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मत्स्य पुराण

सूची मत्स्य पुराण

मत्स्य पुराण पुराण में भगवान श्रीहरि के मत्स्य अवतार की मुख्य कथा के साथ अनेक तीर्थ, व्रत, यज्ञ, दान आदि का विस्तृत वर्णन किया गया है। इसमें जल प्रलय, मत्स्य व मनु के संवाद, राजधर्म, तीर्थयात्रा, दान महात्म्य, प्रयाग महात्म्य, काशी महात्म्य, नर्मदा महात्म्य, मूर्ति निर्माण माहात्म्य एवं त्रिदेवों की महिमा आदि पर भी विशेष प्रकाश डाला गया है। चौदह हजार श्लोकों वाला यह पुराण भी एक प्राचीन ग्रंथ है। .

18 संबंधों: चन्द्रवंशी, देवयानी, नरसिंह, नर्मदा नदी, पुरुषार्थ, ब्रह्मा, मत्स्य अवतार, यदुवंश, ययाति, युग, राजधर्म, शिल्पशास्त्र, सरस्वती, सावित्री, सूर्यवंश, विष्णु, इलाहाबाद, कल्प

चन्द्रवंशी

चंद्रवंश एक प्रमुख प्राचीन भारतीय क्षत्रियकुल। आनुश्रुतिक साहित्य से ज्ञात होता है। कि आर्यों के प्रथम शासक (राजा) वैवस्वत मनु हुए। उनके नौ पुत्रों से सूर्यवंशी क्षत्रियों का प्रारंभ हुआ। मनु की एक कन्या भी थी - इला। उसका विवाह बुध से हुआ जो चंद्रमा का पुत्र था। उनसे पुरुरवस्‌ की उत्पत्ति हुई, जो ऐल कहलाया और चंद्रवंशियों का प्रथम शासक हुआ। उसकी राजधानी प्रतिष्ठान थी, जहाँ आज प्रयाग के निकट झूँसी बसी है। पुरुरवा के छ: पुत्रों में आयु और अमावसु अत्यंत प्रसिद्ध हुए। आयु प्रतिष्ठान का शासक हुआ और अमावसु ने कान्यकुब्ज में एक नए राजवंश की स्थापना की। कान्यकुब्ज के राजाओं में जह्वु प्रसिद्ध हुए जिनके नाम पर गंगा का नाम जाह्नवी पड़ा। आगे चलकर विश्वरथ अथवा विश्वामित्र भी प्रसिद्ध हुए, जो पौरोहित्य प्रतियोगिता में कोसल के पुरोहित वसिष्ठ के संघर्ष में आए।ततपश्चात वे तपस्वी हो गए तथा उन्होंने ब्रह्मर्षि की उपाधि प्राप्त की। आयु के बाद उसका जेठा पुत्र नहुष प्रतिष्ठान का शासक हुआ। उसके छोटे भाई क्षत्रवृद्ध ने काशी में एक राज्य की स्थापना की। नहुष के छह पुत्रों में यति और ययाति सर्वमुख्य हुए। यति संन्यासी हो गया और ययाति को राजगद्दी मिली। ययाति शक्तिशाली और विजेता सम्राट् हुआ तथा अनेक आनुश्रुतिक कथाओं का नायक भी। उसके पाँच पुत्र हुए - यदु, तुर्वसु, द्रुह्यु, अनु और पुरु। इन पाँचों ने अपने अपने वंश चलाए और उनके वंशजों ने दूर दूर तक विजय कीं। आगे चलकर ये ही वंश यादव, तुर्वसु, द्रुह्यु, आनव और पौरव कहलाए। ऋग्वेद में इन्हीं को पंचकृष्टय: कहा गया है। यादवों की एक शाखा हैहय नाम से प्रसिद्ध हुई और दक्षिणापथ में नर्मदा के किनारे जा बसी। माहिष्मती हैहयों की राजधानी थी और कार्तवीर्य अर्जुन उनका सर्वशक्तिमान्‌ और विजेता राजा हुआ। तुर्वसुके वंशजों ने पहले तो दक्षिण पूर्व के प्रदेशों को अधीनस्थ किया, परंतु बाद में वे पश्चिमोत्तर चले गए। द्रुह्युओं ने सिंध के किनारों पर कब्जा कर लिया और उनके राजा गांधार के नाम पर प्रदेश का नाम गांधार पड़ा। आनवों की एक शाखा पूर्वी पंजाब और दूसरी पूर्वी बिहार में बसी। पंजाब के आनव कुल में उशीनर और शिवि नामक प्रसिद्ध राजा हुए। पौरवों ने मध्यदेश में अनेक राज्य स्थापित किए और गंगा-यमुना-दोआब पर शासन करनेवाला दुष्यंत नामक राजा उनमें मुख्य हुआ। शकुंतला से उसे भरत नामक मेधावी पुत्र उत्पन्न हुआ। उसने दिग्विजय द्वारा एक विशाल साम्राज्य की स्थापना की और संभवत: देश को भारतवर्ष नाम दिया। चंद्रवंशियों की मूल राजधानी प्रतिष्ठान में, ययाति ने अपने छोटे लड़के पुरु को उसके व्यवहार से प्रसन्न होकर - कहा जाता है कि उसने अपने पिता की आज्ञा से उसके सुखोपभोग के लिये अपनी युवावस्था दे दी और उसका बुढ़ापा ले लिया - राज्य दे दिया। फिर अयोध्या के ऐक्ष्वाकुओं के दबाव के कारण प्रतिष्ठान के चंद्रवंशियों ने अपना राज्य खो दिया। परंतु रामचंद्र के युग के बाद पुन: उनके उत्कर्ष की बारी आई और एक बार फिर यादवों और पौरवों ने अपने पुराने गौरव के अनुरूप आगे बढ़ना शुरू कर दिया। मथुरा से द्वारका तक यदुकुल फैल गए और अंधक, वृष्णि, कुकुर और भोज उनमें मुख्य हुए। कृष्ण उनके सर्वप्रमुख प्रतिनिधि थे। बरार और उसके दक्षिण में भी उनकी शाखाएँ फैल गई। पांचाल में पौरवों का राजा सुदास अत्यंत प्रसिद्ध हुआ। उसकी बढ़ती हुई शक्ति से सशंक होकर पश्चिमोत्तर भारत के दस राजाओं ने एक संघ बनाया और परुष्णी (रावी) के किनारे उनका सुदास से युद्ध हुआ, जिसे दाशराज्ञ युद्ध कहते हैं और जो ऋग्वेद की प्रमुख कथाओं में एक का विषय है। किंतु विजय सुदास की ही हुई। थोड़े ही दिनों बाद पौरव वंश के ही राजा संवरण और उसके पुत्र कुरु का युग आया। कुरु के ही नाम से कुरु वंश प्रसिद्ध हुआ, उस के वंशज कौरव कहलाए और आगे चलकर दिल्ली के पास इंद्रप्रस्थ और हस्तिनापुर उनके दो प्रसिद्ध नगर हुए। कौरवों और पांडवों का विख्यात महाभारत युद्ध भारतीय इतिहास की विनाशकारी घटना सिद्ध हुआ। सारे भारतवर्ष के राजाओं ने उसमें भाग लिया। पांडवों की विजय तो हुई, परंतु वह नि:सार विजय थी। उस युद्ध का समय प्राय: 1400 ई.पू.

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देवयानी

ययाति के साथ खड़ी देवयानी, शर्मिष्ठा से प्रश्न करती हुई देवयानी शुक्राचार्य की पुत्री, जिसे अपने पिता के शिष्य कच से प्रेम हो गया था। कच बृहस्पति का पुत्र था जो शुक्राचार्य के पास संजीवनी विद्या सीखने के लिए आया था। जब उसने देवयानी का प्रेमप्रस्ताव अस्वीकृत कर दिया तो देवयानी ने उसे शाप दिया कि तुम्हारी विद्या तुम्हें फलवती न होगी। इसपर कच ने भी शाप दिया कि कोई भी ऋषिपुत्र तुम्हारा पाणिहग्रहण न करेगा। देवयानी और उसकी सखी शर्मिष्ठा की कथा प्रसिद्ध है। देवयानी के पति ययाति शर्मिष्ठा से प्रेम करने लगे जिससे वह अपने पिता शुक्राचार्य के पास लौट गई। ययाति की वृद्धत्व का शाप मिला जिसे (शर्मिष्ठा से उत्पन्न) उनके एक पुत्र पुरु ने स्वयं स्वीकार किया। श्रेणी:पौराणिक पात्र.

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नरसिंह

प्रहलाद एवं उसकी माता '''नरसिंहावतार''' को हिरण्यकश्यप के वध के समय नमन करते हुए नरसिंह नर + सिंह ("मानव-सिंह") को पुराणों में भगवान विष्णु का अवतार माना गया है। जो आधे मानव एवं आधे सिंह के रूप में प्रकट होते हैं, जिनका सिर एवं धड तो मानव का था लेकिन चेहरा एवं पंजे सिंह की तरह थे वे भारत में, खासकर दक्षिण भारत में वैष्णव संप्रदाय के लोगों द्वारा एक देवता के रूप में पूजे जाते हैं जो विपत्ति के समय अपने भक्तों की रक्षा के लिए प्रकट होते हैं। .

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नर्मदा नदी

'''नर्मदा''' और भारत की अन्य नदियाँ नर्मदा नदी का प्रवाह क्षेत्र नर्मदा, जिसे रेवा के नाम से भी जाना जाता है, मध्य भारत की एक नदी और भारतीय उपमहाद्वीप की पांचवीं सबसे लंबी नदी है। यह गोदावरी नदी और कृष्णा नदी के बाद भारत के अंदर बहने वाली तीसरी सबसे लंबी नदी है। मध्य प्रदेश राज्य में इसके विशाल योगदान के कारण इसे "मध्य प्रदेश की जीवन रेखा" भी कहा जाता है। यह उत्तर और दक्षिण भारत के बीच एक पारंपरिक सीमा की तरह कार्य करती है। यह अपने उद्गम से पश्चिम की ओर 1,221 किमी (815.2 मील) चल कर खंभात की खाड़ी, अरब सागर में जा मिलती है। नर्मदा मध्य भारत के मध्य प्रदेश और गुजरात राज्य में बहने वाली एक प्रमुख नदी है। महाकाल पर्वत के अमरकण्टक शिखर से नर्मदा नदी की उत्पत्ति हुई है। इसकी लम्बाई प्रायः 1310 किलोमीटर है। यह नदी पश्चिम की तरफ जाकर खम्बात की खाड़ी में गिरती है। इस नदी के किनारे बसा शहर जबलपुर उल्लेखनीय है। इस नदी के मुहाने पर डेल्टा नहीं है। जबलपुर के निकट भेड़ाघाट का नर्मदा जलप्रपात काफी प्रसिद्ध है। इस नदी के किनारे अमरकंटक, नेमावर, गुरुकृपा आश्रम झीकोली, शुक्लतीर्थ आदि प्रसिद्ध तीर्थस्थान हैं जहाँ काफी दूर-दूर से यात्री आते रहते हैं। नर्मदा नदी को ही उत्तरी और दक्षिणी भारत की सीमारेखा माना जाता है। .

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पुरुषार्थ

हिन्दू धर्म में पुरुषार्थ से तात्पर्य मानव के लक्ष्य या उद्देश्य से है ('पुरुषैर्थ्यते इति पुरुषार्थः')। पुरुषार्थ .

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ब्रह्मा

ब्रह्मा  सनातन धर्म के अनुसार सृजन के देव हैं। हिन्दू दर्शनशास्त्रों में ३ प्रमुख देव बताये गये है जिसमें ब्रह्मा सृष्टि के सर्जक, विष्णु पालक और महेश विलय करने वाले देवता हैं। व्यासलिखित पुराणों में ब्रह्मा का वर्णन किया गया है कि उनके चार मुख हैं, जो चार दिशाओं में देखते हैं।Bruce Sullivan (1999), Seer of the Fifth Veda: Kr̥ṣṇa Dvaipāyana Vyāsa in the Mahābhārata, Motilal Banarsidass, ISBN 978-8120816763, pages 85-86 ब्रह्मा को स्वयंभू (स्वयं जन्म लेने वाला) और चार वेदों का निर्माता भी कहा जाता है।Barbara Holdrege (2012), Veda and Torah: Transcending the Textuality of Scripture, State University of New York Press, ISBN 978-1438406954, pages 88-89 हिन्दू विश्वास के अनुसार हर वेद ब्रह्मा के एक मुँह से निकला था। ज्ञान, विद्या, कला और संगीत की देवी सरस्वती ब्रह्मा की पत्नी हैं। बहुत से पुराणों में ब्रह्मा की रचनात्मक गतिविधि उनसे बड़े किसी देव की मौजूदगी और शक्ति पर निर्भर करती है। ये हिन्दू दर्शनशास्त्र की परम सत्य की आध्यात्मिक संकल्पना ब्रह्मन् से अलग हैं।James Lochtefeld, Brahman, The Illustrated Encyclopedia of Hinduism, Vol.

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मत्स्य अवतार

मत्स्यावतार Matsyavatar भगवान विष्णु का अवतार है जो उनके दस अवतारों में से एक है। विष्णु को पालनकर्ता कहा जाता है अत: वह ब्रह्मांड की रक्षा हेतु विविध अवतार धरते हैं। .

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यदुवंश

यदुवंश अथवा यदुवंशी क्षत्रिय शब्द भारत के उस जन-समुदाय के लिए प्रयुक्त होता है जो स्वयं को प्राचीन राजा यदु का वंशज बताते हैं। तिजारा के खानजादा मुस्लिम भी अपनी उत्पत्ति यदुवंशी यादव से बताते हैं। मैसूर साम्राज्य के हिन्दू राजवंश को भी यादव कुल का वंशज बताया गया है। चूड़ासम राजपूतों को भी विभिन्न ऐतिहासिक स्रोतों मे मूल रूप से सिंध प्रांत का आभीर, या सिंध का यादव माना गया है, जो कि 9वीं शताब्दी में गुजरात में आए थे। भारतीय मानव वैज्ञानिक के अनुसार माधुरीपुत्र, ईश्वरसेन व शिवदत्त नामक विख्यात अहीर राजा यदुवंशी है अहीर यादव सब यदुवंशी है .

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ययाति

ययाति, चन्द्रवंशी वंश के राजा नहुष के छः पुत्रों याति, ययाति, सयाति, अयाति, वियाति तथा कृति में से एक थे। याति राज्य, अर्थ आदि से विरक्त रहते थे इसलिये राजा नहुष ने अपने द्वितीय पुत्र ययाति का राज्यभिषके करवा दिया। ययाति का विवाह शुक्राचार्य की पुत्री देवयानी के साथ हुआ। देवयानी के साथ उनकी सखी शर्मिष्ठा भी ययाति के भवन में रहने लगे। ययाति ने शुक्राचार्य से प्रतिज्ञा की थी की वे देवयानी भिन्न किसी ओर नारी से शारीरिक सम्बन्ध नहीं बनाएंगे। एकबार शर्मिष्ठा ने कामुक होकर ययाति को मैथुन प्रस्ताव दिया। शर्मिष्ठा की सौंदर्य से मोहित ययाति ने उसका सम्भोग किया। इस तरह देवयानी से छुपाकर शर्मिष्ठा एबं ययाति ने तीन वर्ष बीता दिए। उनके गर्भ से तीन पुत्रलाभ करने के बाद जब देवयानी को यह पता चला तो उसने शुक्र को सब बता दिया। शुक्र ने ययाति को वचनभंग के कारण शुक्रहीन बृद्ध होनेका श्राप दिया। ययाति की दो पत्नियाँ थीं। शर्मिष्ठा के तीन और देवयानी के दो पुत्र हुए। ययाति ने अपनी वृद्धावस्था अपने पुत्रों को देकर उनका यौवन प्राप्त करना चाहा, पर पुरू को छोड़कर और कोई पुत्र इस पर सहमत नहीं हुआ। पुत्रों में पुरू सबसे छोटा था, पर पिता ने इसी को राज्य का उत्तराधिकारी बनाया और स्वयं एक सहस्र वर्ष तक युवा रहकर शारीरिक सुख भोगते रहे। तदनंतर पुरू को बुलाकर ययाति ने कहा - 'इतने दिनों तक सुख भोगने पर भी मुझे तृप्ति नहीं हुई। तुम अपना यौवन लो, मैं अब वाणप्रस्थ आश्रम में रहकर तपस्या करूँगा।' फिर घोर तपस्या करके ययाति स्वर्ग पहुँचे, परंतु थोड़े ही दिनों बाद इंद्र के शाप से स्वर्गभ्रष्ट हो गए (महाभारत, आदिपर्व, ८१-८८)। अंतरिक्ष पथ से पृथ्वी को लौटते समय इन्हें अपने दौहित्र, अष्ट, शिवि आदि मिले और इनकी विपत्ति देखकर सभी ने अपने अपने पुण्य के बल से इन्हें फिर स्वर्ग लौटा दिया। इन लोगों की सहायता से ही ययाति को अंत में मुक्ति प्राप्त हुई। .

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युग

युग, हिंदु सभ्यता के अनुसार, एक निर्धारित संख्या के वर्षों की कालावधि है। ब्रम्हांड का काल चक्र चार युगों के बाद दोहराता है। हिन्दू ब्रह्माण्ड विज्ञान से हमे यह पता चलता है की हर ४.१-८.२ अरब सालों बाद ब्रम्हांड में जीवन एक बार निर्माण एवं नष्ट होता है। इस कालावधि को हम ब्रह्मा का एक पूरा दिन (रात और दिन मिलाकर) भी मानते है। ब्रह्मा का जीवनकाल ४० अरब से ३११० अरब वर्षों के बीच होता है। काल के अंगविशेष के रूप में 'युग' शब्द का प्रयोग ऋग्वेद से ही मिलता है (दश युगे, ऋग्0 1.158.6) इस युग शब्द का परिमाण अस्पष्ट है। ज्यौतिष-पुराणादि में युग के परिमाण एवं युगधर्म आदि की सुविशद चर्चा मिलती है। वेदांग ज्योतिष में युग का विवरण है (1,5 श्लोक)। यह युग पंचसंवत्सरात्मक है। कौटिल्य ने भी इस पंचवत्सरात्मक युग का उल्लेख किया है। महाभारत में भी यह युग स्मृत हुआ है। पर यह युग पारिभाषिक है, अर्थात् शास्त्रकारों ने शास्त्रीय व्यवहारसिद्धि के लिये इस युग की कल्पना की है। .

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राजधर्म

राजधर्म राजधर्म का अर्थ है - 'राजा का धर्म' या 'राजा का कर्तव्य'। राजवर्ग को देश का संचालन कैसे करना है, इस विद्या का नाम ही 'राजधर्म' है। राजधर्म की शिक्षा के मूल वेद हैं। मनुस्मृति, शुक्रनीति, महाभारत के विदुर प्रजागर तथा शान्तिपर्व तथा चाणक्य द्वारा रचित प्रसिद्ध ग्रन्थ अर्थशास्त्र आदि में भी राजधर्म की बहुत सी व्याख्या है। स्वामी दयानन्द सरस्वती ने भी सत्यार्थ प्रकाश में एक पूरा समुल्लास राजधर्म पर लिखा है। महाभारत में इसी नाम का एक उपपर्व है जिसमें राजधर्म का विस्तृत विवेचन किया गया है। धर्मसूत्रों में भी राजधर्म का विवेचन किया गया है। .

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शिल्पशास्त्र

शिल्पशास्त्र वे प्राचीन हिन्दू ग्रन्थ हैं जिनमें विविध प्रकार की कलाओं तथा हस्तशिल्पों की डिजाइन और सिद्धान्त का विवेचन किया गया है। इस प्रकार की चौसठ कलाओं का उल्लेख मिलता है जिन्हे 'बाह्य-कला' कहते हैं। इनमें काष्ठकारी, स्थापत्य कला, आभूषण कला, नाट्यकला, संगीत, वैद्यक, नृत्य, काव्यशास्त्र आदि हैं। इनके अलावा चौसठ अभ्यन्तर कलाओं का भी उल्लेख मिलता है जो मुख्यतः 'काम' से सम्बन्धित हैं, जैसे चुम्बन, आलिंगन आदि। यद्यपि सभी विषय आपस में सम्बन्धित हैं किन्तु शिल्पशास्त्र में मुख्यतः मूर्तिकला और वास्तुशास्त्र में भवन, दुर्ग, मन्दिर, आवास आदि के निर्माण का वर्णन है। .

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सरस्वती

कोई विवरण नहीं।

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सावित्री

कोई विवरण नहीं।

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सूर्यवंश

सूर्यवंश,अर्कवंश पुराणों के अनुसार एक प्राचीन भारतीय वंश है जिसकी उत्पत्ति सूर्य देव से मानी गयी है। ये ब्राह्मण एवं राजपूत होते हें। इसी वंश परम्परा में से जैन एवं बुद्ध (बौद्ध) पंथ का प्रर्दुभाव हुआ है। .

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विष्णु

वैदिक समय से ही विष्णु सम्पूर्ण विश्व की सर्वोच्च शक्ति तथा नियन्ता के रूप में मान्य रहे हैं। हिन्दू धर्म के आधारभूत ग्रन्थों में बहुमान्य पुराणानुसार विष्णु परमेश्वर के तीन मुख्य रूपों में से एक रूप हैं। पुराणों में त्रिमूर्ति विष्णु को विश्व का पालनहार कहा गया है। त्रिमूर्ति के अन्य दो रूप ब्रह्मा और शिव को माना जाता है। ब्रह्मा को जहाँ विश्व का सृजन करने वाला माना जाता है, वहीं शिव को संहारक माना गया है। मूलतः विष्णु और शिव तथा ब्रह्मा भी एक ही हैं यह मान्यता भी बहुशः स्वीकृत रही है। न्याय को प्रश्रय, अन्याय के विनाश तथा जीव (मानव) को परिस्थिति के अनुसार उचित मार्ग-ग्रहण के निर्देश हेतु विभिन्न रूपों में अवतार ग्रहण करनेवाले के रूप में विष्णु मान्य रहे हैं। पुराणानुसार विष्णु की पत्नी लक्ष्मी हैं। कामदेव विष्णु जी का पुत्र था। विष्णु का निवास क्षीर सागर है। उनका शयन शेषनाग के ऊपर है। उनकी नाभि से कमल उत्पन्न होता है जिसमें ब्रह्मा जी स्थित हैं। वह अपने नीचे वाले बाएँ हाथ में पद्म (कमल), अपने नीचे वाले दाहिने हाथ में गदा (कौमोदकी),ऊपर वाले बाएँ हाथ में शंख (पाञ्चजन्य) और अपने ऊपर वाले दाहिने हाथ में चक्र(सुदर्शन) धारण करते हैं। शेष शय्या पर आसीन विष्णु, लक्ष्मी व ब्रह्मा के साथ, छंब पहाड़ी शैली के एक लघुचित्र में। .

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इलाहाबाद

इलाहाबाद उत्तर भारत के उत्तर प्रदेश के पूर्वी भाग में स्थित एक नगर एवं इलाहाबाद जिले का प्रशासनिक मुख्यालय है। इसका प्राचीन नाम प्रयाग है। इसे 'तीर्थराज' (तीर्थों का राजा) भी कहते हैं। इलाहाबाद भारत का दूसरा प्राचीनतम बसा नगर है। हिन्दू मान्यता अनुसार, यहां सृष्टिकर्ता ब्रह्मा ने सृष्टि कार्य पूर्ण होने के बाद प्रथम यज्ञ किया था। इसी प्रथम यज्ञ के प्र और याग अर्थात यज्ञ से मिलकर प्रयाग बना और उस स्थान का नाम प्रयाग पड़ा जहाँ भगवान श्री ब्रम्हा जी ने सृष्टि का सबसे पहला यज्ञ सम्पन्न किया था। इस पावन नगरी के अधिष्ठाता भगवान श्री विष्णु स्वयं हैं और वे यहाँ माधव रूप में विराजमान हैं। भगवान के यहाँ बारह स्वरूप विध्यमान हैं। जिन्हें द्वादश माधव कहा जाता है। सबसे बड़े हिन्दू सम्मेलन महाकुंभ की चार स्थलियों में से एक है, शेष तीन हरिद्वार, उज्जैन एवं नासिक हैं। हिन्दू धर्मग्रन्थों में वर्णित प्रयाग स्थल पवित्रतम नदी गंगा और यमुना के संगम पर स्थित है। यहीं सरस्वती नदी गुप्त रूप से संगम में मिलती है, अतः ये त्रिवेणी संगम कहलाता है, जहां प्रत्येक बारह वर्ष में कुंभ मेला लगता है। इलाहाबाद में कई महत्त्वपूर्ण राज्य सरकार के कार्यालय स्थित हैं, जैसे इलाहाबाद उच्च न्यायालय, प्रधान महालेखाधिकारी (एजी ऑफ़िस), उत्तर प्रदेश राज्य लोक सेवा आयोग (पी.एस.सी), राज्य पुलिस मुख्यालय, उत्तर मध्य रेलवे मुख्यालय, केन्द्रीय माध्यमिक शिक्षा बोर्ड का क्षेत्रीय कार्यालय एवं उत्तर प्रदेश माध्यमिक शिक्षा परिषद कार्यालय। भारत सरकार द्वारा इलाहाबाद को जवाहर लाल नेहरू राष्ट्रीय शहरी नवीकरण योजना के लिये मिशन शहर के रूप में चुना गया है। .

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कल्प

हिन्दू समय इकाइयां कल्प हिन्दू समय चक्र की बहुत लम्बी मापन इकाई है। मानव वर्ष गणित के अनुसार ३६० दिन का एक दिव्य अहोरात्र होता है। इसी हिसाब से दिव्य १२००० वर्ष का एक चतुर्युगी होता है। ७१ चतुर्युगी का एक मन्वन्तर होता है और १४ मन्वन्तर/ १०००चतुरयुगी का एक कल्प होता है। यह शब्द का अति प्राचीन वैदिक हिन्दू ग्रन्थों में उल्लेख मिलता है। यह बौद्ध ग्रन्थों में भी मिलता है, हालाँकि बहुत बाद के काल में, वह भी हिन्दू पाठ से लिया हुआ ही है। यहाँ यह उल्लेखनीय है कि बुद्ध एक हिन्दू परिवार में जन्में लोग हिन्दू ही थे। .

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यहां पुनर्निर्देश करता है:

मत्स्यपुराण, मत्स्यपुराणम्, म्त्स्य पुराण

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