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भूस्थिर उपग्रह प्रक्षेपण यान संस्करण 3

सूची भूस्थिर उपग्रह प्रक्षेपण यान संस्करण 3

भूस्थिर उपग्रह प्रक्षेपण यान संस्करण 3 (Geosynchronous Satellite Launch Vehicle mark 3, or GSLV Mk3, जियोसिंक्रोनस सैटेलाइट लाँच वहीकल मार्क 3, या जीएसएलवी मार्क 3, या जीएसएलवी-3), जिसे लॉन्च वाहन मार्क 3 (LVM 3) भी कहा जाता है, भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) द्वारा विकसित एक प्रक्षेपण वाहन (लॉन्च व्हीकल) है। इसे भू-स्थिर कक्षा (जियो-स्टेशनरी ऑर्बिट) में उपग्रहों और भारतीय अंतरिक्ष यात्रियों को प्रक्षेपित करने के लिये विकसित किया गया है। जीएसएलवी-III में एक भारतीय तुषारजनिक (क्रायोजेनिक) रॉकेट इंजन की तीसरे चरण की भी सुविधा के अलावा वर्तमान भूस्थिर उपग्रह प्रक्षेपण यान की तुलना में अधिक पेलोड (भार) ले जाने क्षमता भी है। | फ्रंटलाइन| ७ फरवरी २०१४ .

21 संबंधों: टाइटन 3सी, एच-2ए, द हिन्दू, ध्रुवीय उपग्रह प्रमोचन वाहन, निम्नतापिकी, निम्नतापी रॉकेट इंजन, भारतीय मानव अंतरिक्ष उड़ान कार्यक्रम, भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन, भूस्थिर कक्षा, भूस्थिर उपग्रह प्रक्षेपण यान, भूस्थिर उपग्रह प्रक्षेपण यान संस्करण 3 डी1, लांग मार्च-3बी, सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र, सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र द्वितीय लांच पैड, सेमी क्रायोजेनिक इंजन-200, जीसैट-19, जीसैट-20, जीसैट-29, क्रायोजेनिक इंजन-20, क्रायोजेनिक इंजन-7.5, क्रू मॉड्यूल वायुमंडलीय पुनः प्रवेश प्रयोग

टाइटन 3सी

श्रेणी:नासा के अंतरिक्ष प्रक्षेपण रॉकेट‎.

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एच-2ए

एच-२ए १९ की उड़ान एच-२ए रॉकेट लाइन मे एच-२ए एच-२ए (H2A) मित्सुबिशी हेवी इंडस्ट्रीज (MHI) के लिए जापान एयरोस्पेस एक्सप्लोरेशन एजेंसी द्वारा संचालित एक सक्रिय उपभोजित प्रक्षेपण प्रणाली है। तरल ईंधन एच-२ए रॉकेट का इस्तेमाल उपग्रहों को भू-स्थिर कक्षा, चंद्र परिक्रमा अंतरिक्ष यान में लांच में किया गया जाता है। एच-२ए ने पहली उड़ान 2001 में भरी। और फरवरी, 2016 तक यह 30 बार उड़ान भर चुका है। श्रेणी:जापान के अंतरिक्ष प्रक्षेपण रॉकेट.

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द हिन्दू

द हिन्दू (द हिन्दू) भारत में प्रकाशित होने वाला एक दैनिक अंग्रेज़ी समाचार पत्र है। इसका मुख्यालय चेन्नई में है और इसका साप्ताहिक पत्रिका के रूप में प्रकाशन वर्ष 1878 में आरम्भ हुआ। यह दैनिक के रूप में वर्ष 1889 में आरम्भ हुआ। यह भारत के शीर्ष दैनिक अंग्रेज़ी समाचार पत्रों में से एक है। भारतीय पाठक सर्वेक्षण के 2014 के अनुसार यह भारत में पढ़े जाने वाले अंग्रेज़ी समाचार पत्रों में तीसरे स्थान पर है। पहले दो स्थानों पर द टाइम्स ऑफ़ इंडिया और हिन्दुस्तान टाइम्स पाये गये। द हिन्दू मुख्य रूप से दक्षिण भारत में पढ़ा जाता है और केरल एवं तमिलनाडु में सबसे ज्यादा पढ़ा जाने वाला अंग्रेज़ी दैनिक समाचार पत्र है। वर्ष २०१० के आँकड़ों के अनुसार इस उद्यम में 1,600 से अधिक लोगों को काम दिया गया है और इसकी वार्षिक आय $200 मिलियन से अधिक है। इसकी आय के मुख्य स्रोतों में अंशदान और विज्ञापन प्रमुख हैं। वर्ष 1995 में अपना ऑनलाइन संस्करण उपलब्ध करवाने वाला, द हिन्दू प्रथम भारतीय समाचार पत्र है। नवम्बर 2015 के अनुसार, यह भारत के नौ राज्यों में 18 स्थानों से प्रकाशित होता है: बंगलौर, चेन्नई, हैदराबाद, तिरुवनन्तपुरम, विजयवाड़ा, कोलकाता, मुम्बई, कोयंबतूर, मदुरै, नोएडा, विशाखपट्नम, कोच्चि, मैंगलूर, तिरुचिरापल्ली, हुबली, मोहाली, लखनऊ, इलाहाबाद और मलप्पुरम। .

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ध्रुवीय उपग्रह प्रमोचन वाहन

'''पी.एस.एल.वी सी8''' इटली के एक उपग्रह को लेकर सतीश धवन अन्तरिक्ष केन्द्र से उड़ान भरते समय ध्रुवीय उपग्रह प्रक्षेपण यान या पी.एस.एल.वी भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन द्वारा संचालित एक उपभोजित प्रक्षेपण प्रणाली है। भारत ने इसे अपने सुदूर संवेदी उपग्रह को सूर्य समकालिक कक्षा में प्रक्षेपित करने के लिये विकसित किया है। पीएसएलवी के विकास से पूर्व यह सुविधा केवल रूस के पास थी। पीएसएलवी छोटे आकार के उपग्रहों को भू-स्थिर कक्षा में भी भेजने में सक्षम है। अब तक पीएसएलवी की सहायता से 70 अन्तरिक्षयान (30 भारतीय + 40 अन्तरराष्ट्रीय) विभिन्न कक्षाओं में प्रक्षेपित किये जा चुके हैं। इससे इस की विश्वसनीयता एवं विविध कार्य करने की क्षमता सिद्ध हो चुकी है। २२ जून, २०१६ में इस यान ने अपनी क्षमता की चरम सीमा को छुआ जब पीएसएलवी सी-34 के माध्यम से रिकॉर्ड २० उपग्रह एक साथ छोड़े गए।http://khabar.ndtv.com/news/file-facts/in-record-launch-isro-flies-20-satellites-into-space-10-facts-1421899?pfrom.

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निम्नतापिकी

तुषारजनिकी में प्रयोग होने वाली तरल नाइट्रोजन गैस निम्नतापिकी, तुषारजनिकी या प्राशीतनी (अंग्रेज़ी:क्रायोजेनिक्स) भौतिकी की वह शाखा है, जिसमें अत्यधिक निम्न ताप उत्पन्न करने व उसके अनुप्रयोगों के अध्ययन किया जाता है। क्रायोजेनिक का उद्गम यूनानी शब्द क्रायोस से बना है जिसका अर्थ होता है शीत यानी बर्फ की तरह शीतल। इस शाखा में (-१५०°से., −२३८ °फै. या १२३ कै.) तापमान पर काम किया जाता है। इस निम्न तापमान का उपयोग करने वाली प्रक्रियाओं और उपायों का क्रायोजेनिक अभियांत्रिकी के अंतर्गत अध्ययन करते हैं। यहां देखा जाता है कि कम तापमान पर धातुओं और गैसों में किस प्रकार के परिवर्तन आते हैं।|हिन्दुस्तान लाइव। ६ जून २०१० कई धातुएं कम तापमान पर पहले से अधिक ठोस हो जाती हैं। सरल शब्दों में यह शीतल तापमान पर धातुओं के आश्चर्यजनक व्यवहार के अध्ययन का विज्ञान होता है। इसकी एक शाखा में इलेक्ट्रॉनिक तत्वों पर प्रशीतन के प्रभाव का अध्ययन और अन्य में मनुष्यों और पौधों पर प्रशीतन के प्रभाव का अध्ययन किया जाता है। कुछ वैज्ञानिक तुषारजनिकी को पूरी तरह कम तापमान तैयार करने की विधि से जोड़कर देखते हैं जबकि कुछ कम तापमान पर धातुओं में आने वाले परिवर्तन के अध्ययन के रूप में। एक तुषारजनिक वॉल्व क्रायोजेनिक्स में अध्ययन किए जाने वाले तापमान का परास काफी अधिक होता है। कुछ वैज्ञानिकों के अनुसार इसमें -१८०° फारेनहाइट (-१२३° सेल्सियस) से नीचे के तापमान पर ही अध्ययन किया जाता है। यह तापमान जल के प्रशीतन बिन्दु (०° से.) से काफी नीचे होता है और जब धातुओं को इस तापमान तक लाया जाता है तो उन पर आश्चर्यजनक प्रभाव दिखाई देते हैं। इतना कम तापमान तैयार करने के कुछ तरीके होते हैं, जैसे विशेष प्रकार के प्रशीतक या नाइट्रोजन जैसी तरल गैस, जो अनुकूल दाब की स्थिति में तापमान को नियंत्रित कर सकती है। धातुओं को तुषारजनिकी द्वारा ठंडे किए जाने पर उनके अणुओं की क्षमता बढ़ती है। इससे वह धातु पहले से ठोस और मजबूत हो जाते हैं। इस विधि से कई तरह की औषधियाँ तैयार की जाती हैं और विभिन्न धातुओं को संरक्षित भी किया जाता है। रॉकेट और अंतरिक्ष यान में क्रायोजेनिक ईंधन का प्रयोग भी होता है। तुषारजनिकी का प्रयोग जी एस एल वी रॉकेट में भी किया जाता है। जी.एस.एल.वी.

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निम्नतापी रॉकेट इंजन

150px भूस्थिर उपग्रह प्रक्षेपण यान में प्रयुक्त होने वाली द्रव ईंधन चालित इंजन में ईंधन बहुत कम तापमान पर भरा जाता है, इसलिए ऐसे इंजन निम्नतापी रॉकेट इंजन या तुषारजनिक रॉकेट इंजन (अंग्रेज़ी:क्रायोजेनिक रॉकेट इंजिन) कहलाते हैं। इस तरह के रॉकेट इंजन में अत्यधिक ठंडी और द्रवीकृत गैसों को ईंधन और ऑक्सीकारक के रूप में प्रयोग किया जाता है। इस इंजन में हाइड्रोजन और ईंधन क्रमश: ईंधन और ऑक्सीकारक का कार्य करते हैं। ठोस ईंधन की अपेक्षा यह कई गुना शक्तिशाली सिद्ध होते हैं और रॉकेट को बूस्ट देते हैं। विशेषकर लंबी दूरी और भारी रॉकेटों के लिए यह तकनीक आवश्यक होती है।|हिन्दुस्तान लाईव। १८ अप्रैल २०१०। अनुराग मिश्र बढ़े कदम पा लेंगे मंजिल। हिन्दुस्तान लाईव। १८ अप्रैल २०१० क्रायोजेनिक इंजन के थ्रस्ट में तापमान बहुत ऊंचा (२००० डिग्री सेल्सियस से अधिक) होता है। अत: ऐसे में सर्वाधिक प्राथमिक कार्य अत्यंत विपरीत तापमानों पर इंजन व्यवस्था बनाए रखने की क्षमता अर्जित करना होता है। क्रायोजेनिक इंजनों में -२५३ डिग्री सेल्सियस से लेकर २००० डिग्री सेल्सियस तक का उतार-चढ़ाव होता है, इसलिए थ्रस्ट चैंबरों, टर्बाइनों और ईंधन के सिलेंडरों के लिए कुछ विशेष प्रकार की मिश्र-धातु की आवश्यकता होती है। भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) ने बहुत कम तापमान को आसानी से झेल सकने वाली मिश्रधातु विकसित कर ली है। .

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भारतीय मानव अंतरिक्ष उड़ान कार्यक्रम

भारतीय मानव अंतरिक्ष उड़ान कार्यक्रम (Indian human spaceflight programme) भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन(इसरो) द्वारा पृथ्वी की निचली कक्ष एक-दो व्यक्ति चालक दल को प्रक्षेपण करने का एक प्रस्ताव है। हाल की रिपोर्टों से संकेत मिलता है कि मानव अंतरिक्ष उड़ान 2017 के बाद जीएसएलवी-एमके III पर घटित होगा। क्योंकि मिशन सरकार की 12 वीं पंचवर्षीय योजना (2012-2017) में शामिल नहीं है। चूंकि इसरो के पास एक भी मानव रेटेड प्रक्षेपण वाहन नहीं है। और सरकार की ओर से बजट में इस तरह के उड़ान शुरू करने के लिए बजट नहीं है। अत: मानव अंतरिक्ष उड़ान 2020 से पहले नहीं होगी। "भारत की पहली मानवयुक्त अंतरिक्ष मिशन भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन द्वारा 2021 में करने की योजना बनाई जा रही है।" डॉ राधाकृष्णन, (अध्यक्ष, इसरो) ने दिए गये एक इंटरव्यू में बताया। .

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भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन

भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन, (संक्षेप में- इसरो) (Indian Space Research Organisation, ISRO) भारत का राष्ट्रीय अंतरिक्ष संस्थान है जिसका मुख्यालय बेंगलुरू कर्नाटक में है। संस्थान में लगभग सत्रह हजार कर्मचारी एवं वैज्ञानिक कार्यरत हैं। संस्थान का मुख्य कार्य भारत के लिये अंतरिक्ष संबधी तकनीक उपलब्ध करवाना है। अन्तरिक्ष कार्यक्रम के मुख्य उद्देश्यों में उपग्रहों, प्रमोचक यानों, परिज्ञापी राकेटों और भू-प्रणालियों का विकास शामिल है। 1969 में स्थापित, इसरो अंतरिक्ष अनुसंधान के लिए तत्कालीन भारतीय राष्ट्रीय समिति (INCOSPAR) स्वतंत्र भारत के प्रथम प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू और उनके करीबी सहयोगी और वैज्ञानिक विक्रम साराभाई के प्रयासों से 1962 में स्थापित किया गया। भारत का पहला उपग्रह, आर्यभट्ट, जो 19 अप्रैल 1975 सोवियत संघ द्वारा शुरू किया गया था यह गणितज्ञ आर्यभट्ट के नाम पर रखा गया था बनाया।इसने 5 दिन बाद काम करना बंद कर दिया था। लेकिन ये अपने आप में भारत के लिये एक बड़ी उपलब्धि थी। 7 जून 1979 को भारत ने दूसरा उपग्रह भास्कर 445 किलो का था, पृथ्वी की कक्षा में स्थापित किया गया। 1980 में रोहिणी उपग्रह पहला भारतीय-निर्मित प्रक्षेपण यान एसएलवी -3 बन गया जिस्से कक्षा में स्थापित किया गया। इसरो ने बाद में दो अन्य रॉकेट विकसित किये। ध्रुवीय उपग्रह प्रक्षेपण यान उपग्रहों शुरू करने के लिए ध्रुवीय उपग्रह प्रक्षेपण यान (पीएसएलवी),भूस्थिर कक्षा में उपग्रहों को रखने के लिए ध्रुवीय कक्षाओं और भूस्थिर उपग्रह प्रक्षेपण यान (जीएसएलवी) भूस्थिर उपग्रह प्रक्षेपण यान। ये रॉकेट कई संचार उपग्रहों और पृथ्वी अवलोकन गगन और आईआरएनएसएस तरह सैटेलाइट नेविगेशन सिस्टम तैनात किया उपग्रह का शुभारंभ किया।जनवरी 2014 में इसरो सफलतापूर्वक जीसैट -14 का एक जीएसएलवी-डी 5 प्रक्षेपण में एक स्वदेशी क्रायोजेनिक इंजन का इस्तेमाल किया गया। इसरो के वर्तमान निदेशक ए एस किरण कुमार हैं। आज भारत न सिर्फ अपने अंतरिक्ष संबंधी आवश्यकताओं की पूर्ति करने में सक्षम है बल्कि दुनिया के बहुत से देशों को अपनी अंतरिक्ष क्षमता से व्यापारिक और अन्य स्तरों पर सहयोग कर रहा है। इसरो एक चंद्रमा की परिक्रमा, चंद्रयान -1 भेजा, 22 अक्टूबर 2008 और एक मंगल ग्रह की परिक्रमा, मंगलयान (मंगल आर्बिटर मिशन) है, जो सफलतापूर्वक मंगल ग्रह की कक्षा में प्रवेश पर 24 सितंबर 2014 को भारत ने अपने पहले ही प्रयास में सफल होने के लिए पहला राष्ट्र बना। दुनिया के साथ ही एशिया में पहली बार अंतरिक्ष एजेंसी में एजेंसी को सफलतापूर्वक मंगल ग्रह की कक्षा तक पहुंचने के लिए इसरो चौथे स्थान पर रहा। भविष्य की योजनाओं मे शामिल जीएसएलवी एमके III के विकास (भारी उपग्रहों के प्रक्षेपण के लिए) ULV, एक पुन: प्रयोज्य प्रक्षेपण यान, मानव अंतरिक्ष, आगे चंद्र अन्वेषण, ग्रहों के बीच जांच, एक सौर मिशन अंतरिक्ष यान के विकास आदि। इसरो को शांति, निरस्त्रीकरण और विकास के लिए साल 2014 के इंदिरा गांधी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। मंगलयान के सफल प्रक्षेपण के लगभग एक वर्ष बाद इसने 29 सितंबर 2015 को एस्ट्रोसैट के रूप में भारत की पहली अंतरिक्ष वेधशाला स्थापित किया। जून 2016 तक इसरो लगभग 20 अलग-अलग देशों के 57 उपग्रहों को लॉन्च कर चुका है, और इसके द्वारा उसने अब तक 10 करोड़ अमेरिकी डॉलर कमाए हैं।http://khabar.ndtv.com/news/file-facts/in-record-launch-isro-flies-20-satellites-into-space-10-facts-1421899?pfrom.

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भूस्थिर कक्षा

भूस्थिर कक्षा (उपर दे देखने पर)। एक प्रेक्षक को जो घूर्णन कर रही पृथ्वी पर स्थित है को उपग्रह किसी बिन्दु के साथ स्थिर दिखाई देगा। भूस्थिर कक्षा का एक दिशा से देखने पर। भूस्थिर कक्षा अथवा भूमध्य रेखीय भूस्थिर कक्षा पृथ्वी से 35786 किमी ऊँचाई पर स्थित उस कक्षा को कहा जाता है जहाँ पर यदि कोई उपग्रह है तो वह पृथ्वी से हमेशा एक ही स्थान पर दिखाई देगा। यह कक्षा भूमध्य रेखा पर स्थित होगी एवं उपग्रह के घुर्णन की दिशा पृथ्वी के घूर्णन के समान होगी। .

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भूस्थिर उपग्रह प्रक्षेपण यान

भूस्थिर उपग्रह प्रक्षेपण यान (अंग्रेज़ी:जियोस्टेशनरी सैटेलाइट लॉन्च व्हीकल, लघु: जी.एस.एल.वी) अंतरिक्ष में उपग्रह के प्रक्षेपण में सहायक यान है। जीएसएलवी का इस्तेमाल अब तक बारह लॉन्च में किया गया है, 2001 में पहली बार लॉन्च होने के बाद से 29 मार्च, 2018 को जीएसएटी -6 ए संचार उपग्रह ले जाया गया था। ये यान उपग्रह को पृथ्वी की भूस्थिर कक्षा में स्थापित करने में मदद करता है। जीएसएलवी ऐसा बहुचरण रॉकेट होता है जो दो टन से अधिक भार के उपग्रह को पृथ्वी से 36000 कि॰मी॰ की ऊंचाई पर भू-स्थिर कक्षा में स्थापित कर देता है जो विषुवत वृत्त या भूमध्य रेखा की सीध में होता है। ये रॉकेट अपना कार्य तीन चरण में पूरा करते हैं। इनके तीसरे यानी अंतिम चरण में सबसे अधिक बल की आवश्यकता होती है। रॉकेट की यह आवश्यकता केवल क्रायोजेनिक इंजन ही पूरा कर सकते हैं। इसलिए बिना क्रायोजेनिक इंजन के जीएसएलवी रॉकेट का निर्माण मुश्किल होता है। अधिकतर काम के उपग्रह दो टन से अधिक के ही होते हैं। इसलिए विश्व भर में छोड़े जाने वाले 50 प्रतिशत उपग्रह इसी वर्ग में आते हैं। जीएसएलवी रॉकेट इस भार वर्ग के दो तीन उपग्रहों को एक साथ अंतरिक्ष में ले जाकर निश्चित कि॰मी॰ की ऊंचाई पर भू-स्थिर कक्षा में स्थापित कर देता है। यही इसकी की प्रमुख विशेषता है।|हिन्दुस्तान लाईव। १८ अप्रैल २०१०। अनुराग मिश्र हालांकि भूस्थिर उपग्रह प्रक्षेपण यान संस्करण 3 (जीएसएलवी मार्क 3) नाम साझा करता है, यह एक पूरी तरह से अलग लॉन्चर है। .

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भूस्थिर उपग्रह प्रक्षेपण यान संस्करण 3 डी1

भूस्थिर उपग्रह प्रक्षेपण यान संस्करण 3 डी1 भूस्थिर उपग्रह प्रक्षेपण यान संस्करण 3 रॉकेट की प्रथम विकास उडान है। इसे अप्रैल 2017 में लांच किया जायेगा यह उडान भारत के लिए बहुत महत्पूर्ण है इसके द्वारा भारत संचार उपग्रह को स्वदेश में लांच करने की काबिलियत हासिल करेगा। श्रेणी:भारत के अंतरिक्ष प्रक्षेपण रॉकेट श्रेणी:भारतीय अंतरिक्ष कार्यक्रम.

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लांग मार्च-3बी

श्रेणी:चीन के अंतरिक्ष प्रक्षेपण रॉकेट.

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सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र

सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र का विहंगम दृश्य सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र, भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) का प्रक्षेपण केंद्र है। यह आंध्र प्रदेश के श्रीहरीकोटा में स्थित है, इसे 'श्रीहरीकोटा रेंज' या 'श्रीहरीकोटा लाँचिंग रेंज' के नाम से भी जाना जाता है। 2002 में इसरो के पूर्व प्रबंधक और वैज्ञानिक सतीश धवन के मरणोपरांत उनके सम्मान में इसका नाम बदला गया। .

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सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र द्वितीय लांच पैड

द्वितीय लांच पैड (Second Launch Pad or SLP) सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र, श्रीहरिकोटा में एक रॉकेट प्रक्षेपण स्थल है। यह सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र पर स्थित दो लांच पैड में से एक है। द्वितीय लॉन्च पैड या एसएलपी को मार्च 1999 से दिसंबर 2003 की अवधि के दौरान रांची (झारखंड, भारत) में स्थित भारतीय सरकार की एमईसीओएन लिमिटेड द्वारा डिजाइन, आपूर्ति, निर्माण और कमीशन किया गया था। उस समय इस पर लगभग 400 करोड़ रुपये खर्च हुए। संबद्ध सुविधाओं के साथ द्वितीय लांच पैड 2005 में बनाया गया था। हालांकि, यह 5 मई 2005 को पीएसएलवी-सी 6 के लॉन्च के साथ ही चालू हुआ था। इस परियोजना के लिए एमईसीओएन लिमिटेड के उप-ठेकेदार, जिनमें इंनोक इंडिया, एचईसी, टाटा ग्रोथ, गोदरेज बॉयस, सिम्प्लेक्स, नागार्जुन कंस्ट्रक्शन, स्टीलेज आदि शामिल थे। सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र पर अन्य लॉन्च पैड प्रथम लांच पैड है। द्वितीय लांच पैड का इस्तेमाल ध्रुवीय उपग्रह प्रक्षेपण यान, भूस्थिर उपग्रह प्रक्षेपण यान और भूस्थिर उपग्रह प्रक्षेपण यान मार्क 3 लॉन्च वाहनों को लॉन्च करने में किया जाता है। .

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सेमी क्रायोजेनिक इंजन-200

कोई विवरण नहीं।

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जीसैट-19

जीसैट-19 (GSAT-19) एक भारतीय संचार उपग्रह है जिसका भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन ने भूस्थिर उपग्रह प्रक्षेपण यान संस्करण 3 डी1 यान द्वारा ५ जून २०१७ १७:२८ बजे प्रक्षेपण किया। .

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जीसैट-20

जीसैट-20 (GSAT-20) भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन उपग्रह केंद्र और तरल प्रणोदन प्रणाली केंद्र द्वारा संयुक्त रूप से विकसित किया जा रहा एक संचार उपग्रह है जिसे इसरो द्वारा लॉन्च किया जाएगा। जीसैट-20 भारत के संचार उपग्रह जीसैट श्रृंखला का भाग होगा। उपग्रह का उद्देश्य भारत की स्मार्ट सिटी मिशन के लिए आवश्यक संचार बुनियादी ढांचे में डेटा ट्रांसमिशन क्षमता जोड़ना है। यह पहला पूर्ण इलेक्ट्रिक प्रोपल्सन उपग्रह होगा। जिसमें रासायनिक-आधारित प्रणोदन की तुलना में पांच से छह गुना तक अधिक कुशलता हो सकता है। इस उपग्रह को इलेक्ट्रिक प्रोपल्सन का उपयोग करके भू-स्थिर अंतरण कक्षा से भू-तुल्यकालिक कक्षा में स्थानांतरित किया जाएगा। यह ऐसा करने वाला इसरो का पहला उपग्रह होगा। .

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जीसैट-29

जीसैट-29 (GSAT-29) भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन द्वारा विकसित किया जा रहा एक संचार उपग्रह है। .

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क्रायोजेनिक इंजन-20

क्रायोजेनिक इंजन-२० (Cryogenic engine-20 या CE-20) भारत का दूसरा क्रायोजेनिक इंजन है जिसे भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) ने जीएसएलवी मार्क-3 के ऊपरी चरण के लिए विकसित किया गया है।.

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क्रायोजेनिक इंजन-7.5

क्रायोजेनिक इंजन-7.5 (Cryogenic Engine-7.5) एक 'क्रायोजेनिक इंजन है। जिसे भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन ने जीएसएलवी मार्क-2 के ऊपरी चरण के लिए विकसित किया गया है। यह इंजन क्रायोजेनिक ऊपरी चरण परियोजना के तहत विकसित किया गया है। इसका प्रयोग रूस का क्रायोजेनिक इंजन केवीडी-1(KVD-1) को स्वदेशी क्रायोजेनिक इंजन से बदलने का था। जीएसएलवी मार्क-1 में रूस के क्रायोजेनिक इंजन केवीडी-1 का प्रयोग होता था। लेकिन जीएसएलवी मार्क-2 संस्करण में स्वदेशी क्रायोजेनिक इंजन का प्रयोग किया गया। .

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क्रू मॉड्यूल वायुमंडलीय पुनः प्रवेश प्रयोग

क्रू मॉड्यूल वायुमंडलीय पुनः प्रवेश प्रयोग (Crew Module Atmospheric Re-entry Experiment या CARE) भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन के भविष्य के भारतीय मानव अंतरिक्ष उड़ान कार्यक्रम के लिए एक प्रायोगिक परीक्षण वाहन है। इसे भूस्थिर उपग्रह प्रक्षेपण यान एम.के. 3 द्वारा 18 दिसंबर 2014 को सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र के दूसरे लांच पैड से शुरू किया गया था। .

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यहां पुनर्निर्देश करता है:

एल वी एम ३, एलवीएम३, भूस्थिर उपग्रह प्रक्षेपण यान एम.के. 3, भूस्थिर उपग्रह प्रक्षेपण यान मार्क 3, जीएसएलवी 3, जीएसएलवी मार्क 3, जीएसएलवी-3, जीएसएलवी-III, जीएसएलवी-मार्क3, जीएसएलवी-मार्क३, जीएसएलवी-३, जीएसएलवी३

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