लोगो
यूनियनपीडिया
संचार
Google Play पर पाएं
नई! अपने एंड्रॉयड डिवाइस पर डाउनलोड यूनियनपीडिया!
मुक्त
ब्राउज़र की तुलना में तेजी से पहुँच!
 

भारत के महाराज्यपाल

सूची भारत के महाराज्यपाल

भारत के महाराज्यपाल या गवर्नर-जनरल (१८५८-१९४७ तक वाइसरॉय एवं गवर्नर-जनरल अर्थात राजप्रतिनिधि एवं महाराज्यपाल) भारत में ब्रिटिश राज का अध्यक्ष और भारतीय स्वतंत्रता उपरांत भारत में, ब्रिटिश सम्प्रभु का प्रतिनिधि होता था। इनका कार्यालय सन 1773 में बनाया गया था, जिसे फोर्ट विलियम की प्रेसीडेंसी का गवर्नर-जनरल के अधीन रखा गया था। इस कार्यालय का फोर्ट विलियम पर सीधा नियंत्रण था, एवं अन्य ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी के अधिकारियों का पर्यवेक्षण करता था। सम्पूर्ण ब्रिटिश भारत पर पूर्ण अधिकार 1833 में दिये गये और तब से यह भारत के गवर्नर-जनरल बन गये। १८५८ में भारत ब्रिटिश शासन की अधीन आ गया था। गवर्नर-जनरल की उपाधि उसके भारतीय ब्रिटिश प्रांत (पंजाब, बंगाल, बंबई, मद्रास, संयुक्त प्रांत, इत्यादि) और ब्रिटिष भारत, शब्द स्वतंत्रता पूर्व काल के अविभाजित भारत के इन्हीं ब्रिटिश नियंत्रण के प्रांतों के लिये प्रयोग होता है। वैसे अधिकांश ब्रिटिश भारत, ब्रिटिश सरकार द्वारा सीधे शासित ना होकर, उसके अधीन रहे शासकों द्वारा ही शासित होता था। भारत में सामंतों और रजवाड़ों को गवर्नर-जनरल के ब्रिटिश सरकार के प्रतिनिधि होने की भूमिका को दर्शित करने हेतु, सन १८५८ से वाइसरॉय एवं गवर्नर-जनरल ऑफ इंडिया (जिसे लघुरूप में वाइसरॉय कहा जाता था) प्रयोग हुई। वाइसरॊय उपाधि १९४७ में स्वतंत्रता उपरांत लुप्त हो गयी, लेकिन गवर्नर-जनरल का कार्यालय सन १९५० में, भारतीय गणतंत्रता तक अस्तित्व में रहा। १८५८ तक, गवर्नर-जनरल को ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी के निदेशकों द्वारा चयनित किया जाता था और वह उन्हीं को जवाबदेह होता था। बाद में वह महाराजा द्वारा ब्रिटिश सरकार, भारत राज्य सचिव, ब्रिटिश कैबिनेट; इन सभी की राय से चयन होने लगा। १९४७ के बाद, सम्राट ने उसकी नियुक्ति जारी रखी, लेकिन भारतीय मंत्रियों की राय से, ना कि ब्रिटिश मंत्रियों की सलाह से। गवर्नर-जनरल पांच वर्ष के कार्यकाल के लिये होता था। उसे पहले भी हटाया जा सकता था। इस काल के पूर्ण होने पर, एक अस्थायी गवर्नर-जनरल बनाया जाता था। जब तक कि नया गवर्नर-जनरल पदभार ग्रहण ना कर ले। अस्थायी गवर्नर-जनरल को प्रायः प्रान्तीय गवर्नरों में से चुना जाता था। .

161 संबंधों: चार्ल्स मैटकाफ, चक्रवर्ती राजगोपालाचारी, एल्यूरेड क्लार्क, दिल्ली, पश्चिम बंगाल, पाकिस्तान के गवर्नर जनरल, फोर्ट विलियम, बड़ोदरा, बंबई प्रेसीडेंसी, बंगाल, ब्रिटिश राज, ब्रिटिश साम्राज्य, भारत, भारत का विभाजन, भारत के महाराज्यपाल, भारत के राष्ट्रपति, भारत के सम्राट, मद्रास प्रैज़िडन्सी, मुग़ल साम्राज्य, मैसूर, मोहम्मद अली जिन्नाह, राष्ट्रपति निवास, राष्ट्रपति भवन, राष्ट्रीय पुस्तकालय (भारत), रॉबर्ट नैपियर, लुईस माउंटबेटन, बर्मा के पहले अर्ल माउंटबेटन, लॉर्ड चेम्स्फोर्ड, लॉर्ड एम्हर्स्ट, लॉर्ड ऐम्प्थिल, लॉर्ड ऐलनबरो, लॉर्ड डफरिन, लॉर्ड डलहौजी, लॉर्ड नैपियर, लॉर्ड नॉर्थब्रूक, लॉर्ड मिंटो, लॉर्ड मेयो, लॉर्ड राइपन, लॉर्ड लिट्टन, लॉर्ड लैंस्डाउन, लॉर्ड हार्डिंग, लॉर्ड विलियम बैन्टिक, लॉर्ड विलिंग्डन, लॉर्ड वैलेस्ली, लॉर्ड ऑकलैंड, लॉर्ड इर्विन, लॉर्ड कर्जन, लॉर्ड कैनिंग, लॉर्ड कॉर्नवालिस, शिमला, सिंधिया, ..., हैनरी हार्डिंग, जम्मू और कश्मीर, जेम्स ब्रूस, जॉन लॉरेंस, जॉन शोर, जॉन स्ट्रैचे, जॉर्ज हिलेरियो बार्लो, वारेन हेस्टिंग्स, वाइसरॉय, विलियम डैनिसन, विलियम बटर्वर्थ बेले, विलियम विबरफोर्स बर्ड, विक्टर ब्रूस, विक्टर होप, ग्वालियर, ऑर्डर ऑफ द स्टार ऑफ इंडिया, इस्कंदर मिर्ज़ा, कोलकाता, १ नवंबर, १ फ़रवरी, १ अगस्त, १ अक्टूबर, १० दिसम्बर, १० अक्टूबर, ११ सितंबर, ११ अक्टूबर, १२ सितंबर, १२ जनवरी, १२ अप्रैल, १३ मार्च, १४ सितम्बर, १५ अगस्त, १७ अक्टूबर, १७७३, १७७४, १७८५, १७८६, १७९३, १७९८, १८ नवम्बर, १८ मई, १८ अप्रैल, १८०५, १८०७, १८१३, १८२३, १८२८, १८३३, १८३५, १८३६, १८४२, १८४४, १८४८, १८५६, १८५७ का प्रथम भारतीय स्वतंत्रता संग्राम, १८५८, १८६२, १८६३, १८६४, १८६९, १८७२, १८७६, १८८०, १८८४, १८८८, १८९४, १८९९, १९०५, १९१०, १९१६, १९२१, १९२६, १९३१, १९३६, १९४३, १९४७, १९४८, १९५०, १९५१, १९५५, १९५६, २ अप्रैल, २० नवंबर, २० मार्च, २० अक्टूबर, २१ नवम्बर, २१ फ़रवरी, २१ मार्च, २३ नवम्बर, २३ फ़रवरी, २३ मार्च, २३ जुलाई, २४ फ़रवरी, २५ जनवरी, २८ फ़रवरी, २८ अक्तूबर, ३ मई, ३ अप्रैल, ३० जुलाई, ३१ जुलाई, ४ मार्च, ४ जुलाई, ४ अप्रैल, ४ अक्टूबर, ५ अक्टूबर, ६ जनवरी, ६ अक्टूबर, ८ फ़रवरी, ८ जून, ९ फ़रवरी, ९ जनवरी सूचकांक विस्तार (111 अधिक) »

चार्ल्स मैटकाफ

सर चार्ल्स मैटकाफ (१७८५-१८४६) भारत के गवर्नर जनरल रहे थे। इनका जन्म कलकत्ते में सेना के एक मेजर के घर सन् १७८५ ईसवीं में हुआ। प्रारंभ से ही इनका अनेक भाषाओं की ओर रुझान रहा। १५ वर्ष की उम्र में कंपनी की नौकरी में एक क्लर्क के रूप में प्रविष्ट हुए। शीघ्र ही गवर्नर जनरल लार्ड वेलेजली की, जिसे योग्य व्यक्तियों को पहचानने की अपूर्व क्षमता थी, निगाह इनके ऊपर पड़ी और आपने महाज सिंधिया के दरबार में स्थित रेजीडेंट के सहायक के पद से अपना कार्य प्रारंभ कर, अनेक पदों पर कार्य किया। सन् १८०८ में इन्होने अंग्रेजी राजदूत की हैसियत से सिक्ख महाराजा रणजीत सिंह को अपनी विस्तार नीति को सीमित करने पर बाध्य कर दिया तथा सन् १८०९ ई० की अमृतसर की मैत्रीपूर्ण संधि का महाराज रणजीत सिंह ने यावज्जीवन पालन किया। गर्वनर जनरल लार्ड हेंसटिंग्ज ने इनके माध्यम से ही विद्रोही खूखाँर पठान सरदार अमीर खान तथा अंग्रेजों के बीच संधि कराई। भरतपुर के सुदृढ़ किले को भी नष्ट करने में आपका योगदान था। सन् १८२७ में इन्हे नाइट पदवी से विभूषित किया गया। जब आगरे का नया प्रांत बना तो आपको ही उसका प्रथम गवर्नर मनोनीत किया गया। थोड़े ही दिनों में इनको अस्थायी गवर्नर जनरल बनाया गया। इस कार्यकाल का सबसे महत्वपूर्ण कार्य भारतीय प्रेस को स्वतंत्र बनाना था। सन् १८३८ ईसवीं में ये स्वदेश लौट गए। तदुपरांत इन्होने जमायका के गवर्नर का तथा कनाडा के गर्वनर-जनरल का पदभार संभाला। अंत में १८४६ में कैंसर के भीषण रोग से इनकी मृत्यु हो गई। श्रेणी:भारत के गवर्नर जनरल.

नई!!: भारत के महाराज्यपाल और चार्ल्स मैटकाफ · और देखें »

चक्रवर्ती राजगोपालाचारी

चक्रवर्ती राजगोपालाचारी (तमिल: சக்ரவர்தி ராஜகோபாலாச்சாரி) (दिसम्बर १०, १८७८ - दिसम्बर २५, १९७२), राजाजी नाम से भी जाने जाते हैं। वे वकील, लेखक, राजनीतिज्ञ और दार्शनिक थे। वे स्वतन्त्र भारत के द्वितीय गवर्नर जनरल और प्रथम भारतीय गवर्नर जनरल थे। १० अप्रैल १९५२ से १३ अप्रैल १९५४ तक वे मद्रास प्रांत के मुख्यमंत्री रहे। वे दक्षिण भारत के कांग्रेस के प्रमुख नेता थे, किन्तु बाद में वे कांग्रेस के प्रखर विरोधी बन गए तथा स्वतंत्र पार्टी की स्थापना की। वे गांधीजी के समधी थे। (राजाजी की पुत्री लक्ष्मी का विवाह गांधीजी के सबसे छोटे पुत्र देवदास गांधी से हुआ था।) उन्होंने दक्षिण भारत में हिन्दी के प्रचार-प्रसार के लिए बहुत कार्य किया। .

नई!!: भारत के महाराज्यपाल और चक्रवर्ती राजगोपालाचारी · और देखें »

एल्यूरेड क्लार्क

एल्यूरेड क्लार्क फोर्ट विलियम प्रेसिडेंसी के गवर्नर जनरल रहे थे। श्रेणी:भारत के गवर्नर जनरल.

नई!!: भारत के महाराज्यपाल और एल्यूरेड क्लार्क · और देखें »

दिल्ली

दिल्ली (IPA), आधिकारिक तौर पर राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली (अंग्रेज़ी: National Capital Territory of Delhi) भारत का एक केंद्र-शासित प्रदेश और महानगर है। इसमें नई दिल्ली सम्मिलित है जो भारत की राजधानी है। दिल्ली राजधानी होने के नाते केंद्र सरकार की तीनों इकाइयों - कार्यपालिका, संसद और न्यायपालिका के मुख्यालय नई दिल्ली और दिल्ली में स्थापित हैं १४८३ वर्ग किलोमीटर में फैला दिल्ली जनसंख्या के तौर पर भारत का दूसरा सबसे बड़ा महानगर है। यहाँ की जनसंख्या लगभग १ करोड़ ७० लाख है। यहाँ बोली जाने वाली मुख्य भाषाएँ हैं: हिन्दी, पंजाबी, उर्दू और अंग्रेज़ी। भारत में दिल्ली का ऐतिहासिक महत्त्व है। इसके दक्षिण पश्चिम में अरावली पहाड़ियां और पूर्व में यमुना नदी है, जिसके किनारे यह बसा है। यह प्राचीन समय में गंगा के मैदान से होकर जाने वाले वाणिज्य पथों के रास्ते में पड़ने वाला मुख्य पड़ाव था। यमुना नदी के किनारे स्थित इस नगर का गौरवशाली पौराणिक इतिहास है। यह भारत का अति प्राचीन नगर है। इसके इतिहास का प्रारम्भ सिन्धु घाटी सभ्यता से जुड़ा हुआ है। हरियाणा के आसपास के क्षेत्रों में हुई खुदाई से इस बात के प्रमाण मिले हैं। महाभारत काल में इसका नाम इन्द्रप्रस्थ था। दिल्ली सल्तनत के उत्थान के साथ ही दिल्ली एक प्रमुख राजनैतिक, सांस्कृतिक एवं वाणिज्यिक शहर के रूप में उभरी। यहाँ कई प्राचीन एवं मध्यकालीन इमारतों तथा उनके अवशेषों को देखा जा सकता हैं। १६३९ में मुगल बादशाह शाहजहाँ ने दिल्ली में ही एक चारदीवारी से घिरे शहर का निर्माण करवाया जो १६७९ से १८५७ तक मुगल साम्राज्य की राजधानी रही। १८वीं एवं १९वीं शताब्दी में ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी ने लगभग पूरे भारत को अपने कब्जे में ले लिया। इन लोगों ने कोलकाता को अपनी राजधानी बनाया। १९११ में अंग्रेजी सरकार ने फैसला किया कि राजधानी को वापस दिल्ली लाया जाए। इसके लिए पुरानी दिल्ली के दक्षिण में एक नए नगर नई दिल्ली का निर्माण प्रारम्भ हुआ। अंग्रेजों से १९४७ में स्वतंत्रता प्राप्त कर नई दिल्ली को भारत की राजधानी घोषित किया गया। स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात् दिल्ली में विभिन्न क्षेत्रों से लोगों का प्रवासन हुआ, इससे दिल्ली के स्वरूप में आमूल परिवर्तन हुआ। विभिन्न प्रान्तो, धर्मों एवं जातियों के लोगों के दिल्ली में बसने के कारण दिल्ली का शहरीकरण तो हुआ ही साथ ही यहाँ एक मिश्रित संस्कृति ने भी जन्म लिया। आज दिल्ली भारत का एक प्रमुख राजनैतिक, सांस्कृतिक एवं वाणिज्यिक केन्द्र है। .

नई!!: भारत के महाराज्यपाल और दिल्ली · और देखें »

पश्चिम बंगाल

पश्चिम बंगाल (भारतीय बंगाल) (बंगाली: পশ্চিমবঙ্গ) भारत के पूर्वी भाग में स्थित एक राज्य है। इसके पड़ोस में नेपाल, सिक्किम, भूटान, असम, बांग्लादेश, ओडिशा, झारखंड और बिहार हैं। इसकी राजधानी कोलकाता है। इस राज्य मे 23 ज़िले है। यहां की मुख्य भाषा बांग्ला है। .

नई!!: भारत के महाराज्यपाल और पश्चिम बंगाल · और देखें »

पाकिस्तान के गवर्नर जनरल

यहाँ पाकिस्तान के स्वतंत्रता उपरांत गवर्नर-जनरल गण की सूची दी गयी है। इनका पूर्ण काल1947 – 1958 के बीच रहा। उसके बाद पाकिस्तान गणतंत्र बन गया। तब वहाँ राष्ट्रपति होने लगे।.

नई!!: भारत के महाराज्यपाल और पाकिस्तान के गवर्नर जनरल · और देखें »

फोर्ट विलियम

फोर्ट विलियम कोलकाता में हुगली नदी के पूर्वी किनारे पर बना एक किला है, जिसे ब्रिटिश राज के दौरान बनवाया गया था। इसे इंग्लैंड के राजा विलियम तृतीय के नाम पर बनवाया गया था। इसके सामने ही मैदान है, जो कि किले का ही भाग है और कलकत्ता का सबसे बड़ा शहरी पार्क है। .

नई!!: भारत के महाराज्यपाल और फोर्ट विलियम · और देखें »

बड़ोदरा

बड़ोदरा गुजरात राज्य का तीसरा सबसे अधिक जनसन्ख्या वाला शहर है। यह एक शहर है जहा का महाराजा सयाजीराव विश्वविद्यालय अपने सुंदर स्थापत्य के लिए जाना जाता है। वड़ोदरा गुजरात का एक महत्त्वपूर्ण नगर है। वड़ोदरा शहर, वडोदरा ज़िले का प्रशासनिक मुख्यालय, पूर्वी-मध्य गुजरात राज्य, पश्चिम भारत, अहमदाबाद के दक्षिण-पूर्व में विश्वामित्र नदी के तट पर स्थित है। वडोदरा को बड़ौदा भी कहते हैं। इसका सबसे पुराना उल्लेख 812 ई. के अधिकारदान या राजपत्र में है, जिसमें इसे वादपद्रक बताया गया है। यह अंकोत्तका शहर से संबद्ध बस्ती थी। इस क्षेत्र को जैनियों से छीनने वाले दोर राजपूत राजा चंदन के नाम पर शायद इसे चंदनवाटी के नाम से भी जाना जाता था। समय-समय पर इस शहर के नए नामकरण होते रहे, जैसे वारावती, वातपत्रक, बड़ौदा और 1971 में वडोदरा। .

नई!!: भारत के महाराज्यपाल और बड़ोदरा · और देखें »

बंबई प्रेसीडेंसी

बंबई प्रेसीडेंसी, १९०९, उत्तरी भाग बंबई प्रेसीडेंसी, १९०९, दक्षिणी भाग बंबई प्रेसीडेंसी ब्रिटिश भारत का एक पूर्व-प्रान्त था। इसकी स्थापना १७वीं शताब्दी में हुई थी। इसे १८४३ से १९३६ तक 'बॉम्बे और सिन्ध' तथा 'बॉम्बे प्रोविन्स' कहा जाता था। इसका मुख्यालय मुम्बई था। अपने सबसे बड़े आकार में इस प्रेसिडेन्सी के अन्तर्गत कोंकण, वर्तमान महाराष्ट्र के नासिक तथा पुणे मण्डल, वर्तमान गुजरात के अहमदाबाद, आणन्द, भरूच गांधीनगर, खेड़ा, पंचमहल और सूरत जिले, वर्तमान कर्नाटक के बगलकोट, बेलागवी, बीजापुर, धारवाड़, गडग, हावेरी तथा उत्तर कन्नडा जिले, पाकिस्तान का वर्तमान सिन्ध प्रान्त, तथा यमन का अडेन कॉलोनी आते थे। श्रेणी:मुम्बई का इतिहास श्रेणी:ब्रिटिशकालीन भारत श्रेणी:भारत का इतिहास.

नई!!: भारत के महाराज्यपाल और बंबई प्रेसीडेंसी · और देखें »

बंगाल

बंगाल (बांग्ला: বঙ্গ बॉंगो, বাংলা बांला, বঙ্গদেশ बॉंगोदेश या বাংলাদেশ बांलादेश, संस्कृत: अंग, वंग) उत्तरपूर्वी दक्षिण एशिया में एक क्षेत्र है। आज बंगाल एक स्वाधीन राष्ट्र, बांग्लादेश (पूर्वी बंगाल) और भारतीय संघीय प्रजातन्त्र का अंगभूत राज्य पश्चिम बंगाल के बीच में सहभाजी है, यद्यपि पहले बंगाली राज्य (स्थानीय राज्य का ढंग और ब्रिटिश के समय में) के कुछ क्षेत्र अब पड़ोसी भारतीय राज्य बिहार, त्रिपुरा और उड़ीसा में है। बंगाल में बहुमत में बंगाली लोग रहते हैं। इनकी मातृभाषा बांग्ला है। .

नई!!: भारत के महाराज्यपाल और बंगाल · और देखें »

ब्रिटिश राज

ब्रिटिश राज 1858 और 1947 के बीच भारतीय उपमहाद्वीप पर ब्रिटिश द्वारा शासन था। क्षेत्र जो सीधे ब्रिटेन के नियंत्रण में था जिसे आम तौर पर समकालीन उपयोग में "इंडिया" कहा जाता था‌- उसमें वो क्षेत्र शामिल थे जिन पर ब्रिटेन का सीधा प्रशासन था (समकालीन, "ब्रिटिश इंडिया") और वो रियासतें जिन पर व्यक्तिगत शासक राज करते थे पर उन पर ब्रिटिश क्राउन की सर्वोपरिता थी। .

नई!!: भारत के महाराज्यपाल और ब्रिटिश राज · और देखें »

ब्रिटिश साम्राज्य

ब्रिटिश साम्राज्य एक वैश्विक शक्ति था, जिसके अंतर्गत वे क्षेत्र थे जिनपर ग्रेट ब्रिटेन का अधिकार था। यह एक बहुत बड़ा साम्राज्य था और अपने चरम पर तो विश्व के कुल भूभाग और जनसंख्या का एक चौथाई भाग इसके अधीन था। उस समय लगभग ५० करोड़ लोग ब्रिटिश ताज़ के नियंत्रण में थे। आज इसके अधिकांश सदस्य राष्ट्रमण्डल के सदस्य हैं और इस प्रकार आज भी ब्रिटिश साम्राज्य का ही एक अंग है। ब्रिटिश साम्राज्य का सबसे महत्वपूर्ण भाग था ईस्ट इंडिया ट्रेडिंग कंपनी जो एक छोटे व्यापार के साथ आरंभ की गई थी और बाद में एक बहुत बड़ी कंपनी बन गई जिसपर बहुत से लोग निर्भर थे। यह विदेशी कालोनियों और व्यापार पदों के द्वरा 16 वीं और 17 वीं सदी में इंग्लैंड द्वारा स्थापित किया गया| १९२१ में ब्रिटिश साम्राज्य सर्वाधिक क्षेत्र में फैला हुआ था। .

नई!!: भारत के महाराज्यपाल और ब्रिटिश साम्राज्य · और देखें »

भारत

भारत (आधिकारिक नाम: भारत गणराज्य, Republic of India) दक्षिण एशिया में स्थित भारतीय उपमहाद्वीप का सबसे बड़ा देश है। पूर्ण रूप से उत्तरी गोलार्ध में स्थित भारत, भौगोलिक दृष्टि से विश्व में सातवाँ सबसे बड़ा और जनसंख्या के दृष्टिकोण से दूसरा सबसे बड़ा देश है। भारत के पश्चिम में पाकिस्तान, उत्तर-पूर्व में चीन, नेपाल और भूटान, पूर्व में बांग्लादेश और म्यान्मार स्थित हैं। हिन्द महासागर में इसके दक्षिण पश्चिम में मालदीव, दक्षिण में श्रीलंका और दक्षिण-पूर्व में इंडोनेशिया से भारत की सामुद्रिक सीमा लगती है। इसके उत्तर की भौतिक सीमा हिमालय पर्वत से और दक्षिण में हिन्द महासागर से लगी हुई है। पूर्व में बंगाल की खाड़ी है तथा पश्चिम में अरब सागर हैं। प्राचीन सिन्धु घाटी सभ्यता, व्यापार मार्गों और बड़े-बड़े साम्राज्यों का विकास-स्थान रहे भारतीय उपमहाद्वीप को इसके सांस्कृतिक और आर्थिक सफलता के लंबे इतिहास के लिये जाना जाता रहा है। चार प्रमुख संप्रदायों: हिंदू, बौद्ध, जैन और सिख धर्मों का यहां उदय हुआ, पारसी, यहूदी, ईसाई, और मुस्लिम धर्म प्रथम सहस्राब्दी में यहां पहुचे और यहां की विविध संस्कृति को नया रूप दिया। क्रमिक विजयों के परिणामस्वरूप ब्रिटिश ईस्ट इण्डिया कंपनी ने १८वीं और १९वीं सदी में भारत के ज़्यादतर हिस्सों को अपने राज्य में मिला लिया। १८५७ के विफल विद्रोह के बाद भारत के प्रशासन का भार ब्रिटिश सरकार ने अपने ऊपर ले लिया। ब्रिटिश भारत के रूप में ब्रिटिश साम्राज्य के प्रमुख अंग भारत ने महात्मा गांधी के नेतृत्व में एक लम्बे और मुख्य रूप से अहिंसक स्वतन्त्रता संग्राम के बाद १५ अगस्त १९४७ को आज़ादी पाई। १९५० में लागू हुए नये संविधान में इसे सार्वजनिक वयस्क मताधिकार के आधार पर स्थापित संवैधानिक लोकतांत्रिक गणराज्य घोषित कर दिया गया और युनाईटेड किंगडम की तर्ज़ पर वेस्टमिंस्टर शैली की संसदीय सरकार स्थापित की गयी। एक संघीय राष्ट्र, भारत को २९ राज्यों और ७ संघ शासित प्रदेशों में गठित किया गया है। लम्बे समय तक समाजवादी आर्थिक नीतियों का पालन करने के बाद 1991 के पश्चात् भारत ने उदारीकरण और वैश्वीकरण की नयी नीतियों के आधार पर सार्थक आर्थिक और सामाजिक प्रगति की है। ३३ लाख वर्ग किलोमीटर क्षेत्रफल के साथ भारत भौगोलिक क्षेत्रफल के आधार पर विश्व का सातवाँ सबसे बड़ा राष्ट्र है। वर्तमान में भारतीय अर्थव्यवस्था क्रय शक्ति समता के आधार पर विश्व की तीसरी और मानक मूल्यों के आधार पर विश्व की दसवीं सबसे बडी अर्थव्यवस्था है। १९९१ के बाज़ार-आधारित सुधारों के बाद भारत विश्व की सबसे तेज़ विकसित होती बड़ी अर्थ-व्यवस्थाओं में से एक हो गया है और इसे एक नव-औद्योगिकृत राष्ट्र माना जाता है। परंतु भारत के सामने अभी भी गरीबी, भ्रष्टाचार, कुपोषण, अपर्याप्त सार्वजनिक स्वास्थ्य-सेवा और आतंकवाद की चुनौतियां हैं। आज भारत एक विविध, बहुभाषी, और बहु-जातीय समाज है और भारतीय सेना एक क्षेत्रीय शक्ति है। .

नई!!: भारत के महाराज्यपाल और भारत · और देखें »

भारत का विभाजन

माउण्टबैटन योजना * पाकिस्तान का विभाजन * कश्मीर समस्या .

नई!!: भारत के महाराज्यपाल और भारत का विभाजन · और देखें »

भारत के महाराज्यपाल

भारत के महाराज्यपाल या गवर्नर-जनरल (१८५८-१९४७ तक वाइसरॉय एवं गवर्नर-जनरल अर्थात राजप्रतिनिधि एवं महाराज्यपाल) भारत में ब्रिटिश राज का अध्यक्ष और भारतीय स्वतंत्रता उपरांत भारत में, ब्रिटिश सम्प्रभु का प्रतिनिधि होता था। इनका कार्यालय सन 1773 में बनाया गया था, जिसे फोर्ट विलियम की प्रेसीडेंसी का गवर्नर-जनरल के अधीन रखा गया था। इस कार्यालय का फोर्ट विलियम पर सीधा नियंत्रण था, एवं अन्य ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी के अधिकारियों का पर्यवेक्षण करता था। सम्पूर्ण ब्रिटिश भारत पर पूर्ण अधिकार 1833 में दिये गये और तब से यह भारत के गवर्नर-जनरल बन गये। १८५८ में भारत ब्रिटिश शासन की अधीन आ गया था। गवर्नर-जनरल की उपाधि उसके भारतीय ब्रिटिश प्रांत (पंजाब, बंगाल, बंबई, मद्रास, संयुक्त प्रांत, इत्यादि) और ब्रिटिष भारत, शब्द स्वतंत्रता पूर्व काल के अविभाजित भारत के इन्हीं ब्रिटिश नियंत्रण के प्रांतों के लिये प्रयोग होता है। वैसे अधिकांश ब्रिटिश भारत, ब्रिटिश सरकार द्वारा सीधे शासित ना होकर, उसके अधीन रहे शासकों द्वारा ही शासित होता था। भारत में सामंतों और रजवाड़ों को गवर्नर-जनरल के ब्रिटिश सरकार के प्रतिनिधि होने की भूमिका को दर्शित करने हेतु, सन १८५८ से वाइसरॉय एवं गवर्नर-जनरल ऑफ इंडिया (जिसे लघुरूप में वाइसरॉय कहा जाता था) प्रयोग हुई। वाइसरॊय उपाधि १९४७ में स्वतंत्रता उपरांत लुप्त हो गयी, लेकिन गवर्नर-जनरल का कार्यालय सन १९५० में, भारतीय गणतंत्रता तक अस्तित्व में रहा। १८५८ तक, गवर्नर-जनरल को ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी के निदेशकों द्वारा चयनित किया जाता था और वह उन्हीं को जवाबदेह होता था। बाद में वह महाराजा द्वारा ब्रिटिश सरकार, भारत राज्य सचिव, ब्रिटिश कैबिनेट; इन सभी की राय से चयन होने लगा। १९४७ के बाद, सम्राट ने उसकी नियुक्ति जारी रखी, लेकिन भारतीय मंत्रियों की राय से, ना कि ब्रिटिश मंत्रियों की सलाह से। गवर्नर-जनरल पांच वर्ष के कार्यकाल के लिये होता था। उसे पहले भी हटाया जा सकता था। इस काल के पूर्ण होने पर, एक अस्थायी गवर्नर-जनरल बनाया जाता था। जब तक कि नया गवर्नर-जनरल पदभार ग्रहण ना कर ले। अस्थायी गवर्नर-जनरल को प्रायः प्रान्तीय गवर्नरों में से चुना जाता था। .

नई!!: भारत के महाराज्यपाल और भारत के महाराज्यपाल · और देखें »

भारत के राष्ट्रपति

भारत के राष्ट्रपति, भारत गणराज्य के कार्यपालक अध्यक्ष होते हैं। संघ के सभी कार्यपालक कार्य उनके नाम से किये जाते हैं। अनुच्छेद 53 के अनुसार संघ की कार्यपालक शक्ति उनमें निहित हैं। वह भारतीय सशस्त्र सेनाओं का सर्वोच्च सेनानायक भी हैं। सभी प्रकार के आपातकाल लगाने व हटाने वाला, युद्ध/शांति की घोषणा करने वाला होता है। वह देश के प्रथम नागरिक हैं। भारतीय राष्ट्रपति का भारतीय नागरिक होना आवश्यक है। सिद्धांततः राष्ट्रपति के पास पर्याप्त शक्ति होती है। पर कुछ अपवादों के अलावा राष्ट्रपति के पद में निहित अधिकांश अधिकार वास्तव में प्रधानमंत्री की अध्यक्षता वाले मंत्रिपरिषद् के द्वारा उपयोग किए जाते हैं। भारत के राष्ट्रपति नई दिल्ली स्थित राष्ट्रपति भवन में रहते हैं, जिसे रायसीना हिल के नाम से भी जाना जाता है। राष्ट्रपति अधिकतम कितनी भी बार पद पर रह सकते हैं इसकी कोई सीमा तय नहीं है। अब तक केवल पहले राष्ट्रपति राजेन्द्र प्रसाद ने ही इस पद पर दो बार अपना कार्यकाल पूरा किया है। प्रतिभा पाटिल भारत की 12वीं तथा इस पद को सुशोभीत करने वाली पहली महिला राष्ट्रपति हैं। उन्होंने 25 जुलाई 2007 को पद व गोपनीयता की शपथ ली थी। - Fadoo Post - 14 july 2017 वर्तमान में राम नाथ कोविन्द भारत के चौदहवें राष्ट्रपति हैं। .

नई!!: भारत के महाराज्यपाल और भारत के राष्ट्रपति · और देखें »

भारत के सम्राट

ऑर्डर ऑफ द स्टार ऑफ इंडिया का सितारा, जो ब्रिटिश साम्राज्यिक भारत के बिल्ले (चिह्न) के रूप में प्रयोग होता था। ”’भारत के सम्राट’”/”’साम्राज्ञी”, ”’ बादशाह-ए-हिं””, ”’ एम्परर/एम्प्रैस ऑफ इण्डिय”” वह उपाधि थी, जो कि अंतिम भारतीय मुगल शासक बहादुर_शाह_द्वितीय एवं भारत में ब्रिटिश राज के शासकों हेतु प्रयोग होती थी। कभी भारत के सम्राट उपाधि, भारतीय सम्राटों, जैसे मौर्य वंश के अशोक-महान। या मुगल_बादशाह अकबर-महान के लिये भी प्रयोग होती है। वैसे उन्होंने कभी भी यह उपाधियां अपने लिये नहीं घोषित कीं। .

नई!!: भारत के महाराज्यपाल और भारत के सम्राट · और देखें »

मद्रास प्रैज़िडन्सी

मद्रास प्रेसीडेंसी (சென்னை மாகாணம், చెన్నపురి సంస్థానము, മദ്രാസ് പ്രസിഡന്‍സി, ಮದ್ರಾಸ್ ಪ್ರೆಸಿಡೆನ್ಸಿ, ମଦ୍ରାସ୍ ପ୍ରେସୋଦେନ୍ଚ୍ଯ), जिसे आधिकारिक तौर पर फोर्ट सेंट जॉर्ज की प्रेसीडेंसी तथा मद्रास प्रोविंस के रूप में भी जाना जाता है, ब्रिटिश भारत का एक प्रशासनिक अनुमंडल था। अपनी सबसे विस्तृत सीमा तक प्रेसीडेंसी में दक्षिण भारत के अधिकांश हिस्सों सहित वर्तमान भारतीय राज्य तमिलनाडु, उत्तरी केरल का मालाबार क्षेत्र, लक्षद्वीप द्वीपसमूह, तटीय आंध्र प्रदेश और आंध्र प्रदेश के रायलसीमा क्षेत्र, गंजाम, मल्कानगिरी, कोरापुट, रायगढ़, नवरंगपुर और दक्षिणी उड़ीसा के गजपति जिले और बेल्लारी, दक्षिण कन्नड़ और कर्नाटक के उडुपी जिले शामिल थे। प्रेसीडेंसी की अपनी शीतकालीन राजधानी मद्रास और ग्रीष्मकालीन राजधानी ऊटाकामंड थी। 1639 में ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी ने मद्रासपट्टनम गांव को खरीदा था और इसके एक साल बाद मद्रास प्रेसीडेंसी की पूर्ववर्ती, सेंट जॉर्ज किले की एजेंसी की स्थापना की थी, हालांकि मछलीपट्टनम और आर्मागोन में कंपनी के कारखाने 17वीं सदी के प्रारंभ से ही मौजूद थे। 1655 में एक बार फिर से इसकी पूर्व की स्थिति में वापस लाने से पहले एजेंसी को 1652 में एक प्रेसीडेंसी के रूप में उन्नत बनाया गया था। 1684 में इसे फिर से एक प्रेसीडेंसी के रूप में उन्नत बनाया गया और एलीहू येल को पहला प्रेसिडेंट नियुक्त किया गया। 1785 में पिट्स इंडिया एक्ट के प्रावधानों के तहत मद्रास ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी द्वारा स्थापित तीन प्रांतों में से एक बन गया। उसके बाद क्षेत्र के प्रमुख को "प्रेसिडेंट" की बजाय "गवर्नर" का नाम दिया गया और कलकत्ता में गवर्नर-जनरल का अधीनस्थ बनाया गया, यह एक ऐसा पद था जो 1947 तक कायम रहा.

नई!!: भारत के महाराज्यपाल और मद्रास प्रैज़िडन्सी · और देखें »

मुग़ल साम्राज्य

मुग़ल साम्राज्य (फ़ारसी:, मुग़ल सलतनत-ए-हिंद; तुर्की: बाबर इम्परातोरलुग़ु), एक इस्लामी तुर्की-मंगोल साम्राज्य था जो 1526 में शुरू हुआ, जिसने 17 वीं शताब्दी के आखिर में और 18 वीं शताब्दी की शुरुआत तक भारतीय उपमहाद्वीप में शासन किया और 19 वीं शताब्दी के मध्य में समाप्त हुआ। मुग़ल सम्राट तुर्क-मंगोल पीढ़ी के तैमूरवंशी थे और इन्होंने अति परिष्कृत मिश्रित हिन्द-फारसी संस्कृति को विकसित किया। 1700 के आसपास, अपनी शक्ति की ऊँचाई पर, इसने भारतीय उपमहाद्वीप के अधिकांश भाग को नियंत्रित किया - इसका विस्तार पूर्व में वर्तमान बंगलादेश से पश्चिम में बलूचिस्तान तक और उत्तर में कश्मीर से दक्षिण में कावेरी घाटी तक था। उस समय 40 लाख किमी² (15 लाख मील²) के क्षेत्र पर फैले इस साम्राज्य की जनसंख्या का अनुमान 11 और 13 करोड़ के बीच लगाया गया था। 1725 के बाद इसकी शक्ति में तेज़ी से गिरावट आई। उत्तराधिकार के कलह, कृषि संकट की वजह से स्थानीय विद्रोह, धार्मिक असहिष्णुता का उत्कर्ष और ब्रिटिश उपनिवेशवाद से कमजोर हुए साम्राज्य का अंतिम सम्राट बहादुर ज़फ़र शाह था, जिसका शासन दिल्ली शहर तक सीमित रह गया था। अंग्रेजों ने उसे कैद में रखा और 1857 के भारतीय विद्रोह के बाद ब्रिटिश द्वारा म्यानमार निर्वासित कर दिया। 1556 में, जलालुद्दीन मोहम्मद अकबर, जो महान अकबर के नाम से प्रसिद्ध हुआ, के पदग्रहण के साथ इस साम्राज्य का उत्कृष्ट काल शुरू हुआ और सम्राट औरंगज़ेब के निधन के साथ समाप्त हुआ, हालाँकि यह साम्राज्य और 150 साल तक चला। इस समय के दौरान, विभिन्न क्षेत्रों को जोड़ने में एक उच्च केंद्रीकृत प्रशासन निर्मित किया गया था। मुग़लों के सभी महत्वपूर्ण स्मारक, उनके ज्यादातर दृश्य विरासत, इस अवधि के हैं। .

नई!!: भारत के महाराज्यपाल और मुग़ल साम्राज्य · और देखें »

मैसूर

मैसूर भारत के कर्नाटक प्रान्त का दूसरा सबसे बड़ा शहर है। यह प्रदेश की राजधानी बंगलौर से लगभग डेढ़ सौ किलोमीटर दक्षिण में तमिलनाडु की सीमा पर स्थित है। .

नई!!: भारत के महाराज्यपाल और मैसूर · और देखें »

मोहम्मद अली जिन्नाह

मोहम्मद अली जिन्ना (उर्दू:, जन्म: 25 दिसम्बर 1876 मृत्यु: 11 सितम्बर 1948) बीसवीं सदी के एक प्रमुख राजनीतिज्ञ थे जिन्हें पाकिस्तान के संस्थापक के रूप में जाना जाता है। वे मुस्लिम लीग के नेता थे जो आगे चलकर पाकिस्तान के पहले गवर्नर जनरल बने। पाकिस्तान में, उन्हें आधिकारिक रूप से क़ायदे-आज़म यानी महान नेता और बाबा-ए-क़ौम यानी राष्ट्र पिता के नाम से नवाजा जाता है। उनके जन्म दिन पर पाकिस्तान में अवकाश रहता है। भारतीय राजनीति में जिन्ना का उदय 1916 में कांग्रेस के एक नेता के रूप में हुआ था, जिन्होने हिन्दू-मुस्लिम एकता पर जोर देते हुए मुस्लिम लीग के साथ लखनऊ समझौता करवाया था। वे अखिल भारतीय होम रूल लीग के प्रमुख नेताओं में गिने जाते थे। काकोरी काण्ड के चारो मृत्यु-दण्ड प्राप्त कैदियों की सजायें कम करके आजीवन कारावास (उम्र-कैद) में बदलने हेतु सेण्ट्रल कौन्सिल के ७८ सदस्यों ने तत्कालीन वायसराय व गवर्नर जनरल एडवर्ड फ्रेडरिक लिण्डले वुड को शिमला जाकर हस्ताक्षर युक्त मेमोरियल दिया था जिस पर प्रमुख रूप से पं॰ मदन मोहन मालवीय, मोहम्मद अली जिन्ना, एन॰ सी॰ केलकर, लाला लाजपत राय व गोविन्द वल्लभ पन्त आदि ने हस्ताक्षर किये थे। भारतीय मुसलमानों के प्रति कांग्रेस के उदासीन रवैये को देखते हुए जिन्ना ने कांग्रेस छोड़ दी। उन्होंने देश में मुसलमानों के अधिकारों की रक्षा और स्वशासन के लिए चौदह सूत्रीय संवैधानिक सुधार का प्रस्ताव रखा। लाहौर प्रस्ताव के तहत उन्होंने मुसलमानों के लिए एक अलग राष्ट्र का लक्ष्य निर्धारित किया। 1946 में ज्यादातर मुस्लिम सीटों पर मुस्लिम लीग की जीत हुई और जिन्ना ने पाकिस्तान की आजादी के लिए त्वरित कार्रवाई का अभियान शुरू किया। कांग्रेस की कड़ी प्रतिक्रिया के कारण भारत में व्यापक पैमाने पर हिंसा हुई। मुस्लिम लीग और कांग्रेस पार्टी, गठबन्धन की सरकार बनाने में असफल रहे, इसलिए अंग्रेजों ने भारत विभाजन को मंजूरी दे दी। पाकिस्तान के गवर्नर जनरल के रूप में जिन्ना ने लाखों शरणार्थियो के पुनर्वास के लिए प्रयास किया। साथ ही, उन्होंने अपने देश की विदेश नीति, सुरक्षा नीति और आर्थिक नीति बनाने में महत्वपूर्ण योगदान दिया। गौरतलब है कि पाकिस्तान और भारत का बटवारा जिन्ना और नेहरू के राजनीतिक लालच की वजह से हुआ है ! .

नई!!: भारत के महाराज्यपाल और मोहम्मद अली जिन्नाह · और देखें »

राष्ट्रपति निवास

राष्ट्रपति निवास (पूर्व नाम वाईसरिगल लॉज) शिमला, हिमाचल प्रदेश, भारत के ऑब्जर्वेटरी हिल्स पर स्थित है। .

नई!!: भारत के महाराज्यपाल और राष्ट्रपति निवास · और देखें »

राष्ट्रपति भवन

राष्ट्रपति भवन भारत सरकार के राष्ट्रपति का सरकारी आवास है। सन १९५० तक इसे वाइसरॉय हाउस बोला जाता था। तब यह तत्कालीन भारत के गवर्नर जनरल का आवास हुआ करता था। यह नई दिल्ली के हृदय क्षेत्र में स्थित है। इस महल में ३४० कक्ष हैं और यह विश्व में किसी भी राष्ट्राध्यक्ष के आवास से बड़ा है। वर्तमान भारत के राष्ट्रपति, उन कक्षों में नहीं रहते, जहां वाइसरॉय रहते थे, बल्कि वे अतिथि-कक्ष में रहते हैं। भारत के प्रथम भारतीय गवर्नर जनरल श्री सी राजगोपालाचार्य को यहां का मुख्य शयन कक्ष, अपनी विनीत नम्र रुचियों के कारण, अति आडंबर पूर्ण लगा जिसके कारण उन्होंने अतिथि कक्ष में रहना उचित समझा। उनके उपरांत सभी राष्ट्रपतियों ने यही परंपरा निभाई। यहां के मुगल उद्यान की गुलाब वाटिका में अनेक प्रकार के गुलाब लगे हैं और यह कि जन साधारण हेतु, प्रति वर्ष फरवरी माह के दौरान खुलती है। इस भवन की खास बात है कि इस भवन के निर्माण में लोहे का नगण्य प्रयोग हुआ है। .

नई!!: भारत के महाराज्यपाल और राष्ट्रपति भवन · और देखें »

राष्ट्रीय पुस्तकालय (भारत)

भारतीय राष्ट्रीय पुस्तकालय (कोलकाता) भारत का राष्ट्रीय पुस्तकालय कोलकाता में स्थित है। यह भारत का सबसे बड़ा पुस्तकालय है। राष्‍ट्रीय पुस्‍कालय की स्‍थापना 1948 में 'इंपीरियल लाइब्रेरी अधिनियम, 1948' पारित करके की गई थी। इस पुस्‍तकालय को राष्‍ट्रीय महत्‍व के संस्‍थान का दर्जा प्राप्‍त है। इसकी मुख्‍य गतिवियां हैं.

नई!!: भारत के महाराज्यपाल और राष्ट्रीय पुस्तकालय (भारत) · और देखें »

रॉबर्ट नैपियर

रॉबर्ट नैपियर भारत के गवर्नर जनरल रहे थे। श्रेणी:भारत के गवर्नर जनरल.

नई!!: भारत के महाराज्यपाल और रॉबर्ट नैपियर · और देखें »

लुईस माउंटबेटन, बर्मा के पहले अर्ल माउंटबेटन

लुइस फ्रांसिस एल्बर्ट विक्टर निकोलस जॉर्ज माउंटबेटन, बर्मा के पहले अर्ल माउंटबेटन, बेड़े के एडमिरल, केजी, जीसीबी, ओएम, जीसीएसआई, जीसीआईई, जीसीवीओ, डीएसओ, पीसी, एफआरएस (पूर्व में बैटनबर्ग के राजकुमार लुइस, 25 जून 1900 - 27 अगस्त 1979), एक ब्रिटिश राजनीतिज्ञ और नौसैनिक अधिकारी व राजकुमार फिलिप, एडिनबर्ग के ड्यूक (एलिजाबेथ II के पति) के मामा थे। वह भारत के आखिरी वायसरॉय (1947) थे और स्वतंत्र भारतीय संघ के पहले गवर्नर-जनरल (1947-48) थे, जहां से 1950 में आधुनिक भारत का गणतंत्र उभरेगा। 1954 से 1959 तक वह पहले सी लॉर्ड थे, यह पद उनके पिता बैटनबर्ग के राजकुमार लुइस ने लगभग चालीस साल पहले संभाला था। 1979 में उनकी हत्या प्रोविजनल आयरिश रिपब्लिकन आर्मी (आईआरए) ने कर दी, जिसने आयरलैंड रिपब्लिक की स्लीगो काउंटी में मुल्लाग्मोर में उनकी मछली मरने की नाव, शैडो V में बम लगा दिया था। वह बीसवीं सदी के मध्य से अंत तक ब्रिटिश साम्राज्य के पतन के समय के सबसे प्रभावशाली और विवादित शख्सियतों में से एक थे। .

नई!!: भारत के महाराज्यपाल और लुईस माउंटबेटन, बर्मा के पहले अर्ल माउंटबेटन · और देखें »

लॉर्ड चेम्स्फोर्ड

लॉर्ड चेम्स्फोर्ड भारत के गवर्नर जनरल रहे थे। श्रेणी:भारत के गवर्नर जनरल.

नई!!: भारत के महाराज्यपाल और लॉर्ड चेम्स्फोर्ड · और देखें »

लॉर्ड एम्हर्स्ट

लॉर्ड एम्हर्स्ट फोर्ट विलियम प्रेसिडेंसी के गवर्नर जनरल रहे थे। श्रेणी:भारत के गवर्नर जनरल.

नई!!: भारत के महाराज्यपाल और लॉर्ड एम्हर्स्ट · और देखें »

लॉर्ड ऐम्प्थिल

लॉर्ड ऐम्प्थिल भारत के गवर्नर जनरल रहे थे। श्रेणी:भारत के गवर्नर जनरल.

नई!!: भारत के महाराज्यपाल और लॉर्ड ऐम्प्थिल · और देखें »

लॉर्ड ऐलनबरो

लॉर्ड ऐलनबरो भारत के गवर्नर जनरल रहे थे। श्रेणी:भारत के गवर्नर जनरल.

नई!!: भारत के महाराज्यपाल और लॉर्ड ऐलनबरो · और देखें »

लॉर्ड डफरिन

लॉर्ड डफरिन भारत के गवर्नर जनरल रहे थे। लॉर्ड डफ़रिन 1884 ई. में लॉर्ड रिपन के बाद भारत का वायसराय बनकर आया। वह 1884 से 1888 ई. तक भारत का वाइसराय तथा गवर्नर-जनरल रहा था। सामान्य तौर पर उसका शासनकाल शान्तिपूर्ण था, लेकिन तृतीय बर्मा युद्ध (1885-1886 ई.) उसी के कार्यकाल में हुआ, जिसके फलस्वरूप उत्तरी बर्मा ब्रिटिश भारतीय साम्राज्य का अंग बन गया। श्रेणी:भारत के गवर्नर जनरल.

नई!!: भारत के महाराज्यपाल और लॉर्ड डफरिन · और देखें »

लॉर्ड डलहौजी

लॉर्ड डलहौजी भारत में ब्रिटिश राज का गवर्नर जनरल था और उसका प्रशासन चलाने का तरीका साम्राज्यवाद से प्रेरित था। उसके काल मे राज्य विस्तार का काम अपने चरम पर था। .

नई!!: भारत के महाराज्यपाल और लॉर्ड डलहौजी · और देखें »

लॉर्ड नैपियर

लॉर्ड नैपियर भारत के गवर्नर जनरल रहे थे। श्रेणी:भारत के गवर्नर जनरल.

नई!!: भारत के महाराज्यपाल और लॉर्ड नैपियर · और देखें »

लॉर्ड नॉर्थब्रूक

लॉर्ड नॉर्थब्रूक भारत के गवर्नर जनरल रहे थे। श्रेणी:भारत के गवर्नर जनरल.

नई!!: भारत के महाराज्यपाल और लॉर्ड नॉर्थब्रूक · और देखें »

लॉर्ड मिंटो

लॉर्ड मिंटो भारत के गवर्नर जनरल रहे थे। श्रेणी:भारत के गवर्नर जनरल.

नई!!: भारत के महाराज्यपाल और लॉर्ड मिंटो · और देखें »

लॉर्ड मेयो

लॉर्ड मेयो भारत के गवर्नर जनरल रहे थे। श्रेणी:भारत के गवर्नर जनरल.

नई!!: भारत के महाराज्यपाल और लॉर्ड मेयो · और देखें »

लॉर्ड राइपन

लॉर्ड राइपन भारत के गवर्नर जनरल रहे थे। श्रेणी:भारत के गवर्नर जनरल.

नई!!: भारत के महाराज्यपाल और लॉर्ड राइपन · और देखें »

लॉर्ड लिट्टन

लॉर्ड लिट्टन भारत के गवर्नर जनरल रहे थे। श्रेणी:भारत के गवर्नर जनरल.

नई!!: भारत के महाराज्यपाल और लॉर्ड लिट्टन · और देखें »

लॉर्ड लैंस्डाउन

लॉर्ड लैंस्डाउन भारत के गवर्नर जनरल रहे थे। श्रेणी:भारत के गवर्नर जनरल.

नई!!: भारत के महाराज्यपाल और लॉर्ड लैंस्डाउन · और देखें »

लॉर्ड हार्डिंग

लॉर्ड हार्डिंग भारत के गवर्नर जनरल रहे थे। श्रेणी:भारत के गवर्नर जनरल.

नई!!: भारत के महाराज्यपाल और लॉर्ड हार्डिंग · और देखें »

लॉर्ड विलियम बैन्टिक

लॉर्ड विलियम बैन्टिक भारत के गवर्नर जनरल रहे थे। श्रेणी:भारत के गवर्नर जनरलये भारत के प्रथम गवर्नर जनरल थे लॉर्ड विलियम बैंटिक, जिन्हें 'विलियम कैवेंडिश बैटिंग' के नाम से भी जाना जाता है, को भारत का प्रथम गवर्नर-जनरल का पद सुशोभित करने का गौरव प्राप्त है। पहले वह मद्रास के गवर्नर बनकर भारत आये थे। उनका शासनकाल अधिकांशत: शांति का काल था। लॉर्ड विलियम बैंटिक ने भारतीय रियासतों के मामले में अहस्तक्षेप की नीति को अपनाया था। उन्होंने पंजाब के महाराजा रणजीत सिंह से संधि की थी, जिसके द्वारा अंग्रेज़ और महाराजा रणजीत सिंह ने सिंध के मार्ग से व्यापार को बढ़ावा देना स्वीकार किया था। विलियम बैंटिक के भारतीय समाज में किए गए सुधार आज भी प्रसिद्ध हैं। सती प्रथा को समाप्त करने में उनका महत्त्वपूर्ण योगदान था। अपने शासनकाल के अंतिम समय में वह बंगाल के गवर्नर-जनरल रहे थे। भारत आगमन लॉर्ड विलियम बैंटिक पहले मद्रास के गवर्नर की हैसियत से भारत आये थे, लेकिन 1806 ई. में वेल्लोर में सिपाही विद्रोह हो जाने पर उन्हें वापस बुला लिया गया। इक्कीस वर्षों के बाद लॉर्ड एमहर्स्ट द्वारा त्यागपत्र दे देने पर उन्हें गवर्नर-जनरल नियुक्त किया गया था और उन्होंने जुलाई 1828 ई. में यह पद ग्रहण कर लिया। सामाजिक सुधार के कार्य विलियम बैंटिक के शासन का महत्त्व उनके प्रशासकीय एवं सामाजिक सुधारों के कारण है, जिनके फलस्वरूप वह बहुत ही लोकप्रिय हुए। इनका आरम्भ सैनिक और असैनिक सेवाओं में किफ़ायतशारी बरतने से हुआ। उन्होंने राजस्व, विशेषकर अफ़ीम के एकाधिकार से होने वाली आय में भारी वृद्धि की। फलत: जिस वार्षिक बजट में घाटे होते रहते थे, उनमें बहुत बचत होने लगी। उन्होंने भारतीय सेना में प्रचलित कोड़े लगाने की प्रथा को भी समाप्त कर दिया। भारतीय नदियों में स्टीमर चलवाने आरम्भ किये, आगरा क्षेत्र में कृषि भूमि का बंदोबस्त कराया, जिससे राजस्व में वृद्धि हुई, तथा किसानों के द्वारा दी जाने वाली मालगुज़ारी का उचित निर्धारण कर उन्हें अधिकार के अभिलेख दिलवाये। बैंटिक ने लॉर्ड कार्नवालिस की भारतीयों को कम्पनी की निम्न नौकरियों को छोड़कर ऊँची नौकरियों से अलग रखने की ग़लत नीति को उलट दिया और भारतीयों की सहायक जज जैसे उच्च पदों पर नियुक्तियाँ कीं। ज़िला मजिस्ट्रेट तथा ज़िला कलेक्टर के पद को मिलाकर एक कर दिया, प्रादेशिक अदालतों को समाप्त कर दिया, भारतीयों की नियुक्तियाँ अच्छे वेतन पर डिप्टी मजिस्ट्रेट जैसे प्राशासकीय पदों पर की तथा 'डिवीजनल कमिश्नरों (मंडल आयुक्त)' के पदों की स्थापना की। इस प्रकार उसने भारतीय प्रशासकीय ढाँचे को उसका आधुनिक रूप प्रदान किया। भारतीयों में लोकप्रियता लॉर्ड बैंटिक के सामाजिक सुधार भी कुछ कम महत्त्व के नहीं थे। 1829 ई. में उसने सती प्रथा को समाप्त कर दिया। कर्नल स्लीमन के सहयोग से उसने ठगी का उन्मूलन किया। उस समय ठगों का देशव्यापी गुप्त संगठन था, वे देश भर में घूता करते थे और भोले-भाले यात्रियों की रुमाल से गला घोंटकर हत्या कर दिया करते थे और उनका सारा माल लूट लेते थे। 1832 ई. में धर्म-परिवर्तन से होने वाली सभी अयोग्यताओं को समाप्त कर दिया गया। 1833 ई. में कम्पनी के अधिकार पत्र को अगले बीस वर्षों के लिए नवीन कर दिया गया। इससे कम्पनी चीन के व्यवसाय पर एकाधिकार से वंचित हो गई। अब वह मात्र प्रशासकीय संस्था रह गई। नये चार्टर एक्ट के द्वारा अनेक महत्त्वपूर्ण परिवर्तन किये गये। बंगाल के गवर्नर-जनरल के पद का नाम बदलकर भारत का गवर्नर-जनरल कर दिया गया। गवर्नर-जनरल की कौंसिल की सदस्य संख्या बढ़ाकर चार कर दी गई तथा यह सिद्धान्त निर्दिष्ट किया गया कि कोई भी भारतीय, मात्र अपने धर्म, जन्म अथवा रंग के कारण कम्पनी के अंतर्गत किसी पद से, यदि वह उसके लिए योग्य हो, वंचित नहीं किया जायेगा। समाचार-पत्रों की स्वतंत्रता लॉर्ड विलियम बैंटिक ने सरकारी सेवाओं में भेद-भावपूर्ण व्यवहार को ख़त्म करने के लिए 1833 ई. के एक्ट की धारा 87 के अनुसार जाति या रंग के स्थान पर योग्यता को ही सेवा का आधार माना। विलियम बैंटिक ने समाचार-पत्रों के प्रति उदार दृष्टिकोण अपनाते हुए उनकी स्वतन्त्रता की वकालत की। वह इसे ‘असन्तोष से रक्षा का अभिद्वार’ मानते थे। उन्होंने मद्रास के सैनिक विद्रोह का उल्लेख करते हुए बताया कि, कलकत्ता (वर्तमान कोलकाता) और मद्रास दोनों जगह स्थिति एक जैसी थी, किन्तु मद्रास में विद्रोह इसलिए था, क्योंकि वहाँ समाचार-पत्रों की स्वतंत्रता नहीं थी। इस प्रकार विलियम बैंटिक भारतीय समाचार-पत्रों को मुक्त करना चाहते थे। किन्तु 1835 ई.में ख़राब स्वास्थ्य के आधार पर विलियम बैंटिक द्वारा इस्तीफ़ा देने के कारण समाचार-पत्रों से प्रतिबन्ध हटा लेने का श्रेय उसके परवर्ती गवर्नर-जनरल चार्ल्स मेटकॉफ़ को मिला। शैक्षिक सुधार शिक्षा के क्षेत्र में विलियम बैंटिक ने महत्त्वपूर्ण सुधार किये। उन्होंने शिक्षा के उद्देश्य एवं माध्यम, दोनों पर पर गहरा अध्ययन किया। शिक्षा के लिए अनुदान का प्रयोग कैसे किया जाय, यह विचारणीय विषय रहा। विवाद फँसा था कि, अनुदान का प्रयोग प्राच्य साहित्य के विकास के लिए किया जाय या फिर पाश्चात्य साहित्य के विकास के लिए। प्राच्य शिक्षा के समर्थकों का नेतृत्व 'विल्सन' व 'प्रिंसेप' ने किया तथा पाश्चात्य विद्या के समर्थकों का नेतृत्व ‘ट्रेवलियन’ ने, जिसको राजा राममोहन राय का भी समर्थन प्राप्त था। अन्ततः इस विवाद के निपटारे के लिए लॉर्ड मैकाले की अध्यक्षता में एक समिति बनी, जिसने पाश्चात्य विद्या के समर्थन में अपना निर्णय दिया। उसने अपने विचारों को 2 फ़रवरी, 1835 ई. के सुप्रसिद्ध स्मरण पत्र में प्रतिपादित किया। अपने प्रस्तावों में लॉर्ड मैकाले की योजना थी कि, "एक ऐसा वर्ग बनाया जाय, जो रंग तथा रक्त से तो भारतीय हो, परन्तु प्रवृति, विचार, नैतिकता तथा बुद्धि से अंग्रेज़ हो।' मैकाले के विचार 7 मार्च, 1835 ई. को एक प्रस्ताव द्वारा अनुमोदि कर दिए गए, जिससे यह निश्चित हुआ कि, उच्च स्तरीय प्रशासन की भाषा अंग्रेज़ी होगी। 1835 ई. में ही लॉर्ड विलियम बैंटिक ने कलकत्ता में ‘कलकत्ता मेडिकल कॉलेज’ की नींव रखी। कम्पनी के राजस्व में वृद्धि वित्तीय सुधारों के अन्तर्गत विलियम बैंटिक ने सैनिकों को दी जाने वाली भत्ते की राशि को कम कर दिया। अब कलकत्ता के 400 मील की परिधि में नियुक्त होने पर भत्ता आधा कर दिया गया। बंगाल में भू-राजस्व को एकत्र करने के क्षेत्र में प्रभावकारी प्रयास किये गये। 'राबर्ट माटिन्स बर्ड' के निरीक्षण में 'पश्चिमोत्तर प्रांत' में (आधुनिक उत्तर प्रदेश) ऐसी भू-कर व्यवस्था की गई, जिससे अधिक कर एकत्र होने लगा। अफीम के व्यापार को नियमित करते हुए इसे केवल बम्बई बंदरगाह से निर्यात की सुविधा दी गई। इसका परिणाम यह हुआ कि ईस्ट इण्डिया कम्पनी को निर्यात कर का भी भाग मिलने लगा, जिससे उसके राजस्व में बड़ी ज़बर्दस्त वृद्धि हुई। न्याललय की भाषा लॉर्ड विलियम बैंटिक ने लॉर्ड कॉर्नवॉलिस द्वारा स्थापित प्रान्तीय, अपीलीय तथा सर्किट न्यायालयों को बन्द करवाकर, इसका कार्य मजिस्ट्रेट तथा कलेक्टरों में बांट दिया। न्यायलयों की भाषा फ़ारसी के स्थान पर विकल्प के रूप में स्थानीय भाषाओं के प्रयोग की अनुमति दी गई। ऊंचे स्तर के न्यायलयों में अंग्रेज़ी का प्रयोग होता था।.

नई!!: भारत के महाराज्यपाल और लॉर्ड विलियम बैन्टिक · और देखें »

लॉर्ड विलिंग्डन

लॉर्ड विलिंग्डन ब्रिटिश राज में १८ अप्रैल १९३१ से १८ अप्रैल १९३६ तक भारत के वाइसरॉय एवं गवर्नर-जनरल रहे थे। श्रेणी:भारत के गवर्नर जनरल.

नई!!: भारत के महाराज्यपाल और लॉर्ड विलिंग्डन · और देखें »

लॉर्ड वैलेस्ली

लॉर्ड वैलेस्ली फोर्ट विलियम प्रेसिडेंसी के गवर्नर जनरल रहे थे। श्रेणी:भारत के गवर्नर जनरल.

नई!!: भारत के महाराज्यपाल और लॉर्ड वैलेस्ली · और देखें »

लॉर्ड ऑकलैंड

लॉर्ड ऑकलैंड भारत के गवर्नर जनरल रहे थे। श्रेणी:भारत के गवर्नर जनरल.

नई!!: भारत के महाराज्यपाल और लॉर्ड ऑकलैंड · और देखें »

लॉर्ड इर्विन

लॉर्ड इर्विन (16 अप्रैल, 1881 - 23 दिसम्बर 1959) भारत में १९२६-१९३१ ई. तक गवर्नर जनरल तथा सम्राट् के प्रतिनिधि के रूप में वायसराय थे। भारत में बढ़ रही स्वराज्य तथा संवैधानिक सुधारों की माँग के संबंध में इनकी संस्तुति से १९२७ ई. में लार्ड साइमन की अध्यक्षता में ब्रिटिश सरकार ने साइमन कमीशन की नियुक्ति की, जिसमें सभी सदस्य अंग्रेज थे। फलस्वरूप सारे देश में कमीशन का बाहिष्कार हुआ, 'साइमन, वापस जाओ' के नारे लगाए गए, ओर काले झंडों के प्रदर्शन के साथ आंदोलन हुआ। सांडर्स के नेतृत्व में पुलिस की लाठियों की चोट से लाला लाजपतराय की मृत्यु हो गई। भगत सिंह के दल ने एक वर्ष के भीतर ही बदले के लिए सांडर्स की भी हत्या कर दी। प्रारंभ में भारत औपानिवेशिक स्वराज्य की ही माँग करता रहा, किंतु २६ जनवरी, १९२९ को अखिल भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के लाहौर अधिवेशन में जवाहरलाल नेहरू के नेतृत्व में 'पूर्ण स्वराज्य' की घोषणा की गई तथा शपथ ली गई कि प्रत्येक वर्ष २६ जनवरी गणतंत्र के रूप में मनाई जाएगी। साइमन कमीशन की रिपोर्ट के अनुसार १९३० ई. में लार्ड इरविन की संस्तुति से संवैधानिक सुधारों की समस्या के समाधान के लिए लंदन में एक गोलमेज सम्मेलन का आयोजन किया गया, जिसका गांधी जी ने विरोध किया। साथ ही गांधी जी ने सरकार पर दबाव डालने के लिए ६ अप्रैल, १९३० से नमक सत्याग्रह छेड़ दिया। सारे देश में नमक कानून तोड़ा गया। गांधी जी के साथ हजारों व्यक्ति गिरफ्तार हुए। सर तेजबहादुर सप्रु की मध्यस्थता से गांधी-इरविन-समझौता हुआ। यह समझौता भारतीय इतिहास का एक प्रमुख मोड़ है। इसमें २१ धाराएँ थीं जिनके अनुसार गोलमेज कानफ्ररेंस में भाग लेने के लिए गांधी जी तैयार हुए तथा यह तय हुआ कि कानून तोड़ने की कार्रवाई बंद होगी, ब्रिटिश सामानों का बहिष्कार बंद होगा, पुलिस के कारनामों की जाँच नहीं होगी, आंदोलन के समय बने अध्यादेश वापस होंगे, सभी राजनीतिक कैदी छोड़ दिए जाएँगे, जुर्माने वसूल नहीं होंगे, जब्त अचल संपत्ति वापस हो जाएगी, अन्यायपूर्ण वसूली की क्षतिपूर्ति होगी, असहयोग करनेवाले सरकारी कर्मचारियों के साथ उदारता बरती जाएगी, नमक कानून में ढील दी जाएगी, इत्यादि। इस समझौते के फलस्वरूप १९३१ ई. की द्वितीय गोलमेज सम्मेलन में गांधी जी ने मदनमोहन मालवीय एवं श्रीमती सरोजनी नायडू के साथ भाग लिया। यद्यपि लार्ड इरविन ने एक साम्राज्यवादी शासक के रूप में स्वदेशी आंदोलन का पूरा दमन किया, तथापि वैयक्तिक मनुष्य के रूप में वे उदार विचारों के थे। यही कारण है कि राष्ट्रवादी नेताओं को इन्होंने काफी महत्व प्रदान किया। इनके जीवित स्मारक के रूप में नई दिल्ली में विशाल 'इरविन अस्पताल' का निर्माण कराया गया। श्रेणी:भारत के गवर्नर जनरल.

नई!!: भारत के महाराज्यपाल और लॉर्ड इर्विन · और देखें »

लॉर्ड कर्जन

जॉर्ज नथानिएल कर्जन अथवा लॉर्ड कर्जन (George Nathaniel Curzon), ऑर्डर ऑफ़ गेटिस, ऑर्डर ऑफ द स्टार ऑफ इंडिया, ऑर्डर ऑफ़ इण्डियन एम्पायर, यूनाइटेड किंगडम के प्रिवी काउंसिल (11 जनवरी 1859 – 20 मार्च 1925), जिन्हें द लॉर्ड कर्जन ऑफ़ केड्लेस्टन 1898 से 1911 के मध्य और द अर्ल कर्जन ऑफ़ केड्लेस्टन 1911 से 1921 तक के नाम से भी जाना जाता है, ब्रिटेन कंजर्वेटिव पार्टी के पूर्व राजनीतिज्ञा थे जो भारत के वायसराय एवं विदेश सचिव बनाये गये थे। .

नई!!: भारत के महाराज्यपाल और लॉर्ड कर्जन · और देखें »

लॉर्ड कैनिंग

लॉर्ड कैनिंग भारत के गवर्नर जनरल रहे थे। श्रेणी:भारत के गवर्नर जनरल.

नई!!: भारत के महाराज्यपाल और लॉर्ड कैनिंग · और देखें »

लॉर्ड कॉर्नवालिस

लॉर्ड कॉर्नवालिस फोर्ट विलियम प्रेसिडेंसी के गवर्नर जनरल रहे थे। वह बंगाल का गवर्नर जनरल था। इन्होंने 1793 ईस्वी में बंगाल में स्थायी बन्दोबस्त के रूप में एक नई राजस्व पद्धति की शुरूआत की। इसके समय में जिले के सभी अधिकार कलेक्टर को दिया गया और इसे ही भारतीय सिविल सेवा का जनक माना जाता है। इसने कंपनी के कर्मचारियों के व्यक्तिगत व्यापार पर प्रतिबन्ध लगा दिया। .

नई!!: भारत के महाराज्यपाल और लॉर्ड कॉर्नवालिस · और देखें »

शिमला

शिमला, हिमाचल प्रदेश की राजधानी है। 1864 में, शिमला को भारत में ब्रिटिश राज की ग्रीष्मकालीन राजधानी घोषित किया गया था। एक लोकप्रिय पर्यटन स्थल, शिमला को अक्सर पहाड़ों की रानी के रूप में जाना जाता है। .

नई!!: भारत के महाराज्यपाल और शिमला · और देखें »

सिंधिया

सिंधिया भारत में एक शाही मराठा वंश है। इस वंश मे ग्वालियर राज्य के १८वीं और १९वीं शताब्दी में शासक शामिल है। .

नई!!: भारत के महाराज्यपाल और सिंधिया · और देखें »

हैनरी हार्डिंग

हैनरी हार्डिंग भारत के गवर्नर जनरल रहे थे। श्रेणी:भारत के गवर्नर जनरल.

नई!!: भारत के महाराज्यपाल और हैनरी हार्डिंग · और देखें »

जम्मू और कश्मीर

जम्मू और कश्मीर भारत के सबसे उत्तर में स्थित राज्य है। पाकिस्तान इसके उत्तरी इलाके ("पाक अधिकृत कश्मीर") या तथाकथित "आज़ाद कश्मीर" के हिस्सों पर क़ाबिज़ है, जबकि चीन ने अक्साई चिन पर कब्ज़ा किया हुआ है। भारत इन कब्ज़ों को अवैध मानता है जबकि पाकिस्तान भारतीय जम्मू और कश्मीर को एक विवादित क्षेत्र मानता है। राज्य की आधिकारिक भाषा उर्दू है। जम्मू नगर जम्मू प्रांत का सबसे बड़ा नगर तथा जम्मू-कश्मीर राज्य की जाड़े की राजधानी है। वहीं कश्मीर में स्थित श्रीनगर गर्मी के मौसम में राज्य की राजधानी रहती है। जम्मू और कश्मीर में जम्मू (पूंछ सहित), कश्मीर, लद्दाख, बल्तिस्तान एवं गिलगित के क्षेत्र सम्मिलित हैं। इस राज्य का पाकिस्तान अधिकृत भाग को लेकर क्षेत्रफल 2,22,236 वर्ग कि॰मी॰ एवं उसे 1,38,124 वर्ग कि॰मी॰ है। यहाँ के निवासियों अधिकांश मुसलमान हैं, किंतु उनकी रहन-सहन, रीति-रिवाज एवं संस्कृति पर हिंदू धर्म की पर्याप्त छाप है। कश्मीर के सीमांत क्षेत्र पाकिस्तान, अफगानिस्तान, सिंक्यांग तथा तिब्बत से मिले हुए हैं। कश्मीर भारत का महत्वपूर्ण राज्य है। .

नई!!: भारत के महाराज्यपाल और जम्मू और कश्मीर · और देखें »

जेम्स ब्रूस

जेम्स ब्रूस भारत के गवर्नर जनरल रहे थे। श्रेणी:भारत के गवर्नर जनरल श्रेणी:प्रशासक.

नई!!: भारत के महाराज्यपाल और जेम्स ब्रूस · और देखें »

जॉन लॉरेंस

जॉन लॉरेंस भारत के गवर्नर जनरल रहे थे। श्रेणी:भारत के गवर्नर जनरल.

नई!!: भारत के महाराज्यपाल और जॉन लॉरेंस · और देखें »

जॉन शोर

जॉन शोर फोर्ट विलियम प्रेसिडेंसी के गवर्नर जनरल रहे थे। श्रेणी:भारत के गवर्नर जनरल.

नई!!: भारत के महाराज्यपाल और जॉन शोर · और देखें »

जॉन स्ट्रैचे

जॉन स्ट्रैचे भारत के गवर्नर जनरल रहे थे। श्रेणी:भारत के गवर्नर जनरल.

नई!!: भारत के महाराज्यपाल और जॉन स्ट्रैचे · और देखें »

जॉर्ज हिलेरियो बार्लो

जॉर्ज हिलेरियो बार्लो फोर्ट विलियम प्रेसिडेंसी के गवर्नर जनरल रहे थे। श्रेणी:भारत के गवर्नर जनरल.

नई!!: भारत के महाराज्यपाल और जॉर्ज हिलेरियो बार्लो · और देखें »

वारेन हेस्टिंग्स

वारेन हेस्टिंग्स (6 दिसंबर 1732 – 22 अगस्त 1818), एक अंग्रेज़ राजनीतिज्ञ था, जो  फोर्ट विलियम प्रेसीडेंसी (बंगाल) का प्रथम गवर्नर तथा बंगाल की सुप्रीम काउंसिल का अध्यक्ष था और इस तरह 1773 से 1785 तक वह भारत का प्रथम वास्तविक (डी-फैक्टो) गवर्नर जनरल रहा। 1787 में भ्रष्टाचार के मामले में उस पर महाभियोग चलाया गया लेकिन एक लंबे परीक्षण के बाद उसे 1795 में अंततः बरी कर दिया गया। 1814 में उसे प्रिवी काउंसिलर बनाया गया। .

नई!!: भारत के महाराज्यपाल और वारेन हेस्टिंग्स · और देखें »

वाइसरॉय

वाइसरॉय एक शाही अधिकारी होता है, जो एक देश या प्रांत पर शासन करता है। यह शासन किसी मुख्य शासक के नाम पर होता है। यह शब्द बना है: वाइस अंग्रेज़ी से, अर्थात - उप, + फ्रेंछ शब्द रॉय, अर्थात राजा। वाइस का अर्थ लैटिन में " के नाम पर" भी होता है। तो पूर्ण अर्थ हुआ " राजा के नाम पर"। इनकी पत्नी को वाइसराइन कहा जाता था। .

नई!!: भारत के महाराज्यपाल और वाइसरॉय · और देखें »

विलियम डैनिसन

विलियम डैनिसन भारत के गवर्नर जनरल रहे थे। श्रेणी:भारत के गवर्नर जनरल.

नई!!: भारत के महाराज्यपाल और विलियम डैनिसन · और देखें »

विलियम बटर्वर्थ बेले

विलियम बटर्वर्थ बेले फोर्ट विलियम प्रेसिडेंसी के गवर्नर जनरल रहे थे। श्रेणी:भारत के गवर्नर जनरल.

नई!!: भारत के महाराज्यपाल और विलियम बटर्वर्थ बेले · और देखें »

विलियम विबरफोर्स बर्ड

विलियम विबरफोर्स बर्ड भारत के गवर्नर जनरल रहे थे। श्रेणी:भारत के गवर्नर जनरल.

नई!!: भारत के महाराज्यपाल और विलियम विबरफोर्स बर्ड · और देखें »

विक्टर ब्रूस

विक्टर ब्रूस भारत के गवर्नर जनरल रहे थे। श्रेणी:भारत के गवर्नर जनरल.

नई!!: भारत के महाराज्यपाल और विक्टर ब्रूस · और देखें »

विक्टर होप

विक्टर होप भारत के गवर्नर जनरल रहे थे। श्रेणी:भारत के गवर्नर जनरल.

नई!!: भारत के महाराज्यपाल और विक्टर होप · और देखें »

ग्वालियर

ग्वालियर भारत के मध्य प्रदेश प्रान्त का एक प्रमुख शहर है। भौगोलिक दृष्टि से ग्वालियर म.प्र.

नई!!: भारत के महाराज्यपाल और ग्वालियर · और देखें »

ऑर्डर ऑफ द स्टार ऑफ इंडिया

collar of a Knight Grand Commander of the Order of the Star of India. Maharaja Jagatjit Singh of Kapurthala, an Knight Grand Commander of this order. The flag of the Viceroy of India displayed the Star of the Order beneath the Imperial Crown of India. सर्वोन्नत ऑर्डर ऑफ स्टार ऑफ इंडिया एक बहादुरी के लिये दिया जाता हुआ सम्मान होता था। इसकी स्थापना महारानी विक्टोरिया द्वारा १८६१ में की गयी थी। इस सम्मान की तीन श्रेणियां थीं.

नई!!: भारत के महाराज्यपाल और ऑर्डर ऑफ द स्टार ऑफ इंडिया · और देखें »

इस्कंदर मिर्ज़ा

सैयद इस्कंदर अली मिर्ज़ा, (१३ नवंबर १८९९-१३ नवंबर १९६९) पाकिस्तान के पहले राष्ट्रपति(१९५६-१९५८ तक) और अंतिम गवर्नर-जनरल थे। उनका गवर्नर-जनरल का कार्यकाल १९५५ से १९५६ तक था। वे मीर ज़फ़र के प्रपौत्र थे। वे पाकिस्तानी सेना में मेजर-जनरल के पद तक पहुंचे थे। पाकिस्तान की आज़ादी के बाद, वे पाकिस्तान के पहले रक्षा सचिव नियुक्त किये गए थे, जोकि एक अत्यंत महह्वपूर्ण औदा था। उनके कार्यकाल में उन्होंने बलोचिस्तान की समस्या और प्रथम भारत-पाकिस्तान युद्ध की सरपरस्ती की थी। साथ ही पूर्वी पाकिस्तान में बंगाली भाषा आंदोलन से आई समस्या की भी उन्होंने निगरानी की थी। पाकिस्तान में एक इकाई व्यवस्था लागु करने में उनका महत्वपूर्ण स्थान था, और उसके लागु होने के बाद, उन्हें तत्कालीन प्रधानमंत्री ख़्वाजा नज़ीमुद्दीन द्वारा पूर्वी पाकिस्तान का राज्यपाल भी नियुक्त किया गया था। १९५५ में वे मालिक ग़ुलाम मुहम्मद के उत्तराधिकारी के रूप में पाकिस्तान के अगले गवर्नर-जनरल नियुक्त हुए। १९५६ के संविधान के परवर्तन के बाद, उन्हें पाकिस्तान का पहला राष्ट्रपति नियुक्त किया गया। उनका राष्ट्रपतित्व अत्यंत राजनैतिक अस्थिरता का पात्र रहा, और दो वर्षों के कल में ही चार प्रधानमंत्रीयों को बदला गया। अंत्यतः उन्होंने पाकिस्तान में सैन्य शासन लागु कर दिया। इसी के साथ मिर्ज़ा ने पाकिस्तान की राजनीति में सैन्य दखलंदाज़ी का प्रारंभ किया, जब उन्होंने अपने सेना प्रमुख अयूब खान को मुख्य सैन्य शासन प्रशासक नियुक्त किया। इस सैन्य शासन के दौरान, पाकिस्तानी सेना और व्यवस्थापिका के बीच बढ़ते मुठभेड़ के कारण बिगड़े हालातों के बाद, सैन्य शासन लागु होने के 20 दिनों के बाद ही अयूब खान ने राष्ट्रपतित्व से हटा दिया और देश से निष्काषित कर दिया। देश-निष्कासन के बाद वे लंदन चले गए, जहाँ उनकी मृत्यु १९६९ को हुई। मृत्यु के बाद, उनके शव को पाकिस्तान लाने से इनकार कर दिया गया, और अन्यतः उन्हें तेहरान में दफ़नाया गया। .

नई!!: भारत के महाराज्यपाल और इस्कंदर मिर्ज़ा · और देखें »

कोलकाता

बंगाल की खाड़ी के शीर्ष तट से १८० किलोमीटर दूर हुगली नदी के बायें किनारे पर स्थित कोलकाता (बंगाली: কলকাতা, पूर्व नाम: कलकत्ता) पश्चिम बंगाल की राजधानी है। यह भारत का दूसरा सबसे बड़ा महानगर तथा पाँचवा सबसे बड़ा बन्दरगाह है। यहाँ की जनसंख्या २ करोड २९ लाख है। इस शहर का इतिहास अत्यंत प्राचीन है। इसके आधुनिक स्वरूप का विकास अंग्रेजो एवं फ्रांस के उपनिवेशवाद के इतिहास से जुड़ा है। आज का कोलकाता आधुनिक भारत के इतिहास की कई गाथाएँ अपने आप में समेटे हुए है। शहर को जहाँ भारत के शैक्षिक एवं सांस्कृतिक परिवर्तनों के प्रारम्भिक केन्द्र बिन्दु के रूप में पहचान मिली है वहीं दूसरी ओर इसे भारत में साम्यवाद आंदोलन के गढ़ के रूप में भी मान्यता प्राप्त है। महलों के इस शहर को 'सिटी ऑफ़ जॉय' के नाम से भी जाना जाता है। अपनी उत्तम अवस्थिति के कारण कोलकाता को 'पूर्वी भारत का प्रवेश द्वार' भी कहा जाता है। यह रेलमार्गों, वायुमार्गों तथा सड़क मार्गों द्वारा देश के विभिन्न भागों से जुड़ा हुआ है। यह प्रमुख यातायात का केन्द्र, विस्तृत बाजार वितरण केन्द्र, शिक्षा केन्द्र, औद्योगिक केन्द्र तथा व्यापार का केन्द्र है। अजायबघर, चिड़ियाखाना, बिरला तारमंडल, हावड़ा पुल, कालीघाट, फोर्ट विलियम, विक्टोरिया मेमोरियल, विज्ञान नगरी आदि मुख्य दर्शनीय स्थान हैं। कोलकाता के निकट हुगली नदी के दोनों किनारों पर भारतवर्ष के प्रायः अधिकांश जूट के कारखाने अवस्थित हैं। इसके अलावा मोटरगाड़ी तैयार करने का कारखाना, सूती-वस्त्र उद्योग, कागज-उद्योग, विभिन्न प्रकार के इंजीनियरिंग उद्योग, जूता तैयार करने का कारखाना, होजरी उद्योग एवं चाय विक्रय केन्द्र आदि अवस्थित हैं। पूर्वांचल एवं सम्पूर्ण भारतवर्ष का प्रमुख वाणिज्यिक केन्द्र के रूप में कोलकाता का महत्त्व अधिक है। .

नई!!: भारत के महाराज्यपाल और कोलकाता · और देखें »

१ नवंबर

१ नवंबर ग्रेगोरी कैलंडर के अनुसार वर्ष का ३०५वॉ (लीप वर्ष मे ३०६ वॉ) दिन है। साल मे अभी और ६० दिन बाकी है। .

नई!!: भारत के महाराज्यपाल और १ नवंबर · और देखें »

१ फ़रवरी

1 फरवरी ग्रेगोरी कैलंडर के अनुसार वर्ष का 32वां दिन है। साल मे अभी और 333 दिन बाकी है (लीप वर्ष मे 334)। .

नई!!: भारत के महाराज्यपाल और १ फ़रवरी · और देखें »

१ अगस्त

1 अगस्त ग्रेगोरी कैलंडर के अनुसार वर्ष का 213वॉ (लीप वर्ष मे 214 वॉ) दिन है। साल मे अभी और 152 दिन बाकी है। .

नई!!: भारत के महाराज्यपाल और १ अगस्त · और देखें »

१ अक्टूबर

१ अक्टूबर ग्रेगोरी कैलंडर के अनुसार वर्ष का २७४वाँ (लीप वर्ष मे २७५वाँ) दिन है। वर्ष मे अभी और ९१ दिन बाकी है।.

नई!!: भारत के महाराज्यपाल और १ अक्टूबर · और देखें »

१० दिसम्बर

10 दिसंबर ग्रेगोरी कैलंडर के अनुसार वर्ष का 344वाँ (लीप वर्ष में 345वाँ) दिन है। साल में अभी और 21 दिन बाकी हैं। .

नई!!: भारत के महाराज्यपाल और १० दिसम्बर · और देखें »

१० अक्टूबर

10 अक्टूबर ग्रेगोरी कैलंडर के अनुसार वर्ष का 283वॉ (लीप वर्ष मे 284 वॉ) दिन है। साल मे अभी और 82 दिन बाकी है। .

नई!!: भारत के महाराज्यपाल और १० अक्टूबर · और देखें »

११ सितंबर

11 सितंबर ग्रेगोरी कैलंडर के अनुसार वर्ष का 254वॉ (लीप वर्ष में 255 वॉ) दिन है। साल में अभी और 111 दिन बाकी है। .

नई!!: भारत के महाराज्यपाल और ११ सितंबर · और देखें »

११ अक्टूबर

11 अक्टूबर ग्रेगोरी कैलंडर के अनुसार वर्ष का 284वॉ (लीप वर्ष मे 285 वॉ) दिन है। साल मे अभी और 81 दिन बाकी है। .

नई!!: भारत के महाराज्यपाल और ११ अक्टूबर · और देखें »

१२ सितंबर

12 सितंबर ग्रेगोरी कैलंडर के अनुसार वर्ष का 255वॉ (लीप वर्ष मे 256 वॉ) दिन है। साल मे अभी और 110 दिन बाकी है। .

नई!!: भारत के महाराज्यपाल और १२ सितंबर · और देखें »

१२ जनवरी

12 जनवरी ग्रेगोरी कैलंडर के अनुसार वर्ष का 12वाँ दिन है। साल में अभी और 353 दिन बाकी है (लीप वर्ष में 354)। .

नई!!: भारत के महाराज्यपाल और १२ जनवरी · और देखें »

१२ अप्रैल

12 अप्रैल ग्रेगोरी कैलंडर के अनुसार वर्ष का 102वाँ (लीप वर्ष मे 103वाँ) दिन है। साल मे अभी और 263 दिन बाकी है। .

नई!!: भारत के महाराज्यपाल और १२ अप्रैल · और देखें »

१३ मार्च

13 मार्च ग्रेगोरी कैलंडर के अनुसार वर्ष का 72वॉ (लीप वर्ष मे 73 वॉ) दिन है। साल मे अभी और 293 दिन बाकी है। .

नई!!: भारत के महाराज्यपाल और १३ मार्च · और देखें »

१४ सितम्बर

14 सितंबर ग्रेगोरी कैलंडर के अनुसार वर्ष का 257वॉ (लीप वर्ष मे 258 वॉ) दिन है। साल मे अभी और 108 दिन बाकी है। भारत में राजभाषा हिंदी दिवस .

नई!!: भारत के महाराज्यपाल और १४ सितम्बर · और देखें »

१५ अगस्त

15 अगस्त ग्रेगोरी कैलंडर के अनुसार वर्ष का 227वॉ (लीप वर्ष मे 228 वॉ) दिन है। साल मे अभी और 138 दिन बाकी है। .

नई!!: भारत के महाराज्यपाल और १५ अगस्त · और देखें »

१७ अक्टूबर

17 अक्टूबर ग्रेगोरी कैलंडर के अनुसार वर्ष का 290वॉ (लीप वर्ष मे 291 वॉ) दिन है। साल मे अभी और 75 दिन बाकी है। .

नई!!: भारत के महाराज्यपाल और १७ अक्टूबर · और देखें »

१७७३

1773 ग्रेगोरी कैलंडर का एक साधारण वर्ष है। .

नई!!: भारत के महाराज्यपाल और १७७३ · और देखें »

१७७४

1774 ग्रेगोरी कैलंडर का एक साधारण वर्ष है। .

नई!!: भारत के महाराज्यपाल और १७७४ · और देखें »

१७८५

1785 ग्रेगोरी कैलंडर का एक साधारण वर्ष है। .

नई!!: भारत के महाराज्यपाल और १७८५ · और देखें »

१७८६

1786 ग्रेगोरी कैलंडर का एक साधारण वर्ष है। .

नई!!: भारत के महाराज्यपाल और १७८६ · और देखें »

१७९३

1793 ग्रेगोरी कैलंडर का एक साधारण वर्ष है। .

नई!!: भारत के महाराज्यपाल और १७९३ · और देखें »

१७९८

1798 ग्रेगोरी कैलंडर का एक साधारण वर्ष है। .

नई!!: भारत के महाराज्यपाल और १७९८ · और देखें »

१८ नवम्बर

१८ नवंबर ग्रेगोरी कैलंडर के अनुसार वर्ष का ३२२वॉ (लीप वर्ष मे ३२३ वॉ) दिन है। साल मे अभी और ४३ दिन बाकी है। .

नई!!: भारत के महाराज्यपाल और १८ नवम्बर · और देखें »

१८ मई

१८ मई ग्रेगोरी कैलंडर के अनुसार वर्ष का १३८वॉ (लीप वर्ष मे १३९वॉ) दिन है। साल मे अभी और २२७ दिन बाकी है। .

नई!!: भारत के महाराज्यपाल और १८ मई · और देखें »

१८ अप्रैल

18 अप्रैल ग्रेगोरी कैलंडर के अनुसार वर्ष का 108वॉ (लीप वर्ष मे 109 वॉ) दिन है। साल मे अभी और 257 दिन बाकी है। .

नई!!: भारत के महाराज्यपाल और १८ अप्रैल · और देखें »

१८०५

1805 ग्रेगोरी कैलंडर का एक साधारण वर्ष है। .

नई!!: भारत के महाराज्यपाल और १८०५ · और देखें »

१८०७

1807 ग्रेगोरी कैलंडर का एक साधारण वर्ष है। .

नई!!: भारत के महाराज्यपाल और १८०७ · और देखें »

१८१३

1813 ग्रेगोरी कैलंडर का एक साधारण वर्ष है। .

नई!!: भारत के महाराज्यपाल और १८१३ · और देखें »

१८२३

१८२३ ग्रेगोरी कैलंडर का एक साधारण वर्ष है। १८२३ १८२३.

नई!!: भारत के महाराज्यपाल और १८२३ · और देखें »

१८२८

1828 ग्रेगोरी कैलंडर का एक अधिवर्ष है। .

नई!!: भारत के महाराज्यपाल और १८२८ · और देखें »

१८३३

1833 ग्रेगोरी कैलंडर का एक साधारण वर्ष है। .

नई!!: भारत के महाराज्यपाल और १८३३ · और देखें »

१८३५

1835 ग्रेगोरी कैलंडर का एक साधारण वर्ष है। .

नई!!: भारत के महाराज्यपाल और १८३५ · और देखें »

१८३६

1836 ग्रेगोरी कैलंडर का एक अधिवर्ष है। .

नई!!: भारत के महाराज्यपाल और १८३६ · और देखें »

१८४२

प 1842 ग्रेगोरी कैलंडर का एक साधारण वर्ष है। .

नई!!: भारत के महाराज्यपाल और १८४२ · और देखें »

१८४४

1844 ग्रेगोरी कैलंडर का एक अधिवर्ष है। .

नई!!: भारत के महाराज्यपाल और १८४४ · और देखें »

१८४८

१८४८ ग्रेगोरी कैलंडर का एक अधिवर्ष है। .

नई!!: भारत के महाराज्यपाल और १८४८ · और देखें »

१८५६

1856 ग्रेगोरी कैलंडर का एक अधिवर्ष है। .

नई!!: भारत के महाराज्यपाल और १८५६ · और देखें »

१८५७ का प्रथम भारतीय स्वतंत्रता संग्राम

१८५७ के भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के शहीदों को समर्पित भारत का डाकटिकट। १८५७ का भारतीय विद्रोह, जिसे प्रथम भारतीय स्वतंत्रता संग्राम, सिपाही विद्रोह और भारतीय विद्रोह के नाम से भी जाना जाता है इतिहास की पुस्तकें कहती हैं कि 1857 की क्रान्ति की शुरूआत '10 मई 1857' की संध्या को मेरठ मे हुई थी और इसको समस्त भारतवासी 10 मई को प्रत्येक वर्ष ”क्रान्ति दिवस“ के रूप में मनाते हैं, क्रान्ति की शुरूआत करने का श्रेय अमर शहीद कोतवाल धनसिंह गुर्जर को जाता है 10 मई 1857 को मेरठ में विद्रोही सैनिकों और पुलिस फोर्स ने अंग्रेजों के विरूद्ध साझा मोर्चा गठित कर क्रान्तिकारी घटनाओं को अंजाम दिया।1 सैनिकों के विद्रोह की खबर फैलते ही मेरठ की शहरी जनता और आस-पास के गांव विशेषकर पांचली, घाट, नंगला, गगोल इत्यादि के हजारों ग्रामीण मेरठ की सदर कोतवाली क्षेत्र में जमा हो गए। इसी कोतवाली में धन सिंह कोतवाल (प्रभारी) के पद पर कार्यरत थे।2 मेरठ की पुलिस बागी हो चुकी थी। धन सिंह कोतवाल क्रान्तिकारी भीड़ (सैनिक, मेरठ के शहरी, पुलिस और किसान) में एक प्राकृतिक नेता के रूप में उभरे। उनका आकर्षक व्यक्तित्व, उनका स्थानीय होना, (वह मेरठ के निकट स्थित गांव पांचली के रहने वाले थे), पुलिस में उच्च पद पर होना और स्थानीय क्रान्तिकारियों का उनको विश्वास प्राप्त होना कुछ ऐसे कारक थे जिन्होंने धन सिंह को 10 मई 1857 के दिन मेरठ की क्रान्तिकारी जनता के नेता के रूप में उभरने में मदद की। उन्होंने क्रान्तिकारी भीड़ का नेतृत्व किया और रात दो बजे मेरठ जेल पर हमला कर दिया। जेल तोड़कर 836 कैदियों को छुड़ा लिया और जेल में आग लगा दी।3 जेल से छुड़ाए कैदी भी क्रान्ति में शामिल हो गए। उससे पहले पुलिस फोर्स के नेतृत्व में क्रान्तिकारी भीड़ ने पूरे सदर बाजार और कैंट क्षेत्र में क्रान्तिकारी घटनाओं को अंजाम दिया। रात में ही विद्रोही सैनिक दिल्ली कूच कर गए और विद्रोह मेरठ के देहात में फैल गया। मंगल पाण्डे 8 अप्रैल, 1857 को बैरकपुर, बंगाल में शहीद हो गए थे। मंगल पाण्डे ने चर्बी वाले कारतूसों के विरोध में अपने एक अफसर को 29 मार्च, 1857 को बैरकपुर छावनी, बंगाल में गोली से उड़ा दिया था। जिसके पश्चात उन्हें गिरफ्तार कर बैरकपुर (बंगाल) में 8 अप्रैल को फासी दे दी गई थी। 10 मई, 1857 को मेरठ में हुए जनक्रान्ति के विस्फोट से उनका कोई सम्बन्ध नहीं है। क्रान्ति के दमन के पश्चात् ब्रिटिश सरकार ने 10 मई, 1857 को मेरठ मे हुई क्रान्तिकारी घटनाओं में पुलिस की भूमिका की जांच के लिए मेजर विलियम्स की अध्यक्षता में एक कमेटी गठित की गई।4 मेजर विलियम्स ने उस दिन की घटनाओं का भिन्न-भिन्न गवाहियों के आधार पर गहन विवेचन किया तथा इस सम्बन्ध में एक स्मरण-पत्र तैयार किया, जिसके अनुसार उन्होंने मेरठ में जनता की क्रान्तिकारी गतिविधियों के विस्फोट के लिए धन सिंह कोतवाल को मुख्य रूप से दोषी ठहराया, उसका मानना था कि यदि धन सिंह कोतवाल ने अपने कर्तव्य का निर्वाह ठीक प्रकार से किया होता तो संभवतः मेरठ में जनता को भड़कने से रोका जा सकता था।5 धन सिंह कोतवाल को पुलिस नियंत्रण के छिन्न-भिन्न हो जाने के लिए दोषी पाया गया। क्रान्तिकारी घटनाओं से दमित लोगों ने अपनी गवाहियों में सीधे आरोप लगाते हुए कहा कि धन सिंह कोतवाल क्योंकि स्वयं गूजर है इसलिए उसने क्रान्तिकारियों, जिनमें गूजर बहुसंख्या में थे, को नहीं रोका। उन्होंने धन सिंह पर क्रान्तिकारियों को खुला संरक्षण देने का आरोप भी लगाया।6 एक गवाही के अनुसार क्रान्तिकरियों ने कहा कि धन सिंह कोतवाल ने उन्हें स्वयं आस-पास के गांव से बुलाया है 7 यदि मेजर विलियम्स द्वारा ली गई गवाहियों का स्वयं विवेचन किया जाये तो पता चलता है कि 10 मई, 1857 को मेरठ में क्रांति का विस्फोट काई स्वतः विस्फोट नहीं वरन् एक पूर्व योजना के तहत एक निश्चित कार्यवाही थी, जो परिस्थितिवश समय पूर्व ही घटित हो गई। नवम्बर 1858 में मेरठ के कमिश्नर एफ0 विलियम द्वारा इसी सिलसिले से एक रिपोर्ट नोर्थ - वैस्टर्न प्रान्त (आधुनिक उत्तर प्रदेश) सरकार के सचिव को भेजी गई। रिपोर्ट के अनुसार मेरठ की सैनिक छावनी में ”चर्बी वाले कारतूस और हड्डियों के चूर्ण वाले आटे की बात“ बड़ी सावधानी पूर्वक फैलाई गई थी। रिपोर्ट में अयोध्या से आये एक साधु की संदिग्ध भूमिका की ओर भी इशारा किया गया था।8 विद्रोही सैनिक, मेरठ शहर की पुलिस, तथा जनता और आस-पास के गांव के ग्रामीण इस साधु के सम्पर्क में थे। मेरठ के आर्य समाजी, इतिहासज्ञ एवं स्वतन्त्रता सेनानी आचार्य दीपांकर के अनुसार यह साधु स्वयं दयानन्द जी थे और वही मेरठ में 10 मई, 1857 की घटनाओं के सूत्रधार थे। मेजर विलियम्स को दो गयी गवाही के अनुसार कोतवाल स्वयं इस साधु से उसके सूरजकुण्ड स्थित ठिकाने पर मिले थे।9 हो सकता है ऊपरी तौर पर यह कोतवाल की सरकारी भेंट हो, परन्तु दोनों के आपस में सम्पर्क होने की बात से इंकार नहीं किया जा सकता। वास्तव में कोतवाल सहित पूरी पुलिस फोर्स इस योजना में साधु (सम्भवतः स्वामी दयानन्द) के साथ देशव्यापी क्रान्तिकारी योजना में शामिल हो चुकी थी। 10 मई को जैसा कि इस रिपोर्ट में बताया गया कि सभी सैनिकों ने एक साथ मेरठ में सभी स्थानों पर विद्रोह कर दिया। ठीक उसी समय सदर बाजार की भीड़, जो पहले से ही हथियारों से लैस होकर इस घटना के लिए तैयार थी, ने भी अपनी क्रान्तिकारी गतिविधियां शुरू कर दीं। धन सिंह कोतवाल ने योजना के अनुसार बड़ी चतुराई से ब्रिटिश सरकार के प्रति वफादार पुलिस कर्मियों को कोतवाली के भीतर चले जाने और वहीं रहने का आदेश दिया।10 आदेश का पालन करते हुए अंग्रेजों के वफादार पिट्ठू पुलिसकर्मी क्रान्ति के दौरान कोतवाली में ही बैठे रहे। इस प्रकार अंग्रेजों के वफादारों की तरफ से क्रान्तिकारियों को रोकने का प्रयास नहीं हो सका, दूसरी तरफ उसने क्रान्तिकारी योजना से सहमत सिपाहियों को क्रान्ति में अग्रणी भूमिका निभाने का गुप्त आदेश दिया, फलस्वरूप उस दिन कई जगह पुलिस वालों को क्रान्तिकारियों की भीड़ का नेतृत्व करते देखा गया।11 धन सिंह कोतवाल अपने गांव पांचली और आस-पास के क्रान्तिकारी गूजर बाहुल्य गांव घाट, नंगला, गगोल आदि की जनता के सम्पर्क में थे, धन सिंह कोतवाल का संदेश मिलते ही हजारों की संख्या में गूजर क्रान्तिकारी रात में मेरठ पहुंच गये। मेरठ के आस-पास के गांवों में प्रचलित किवंदन्ती के अनुसार इस क्रान्तिकारी भीड़ ने धन सिंह कोतवाल के नेतृत्व में देर रात दो बजे जेल तोड़कर 836 कैदियों को छुड़ा लिया12 और जेल को आग लगा दी। मेरठ शहर और कैंट में जो कुछ भी अंग्रेजों से सम्बन्धित था उसे यह क्रान्तिकारियों की भीड़ पहले ही नष्ट कर चुकी थी। उपरोक्त वर्णन और विवेचना के आधार पर हम निःसन्देह कह सकते हैं कि धन सिंह कोतवाल ने 10 मई, 1857 के दिन मेरठ में मुख्य भूमिका का निर्वाह करते हुए क्रान्तिकारियों को नेतृत्व प्रदान किया था।1857 की क्रान्ति की औपनिवेशिक व्याख्या, (ब्रिटिश साम्राज्यवादी इतिहासकारों की व्याख्या), के अनुसार 1857 का गदर मात्र एक सैनिक विद्रोह था जिसका कारण मात्र सैनिक असंतोष था। इन इतिहासकारों का मानना है कि सैनिक विद्रोहियों को कहीं भी जनप्रिय समर्थन प्राप्त नहीं था। ऐसा कहकर वह यह जताना चाहते हैं कि ब्रिटिश शासन निर्दोष था और आम जनता उससे सन्तुष्ट थी। अंग्रेज इतिहासकारों, जिनमें जौन लोरेंस और सीले प्रमुख हैं ने भी 1857 के गदर को मात्र एक सैनिक विद्रोह माना है, इनका निष्कर्ष है कि 1857 के विद्रोह को कही भी जनप्रिय समर्थन प्राप्त नहीं था, इसलिए इसे स्वतन्त्रता संग्राम नहीं कहा जा सकता। राष्ट्रवादी इतिहासकार वी0 डी0 सावरकर और सब-आल्टरन इतिहासकार रंजीत गुहा ने 1857 की क्रान्ति की साम्राज्यवादी व्याख्या का खंडन करते हुए उन क्रान्तिकारी घटनाओं का वर्णन किया है, जिनमें कि जनता ने क्रान्ति में व्यापक स्तर पर भाग लिया था, इन घटनाओं का वर्णन मेरठ में जनता की सहभागिता से ही शुरू हो जाता है। समस्त पश्चिम उत्तर प्रदेश के बन्जारो, रांघड़ों और गूजर किसानों ने 1857 की क्रान्ति में व्यापक स्तर पर भाग लिया। पूर्वी उत्तर प्रदेश में ताल्लुकदारों ने अग्रणी भूमिका निभाई। बुनकरों और कारीगरों ने अनेक स्थानों पर क्रान्ति में भाग लिया। 1857 की क्रान्ति के व्यापक आर्थिक, सामाजिक, धार्मिक और राजनीतिक कारण थे और विद्रोही जनता के हर वर्ग से आये थे, ऐसा अब आधुनिक इतिहासकार सिद्ध कर चुके हैं। अतः 1857 का गदर मात्र एक सैनिक विद्रोह नहीं वरन् जनसहभागिता से पूर्ण एक राष्ट्रीय स्वतन्त्रता संग्राम था। परन्तु 1857 में जनसहभागिता की शुरूआत कहाँ और किसके नेतृत्व में हुई ? इस जनसहभागिता की शुरूआत के स्थान और इसमें सहभागिता प्रदर्शित वाले लोगों को ही 1857 की क्रान्ति का जनक कहा जा सकता है। क्योंकि 1857 की क्रान्ति में जनता की सहभागिता की शुरूआत धन सिंह कोतवाल के नेतृत्व में मेरठ की जनता ने की थी। अतः ये ही 1857 की क्रान्ति के जनक कहे जाते हैं। 10, मई 1857 को मेरठ में जो महत्वपूर्ण भूमिका धन सिंह और उनके अपने ग्राम पांचली के भाई बन्धुओं ने निभाई उसकी पृष्ठभूमि में अंग्रेजों के जुल्म की दास्तान छुपी हुई है। ब्रिटिश साम्राज्य की औपनिवेशिक अर्थव्यवस्था की कृषि नीति का मुख्य उद्देश्य सिर्फ अधिक से अधिक लगान वसूलना था। पश्चिमी उत्तर प्रदेश में अंग्रेजों ने महलवाड़ी व्यवस्था लागू की थी, जिसके तहत समस्त ग्राम से इकट्ठा लगान तय किया जाता था और मुखिया अथवा लम्बरदार लगान वसूलकर सरकार को देता था। लगान की दरें बहुत ऊंची थी, और उसे बड़ी कठोरता से वसूला जाता था। कर न दे पाने पर किसानों को तरह-तरह से बेइज्जत करना, कोड़े मारना और उन्हें जमीनों से बेदखल करना एक आम बात थी, किसानों की हालत बद से बदतर हो गई थी। धन सिंह कोतवाल भी एक किसान परिवार से सम्बन्धित थे। किसानों के इन हालातों से वे बहुत दुखी थे। धन सिंह के पिता पांचली ग्राम के मुखिया थे, अतः अंग्रेज पांचली के उन ग्रामीणों को जो किसी कारणवश लगान नहीं दे पाते थे, उन्हें धन सिंह के अहाते में कठोर सजा दिया करते थे, बचपन से ही इन घटनाओं को देखकर धन सिंह के मन में आक्रोष जन्म लेने लगा।13 ग्रामीणों के दिलो दिमाग में ब्रिटिष विरोध लावे की तरह धधक रहा था। 1857 की क्रान्ति में धन सिंह और उनके ग्राम पांचली की भूमिका का विवेचन करते हुए हम यह नहीं भूल सकते कि धन सिंह गूजर जाति में जन्में थे, उनका गांव गूजर बहुल था। 1707 ई0 में औरंगजेब की मृत्यु के पश्चात गूजरों ने पश्चिम उत्तर प्रदेश में अपनी राजनैतिक ताकत काफी बढ़ा ली थी।14 लढ़ौरा, मुण्डलाना, टिमली, परीक्षितगढ़, दादरी, समथर-लौहा गढ़, कुंजा बहादुरपुर इत्यादि रियासतें कायम कर वे पश्चिमी उत्तर प्रदेश में एक गूजर राज्य बनाने के सपने देखने लगे थे।15 1803 में अंग्रेजों द्वारा दोआबा पर अधिकार करने के वाद गूजरों की शक्ति क्षीण हो गई थी, गूजर मन ही मन अपनी राजनैतिक शक्ति को पुनः पाने के लिये आतुर थे, इस दषा में प्रयास करते हुए गूजरों ने सर्वप्रथम 1824 में कुंजा बहादुरपुर के ताल्लुकदार विजय सिंह और कल्याण सिंह उर्फ कलवा गूजर के नेतृत्व में सहारनपुर में जोरदार विद्रोह किये।16 पश्चिमी उत्तर प्रदेष के गूजरों ने इस विद्रोह में प्रत्यक्ष रूप से भाग लिया परन्तु यह प्रयास सफल नहीं हो सका। 1857 के सैनिक विद्रोह ने उन्हें एक और अवसर प्रदान कर दिया। समस्त पश्चिमी उत्तर प्रदेष में देहरादून से लेकिन दिल्ली तक, मुरादाबाद, बिजनौर, आगरा, झांसी तक। पंजाब, राजस्थान से लेकर महाराष्ट्र तक के गूजर इस स्वतन्त्रता संग्राम में कूद पड़े। हजारों की संख्या में गूजर शहीद हुए और लाखों गूजरों को ब्रिटेन के दूसरे उपनिवेषों में कृषि मजदूर के रूप में निर्वासित कर दिया। इस प्रकार धन सिंह और पांचली, घाट, नंगला और गगोल ग्रामों के गूजरों का संघर्ष गूजरों के देशव्यापी ब्रिटिष विरोध का हिस्सा था। यह तो बस एक शुरूआत थी। 1857 की क्रान्ति के कुछ समय पूर्व की एक घटना ने भी धन सिंह और ग्रामवासियों को अंग्रेजी शासन को उखाड़ फेंकने के लिए प्रेरित किया। पांचली और उसके निकट के ग्रामों में प्रचलित किंवदन्ती के अनुसार घटना इस प्रकार है, ”अप्रैल का महीना था। किसान अपनी फसलों को उठाने में लगे हुए थे। एक दिन करीब 10 11 बजे के आस-पास बजे दो अंग्रेज तथा एक मेम पांचली खुर्द के आमों के बाग में थोड़ा आराम करने के लिए रूके। इसी बाग के समीप पांचली गांव के तीन किसान जिनके नाम मंगत सिंह, नरपत सिंह और झज्जड़ सिंह (अथवा भज्जड़ सिंह) थे, कृषि कार्यो में लगे थे। अंग्रेजों ने इन किसानों से पानी पिलाने का आग्रह किया। अज्ञात कारणों से इन किसानों और अंग्रेजों में संघर्ष हो गया। इन किसानों ने अंग्रेजों का वीरतापूर्वक सामना कर एक अंग्रेज और मेम को पकड़ दिया। एक अंग्रेज भागने में सफल रहा। पकड़े गए अंग्रेज सिपाही को इन्होंने हाथ-पैर बांधकर गर्म रेत में डाल दिया और मेम से बलपूर्वक दायं हंकवाई। दो घंटे बाद भागा हुआ सिपाही एक अंग्रेज अधिकारी और 25-30 सिपाहियों के साथ वापस लौटा। तब तक किसान अंग्रेज सैनिकों से छीने हुए हथियारों, जिनमें एक सोने की मूठ वाली तलवार भी थी, को लेकर भाग चुके थे। अंग्रेजों की दण्ड नीति बहुत कठोर थी, इस घटना की जांच करने और दोषियों को गिरफ्तार कर अंग्रेजों को सौंपने की जिम्मेदारी धन सिंह के पिता, जो कि गांव के मुखिया थे, को सौंपी गई। ऐलान किया गया कि यदि मुखिया ने तीनों बागियों को पकड़कर अंग्रेजों को नहीं सौपा तो सजा गांव वालों और मुखिया को भुगतनी पड़ेगी। बहुत से ग्रामवासी भयवश गाँव से पलायन कर गए। अन्ततः नरपत सिंह और झज्जड़ सिंह ने तो समर्पण कर दिया किन्तु मंगत सिंह फरार ही रहे। दोनों किसानों को 30-30 कोड़े और जमीन से बेदखली की सजा दी गई। फरार मंगत सिंह के परिवार के तीन सदस्यों के गांव के समीप ही फांसी पर लटका दिया गया। धन सिंह के पिता को मंगत सिंह को न ढूंढ पाने के कारण छः माह के कठोर कारावास की सजा दी गई। इस घटना ने धन सिंह सहित पांचली के बच्चे-बच्चे को विद्रोही बना दिया।17 जैसे ही 10 मई को मेरठ में सैनिक बगावत हुई धन सिंह और ने क्रान्ति में सहभागिता की शुरूआत कर इतिहास रच दिया। क्रान्ति मे अग्रणी भूमिका निभाने की सजा पांचली व अन्य ग्रामों के किसानों को मिली। मेरठ गजेटियर के वर्णन के अनुसार 4 जुलाई, 1857 को प्रातः चार बजे पांचली पर एक अंग्रेज रिसाले ने तोपों से हमला किया। रिसाले में 56 घुड़सवार, 38 पैदल सिपाही और 10 तोपची थे। पूरे ग्राम को तोप से उड़ा दिया गया। सैकड़ों किसान मारे गए, जो बच गए उनमें से 46 लोग कैद कर लिए गए और इनमें से 40 को बाद में फांसी की सजा दे दी गई।18 आचार्य दीपांकर द्वारा रचित पुस्तक स्वाधीनता आन्दोलन और मेरठ के अनुसार पांचली के 80 लोगों को फांसी की सजा दी गई थी। पूरे गांव को लगभग नष्ट ही कर दिया गया। ग्राम गगोल के भी 9 लोगों को दशहरे के दिन फाँसी की सजा दी गई और पूरे ग्राम को नष्ट कर दिया। आज भी इस ग्राम में दश्हरा नहीं मनाया जाता। संदर्भ एवं टिप्पणी 1.

नई!!: भारत के महाराज्यपाल और १८५७ का प्रथम भारतीय स्वतंत्रता संग्राम · और देखें »

१८५८

1858 ग्रेगोरी कैलंडर का एक साधारण वर्ष है। .

नई!!: भारत के महाराज्यपाल और १८५८ · और देखें »

१८६२

1862 ग्रेगोरी कैलंडर का एक साधारण वर्ष है। .

नई!!: भारत के महाराज्यपाल और १८६२ · और देखें »

१८६३

1863 ग्रेगोरी कैलंडर का एक साधारण वर्ष है। .

नई!!: भारत के महाराज्यपाल और १८६३ · और देखें »

१८६४

1864 ग्रेगोरी कैलंडर का एक अधिवर्ष है। .

नई!!: भारत के महाराज्यपाल और १८६४ · और देखें »

१८६९

१८६९ ग्रेगोरी कैलंडर का एक साधारण वर्ष है। .

नई!!: भारत के महाराज्यपाल और १८६९ · और देखें »

१८७२

1872 ग्रेगोरी कैलंडर का एक अधिवर्ष है। .

नई!!: भारत के महाराज्यपाल और १८७२ · और देखें »

१८७६

1876 ग्रेगोरी कैलंडर का एक अधिवर्ष है। .

नई!!: भारत के महाराज्यपाल और १८७६ · और देखें »

१८८०

1880 ग्रेगोरी कैलंडर का एक अधिवर्ष है। .

नई!!: भारत के महाराज्यपाल और १८८० · और देखें »

१८८४

1884 ग्रेगोरी कैलंडर का एक अधिवर्ष है। .

नई!!: भारत के महाराज्यपाल और १८८४ · और देखें »

१८८८

१८८८ ग्रेगोरी कैलंडर का एक अधिवर्ष है। .

नई!!: भारत के महाराज्यपाल और १८८८ · और देखें »

१८९४

1894 ग्रेगोरी कैलंडर का एक साधारण वर्ष है। .

नई!!: भारत के महाराज्यपाल और १८९४ · और देखें »

१८९९

1899 ग्रेगोरी कैलंडर का एक साधारण वर्ष है। .

नई!!: भारत के महाराज्यपाल और १८९९ · और देखें »

१९०५

1905 ग्रेगोरी कैलंडर का एक साधारण वर्ष है। .

नई!!: भारत के महाराज्यपाल और १९०५ · और देखें »

१९१०

1910 ग्रेगोरी कैलंडर का एक साधारण वर्ष है। .

नई!!: भारत के महाराज्यपाल और १९१० · और देखें »

१९१६

1916 ग्रेगोरी कैलंडर का एक अधिवर्ष है। .

नई!!: भारत के महाराज्यपाल और १९१६ · और देखें »

१९२१

1921 ग्रेगोरी कैलंडर का एक साधारण वर्ष है। .

नई!!: भारत के महाराज्यपाल और १९२१ · और देखें »

१९२६

१९२६ ग्रेगोरी कैलंडर का एक साधारण वर्ष है। .

नई!!: भारत के महाराज्यपाल और १९२६ · और देखें »

१९३१

1931 एक वर्ष है। .

नई!!: भारत के महाराज्यपाल और १९३१ · और देखें »

१९३६

1936 ग्रेगोरी कैलंडर का एक साधारण वर्ष है। .

नई!!: भारत के महाराज्यपाल और १९३६ · और देखें »

१९४३

1943 ग्रेगोरी कैलंडर का एक साधारण वर्ष है। .

नई!!: भारत के महाराज्यपाल और १९४३ · और देखें »

१९४७

1947 ग्रेगोरी कैलंडर का एक साधारण वर्ष है। .

नई!!: भारत के महाराज्यपाल और १९४७ · और देखें »

१९४८

1948 ग्रेगोरी कैलंडर का एक अधिवर्ष है। .

नई!!: भारत के महाराज्यपाल और १९४८ · और देखें »

१९५०

1950 ग्रेगोरी कैलंडर का एक साधारण वर्ष है। .

नई!!: भारत के महाराज्यपाल और १९५० · और देखें »

१९५१

१९५१ ग्रेगोरी कैलंडर का एक साधारण वर्ष है। .

नई!!: भारत के महाराज्यपाल और १९५१ · और देखें »

१९५५

1955 ग्रेगोरी कैलंडर का एक साधारण वर्ष है। .

नई!!: भारत के महाराज्यपाल और १९५५ · और देखें »

१९५६

१९५६ ग्रेगोरी कैलंडर का एक साधारण वर्ष है। .

नई!!: भारत के महाराज्यपाल और १९५६ · और देखें »

२ अप्रैल

2 अप्रैल ग्रेगोरी कैलंडर के अनुसार वर्ष का 92वाँ (लीप वर्ष मे 93वाँ) दिन है। साल मे अभी और 273 दिन बाकी हैं।.

नई!!: भारत के महाराज्यपाल और २ अप्रैल · और देखें »

२० नवंबर

२० नवंबर ग्रेगोरी कैलंडर के अनुसार वर्ष का ३२४वॉ (लीप वर्ष मे ३२५ वॉ) दिन है। साल मे अभी और ४१ दिन बाकी है। .

नई!!: भारत के महाराज्यपाल और २० नवंबर · और देखें »

२० मार्च

20 मार्च ग्रेगोरी कैलंडर के अनुसार वर्ष का 79वॉ (लीप वर्ष मे 80 वॉ) दिन है। साल मे अभी और 286 दिन बाकी है। .

नई!!: भारत के महाराज्यपाल और २० मार्च · और देखें »

२० अक्टूबर

20 अक्टूबर ग्रेगोरी कैलंडर के अनुसार वर्ष का 293वॉ (लीप वर्ष मे 294 वॉ) दिन है। साल मे अभी और 72 दिन बाकी है। .

नई!!: भारत के महाराज्यपाल और २० अक्टूबर · और देखें »

२१ नवम्बर

२१ नवम्बर ग्रीगोरी पंचाग का ३२५वां (लीप वर्ष में ३२६वां) दिन है। इसके बाद वर्षान्त तक ४० दिन और बचते हैं। .

नई!!: भारत के महाराज्यपाल और २१ नवम्बर · और देखें »

२१ फ़रवरी

२१ फरवरी ग्रेगोरी कैलंडर के अनुसार वर्ष का ५२वाँ दिन है। वर्ष मे अभी और ३१३ दिन बाकी है (लीप वर्ष मे ३१४)। .

नई!!: भारत के महाराज्यपाल और २१ फ़रवरी · और देखें »

२१ मार्च

21 मार्च ग्रेगोरी कैलंडर के अनुसार वर्ष का 80वॉ (लीप वर्ष मे 81 वॉ) दिन है। साल मे अभी और 285 दिन बाकी है। .

नई!!: भारत के महाराज्यपाल और २१ मार्च · और देखें »

२३ नवम्बर

२३ नवंबर ग्रेगोरी कैलंडर के अनुसार वर्ष का ३२७वॉ (लीप वर्ष में ३२८ वॉ) दिन है। साल में अभी और 38 दिन बाकी है। .

नई!!: भारत के महाराज्यपाल और २३ नवम्बर · और देखें »

२३ फ़रवरी

23 फरवरी ग्रेगोरी कैलंडर के अनुसार वर्ष का 54वॉ दिन है। साल में अभी और 311 दिन बाकी है (लीप वर्ष में 312)। .

नई!!: भारत के महाराज्यपाल और २३ फ़रवरी · और देखें »

२३ मार्च

23 मार्च ग्रेगोरी कैलंडर के अनुसार वर्ष का 82वॉ (लीप वर्ष मे 83 वॉ) दिन है। साल मे अभी और 283 दिन बाकी है। .

नई!!: भारत के महाराज्यपाल और २३ मार्च · और देखें »

२३ जुलाई

२३ जुलाई ग्रेगोरी कैलंडर के अनुसार वर्ष का २०४वॉ (लीप वर्ष मे २०५वॉ) दिन है। वर्ष मे अभी और १६१ दिन बाकी है। .

नई!!: भारत के महाराज्यपाल और २३ जुलाई · और देखें »

२४ फ़रवरी

२४ फरवरी ग्रेगोरी कैलंडर के अनुसार वर्ष का ५५वॉ दिन है। वर्ष में अभी और ३१० दिन बाकी है (लीप वर्ष में ३११)। .

नई!!: भारत के महाराज्यपाल और २४ फ़रवरी · और देखें »

२५ जनवरी

25 जनवरी ग्रेगोरी कैलंडर के अनुसार वर्ष का 25वाँ दिन है। साल में अभी और 340 दिन बाकी हैं (लीप वर्ष में 341)। भारत सरकार द्वारा प्रत्एक वर्ष आज के दिन अपने नागरिक अलंकरणों जैसे पद्म भूषण, भारत रत्न आदि की घोषणा की जाती है। .

नई!!: भारत के महाराज्यपाल और २५ जनवरी · और देखें »

२८ फ़रवरी

28 फरवरी ग्रेगोरी कैलंडर के अनुसार वर्ष का 59वॉ दिन है। साल मे अभी और 306 दिन बाकी है (लीप वर्ष मे 307)। .

नई!!: भारत के महाराज्यपाल और २८ फ़रवरी · और देखें »

२८ अक्तूबर

28 अक्टूबर ग्रेगोरी कैलंडर के अनुसार वर्ष का 301वॉ (लीप वर्ष में 302 वॉ) दिन है। साल में अभी और 64 दिन बाकी है। .

नई!!: भारत के महाराज्यपाल और २८ अक्तूबर · और देखें »

३ मई

३ मई ग्रेगोरी कैलंडर के अनुसार वर्ष का १२३वॉ (लीप वर्ष में १२४वॉ) दिन है। साल में अभी और २४२ दिन बाकी है। .

नई!!: भारत के महाराज्यपाल और ३ मई · और देखें »

३ अप्रैल

3 अप्रैल ग्रेगोरी कैलंडर के अनुसार वर्ष का 93वॉ (लीप वर्ष मे 94 वॉ) दिन है। साल मे अभी और 272 दिन बाकी है। .

नई!!: भारत के महाराज्यपाल और ३ अप्रैल · और देखें »

३० जुलाई

३० जुलाई ग्रेगोरी कैलंडर के अनुसार वर्ष का २११वॉ (लीप वर्ष में २१२ वॉ) दिन है। साल में अभी और १५४ दिन बाकी है। .

नई!!: भारत के महाराज्यपाल और ३० जुलाई · और देखें »

३१ जुलाई

३१ जुलाई ग्रेगोरी कैलंडर के अनुसार वर्ष का २१२वॉ (लीप वर्ष में २१३ वॉ) दिन है। साल में अभी और १५३ दिन बाकी है। .

नई!!: भारत के महाराज्यपाल और ३१ जुलाई · और देखें »

४ मार्च

4 मार्च ग्रेगोरी कैलंडर के अनुसार वर्ष का 63वॉ (लीप वर्ष में 64 वॉ) दिन है। साल में अभी और 302 दिन बाकी है। .

नई!!: भारत के महाराज्यपाल और ४ मार्च · और देखें »

४ जुलाई

४ जुलाई ग्रेगोरी कैलंडर के अनुसार वर्ष का १८५वॉ (लीप वर्ष में १८६ वॉ) दिन है। साल में अभी और १८० दिन बाकी है। .

नई!!: भारत के महाराज्यपाल और ४ जुलाई · और देखें »

४ अप्रैल

4 अप्रैल ग्रेगोरी कैलंडर के अनुसार वर्ष का 94वॉ (लीप वर्ष मे 95 वॉ) दिन है। साल मे अभी और 271 दिन बाकी है। .

नई!!: भारत के महाराज्यपाल और ४ अप्रैल · और देखें »

४ अक्टूबर

4 अक्टूबर ग्रेगोरी कैलंडर के अनुसार वर्ष का 277वाँ (लीप वर्ष मे 278 वाँ) दिन है। साल मे अभी और 88 दिन बाकी है। ा.

नई!!: भारत के महाराज्यपाल और ४ अक्टूबर · और देखें »

५ अक्टूबर

5 अक्टूबर ग्रेगोरी कैलंडर के अनुसार वर्ष का 278वॉ (लीप वर्ष में 279 वॉ) दिन है। साल में अभी और 87 दिन बाकी है। .

नई!!: भारत के महाराज्यपाल और ५ अक्टूबर · और देखें »

६ जनवरी

6 जनवरी ग्रेगोरी कैलंडर के अनुसार वर्ष का 6वाँ दिन है। साल में अभी और 359 दिन बाकी हैं (लीप वर्ष में 360)।.

नई!!: भारत के महाराज्यपाल और ६ जनवरी · और देखें »

६ अक्टूबर

6 अक्टूबर ग्रेगोरी कैलंडर के अनुसार वर्ष का 279वॉ (लीप वर्ष में 280 वॉ) दिन है। साल में अभी और 86 दिन बाकी है। .

नई!!: भारत के महाराज्यपाल और ६ अक्टूबर · और देखें »

८ फ़रवरी

8 फरवरी ग्रेगोरी कैलंडर के अनुसार वर्ष का 39वॉ दिन है। साल मे अभी और 326 दिन बाकी है (लीप वर्ष मे 327)। .

नई!!: भारत के महाराज्यपाल और ८ फ़रवरी · और देखें »

८ जून

8 जून ग्रेगोरी कैलंडर के अनुसार वर्ष का 159वाँ (लीप वर्ष में 160 वाँ) दिन है। साल में अभी और 206 दिन बाकी हैं।.

नई!!: भारत के महाराज्यपाल और ८ जून · और देखें »

९ फ़रवरी

9 फरवरी ग्रेगोरी कैलंडर के अनुसार वर्ष का 40वॉ दिन है। साल में अभी और 325 दिन बाकी है (लीप वर्ष में 326)। .

नई!!: भारत के महाराज्यपाल और ९ फ़रवरी · और देखें »

९ जनवरी

९ जनवरी ग्रेगोरी कैलंडर के अनुसार वर्ष का ९वाँ दिन है। वर्ष में अभी और ३५६ दिन बाकी हैं (लीप वर्ष में ३५७)।.

नई!!: भारत के महाराज्यपाल और ९ जनवरी · और देखें »

यहां पुनर्निर्देश करता है:

भारत के वाइसरॉय, भारत के गवर्नर जनरल, भारत के गवर्नर-जनरल, गवर्नर जनरल, गवर्नर-जनरल, गवर्नर-जनरल ऑफ़ इण्डिया

निवर्तमानआने वाली
अरे! अब हम फेसबुक पर हैं! »