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भाटुन्द

सूची भाटुन्द

भाटुन्द, राजस्थान के पाली जिले में स्थित एक गाँव है। यह गाँव पाली जिले के बाली तहसील से 21 किमी दूर है। गाँव की जनसंख्या लगभग 6 - 7 हजार है। यह गाँव पहले सिरोही रियासत में आता था। देश आजाद होने के बाद अब पाली ज़िले में चला गया है। गाँव से 3 किमी दूर चेतन बालाजी का भव्य तीर्थ स्थल है। गाँव में एक ऐतिहासिक सूर्य मन्दिर है। यह मन्दिर लगभग 10 वी व 11 वी शताब्दी के बीच श्री महाराजा भोज ने बनाया था। ईस गाँव में लगभग 13 वी शताब्दी में 18 परिवारों सहित श्री आदोरजी महाराज (आदरशी महाराज) ने लाखाजौहर किया था। यह जौहर अलाउद्दीन खिलजी, चित्तौड़गढ़ फतह करने के बाद जालौर रियासत पर आक्रमण करने के लिए ईसी गाँव से गुजर रहे थे। रास्ता ऊस समय इस गाँव से निकलता था, यहाँ पर आदोरजी महाराज के परिवार की मुगली सेना से लडाई हो गई। ईसके कारण मुगली साम्राज्य की सेना के हाथो न मरने के कारण लाखाजौहर में 18 परिवारों सहित समर्पित हो गए थे। यह घटना चित्तौड़गढ़ कि रानी पद्मिनी के जौहर के ठीक 6 माह बाद की है। यह गाँव सिरोही दरबार द्वारा 3600 बीघा जमीन दान के रूप में श्री आदोरजी महाराज (आदरशी महाराज) को भेंट में यह गाँव दिय़ा हुआ था। ईस गाँव का नामकरन भी उन्होंने ही करवाया था। जो गाँव का नाम दरबार में खताता था। ऊसे दरबार में खत श्री की उपमा से नवाजा जाता था। आज भी आदोरजी महाराज के परिवार को खत् नाम से भी संबोधित किया जाता है। पुरा परिवार लाखा जौहर में समर्पित होने के बाद, ईनकी एक बहु मुहर्रते गई हुई थी। जिसके लडके का वंशज आज विद्यमान हैं। ईस गाँव के नामकरण के लिए श्री आदोरजी महाराज ने भाट (राव) को बुलवाया गया। भाट ने ब्राहमणो के मुँह से बार बार अपनी जाति का नाम लेने के प्रयोजन से उन्होंने भाटुन नाम सुझाया गया, ईस गाँव का नाम श्री आदोरजी महाराज ने भाटून रखा। बाद में यह भाटुन्द पडा। यहाँ पर काफी देवताओं के बड़े भव्य मंदिर हैं। कहाँ जाता है कि यह गाँव भुकंम्भ के कारण दो से तीन बार उजड़ा (डटन) भी है। यह सदियों पुरानी ब्राहमणो की नगरी है। ब्राहमणो के आव्हान पर माँ शीतला माता साक्षात दर्शन देकर यहाँ विराजमान हुईं है। साल में दो बार माँ शीतला माताज़ी का विशाल मेला लगता है। सदियों पुरानी एतिहासिक कहानी इस प्रकार है कि यहाँ पहाड़ी जंगलों में ऐक राक्षस रहता था। यह राक्षस किसी की शादी नहीं होने देता था, जब किसी की शादी होती, फैरे लेने के समय आ जाता था और वर (दुल्ला)को खा जाता था। इस कारण यहाँ कि लड़कियों से कोई शादी नहीं करता था। लड़कियों का ऐसा हाल देखकर ब्राहमणों ने शीतला माता की घोर तपस्या की, जब माँ ने प्रसन्न होकर दर्शन दिए और ब्राहमणो ने अपनी तकलीफ का वर्णन किया, माँ बोली अब आप लोग धूमधाम से शादी करो मैं आप लोगों की रक्षा करूँगी। इस प्रकार माँ का वचन सुनकर ब्राहमण लोग बहुत खुश हो गए। ब्राहमणो ने अपनी बच्चियों के विवाह की तैयारियां चालु की। फैरो के समय राक्षस आ गया, माँ शीतला ने अपने त्रिशूल से राक्षस का वध किया था। वध करते समय राक्षस ने माँ शीतला माता से पानी पीने व खाने की इच्छा प्रकट की, माँ ने राक्षस को वरदान दिया कि साल में दो बार तुझको पानी व खाने केलिए दिया जाएगा। जो हर साल चैत्र शुक्ल ७ को, वह ज्येष्ठ शुक्ल १५ को दिया जाता है। माँ शीतला माता के सामने ऐक शीतला माता कुण्ड (ऊखली) है जो ऐक फिट गहरी है। पुरा गांव ईस ऊखली में घड़ो से पानी डालता है, लेकिन पानी किधर जाता है, ईसका आज तक किसको मालुम नहीं है। पुरा पानी राक्षस पिता है। ऐसा गाँव वालो का मानना है। ऐक बार सिरोही दरबार ने भी ईस ऐक फुट गहरी ऊखली को दो कुआं का पानी लाकर भरने की निष्फल कोशिश की थी। माँ के प्रकोप का सामना करना पड़ा था। पूरे शरीर पर कोड निकल गये थे। माँ की आराधना करने से ही कोड समाप्त हुए थे। .

30 संबंधों: चित्तौड़गढ़, नाना रेल्वे स्टेशन, पद्मिनी, परशुराम, पाली जिला, फालना रेलवे स्टेशन, भद्रेश्वर महादेव, भाटुन्द, भोज, माँ शीतला माताजी, मुगल साम्राज्य की सेना, मोरीबेडा रेल्वे स्टेशन, रामदेव पीर, राजस्थान, लाखाजौहर, लक्ष्मी नारायण, शीतला माता कुण्ड, शीतला मााता कुण्ड, सिरोही, सुमेरपुर, सूर्य मन्दिर, भाटुन्द, बाली,राजस्थान, सूर्य मंदिर, हनुमान, जालौर, जवाई बाँध, जवाईबांध रेल्वे स्टेशन, जौहर, वाराही, अरावली, अलाउद्दीन खिलजी

चित्तौड़गढ़

पद्मिनी महल का तैलचित्र चित्तौड़गढ़ राजस्थान का एक शहर है। यह शूरवीरों का शहर है जो पहाड़ी पर बने दुर्ग के लिए प्रसिद्ध है। चित्तौड़गढ़ की प्राचीनता का पता लगाना कठिन कार्य है, किन्तु माना जाता है कि महाभारत काल में महाबली भीम ने अमरत्व के रहस्यों को समझने के लिए इस स्थान का दौरा किया और एक पंडित को अपना गुरु बनाया, किन्तु समस्त प्रक्रिया को पूरी करने से पहले अधीर होकर वे अपना लक्ष्य नहीं पा सके और प्रचण्ड गुस्से में आकर उसने अपना पाँव जोर से जमीन पर मारा, जिससे वहाँ पानी का स्रोत फूट पड़ा, पानी के इस कुण्ड को भीम-ताल कहा जाता है; बाद में यह स्थान मौर्य अथवा मूरी राजपूतों के अधीन आ गया, इसमें भिन्न-भिन्न राय हैं कि यह मेवाड़ शासकों के अधीन कब आया, किन्तु राजधानी को उदयपुर ले जाने से पहले 1568 तक चित्तौड़गढ़ मेवाड़ की राजधानी रहा। यहाँ पर रोड वंशी राजपूतों ने बहुत समय राज किया। यह माना जाता है गुलिया वंशी बप्पा रावल ने 8वीं शताब्दी के मध्य में अंतिम सोलंकी राजकुमारी से विवाह करने पर चित्तौढ़ को दहेज के एक भाग के रूप में प्राप्त किया था, बाद में उसके वंशजों ने मेवाड़ पर शासन किया जो 16वीं शताब्दी तक गुजरात से अजमेर तक फैल चुका था। अजमेर से खण्डवा जाने वाली ट्रेन के द्वारा रास्ते के बीच स्थित चित्तौरगढ़ जंक्शन से करीब २ मील उत्तर-पूर्व की ओर एक अलग पहाड़ी पर भारत का गौरव राजपूताने का सुप्रसिद्ध चित्तौड़गढ़ का किला बना हुआ है। समुद्र तल से १३३८ फीट ऊँची भूमि पर स्थित ५०० फीट ऊँची एक विशाल (ह्वेल मछ्ली) आकार में, पहाड़ी पर निर्मित्त यह दुर्ग लगभग ३ मील लम्बा और आधे मील तक चौड़ा है। पहाड़ी का घेरा करीब ८ मील का है तथा यह कुल ६०९ एकड़ भूमि पर बसा है। चित्तौड़गढ़, वह वीरभूमि है जिसने समूचे भारत के सम्मुख शौर्य, देशभक्ति एवम् बलिदान का अनूठा उदाहरण प्रस्तुत किया। यहाँ के असंख्य राजपूत वीरों ने अपने देश तथा धर्म की रक्षा के लिए असिधारारुपी तीर्थ में स्नान किया। वहीं राजपूत वीरांगनाओं ने कई अवसर पर अपने सतीत्व की रक्षा के लिए अपने बाल-बच्चों सहित जौहर की अग्नि में प्रवेश कर आदर्श उपस्थित किये। इन स्वाभिमानी देशप्रेमी योद्धाओं से भरी पड़ी यह भूमि पूरे भारत वर्ष के लिए प्रेरणा स्रोत बनकर रह गयी है। यहाँ का कण-कण हममें देशप्रेम की लहर पैदा करता है। यहाँ की हर एक इमारतें हमें एकता का संकेत देती हैं। .

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नाना रेल्वे स्टेशन

भाटुन्द से नाना रेल्वे स्टेशन 25 किलोमीटर दूर है।.

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पद्मिनी

पद्मावती या पद्मिनी चित्तौड़ के राजा रत्नसिंह (रतनसेन) की रानी थी। इस राजपूत रानी के नाम का ऐतिहासिक अस्तित्व बहुत संदिग्ध है, और इसका ऐतिहासिक अस्तित्व तो प्रायः इतिहासकारों द्वारा काल्पनिक स्वीकार कर लिया गया है। इस नाम का मुख्य स्रोत मलिक मुहम्मद जायसी कृत 'पद्मावत' नामक महाकाव्य है। अन्य जिस किसी ऐतिहासिक स्रोतों या ग्रंथों में 'पद्मावती' या 'पद्मिनी' का वर्णन हुआ है वे सभी 'पद्मावत' के परवर्ती हैं। .

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परशुराम

परशुराम त्रेता युग (रामायण काल) के एक ब्राह्मण थे। उन्हें विष्णु का छठा अवतार भी कहा जाता है। पौरोणिक वृत्तान्तों के अनुसार उनका जन्म भृगुश्रेष्ठ महर्षि जमदग्नि द्वारा सम्पन्न पुत्रेष्टि यज्ञ से प्रसन्न देवराज इन्द्र के वरदान स्वरूप पत्नी रेणुका के गर्भ से वैशाख शुक्ल तृतीया को हुआ था। वे भगवान विष्णु के छठे अवतार थे। पितामह भृगु द्वारा सम्पन्न नामकरण संस्कार के अनन्तर राम, जमदग्नि का पुत्र होने के कारण जामदग्न्य और शिवजी द्वारा प्रदत्त परशु धारण किये रहने के कारण वे परशुराम कहलाये। आरम्भिक शिक्षा महर्षि विश्वामित्र एवं ऋचीक के आश्रम में प्राप्त होने के साथ ही महर्षि ऋचीक से सारंग नामक दिव्य वैष्णव धनुष और ब्रह्मर्षि कश्यप से विधिवत अविनाशी वैष्णव मन्त्र प्राप्त हुआ। तदनन्तर कैलाश गिरिश्रृंग पर स्थित भगवान शंकर के आश्रम में विद्या प्राप्त कर विशिष्ट दिव्यास्त्र विद्युदभि नामक परशु प्राप्त किया। शिवजी से उन्हें श्रीकृष्ण का त्रैलोक्य विजय कवच, स्तवराज स्तोत्र एवं मन्त्र कल्पतरु भी प्राप्त हुए। चक्रतीर्थ में किये कठिन तप से प्रसन्न हो भगवान विष्णु ने उन्हें त्रेता में रामावतार होने पर तेजोहरण के उपरान्त कल्पान्त पर्यन्त तपस्यारत भूलोक पर रहने का वर दिया। वे शस्त्रविद्या के महान गुरु थे। उन्होंने भीष्म, द्रोण व कर्ण को शस्त्रविद्या प्रदान की थी। उन्होंने एकादश छन्दयुक्त "शिव पंचत्वारिंशनाम स्तोत्र" भी लिखा। इच्छित फल-प्रदाता परशुराम गायत्री है-"ॐ जामदग्न्याय विद्महे महावीराय धीमहि, तन्नोपरशुराम: प्रचोदयात्।" वे पुरुषों के लिये आजीवन एक पत्नीव्रत के पक्षधर थे। उन्होंने अत्रि की पत्नी अनसूया, अगस्त्य की पत्नी लोपामुद्रा व अपने प्रिय शिष्य अकृतवण के सहयोग से विराट नारी-जागृति-अभियान का संचालन भी किया था। अवशेष कार्यो में कल्कि अवतार होने पर उनका गुरुपद ग्रहण कर उन्हें शस्त्रविद्या प्रदान करना भी बताया गया है। .

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पाली जिला

पाली जिला भारत के राजस्थान प्रान्त का एक जिला है जिसकी पूर्वी सीमाएं अरावली पर्वत श्रृंखला से जुड़ी हैं। इसी सीमाएं उत्तर में नागौर और पश्चिम में जालौर से मिलती हैं। पाली शहर पालीवाल ब्राह्मणों का निवास स्थान था जब मुगलों ने कत्लेआम मचा दिया तो उन्हें यह शहर छोड़ कर जाना पड़ा। वीर योद्धा महाराणा प्रताप का जन्म भी यहीं पर अपने ननिहाल में हुआ था। यह नगर तीन बार उजड़ा और बसा। यहां के प्रसिद्ध जैन मंदिर भक्तों के साथ-साथ इतिहासवेत्ताओं को भी आकर्षित करते हैं। ये राजपूत वर्चस्व वाला जिला है यहाँ सभी सामान्य सीटो के 5 प्रधान राजपूत है और 85 सरपंच राजपूत है साथ ही एक मंत्री भी इसी समाज से है यहाँ मात्र 6% राजपूत हैं .

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फालना रेलवे स्टेशन

फालना रेलवे स्टेशन भारतीय राज्य राजस्थान के पाली जिले का मुख्य रेलवे स्टेशन है। इस स्टेशन पर तीन प्लेटफाॅर्म हैं। .

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भद्रेश्वर महादेव

श्री भद्रेश्वर महादेव का मन्दिर भाटुन्द से 4 किलोमीटर दूर था लेकिन 50- 60 वर्ष पुर्व जवाई बाँध बनाने के कारण यह मन्दिर पानी में चला गया था। फिर नया मन्दिर दुदनी गाँव में स्थापित किया था। अब यह 13 किलोमीटर दूर है। यह श्री आदोरजी महाराज (आदरशी महाराज) के इस्ट देव (कुलदेवता) है।.

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भाटुन्द

भाटुन्द, राजस्थान के पाली जिले में स्थित एक गाँव है। यह गाँव पाली जिले के बाली तहसील से 21 किमी दूर है। गाँव की जनसंख्या लगभग 6 - 7 हजार है। यह गाँव पहले सिरोही रियासत में आता था। देश आजाद होने के बाद अब पाली ज़िले में चला गया है। गाँव से 3 किमी दूर चेतन बालाजी का भव्य तीर्थ स्थल है। गाँव में एक ऐतिहासिक सूर्य मन्दिर है। यह मन्दिर लगभग 10 वी व 11 वी शताब्दी के बीच श्री महाराजा भोज ने बनाया था। ईस गाँव में लगभग 13 वी शताब्दी में 18 परिवारों सहित श्री आदोरजी महाराज (आदरशी महाराज) ने लाखाजौहर किया था। यह जौहर अलाउद्दीन खिलजी, चित्तौड़गढ़ फतह करने के बाद जालौर रियासत पर आक्रमण करने के लिए ईसी गाँव से गुजर रहे थे। रास्ता ऊस समय इस गाँव से निकलता था, यहाँ पर आदोरजी महाराज के परिवार की मुगली सेना से लडाई हो गई। ईसके कारण मुगली साम्राज्य की सेना के हाथो न मरने के कारण लाखाजौहर में 18 परिवारों सहित समर्पित हो गए थे। यह घटना चित्तौड़गढ़ कि रानी पद्मिनी के जौहर के ठीक 6 माह बाद की है। यह गाँव सिरोही दरबार द्वारा 3600 बीघा जमीन दान के रूप में श्री आदोरजी महाराज (आदरशी महाराज) को भेंट में यह गाँव दिय़ा हुआ था। ईस गाँव का नामकरन भी उन्होंने ही करवाया था। जो गाँव का नाम दरबार में खताता था। ऊसे दरबार में खत श्री की उपमा से नवाजा जाता था। आज भी आदोरजी महाराज के परिवार को खत् नाम से भी संबोधित किया जाता है। पुरा परिवार लाखा जौहर में समर्पित होने के बाद, ईनकी एक बहु मुहर्रते गई हुई थी। जिसके लडके का वंशज आज विद्यमान हैं। ईस गाँव के नामकरण के लिए श्री आदोरजी महाराज ने भाट (राव) को बुलवाया गया। भाट ने ब्राहमणो के मुँह से बार बार अपनी जाति का नाम लेने के प्रयोजन से उन्होंने भाटुन नाम सुझाया गया, ईस गाँव का नाम श्री आदोरजी महाराज ने भाटून रखा। बाद में यह भाटुन्द पडा। यहाँ पर काफी देवताओं के बड़े भव्य मंदिर हैं। कहाँ जाता है कि यह गाँव भुकंम्भ के कारण दो से तीन बार उजड़ा (डटन) भी है। यह सदियों पुरानी ब्राहमणो की नगरी है। ब्राहमणो के आव्हान पर माँ शीतला माता साक्षात दर्शन देकर यहाँ विराजमान हुईं है। साल में दो बार माँ शीतला माताज़ी का विशाल मेला लगता है। सदियों पुरानी एतिहासिक कहानी इस प्रकार है कि यहाँ पहाड़ी जंगलों में ऐक राक्षस रहता था। यह राक्षस किसी की शादी नहीं होने देता था, जब किसी की शादी होती, फैरे लेने के समय आ जाता था और वर (दुल्ला)को खा जाता था। इस कारण यहाँ कि लड़कियों से कोई शादी नहीं करता था। लड़कियों का ऐसा हाल देखकर ब्राहमणों ने शीतला माता की घोर तपस्या की, जब माँ ने प्रसन्न होकर दर्शन दिए और ब्राहमणो ने अपनी तकलीफ का वर्णन किया, माँ बोली अब आप लोग धूमधाम से शादी करो मैं आप लोगों की रक्षा करूँगी। इस प्रकार माँ का वचन सुनकर ब्राहमण लोग बहुत खुश हो गए। ब्राहमणो ने अपनी बच्चियों के विवाह की तैयारियां चालु की। फैरो के समय राक्षस आ गया, माँ शीतला ने अपने त्रिशूल से राक्षस का वध किया था। वध करते समय राक्षस ने माँ शीतला माता से पानी पीने व खाने की इच्छा प्रकट की, माँ ने राक्षस को वरदान दिया कि साल में दो बार तुझको पानी व खाने केलिए दिया जाएगा। जो हर साल चैत्र शुक्ल ७ को, वह ज्येष्ठ शुक्ल १५ को दिया जाता है। माँ शीतला माता के सामने ऐक शीतला माता कुण्ड (ऊखली) है जो ऐक फिट गहरी है। पुरा गांव ईस ऊखली में घड़ो से पानी डालता है, लेकिन पानी किधर जाता है, ईसका आज तक किसको मालुम नहीं है। पुरा पानी राक्षस पिता है। ऐसा गाँव वालो का मानना है। ऐक बार सिरोही दरबार ने भी ईस ऐक फुट गहरी ऊखली को दो कुआं का पानी लाकर भरने की निष्फल कोशिश की थी। माँ के प्रकोप का सामना करना पड़ा था। पूरे शरीर पर कोड निकल गये थे। माँ की आराधना करने से ही कोड समाप्त हुए थे। .

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भोज

भोज नाम के कई प्रसिद्ध व्यक्ति हुए हैं।.

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माँ शीतला माताजी

भाटुन्द गाँव में माँ शीतला माताज़ी का भव्य व ऐतिहासिक मन्दिर है। यहाँ पर साल में दो बार माँ शीतला माता का मेला लगता है। लोक मान्यता इस प्रकार है कि यहाँ पर जंगलों में बाबरा नामक राक्षस रहता था। यहाँ पर ब्राहमणो की लड़कियों की शादी होती थी तब वह राक्षस फेरो के समय वहाँ आ जाता था और वर (दुल्हे) को खा जाता था, इसलिए यहाँ के ब्राहमणो की लड़कियां कुंवारी ही रहने लगी, कोई भी लड़का शादी केलिए तैयार नही होता था। तब यहाँ के ब्राहमण बहुत दुखी रहनें लगे । ब्राहमणो ने माँ शीतला माता की घोर तपस्या की, ब्राहमणो की तपस्या से माँ प्रसन्न होकर दर्शन दिए, ब्राहमणो ने अपनी तकलीफ का वर्णन माँ के समक्ष प्रस्तुत किया, माँ ने वचन दिया कि तुम अपनी बेटियों की शादी धूम धाम से करो, माँ का वचन सुनकर ब्राहमणो ने अपनी बच्चियों की शादी करने की तैयारी की, फैरो के समय राक्षस वहाँ दुल्हे को खाने के लिए आया, माँ उस राक्षस का वध किया, मरते मरते राक्षस ने माँ से पानी व खाना खाने की इच्छा प्रकट की । माँ ने उसको वचन दिया कि साल मे दो बार तुमको पानी व खाना दिया जाएगा, ब्राहमणो के आव्हान पर माँ सदैव के लिए यहाँ रह गई। चैत्र कृष्ण सप्तमी व ज्येष्ठ मास की पूर्णिमा को साल मे दो बार माँ शीतला माता का मेला लगता है। और उस राक्षस को पानी व खाना दिया जाता है। माँ शीतला माता के सामने एक शीतला माता कुण्ड (ऊखली) है जो एक फिट गहरी है जिसमे गाँव की महिलाएं घड़ों द्वारा पानी डालती है लेकिन वह ऊखली कभी नहीं भरती, गाँव वालो की मान्यता है कि यह पानी राक्षस पीता है। एक बार सिरोही दरबार ने भी इस ऊखली को दो कुआं का पानी लाकर भरने की निष्फल कोशिश की थी। माँ के प्रकोप से पूरे शरीर में कोढ़ निकल गये थे, माँ की आराधना करने पर ठीक हुए थे।.

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मुगल साम्राज्य की सेना

मुगल साम्राज्य की सेना; Army of the Mughal Empire; राज्य के द्वारा कोई विशाल सेना स्थायी रूप से नहीं रखी जाती थी परन्तु सिद्धान्त रूप में साम्राज्य के सभी बल नागरिक शाही सेना के हो सकने वाले सिपाही थे। मुगल सेना का इतिहास अधिकतर मनसबदारी प्रणाली का इतिहास है। .

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मोरीबेडा रेल्वे स्टेशन

भाटुन्द से दक्षिण में 16 किलोमीटर दूर मोरीबेडा रेल्वे स्टेशन है।.

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रामदेव पीर

रामदेव जी राजस्थान के एक लोक देवता हैं। १५वीं शताब्दी के आरम्भ में भारत में लूट खसोट, छुआछूत, हिंदू-मुस्लिम झगडों आदि के कारण स्थितियाँ बड़ी अराजक बनी हुई थीं और भेरव नामक राक्षस का आतंक था। ऐसे विकट समय में पश्चिम राजस्थान के पोकरण नामक प्रसिद्ध नगर के पास रुणिचा नामक स्थान में तंवर वंशीय राजपूत और रुणिचा के शासक अजमाल जी के घर भादो शुक्ल पक्ष दूज के दिन विक्रम सम्वत् 1409 को बाबा रामदेव पीर अवतरित हुए (द्वारकानाथ ने राजा अजमल जी के घर अवतार लिया, जिन्होंने लोक में व्याप्त अत्याचार, वैर-द्वेष, छुआछूत का विरोध कर अछूतोद्धार का सफल आन्दोलन चलाया।जन्म स्थान-ग्राम उण्डू काश्मीर तहशिल शिव जिला बाडमेर राजस्थान .

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राजस्थान

राजस्थान भारत गणराज्य का क्षेत्रफल के आधार पर सबसे बड़ा राज्य है। इसके पश्चिम में पाकिस्तान, दक्षिण-पश्चिम में गुजरात, दक्षिण-पूर्व में मध्यप्रदेश, उत्तर में पंजाब (भारत), उत्तर-पूर्व में उत्तरप्रदेश और हरियाणा है। राज्य का क्षेत्रफल 3,42,239 वर्ग कि॰मी॰ (132139 वर्ग मील) है। 2011 की गणना के अनुसार राजस्थान की साक्षरता दर 66.11% हैं। जयपुर राज्य की राजधानी है। भौगोलिक विशेषताओं में पश्चिम में थार मरुस्थल और घग्गर नदी का अंतिम छोर है। विश्व की पुरातन श्रेणियों में प्रमुख अरावली श्रेणी राजस्थान की एक मात्र पर्वत श्रेणी है, जो कि पर्यटन का केन्द्र है, माउंट आबू और विश्वविख्यात दिलवाड़ा मंदिर सम्मिलित करती है। पूर्वी राजस्थान में दो बाघ अभयारण्य, रणथम्भौर एवं सरिस्का हैं और भरतपुर के समीप केवलादेव राष्ट्रीय उद्यान है, जो सुदूर साइबेरिया से आने वाले सारसों और बड़ी संख्या में स्थानीय प्रजाति के अनेकानेक पक्षियों के संरक्षित-आवास के रूप में विकसित किया गया है। .

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लाखाजौहर

लाखाजौहर में श्री आदोरजी महाराज (आदरशी महाराज) अपने 18 परिवारों सहित समर्पित हुए थे। लिली झाड़ीया को काटकर एक शैया बनवाकर सभी जन ऊस पर बैठकर आग लगाकर भगवान की शरण शिधार गएँ थे। कहते हैं कि आग मंत्रो से लगाई गई थी और लाख की तरह लीली झाड़ियां जलने लगी थी। बच्चे, औरतें, जवान, बुढे सब लोग, तक़रीबन 150 जन इस लाखाजौहर में समर्पित हुए थे। भाटुन्द गाँव के मुखिया थे।.

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लक्ष्मी नारायण

लक्ष्मी नारायण नाम के कई अर्थ हैं:-.

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शीतला माता कुण्ड

भाटुन्द गाँव में माँ शीतला माताजी के सामने ऐक ऊखली है, जो एक फिट गहरी व आधा फिट चौड़ी है, जिसको शीतला मााता कुण्ड भी कहते हैं,साल मे दो बार चैत्र वदि ७ व वैशाख शुक्ल १५ को इस ऊखली मे पुरा गाँव घड़ों द्वारा पानी डालता है लेकिन यह ऊखली कभी नहीं भरती है, गाँव वालो की मान्यता है कि पुरा पानी राक्षस पिता है। एक बार सिरोही दरबार ने भी इस ऊखली को दो कुआं का पानी लाकर भरने की निष्फल कोशिश की थी। माँ के प्रकोप से पूरे शरीर में कोड निकल गये थे। माँ की आराधना करने पर ठीक हुए थे।.

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शीतला मााता कुण्ड

भाटुन्द गाँव में माँ शीतला माताजी के सामने ऐक ऊखली है, जो एक फिट गहरी व आधा फिट चौड़ी है, जिसको शीतला मााता कुण्ड भी कहते हैं,साल मे दो बार चैत्र वदि ७ व वैशाख शुक्ल १५ को इस ऊखली मे पुरा गाँव घड़ों द्वारा पानी डालता है लेकिन यह ऊखली कभी नहीं भरती है, गाँव वालो की मान्यता है कि पुरा पानी राक्षस पिता है। एक बार सिरोही दरबार ने भी इस ऊखली को दो कुआं का पानी लाकर भरने की निष्फल कोशिश की थी। माँ के प्रकोप से पूरे शरीर में कोड निकल गये थे। माँ की आराधना करने पर ठीक हुए थे।.

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सिरोही

सिरोही राजस्थान प्रान्त का एक शहर है। पहलें सिरोही रियासत बड़ी रियासतों में अपना स्थान रखती थी। इसका साम्राज्य बहुत फैला हुआ था। १२वी सदी में यहाँ देवड़ा ओ का राज था। देश आजाद होने के बाद इसे ज़िला बना दिया। इसका काफ़ी एरिया पाली, व जालौर ज़िले में चला गया। सिरोही जिले में कालंद्री गाँव में श्री ब्रह्माजी का १३५० वर्ष पुराना मंदिर है। इस मन्दिर का जीर्णोद्धार हो रहा हे। सिरोही- सिर और ओही का मतलब है सिर काटने कि हिम्मत रखने वाले। गुजराती के महान लेखक झवेरचन्द मेघाणी ने अपनी किताब सोराष्ट्र नी रसधार में लिखा है सिरोही की तलवार और लाहौर कि कटार। कहते हैं कि सिरोही में ऐसी तलवार बनती थी जिसको पानी के प्रपात से तलवार को धार दी जाती थी। आज भी सिरोही कि तलवार प्रसिद्ध है। सिरोही से 15 किमी की दूरी पर एक गाव है तेलपुर। कहते है पाडीव से कुछ देवडा राजपुतों ने आ कर तेलपुर बसाया था। वो लोग लड़ने में तेज थे अतः सिरोही के महाराजा उनको तेज कह कर बुलाते थे। इसी लिये उस समय तेलपुर का नाम तेजपुर रखा था। लेकिन धीरे-धीरे कालंतर में उस का नाम तेलपुर हो गया। .

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सुमेरपुर

सुमेरपुर राजस्थान राज्य के पाली जिले की सुमेरपुर तहसील का एक कस्बा है, जो कि सिरोही जिले की सीमा रेखा पर स्थित है। यह शहर जवाई नदी के किनारे बसा हुआ है। .

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सूर्य मन्दिर, भाटुन्द, बाली,राजस्थान

भाटुन्द गाँव में यह सूर्य मन्दिर बहुत प्राचीन है। यह मन्दिर राजा भोज ने 10 - 11 सदी मे बनाया था, मन्दिर तालाब के किनारे पर स्थित है।.

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सूर्य मंदिर

चीन का 'पश्चिमी पवित्र द्वार' जो एक सूर्य मन्दिर है। सूर्य देवता को समर्पित भवनों या मन्दिरों को सूर्य मंदिर कहते हैं। इस तरह के मंदिर भारत के अलावा अन्य संस्कृतियों में भी पाये जाते हैं, जैसे चीन, मिस्र, और पेरू। .

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हनुमान

हनुमान (संस्कृत: हनुमान्, आंजनेय और मारुति भी) परमेश्वर की भक्ति (हिंदू धर्म में भगवान की भक्ति) की सबसे लोकप्रिय अवधारणाओं और भारतीय महाकाव्य रामायण में सबसे महत्वपूर्ण व्यक्तियों में प्रधान हैं। वह कुछ विचारों के अनुसार भगवान शिवजी के ११वें रुद्रावतार, सबसे बलवान और बुद्धिमान माने जाते हैं। रामायण के अनुसार वे जानकी के अत्यधिक प्रिय हैं। इस धरा पर जिन सात मनीषियों को अमरत्व का वरदान प्राप्त है, उनमें बजरंगबली भी हैं। हनुमान जी का अवतार भगवान राम की सहायता के लिये हुआ। हनुमान जी के पराक्रम की असंख्य गाथाएं प्रचलित हैं। इन्होंने जिस तरह से राम के साथ सुग्रीव की मैत्री कराई और फिर वानरों की मदद से राक्षसों का मर्दन किया, वह अत्यन्त प्रसिद्ध है। ज्योतिषीयों के सटीक गणना के अनुसार हनुमान जी का जन्म 1 करोड़ 85 लाख 58 हजार 112 वर्ष पहले तथा लोकमान्यता के अनुसार त्रेतायुग के अंतिम चरण में चैत्र पूर्णिमा को मंगलवार के दिन चित्रा नक्षत्र व मेष लग्न के योग में सुबह 6.03 बजे भारत देश में आज के झारखंड राज्य के गुमला जिले के आंजन नाम के छोटे से पहाड़ी गाँव के एक गुफ़ा में हुआ था। इन्हें बजरंगबली के रूप में जाना जाता है क्योंकि इनका शरीर एक वज्र की तरह था। वे पवन-पुत्र के रूप में जाने जाते हैं। वायु अथवा पवन (हवा के देवता) ने हनुमान को पालने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। मारुत (संस्कृत: मरुत्) का अर्थ हवा है। नंदन का अर्थ बेटा है। हिंदू पौराणिक कथाओं के अनुसार हनुमान "मारुति" अर्थात "मारुत-नंदन" (हवा का बेटा) हैं। हनुमान प्रतिमा .

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जालौर

जालौर राजस्थान राज्य का एक एतिहसिक शहर है। यह शहर प्राचीनकाल में 'जाबालिपुर' के नाम से जाना जाता था। जालौर जिला मुख्यालय यहाँ स्थित है। लूनी नदी की उपनदी सुकरी के दक्षिण में स्थित जालौर राजस्थान का ऐतिहासिक जिला है। पहलें बहुत बड़ी रियासतों मे ऐक थी। जालौर रियासत, चित्तौड़गढ़ रियासत के बाद मे अपना स्थान रखती थी। पच्चीमी राजस्थान (राजपुताना) मे प्रमुख रियासत थी। .

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जवाई बाँध

जवाई बाँध राजस्थान के पाली ज़िले में स्थित एक बाँध है। इसका निर्माण १९४६ ईस्वी में जोधपुर रियासत के महाराजा उम्मेद सिंह ने करवाया था। रियासत काल में इस बाँध का निर्माण स्टेट के इंजीनियर एडगर व फर्गुसन की देखरेख में हुआ था। राजस्थान के गठन के पश्चात सन १९५६ में यह बाँध मुख्य अभियंता मोती सिंह की देखरेख में पूर्ण हुआ। वर्तमान में जवाई बाँध जोधपुर और पाली ज़िले का मुख्य पेयजल स्रोत है। इसके अलावा जवाई बाँध को मारवाड़ का अमृत सरोवर या मान सरोवर कहा जाता है। जवाई बाँध की जल आपूर्ति के लिए उदयपुर की कोटड़ा तहसील में सेई परियोजना बनाई गई। .

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जवाईबांध रेल्वे स्टेशन

भाटुन्द से 19 किलोमीटर दूर जवाईबांध रेल्वे स्टेशन पच्चीम में हैं।.

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जौहर

The Burning of the Rajput women, during the siege of Chitor जौहर पुराने समय में भारत में राजपूत स्त्रियों द्वारा की जाने वाली क्रिया थी। जब युद्ध में हार निश्चित हो जाती थी तो पुरुष मृत्युपर्यन्त युद्ध हेतु तैयार होकर वीरगति प्राप्त करने निकल जाते थे तथा स्त्रियाँ जौहर कर लेती थीं अर्थात जौहर कुंड में आग लगाकर खुद भी उसमें कूद जाती थी। जौहर कर लेने का कारण युद्ध में हार होने पर शत्रु राजा द्वारा हरण किये जाने का भय होता था। जौहर क्रिया में राजपूत स्त्रियाँ जौहर कुंड को आग लगाकर उसमें स्वयं का बलिदान कर देती थी। जौहर क्रिया की सबसे अधिक घटनायें भारत पर मुगल आदि बाहरी आक्रमणकारियों के समय हुयी। ये मुस्लिम आक्रमणकारी हमला कर हराने के पश्चात स्त्रियों को लूट कर उनका शीलभंग करते थे। इसलिये स्त्रियाँ हार निश्चित होने पर जौहर ले लेती थी। इतिहास में जौहर के अनेक उदाहरण मिलते हैं। हिन्दी के ओजस्वी कवि श्यामनारायण पाण्डेय ने अपना प्रसिद्ध महाकाव्य जौहर चित्तौड की महारानी पद्मिनी के वीरांगना चरित्र को चित्रित करने के उद्देश्य को लेकर ही लिखा थाDas, Sisir Kumar, "A Chronology of Literary Events / 1911–1956", in Das, Sisir Kumar and various,, 1995, published by Sahitya Akademi, ISBN 978-81-7201-798-9, retrieved via Google Books on December 23, 2008।.राजस्थान की जौहर परम्परा पर आधारित उनका यह महाकाव्य हिन्दी जगत में काफी चर्चित रहा। .

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वाराही

वाराही हिन्दू धर्म की सप्तमातृका में से एक है। यह लक्ष्मी का एक रूप है जो विष्णु के वराहावतार की जीवनसाथी है। इनका शीश जंगली शूकर का है। श्रेणी:हिन्दू देवियाँ.

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अरावली

अरावली पर्वत श्रंखला की तुलना अमेरिका के अल्पेशियन पर्वतो से की जाती है अरावली भारत के पश्चिमी भाग राजस्थान में स्थित एक पर्वतमाला है। भारत की भौगोलिक संरचना में अरावली प्राचीनतम पर्वत है। यह संसार की सबसे प्राचीन पर्वत श्रृंखला है जो राजस्थान को उत्तर से दक्षिण दो भागों में बांटती है। अरावली का सर्वोच्च पर्वत शिखर सिरोही जिले में गुरुशिखर (1722 /1727 मी.) है, जो माउंट आबू में है। अरावली पर्वत श्रंखला की कुल लम्बाई गुजरात से दिल्ली तक ६९२ किलीमीटर है, अरावली पर्वत श्रंखला का लगभग ८० % विस्तार राजस्थान में है, दिल्ली में स्थित राष्ट्रपति भवन रायशेला पहाड़ी पर बना हुआ है जो अरावली का की भाग है, अरावली की औसत ऊंचाई ९३० मीटर है तथा अरावली के दक्षिण की ऊंचाई व चौड़ाई सर्वाधिक है, अरावली या अर्वली उत्तर भारतीय पर्वतमाला है। राजस्थान राज्य के पूर्वोत्तर क्षेत्र से गुज़रती 550 किलोमीटर लम्बी इस पर्वतमाला की कुछ चट्टानी पहाड़ियाँ दिल्ली के दक्षिण हिस्से तक चली गई हैं। शिखरों एवं कटकों की श्रृखलाएँ, जिनका फैलाव 10 से 100 किलोमीटर है, सामान्यत: 300 से 900 मीटर ऊँची हैं। यह पर्वतमाला, दो भागों में विभाजित है- सांभर-सिरोही पर्वतमाला- जिसमें माउण्ट आबू के गुरु शिखर (अरावली पर्वतमाला का शिखर, ऊँचाई 1,722 मीटर) सहित अधिकतर ऊँचे पर्वत हैं। सांभर-खेतरी पर्वतमाला- जिसमें तीन विच्छिन्न कटकीय क्षेत्र आते हैं। अरावली पर्वतमाला प्राकृतिक संसाधनों (एवं खनिज़) से परिपूर्ण है और पश्चिमी मरुस्थल के विस्तार को रोकने का कार्य करती है। यह अनेक प्रमुख नदियों- बाना, लूनी, साखी एवं साबरमती का उदगम स्थल है। इस पर्वतमाला में केवल दक्षिणी क्षेत्र में सघन वन हैं, अन्यथा अधिकांश क्षेत्रों में यह विरल, रेतीली एवं पथरीली (गुलाबी रंग के स्फ़टिक) है। अरावली की अन्य उच्च चोटियां:- १ गुरु शिखर - सिरोही (1722 m) २ सेर - सिरोही (1597m) ३ दिलवाडा - सिरोही(इसे हाल ही में जोड़ा गया है, इसी पर्वत पर प्रसिद्ध जैन मंदिर स्थित हैं).

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अलाउद्दीन खिलजी

अलाउद्दीन खिलजी (वास्तविक नाम अली गुरशास्प 1296-1316) दिल्ली सल्तनत के खिलजी वंश का दूसरा शासक था। उसका साम्राज्य अफगानिस्तान से लेकर उत्तर-मध्य भारत तक फैला था। इसके बाद इतना बड़ा भारतीय साम्राज्य अगले तीन सौ सालों तक कोई भी शासक स्थापित नहीं कर पाया था। मेवाड़ चित्तौड़ का युद्धक अभियान इतिहास की एक महत्वपूर्ण घटना है। ऐसा माना जाता है कि वो चित्तौड़ की रानी पद्मिनी की सुन्दरता पर मोहित था। इसका वर्णन मलिक मुहम्मद जायसी ने अपनी रचना पद्मावत में किया है। उसके समय में उत्तर पूर्व से मंगोल आक्रमण भी हुए। उसने उसका भी डटकर सामना किया। अलाउद्दीन ख़िलजी के बचपन का नाम अली 'गुरशास्प' था। जलालुद्दीन खिलजी के तख्त पर बैठने के बाद उसे 'अमीर-ए-तुजुक' का पद मिला। मलिक छज्जू के विद्रोह को दबाने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाने के कारण जलालुद्दीन ने उसे कड़ा-मनिकपुर की सूबेदारी सौंप दी। भिलसा, चंदेरी एवं देवगिरि के सफल अभियानों से प्राप्त अपार धन ने उसकी स्थिति और मज़बूत कर दी। इस प्रकार उत्कर्ष पर पहुँचे अलाउद्दीन खिलजी ने अपने चाचा जलालुद्दीन की हत्या धोखे से 22 अक्टूबर 1296 को खुद से गले मिलते समय अपने दो सैनिकों (मुहम्मद सलीम तथा इख़्तियारुद्दीन हूद) द्वारा करवा दी। इस प्रकार उसने अपने सगे चाचा जो उसे अपने औलाद की भांति प्रेम करता था के साथ विश्वासघात कर खुद को सुल्तान घोषित कर दिया और दिल्ली में स्थित बलबन के लालमहल में अपना राज्याभिषेक 22 अक्टूबर 1296 को सम्पन्न करवाया। .

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