लोगो
यूनियनपीडिया
संचार
Google Play पर पाएं
नई! अपने एंड्रॉयड डिवाइस पर डाउनलोड यूनियनपीडिया!
इंस्टॉल करें
ब्राउज़र की तुलना में तेजी से पहुँच!
 

भारतीय राजनय का इतिहास

सूची भारतीय राजनय का इतिहास

यद्यपि भारत का यह दुर्भाग्य रहा है कि वह एक छत्र शासक के अन्तर्गत न रहकर विभिन्न छोटे-छोटे राज्यों में विभाजित रहा था तथापि राजनय के उद्भव और विकास की दृष्टि से यह स्थिति अपना विशिष्ट मूल्य रखती है। यह दुर्भाग्य उस समय और भी बढ़ा जब इन राज्यों में मित्रता और एकता न रहकर आपसी कलह और मतभेद बढ़ते रहे। बाद में कुछ बड़े साम्राज्य भी अस्तित्व में आये। इनके बीच पारस्परिक सम्बन्ध थे। एक-दूसरे के साथ शांति, व्यापार, सम्मेलन और सूचना लाने ले जाने आदि कार्यों की पूर्ति के लिये राजा दूतों का उपयोग करते थे। साम, दान, भेद और दण्ड की नीति, षाडगुण्य नीति और मण्डल सिद्धान्त आदि इस बात के प्रमाण हैं कि इस समय तक राज्यों के बाह्य सम्बन्ध विकसित हो चुके थे। दूत इस समय राजा को युद्ध और संधियों की सहायता से अपने प्रभाव की वृद्धि करने में सहायता देते थे। भारत में राजनय का प्रयोग अति प्राचीन काल से चलता चला आ रहा है। वैदिक काल के राज्यों के पारस्परिक सम्बन्धों के बारे में हमारा ज्ञान सीमित है। महाकाव्य तथा पौराणिक गाथाओं में राजनयिक गतिविधियों के अनेकों उदाहरण मिलते हैं। प्राचीन भारतीय राजनयिक विचार का केन्द्र बिन्दु राजा होता था, अतः प्रायः सभी राजनीतिक विचारकों- कौटिल्य, मनु, अश्वघोष, बृहस्पति, भीष्म, विशाखदत्त आदि ने राजाओं के कर्तव्यों का वर्णन किया है। स्मृति में तो राजा के जीवन तथा उसका दिनचर्या के नियमों तक का भी वर्णन मिलता है। राजशास्त्र, नृपशास्त्र, राजविद्या, क्षत्रिय विद्या, दंड नीति, नीति शास्त्र तथा राजधर्म आदि शास्त्र, राज्य तथा राजा के सम्बन्ध में बोध कराते हैं। वेद, पुराण, रामायण, महाभारत, कामन्दक नीति शास्त्र, शुक्रनीति, आदि में राजनय से सम्बन्धित उपलब्ध विशेष विवरण आज के राजनीतिक सन्दर्भ में भी उपयोगी हैं। ऋग्वेद तथा अथर्ववेद राजा को अपने लक्ष्य की प्राप्ति के लिये जासूसी, चालाकी, छल-कपट और धोखा आदि के प्रयोग का परामर्श देते हैं। ऋग्वेद में सरमा, इन्द्र की दूती बनकर, पाणियों के पास जाती है। पौराणिक गाथाओं में नारद का दूत के रूप में कार्य करने का वर्णन है। यूनानी पृथ्वी के देवता 'हर्मेस' की भांति नारद वाक चाटुकारिता व चातुर्य के लिये प्रसिद्ध थे। वे स्वर्ग और पृथ्वी के मध्य एक-दूसरे राजाओं को सूचना लेने व देने का कार्य करते थे। वे एक चतुर राजदूत थे। इस प्रकार पुरातन काल से ही भारतीय राजनय का विशिष्ट स्थान रहा है। .

92 संबंधों: चन्द्रगुप्त मौर्य, चाणक्य, चीन, तिरुवल्लुवर, तिरुक्कुरल, तुलसीदास, दण्ड (समय की प्राचीन ईकाई), दशरथ, दान, दुर्ग, द्रौपदी, दूत, धर्म, धूम्रपान, नारद, पञ्चतन्त्र, पुराण, फ़ारस, बिन्दुसार, बिस्मार्क, बगुला, ब्राह्मण, बृहस्पति, भारत, भौतिकवाद, भेद, भीष्म, मद्यव्यसनिता, मनु, मनुस्मृति, महाभारत, मिथिला, मुद्राराक्षस, मौर्य राजवंश, याज्ञवल्क्य स्मृति, युद्ध, युधिष्ठिर, राम, रामायण, राजतरंगिणी, राजनय, राजनीति विज्ञान, राजमण्डल, राजा, रावण, रोम, लोमड़ी, शुक्रनीति, शुक्राचार्य, श्रीमद्भगवद्गीता, ..., श्रीरामचरितमानस, श्रीलंका, शेर, षाड्गुण्य, सन्धि (समझौता), समुद्रगुप्त, सिकंदर, संधि (व्याकरण), स्मृति, सोमदेव, सीरिया, हनुमान, हर्षवर्धन, हस्तिनापुर, हितोपदेश, जातक, विदेश नीति, विभीषण, वियना कांग्रेस, विशाखदत्त, विज्ञान, विवाह, वेद, वेश्यावृत्ति, वी आर रामचन्द्र दीक्षितार, गुप्तचर, इन्द्र, कामन्दकीय नीतिसार, किरातार्जुनीयम्, कछुआ, क्लाडियस टॉलमी, कृष्ण, अथर्ववेद संहिता, अरस्तु, अर्थशास्त्र, अर्थशास्त्र (ग्रन्थ), अर्जुन, अश्वघोष, अंगद, उपाय, ऋग्वेद, छाता सूचकांक विस्तार (42 अधिक) »

चन्द्रगुप्त मौर्य

चन्द्रगुप्त मौर्य (जन्म ३४५ ई॰पु॰, राज ३२२-२९८ ई॰पु॰) में भारत के सम्राट थे। इनको कभी कभी चन्द्रगुप्त नाम से भी संबोधित किया जाता है। इन्होंने मौर्य साम्राज्य की स्थापना की थी। चन्द्रगुप्त पूरे भारत को एक साम्राज्य के अधीन लाने में सफ़ल रहे। भारत राष्ट्र निर्माण मौर्य गणराज्य (चन्द्रगुप्त मौर्य) सम्राट् चंद्रगुप्त मौर्य के राज्यारोहण की तिथि साधारणतया ३२२ ई.पू.

नई!!: भारतीय राजनय का इतिहास और चन्द्रगुप्त मौर्य · और देखें »

चाणक्य

चाणक्य (अनुमानतः ईसापूर्व 375 - ईसापूर्व 283) चन्द्रगुप्त मौर्य के महामंत्री थे। वे 'कौटिल्य' नाम से भी विख्यात हैं। उन्होने नंदवंश का नाश करके चन्द्रगुप्त मौर्य को राजा बनाया। उनके द्वारा रचित अर्थशास्त्र राजनीति, अर्थनीति, कृषि, समाजनीति आदि का महान ग्रंन्थ है। अर्थशास्त्र मौर्यकालीन भारतीय समाज का दर्पण माना जाता है। मुद्राराक्षस के अनुसार इनका असली नाम 'विष्णुगुप्त' था। विष्णुपुराण, भागवत आदि पुराणों तथा कथासरित्सागर आदि संस्कृत ग्रंथों में तो चाणक्य का नाम आया ही है, बौद्ध ग्रंथो में भी इसकी कथा बराबर मिलती है। बुद्धघोष की बनाई हुई विनयपिटक की टीका तथा महानाम स्थविर रचित महावंश की टीका में चाणक्य का वृत्तांत दिया हुआ है। चाणक्य तक्षशिला (एक नगर जो रावलपिंडी के पास था) के निवासी थे। इनके जीवन की घटनाओं का विशेष संबंध मौर्य चंद्रगुप्त की राज्यप्राप्ति से है। ये उस समय के एक प्रसिद्ध विद्वान थे, इसमें कोई संदेह नहीं। कहते हैं कि चाणक्य राजसी ठाट-बाट से दूर एक छोटी सी कुटिया में रहते थे। उनके नाम पर एक धारावाहिक भी बना था जो दूरदर्शन पर 1990 के दशक में दिखाया जाता था। .

नई!!: भारतीय राजनय का इतिहास और चाणक्य · और देखें »

चीन

---- right चीन विश्व की प्राचीन सभ्यताओं में से एक है जो एशियाई महाद्वीप के पू‍र्व में स्थित है। चीन की सभ्यता एवं संस्कृति छठी शताब्दी से भी पुरानी है। चीन की लिखित भाषा प्रणाली विश्व की सबसे पुरानी है जो आज तक उपयोग में लायी जा रही है और जो कई आविष्कारों का स्रोत भी है। ब्रिटिश विद्वान और जीव-रसायन शास्त्री जोसफ नीधम ने प्राचीन चीन के चार महान अविष्कार बताये जो हैं:- कागज़, कम्पास, बारूद और मुद्रण। ऐतिहासिक रूप से चीनी संस्कृति का प्रभाव पूर्वी और दक्षिण पूर्वी एशियाई देशों पर रहा है और चीनी धर्म, रिवाज़ और लेखन प्रणाली को इन देशों में अलग-अलग स्तर तक अपनाया गया है। चीन में प्रथम मानवीय उपस्थिति के प्रमाण झोऊ कोऊ दियन गुफा के समीप मिलते हैं और जो होमो इरेक्टस के प्रथम नमूने भी है जिसे हम 'पेकिंग मानव' के नाम से जानते हैं। अनुमान है कि ये इस क्षेत्र में ३,००,००० से ५,००,००० वर्ष पूर्व यहाँ रहते थे और कुछ शोधों से ये महत्वपूर्ण जानकारी भी मिली है कि पेकिंग मानव आग जलाने की और उसे नियंत्रित करने की कला जानते थे। चीन के गृह युद्ध के कारण इसके दो भाग हो गये - (१) जनवादी गणराज्य चीन जो मुख्य चीनी भूभाग पर स्थापित समाजवादी सरकार द्वारा शासित क्षेत्रों को कहते हैं। इसके अन्तर्गत चीन का बहुतायत भाग आता है। (२) चीनी गणराज्य - जो मुख्य भूमि से हटकर ताईवान सहित कुछ अन्य द्वीपों से बना देश है। इसका मुख्यालय ताइवान है। चीन की आबादी दुनिया में सर्वाधिक है। प्राचीन चीन मानव सभ्यता के सबसे पुरानी शरणस्थलियों में से एक है। वैज्ञानिक कार्बन डेटिंग के अनुसार यहाँ पर मानव २२ लाख से २५ लाख वर्ष पहले आये थे। .

नई!!: भारतीय राजनय का इतिहास और चीन · और देखें »

तिरुवल्लुवर

SOAS, लंडन युनिवर्सिटी में तिरुवल्लुवर की प्रतिमा तिरुवल्लुवर (திருவள்ளுவர்) एक प्रख्यात तमिल कवि हैं जिन्होंने तमिल साहित्य में नीति पर आधारित कृति थिरूकुरल का सृजन किया। उन्हें थेवा पुलवर, वल्लुवर और पोयामोड़ी पुलवर जैसे अन्य नामों से भी जाना जाता है। तिरुवल्लुवर का जन्म मायलापुर में हुआ था। उनकी पत्नी वासुकी एक पवित्र और समर्पित महिला थी, एक ऐसी आदर्श पत्नी जिसने कभी भी अपने पति के आदेशों की अवज्ञा नहीं की और उनका शतशः पालन किया। तिरुवल्लुवर ने लोगों को बताया कि एक व्यक्ति गृहस्थ या गृहस्थस्वामी का जीवन जीने के साथ-साथ एक दिव्य जीवन या शुद्ध और पवित्र जीवन जी सकता है। उन्होंने लोगों को बताया कि शुद्ध और पवित्रता से परिपूर्ण दिव्य जीवन जीने के लिए परिवार को छोड़कर संन्यासी बनने की आवश्यकता नहीं है। उनकी ज्ञान भरी बातें और शिक्षा अब एक पुस्तक के रूप में मौजूद है जिसे 'तिरुक्कुरल' के रूप में जाना जाता है। तमिल कैलेंडर की अवधि उसी समय से है और उसे तिरुवल्लुवर आन्दु (वर्ष) के रूप में संदर्भित किया जाता है। तिरुवल्लुवर के अस्तित्व का समय पुरातात्विक साक्ष्य के बजाय ज्यादातर भाषाई सबूतों पर आधारित है क्योंकि किसी पुरातात्विक साक्ष्य को अभी तक निर्धारित नहीं किया गया है। उनके काल का अनुमान 200 ई.पू.

नई!!: भारतीय राजनय का इतिहास और तिरुवल्लुवर · और देखें »

तिरुक्कुरल

तिरुक्कुरल, तमिल भाषा में लिखित एक प्राचीन मुक्तक काव्य रचना है। तिरुवल्लुवर इसके रचयिता थे। इसकी रचना का काल ईसा पूर्व दूसरी शताब्दी से लेकर ईसा की छठवीं शताब्दी हो सकती है। इसके सूत्र या पद्य, जीवन के हर पहलू को स्पर्श करते हैं। यह नीतिशास्त्र की महान रचना है। .

नई!!: भारतीय राजनय का इतिहास और तिरुक्कुरल · और देखें »

तुलसीदास

गोस्वामी तुलसीदास (1511 - 1623) हिंदी साहित्य के महान कवि थे। इनका जन्म सोरों शूकरक्षेत्र, वर्तमान में कासगंज (एटा) उत्तर प्रदेश में हुआ था। कुछ विद्वान् आपका जन्म राजापुर जिला बाँदा(वर्तमान में चित्रकूट) में हुआ मानते हैं। इन्हें आदि काव्य रामायण के रचयिता महर्षि वाल्मीकि का अवतार भी माना जाता है। श्रीरामचरितमानस का कथानक रामायण से लिया गया है। रामचरितमानस लोक ग्रन्थ है और इसे उत्तर भारत में बड़े भक्तिभाव से पढ़ा जाता है। इसके बाद विनय पत्रिका उनका एक अन्य महत्वपूर्ण काव्य है। महाकाव्य श्रीरामचरितमानस को विश्व के १०० सर्वश्रेष्ठ लोकप्रिय काव्यों में ४६वाँ स्थान दिया गया। .

नई!!: भारतीय राजनय का इतिहास और तुलसीदास · और देखें »

दण्ड (समय की प्राचीन ईकाई)

यह हिन्दू समय मापन इकाई है। यह इकाई मध्यम श्रेणी की है।.

नई!!: भारतीय राजनय का इतिहास और दण्ड (समय की प्राचीन ईकाई) · और देखें »

दशरथ

दशरथ ऋष्यश्रृंग को लेने के लिए जाते हुए दशरथ वाल्मीकि रामायण के अनुसार अयोध्या के रघुवंशी (सूर्यवंशी) राजा थे। वह इक्ष्वाकु कुल के थे तथा प्रभु श्रीराम, जो कि विष्णु का अवतार थे, के पिता थे। दशरथ के चरित्र में आदर्श महाराजा, पुत्रों को प्रेम करने वाले पिता और अपने वचनों के प्रति पूर्ण समर्पित व्यक्ति दर्शाया गया है। उनकी तीन पत्नियाँ थीं – कौशल्या, सुमित्रा तथा कैकेयी। अंगदेश के राजा रोमपाद या चित्ररथ की दत्तक पुत्री शान्ता महर्षि ऋष्यशृंग की पत्नी थीं। एक प्रसंग के अनुसार शान्ता दशरथ की पुत्री थीं तथा रोमपाद को गोद दी गयीं थीं। .

नई!!: भारतीय राजनय का इतिहास और दशरथ · और देखें »

दान

मन्दिर में भिक्षा देती स्त्री (राजा रवि वर्मा की चित्रकारी) दान का शाब्दिक अर्थ है - 'देने की क्रिया'। सभी धर्मों में सुपात्र को दान देना परम् कर्तव्य माना गया है। हिन्दू धर्म में दान की बहुत महिमा बतायी गयी है। आधुनिक सन्दर्भों में दान का अर्थ किसी जरूरतमन्द को सहायता के रूप में कुछ देना है। .

नई!!: भारतीय राजनय का इतिहास और दान · और देखें »

दुर्ग

दुर्ग छत्तीसगढ़ प्रान्त के 27 जिलो मे तीसरा सबसे बड़ा जिला है। दुर्ग जिले के मुख्य शहर भिलाई और दुर्ग को सम्मिलित रूप से टि्वन सिटी कहा जाता है। भिलाई में लौह इस्पात संयंत्र की स्थापना के साथ ही दुर्ग का महत्व काफी बढ़ गया। शिवनाथ नदी के पूर्वी तट पर स्थित दुर्ग शहर के बीचोबीच से राष्ट्रीय राजमार्ग ६ (कोलकाता-मुंबई) गुजरती है। टि्वनसिटी के तौर पर दुर्ग-भिलाई शैक्षणिक और खेल केंद्र के रूप में न केवल प्रदेश में बल्कि देश में अपना स्थान रखता है। श्रेणी:छत्तीसगढ़ के नगर.

नई!!: भारतीय राजनय का इतिहास और दुर्ग · और देखें »

द्रौपदी

द्रौपदी महाभारत के सबसे प्रसिद्ध पात्रों में से एक है। इस महाकाव्य के अनुसार द्रौपदी पांचाल देश के राजा द्रुपद की पुत्री है जो बाद में पांचों पाण्डवों की पत्नी बनी। द्रौपदी पंच-कन्याओं में से एक हैं जिन्हें चिर-कुमारी कहा जाता है। ये कृष्णा, यज्ञसेनी, महाभारती, सैरंध्री आदि अन्य नामो से भी विख्यात है। द्रौपदी का विवाह पाँचों पाण्डव भाईयों से हुआ था। पांडवों द्वारा इनसे जन्मे पांच पुत्र (क्रमशः प्रतिविंध्य, सुतसोम, श्रुतकीर्ती, शतानीक व श्रुतकर्मा) उप-पांडव नाम से विख्यात थे। .

नई!!: भारतीय राजनय का इतिहास और द्रौपदी · और देखें »

दूत

मोहम्मद अली मुगल साम्राज्य में भेजे गये ईरान के शाह अब्बास के दूत थे। दूत संदेशा देने वाले को कहते हैं। दूत का कार्य बहुत महत्व का माना गया है। प्राचीन भारतीय साहित्य में अनेक ग्रन्थों में दूत के लिये आवश्यक गुणों का विस्तार से विवेचन किया गया है। रामायण में लक्ष्मण से हनुमान का परिचय कराते हुए श्रीराम कहते हैं - (अवश्य ही इन्होने सम्पूर्ण व्याकरण सुन लिया लिया है क्योंकि बहुत कुछ बोलने के बाद भी इनके भाषण में कोई त्रुटि नहीं मिली।। यह बहुत अधिक विस्तार से नहीं बोलते; असंदिग्ध बोलते हैं; न धीमी गति से बोलते हैं और न तेज गति से। इनके हृदय से निकलकर कंठ तक आने वाला वाक्य मध्यम स्वर में होता है। ये कयाणमयी वाणी बोलते हैं जो दुखी मन वाले और तलवार ताने हुए शत्रु के हृदय को छू जाती है। यदि ऐसा व्यक्ति किसी का दूत न हो तो उसके कार्य कैसे सिद्ध होंगे?) इसमें दूत के सभी गुणों का सुन्दर वर्णन है। .

नई!!: भारतीय राजनय का इतिहास और दूत · और देखें »

धर्म

धर्मचक्र (गुमेत संग्रहालय, पेरिस) धर्म का अर्थ होता है, धारण, अर्थात जिसे धारण किया जा सके, धर्म,कर्म प्रधान है। गुणों को जो प्रदर्शित करे वह धर्म है। धर्म को गुण भी कह सकते हैं। यहाँ उल्लेखनीय है कि धर्म शब्द में गुण अर्थ केवल मानव से संबंधित नहीं। पदार्थ के लिए भी धर्म शब्द प्रयुक्त होता है यथा पानी का धर्म है बहना, अग्नि का धर्म है प्रकाश, उष्मा देना और संपर्क में आने वाली वस्तु को जलाना। व्यापकता के दृष्टिकोण से धर्म को गुण कहना सजीव, निर्जीव दोनों के अर्थ में नितांत ही उपयुक्त है। धर्म सार्वभौमिक होता है। पदार्थ हो या मानव पूरी पृथ्वी के किसी भी कोने में बैठे मानव या पदार्थ का धर्म एक ही होता है। उसके देश, रंग रूप की कोई बाधा नहीं है। धर्म सार्वकालिक होता है यानी कि प्रत्येक काल में युग में धर्म का स्वरूप वही रहता है। धर्म कभी बदलता नहीं है। उदाहरण के लिए पानी, अग्नि आदि पदार्थ का धर्म सृष्टि निर्माण से आज पर्यन्त समान है। धर्म और सम्प्रदाय में मूलभूत अंतर है। धर्म का अर्थ जब गुण और जीवन में धारण करने योग्य होता है तो वह प्रत्येक मानव के लिए समान होना चाहिए। जब पदार्थ का धर्म सार्वभौमिक है तो मानव जाति के लिए भी तो इसकी सार्वभौमिकता होनी चाहिए। अतः मानव के सन्दर्भ में धर्म की बात करें तो वह केवल मानव धर्म है। हिन्दू, मुस्लिम, ईसाई, जैन या बौद्ध आदि धर्म न होकर सम्प्रदाय या समुदाय मात्र हैं। “सम्प्रदाय” एक परम्परा के मानने वालों का समूह है। (पालि: धम्म) भारतीय संस्कृति और दर्शन की प्रमुख संकल्पना है। 'धर्म' शब्द का पश्चिमी भाषाओं में कोई तुल्य शब्द पाना बहुत कठिन है। साधारण शब्दों में धर्म के बहुत से अर्थ हैं जिनमें से कुछ ये हैं- कर्तव्य, अहिंसा, न्याय, सदाचरण, सद्-गुण आदि। .

नई!!: भारतीय राजनय का इतिहास और धर्म · और देखें »

धूम्रपान

. इसे एक रिवाज के एक भाग के रूप में, समाधि में जाने के लिए प्रेरित करने और आध्यात्मिक ज्ञान को उत्पन्न करने में भी किया जा सकता है। वर्तमान में धूम्रपान की सबसे प्रचलित विधि सिगरेट है, जो मुख्य रूप से उद्योगों द्वारा निर्मित होती है किन्तु खुले तम्बाकू तथा कागज़ को हाथ से गोल करके भी बनाई जाती है। धूम्रपान के अन्य साधनों में पाइप, सिगार, हुक्का एवं बॉन्ग शामिल हैं। ऐसा बताया जाता है कि धूम्रपान से संबंधित बीमारियां सभी दीर्घकालिक धूम्रपान करने वालों में से आधों की जान ले लेती हैं किन्तु ये बीमारियां धूम्रपान न करने वालों को भी लग सकती हैं। 2007 की एक रिपोर्ट के अनुसार प्रत्येक वर्ष दुनिया भर में 4.9 मिलियन लोग धूम्रपान की वजह से मरते हैं। धूम्रपान मनोरंजक दवा का एक सबसे सामान्य रूप है। तंबाकू धूम्रपान वर्तमान धूम्रपान का सबसे लोकप्रिय प्रकार है और अधिकतर सभी मानव समाजों में एक बिलियन लोगों द्वारा किया जाता है। धूम्रपान के लिए कम प्रचलित नशीली दवाओं में भांग तथा अफीम शामिल है। कुछ पदार्थों को हानिकारक मादक पदार्थों के रूप में वर्गीकृत किया गया है जैसे कि हेरोइन, किन्तु इनका प्रयोग अत्यंत सीमित है क्योंकि अक्सर ये व्यवसायिक रूप से उपलब्ध नहीं होते.

नई!!: भारतीय राजनय का इतिहास और धूम्रपान · और देखें »

नारद

कोई विवरण नहीं।

नई!!: भारतीय राजनय का इतिहास और नारद · और देखें »

पञ्चतन्त्र

'''पंचतन्त्र''' का विश्व में प्रसार संस्कृत नीतिकथाओं में पंचतंत्र का पहला स्थान माना जाता है। यद्यपि यह पुस्तक अपने मूल रूप में नहीं रह गयी है, फिर भी उपलब्ध अनुवादों के आधार पर इसकी रचना तीसरी शताब्दी ईसा पूर्व के आस- पास निर्धारित की गई है। इस ग्रंथ के रचयिता पं॰ विष्णु शर्मा है। उपलब्ध प्रमाणों के आधार पर कहा जा सकता है कि जब इस ग्रंथ की रचना पूरी हुई, तब उनकी उम्र लगभग ८० वर्ष थी। पंचतंत्र को पाँच तंत्रों (भागों) में बाँटा गया है.

नई!!: भारतीय राजनय का इतिहास और पञ्चतन्त्र · और देखें »

पुराण

पुराण, हिंदुओं के धर्म संबंधी आख्यान ग्रंथ हैं। जिनमें सृष्टि, लय, प्राचीन ऋषियों, मुनियों और राजाओं के वृत्तात आदि हैं। ये वैदिक काल के बहुत्का बाद के ग्रन्थ हैं, जो स्मृति विभाग में आते हैं। भारतीय जीवन-धारा में जिन ग्रन्थों का महत्वपूर्ण स्थान है उनमें पुराण भक्ति-ग्रंथों के रूप में बहुत महत्वपूर्ण माने जाते हैं। अठारह पुराणों में अलग-अलग देवी-देवताओं को केन्द्र मानकर पाप और पुण्य, धर्म और अधर्म, कर्म और अकर्म की गाथाएँ कही गई हैं। कुछ पुराणों में सृष्टि के आरम्भ से अन्त तक का विवरण किया गया है। 'पुराण' का शाब्दिक अर्थ है, 'प्राचीन' या 'पुराना'।Merriam-Webster's Encyclopedia of Literature (1995 Edition), Article on Puranas,, page 915 पुराणों की रचना मुख्यतः संस्कृत में हुई है किन्तु कुछ पुराण क्षेत्रीय भाषाओं में भी रचे गए हैं।Gregory Bailey (2003), The Study of Hinduism (Editor: Arvind Sharma), The University of South Carolina Press,, page 139 हिन्दू और जैन दोनों ही धर्मों के वाङ्मय में पुराण मिलते हैं। John Cort (1993), Purana Perennis: Reciprocity and Transformation in Hindu and Jaina Texts (Editor: Wendy Doniger), State University of New York Press,, pages 185-204 पुराणों में वर्णित विषयों की कोई सीमा नहीं है। इसमें ब्रह्माण्डविद्या, देवी-देवताओं, राजाओं, नायकों, ऋषि-मुनियों की वंशावली, लोककथाएं, तीर्थयात्रा, मन्दिर, चिकित्सा, खगोल शास्त्र, व्याकरण, खनिज विज्ञान, हास्य, प्रेमकथाओं के साथ-साथ धर्मशास्त्र और दर्शन का भी वर्णन है। विभिन्न पुराणों की विषय-वस्तु में बहुत अधिक असमानता है। इतना ही नहीं, एक ही पुराण के कई-कई पाण्डुलिपियाँ प्राप्त हुई हैं जो परस्पर भिन्न-भिन्न हैं। हिन्दू पुराणों के रचनाकार अज्ञात हैं और ऐसा लगता है कि कई रचनाकारों ने कई शताब्दियों में इनकी रचना की है। इसके विपरीत जैन पुराण जैन पुराणों का रचनाकाल और रचनाकारों के नाम बताए जा सकते हैं। कर्मकांड (वेद) से ज्ञान (उपनिषद्) की ओर आते हुए भारतीय मानस में पुराणों के माध्यम से भक्ति की अविरल धारा प्रवाहित हुई है। विकास की इसी प्रक्रिया में बहुदेववाद और निर्गुण ब्रह्म की स्वरूपात्मक व्याख्या से धीरे-धीरे मानस अवतारवाद या सगुण भक्ति की ओर प्रेरित हुआ। पुराणों में वैदिक काल से चले आते हुए सृष्टि आदि संबंधी विचारों, प्राचीन राजाओं और ऋषियों के परंपरागत वृत्तांतों तथा कहानियों आदि के संग्रह के साथ साथ कल्पित कथाओं की विचित्रता और रोचक वर्णनों द्वारा सांप्रदायिक या साधारण उपदेश भी मिलते हैं। पुराण उस प्रकार प्रमाण ग्रंथ नहीं हैं जिस प्रकार श्रुति, स्मृति आदि हैं। पुराणों में विष्णु, वायु, मत्स्य और भागवत में ऐतिहासिक वृत्त— राजाओं की वंशावली आदि के रूप में बहुत कुछ मिलते हैं। ये वंशावलियाँ यद्यपि बहुत संक्षिप्त हैं और इनमें परस्पर कहीं कहीं विरोध भी हैं पर हैं बडे़ काम की। पुराणों की ओर ऐतिहासिकों ने इधर विशेष रूप से ध्यान दिया है और वे इन वंशावलियों की छानबीन में लगे हैं। .

नई!!: भारतीय राजनय का इतिहास और पुराण · और देखें »

फ़ारस

फ़ारस (فارس; Persia) प्राचीन काल के कई साम्राज्यों के केन्द्र रहे प्रदेशों को कहते हैं जो आधुनिक ईरान से तथा उससे संलग्न क्षेत्रों में फैला था। फ़ारस का साम्राज्य कई बार विशाल बन गया और फिर ढह गया। एक समय इसका विस्तार मध्य यूरोप से लेकर भारत के पश्चिमी छोर तक तथा मध्य एशिया से लेकप मिस्र तक था। १९३५ में रजाशाह पहलवी ने तत्कालीन फारस का नाम बदलकर ईरान कर दिया। इसके निवासियों के संयुक्त रूप से फारसी कहते हैं, यद्यपि इसके निवासियों में जातीय विविधता है। श्रेणी:इतिहास श्रेणी:ईरान en:History of Iran.

नई!!: भारतीय राजनय का इतिहास और फ़ारस · और देखें »

बिन्दुसार

बिम्बिसार से भ्रमित न हों। ---- बिन्दुसार (राज 298-272 ईपू) मौर्य राजवंश के राजा थे जो चन्द्रगुप्त मौर्य के पुत्र थे। बिन्दुसार को अमित्रघात, सिंहसेन्, मद्रसार तथा अजातशत्रु भी कहा गया है। बिन्दुसार महान मौर्य सम्राट अशोक के पिता थे। चन्द्रगुप्त मौर्य एवं दुर्धरा के पुत्र बिन्दुसार ने काफी बड़े राज्य का शासन संपदा में प्राप्त किया। उन्होंने दक्षिण भारत की तरफ़ भी राज्य का विस्तार किया। चाणक्य उनके समय में भी प्रधानमन्त्री बनकर रहे। बिन्दुसार के शासन में तक्षशिला के लोगों ने दो बार विद्रोह किया। पहली बार विद्रोह बिन्दुसार के बड़े पुत्र सुशीमा के कुप्रशासन के कारण हुआ। दूसरे विद्रोह का कारण अज्ञात है पर उसे बिन्दुसार के पुत्र अशोक ने दबा दिया। बिन्दुसार की मृत्यु 272 ईसा पूर्व (कुछ तथ्य 268 ईसा पूर्व की तरफ़ इशारा करते हैं)। बिन्दुसार को 'पिता का पुत्र और पुत्र का पिता' नाम से जाना जाता है क्योंकि वह प्रसिद्ध व पराक्रमी शासक चन्द्रगुप्त मौर्य के पुत्र एवं महान राजा अशोक के पिता थे। .

नई!!: भारतीय राजनय का इतिहास और बिन्दुसार · और देखें »

बिस्मार्क

250px ओटो एडुअर्ड लिओपोल्ड बिस्मार्क (1 अप्रैल 1815 - 30 जुलाई 1898), जर्मन साम्राज्य का प्रथम चांसलर तथा तत्कालीन यूरोप का प्रभावी राजनेता था। वह 'ओटो फॉन बिस्मार्क' के नाम से अधिक प्रसिद्ध है। उसने अनेक जर्मनभाषी राज्यों का एकीकरण करके शक्तिशाली जर्मन साम्राज्य स्थापित किया। वह द्वितीय जर्मन साम्राज्य का प्रथम चांसलर बना। वह "रीअलपालिटिक" की नीति के लिये प्रसिद्ध है जिसके कारण उसे "लौह चांसलर" के उपनाम से जाना जाता है। वह अपने युग का बहुत बड़ा कूटनीतिज्ञ था। अपने कूटनीतिक सन्धियों के तहत फ्रांस को मित्रविहीन कर जर्मनी को यूरोप की सर्वप्रमुख शक्ति बना दिया। बिस्मार्क ने एक नवीन वैदेशिक नीति का सूत्रपात किया जिसके तहत शान्तिकाल में युद्ध को रोकने और शान्ति को बनाए रखने के लिए गुटों का निर्माण किया। उसकी इस 'सन्धि प्रणाली' ने समस्त यूरोप को दो गुटों में बांट दिया। .

नई!!: भारतीय राजनय का इतिहास और बिस्मार्क · और देखें »

बगुला

बगुला (Herons) नदियों, झीलों और समुद्रों के किनारे मिलने वाले लम्बी टांगों व गर्दनों वाले पक्षियों का एक कुल है। .

नई!!: भारतीय राजनय का इतिहास और बगुला · और देखें »

ब्राह्मण

ब्राह्मण का शब्द दो शब्दों से बना है। ब्रह्म+रमण। इसके दो अर्थ होते हैं, ब्रह्मा देश अर्थात वर्तमान वर्मा देशवासी,द्वितीय ब्रह्म में रमण करने वाला।यदि ऋग्वेद के अनुसार ब्रह्म अर्थात ईश्वर को रमण करने वाला ब्राहमण होता है। । स्कन्दपुराण में षोडशोपचार पूजन के अंतर्गत अष्टम उपचार में ब्रह्मा द्वारा नारद को द्विज की उत्त्पत्ति बताई गई है जन्मना जायते शूद्रः संस्कारात् द्विज उच्यते। शापानुग्रहसामर्थ्यं तथा क्रोधः प्रसन्नता। ब्राह्मण (आचार्य, विप्र, द्विज, द्विजोत्तम) यह वर्ण व्‍यवस्‍था का वर्ण है। एेतिहासिक रूप हिन्दु वर्ण व्‍यवस्‍था में चार वर्ण होते हैं। ब्राह्मण (ज्ञानी ओर आध्यात्मिकता के लिए उत्तरदायी), क्षत्रिय (धर्म रक्षक), वैश्य (व्यापारी) तथा शूद्र (सेवक, श्रमिक समाज)। यस्क मुनि की निरुक्त के अनुसार - ब्रह्म जानाति ब्राह्मण: -- ब्राह्मण वह है जो ब्रह्म (अंतिम सत्य, ईश्वर या परम ज्ञान) को जानता है। अतः ब्राह्मण का अर्थ है - "ईश्वर का ज्ञाता"। सन:' शब्द के भी तप, वेद विद्या अदि अर्थ है | निरंतारार्थक अनन्य में भी 'सना' शब्द का पाठ है | 'आढ्य' का अर्थ होता है धनी | फलतः जो तप, वेद, और विद्या के द्वारा निरंतर पूर्ण है, उसे ही "सनाढ्य" कहते है - 'सनेन तपसा वेदेन च सना निरंतरमाढ्य: पूर्ण सनाढ्य:' उपर्युक्त रीति से 'सनाढ्य' शब्द में ब्राह्मणत्व के सभी प्रकार अनुगत होने पर जो सनाढ्य है वे ब्राह्मण है और जो ब्राह्मण है वे सनाढ्य है | यह निर्विवाद सिद्ध है | अर्थात ऐसा कौन ब्राह्मण होगा, जो 'सनाढ्य' नहीं होना चाहेगा | भारतीय संस्कृति की महान धाराओं के निर्माण में सनाढ्यो का अप्रतिभ योगदान रहा है | वे अपने सुखो की उपेक्षा कर दीपबत्ती की तरह तिलतिल कर जल कर समाज के लिए मिटते रहे है | .

नई!!: भारतीय राजनय का इतिहास और ब्राह्मण · और देखें »

बृहस्पति

कोई विवरण नहीं।

नई!!: भारतीय राजनय का इतिहास और बृहस्पति · और देखें »

भारत

भारत (आधिकारिक नाम: भारत गणराज्य, Republic of India) दक्षिण एशिया में स्थित भारतीय उपमहाद्वीप का सबसे बड़ा देश है। पूर्ण रूप से उत्तरी गोलार्ध में स्थित भारत, भौगोलिक दृष्टि से विश्व में सातवाँ सबसे बड़ा और जनसंख्या के दृष्टिकोण से दूसरा सबसे बड़ा देश है। भारत के पश्चिम में पाकिस्तान, उत्तर-पूर्व में चीन, नेपाल और भूटान, पूर्व में बांग्लादेश और म्यान्मार स्थित हैं। हिन्द महासागर में इसके दक्षिण पश्चिम में मालदीव, दक्षिण में श्रीलंका और दक्षिण-पूर्व में इंडोनेशिया से भारत की सामुद्रिक सीमा लगती है। इसके उत्तर की भौतिक सीमा हिमालय पर्वत से और दक्षिण में हिन्द महासागर से लगी हुई है। पूर्व में बंगाल की खाड़ी है तथा पश्चिम में अरब सागर हैं। प्राचीन सिन्धु घाटी सभ्यता, व्यापार मार्गों और बड़े-बड़े साम्राज्यों का विकास-स्थान रहे भारतीय उपमहाद्वीप को इसके सांस्कृतिक और आर्थिक सफलता के लंबे इतिहास के लिये जाना जाता रहा है। चार प्रमुख संप्रदायों: हिंदू, बौद्ध, जैन और सिख धर्मों का यहां उदय हुआ, पारसी, यहूदी, ईसाई, और मुस्लिम धर्म प्रथम सहस्राब्दी में यहां पहुचे और यहां की विविध संस्कृति को नया रूप दिया। क्रमिक विजयों के परिणामस्वरूप ब्रिटिश ईस्ट इण्डिया कंपनी ने १८वीं और १९वीं सदी में भारत के ज़्यादतर हिस्सों को अपने राज्य में मिला लिया। १८५७ के विफल विद्रोह के बाद भारत के प्रशासन का भार ब्रिटिश सरकार ने अपने ऊपर ले लिया। ब्रिटिश भारत के रूप में ब्रिटिश साम्राज्य के प्रमुख अंग भारत ने महात्मा गांधी के नेतृत्व में एक लम्बे और मुख्य रूप से अहिंसक स्वतन्त्रता संग्राम के बाद १५ अगस्त १९४७ को आज़ादी पाई। १९५० में लागू हुए नये संविधान में इसे सार्वजनिक वयस्क मताधिकार के आधार पर स्थापित संवैधानिक लोकतांत्रिक गणराज्य घोषित कर दिया गया और युनाईटेड किंगडम की तर्ज़ पर वेस्टमिंस्टर शैली की संसदीय सरकार स्थापित की गयी। एक संघीय राष्ट्र, भारत को २९ राज्यों और ७ संघ शासित प्रदेशों में गठित किया गया है। लम्बे समय तक समाजवादी आर्थिक नीतियों का पालन करने के बाद 1991 के पश्चात् भारत ने उदारीकरण और वैश्वीकरण की नयी नीतियों के आधार पर सार्थक आर्थिक और सामाजिक प्रगति की है। ३३ लाख वर्ग किलोमीटर क्षेत्रफल के साथ भारत भौगोलिक क्षेत्रफल के आधार पर विश्व का सातवाँ सबसे बड़ा राष्ट्र है। वर्तमान में भारतीय अर्थव्यवस्था क्रय शक्ति समता के आधार पर विश्व की तीसरी और मानक मूल्यों के आधार पर विश्व की दसवीं सबसे बडी अर्थव्यवस्था है। १९९१ के बाज़ार-आधारित सुधारों के बाद भारत विश्व की सबसे तेज़ विकसित होती बड़ी अर्थ-व्यवस्थाओं में से एक हो गया है और इसे एक नव-औद्योगिकृत राष्ट्र माना जाता है। परंतु भारत के सामने अभी भी गरीबी, भ्रष्टाचार, कुपोषण, अपर्याप्त सार्वजनिक स्वास्थ्य-सेवा और आतंकवाद की चुनौतियां हैं। आज भारत एक विविध, बहुभाषी, और बहु-जातीय समाज है और भारतीय सेना एक क्षेत्रीय शक्ति है। .

नई!!: भारतीय राजनय का इतिहास और भारत · और देखें »

भौतिकवाद

भौतिकवाद (Materialism) दार्शनिक एकत्ववाद का एक प्रकार हैं, जिसका यह मत है कि प्रकृति में पदार्थ ही मूल द्रव्य है, और साथ ही, सभी दृग्विषय, जिस में मानसिक दृग्विषय और चेतना भी शामिल हैं, भौतिक परस्पर संक्रिया के परिणाम हैं। भौतिकवाद का भौतिकतावाद (Physicalism) से गहरा सम्बन्ध हैं, जिसका यह मत है कि जो कुछ भी अस्तित्व में हैं, वह अंततः भौतिक हैं। भौतिक विज्ञानों की ख़ोज के साथ, दार्शनिक भौतिकतावाद भौतिकवाद से क्रम-विकासित हुआ, ताकि सिर्फ़ सामान्य पदार्थ के बजाए भौतिकता के अधिक परिष्कृत विचारों को समाहित किया जा सकें, जैसे कि, दिक्-काल, भौतिक ऊर्जाएँ और बल, डार्क मैटर, इत्यादि। अतः, कुछ लोग "भौतिकवाद" से बढ़कर "भौतिकतावाद" शब्द को वरीयता देते हैं, जबकि कुछ इन शब्दों का प्रयोग समानार्थी शब्दों के रूप में करते हैं। भौतिकवाद या भौतिकतावाद से विरुद्ध दर्शनों में आदर्शवाद, बहुलवाद, द्वैतवाद और एकत्ववाद के कुछ प्रकार सम्मिलित हैं। .

नई!!: भारतीय राजनय का इतिहास और भौतिकवाद · और देखें »

भेद

भेद का अर्थ फ़र्क़ है। .

नई!!: भारतीय राजनय का इतिहास और भेद · और देखें »

भीष्म

भीष्म अथवा भीष्म पितामह महाभारत के सबसे महत्वपूर्ण पात्रों में से एक थे। भीष्म पितामह गंगा तथा शान्तनु के पुत्र थे। उनका मूल नाम देवव्रत था। इन्होंने आजीवन ब्रह्मचर्य जैसी प्रतिज्ञा लेके मृत्यु को भी अपने अधीन कर लिया था। आज के समय मे ब्रह्मचारी कोई नही है। सब इन्द्रियों के ग़ुलाम है, और कहते है की स्वतंत्र है । इनके दूसरे नाम गाँगेय, शांतनव, नदीज, तालकेतु आदि हैं। भगवान परशुराम के शिष्य देवव्रत अपने समय के बहुत ही विद्वान व शक्तिशाली पुरुष थे। महाभारत के अनुसार हर तरह की शस्त्र विद्या के ज्ञानी और ब्रह्मचारी देवव्रत को किसी भी तरह के युद्ध में हरा पाना असंभव था। उन्हें संभवत: उनके गुरु परशुराम ही हरा सकते थे लेकिन इन दोनों के बीच हुआ युद्ध पूर्ण नहीं हुआ और दो अति शक्तिशाली योद्धाओं के लड़ने से होने वाले नुकसान को आंकते हुए इसे भगवान शिव द्वारा रोक दिया गया। इन्हें अपनी उस भीष्म प्रतिज्ञा के लिये भी सर्वाधिक जाना जाता है जिसके कारण इन्होंने राजा बन सकने के बावजूद आजीवन हस्तिनापुर के सिंहासन के संरक्षक की भूमिका निभाई। इन्होंने आजीवन विवाह नहीं किया व ब्रह्मचारी रहे। इसी प्रतिज्ञा का पालन करते हुए महाभारत में उन्होने कौरवों की तरफ से युद्ध में भाग लिया था। इन्हें इच्छा मृत्यु का वरदा था। यह कौरवों के पहले प्रधान सेनापति थे। जो सर्वाधिक दस दिनो तक कौरवों के प्रधान सेनापति रहे थे। कहा जाता है कि द्रोपदी ने शरसय्या पर लेटे हुए भीष्मपितामह से पूछा की उनकी आंखों के सामने चीर हरण हो रहा था और वे चुप रहे तब भीष्मपितामह ने जवाब दिया कि उस समय मै कौरवों के नमक खाता था इस वजह से मुझे मेरी आँखों के सामने एक स्त्री के चीरहरण का कोई फर्क नही पड़ा,परंतु अब अर्जुन ने बानो की वर्षा करके मेरा कौरवों के नमक ग्रहण से बना रक्त निकाल दिया है, अतः अब मुझे अपने पापों का ज्ञान हो रहा है अतः मुझे क्षमा करें द्रोपदी। महाभारत युद्ध खत्म होने पर इन्होंने गंगा किनारे इच्छा मृत्यु ली। .

नई!!: भारतीय राजनय का इतिहास और भीष्म · और देखें »

मद्यव्यसनिता

मद्यव्यसनिता को मद्य निर्भरता के रूप में भी जाना जाता है, जो निर्योग्यकारी व्यसनकारी विकार है। शराब अर्थात अल्कोहल पीनेवाले की सेहत, संबंधों और सामाजिक हैसियत पर इसके नकारात्मक प्रभाव के बावजूद जबरदस्त और अनियंत्रित शराब सेवन द्वारा इसकी चारित्रिक विशेषता बतायी गयी है। अन्य मादक पदार्थों की लत की तरह, चिकित्साशास्त्र में मद्यव्यसनिता को चिकित्सा योग्य बीमारी के रूप परिभाषित किया गया है। "मद्यव्यसनिता" शब्द का प्रयोग व्यापक रूप से 1849 में मैग्नस हस द्वारा किया गया है, लेकिन औषधिशास्त्र में 1960 के दशक में डीएसएम III (DSM III) में इस शब्द की जगह "शराब का अपप्रयोग" और शराब पर निर्भरता" जैसी शब्दावली का प्रयोग किया गया है। इसी प्रकार 1979 में विश्व स्वास्थ्य संगठन की एक विशेषज्ञ समिति ने इसकी नैदानिक स्थिति को देखते हुए मद्यव्यसनिता शब्द के उपयोग को पसंद नहीं किया और इसे "शराब निर्भरता सिंड्रोम" की श्रेणी में रखे जाने को वरीयता दी.

नई!!: भारतीय राजनय का इतिहास और मद्यव्यसनिता · और देखें »

मनु

मनु हिन्दू धर्म के अनुसार, संसार के प्रथम पुरुष थे। प्रथम मनु का नाम स्वयंभुव मनु था, जिनके संग प्रथम स्त्री थी शतरूपा। ये स्वयं भू (अर्थात होना) ब्रह्मा द्वारा प्रकट होने के कारण ही स्वयंभू कहलाये। इन्हीं प्रथम पुरुष और प्रथम स्त्री की सन्तानों से संसार के समस्त जनों की उत्पत्ति हुई। मनु की सन्तान होने के कारण वे मानव या मनुष्य कहलाए। स्वायंभुव मनु को आदि भी कहा जाता है। आदि का अर्थ होता है प्रारंभ। सभी भाषाओं के मनुष्य-वाची शब्द मैन, मनुज, मानव, आदम, आदमी आदि सभी मनु शब्द से प्रभावित है। यह समस्त मानव जाति के प्रथम संदेशवाहक हैं। इन्हें प्रथम मानने के कई कारण हैं। सप्तचरुतीर्थ के पास वितस्ता नदी की शाखा देविका नदी के तट पर मनुष्य जाति की उत्पत्ति हुई। प्रमाण यही बताते हैं कि आदि सृष्टि की उत्पत्ति भारत के उत्तराखण्ड अर्थात् इस ब्रह्मावर्त क्षेत्र में ही हुई। मानव का हिन्दी में अर्थ है वह जिसमें मन, जड़ और प्राण से कहीं अधिक सक्रिय है। मनुष्य में मन की शक्ति है, विचार करने की शक्ति है, इसीलिए उसे मनुष्य कहते हैं। और ये सभी मनु की संतानें हैं इसीलिए मनुष्य को मानव भी कहा जाता है। ब्रह्मा के एक दिन को कल्प कहते हैं। एक कल्प में 14 मनु हो जाते हैं। एक मनु के काल को मन्वन्तर कहते हैं। वर्तमान में वैवस्वत मनु (7वें मनु) हैं। .

नई!!: भारतीय राजनय का इतिहास और मनु · और देखें »

मनुस्मृति

मनुस्मृति हिन्दू धर्म का एक प्राचीन धर्मशास्त्र (स्मृति) है। इसे मानव-धर्म-शास्त्र, मनुसंहिता आदि नामों से भी जाना जाता है। यह उपदेश के रूप में है जो मनु द्वारा ऋषियों को दिया गया। इसके बाद के धर्मग्रन्थकारों ने मनुस्मृति को एक सन्दर्भ के रूप में स्वीकारते हुए इसका अनुसरण किया है। धर्मशास्त्रीय ग्रंथकारों के अतिरिक्त शंकराचार्य, शबरस्वामी जैसे दार्शनिक भी प्रमाणरूपेण इस ग्रंथ को उद्धृत करते हैं। परंपरानुसार यह स्मृति स्वायंभुव मनु द्वारा रचित है, वैवस्वत मनु या प्राचनेस मनु द्वारा नहीं। मनुस्मृति से यह भी पता चलता है कि स्वायंभुव मनु के मूलशास्त्र का आश्रय कर भृगु ने उस स्मृति का उपवृहण किया था, जो प्रचलित मनुस्मृति के नाम से प्रसिद्ध है। इस 'भार्गवीया मनुस्मृति' की तरह 'नारदीया मनुस्मृति' भी प्रचलित है। मनुस्मृति वह धर्मशास्त्र है जिसकी मान्यता जगविख्यात है। न केवल भारत में अपितु विदेश में भी इसके प्रमाणों के आधार पर निर्णय होते रहे हैं और आज भी होते हैं। अतः धर्मशास्त्र के रूप में मनुस्मृति को विश्व की अमूल्य निधि माना जाता है। भारत में वेदों के उपरान्त सर्वाधिक मान्यता और प्रचलन ‘मनुस्मृति’ का ही है। इसमें चारों वर्णों, चारों आश्रमों, सोलह संस्कारों तथा सृष्टि उत्पत्ति के अतिरिक्त राज्य की व्यवस्था, राजा के कर्तव्य, भांति-भांति के विवादों, सेना का प्रबन्ध आदि उन सभी विषयों पर परामर्श दिया गया है जो कि मानव मात्र के जीवन में घटित होने सम्भव है। यह सब धर्म-व्यवस्था वेद पर आधारित है। मनु महाराज के जीवन और उनके रचनाकाल के विषय में इतिहास-पुराण स्पष्ट नहीं हैं। तथापि सभी एक स्वर से स्वीकार करते हैं कि मनु आदिपुरुष थे और उनका यह शास्त्र आदिःशास्त्र है। मनुस्मृति में चार वर्णों का व्याख्यान मिलता है वहीं पर शूद्रों को अति नीच का दर्जा दिया गया और शूद्रों का जीवन नर्क से भी बदतर कर दिया गया मनुस्मृति के आधार पर ही शूद्रों को तरह तरह की यातनाएं मनुवादियों द्वारा दी जाने लगी जो कि इसकी थोड़ी सी झलक फिल्म तीसरी आजादी में भी दिखाई गई है आगे चलकर बाबासाहेब आंबेडकर ने सर्वजन हिताय संविधान का निर्माण किया और मनु स्मृति में आग लगा दी गई जो कि समाज के लिए कल्याणकारी साबित हुई और छुआछूत ऊंच-नीच का आडंबर समाप्त हो गया। .

नई!!: भारतीय राजनय का इतिहास और मनुस्मृति · और देखें »

महाभारत

महाभारत हिन्दुओं का एक प्रमुख काव्य ग्रंथ है, जो स्मृति वर्ग में आता है। कभी कभी केवल "भारत" कहा जाने वाला यह काव्यग्रंथ भारत का अनुपम धार्मिक, पौराणिक, ऐतिहासिक और दार्शनिक ग्रंथ हैं। विश्व का सबसे लंबा यह साहित्यिक ग्रंथ और महाकाव्य, हिन्दू धर्म के मुख्यतम ग्रंथों में से एक है। इस ग्रन्थ को हिन्दू धर्म में पंचम वेद माना जाता है। यद्यपि इसे साहित्य की सबसे अनुपम कृतियों में से एक माना जाता है, किन्तु आज भी यह ग्रंथ प्रत्येक भारतीय के लिये एक अनुकरणीय स्रोत है। यह कृति प्राचीन भारत के इतिहास की एक गाथा है। इसी में हिन्दू धर्म का पवित्रतम ग्रंथ भगवद्गीता सन्निहित है। पूरे महाभारत में लगभग १,१०,००० श्लोक हैं, जो यूनानी काव्यों इलियड और ओडिसी से परिमाण में दस गुणा अधिक हैं। हिन्दू मान्यताओं, पौराणिक संदर्भो एवं स्वयं महाभारत के अनुसार इस काव्य का रचनाकार वेदव्यास जी को माना जाता है। इस काव्य के रचयिता वेदव्यास जी ने अपने इस अनुपम काव्य में वेदों, वेदांगों और उपनिषदों के गुह्यतम रहस्यों का निरुपण किया हैं। इसके अतिरिक्त इस काव्य में न्याय, शिक्षा, चिकित्सा, ज्योतिष, युद्धनीति, योगशास्त्र, अर्थशास्त्र, वास्तुशास्त्र, शिल्पशास्त्र, कामशास्त्र, खगोलविद्या तथा धर्मशास्त्र का भी विस्तार से वर्णन किया गया हैं। .

नई!!: भारतीय राजनय का इतिहास और महाभारत · और देखें »

मिथिला

'''मिथिला''' मिथिला प्राचीन भारत में एक राज्य था। माना जाता है कि यह वर्तमान उत्तरी बिहार और नेपाल की तराई का इलाका है जिसे मिथिला के नाम से जाना जाता था। मिथिला की लोकश्रुति कई सदियों से चली आ रही है जो अपनी बौद्धिक परम्परा के लिये भारत और भारत के बाहर जानी जाती रही है। इस क्षेत्र की प्रमुख भाषा मैथिली है। हिन्दू धार्मिक ग्रंथों में सबसे पहले इसका संकेत शतपथ ब्राह्मण में तथा स्पष्ट उल्लेख वाल्मीकीय रामायण में मिलता है। मिथिला का उल्लेख महाभारत, रामायण, पुराण तथा जैन एवं बौद्ध ग्रन्थों में हुआ है। .

नई!!: भारतीय राजनय का इतिहास और मिथिला · और देखें »

मुद्राराक्षस

मुद्राराक्षस संस्कृत का ऐतिहासिक नाटक है जिसके रचयिता विशाखदत्त हैं। इसकी रचना चौथी शताब्दी में हुई थी। इसमें चाणक्य और चन्द्रगुप्त मौर्य संबंधी ख्यात वृत्त के आधार पर चाणक्य की राजनीतिक सफलताओं का अपूर्व विश्लेषण मिलता है। इस कृति की रचना पूर्ववर्ती संस्कृत-नाट्य परंपरा से सर्वथा भिन्न रूप में हुई है- लेखक ने भावुकता, कल्पना आदि के स्थान पर जीवन-संघर्ष के यथार्थ अंकन पर बल दिया है। इस महत्वपूर्ण नाटक को हिंदी में सर्वप्रथम अनूदित करने का श्रेय भारतेंदु हरिश्चंद्र को है। यों उनके बाद कुछ अन्य लेखकों ने भी इस कृति का अनुवाद किया, किंतु जो ख्याति भारतेंदु हरिश्चंद्र के अनुवाद को प्राप्त हुई, वह किसी अन्य को नहीं मिल सकी। इसमें इतिहास और राजनीति का सुन्दर समन्वय प्रस्तुत किया गया है। इसमें नन्दवंश के नाश, चन्द्रगुप्त के राज्यारोहण, राक्षस के सक्रिय विरोध, चाणक्य की राजनीति विषयक सजगता और अन्ततः राक्षस द्वारा चन्द्रगुप्त के प्रभुत्व की स्वीकृति का उल्लेख हुआ है। इसमें साहित्य और राजनीति के तत्त्वों का मणिकांचन योग मिलता है, जिसका कारण सम्भवतः यह है कि विशाखदत्त का जन्म राजकुल में हुआ था। वे सामन्त बटेश्वरदत्त के पौत्र और महाराज पृथु के पुत्र थे। ‘मुद्राराक्षस’ की कुछ प्रतियों के अनुसार वे महाराज भास्करदत्त के पुत्र थे। इस नाटक के रचना-काल के विषय में तीव्र मतभेद हैं, अधिकांश विद्धान इसे चौथी-पाँचवी शती की रचना मानते हैं, किन्तु कुछ ने इसे सातवीं-आठवीं शती की कृति माना है। संस्कृत की भाँति हिन्दी में भी ‘मुद्राराक्षस’ के कथानक को लोकप्रियता प्राप्त हुई है, जिसका श्रेय भारतेन्दु हरिश्चन्द्र को है। .

नई!!: भारतीय राजनय का इतिहास और मुद्राराक्षस · और देखें »

मौर्य राजवंश

मौर्य राजवंश (३२२-१८५ ईसापूर्व) प्राचीन भारत का एक शक्तिशाली एवं महान राजवंश था। इसने १३७ वर्ष भारत में राज्य किया। इसकी स्थापना का श्रेय चन्द्रगुप्त मौर्य और उसके मन्त्री कौटिल्य को दिया जाता है, जिन्होंने नन्द वंश के सम्राट घनानन्द को पराजित किया। मौर्य साम्राज्य के विस्तार एवं उसे शक्तिशाली बनाने का श्रेय सम्राट अशोक को जाता है। यह साम्राज्य पूर्व में मगध राज्य में गंगा नदी के मैदानों (आज का बिहार एवं बंगाल) से शुरु हुआ। इसकी राजधानी पाटलिपुत्र (आज के पटना शहर के पास) थी। चन्द्रगुप्त मौर्य ने ३२२ ईसा पूर्व में इस साम्राज्य की स्थापना की और तेजी से पश्चिम की तरफ़ अपना साम्राज्य का विकास किया। उसने कई छोटे छोटे क्षेत्रीय राज्यों के आपसी मतभेदों का फायदा उठाया जो सिकन्दर के आक्रमण के बाद पैदा हो गये थे। ३१६ ईसा पूर्व तक मौर्य वंश ने पूरे उत्तरी पश्चिमी भारत पर अधिकार कर लिया था। चक्रवर्ती सम्राट अशोक के राज्य में मौर्य वंश का बेहद विस्तार हुआ। सम्राट अशोक के कारण ही मौर्य साम्राज्य सबसे महान एवं शक्तिशाली बनकर विश्वभर में प्रसिद्ध हुआ। .

नई!!: भारतीय राजनय का इतिहास और मौर्य राजवंश · और देखें »

याज्ञवल्क्य स्मृति

याज्ञवल्क्य स्मृति धर्मशास्त्र परम्परा का एक हिन्दू धर्मशास्त्र का ग्रंथ (स्मृति) है। याज्ञवल्क्य स्मृति को अपने तरह की सबसे अच्छी एवं व्यवस्थित रचना माना जाता है। इसकी विषय-निरूपण-पद्धति अत्यंत सुग्रथित है। इसपर विरचित मिताक्षरा टीका हिंदू धर्मशास्त्र के विषय में भारतीय न्यायालयों में प्रमाण मानी जाती रही है। इसके श्लोक अनुष्टुप छंद में हैं - इसी छंद में गीता, वाल्मीकि रामायण और मनुस्मृति लिखी गई है। इसी विषय (यानि धर्मशास्त्र) पर मनुस्मृति को आधुनिक भारत में अधिक मान्यता मिली है। इसमें आचरण, व्यवहार और प्रायश्चित के तीन अलग अलग भाग हैं। .

नई!!: भारतीय राजनय का इतिहास और याज्ञवल्क्य स्मृति · और देखें »

युद्ध

वर्ष १९४५ में कोलोन युद्ध एक लंबे समय तक चलने वाला आक्रामक कृत्य है जो सामान्यतः राज्यों के बीच झगड़ों के आक्रामक और हथियारबंद लड़ाई में परिवर्तित होने से उत्पन्न होता है। .

नई!!: भारतीय राजनय का इतिहास और युद्ध · और देखें »

युधिष्ठिर

प्राचीन भारत के महाकाव्य महाभारत के अनुसार युधिष्ठिर पांच पाण्डवों में सबसे बड़े भाई थे। वह पांडु और कुंती के पहले पुत्र थे। युधिष्ठिर को धर्मराज (यमराज) पुत्र भी कहा जाता है। वो भाला चलाने में निपुण थे और वे कभी झूठ नहीं बोलते थे। महाभारत के अंतिम दिन उसने अपने मामा शलय का वध किया जो कौरवों की तरफ था। .

नई!!: भारतीय राजनय का इतिहास और युधिष्ठिर · और देखें »

राम

राम (रामचन्द्र) प्राचीन भारत में अवतार रूपी भगवान के रूप में मान्य हैं। हिन्दू धर्म में राम विष्णु के दस अवतारों में से सातवें अवतार हैं। राम का जीवनकाल एवं पराक्रम महर्षि वाल्मीकि द्वारा रचित संस्कृत महाकाव्य रामायण के रूप में वर्णित हुआ है। गोस्वामी तुलसीदास ने भी उनके जीवन पर केन्द्रित भक्तिभावपूर्ण सुप्रसिद्ध महाकाव्य श्री रामचरितमानस की रचना की है। इन दोनों के अतिरिक्त अनेक भारतीय भाषाओं में अनेक रामायणों की रचना हुई हैं, जो काफी प्रसिद्ध भी हैं। खास तौर पर उत्तर भारत में राम बहुत अधिक पूजनीय हैं और हिन्दुओं के आदर्श पुरुष हैं। राम, अयोध्या के राजा दशरथ और रानी कौशल्या के सबसे बड़े पुत्र थे। राम की पत्नी का नाम सीता था (जो लक्ष्मी का अवतार मानी जाती हैं) और इनके तीन भाई थे- लक्ष्मण, भरत और शत्रुघ्न। हनुमान, भगवान राम के, सबसे बड़े भक्त माने जाते हैं। राम ने राक्षस जाति के लंका के राजा रावण का वध किया। राम की प्रतिष्ठा मर्यादा पुरुषोत्तम के रूप में है। राम ने मर्यादा के पालन के लिए राज्य, मित्र, माता पिता, यहाँ तक कि पत्नी का भी साथ छोड़ा। इनका परिवार आदर्श भारतीय परिवार का प्रतिनिधित्व करता है। राम रघुकुल में जन्मे थे, जिसकी परम्परा प्रान जाहुँ बरु बचनु न जाई की थी। श्रीराम के पिता दशरथ ने उनकी सौतेली माता कैकेयी को उनकी किन्हीं दो इच्छाओं को पूरा करने का वचन (वर) दिया था। कैकेयी ने दासी मन्थरा के बहकावे में आकर इन वरों के रूप में राजा दशरथ से अपने पुत्र भरत के लिए अयोध्या का राजसिंहासन और राम के लिए चौदह वर्ष का वनवास माँगा। पिता के वचन की रक्षा के लिए राम ने खुशी से चौदह वर्ष का वनवास स्वीकार किया। पत्नी सीता ने आदर्श पत्नी का उदहारण देते हुए पति के साथ वन जाना उचित समझा। सौतेले भाई लक्ष्मण ने भी भाई के साथ चौदह वर्ष वन में बिताये। भरत ने न्याय के लिए माता का आदेश ठुकराया और बड़े भाई राम के पास वन जाकर उनकी चरणपादुका (खड़ाऊँ) ले आये। फिर इसे ही राज गद्दी पर रख कर राजकाज किया। राम की पत्नी सीता को रावण हरण (चुरा) कर ले गया। राम ने उस समय की एक जनजाति वानर के लोगों की मदद से सीता को ढूँढ़ा। समुद्र में पुल बना कर रावण के साथ युद्ध किया। उसे मार कर सीता को वापस लाये। जंगल में राम को हनुमान जैसा मित्र और भक्त मिला जिसने राम के सारे कार्य पूरे कराये। राम के अयोध्या लौटने पर भरत ने राज्य उनको ही सौंप दिया। राम न्यायप्रिय थे। उन्होंने बहुत अच्छा शासन किया इसलिए लोग आज भी अच्छे शासन को रामराज्य की उपमा देते हैं। इनके पुत्र कुश व लव ने इन राज्यों को सँभाला। हिन्दू धर्म के कई त्योहार, जैसे दशहरा, राम नवमी और दीपावली, राम की जीवन-कथा से जुड़े हुए हैं। .

नई!!: भारतीय राजनय का इतिहास और राम · और देखें »

रामायण

रामायण आदि कवि वाल्मीकि द्वारा लिखा गया संस्कृत का एक अनुपम महाकाव्य है। इसके २४,००० श्लोक हैं। यह हिन्दू स्मृति का वह अंग हैं जिसके माध्यम से रघुवंश के राजा राम की गाथा कही गयी। इसे आदिकाव्य तथा इसके रचयिता महर्षि वाल्मीकि को 'आदिकवि' भी कहा जाता है। रामायण के सात अध्याय हैं जो काण्ड के नाम से जाने जाते हैं। .

नई!!: भारतीय राजनय का इतिहास और रामायण · और देखें »

राजतरंगिणी

राजतरंगिणी, कल्हण द्वारा रचित एक संस्कृत ग्रन्थ है। 'राजतरंगिणी' का शाब्दिक अर्थ है - राजाओं की नदी, जिसका भावार्थ है - 'राजाओं का इतिहास या समय-प्रवाह'। यह कविता के रूप में है। इसमें कश्मीर का इतिहास वर्णित है जो महाभारत काल से आरम्भ होता है। इसका रचना काल सन ११४७ से ११४९ तक बताया जाता है। भारतीय इतिहास-लेखन में कल्हण की राजतरंगिणी पहली प्रामाणिक पुस्तक मानी जाती है। इस पुस्तक के अनुसार कश्मीर का नाम "कश्यपमेरु" था जो ब्रह्मा के पुत्र ऋषि मरीचि के पुत्र थे। राजतरंगिणी के प्रथम तरंग में बताया गया है कि सबसे पहले कश्मीर में पांडवों के सबसे छोटे भाई सहदेव ने राज्य की स्थापना की थी और उस समय कश्मीर में केवल वैदिक धर्म ही प्रचलित था। फिर सन 273 ईसा पूर्व कश्मीर में बौद्ध धर्म का आगमन हुआ। १९वीं शताब्दी के उत्तरार्ध में औरेल स्टीन (Aurel Stein) ने पण्डित गोविन्द कौल के सहयोग से राजतरंगिणी का अंग्रेजी अनुवाद कराया। राजतरंगिणी एक निष्पक्ष और निर्भय ऐतिहासिक कृति है। स्वयं कल्हण ने राजतरंगिणी में कहा है कि एक सच्चे इतिहास लेखक की वाणी को न्यायाधीश के समान राग-द्वेष-विनिर्मुक्त होना चाहिए, तभी उसकी प्रशंसा हो सकती है- .

नई!!: भारतीय राजनय का इतिहास और राजतरंगिणी · और देखें »

राजनय

न्यूयार्क स्थित संयुक्त राष्ट्रसंघ संसार का सबसे बडा राजनयिक संगठन है। राष्ट्रों अथवा समूहों के प्रतिनिधियों द्वारा किसी मुद्दे पर चर्चा एवं वार्ता करने की कला व अभ्यास (प्रैक्टिस) राजनय (डिप्लोमैसी) कहलाता है। आज के वैज्ञानिक युग में कोई देश अलग-अलग नहीं रह सकता। इन देशों में पारस्परिक सम्बन्ध जोड़ना आज के युग में आवश्यक हो गया है। इन सम्बन्धों को जोड़ने के लिए योग्य व्यक्ति एक देश से दूसरे देश में भेजे जाते हैं। ये व्यक्ति अपनी योग्यता, कुशलता और कूटनीति से दूसरे देश को प्रायः मित्र बना लेते हैं। प्राचीन काल में भी एक राज्य दूसरे राज्य से कूटनीतिक सम्बन्ध जोड़ने के लिए अपने कूटनीतिज्ञ भेजता था। पहले कूटनीति का अर्थ 'सौदे में या लेन देन में वाक्य चातुरी, छल-प्रपंच, धोखा-धड़ी' लगाया जाता था। जो व्यक्ति कम मूल्य देकर अधिकाधिक लाभ अपने देश के लिए प्राप्त करता था, कुशल कूटनीतिज्ञ कहलाता था। परन्तु आज छल-प्रपंच को कूटनीति नहीं कहा जाता है। वैज्ञानिक दृष्टि से आधुनिक काल में इस शब्द का प्रयोग दो राज्यों में शान्तिपूर्ण समझौते के लिए किया जाता है। डिप्लोमेसी के लिए हिन्दी में कूटनीति के स्थान पर राजनय शब्द का प्रयोग होने लगा है। अन्तर्राष्ट्रीय जगत एक परिवार के समान बन गया है। परिवार के सदस्यों में प्रेम, सहयोग, सद्भावना तथा मित्रता का सम्बन्ध जोड़ना एक कुशल राजनयज्ञ का काम है। .

नई!!: भारतीय राजनय का इतिहास और राजनय · और देखें »

राजनीति विज्ञान

राजनीति विज्ञान एक सामाजिक विज्ञान है जो सरकार और राजनीति के अध्ययन से सम्बन्धित है। राजनीति विज्ञान अध्ययन का एक विस्तृत विषय या क्षेत्र है। राजनीति विज्ञान में ये तमाम बातें शामिल हैं: राजनीतिक चिंतन, राजनीतिक सिद्धान्त, राजनीतिक दर्शन, राजनीतिक विचारधारा, संस्थागत या संरचनागत ढांचा, तुलनात्मक राजनीति, लोक प्रशासन, अंतर्राष्ट्रीय कानून और संगठन आदि। .

नई!!: भारतीय राजनय का इतिहास और राजनीति विज्ञान · और देखें »

राजमण्डल

राजमण्डल का सिद्धान्त कौटिल्य द्वारा रचित अर्थशास्त्र में आया है। 'मडल' का अर्थ 'वृत्त' है। इस सिद्धान्त में किसी राज्य के मित्रमण्डली और शत्रुओं की मडली का सिद्धान्त दिया गया है। श्रेणी:राजनीति.

नई!!: भारतीय राजनय का इतिहास और राजमण्डल · और देखें »

राजा

राजा (king) राजतंत्रात्मक शासन तंत्र का सर्वोच्च पद है। प्रायः यह वंशानुगत होता है। कुछ उदाहरण ऐसे जरूर मिलते हैं जहाँ राजा का चुनाव वंश परंपरा के बाहर के लोगों में से किया गया है। वह अपने मंत्रियों की सलाह से अपने राज्य पर शासन करता है। वह अपने शासन क्षेत्र, अधिपत्य या नियंत्रण वाले क्षेत्रों के लोगों के लिए नियम और नीतियाँ बनाता है। उसकी सहायता के लिए दरबार में विभिन्न स्तर के पद होते हैं। राजा के गुण और कर्तव्यों पर महाभारत सहित अनेक ग्रंथों में प्रकाश डाला गया है। .

नई!!: भारतीय राजनय का इतिहास और राजा · और देखें »

रावण

त्रिंकोमली के कोणेश्वरम मन्दिर में रावण की प्रतिमा रावण रामायण का एक प्रमुख प्रतिचरित्र है। रावण लंका का राजा था। वह अपने दस सिरों के कारण भी जाना जाता था, जिसके कारण उसका नाम दशानन (दश .

नई!!: भारतीय राजनय का इतिहास और रावण · और देखें »

रोम

यह लेख इटली की राजधानी एवं प्राचीन नगर 'रोम' के बारे में है। इसी नाम के अन्य नगर संयुक्त राज्य अमरीका में भी है। स्तनधारियों की त्वचा पर पाए जाने वाले कोमल बाल (en:hair) के लिये बाल देखें। इसका पर्यायवाची शब्द रोयाँ या रोआँ (बहुवचन - रोएँ) है। ---- '''रोम''' नगर की स्थिति रोम (Rome) इटली देश की राजधानी है। .

नई!!: भारतीय राजनय का इतिहास और रोम · और देखें »

लोमड़ी

लोमड़ी लोमड़ी (fox) एक जन्तु है। Phylum: Chordata Class: Mammalia Order: Carnivora Family: Canidae लोमडी सामान्यतः 2 से 3 वर्ष तक जीवित रहती है आहार लोमडी के आहार में रोडेन्ट, कीड़ों, कृमि, फल, मछली, पक्षी, अंडे और अन्य सभी प्रकार के छोटे जानवर है। लोमड़ी की जरुरत आम तौर पर हर दिन 1 किलोग्राम खाद्यान्न की है। श्रेणी:स्तनधारी.

नई!!: भारतीय राजनय का इतिहास और लोमड़ी · और देखें »

शुक्रनीति

शुक्रनीति एक प्रसिद्ध नीतिग्रन्थ है। इसकी रचना करने वाले शुक्र का नाम महाभारत में 'शुक्राचार्य' के रूप में मिलता है। शुक्रनीति के रचनाकार और उनके काल के बारे में कुछ भी पता नहीं है। शुक्रनीति में २००० श्लोक हैं जो इसके चौथे अध्याय में उल्लिखित है। उसमें यह भी लिखा है कि इस नीतिसार का रात-दिन चिन्तन करने वाला राजा अपना राज्य-भार उठा सकने में सर्वथा समर्थ होता है। इसमें कहा गया है कि तीनों लोकों में शुक्रनीति के समान दूसरी कोई नीति नहीं है और व्यवहारी लोगों के लिये शुक्र की ही नीति है, शेष सब 'कुनीति' है। शुक्रनीति की सामग्री कामन्दकीय नीतिसार से भिन्न मिलती है। इसके चार अध्यायों में से प्रथम अध्याय में राजा, उसके महत्व और कर्तव्य, सामाजिक व्यवस्था, मन्त्री और युवराज सम्बन्धी विषयों का विवेचन किया गया है। .

नई!!: भारतीय राजनय का इतिहास और शुक्रनीति · और देखें »

शुक्राचार्य

शुक्र ग्रह के रूप में शुक्राचार्य की मूर्ति असुराचार्य, भृगु ऋषि तथा हिरण्यकशिपु की पुत्री दिव्या के पुत्र जो शुक्राचार्य के नाम से अधिक ख्यात हें। इनका जन्म का नाम 'शुक्र उशनस' है। पुराणों के अनुसार याह दैत्यों के गुरू तथा पुरोहित थे। कहते हैं, भगवान के वामनावतार में तीन पग भूमि प्राप्त करने के समय, यह राजा बलि की झारी के मुख में जाकर बैठ गए और बलि द्वारा दर्भाग्र से झारी साफ करने की क्रिया में इनकी एक आँख फूट गई। इसीलिए यह "एकाक्ष" भी कहे जाते थे। आरंभ में इन्होंने अंगिरस ऋषि का शिष्यत्व ग्रहण किया किंतु जब वह अपने पुत्र के प्रति पक्षपात दिखाने लगे तब इन्होंने शंकर की आराधना कर मृतसंजीवनी विद्या प्राप्त की जिसके बल पर देवासुर संग्राम में असुर अनेक बार जीते। इन्होंने 1,000 अध्यायोंवाले "बार्हस्पत्य शास्त्र" की रचना की। 'गो' और 'जयंती' नाम की इनकी दो पत्नियाँ थीं। असुरों के आचार्य होने के कारण ही इन्हें 'असुराचार्य' कहते हैं। .

नई!!: भारतीय राजनय का इतिहास और शुक्राचार्य · और देखें »

श्रीमद्भगवद्गीता

कुरु क्षेत्र की युद्धभूमि में श्रीकृष्ण ने अर्जुन को जो उपदेश दिया था वह श्रीमद्भगवदगीता के नाम से प्रसिद्ध है। यह महाभारत के भीष्मपर्व का अंग है। गीता में १८ अध्याय और ७०० श्लोक हैं। जैसा गीता के शंकर भाष्य में कहा है- तं धर्मं भगवता यथोपदिष्ट वेदव्यास: सर्वज्ञोभगवान् गीताख्यै: सप्तभि: श्लोकशतैरु पनिबंध। ज्ञात होता है कि लगभग ८वीं सदी के अंत में शंकराचार्य (७८८-८२०) के सामने गीता का वही पाठ था जो आज हमें उपलब्ध है। १०वीं सदी के लगभग भीष्मपर्व का जावा की भाषा में एक अनुवाद हुआ था। उसमें अनेक मूलश्लोक भी सुरक्षित हैं। श्रीपाद कृष्ण बेल्वेलकर के अनुसार जावा के इस प्राचीन संस्करण में गीता के केवल साढ़े इक्यासी श्लोक मूल संस्कृत के हैं। उनसे भी वर्तमान पाठ का समर्थन होता है। गीता की गणना प्रस्थानत्रयी में की जाती है, जिसमें उपनिषद् और ब्रह्मसूत्र भी संमिलित हैं। अतएव भारतीय परंपरा के अनुसार गीता का स्थान वही है जो उपनिषद् और ब्रह्मसूत्रों का है। गीता के माहात्म्य में उपनिषदों को गौ और गीता को उसका दुग्ध कहा गया है। इसका तात्पर्य यह है कि उपनिषदों की जो अध्यात्म विद्या थी, उसको गीता सर्वांश में स्वीकार करती है। उपनिषदों की अनेक विद्याएँ गीता में हैं। जैसे, संसार के स्वरूप के संबंध में अश्वत्थ विद्या, अनादि अजन्मा ब्रह्म के विषय में अव्ययपुरुष विद्या, परा प्रकृति या जीव के विषय में अक्षरपुरुष विद्या और अपरा प्रकृति या भौतिक जगत के विषय में क्षरपुरुष विद्या। इस प्रकार वेदों के ब्रह्मवाद और उपनिषदों के अध्यात्म, इन दोनों की विशिष्ट सामग्री गीता में संनिविष्ट है। उसे ही पुष्पिका के शब्दों में ब्रह्मविद्या कहा गया है। गीता में 'ब्रह्मविद्या' का आशय निवृत्तिपरक ज्ञानमार्ग से है। इसे सांख्यमत कहा जाता है जिसके साथ निवृत्तिमार्गी जीवनपद्धति जुड़ी हुई है। लेकिन गीता उपनिषदों के मोड़ से आगे बढ़कर उस युग की देन है, जब एक नया दर्शन जन्म ले रहा था जो गृहस्थों के प्रवृत्ति धर्म को निवृत्ति मार्ग के समकक्ष और उतना ही फलदायक मानता था। इसी का संकेत देनेवाला गीता की पुष्पिका में ‘योगशास्त्रे’ शब्द है। यहाँ ‘योगशास्त्रे’ का अभिप्राय नि:संदेह कर्मयोग से ही है। गीता में योग की दो परिभाषाएँ पाई जाती हैं। एक निवृत्ति मार्ग की दृष्टि से जिसमें ‘समत्वं योग उच्यते’ कहा गया है अर्थात् गुणों के वैषम्य में साम्यभाव रखना ही योग है। सांख्य की स्थिति यही है। योग की दूसरी परिभाषा है ‘योग: कर्मसु कौशलम’ अर्थात् कर्मों में लगे रहने पर भी ऐसे उपाय से कर्म करना कि वह बंधन का कारण न हो और कर्म करनेवाला उसी असंग या निर्लेप स्थिति में अपने को रख सके जो ज्ञानमार्गियों को मिलती है। इसी युक्ति का नाम बुद्धियोग है और यही गीता के योग का सार है। गीता के दूसरे अध्याय में जो ‘तस्य प्रज्ञाप्रतिष्ठिता’ की धुन पाई जाती है, उसका अभिप्राय निर्लेप कर्म की क्षमतावली बुद्धि से ही है। यह कर्म के संन्यास द्वारा वैराग्य प्राप्त करने की स्थिति न थी बल्कि कर्म करते हुए पदे पदे मन को वैराग्यवाली स्थिति में ढालने की युक्ति थी। यही गीता का कर्मयोग है। जैसे महाभारत के अनेक स्थलों में, वैसे ही गीता में भी सांख्य के निवृत्ति मार्ग और कर्म के प्रवृत्तिमार्ग की व्याख्या और प्रशंसा पाई जाती है। एक की निंदा और दूसरे की प्रशंसा गीता का अभिमत नहीं, दोनों मार्ग दो प्रकार की रु चि रखनेवाले मनुष्यों के लिए हितकर हो सकते हैं और हैं। संभवत: संसार का दूसरा कोई भी ग्रंथ कर्म के शास्त्र का प्रतिपादन इस सुंदरता, इस सूक्ष्मता और निष्पक्षता से नहीं करता। इस दृष्टि से गीता अद्भुत मानवीय शास्त्र है। इसकी दृष्टि एकांगी नहीं, सर्वांगपूर्ण है। गीता में दर्शन का प्रतिपादन करते हुए भी जो साहित्य का आनंद है वह इसकी अतिरिक्त विशेषता है। तत्वज्ञान का सुसंस्कृत काव्यशैली के द्वारा वर्णन गीता का निजी सौरभ है जो किसी भी सहृदय को मुग्ध किए बिना नहीं रहता। इसीलिए इसका नाम भगवद्गीता पड़ा, भगवान् का गाया हुआ ज्ञान। .

नई!!: भारतीय राजनय का इतिहास और श्रीमद्भगवद्गीता · और देखें »

श्रीरामचरितमानस

गीताप्रेस गोरखपुर द्वारा प्रकाशित श्रीरामचरितमानस का आवरण श्री राम चरित मानस अवधी भाषा में गोस्वामी तुलसीदास द्वारा १६वीं सदी में रचित एक महाकाव्य है। इस ग्रन्थ को हिंदी साहित्य की एक महान कृति माना जाता है। इसे सामान्यतः 'तुलसी रामायण' या 'तुलसीकृत रामायण' भी कहा जाता है। रामचरितमानस भारतीय संस्कृति में एक विशेष स्थान रखता है। उत्तर भारत में 'रामायण' के रूप में बहुत से लोगों द्वारा प्रतिदिन पढ़ा जाता है। शरद नवरात्रि में इसके सुन्दर काण्ड का पाठ पूरे नौ दिन किया जाता है। रामायण मण्डलों द्वारा शनिवार को इसके सुन्दरकाण्ड का पाठ किया जाता है। श्री रामचरित मानस के नायक राम हैं जिनको एक महाशक्ति के रूप में दर्शाया गया है जबकि महर्षि वाल्मीकि कृत रामायण में श्री राम को एक मानव के रूप में दिखाया गया है। तुलसी के प्रभु राम सर्वशक्तिमान होते हुए भी मर्यादा पुरुषोत्तम हैं। त्रेता युग में हुए ऐतिहासिक राम-रावण युद्ध पर आधारित और हिन्दी की ही एक लोकप्रिय भाषा अवधी में रचित रामचरितमानस को विश्व के १०० सर्वश्रेष्ठ लोकप्रिय काव्यों में ४६वाँ स्थान दिया गया। .

नई!!: भारतीय राजनय का इतिहास और श्रीरामचरितमानस · और देखें »

श्रीलंका

श्रीलंका (आधिकारिक नाम श्रीलंका समाजवादी जनतांत्रिक गणराज्य) दक्षिण एशिया में हिन्द महासागर के उत्तरी भाग में स्थित एक द्वीपीय देश है। भारत के दक्षिण में स्थित इस देश की दूरी भारत से मात्र ३१ किलोमीटर है। १९७२ तक इसका नाम सीलोन (अंग्रेजी:Ceylon) था, जिसे १९७२ में बदलकर लंका तथा १९७८ में इसके आगे सम्मानसूचक शब्द "श्री" जोड़कर श्रीलंका कर दिया गया। श्रीलंका का सबसे बड़ा नगर कोलम्बो समुद्री परिवहन की दृष्टि से एक महत्वपूर्ण बन्दरगाह है। .

नई!!: भारतीय राजनय का इतिहास और श्रीलंका · और देखें »

शेर

शेर के कई अर्थ हो सकते हैं.

नई!!: भारतीय राजनय का इतिहास और शेर · और देखें »

षाड्गुण्य

षाड्गुण्य मनु का मौलिक सिद्धान्त है, जिसमें वह राजा को संधि, विग्रह, यान, आसन, द्वैधीभाव और संश्रय गुणों को ग्रहण करने का परामर्श देते है। इसी के माध्यम से राजा सूचनायें एकत्रित करता था। .

नई!!: भारतीय राजनय का इतिहास और षाड्गुण्य · और देखें »

सन्धि (समझौता)

पांच भाषाओं - जर्मन, हंग्री की भाषा, बुल्गेरियायी भाषा, तुर्की भाषा एवं रूसी भाषा में ब्रेस्ट-लिटोव्स्क संधि के प्रथम दो पृष्ट अन्तरराष्ट्रीय विधि के अन्तर्गत दो या अधिक देशों या अन्य अन्तरराषट्रीय संगठनों के बीच हुए करार (agreement) या समझौते को सन्धि (treaty) कहते हैं। जिनका स्वरूप अनुबंध के समान होता है तथा जिनके अनुसार संबंधित पक्षों के प्रति कुछ में परस्पर विधिवत् अधिकारकर्तव्य के दायित्व की सृष्टि होती है। अंतरराष्ट्रीय क्षेत्र में संधियों का वह स्थान है जो देशीय क्षेत्र में विधिनियमों का होता है। यह वह साधन है जिनके द्वारा विभिन्न राज्य अपने अंतरराष्ट्रीय जीवन का व्यवहार संतुलित करते हैं। .

नई!!: भारतीय राजनय का इतिहास और सन्धि (समझौता) · और देखें »

समुद्रगुप्त

समुद्रगुप्त (राज 335-380) गुप्त राजवंश के चौथे राजा और चन्द्रगुप्त प्रथम के उत्तरधिकरी थे। वे भारतीय इतिहास में सबसे बड़े और सफल सेनानायक में से एक माने जाते है। समुद्रगुप्त, गुप्त राजवंश के तीसरे शासक थे, और उनका शासनकाल भारत के लिये स्वर्णयुग की शुरूआत कही जाती है। समुद्रगुप्त को गुप्त राजवंश का महानतम राजा माना जाता है। वे एक उदार शासक, वीर योद्धा और कला के संरक्षक थे। उनका नाम जावा पाठ में तनत्रीकमन्दका के नाम से प्रकट है। उसका नाम समुद्र की चर्चा करते हुए अपने विजय अभियान द्वारा अधिग्रहीत एक शीर्षक होना करने के लिए लिया जाता है जिसका अर्थ है "महासागर"। समुद्रगुप्त के कई अग्रज भाई थे, फिर भी उनके पिता ने समुद्रगुप्त की प्रतिभा के देख कर उन्हें अपना उत्तराधिकारी नियुक्त किया। इसलिए कुछ का मानना है कि चंद्रगुप्त की मृत्यु के बाद, उत्तराधिकारी के लिये संघर्ष हुआ जिसमें समुद्रगुप्त एक प्रबल दावेदार बन कर उभरे। कहा जाता है कि समुद्रगुप्त ने शासन पाने के लिये अपने प्रतिद्वंद्वी अग्रज राजकुमार काछा को हराया था। समुद्रगुप्त का नाम सम्राट अशोक के साथ जोड़ा जाता रहा है, हलांकि वे दोनो एक-दूसरे से बिल्कुल भिन्न थे। एक अपने विजय अभियान के लिये जाने जाते थे और दूसरे अपने जुनून के लिये जाने जाते थे। गुप्तकालीन मुद्रा पर वीणा बजाते हुए समुद्रगुप्त का चित्र समुद्र्गुप्त भारत का महान शासक था जिसने अपने जीवन काल मे कभी भी पराजय का स्वाद नही चखा। उसके बारे में वि.एस स्मिथ आकलन किया है कि समुद्रगुप्त प्राचीनकाल में "भारत का नेपोलियन" था। .

नई!!: भारतीय राजनय का इतिहास और समुद्रगुप्त · और देखें »

सिकंदर

सिकंदर (Alexander) (356 ईपू से 323 ईपू) मकदूनियाँ, (मेसेडोनिया) का ग्रीक प्रशासक था। वह एलेक्ज़ेंडर तृतीय तथा एलेक्ज़ेंडर मेसेडोनियन नाम से भी जाना जाता है। इतिहास में वह कुशल और यशस्वी सेनापतियों में से एक माना गया है। अपनी मृत्यु तक वह उन सभी भूमि मे से लगभग आधी भूमि जीत चुका था, जिसकी जानकारी प्राचीन ग्रीक लोगों को थी(सत्य ये है की वह पृथ्वी के मात्र 5 प्रतीशत हिस्से को ही जीत पाया था) और उसके विजय रथ को रोकने में सबसे मुख्य भूमिका भारत के महान राजा पुरु (जिन्हे युनानी इतिहासकारों नें पोरस से सम्बोधित किया है।)और भारत के क्षेत्रीय सरदारो की थी, जिन्होंने सिकंदर की सेना में अपने पराक्रम के दम पर भारत के प्रति खौफ पैदा कर उसके हौसले पस्त कर दिये और उसे भारत से लौटने पर मजबूर कर दिया।। उसने अपने कार्यकाल में इरान, सीरिया, मिस्र, मसोपोटेमिया, फिनीशिया, जुदेआ, गाझा, बॅक्ट्रिया और भारत में पंजाब(जिसके राजा पुरु थे।) तक के प्रदेश पर विजय हासिल की थी परन्तु बाद में वो मगध की विशाल सेना से डर कर लौट गया ।।उल्लेखनीय है कि उपरोक्त क्षेत्र उस समय फ़ारसी साम्राज्य के अंग थे और फ़ारसी साम्राज्य सिकन्दर के अपने साम्राज्य से कोई 40 गुना बड़ा था। फारसी में उसे एस्कंदर-ए-मक्दुनी (मॅसेडोनिया का अलेक्ज़ेंडर, एस्कन्दर का अपभ्रंश सिकन्दर है) औऱ हिंदी में अलक्षेन्द्र कहा गया है। .

नई!!: भारतीय राजनय का इतिहास और सिकंदर · और देखें »

संधि (व्याकरण)

संधि (सम् + धि) शब्द का अर्थ है 'मेल'। दो निकटवर्ती वर्णों के परस्पर मेल से जो विकार (परिवर्तन) होता है वह संधि कहलाता है। जैसे - सम् + तोष .

नई!!: भारतीय राजनय का इतिहास और संधि (व्याकरण) · और देखें »

स्मृति

स्मृति हिन्दू धर्म के उन धर्मग्रन्थों का समूह है जिनकी मान्यता श्रुति से नीची श्रेणी की हैं और जो मानवों द्वारा उत्पन्न थे। इनमें वेद नहीं आते। स्मृति का शाब्दिक अर्थ है - "याद किया हुआ"। यद्यपि स्मृति को वेदों से नीचे का दर्ज़ा हासिल है लेकिन वे (रामायण, महाभारत, गीता, पुराण) अधिकांश हिन्दुओं द्वारा पढ़ी जाती हैं, क्योंकि वेदों को समझना बहुत कठिन है और स्मृतियों में आसान कहानियाँ और नैतिक उपदेश हैं। इसकी सीमा में विभिन्न धार्मिक ग्रन्थों—गीता, महाभारत, विष्णुसहस्रनाम की भी गणना की जाने लगी। शंकराचार्य ने इन सभी ग्रन्थों को स्मृति ही माना है। मनु ने श्रुति तथा स्मृति महत्ता को समान माना है। गौतम ऋषि ने भी यही कहा है कि ‘वेदो धर्ममूल तद्धिदां च स्मृतिशीले'। हरदत्त ने गौतम की व्खाख्या करते हुए कहा कि स्मृति से अभिप्राय है मनुस्मृति से। परन्तु उनकी यह व्याख्या उचित नहीं प्रतीत होती क्योंकि स्मृति और शील इन शब्दों का प्रयोग स्रोत के रूप में किया है, किसी विशिष्ट स्मृति ग्रन्थ या शील के लिए नहीं। स्मृति से अभिप्राय है वेदविदों की स्मरण शक्ति में पड़ी उन रूढ़ि और परम्पराओं से जिनका उल्लेख वैदिक साहित्य में नहीं किया गया है तथा शील से अभिप्राय है उन विद्वानों के व्यवहार तथा आचार में उभरते प्रमाणों से। फिर भी आपस्तम्ब ने अपने धर्म-सूत्र के प्रारम्भ में ही कहा है ‘धर्मज्ञसमयः प्रमाणं वेदाश्च’। स्मृतियों की रचना वेदों की रचना के बाद लगभग ५०० ईसा पूर्व हुआ। छठी शताब्दी ई.पू.

नई!!: भारतीय राजनय का इतिहास और स्मृति · और देखें »

सोमदेव

सोमदेव (अनुमानतः ग्यारहवीं शताब्दी) कथासरित्सागर के रचयिता हैं। वे कश्मीर के निवासी थे। सोमदेव के जीवन के बारे में कुछ भी पता नहीं है। उनके पिता का नाम 'राम' था। सम्भवतः १०६३ और १०८१ के मध्य उन्होने रानी सूर्यमती के चित्तविनोद के लिये उन्होने इस महाग्रन्थ की रचना की। सूर्यमती जालन्धर की राजकुमारी और कश्मीर के राजा अनन्तदेव की पत्नी थीं। कहा जाता है कि भयानक राजनैतिक अशान्ति, रक्तपात और जटिल परिस्थितियों के कारण बिषादग्रस्त हुई रानी के मानसिक स्वास्थ्य के लिये इस ग्रन्थ की रचना हुई। सोमदेव शैव ब्राह्मण थे। तथापि बौद्ध धर्म के प्रति भी उनकी अगाध श्रद्धा थी। कथासरित्सागर के किसी-किसी कथा में इसी कारण बौद्ध प्रभाव परिलक्षित होता है। .

नई!!: भारतीय राजनय का इतिहास और सोमदेव · और देखें »

सीरिया

सीरिया ('''سوريّة'''. or), आधिकारिक रूप से सीरियाई अरब गणराज्य (अरबी: الجمهورية العربية السورية), दक्षिण-पश्चिम एशिया का एक राष्ट्र है। इसके पश्चिम में लेबनॉन तथा भूमध्यसागर, दक्षिण-पश्चिम में इजराइल, दक्षिण में ज़ॉर्डन, पूरब में इराक़ तथा उत्तर में तुर्की है। इसराइल तथा इराक़ के बीच स्थित होने के कारण यह मध्य-पूर्व का एक महत्वपूर्ण देश है। इसकी राजधानी दमास्कस है जो उमय्यद ख़िलाफ़त तथा मामलुक साम्राज्य की राजधानी रह चुका है। अप्रैल 1946 में फ्रांस से स्वाधीनता मिलने के बाद यहाँ के शासन में बाथ पार्टी का प्रभुत्व रहा है। 1963 से यहाँ आपातकाल लागू है जिसके कारण 1970 के बाद से यहाँ के शासक असद परिवार के लोग होते हैं। .

नई!!: भारतीय राजनय का इतिहास और सीरिया · और देखें »

हनुमान

हनुमान (संस्कृत: हनुमान्, आंजनेय और मारुति भी) परमेश्वर की भक्ति (हिंदू धर्म में भगवान की भक्ति) की सबसे लोकप्रिय अवधारणाओं और भारतीय महाकाव्य रामायण में सबसे महत्वपूर्ण व्यक्तियों में प्रधान हैं। वह कुछ विचारों के अनुसार भगवान शिवजी के ११वें रुद्रावतार, सबसे बलवान और बुद्धिमान माने जाते हैं। रामायण के अनुसार वे जानकी के अत्यधिक प्रिय हैं। इस धरा पर जिन सात मनीषियों को अमरत्व का वरदान प्राप्त है, उनमें बजरंगबली भी हैं। हनुमान जी का अवतार भगवान राम की सहायता के लिये हुआ। हनुमान जी के पराक्रम की असंख्य गाथाएं प्रचलित हैं। इन्होंने जिस तरह से राम के साथ सुग्रीव की मैत्री कराई और फिर वानरों की मदद से राक्षसों का मर्दन किया, वह अत्यन्त प्रसिद्ध है। ज्योतिषीयों के सटीक गणना के अनुसार हनुमान जी का जन्म 1 करोड़ 85 लाख 58 हजार 112 वर्ष पहले तथा लोकमान्यता के अनुसार त्रेतायुग के अंतिम चरण में चैत्र पूर्णिमा को मंगलवार के दिन चित्रा नक्षत्र व मेष लग्न के योग में सुबह 6.03 बजे भारत देश में आज के झारखंड राज्य के गुमला जिले के आंजन नाम के छोटे से पहाड़ी गाँव के एक गुफ़ा में हुआ था। इन्हें बजरंगबली के रूप में जाना जाता है क्योंकि इनका शरीर एक वज्र की तरह था। वे पवन-पुत्र के रूप में जाने जाते हैं। वायु अथवा पवन (हवा के देवता) ने हनुमान को पालने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। मारुत (संस्कृत: मरुत्) का अर्थ हवा है। नंदन का अर्थ बेटा है। हिंदू पौराणिक कथाओं के अनुसार हनुमान "मारुति" अर्थात "मारुत-नंदन" (हवा का बेटा) हैं। हनुमान प्रतिमा .

नई!!: भारतीय राजनय का इतिहास और हनुमान · और देखें »

हर्षवर्धन

हर्षवर्धन का साम्राज्य हर्ष का टीला हर्षवर्धन (590-647 ई.) प्राचीन भारत में एक राजा था जिसने उत्तरी भारत में अपना एक सुदृढ़ साम्राज्य स्थापित किया था। वह हिंदू सम्राट् था जिसने पंजाब छोड़कर शेष समस्त उत्तरी भारत पर राज्य किया। शशांक की मृत्यु के उपरांत वह बंगाल को भी जीतने में समर्थ हुआ। हर्षवर्धन के शासनकाल का इतिहास मगध से प्राप्त दो ताम्रपत्रों, राजतरंगिणी, चीनी यात्री युवान् च्वांग के विवरण और हर्ष एवं बाणभट्टरचित संस्कृत काव्य ग्रंथों में प्राप्त है। शासनकाल ६०६ से ६४७ ई.। वंश - थानेश्वर का पुष्यभूति वंश। उसके पिता का नाम 'प्रभाकरवर्धन' था। राजवर्धन उसका बड़ा भाई और राज्यश्री उसकी बड़ी बहन थी। ६०५ ई. में प्रभाकरवर्धन की मृत्यु के पश्चात् राजवर्धन राजा हुआ पर मालव नरेश देवगुप्त और गौड़ नरेश शंशांक की दुरभिसंधि वश मारा गया। हर्षवर्धन 606 में गद्दी पर बैठा। हर्षवर्धन ने बहन राज्यश्री का विंध्याटवी से उद्धार किया, थानेश्वर और कन्नौज राज्यों का एकीकरण किया। देवगुप्त से मालवा छीन लिया। शंशाक को गौड़ भगा दिया। दक्षिण पर अभियान किया पर आंध्र पुलकैशिन द्वितीय द्वारा रोक दिया गया। उसने साम्राज्य को सुंदर शासन दिया। धर्मों के विषय में उदार नीति बरती। विदेशी यात्रियों का सम्मान किया। चीनी यात्री युवेन संग ने उसकी बड़ी प्रशंसा की है। प्रति पाँचवें वर्ष वह सर्वस्व दान करता था। इसके लिए बहुत बड़ा धार्मिक समारोह करता था। कन्नौज और प्रयाग के समारोहों में युवेन संग उपस्थित था। हर्ष साहित्य और कला का पोषक था। कादंबरीकार बाणभट्ट उसका अनन्य मित्र था। हर्ष स्वयं पंडित था। वह वीणा बजाता था। उसकी लिखी तीन नाटिकाएँ नागानंद, रत्नावली और प्रियदर्शिका संस्कृत साहित्य की अमूल्य निधियाँ हैं। हर्षवर्धन का हस्ताक्षर मिला है जिससे उसका कलाप्रेम प्रगट होता है। गुप्त साम्राज्य के पतन के बाद भारत में (मुख्यतः उत्तरी भाग में) अराजकता की स्थिति बना हुई थी। ऐसी स्थिति में हर्ष के शासन ने राजनैतिक स्थिरता प्रदान की। कवि बाणभट्ट ने उसकी जीवनी हर्षचरित में उसे चतुःसमुद्राधिपति एवं सर्वचक्रवर्तिनाम धीरयेः आदि उपाधियों से अलंकृत किया। हर्ष कवि और नाटककार भी था। उसके लिखे गए दो नाटक प्रियदर्शिका और रत्नावली प्राप्त होते हैं। हर्ष का जन्म थानेसर (वर्तमान में हरियाणा) में हुआ था। थानेसर, प्राचीन हिन्दुओं के तीर्थ केन्द्रों में से एक है तथा ५१ शक्तिपीठों में एक है। यह अब एक छोटा नगर है जो दिल्ली के उत्तर में हरियाणा राज्य में बने नये कुरुक्षेत्र के आस-पडोस में स्थित है। हर्ष के मूल और उत्पत्ति के संर्दभ में एक शिलालेख प्राप्त हुई है जो कि गुजरात राज्य के गुन्डा जिले में खोजी गयी है। .

नई!!: भारतीय राजनय का इतिहास और हर्षवर्धन · और देखें »

हस्तिनापुर

हस्तिनापुर अथवा हास्तिनपुर (आजकल का हाथीपुर) कौरव-राजधानी थी। .

नई!!: भारतीय राजनय का इतिहास और हस्तिनापुर · और देखें »

हितोपदेश

हितोपदेश भारतीय जन-मानस तथा परिवेश से प्रभावित उपदेशात्मक कथाएँ हैं। हितोपदेश की कथाएँ अत्यन्त सरल व सुग्राह्य हैं। विभिन्न पशु-पक्षियों पर आधारित कहानियाँ इसकी खास विशेषता हैं। रचयिता ने इन पशु-पक्षियों के माध्यम से कथाशिल्प की रचना की है जिसकी समाप्ति किसी शिक्षापद बात से ही हुई है। पशुओं को नीति की बातें करते हुए दिखाया गया है। सभी कथाएँ एक-दूसरे से जुड़ी हुई प्रतीत होती हैं। .

नई!!: भारतीय राजनय का इतिहास और हितोपदेश · और देखें »

जातक

जातक कथाओं पर आधारित भूटानी चित्रकला (१८वीं-१९वीं शताब्दी) जातक या जातक पालि या जातक कथाएं बौद्ध ग्रंथ त्रिपिटक का सुत्तपिटक अंतर्गत खुद्दकनिकाय का १०वां भाग है। इन कथाओं में महात्मा बुद्ध के पूर्व जन्मों की कथायें हैं। जो मान्यता है कि खुद गौतमबुद्ध जी के द्वारा कहे गए है, हालांकि की कुछ विद्वानों का मानना है कि कुछ जातक कथाएँ, गौतमबुद्ध के निर्वाण के बाद उनके शिष्यों द्वारा कही गयी है। विश्व की प्राचीनतम लिखित कहानियाँ जातक कथाएँ हैं जिसमें लगभग 600 कहानियाँ संग्रह की गयी है। यह ईसवी संवत से 300 वर्ष पूर्व की घटना है। इन कथाओं में मनोरंजन के माध्यम से नीति और धर्म को समझाने का प्रयास किया गया है। जातक खुद्दक निकाय का दसवाँ प्रसिद्ध ग्रन्थ है। जातक को वस्तुतः ग्रन्थ न कहकर ग्रन्थ समूह ही कहना अधिक उपयुक्त होगा। उसका कोई-कोई कथानक पूरे ग्रन्थ के रूप में है और कहीं-कहीं उसकी कहानियों का रूप संक्षिप्त महाकाव्य-सा है। जातक शब्द जन धातु से बना है। इसका अर्थ है भूत अथवा भाव। ‘जन्’ धातु में ‘क्त’ प्रत्यय जोड़कर यह शब्द निर्मित होता है। धातु को भूत अर्थ में प्रयुक्त करते हुए जब अर्थ किया जाता है तो जातभूत कथा एवं रूप बनता है। भाव अर्थ में प्रयुक्त करने पर जात-जनि-जनन-जन्म अर्थ बनता है। इस तरह ‘जातक’ शब्द का अ र्थ है, ‘जात’ अर्थात् जन्म-सम्बन्धीं। ‘जातक’ भगवान बुद्ध के पूर्व जन्म सम्बन्धी कथाएँ है। बुद्धत्व प्राप्त कर लेने की अवस्था से पूर्व भगवान् बुद्ध बोधिसत्व कहलाते हैं। वे उस समय बुद्धत्व के लिए उम्मीदवार होते हैं और दान, शील, मैत्री, सत्य आदि दस पारमिताओं अथवा परिपूर्णताओं का अभ्यास करते हैं। भूत-दया के लिए वे अपने प्राणों का अनेक बार बलिदान करते हैं। इस प्रकार वे बुद्धत्व की योग्यता का सम्पादन करते हैं। बोधिसत्व शब्द का अर्थ ही है बोधि के लिए उद्योगशील प्राणी। बोधि के लिए है सत्व (सार) जिसका ऐसा अर्थ भी कुछ विद्वानों ने किया है। पालि सुत्तों में हम अनेक बार पढ़ते हैं, ‘‘सम्बोधि प्राप्त होने से पहले, बुद्ध न होने के समय, जब मैं बोधिसत्व ही था‘‘ आदि। अतः बोधिसत्व से स्पष्ट तात्पर्य ज्ञान, सत्य दया आदि का अभ्यास करने वाले उस साधक से है जिसका आगे चलकर बुद्ध होना निश्चित है। भगवान बुद्ध भी न केवल अपने अन्तिम जन्म में बुद्धत्व-प्राप्ति की अवस्था से पूर्व बोधिसत्व रहे थे, बल्कि अपने अनेक पूर्व जन्मों में भी बोधिसत्व की चर्या का उन्होंने पालन किया था। जातक की कथाएँ भगवान् बुद्ध के इन विभिन्न पूर्वजन्मों से जबकि वे बोधिसत्व रहे थे, सम्बन्धित हैं। अधिकतर कहानियों में वे प्रधान पात्र के रूप में चित्रित है। कहानी के वे स्वयं नायक है। कहीं-कहीं उनका स्थान एक साधारण पात्र के रूप में गौण है और कहीं-कहीं वे एक दर्शक के रूप में भी चित्रित किये गये हैं। प्रायः प्रत्येक कहानी का आरम्भ इस प्रकार होता है-‘‘एक समय राजा ब्रह्मदत्त के वाराणसी में राज्य करते समय (अतीते वाराणसिंय बह्मदत्ते रज्ज कारेन्ते) बोधिसत्व कुरंग मृग की योनि से उत्पन्न हुए अथवा...

नई!!: भारतीय राजनय का इतिहास और जातक · और देखें »

विदेश नीति

किसी देश की विदेश नीति, जिसे विदेशी संबंधों की नीति भी कहा जाता है, अपने राष्ट्रीय हितों की रक्षा करने के लिए और अंतरराष्ट्रीय संबंधों के वातावरण में अपने लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए राज्य द्वारा चुनी गई स्वहितकारी रणनीतियों का समूह होती है। किसी देश की विदेश नीति दूसरे देशों के साथ आर्थिक, राजनैतिक, सामाजिक तथा सैनिक विषयों पर पालन की जाने वाली नीतियों का एक समुच्चय है। वैश्वीकरण और अंतरराष्ट्रीय गतिविधियों में बढ़ते गहन स्तर की वजह से अब राज्यों को गैर-राज्य अभिनेताओं के साथ भी सहभागिता करनी पड़ेगी। .

नई!!: भारतीय राजनय का इतिहास और विदेश नीति · और देखें »

विभीषण

Vibhishana Meets Rama विभीषण रामायण के एक प्रमुख पात्र हैं। वे रावण के भाई थे।विभीषण बहुत ही बड़े राम भक्त थे। उन्होंने लंका में रहते हुए भी राम भक्ति की, जहाँ भगवान श्री राम का शत्रु रावण का राज था। विभीषण की माता का नाम कौशिल्या है जब रावण को इस बात की जानकारी हुई की कौशिल्या का पुत्र उसकी और उसके परिवार की मृत्यु का कारण बनेगा तब उसने अपने सैनिको से कहकर कौशिक प्रदेश के राजा कौशिक की पुत्री कौशिल्या का अपहरण करवा कर उन्हें लंका के समुद्र तट पर छुपाया था और उन्हें छोड़ने की कीमत उनका पहला पुत्र माँगा था जिसका ही नाम विभीषण था और यही कारण था की विभीषण ने बिना किसी विवाद के रावण को छोड़ कर राम का साथ देने चला गया था, ऐसी कथा श्री लंका में प्रचलित है। श्रेणी:रावण श्रेणी:रामायण के पात्र.

नई!!: भारतीय राजनय का इतिहास और विभीषण · और देखें »

वियना कांग्रेस

वियना कांग्रेस (Jean-Baptiste Isabey द्वारा निर्मित चित्र, 1819) वियना की कांग्रेस (Viena Congress) यूरोपीय देशों के राजदूतों का एक सम्मेलन था, जो सितंबर 1814 से जून 1815 को वियना में आयोजित किया गया था। इसकी अध्यक्षता ऑस्ट्रियाई राजनेता मेटरनिख ने की। कांग्रेस का मुख्य उद्देश्य फ्रांसीसी क्रांतिकारी युद्ध, नेपोलियन युद्ध और पवित्र रोमन साम्राज्य के विघटन से उत्पन्न होने वाले कई मुद्दों एवं समस्याओं को हल करने का था। नैपोलियन को वाटरलू की पराजय के पश्चात् सेंट हेलेना द्वीप निर्वासित कर दिया गया, तत्पश्चात् आस्ट्रिया की राजधानी वियना में यूरोप की विजयी शक्तियां 1815 में एकत्रित हुई। उद्देश्य था, यूरोप के उस मानचित्र को पुनर्व्यवस्थित करना जिसे नेपोलियन ने अपने युद्ध और विजयों से उलट-पटल दिया था। वस्तुतः आस्ट्रिया के चांसलर मेटरनिख ने नेपोलियन के विरूद्ध मोर्चा बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी, इसीलिए उसकी पहल पर आस्ट्रिया की राजधानी वियना में कांगे्रस बुलाई गई थी। इस सम्मेलन में यूरोप के कई छोटे-छोटे देश शामिल हुए किन्तु नीति निर्माण के संबंध में चार मुख्य देशों के प्रतिनिधियों की भूमिका महत्वपूर्ण रही। ये नेता थे- आस्ट्रिया का चांसलर मेटरनिक, रूस का जार एलेक्जेंडर, इंग्लैंड का विदेश मंत्री लॉर्ड कैसलरे तथा फ्रांसीसी विदेश मंत्री तैलरा। .

नई!!: भारतीय राजनय का इतिहास और वियना कांग्रेस · और देखें »

विशाखदत्त

विशाखदत्त संस्कृत भाषा के सुप्रसिद्ध नाटककार थे। विशाखदत्त गुप्तकाल की विभूति थे। विशाखदत्त की दो अन्य रचनाओं- देवी चन्द्रगुप्तम्, तथा राघवानन्द नाटकम् - का भी उल्लेख मिलता है, किन्तु उनकी प्रसिद्धि का मूलाधार ‘मुद्राराक्षस’ ही है। इनकी रचनाऔ मैं रसो की प्रधानता होती थी श्रेणी:संस्कृत साहित्यकार.

नई!!: भारतीय राजनय का इतिहास और विशाखदत्त · और देखें »

विज्ञान

संक्षेप में, प्रकृति के क्रमबद्ध ज्ञान को विज्ञान (Science) कहते हैं। विज्ञान वह व्यवस्थित ज्ञान या विद्या है जो विचार, अवलोकन, अध्ययन और प्रयोग से मिलती है, जो किसी अध्ययन के विषय की प्रकृति या सिद्धान्तों को जानने के लिये किये जाते हैं। विज्ञान शब्द का प्रयोग ज्ञान की ऐसी शाखा के लिये भी करते हैं, जो तथ्य, सिद्धान्त और तरीकों को प्रयोग और परिकल्पना से स्थापित और व्यवस्थित करती है। इस प्रकार कह सकते हैं कि किसी भी विषय के क्रमबद्ध ज्ञान को विज्ञान कह सकते है। ऐसा कहा जाता है कि विज्ञान के 'ज्ञान-भण्डार' के बजाय वैज्ञानिक विधि विज्ञान की असली कसौटी है। .

नई!!: भारतीय राजनय का इतिहास और विज्ञान · और देखें »

विवाह

हिन्दू विवाह का सांकेतिक चित्रण विवाह, जिसे शादी भी कहा जाता है, दो लोगों के बीच एक सामाजिक या धार्मिक मान्यता प्राप्त मिलन है जो उन लोगों के बीच, साथ ही उनके और किसी भी परिणामी जैविक या दत्तक बच्चों तथा समधियों के बीच अधिकारों और दायित्वों को स्थापित करता है। विवाह की परिभाषा न केवल संस्कृतियों और धर्मों के बीच, बल्कि किसी भी संस्कृति और धर्म के इतिहास में भी दुनिया भर में बदलती है। आमतौर पर, यह मुख्य रूप से एक संस्थान है जिसमें पारस्परिक संबंध, आमतौर पर यौन, स्वीकार किए जाते हैं या संस्वीकृत होते हैं। एक विवाह के समारोह को विवाह उत्सव (वेडिंग) कहते है। विवाह मानव-समाज की अत्यंत महत्वपूर्ण प्रथा या समाजशास्त्रीय संस्था है। यह समाज का निर्माण करने वाली सबसे छोटी इकाई- परिवार-का मूल है। यह मानव प्रजाति के सातत्य को बनाए रखने का प्रधान जीवशास्त्री माध्यम भी है। .

नई!!: भारतीय राजनय का इतिहास और विवाह · और देखें »

वेद

वेद प्राचीन भारत के पवितत्रतम साहित्य हैं जो हिन्दुओं के प्राचीनतम और आधारभूत धर्मग्रन्थ भी हैं। भारतीय संस्कृति में वेद सनातन वर्णाश्रम धर्म के, मूल और सबसे प्राचीन ग्रन्थ हैं, जो ईश्वर की वाणी है। ये विश्व के उन प्राचीनतम धार्मिक ग्रंथों में हैं जिनके पवित्र मन्त्र आज भी बड़ी आस्था और श्रद्धा से पढ़े और सुने जाते हैं। 'वेद' शब्द संस्कृत भाषा के विद् शब्द से बना है। इस तरह वेद का शाब्दिक अर्थ 'ज्ञान के ग्रंथ' है। इसी धातु से 'विदित' (जाना हुआ), 'विद्या' (ज्ञान), 'विद्वान' (ज्ञानी) जैसे शब्द आए हैं। आज 'चतुर्वेद' के रूप में ज्ञात इन ग्रंथों का विवरण इस प्रकार है -.

नई!!: भारतीय राजनय का इतिहास और वेद · और देखें »

वेश्यावृत्ति

टियुआना, मेक्सिको में वेश्या अर्थलाभ के लिए स्थापित संकर यौन संबंध वेश्यावृत्ति कहलाता है। इसमें उस भावनात्मक तत्व का अभाव होता है जो अधिकांश यौनसंबंधों का एक प्रमुख अंग है। विधान एवं परंपरा के अनुसार वेश्यावृत्ति उपस्त्री सहवास, परस्त्रीगमन एवं अन्य अनियमित वासनापूर्ण संबंधों से भिन्न होती है। संस्कृत कोशों में यह वृत्ति अपनाने वाले स्त्रियों के लिए विभिन्न संज्ञाएँ दी गई हैं। वेश्या, रूपाजीवा, पण्यस्त्री, गणिका, वारवधू, लोकांगना, नर्तकी आदि की गुण एवं व्यवसायपरक अमिघा है - 'वेशं (बाजार) आजोवो यस्या: सा वेश्या' (जिसकी आजीविका में बाजार हेतु हो, 'गणयति इति गणिका' (रुपया गिननेवाली), 'रूपं आजीवो यस्या: सा रूपाजीवा' (सौंदर्य ही जिसकी आजीविका का कारण हो); पण्यस्त्री - 'पण्यै: क्रोता स्त्री' (जिसे रुपया देकर आत्मतुष्टि के लिए क्रय कर लिया गया हो)। .

नई!!: भारतीय राजनय का इतिहास और वेश्यावृत्ति · और देखें »

वी आर रामचन्द्र दीक्षितार

विशनमपेट आर रामचन्द्र दीक्षितार (16 अप्रैल, 1896 – 24 नवम्बर, 1953) भारत के एक इतिहासकार एवं भारतविद थे। वे मद्रास विश्वविद्यालय में इतिहास एवं पुरातत्व के प्रोफेसर थे। उन्होने भारतीय इतिहास से सम्बन्धित अनेक ग्रन्थों की रचना की। .

नई!!: भारतीय राजनय का इतिहास और वी आर रामचन्द्र दीक्षितार · और देखें »

गुप्तचर

गुप्त रूप से राजनीतिक या अन्य प्रकार की सूचना देनेवाले व्यक्ति को गुप्तचर (spy) या जासूस कहते हैं। गुप्तचर अति प्राचीन काल से ही शासन की एक महत्वपूर्ण आवश्यकता माना जाता रहा है। भारतवर्ष में गुप्तचरों का उल्लेख मनुस्मृति और कौटिल्य के अर्थशास्त्र में मिलता है। कौटिल्य ने अपने अर्थशास्त्र में गुप्तचरों के उपयोग और उनकी श्रेणियों का विशद वर्णन किया है। राज्याधिपति को राज्य के अधिकारियों और जनता की गतिविधियों एवं समीपवर्ती शासकों की नीतियों के संबंध में सूचनाएँ देने का महत्वपूर्ण कार्य उनके गुप्तचरों द्वारा संपन्न होता था। रामायण में वर्णित दुर्मुख ऐसा ही एक गुप्तचर था जिसने रामचंद्र को सीता के विषय में (लंका प्रवास के बाद) जनापवाद की जानकरी दी थी। .

नई!!: भारतीय राजनय का इतिहास और गुप्तचर · और देखें »

इन्द्र

इन्द्र (या इंद्र) हिन्दू धर्म में सभी देवताओं के राजा का सबसे उच्च पद था जिसकी एक अलग ही चुनाव-पद्धति थी। इस चुनाव पद्धति के विषय में स्पष्ट वर्णन उपलब्ध नहीं है। वैदिक साहित्य में इन्द्र को सर्वोच्च महत्ता प्राप्त है लेकिन पौराणिक साहित्य में इनकी महत्ता निरन्तर क्षीण होती गयी और त्रिदेवों की श्रेष्ठता स्थापित हो गयी। .

नई!!: भारतीय राजनय का इतिहास और इन्द्र · और देखें »

कामन्दकीय नीतिसार

कामंदकीय नीतिसार राज्यशास्त्र का एक संस्कृत ग्रंथ है। इसके रचयिता का नाम 'कामंदकि' अथवा 'कामंदक' है जिससे यह साधारणत: 'कामन्दकीय' नाम से प्रसिद्ध है। वास्तव में यह ग्रंथ कौटिल्य के अर्थशास्त्र के सारभूत सिद्धांतों (मुख्यत: राजनीति विद्या) का प्रतिपादन करता है। यह श्लोकों में रूप में है। इसकी भाषा अत्यन्त सरल है। नीतिसार के आरम्भ में ही विष्णुगुप्त चाणक्य की प्रशंशा की गयी है- वंशे विशालवंश्यानाम् ऋषीणामिव भूयसाम्। अप्रतिग्राहकाणां यो बभूव भुवि विश्रुतः ॥ जातवेदा इवार्चिष्मान् वेदान् वेदविदांवरः। योधीतवान् सुचतुरः चतुरोऽप्येकवेदवत् ॥ यस्याभिचारवज्रेण वज्रज्वलनतेजसः। पपात मूलतः श्रीमान् सुपर्वा नन्दपर्वतः ॥ एकाकी मन्त्रशक्त्या यः शक्त्या शक्तिधरोपमः। आजहार नृचन्द्राय चन्द्रगुप्ताय मेदिनीम्।। नीतिशास्त्रामृतं धीमान् अर्थशास्त्रमहोदधेः। समुद्दद्ध्रे नमस्तस्मै विष्णुगुप्ताय वेधसे ॥ इति ॥ .

नई!!: भारतीय राजनय का इतिहास और कामन्दकीय नीतिसार · और देखें »

किरातार्जुनीयम्

अर्जुन शिव को पहचान जाते हैं और नतमस्तक हो जाते हैं। (राजा रवि वर्मा द्वारा१९वीं शती में चित्रित) किरातार्जुनीयम् महाकवि भारवि द्वारा सातवीं शती ई. में रचित महाकाव्य है जिसे संस्कृत साहित्य में महाकाव्यों की 'वृहत्त्रयी' में स्थान प्राप्त है। महाभारत में वर्णित किरातवेशी शिव के साथ अर्जुन के युद्ध की लघु कथा को आधार बनाकर कवि ने राजनीति, धर्मनीति, कूटनीति, समाजनीति, युद्धनीति, जनजीवन आदि का मनोरम वर्णन किया है। यह काव्य विभिन्न रसों से ओतप्रोत है किन्तु यह मुख्यतः वीर रस प्रधान रचना है। संस्कृत के छ: प्रसिद्ध महाकाव्य हैं – बृहत्त्रयी और लघुत्रयी। किरातार्जनुयीयम्‌ (भारवि), शिशुपालवधम्‌ (माघ) और नैषधीयचरितम्‌ (श्रीहर्ष)– बृहत्त्रयी कहलाते हैं। कुमारसम्भवम्‌, रघुवंशम् और मेघदूतम् (तीनों कालिदास द्वारा रचित) - लघुत्रयी कहलाते हैं। किरातार्जुनीयम्‌ भारवि की एकमात्र उपलब्ध कृति है, जिसने एक सांगोपांग महाकाव्य का मार्ग प्रशस्त किया। माघ-जैसे कवियों ने उसी का अनुगमन करते हुए संस्कृत साहित्य भण्डार को इस विधा से समृद्ध किया और इसे नई ऊँचाई प्रदान की। कालिदास की लघुत्रयी और अश्वघोष के बुद्धचरितम्‌ में महाकाव्य की जिस धारा का दर्शन होता है, अपने विशिष्ट गुणों के होते हुए भी उसमें वह विषदता और समग्रता नहीं है, जिसका सूत्रपात भारवि ने किया। संस्कृत में किरातार्जुनीयम्‌ की कम से कम 37 टीकाएँ हुई हैं, जिनमें मल्लिनाथ की टीका घंटापथ सर्वश्रेष्ठ है। सन 1912 में कार्ल कैप्पलर ने हारवर्ड ओरियेंटल सीरीज के अंतर्गत किरातार्जुनीयम् का जर्मन अनुवाद किया। अंग्रेजी में भी इसके भिन्न-भिन्न भागों के छ: से अधिक अनुवाद हो चुके हैं। .

नई!!: भारतीय राजनय का इतिहास और किरातार्जुनीयम् · और देखें »

कछुआ

कछुए (Turtles) या कर्म टेस्टूडनीज़ नामक सरीसृपों के जीववैज्ञानिक गण के सदस्य होते हैं जो उनके शरीरों के मुख्य भाग को उनकी पसलियों से विकसित हुए ढाल-जैसे कवच से पहचाने जाते हैं। विश्व में स्थलीय कछुओं और जलीय कछुओं दोनों की कई जातियाँ हैं। कछुओं की सबसे पहली जातियाँ आज से १५.७ करोड़ वर्ष पहले उत्पन्न हुई थीं, जो की सर्वप्रथम सर्पों व मगरमच्छों से भी पहले था। इसलिये वैज्ञानिक उन्हें प्राचीनतम सरीसृपों में से एक मानते हैं। कछुओं की कई जातियाँ विलुप्त हो चुकी हैं लेकिन ३२७ आज भी अस्तित्व में हैं। इनमें से कई जातियाँ ख़तरे में हैं और उनका संरक्षण करना एक चिंता का विषय है। इसकी उम्र 300 साल से अधिक होती है .

नई!!: भारतीय राजनय का इतिहास और कछुआ · और देखें »

क्लाडियस टॉलमी

टाँलेमी एक प्रख्यात ज्योतिर्विद थे। उन्होंने पृथ्वी के एक चक्कर लगाने में चन्द्रमा को जो समय लगता है उसका निर्धारण किया। उन्होंने प्रकाश के नियम का भी प्रतिपादन किया। क्लाडियस टॉलमी एक प्रमुख भूगोलवेत्ता था। वह मिस्त्र का निवासी था। उसका जन्म टॉलेमस सरसी या पेलुसियम मे हुवा (जीवन काल ९० से १६८ ई. या १०० से १७८ ई.)। टॉलमी नें अपना अधिकांश गणित व प्र्क्षेप निर्माण सम्बन्धी सचना कार्य एवं पेक्षण सिकन्दरिया के महान पुस्तकालय में ३-४ दशकों में पूरे किए। उसने सिकन्दरिया के निकट के एक नगर नोरस से कई खगोलिए बेध किए। .

नई!!: भारतीय राजनय का इतिहास और क्लाडियस टॉलमी · और देखें »

कृष्ण

बाल कृष्ण का लड्डू गोपाल रूप, जिनकी घर घर में पूजा सदियों से की जाती रही है। कृष्ण भारत में अवतरित हुये भगवान विष्णु के ८वें अवतार और हिन्दू धर्म के ईश्वर हैं। कन्हैया, श्याम, केशव, द्वारकेश या द्वारकाधीश, वासुदेव आदि नामों से भी उनको जाना जाता हैं। कृष्ण निष्काम कर्मयोगी, एक आदर्श दार्शनिक, स्थितप्रज्ञ एवं दैवी संपदाओं से सुसज्ज महान पुरुष थे। उनका जन्म द्वापरयुग में हुआ था। उनको इस युग के सर्वश्रेष्ठ पुरुष युगपुरुष या युगावतार का स्थान दिया गया है। कृष्ण के समकालीन महर्षि वेदव्यास द्वारा रचित श्रीमद्भागवत और महाभारत में कृष्ण का चरित्र विस्तुत रूप से लिखा गया है। भगवद्गीता कृष्ण और अर्जुन का संवाद है जो ग्रंथ आज भी पूरे विश्व में लोकप्रिय है। इस कृति के लिए कृष्ण को जगतगुरु का सम्मान भी दिया जाता है। कृष्ण वसुदेव और देवकी की ८वीं संतान थे। मथुरा के कारावास में उनका जन्म हुआ था और गोकुल में उनका लालन पालन हुआ था। यशोदा और नन्द उनके पालक माता पिता थे। उनका बचपन गोकुल में व्यतित हुआ। बाल्य अवस्था में ही उन्होंने बड़े बड़े कार्य किये जो किसी सामान्य मनुष्य के लिए सम्भव नहीं थे। मथुरा में मामा कंस का वध किया। सौराष्ट्र में द्वारका नगरी की स्थापना की और वहाँ अपना राज्य बसाया। पांडवों की मदद की और विभिन्न आपत्तियों में उनकी रक्षा की। महाभारत के युद्ध में उन्होंने अर्जुन के सारथी की भूमिका निभाई और भगवद्गीता का ज्ञान दिया जो उनके जीवन की सर्वश्रेष्ठ रचना मानी जाती है। १२५ वर्षों के जीवनकाल के बाद उन्होंने अपनी लीला समाप्त की। उनकी मृत्यु के तुरंत बाद ही कलियुग का आरंभ माना जाता है। .

नई!!: भारतीय राजनय का इतिहास और कृष्ण · और देखें »

अथर्ववेद संहिता

अथर्ववेद संहिता हिन्दू धर्म के पवित्रतम और सर्वोच्च धर्मग्रन्थ वेदों में से चौथे वेद अथर्ववेद की संहिता अर्थात मन्त्र भाग है। इसमें देवताओं की स्तुति के साथ जादू, चमत्कार, चिकित्सा, विज्ञान और दर्शन के भी मन्त्र हैं। अथर्ववेद संहिता के बारे में कहा गया है कि जिस राजा के रज्य में अथर्ववेद जानने वाला विद्वान् शान्तिस्थापन के कर्म में निरत रहता है, वह राष्ट्र उपद्रवरहित होकर निरन्तर उन्नति करता जाता हैः अथर्ववेद के रचियता श्री ऋषि अथर्व हैं और उनके इस वेद को प्रमाणिकता स्वंम महादेव शिव की है, ऋषि अथर्व पिछले जन्म मैं एक असुर हरिन्य थे और उन्होंने प्रलय काल मैं जब ब्रह्मा निद्रा मैं थे तो उनके मुख से वेद निकल रहे थे तो असुर हरिन्य ने ब्रम्ह लोक जाकर वेदपान कर लिया था, यह देखकर देवताओं ने हरिन्य की हत्या करने की सोची| हरिन्य ने डरकर भगवान् महादेव की शरण ली, भगवन महादेव ने उसे अगले अगले जन्म मैं ऋषि अथर्व बनकर एक नए वेद लिखने का वरदान दिया था इसी कारण अथर्ववेद के रचियता श्री ऋषि अथर्व हुए| .

नई!!: भारतीय राजनय का इतिहास और अथर्ववेद संहिता · और देखें »

अरस्तु

अरस्तु अरस्तु (384 ईपू – 322 ईपू) यूनानी दार्शनिक थे। वे प्लेटो के शिष्य व सिकंदर के गुरु थे। उनका जन्म स्टेगेरिया नामक नगर में हुआ था ।  अरस्तु ने भौतिकी, आध्यात्म, कविता, नाटक, संगीत, तर्कशास्त्र, राजनीति शास्त्र, नीतिशास्त्र, जीव विज्ञान सहित कई विषयों पर रचना की। अरस्तु ने अपने गुरु प्लेटो के कार्य को आगे बढ़ाया। प्लेटो, सुकरात और अरस्तु पश्चिमी दर्शनशास्त्र के सबसे महान दार्शनिकों में एक थे।  उन्होंने पश्चिमी दर्शनशास्त्र पर पहली व्यापक रचना की, जिसमें नीति, तर्क, विज्ञान, राजनीति और आध्यात्म का मेलजोल था।  भौतिक विज्ञान पर अरस्तु के विचार ने मध्ययुगीन शिक्षा पर व्यापक प्रभाव डाला और इसका प्रभाव पुनर्जागरण पर भी पड़ा।  अंतिम रूप से न्यूटन के भौतिकवाद ने इसकी जगह ले लिया। जीव विज्ञान उनके कुछ संकल्पनाओं की पुष्टि उन्नीसवीं सदी में हुई।  उनके तर्कशास्त्र आज भी प्रासांगिक हैं।  उनकी आध्यात्मिक रचनाओं ने मध्ययुग में इस्लामिक और यहूदी विचारधारा को प्रभावित किया और वे आज भी क्रिश्चियन, खासकर रोमन कैथोलिक चर्च को प्रभावित कर रही हैं।  उनके दर्शन आज भी उच्च कक्षाओं में पढ़ाये जाते हैं।  अरस्तु ने अनेक रचनाएं की थी, जिसमें कई नष्ट हो गई। अरस्तु का राजनीति पर प्रसिद्ध ग्रंथ पोलिटिक्स है। .

नई!!: भारतीय राजनय का इतिहास और अरस्तु · और देखें »

अर्थशास्त्र

---- विश्व के विभिन्न देशों की वास्तविक सकल घरेलू उत्पाद की वृद्धि दर (सन २०१४) अर्थशास्त्र सामाजिक विज्ञान की वह शाखा है, जिसके अन्तर्गत वस्तुओं और सेवाओं के उत्पादन, वितरण, विनिमय और उपभोग का अध्ययन किया जाता है। 'अर्थशास्त्र' शब्द संस्कृत शब्दों अर्थ (धन) और शास्त्र की संधि से बना है, जिसका शाब्दिक अर्थ है - 'धन का अध्ययन'। किसी विषय के संबंध में मनुष्यों के कार्यो के क्रमबद्ध ज्ञान को उस विषय का शास्त्र कहते हैं, इसलिए अर्थशास्त्र में मनुष्यों के अर्थसंबंधी कायों का क्रमबद्ध ज्ञान होना आवश्यक है। अर्थशास्त्र का प्रयोग यह समझने के लिये भी किया जाता है कि अर्थव्यवस्था किस तरह से कार्य करती है और समाज में विभिन्न वर्गों का आर्थिक सम्बन्ध कैसा है। अर्थशास्त्रीय विवेचना का प्रयोग समाज से सम्बन्धित विभिन्न क्षेत्रों में किया जाता है, जैसे:- अपराध, शिक्षा, परिवार, स्वास्थ्य, कानून, राजनीति, धर्म, सामाजिक संस्थान और युद्ध इत्यदि। प्रो.

नई!!: भारतीय राजनय का इतिहास और अर्थशास्त्र · और देखें »

अर्थशास्त्र (ग्रन्थ)

अर्थशास्त्र, कौटिल्य या चाणक्य (चौथी शती ईसापूर्व) द्वारा रचित संस्कृत का एक ग्रन्थ है। इसमें राज्यव्यवस्था, कृषि, न्याय एवं राजनीति आदि के विभिन्न पहलुओं पर विचार किया गया है। अपने तरह का (राज्य-प्रबन्धन विषयक) यह प्राचीनतम ग्रन्थ है। इसकी शैली उपदेशात्मक और सलाहात्मक (instructional) है। यह प्राचीन भारतीय राजनीति का प्रसिद्ध ग्रंथ है। इसके रचनाकार का व्यक्तिनाम विष्णुगुप्त, गोत्रनाम कौटिल्य (कुटिल से व्युत्पत्र) और स्थानीय नाम चाणक्य (पिता का नाम चणक होने से) था। अर्थशास्त्र (15.431) में लेखक का स्पष्ट कथन है: चाणक्य सम्राट् चंद्रगुप्त मौर्य (321-298 ई.पू.) के महामंत्री थे। उन्होंने चंद्रगुप्त के प्रशासकीय उपयोग के लिए इस ग्रंथ की रचना की थी। यह मुख्यत: सूत्रशैली में लिखा हुआ है और संस्कृत के सूत्रसाहित्य के काल और परंपरा में रखा जा सकता है। यह शास्त्र अनावश्यक विस्तार से रहित, समझने और ग्रहण करने में सरल एवं कौटिल्य द्वारा उन शब्दों में रचा गया है जिनका अर्थ सुनिश्चित हो चुका है। (अर्थशास्त्र, 15.6)' अर्थशास्त्र में समसामयिक राजनीति, अर्थनीति, विधि, समाजनीति, तथा धर्मादि पर पर्याप्त प्रकाश पड़ता है। इस विषय के जितने ग्रंथ अभी तक उपलब्ध हैं उनमें से वास्तविक जीवन का चित्रण करने के कारण यह सबसे अधिक मूल्यवान् है। इस शास्त्र के प्रकाश में न केवल धर्म, अर्थ और काम का प्रणयन और पालन होता है अपितु अधर्म, अनर्थ तथा अवांछनीय का शमन भी होता है (अर्थशास्त्र, 15.431)। इस ग्रंथ की महत्ता को देखते हुए कई विद्वानों ने इसके पाठ, भाषांतर, व्याख्या और विवेचन पर बड़े परिश्रम के साथ बहुमूल्य कार्य किया है। शाम शास्त्री और गणपति शास्त्री का उल्लेख किया जा चुका है। इनके अतिरिक्त यूरोपीय विद्वानों में हर्मान जाकोबी (ऑन दि अथॉरिटी ऑव कौटिलीय, इं.ए., 1918), ए. हिलेब्रांड्ट, डॉ॰ जॉली, प्रो॰ए.बी.

नई!!: भारतीय राजनय का इतिहास और अर्थशास्त्र (ग्रन्थ) · और देखें »

अर्जुन

शिव अर्जुन को अस्त्र देते हुए। महाभारत के मुख्य पात्र हैं। महाराज पाण्डु एवं रानी कुन्ती के वह तीसरे पुत्र थे। द्रौपदी, कृष्ण और बलराम की बहन सुभद्रा, नाग कन्या उलूपी और मणिपुर नरेश की पुत्री चित्रांगदा इनकी पत्नियाँ थीं। इनके भाई क्रमशः युधिष्ठिर, भीम, नकुल, सहदेव। .

नई!!: भारतीय राजनय का इतिहास और अर्जुन · और देखें »

अश्वघोष

अश्वघोष, बौद्ध महाकवि तथा दार्शनिक थे। बुद्धचरितम्''' इनकी प्रसिद्ध रचना है। कुषाणनरेश कनिष्क के समकालीन महाकवि अश्वघोष का समय ईसवी प्रथम शताब्दी का अंत और द्वितीय का आरंभ है। .

नई!!: भारतीय राजनय का इतिहास और अश्वघोष · और देखें »

अंगद

अंगद रामायण का एक पात्र, पंचकन्या में से एक तारा तथा किष्किंधा के राजा बाली का पुत्र और सुग्रीव का भतीजा, रावण की लंका को ध्वस्त करने वाली राम सेना का एक प्रमुख योद्धा था। बाली की मृत्यु के उपरांत सुग्रीव किष्किंधा का राजा और अंगद युवराज बना। तारा तथा अंगद अपने दूत-कर्म के कारण बहुत प्रसिद्ध हुए। राम ने उसे रावण के पास दूत बनाकर भेजा था। वहां की राजसभा का कोइ भी योद्धा उनका पैर तक नहीं डिगा सका। अंगद संबंधी प्राचीन आख्यानों में केवल वाल्मीकि रामायण ही प्रमाण है। यद्यपि वाल्मीकि के अंगद में हनुमान के समान बल, साहस, बुद्धि और विवेक है। परंतु उनमें हनुमान जैसी हृदय की सरलता और पवित्रता नहीं है। सीता शोध में विफल होने पर जब वानर प्राण दंड की संभावना से भयभीत होकर विद्रोह करने पर तत्पर दिखाई पड़ते हैं तब अंगद भी विचलित हो जाते हैं। यदि वे अंततोगत्वा कर्तव्य पथ पर दृढ़ रहते हैं तो इसका कारण हनुमान के विरोध की आशंका ही है। श्रेणी:पौराणिक/साहित्यिक चरित्र श्रेणी:रामायण के पात्र श्रेणी:चित्र जोड़ें.

नई!!: भारतीय राजनय का इतिहास और अंगद · और देखें »

उपाय

बौद्ध धर्म यह मानता है कि बुद्ध ने संसार के अनेकानेक मनुष्यों को अपने-अपने उपाय-कौशल्य के आधार पर उनके स्वभाव तथा समझ के अनुसार बुद्धत्व प्राप्ति का उपदेश दिया है। .

नई!!: भारतीय राजनय का इतिहास और उपाय · और देखें »

ऋग्वेद

ऋग्वेद सनातन धर्म का सबसे आरंभिक स्रोत है। इसमें १०२८ सूक्त हैं, जिनमें देवताओं की स्तुति की गयी है इसमें देवताओं का यज्ञ में आह्वान करने के लिये मन्त्र हैं, यही सर्वप्रथम वेद है। ऋग्वेद को इतिहासकार हिन्द-यूरोपीय भाषा-परिवार की अभी तक उपलब्ध पहली रचनाऔं में एक मानते हैं। यह संसार के उन सर्वप्रथम ग्रन्थों में से एक है जिसकी किसी रूप में मान्यता आज तक समाज में बनी हुई है। यह एक प्रमुख हिन्दू धर्म ग्रंथ है। ऋक् संहिता में १० मंडल, बालखिल्य सहित १०२८ सूक्त हैं। वेद मंत्रों के समूह को सूक्त कहा जाता है, जिसमें एकदैवत्व तथा एकार्थ का ही प्रतिपादन रहता है। ऋग्वेद में ही मृत्युनिवारक त्र्यम्बक-मंत्र या मृत्युंजय मन्त्र (७/५९/१२) वर्णित है, ऋग्विधान के अनुसार इस मंत्र के जप के साथ विधिवत व्रत तथा हवन करने से दीर्घ आयु प्राप्त होती है तथा मृत्यु दूर हो कर सब प्रकार का सुख प्राप्त होता है। विश्व-विख्यात गायत्री मन्त्र (ऋ० ३/६२/१०) भी इसी में वर्णित है। ऋग्वेद में अनेक प्रकार के लोकोपयोगी-सूक्त, तत्त्वज्ञान-सूक्त, संस्कार-सुक्त उदाहरणतः रोग निवारक-सूक्त (ऋ०१०/१३७/१-७), श्री सूक्त या लक्ष्मी सूक्त (ऋग्वेद के परिशिष्ट सूक्त के खिलसूक्त में), तत्त्वज्ञान के नासदीय-सूक्त (ऋ० १०/१२९/१-७) तथा हिरण्यगर्भ सूक्त (ऋ०१०/१२१/१-१०) और विवाह आदि के सूक्त (ऋ० १०/८५/१-४७) वर्णित हैं, जिनमें ज्ञान विज्ञान का चरमोत्कर्ष दिखलाई देता है। ऋग्वेद के विषय में कुछ प्रमुख बातें निम्नलिखित है-.

नई!!: भारतीय राजनय का इतिहास और ऋग्वेद · और देखें »

छाता

छाते छाता धूप एवं वर्षा से बचने के लिये प्रयोग किया जाता है। श्रेणी:घरेलू सामान.

नई!!: भारतीय राजनय का इतिहास और छाता · और देखें »

निवर्तमानआने वाली
अरे! अब हम फेसबुक पर हैं! »