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बाह्यउष्मीय

सूची बाह्यउष्मीय

धूप सेकती हुई जुनोनिया लेमोनियास नामक तितली बाह्यउष्मीय या ऍक्टोथर्म​ (ectotherm) ऐसे जीवों को कहा जाता है जिनकी अंदरूनी प्रक्रियाओं की भूमिका उनके शरीर के तापमान पर नियंत्रण रखने में बहुत कम हो या बिलकुल ही न हो। ऐसे जीव (उदाहरण: मेंढक) अपने बदन में गर्मी रखने के लिए आसपास के वातावरण में मौजूद गरमाहट के स्रोतों का प्रयोग करते हैं। जहाँ गर्मरक्ती प्राणी अपने शरीर का तापमान स्थिर रखने में उर्जा ख़र्च करते हैं वहाँ बाह्यउष्मीय प्राणी अपने शरीर की प्रक्रियाओं को अधिक किफ़ायत​ से चलाते हैं। बाह्यउष्मीय जीव अक्सर अपने आप को गरम करने के लिए धूप में जा बैठते हैं या गरम स्थान ढूंढते हैं।, Peter J. Russell, Paul E. Hertz, Beverly McMillan, pp.

3 संबंधों: नियततापी प्राणी, मेंढक, जीवन

नियततापी प्राणी

उष्मीय तस्वीर: एक शीतरक्ती सांप एक गर्मरक्ती चूहे को खा रहा है नियततापी या गर्मरक्ती (warm-blooded) प्राणियों की ऐसे जातियों को कहा जाता है जिनके रक्त का तापमान अन्य शीतरक्ती जानवरों की तुलना में अधिक होता है और जो अपनी अंदरूनी चयापचय प्रक्रियाओं के द्वारा अपनी ऊष्मीय समस्थिति बहाल रखते हैं। प्राणी-जगत में यह लक्षण पक्षियों और स्तनधारियों (मैमलों) के हैं। गर्मरक्ती जानवर सर्द परिस्थितियों में भी अपना अंदरूनी तापमान ऊँचा रख पाते हैं और वे अक्सर ऐसा ठिठुर कर करते हैं, जबकि शीतरक्ती जानवरों का तापमान वही हो जाता है जो उनके इर्द-गिर्द के वातावरण का है।, pp.

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मेंढक

मेंढक उभयचर वर्ग का जंतु है जो पानी तथा जमीन पर दोनों जगह रह सकता है। यह एक शीतरक्ती प्राणी है अर्थात् इसके शरीर का तापमान वातावरण के ताप के अनुसार घटता या बढ़ता रहता है। शीतकाल में यह ठंडक से बचने के लिए पोखर आदि की निचली सतह की मिट्टी लगभग दो फुट की गहराई तक खोदकर उसी में पड़ा रहता है। यहाँ तक कि कुछ खाता भी नहीं है। इस क्रिया को शीतनिद्रा या शीतसुषुप्तावस्था कहते हैं। इसी तरह की क्रिया गर्मी के दिनों में होती है। ग्रीष्मकाल की इस निष्क्रिय अवस्था को ग्रीष्मसुषुप्तावस्था कहते हैं। मेंढक के चार पैर होते हैं। पिछले दो पैर अगले पैरों से बड़े होतें हैं। जिसके कारण यह लम्बी उछाल लेता है। अगले पैरों में चार-चार तथा पिछले पैरों में पाँच-पाँच झिल्लीदार उँगलिया होतीं हैं, जो इसे तैरने में सहायता करती हैं। मेंढकों का आकार ९.८ मिलीमीटर (०.४ ईन्च) से लेकर ३० सेण्टीमीटर (१२ ईन्च) तक होता है। नर साधारणतः मादा से आकार में छोटे होते हैं। मेंढकों की त्वचा में विषग्रन्थियाँ होतीं हैं, परन्तु ये शिकारी स्तनपायी, पक्षी तथा साँपों से इनकी सुरक्षा नहीं कर पाती हैं। भेक या दादुर (टोड) तथा मेंढक में कुछ अंतर है जैसे दादुर अधिकतर जमीन पर रहता है, इसकी त्वचा शुष्क एवं झुर्रीदार होती है जबकि मेंढक की त्वचा कोमल एवं चिकनी होती है। मेंढक का सिर तिकोना जबकि टोड का अर्द्ध-वृत्ताकार होता है। भेक के पिछले पैर की अंगुलियों के बीच झिल्ली भी नहीं मिलती है। परन्तु वैज्ञानिक वर्गीकरण की दृष्टि से दोनों बहुत हद तक समान जंतु हैं तथा उभयचर वर्ग के एनुरा गण के अन्तर्गत आते हैं। मेंढक प्रायः सभी जगहों पर पाए जाते हैं। इसकी ५००० से अधिक प्रजातियों की खोज हो चुकी है। वर्षा वनों में इनकी संख्या सर्वाधिक है। कुछ प्रजातियों की संख्या तेजी से कम हो रही है। .

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जीवन

हमारे जन्म से मृत्यु के बीच की अवधि ही जीवन कहलाती है। लेकिन हमारा जन्म क्या हमारी इच्छा से होता है? नहीं, यह तो मात्र नर और मादा के संभोग का परिणाम होता है जो प्रकृति के नियम के अंतर्गत है। इसके अतिरिक्त जीवन का मुख्य अंग एक चेतन तत्त्व है जो जीवन की सभी क्रियाओं का साक्षी होता है। .

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यहां पुनर्निर्देश करता है:

बाह्यउष्मीयता, असमतापी जीव

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