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मनसा राम

सूची मनसा राम

श्री मनसा राम सन १७३७ से १७४० तक काशी राज्य के नरेश रहे। मनसा राम काशी नरेश राजा बलवंत सिंह के पिता थे जिनका जन्म बनारस के गंगापुर गांव में हुआ था। जमींदार मनसा राम बनारस,जौनपुर और मिर्जापुर के आमिल बनने से पहले अवध के नवाब सफदरजंग के मातहत थे लेकिन राजस्व प्रबंधन के अपने काम-काज के चलते वो अपने पुत्र बलवंत सिंह को काशी नरेश का खिताब दिलवाने में कामयाब रहे। इस खिताब पर बाद में दिल्ली के मुगल बादशाह ने भी मुहर लगा दी। .

9 संबंधों: मिर्ज़ापुर, मुग़ल शासकों की सूची, राजा बलवंत सिंह, सफदरजंग, जौनपुर, वाराणसी, काशी का इतिहास, १७३७, १७४०

मिर्ज़ापुर

मिर्ज़ापुर भारत के उत्तर प्रदेश राज्य का शहर है। यह मिर्ज़ापुर जिला का मुख्यालय है। पर्यटन की दृष्टि से मिर्जापुर काफी महत्वपूर्ण जिला माना जाता है। यहां की प्राकृतिक सुंदरता और धार्मिक वातावरण बरबस लोगों का ध्यान अपनी ओर खींचती है। मिर्जापुर स्थित विन्ध्याचल धाम भारत के प्रमुख हिन्दू तीर्थ स्थलों में से एक है। इसके अतिरिक्त, यह जिला में सीता कुण्ड, लाल भैरव मंदिर, मोती तालाब, टंडा जलप्रपात, विन्धाम झरना, तारकेश्‍वर महादेव, महा त्रिकोण, शिव पुर, चुनार किला, गुरूद्वारा गुरू दा बाघ और रामेश्‍वर आदि के लिए प्रसिद्ध है। मिर्जापुर वाराणसी जिले के उत्तर, सोनभद्र जिले के दक्षिण और इलाहाबाद जिले के पश्चिम से घिरा हुआ है। भारत का अंतराष्ट्रीय मानक समय इलाहाबाद जिले के नैनी के स्थान से लिया गया है मिर्जापुर "लालस्टोन" के लिये बहुत विख्यात है प्राचीन समय में इस स्टोन का मौर्य वन्श के राजा सम्राट् अशोक के द्वारा बौद्ध स्तुप को एवं अशोक स्तम्भ(वर्तमान में भारत का राष्ट्रीय चिन्ह) को बनाने में किया था मिर्जापुर के लोगों की भाषा हिन्दी एवं भोजपुरी है .

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मुग़ल शासकों की सूची

मुग़ल सम्राटों की सूची कुछ इस प्रकार है।.

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राजा बलवंत सिंह

श्री बलवंत सिंह सन १७४० से १७७० तक काशी राज्य के नरेश रहे। मनसाराम ने भवनों के क्षीण होते साम्राज्य के अन्तिम काल में जान-माल लूट लेने वाले क्रूर दस्युओं से अपनी राजनीतिक सूझबूझ एवं रण-कौशल द्वारा प्रजा की सुरक्षा की और इन अराजक तत्वों की गतिविधियों पर पूर्ण अंकुश लगाकर छिन्न-भिन्न शासन को सुदृढ़ करते हुए नवी राजवंश की स्थापना का श्रेय प्राप्त किया। मनसाराम की नन्दकुमारी नायक पत्नी से बलवन्त मिंह (बरिबन्ड सिंह) का जन्म हुआ, जिन्होंने अपनी शूरवीरता से जीते हुए भूखण्डों का पिता से भी अधिक विस्तार करते हुए गंगापुर से हटकर रामनगर को अपनी राजधानी बनाया और मन् १७४० ई. के आस-पास एक विशआल दुर्ग का निर्माण कराया। दुर्ग में पश्चिम ओर शिव मंदिर का निर्माण करा कर उसमें शिव लिंग की स्थापना की और सुयोग्य सन्तान होने की प्रतिष्ठा प्राप्त की। इस मंदिर के द्वार पर अंकित श्लोकों से महाराज की वंश परम्परा तथआ शासन क्षेत्र का संकेत मिलता है। काशी नरेश पुस्तकालय में उपलब्ध उर्दू ग्रन्थ, 'बलवन्त नामा' से राजा बलवन्त सिंह का जीवन-परिचय एवं शासनकाल का विस्तृत विवरण प्राप्त होता है। आपके दरबार के फलित ज्योतिष के प्रकाण्ड विद्वान पं॰ परमानन्द पाठक ने रामनगर दुर्ग के मुहूर्त-शोधन का कार्य सम्पन्न कराया था। फलित ज्योतिष के उत्कृष्ट ग्रन्थ 'प्रथ्नमाणिक्य-माला' के रचयिता पं॰ परमानन्द पाठक ही थे। महाराजा बलवन्त सिंह शौर्य सम्पन्न शासक के साथ-साथ धर्मनिष्ठ, संस्कृत्यनुरागी राजपुरुष थे। आपकी गुण-ग्राहकता से राज दरबार में सरस्वती, पुत्रों के पूर्ण आदर एवं सम्मान प्राप्त था, जिससे पं॰ परमानन्द पाठक एवं अनेक कवि तथा विद्वानों में सुप्रसिद्ध कवि रघुनाथ इत्यादि आपके दरबार में सुप्रसिद्ध कवि रघुनाथ इत्यादि आपके दरबार की शोभा बढ़ाते थे, जिनके द्वारा रचित 'काव्यकलाधर', 'रसिक मोहन', 'इश्क महोत्सव' आदि कृतियों की ठा.

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सफदरजंग

सफ़दरजंग दिल्ली के अंतिम मुगल बादशाह मुहम्मद शाह (1719-1748) का प्रधान मंत्री था। चित्र दीर्घा चित्र:Safdarjung (1).jpg|सफदरजंग File:Tomb of Safdarjung, New Delhi.jpg| सफ़दरजंग की कब्र File:Tomb of Safdarjung, New Delhi..JPG| सफ़दरजंग का मकबरा, नई दिल्ली .

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जौनपुर

जौनपुर भारत के उत्तर प्रदेश राज्य का एक प्रमुख ऐतिहासिक शहर है। मध्यकालीन भारत में शर्की शासकों की राजधानी रहा जौनपुर वाराणसी से 58 किलोमीटर और इलाहाबाद से 100 किलोमीटर दूर उत्तर दिशा में गोमती नदी के तट पर बसा है। मध्यकालीन भारत में जौनपुर सल्तनत (1394 और 1479 के बीच) उत्तरी भारत का एक स्वतंत्र राज्य था I वर्तमान राज्य उत्तर प्रदेश जौनपुर सल्तनत के अंतर्गत आता था, जिसपर शर्की शासक जौनपुर से शासन करते थे I .

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वाराणसी

वाराणसी (अंग्रेज़ी: Vārāṇasī) भारत के उत्तर प्रदेश राज्य का प्रसिद्ध नगर है। इसे 'बनारस' और 'काशी' भी कहते हैं। इसे हिन्दू धर्म में सर्वाधिक पवित्र नगरों में से एक माना जाता है और इसे अविमुक्त क्षेत्र कहा जाता है। इसके अलावा बौद्ध एवं जैन धर्म में भी इसे पवित्र माना जाता है। यह संसार के प्राचीनतम बसे शहरों में से एक और भारत का प्राचीनतम बसा शहर है। काशी नरेश (काशी के महाराजा) वाराणसी शहर के मुख्य सांस्कृतिक संरक्षक एवं सभी धार्मिक क्रिया-कलापों के अभिन्न अंग हैं। वाराणसी की संस्कृति का गंगा नदी एवं इसके धार्मिक महत्त्व से अटूट रिश्ता है। ये शहर सहस्रों वर्षों से भारत का, विशेषकर उत्तर भारत का सांस्कृतिक एवं धार्मिक केन्द्र रहा है। हिन्दुस्तानी शास्त्रीय संगीत का बनारस घराना वाराणसी में ही जन्मा एवं विकसित हुआ है। भारत के कई दार्शनिक, कवि, लेखक, संगीतज्ञ वाराणसी में रहे हैं, जिनमें कबीर, वल्लभाचार्य, रविदास, स्वामी रामानंद, त्रैलंग स्वामी, शिवानन्द गोस्वामी, मुंशी प्रेमचंद, जयशंकर प्रसाद, आचार्य रामचंद्र शुक्ल, पंडित रवि शंकर, गिरिजा देवी, पंडित हरि प्रसाद चौरसिया एवं उस्ताद बिस्मिल्लाह खां आदि कुछ हैं। गोस्वामी तुलसीदास ने हिन्दू धर्म का परम-पूज्य ग्रंथ रामचरितमानस यहीं लिखा था और गौतम बुद्ध ने अपना प्रथम प्रवचन यहीं निकट ही सारनाथ में दिया था। वाराणसी में चार बड़े विश्वविद्यालय स्थित हैं: बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय, महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ, सेंट्रल इंस्टीट्यूट ऑफ हाइयर टिबेटियन स्टडीज़ और संपूर्णानन्द संस्कृत विश्वविद्यालय। यहां के निवासी मुख्यतः काशिका भोजपुरी बोलते हैं, जो हिन्दी की ही एक बोली है। वाराणसी को प्रायः 'मंदिरों का शहर', 'भारत की धार्मिक राजधानी', 'भगवान शिव की नगरी', 'दीपों का शहर', 'ज्ञान नगरी' आदि विशेषणों से संबोधित किया जाता है। प्रसिद्ध अमरीकी लेखक मार्क ट्वेन लिखते हैं: "बनारस इतिहास से भी पुरातन है, परंपराओं से पुराना है, किंवदंतियों (लीजेन्ड्स) से भी प्राचीन है और जब इन सबको एकत्र कर दें, तो उस संग्रह से भी दोगुना प्राचीन है।" .

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काशी का इतिहास

वाराणसी (बनारस), १९२२ ई गंगा तट पर बसी काशी बड़ी पुरानी नगरी है। इतने प्राचीन नगर संसार में बहुत नहीं हैं। हजारों वर्ष पूर्व कुछ नाटे कद के साँवले लोगों ने इस नगर की नींव डाली थी। तभी यहाँ कपड़े और चाँदी का व्यापार शुरू हुआ। कुछ समय उपरांत पश्चिम से आये ऊँचे कद के गोरे लोगों ने उनकी नगरी छीन ली। ये बड़े लड़ाकू थे, उनके घर-द्वार न थे, न ही अचल संपत्ति थी। वे अपने को आर्य यानि श्रेष्ठ व महान कहते थे। आर्यों की अपनी जातियाँ थीं, अपने कुल घराने थे। उनका एक राजघराना तब काशी में भी आ जमा। काशी के पास ही अयोध्या में भी तभी उनका राजकुल बसा। उसे राजा इक्ष्वाकु का कुल कहते थे, यानि सूर्यवंश। काशी में चन्द्र वंश की स्थापना हुई। सैकड़ों वर्ष काशी नगर पर भरत राजकुल के चन्द्रवंशी राजा राज करते रहे। काशी तब आर्यों के पूर्वी नगरों में से थी, पूर्व में उनके राज की सीमा। उससे परे पूर्व का देश अपवित्र माना जाता था।Chandravanshee .

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१७३७

1737 ग्रेगोरी कैलंडर का एक साधारण वर्ष है। .

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१७४०

1740 ग्रेगोरी कैलंडर का एक अधिवर्ष है। .

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यहां पुनर्निर्देश करता है:

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