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भारत का प्रथम सौर-ऊर्जा चलित नौकायान

सूची भारत का प्रथम सौर-ऊर्जा चलित नौकायान

यह नौकायान भारत का प्रथम सौर-ऊर्जा चलित नौकायान होने के साथ-साथ भारत का सबसे बडा सौर-ऊर्जा नौका भी है। इस नौका का योजनाचित्र  के द्वारा तैयार किया गया और इसका निर्माण  के द्वारा कोच्ची (केरल, भारत) में किया गया है, जिसका परिचालन नवम्बर २०१६ से शुरू की जाएगी। एक अंतर-राष्ट्रीय कंपनी है जिसका निर्माण तीन कंपनियों  (भारत), Alternative Energies (फ्रांस) और (फ्रांस) के गठबंधन से हुआ है | मूल प्रोद्योगिकी तकनीकें तथा योजना-चित्र के साथ नौका निर्माण के लिए विशेषज्ञता, फ़्रांसीसी कंपनी द्वारा ही प्रदान की गयी है। केरल जल परिवहन विभाग के विशिष्ठ दृष्टिकोण और नेतृत्व के अनुसार इस सौर-ऊर्जा चालित नौका-यान का निर्माण किया गया है।  इस नौका की विशेषता यह है की इसके संचालन के लिए अन्य किसी भी ऊर्जा श्रोतों की आवश्यकता नहीं होगी। .

1 संबंध: सोलर इंपल्स

सोलर इंपल्स

सोलर इंपल्स (अंग्रेजी:Solar impulse;हिन्दी अनुवाद: सौर आवेग), एक यूरोपीय लंबी दूरी की सौर ऊर्जा चालित विमान परियोजना है जिसे इकोले पॉलीटेक्निक फेडरल डी लॉज़ेन द्वारा संचालित किया जा रहा है। परियोजना की शुरुआत बर्ट्रेंड पिकार्ड द्वारा की गयी है, जिन्होने संयुक्त रूप से पहली बार एक गुब्बारे से बिना रूके दुनिया का चक्कर लगाया था। सौर ऊर्जा चालित यह पहला विमान जिसका स्विस विमान पंजीकरण कूट HB -SIA है, एकल सीट वाला विमान है और यह अपनी ही शक्ति से उड़ान भरने और लगातार 36 घंटे तक हवा मे उड़ते रहने में सक्षम है। इस विमान ने अपनी पहली सफल उड़ान पश्चिमी स्विटज़रलैंड के पेयर्न हवाई अड्डे से 7 जुलाई 2010 को भरी थी। इस उड़ान के दौरान यह विमान लगातार 26 घंटे हवा में उड़ता रहा जिसमें रात के 9 घंटे भी शामिल हैं। विमान को 8 जुलाई 2010 को इसी हवाई अड्डे पर वापस उतारा गया। अप्रैल 2010 में इस विमान ने अपनी पहली दिन की उड़ान सफलतापूर्वक पूरी की थी। विमान को स्विस वायुसेना के पूर्व लड़ाकू पायलट 57 वर्षीय एंड्रे बॉशबर्ड ने कड़कड़ाती ठंड के बीच उड़ाया। बकौल एंड्रे पिछले चालीस सालों के पायलट जीवन में यह उनकी सर्वाधिक रोमांचकारी उड़ान थी जिसे उन्होंने बगैर किसी ईंधन और पर्यावरणीय प्रदूषण के पूरा किया। इस विमान के पंखों पर बेशकीमती और 63.4 मीटर लंबे सौर पटल (सोलर पैनल) लगे हैं। पायलट ने इस विमान को दिन की उड़ान के समय इसे 8,500 मीटर की ऊंचाई पर रखा जिससे सूरज की रोशनी से मिलने वाली ऊर्जा को विमान ने संरक्षित किया और इसी ऊर्जा से रात में 1,500 मीटर की ऊंचाई पर विमान को उड़ाया गया। .

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