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भारतीय विवाह

सूची भारतीय विवाह

अय्यर दक्छिन भारत के तमिलयन ब्राहमण हैं। अय्यर विवाह को तमिल में कल्याणम या तिरूमनम कहते हैं। यह शादी अन्य हिन्दू शादी कि तरह २-३ दिन के लिये चलता है। परमपरागत रूप से दुल्हन के परिवारवाले विवाह कि योजना बनाते हैं। व्रुथम: परमपरागत रूप से शादी की सभी रस्मे पूर्वजों और भगवान की पूजा के साथ शुरू कि जाती है। यह आम तौर पर शादी के एक दिन पेहले सुबह-सुबह किया जाता है। एक पवित्र पीला धागा दुलहे और दुल्हन के कलाई पर बाँधा जाता है। इसके बाद पालिका रस्म होता है जहाँ नौ तरिके के अनाज से दुलहे और दुल्हन के ऊपर छिड़काव किया जाता है। उन्हें समृद्धि का आर्शीवाद दिया जाता है। इस रस्म के अंत मे आरती समारोह कि जाती है। जानावसन या बारात: दुल्हा शादी के स्थल पर एक सुंदर सजाए हुए रथ या वाहन में आता है। दुल्हे के परिवारवाले और दोस्त बारात में नाचते गाते आते हैं। उसके बाद सब मंदिर जाते हैं जहाँ दुल्हे-"मापिल्लय" को निश्चयाथर्थम समारोह के लिए एक परमपरागत धोती और शर्ट दिया जाता है। बारात इसके बाद मंडपम में वापस आती है। निश्चयाथर्थम समारोह या सगाई: दुल्हन के परिवारवाले दुल्हे के लिये हल्दी, पान, सुपारी और कपडा लाते हैं। दुल्हन का भाई तब सम्मान के लिये दुल्हे को फूलों की माला पहनाता है। इसके बाद आरती कि जाती है और नारयिल फोडा जाता है। उठाये मंच पर दोनो परिवारवाले एकदूसरे के सामने बैठते हैं जहाँ लग्न पत्रिका लिखि जाती है और पुजारी उसे जोड़ से पढते हैं। इसके बाद थाल और तोहफे बदले जाते हैं। काशी यात्रा: दुल्हा पारमपारिक कपड़े मे तैयार रहता है। वह एक छाता, एक पंखा, एक छड़ी और एक कपड़े में चावल-दाल बाँधकर कंधे पर डालकर धार्मिक अध्य्यन के लिये आगे बढता है परतुं जैसे ही वह जाने लगता है, दुल्हन के पिता उसे विवाहित जीवन की महत्वता बताते हैं और उन्हें जीवन की चुनौतियों का सामना करने के लिये साथी के रूप में अपनी बेटी देने का वादा करते हैं। और दुल्हा वापस मंडप मे आ जाता है। मलय मात्रल: एक बार जब दुल्हा मान जाता है तो दुल्हा-दुल्हन के बीच वरमाला का आदान प्रदान होता है। इस्के बाद दुल्हा और दुल्हन के मामा दोनो को अपने कन्धे पर उठाते हैं और दोनो तीन बार एक दूसरे को वरमाला पेहनाने कि कोशिश करते हैं। ओंजल: इस्के बाद जोडे को झूले पर बिठाया जात हैं और झूले को धीरे से हिलाया जाता है। रिस्तेदार और दोस्त सब मंगल गीत गाते हैं और आर्शीवाद देते हैं। कनिका दानम- कन्यादान: दुल्हन अपने पिता के गोद मे बैठती है। उस्का हाथ दुल्हे के हाथ मे डाला जाता है। उस्के हाथ पर नारियल, पान रखते है। दुल्हन के सिर पर कसा घास की बनी एक अंगूठी रखी जाती है जिस्के ऊपर ठाल में सोने का मंगलसुत्र रखा जात है और छेद से पानी डाला जाता है। कंकणा धारनम: दुल्हन एक धार्मिक ब्रत से खुद को बाध्य करने के लिये दुल्हे के कलाई पर हल्दी लगा एक धागा बाँधती है। इसके बाद दुल्हन को छागा बाँधता है। मांगल्यधारनम: पुर्व निर्धारित शुभ घंटे में मंगल सुत्र बाँधा जाता है। दुल्हा पश्चिम की और चेहरा करके बैठता है जबकी दुल्हन अपने पिता की गोद में बैठी रेहती है। दुल्हा दुल्हन की सोने का मंगलसुत्र पहनाता है और इसी समय नादस्वरम जोड से बजाया जाता है। मंगलसुत्र के साथ-साथ हल्दी का पीला धागा भी बाँधा जाता है। सप्तपदि: दुल्हा दुल्हन अग्नी के सात फेरे लेते हैं। इसके बाद वह अपने बडों से आर्शीवाद लेते हैं।.

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