंश समूह है। इस मातृवंश के लोग ज़्यादातर पूर्वोत्तर एशिया (ख़ासकर साइबेरिया), मूल अमेरिकी आदिवासी समुदायों, मध्य एशिया और कोरिया में भारी संख्या में और पूर्वोत्तर यूरोप और मध्य पूर्व के दक्षिण-पश्चिमी एशियाई इलाक़ों में हलकी संख्या में मिलते हैं। वैज्ञानिकों की मान्यता है के जिस स्त्री के साथ इस मातृवंश की शुरुआत हुई वह आज से क़रीब ४८,००० साल पहले पूर्व एशिया में कहीं रहती थी। ध्यान दें के कभी-कभी मातृवंशों और पितृवंशों के नाम मिलते-जुलते होते हैं (जैसे की पितृवंश समूह डी और मातृवंश समूह डी), लेकिन यह केवल एक इत्तेफ़ाक ही है - इनका आपस में कोई सम्बन्ध नहीं है। .

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मातृवंश समूह पी

ऑस्ट्रेलिया के आदिवासी समुदायों में बहुत से लोग मातृवंश समूह पी के वंशज होते हैं मनुष्यों की आनुवंशिकी (यानि जॅनॅटिक्स) में मातृवंश समूह पी या माइटोकांड्रिया-डी॰एन॰ए॰ हैपलोग्रुप P एक मातृवंश समूह है। यह ज़्यादातर ओशिआनिया के लोगों में मिलता है, जिसमें ऑस्ट्रेलियाई आदिवासी और पापुआ और मेलानिशिया के लोग शामिल हैं।Friedlaender et al.

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मातृवंश समूह बी

साइबेरिया की तूवाई जनजाति में मातृवंश समूह बी के वंशज मिलते हैं मनुष्यों की आनुवंशिकी (यानि जॅनॅटिक्स) में मातृवंश समूह बी या माइटोकांड्रिया-डी॰एन॰ए॰ हैपलोग्रुप B एक मातृवंश समूह है। यह मातृवंश समूह पूर्वी एशिया, साइबेरिया और मूल अमेरिकी आदिवासी समुदायों में मिलता है। इसे तिब्बत, मोंगोलिया, चीन, ताइवान, फ़िलिपीन्स, कोरिया, पोलिनीशिया, इंडोनीशिया, वग़ैराह में पाया जाता है। अनुमान है के जिस स्त्री से यह मातृवंश शुरू हुआ वह आज से लगभग ५०,००० वर्ष पहले पूर्वी एशिया की निवासी थी।Yong-Gang Yao et al.

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मातृवंश समूह यु

स्पेन के रोमा समुदाय के बहुत से लोग मातृवंश समूह यु के वंशज होते हैं मनुष्यों की आनुवंशिकी (यानि जॅनॅटिक्स) में मातृवंश समूह यु या माइटोकांड्रिया-डी॰एन॰ए॰ हैपलोग्रुप U एक मातृवंश समूह है। इस मातृवंश का फैलाव भारत, मध्य पूर्व, कॉकस, यूरोप और उत्तरी अफ़्रीका में है। भारत में इसकी यु२ उपशाखा काफ़ी पायी जाती है, जो मध्य एशिया और यूरोप में भी मिलती है - यहाँ तक की यही उपशाखा एक ३०,००० साल पुराने रूसी शिकारी के शव में भी मिली है। स्पेन और पोलैंड के रोमा लोगों में ३०-६५% इसकी यु३ उपशाखा के वंशज पाए गए हैं। वैज्ञानिकों ने अंदाज़ा लगाया है के जिस स्त्री के साथ मातृवंश समूह पी शुरू हुआ वह आज से लगभग ५५,००० वर्ष पूर्व मध्य पूर्व में रहती थी। .

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मातृवंश समूह सी

साइबेरिया की चुकची जनजाति के ११% लोग मातृवंश समूह सी के वंशज होते हैं मनुष्यों की आनुवंशिकी (यानि जॅनॅटिक्स) में मातृवंश समूह सी या माइटोकांड्रिया-डी॰एन॰ए॰ हैपलोग्रुप C एक मातृवंश समूह है। यह मातृवंश समूह सीज़ॅड की एक उपशाखा है। इस मातृवंश के लोग ज़्यादातर पूर्वोत्तर एशिया (ख़ासकर साइबेरिया) और अमेरिका के आदिवासियों में पाए जाते हैं, लेकिन हाल ही में यह पश्चिमी यूरोप के आइसलैण्ड राष्ट्र में भी पाए गाये हैं। साइबेरिया की चुकची जनजाति के ११% लोग मातृवंश समूह सी के वंशज होते हैं। वैज्ञानिकों की मान्यता है के जिस स्त्री के साथ इस मातृवंश की शुरुआत हुई वह आज से लगभग ६०,००० साल पहले मध्य एशिया में कैस्पियन सागर और बेकाल झील के दरमियानी क्षेत्र में कहीं रहती थी। ध्यान दें के कभी-कभी मातृवंशों और पितृवंशों के नाम मिलते-जुलते होते हैं (जैसे की पितृवंश समूह डी और मातृवंश समूह डी), लेकिन यह केवल एक इत्तेफ़ाक ही है - इनका आपस में कोई सम्बन्ध नहीं है। .

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मातृवंश समूह सीज़ॅड

कुछ पूर्वोत्तर भारतीय मातृवंश समूह सीज़ॅड के वंशज होते हैं मनुष्यों की आनुवंशिकी (यानि जॅनॅटिक्स) में मातृवंश समूह सीज़ॅड या माइटोकांड्रिया-डी॰एन॰ए॰ हैपलोग्रुप CZ एक मातृवंश समूह है। इस मातृवंश समूह के लोग ज़्यादातर उत्तर-पूर्वी एशिया में मिलते हैं, ख़ासकर साईबेरिया में। पूर्वोत्तर भारत में भी कुछ मातृवंश समूह सीज़ॅड के वंशज मिलते हैं। .

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मातृवंश समूह ज़ॅड

फिनलैंड की सामी जनजाति के लोग अक्सर मातृवंश समूह ज़ॅड के वंशज होते हैं मनुष्यों की आनुवंशिकी (यानि जॅनॅटिक्स) में मातृवंश समूह ज़ॅड या माइटोकांड्रिया-डी॰एन॰ए॰ हैपलोग्रुप Z एक मातृवंश समूह है। यह मातृवंश समूह सीज़ॅड की एक उपशाखा है। इस मातृवंश के लोग ज़्यादातर रूस, फिनलैंड के सामी समुदाय, उत्तर चीन, मध्य एशिया और कोरिया में मिलते हैं। वैज्ञानिकों की मान्यता है के जिस स्त्री के साथ इस मातृवंश की शुरुआत हुई वह आज से हज़ारों साल पहले मध्य एशिया में कहीं रहती थी। .

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मातृवंश समूह जे

मध्य पूर्व के क़रीब १२% लोग मातृवंश समूह जे के वंशज होते हैं मनुष्यों की आनुवंशिकी (यानि जॅनॅटिक्स) में मातृवंश समूह जे या माइटोकांड्रिया-डी॰एन॰ए॰ हैपलोग्रुप J एक मातृवंश समूह है। मध्य पूर्व के १२% लोग, यूरोप के ११% लोग, कॉकस क्षेत्र के ८% लोग और उत्तरी अफ़्रीका के ६% लोग इस मातृवंश के वंशज पाए गए हैं। भारतीय उपमहाद्वीप में पाकिस्तान में यह ५% लोगों में पाया गया है और उत्तरी पाकिस्तान और अफ़ग़ानिस्तान की कलश जनजाति के ९% लोगों में। वैज्ञानिकों की मान्यता है के जिस स्त्री के साथ इस मातृवंश की शुरुआत हुई वह आज से क़रीब ४५,००० साल पहले पश्चिमी एशिया में कहीं रहती थी। ध्यान दें के कभी-कभी मातृवंशों और पितृवंशों के नाम मिलते-जुलते होते हैं (जैसे की पितृवंश समूह जे और मातृवंश समूह जे), लेकिन यह महज़ एक इत्तेफ़ाक है - इनका आपस में कोई सम्बन्ध नहीं है। यह पाया गया है कुछ मातृवंश समूह जे की उपशाखाओं में माइटोकांड्रिया के डी॰एन॰ए॰ में ऐसे उत्परिवर्तन (या म्युटेशन) मौजूद हैं जिनसे नौजवान आदमियों में "लॅबॅर की ऑप्टिक हॅरॅडिटरी न्यूरोपैथी" नाम की बिमारी की सम्भावनाएँ ज़्यादा होती हैं, जिसमें नज़र का केन्द्रीय अंधापन हो जाता है (यानि जहाँ सीधे देख रहें हो वो चीज़ नज़र नहीं आती लेकिन इर्द-गिर्द की चीजें नज़र आती हैं)। .

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मातृवंश समूह जेटी

मनुष्यों की आनुवंशिकी (यानि जॅनॅटिक्स) में मातृवंश समूह जेटी या माइटोकांड्रिया-डी॰एन॰ए॰ हैपलोग्रुप JT एक मातृवंश समूह है। इसकी दो शाखाएँ - मातृवंश समूह जे और मातृवंश समूह टी - यूरोप और मध्य पूर्व में काफ़ी फैली हुई हैं। अनुमान है के जिस स्त्री से यह मातृवंश शुरू हुआ वह आज से लगभग ५०,३०० वर्ष पहले दक्षिण पश्चिमी एशिया में रहती थी। .

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मातृवंश समूह जेटी-पूर्व

आज के विश्व में मातृवंश समूह जेटी-पूर्व में कोई नहीं, लेकिन इसके उपशाखाओं के वंशज बहुत हैं मनुष्यों की आनुवंशिकी (यानि जॅनॅटिक्स) में मातृवंश समूह जेटी-पूर्व या माइटोकांड्रिया-डी॰एन॰ए॰ हैपलोग्रुप pre-JT एक मातृवंश समूह है। मातृवंश समूह जेटी इसी से उत्पन्न हुआ था। वैज्ञानिकों नें अनुसन्धान करने पर पाया है के कभी सीधे जेटी-पूर्व मातृवंश के लोग दुनिया में ज़रूर रहे होंगे, लेकिन आज की दुनिया में यह लोग नहीं पाए जाते। इस मातृवंश को पहले "आर२'जेटी" (R2'JT) कहा जाता था। अनुमान है के जिस स्त्री से यह मातृवंश शुरू हुआ वह आज से लगभग ४२,६०० से ६७,१०० वर्ष पहले जीवित थी। .

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मातृवंश समूह जी

साइबेरिया की जनजातियों के लोग अक्सर मातृवंश समूह जी के वंशज होते हैं मनुष्यों की आनुवंशिकी (यानि जॅनॅटिक्स) में मातृवंश समूह जी या माइटोकांड्रिया-डी॰एन॰ए॰ हैपलोग्रुप G एक मातृवंश समूह है। इस मातृवंश के लोग ज़्यादातर पूर्वोत्तर साइबेरिया में होते हैं, जहाँ की कोरिआक और इतेलमेन जनजातियों में यह मातृवंश आम है। कम संख्या में इसके वंशज पूर्वी एशिया, मध्य एशिया और नेपाल में भी मिलते हैं। आम तौर पर जो मातृवंश साइबेरिया के पूर्वोत्तर में मिलते हैं वे मूल अमेरिकी आदिवासी समुदायों में भी मिलते हैं क्योंकि माना जाता है के साइबेरिया के लोग उत्तरी अमेरिका में मनुष्यों की पहली आबादियों के स्रोत थे। इसलिए वैज्ञानिकों को आश्चर्य हुआ के मातृवंश समूह जी मूल अमेरिकी आदिवासियों में कभी नहीं पाया गया है, लेकिन अब सोच यह है के इसकी शुरुआत पूर्वी एशिया में हुई और फिर यह साइबेरिया में फैल गया। वैज्ञानिकों अनुमान लगाते हैं के जिस स्त्री के साथ इस मातृवंश की शुरुआत हुई वह आज से लगभग ३५,७०० साल पहले पूर्वी एशिया में कहीं रहती थी। .

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मातृवंश समूह ई

ताइवान की आदिवासी जनजातियों के लोग अक्सर मातृवंश समूह ई के वंशज होते हैं मनुष्यों की आनुवंशिकी (यानि जॅनॅटिक्स) में मातृवंश समूह ई या माइटोकांड्रिया-डी॰एन॰ए॰ हैपलोग्रुप E एक मातृवंश समूह है। इस मातृवंश के लोग ज़्यादातर मलेशिया, ताइवान, पापुआ न्यू गिनी, फ़िलीपीन्स और इण्डोनेशिया में मिलते हैं। इसके कुछ वंशज प्रशांत महासागर में स्थित गुआम के द्वीप पर भी मिलते हैं। वैज्ञानिकों की मान्यता है के जिस स्त्री के साथ इस मातृवंश की शुरुआत हुई वह आज से लगभग ३०,००० साल पहले मलय द्वीपसमूह में कहीं रहती थी। यह दक्षिण पूर्वी एशिया और ऑस्ट्रेलिया के बीच सागर में फैला हुआ बहुत बड़ा द्वीपसमूह है जिसमें इण्डोनेशिया भी आता है।Soares et al.

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मातृवंश समूह वाए

आइनू आदिवासियों में से २०% मातृवंश समूह वाए के वंशज हैं मनुष्यों की आनुवंशिकी (यानि जॅनॅटिक्स) में मातृवंश समूह वाए या माइटोकांड्रिया-डी॰एन॰ए॰ हैपलोग्रुप Y एक मातृवंश समूह है। यह मातृवंश ज़्यादातर पूर्वी एशिया में ही मिलता है, जहां जापान के आइनू आदिवासियों में से २०% और साइबेरिया के पूर्वी तट से कुछ दूरी पर स्थित रूस के शाखालिन द्वीप के निव्ख़ आदिवासियों के ६६% लोग इसके मातृवंशी होते हैं।M.

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मातृवंश समूह वी

तुनिशिया के कुछ बर्बर समुदायों में १६% से अधिक लोग मातृवंश समूह वी के वंशज होते हैं मनुष्यों की आनुवंशिकी (यानि जॅनॅटिक्स) में मातृवंश समूह वी या माइटोकांड्रिया-डी॰एन॰ए॰ हैपलोग्रुप V एक मातृवंश समूह है। यूरोप में यह सब से ज़्यादा मात्रा (१०.४%) में उत्तरी स्कैन्डिनेविया की सामी जनजाति के लोगों में और स्पेन-फ्रांस के सीमावर्ती इलाक़ों में बसने वाले बास्क लोगों में मिलता है। उत्तरी अफ़्रीका में यह तुनिशिया के मतमाता शहर में रहने वाले बर्बर समुदाय के १६.३% लोगों में मिलता है। इस मातृवंश के लोग हलकी मात्राओं में पूरे यूरोप, मध्य पूर्व और मध्य एशिया में मिलते हैं। वैज्ञानिकों की मान्यता है के जिस स्त्री के साथ इस मातृवंश की शुरुआत हुई वह आज से क़रीब १३,६०० से ३०,००० साल पहले भू मध्य सागर के पश्चिमी भाग के इर्द-गिर्द के इलाक़ों (जिनमें स्पेन, दक्षिणी फ्रांस, लीबिया, तुनिशिया, वग़ैराह शामिल हैं) में कहीं रहती थी। .

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मातृवंश समूह आर

मातृवंश समूह आर और उसकी उपशाखाएँ विश्व भर में मिलती हैं मनुष्यों की आनुवंशिकी (यानि जॅनॅटिक्स) में मातृवंश समूह आर या माइटोकांड्रिया-डी॰एन॰ए॰ हैपलोग्रुप R एक मातृवंश समूह है। यह मातृवंश समूह और इसकी बड़ी उपशाखाएँ यूरेशिया, ओशिआनिया और महाअमेरिका में फैली हुई हैं। अनुमान है के जिस स्त्री से यह मातृवंश शुरू हुआ वह आज से लगभग ६६,००० वर्ष पहले भारतीय उपमहाद्वीप की निवासी थी।Palanichamy, M. et al.

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मातृवंश समूह आर०

उत्तरी पाकिस्तान और अफ़ग़ानिस्तान की कलश जनजाति के अनुमानित २३% लोग मातृवंश समूह आर० के वंशज होते हैं मनुष्यों की आनुवंशिकी (यानि जॅनॅटिक्स) में मातृवंश समूह आर० या माइटोकांड्रिया-डी॰एन॰ए॰ हैपलोग्रुप R0 एक मातृवंश समूह है। इसे पहले मातृवंश समूह एचवी-पूर्व या माइटोकांड्रिया-डी॰एन॰ए॰ हैपलोग्रुप pre-HV के नाम से जाना जाता था। मातृवंश समूह एचवी इसी से उत्पन्न हुई एक बड़ी उपशाखा है। मातृवंश समूह आर० अरबी प्रायद्वीप पर बहुत देखा जाता है, जहाँ के यमन राष्ट्र के सुक़तरा द्वीप के ५०,००० निवासियों में से ३८% इसके वंशज हैं।Viktor Cerny et al.

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मातृवंश समूह आई

मनुष्यों की आनुवंशिकी (यानि जॅनॅटिक्स) में मातृवंश समूह आई या माइटोकांड्रिया-डी॰एन॰ए॰ हैपलोग्रुप I एक मातृवंश समूह है। यह मातृवंश ३% से कम मात्राओं में भारतीय उपमहाद्वीप, मध्य पूर्व और यूरोप में मिलता है। इन इलाकों से बहार यह बहुत की कम मिलता है। मध्य और पूर्वी यूरोप में फैली कारपैथियन पर्वत श्रंखला के इलाकों में इसकी मात्रा ११% है जो की दुनिया में सब से अधिक है। स्कैन्डिनेवियाई देशों में पाए गए पुराने शवों से पता चला है के प्राचीनकाल में इस क्षेत्र में मातृवंश समूह आई के वंशजों की संख्या १३% थी जबकि इन्ही इलाकों में यह संख्या अब २.५% है - इतिहासकारों का अंदाज़ा है के इस का मतलब है के पिछले हज़ार वर्षों में इन इलाकों में बाहार के बहुत से लोग आकर बसे होंगे जो मातृवंश समूह आई के वंशज नहीं हैं। भारतीय उपमहाद्वीप में सिन्धी लोगों में इसकी संख्या ८% के आस-पास देखी गयी है। अनुमान लगाया जाता है के जिस स्त्री के साथ इस मातृवंश की शुरुआत हुई वह आज से लगभग २६,३०० साल पहले पश्चिमी एशिया की निवासी थी। ध्यान दें के कभी-कभी मातृवंशों और पितृवंशों के नाम मिलते-जुलते होते हैं (जैसे की पितृवंश समूह आई और मातृवंश समूह आई), लेकिन यह केवल एक इत्तेफ़ाक ही है - इनका आपस में कोई सम्बन्ध नहीं है। .

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मातृवंश समूह क्यु

नया गिनी के बहुत से लोग मातृवंश समूह सी के वंशज होते हैं मनुष्यों की आनुवंशिकी (यानि जॅनॅटिक्स) में मातृवंश समूह क्यु या माइटोकांड्रिया-डी॰एन॰ए॰ हैपलोग्रुप Q एक मातृवंश समूह है। यह मातृवंश दक्षिणी ओशिआनिया के लोगों में बहुत मिलता है। इसमें नया गिनी और मॅलानिशिया के वासी शामिल हैं और ऑस्ट्रेलिया के आदिवासी भी। नया गिनी के नज़दीक स्थित पूर्वी इण्डोनेशिया के इलाकों में भी यह काफ़ी तादाद में पाया जाता है। इस क्षेत्र से दूर-दराज़ इलाकों में, जैसे की पोलीनेशिया में, भी कुछ लोग इसके वंशज हैं लेकिन काफ़ी संख्या में। ध्यान दें के कभी-कभी मातृवंशों और पितृवंशों के नाम मिलते-जुलते होते हैं (जैसे की पितृवंश समूह क्यु और मातृवंश समूह क्यु), लेकिन यह केवल एक इत्तेफ़ाक ही है - इनका आपस में कोई सम्बन्ध नहीं है। .

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मातृवंश समूह के

सीरिया के द्रूज़ समुदाय के १६% लोग मातृवंश समूह के के वंशज होते हैं मनुष्यों की आनुवंशिकी (यानि जॅनॅटिक्स) में मातृवंश समूह के या माइटोकांड्रिया-डी॰एन॰ए॰ हैपलोग्रुप K एक मातृवंश समूह है। इस मातृवंश का फैलाव भारत, मध्य पूर्व, कॉकस, यूरोप और उत्तरी अफ़्रीका में है। सीरिया और लेबनान के द्रूज़ समुदाय के १६% लोग इसके वंशज हैं। यहूदी लोगों की अशकेनाज़ी शाखा के ३२% लोग इसके वंशज हैं। वैज्ञानिकों ने अंदाज़ा लगाया है के जिस स्त्री के साथ मातृवंश समूह के शुरू हुआ वह आज से लगभग १२,००० वर्ष पूर्व मध्य पूर्व में रहती थी। यह मानना है के इस मातृवंश की उत्पत्ति मातृवंश समूह यु की यु८ शाखा से हुई। .

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सर्वप्रथम मातृवंशी नारी

मनुष्यों की आनुवंशिकी (यानि जॅनॅटिक्स) में सर्वप्रथम मातृवंशी नारी या माइटोकांड्रियल ईव उस अज्ञात नारी को कहते हैं जो आज के विश्व में मौजूद सारे नारियों ओर पुरुषों की निकटतम सांझी पूर्वजा थी। दुनिया में जितने भी मनुष्य मातृवंश समूह हैं वे सभी इसी सर्वप्रथम मातृवंशी नारी की संतति की उपशाखाएँ हैं। वैज्ञानिक अनुमान लगाते हैं के यह नारी अफ़्रीका के महाद्वीप पर आज से २००,००० साल पहले रहा करता थी। यह ध्यान योग्य बात है के अनुसंधान से पता लगा है के आधुनिक मनुष्य जाती के पुरुषों के सर्वप्रथम पितृवंशी पुरुष (जो विश्व के सारे पुरुषों का निकटतम सांझा पूर्वज था) ने इस नारी से लगभग ५०,००० से ८०,००० साल बाद अपना जीवनकाल व्यतीत किया। .

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सूत्रकणिका

ई.आर (9) '''माइटोकांड्रिया''' (10) रसधानी (11) कोशिका द्रव (12) लाइसोसोम (13) तारककाय आक्सी श्वसन का क्रिया स्थल, माइटोकान्ड्रिया जीवाणु एवं नील हरित शैवाल को छोड़कर शेष सभी सजीव पादप एवं जंतु कोशिकाओं के कोशिकाद्रव्य में अनियमित रूप से बिखरे हुए द्वीप-एकक पर्दायुक्त कोशिकांगों (organelle) को सूत्रकणिका या माइटोकॉण्ड्रिया (Mitochondria) कहते हैं। कोशिका के अंदर सूक्ष्मदर्शी की सहायता से देखने में ये गोल, लम्बे या अण्डाकार दिखते हैं।। हिन्दुस्तान लाइव।२४अक्तूबर,२००९ माइटोकॉण्ड्रिया सभी प्राणियों में और उनकी हर प्रकार की कोशिकाओं में पाई जाती हैं। माइटोकाण्ड्रिआन या सूत्रकणिका कोशिका के कोशिकाद्रव्य में उपस्थित दोहरी झिल्ली से घिरा रहता है। माइटोकाण्ड्रिया के भीतर आनुवांशिक पदार्थ के रूप में डीएनए होता है जो वैज्ञानिकों के लिए आश्चर्य एवं खोज़ का विषय हैं। माइटोकाण्ड्रिया में उपस्थित डीएनए की रचना एवं आकार जीवाणुओं के डीएनए के समान है। इससे अनुमान लगाया जाता है कि लाखों वर्ष पहले शायद कोई जीवाणु मानव की किसी कोशिका में प्रवेश कर गया होगा एवं कालांतर में उसने कोशिका को ही स्थायी निवास बना लिया। माइटोकाण्ड्रिया के डीएनए एवं कोशिकाओं के केन्द्रक में विद्यमान डीएनए में ३५-३८ जीन एक समान हैं। अपने डीएनए की वज़ह से माइकोण्ड्रिया कोशिका के भीतर आवश्यकता पड़ने पर अपनी संख्या स्वयं बढ़ा सकते हैं। संतानो की कोशिकाओं में पाया जाने वाला माइटोकांड्रिया उन्हें उनकी माता से प्राप्त होता है। निषेचित अंडों के माइटोकाण्ड्रिया में पाया जाने वाले डीएनए में शुक्राणुओं की भूमिका नहीं होती। है।। चाणक्य।३१ अगस्त, २००९। भगवती लाल माली श्वसन की क्रिया प्रत्येक जीवित कोशिका के कोशिका द्रव्य (साइटोप्लाज्म) एवं माइटोकाण्ड्रिया में सम्पन्न होती है। श्वसन सम्बन्धित प्रारम्भिक क्रियाएँ साइटोप्लाज्म में होती है तथा शेष क्रियाएँ माइटोकाण्ड्रियाओं में होती हैं। चूँकि क्रिया के अंतिम चरण में ही अधिकांश ऊर्जा उत्पन्न होती हैं। इसलिए माइटोकाण्ड्रिया को कोशिका का श्वसनांग या 'शक्ति गृह' (पावर हाउस) कहा जाता है। जीव विज्ञान की प्रशाखा कोशिका विज्ञान या कोशिका जैविकी (साइटोलॉजी) इस विषय में विस्तार से वर्णन उपलब्ध कराती है। अमेरिका के शिकागो विश्वविद्यालय के डॉ॰ सिविया यच.

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वंश समूह

आण्विक क्रम-विकास के अध्ययन में वंश समूह या हैपलोग्रुप ऐसे जीन के समूह को कहतें हैं जिनसे यह ज्ञात होता है के उस समूह को धारण करने वाले सभी प्राणियों का एक ही पूर्वज था। .

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गुणसूत्र

गुण सूत्र का चित्र १ क्रोमेटिड २ सेन्ट्रोमियर ३ छोटी भुजा ४ लम्बी भुजा गुणसूत्र या क्रोमोज़ोम (Chromosome) सभी वनस्पतियों व प्राणियों की कोशिकाओं में पाये जाने वाले तंतु रूपी पिंड होते हैं, जो कि सभी आनुवांशिक गुणों को निर्धारित व संचारित करते हैं। प्रत्येक प्रजाति में गुणसूत्रों की संख्या निश्चित रहती हैं। मानव कोशिका में गुणसूत्रों की संख्या ४६ होती है जो २३ के जोड़े में होते है। इनमे से २२ गुणसूत्र नर और मादा में समान और अपने-अपने जोड़े के समजात होते है। इन्हें सम्मिलित रूप से समजात गुणसूत्र (Autosomes) कहते है। २३वें जोड़े के गुणसूत्र स्त्री और पुरूष में समान नहीं होते जिन्हे विषमजात गुणसूत्र (heterosomes) कहते है। .

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आनुवंशिकी

पैतृक गुणसूत्रों के पुनर्संयोजन के फलस्वरूप एक ही पीढी की संतानें भी भिन्न हो सकती हैं। आनुवंशिकी (जेनेटिक्स) जीव विज्ञान की वह शाखा है जिसके अंतर्गत आनुवंशिकता (हेरेडिटी) तथा जीवों की विभिन्नताओं (वैरिएशन) का अध्ययन किया जाता है। आनुवंशिकता के अध्ययन में ग्रेगर जॉन मेंडेल की मूलभूत उपलब्धियों को आजकल आनुवंशिकी के अंतर्गत समाहित कर लिया गया है। प्रत्येक सजीव प्राणी का निर्माण मूल रूप से कोशिकाओं द्वारा ही हुआ होता है। इन कोशिकाओं में कुछ गुणसूत्र (क्रोमोसोम) पाए जाते हैं। इनकी संख्या प्रत्येक जाति (स्पीशीज) में निश्चित होती है। इन गुणसूत्रों के अंदर माला की मोतियों की भाँति कुछ डी एन ए की रासायनिक इकाइयाँ पाई जाती हैं जिन्हें जीन कहते हैं। ये जीन गुणसूत्र के लक्षणों अथवा गुणों के प्रकट होने, कार्य करने और अर्जित करने के लिए जिम्मेवार होते हैं। इस विज्ञान का मूल उद्देश्य आनुवंशिकता के ढंगों (पैटर्न) का अध्ययन करना है अर्थात्‌ संतति अपने जनकों से किस प्रकार मिलती जुलती अथवा भिन्न होती है। .

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अंग्रेज़ी भाषा

अंग्रेज़ी भाषा (अंग्रेज़ी: English हिन्दी उच्चारण: इंग्लिश) हिन्द-यूरोपीय भाषा-परिवार में आती है और इस दृष्टि से हिंदी, उर्दू, फ़ारसी आदि के साथ इसका दूर का संबंध बनता है। ये इस परिवार की जर्मनिक शाखा में रखी जाती है। इसे दुनिया की सर्वप्रथम अन्तरराष्ट्रीय भाषा माना जाता है। ये दुनिया के कई देशों की मुख्य राजभाषा है और आज के दौर में कई देशों में (मुख्यतः भूतपूर्व ब्रिटिश उपनिवेशों में) विज्ञान, कम्प्यूटर, साहित्य, राजनीति और उच्च शिक्षा की भी मुख्य भाषा है। अंग्रेज़ी भाषा रोमन लिपि में लिखी जाती है। यह एक पश्चिम जर्मेनिक भाषा है जिसकी उत्पत्ति एंग्लो-सेक्सन इंग्लैंड में हुई थी। संयुक्त राज्य अमेरिका के 19 वीं शताब्दी के पूर्वार्ध और ब्रिटिश साम्राज्य के 18 वीं, 19 वीं और 20 वीं शताब्दी के सैन्य, वैज्ञानिक, राजनीतिक, आर्थिक और सांस्कृतिक प्रभाव के परिणाम स्वरूप यह दुनिया के कई भागों में सामान्य (बोलचाल की) भाषा बन गई है। कई अंतरराष्ट्रीय संगठनों और राष्ट्रमंडल देशों में बड़े पैमाने पर इसका इस्तेमाल एक द्वितीय भाषा और अधिकारिक भाषा के रूप में होता है। ऐतिहासिक दृष्टि से, अंग्रेजी भाषा की उत्पत्ति ५वीं शताब्दी की शुरुआत से इंग्लैंड में बसने वाले एंग्लो-सेक्सन लोगों द्वारा लायी गयी अनेक बोलियों, जिन्हें अब पुरानी अंग्रेजी कहा जाता है, से हुई है। वाइकिंग हमलावरों की प्राचीन नोर्स भाषा का अंग्रेजी भाषा पर गहरा प्रभाव पड़ा है। नॉर्मन विजय के बाद पुरानी अंग्रेजी का विकास मध्य अंग्रेजी के रूप में हुआ, इसके लिए नॉर्मन शब्दावली और वर्तनी के नियमों का भारी मात्र में उपयोग हुआ। वहां से आधुनिक अंग्रेजी का विकास हुआ और अभी भी इसमें अनेक भाषाओँ से विदेशी शब्दों को अपनाने और साथ ही साथ नए शब्दों को गढ़ने की प्रक्रिया निरंतर जारी है। एक बड़ी मात्र में अंग्रेजी के शब्दों, खासकर तकनीकी शब्दों, का गठन प्राचीन ग्रीक और लैटिन की जड़ों पर आधारित है। .

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