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बार्कहाउजेन कसौटी

सूची बार्कहाउजेन कसौटी

फीडबैक प्रवर्धक का ब्लॉक आरेख - इसमें बार्कहाउजेन की कसौटी लागू होती है। इसमें एक प्रवर्धक अवयव ''A'' है जिसके आउटपुट ''vo'' को फीडबैक नेटवर्क ''ß(jω)'' के द्वारा पुनर्निवेशित (fed back) किया गया है। बार्कहाउजेन कसौटी (Barkhausen criterion) एक शर्त या सम्बन्ध है जो बताती है कि कोई एलेक्ट्रानिक परिपथ किस स्थिति में दोलन कर सकेगा (और किस स्थिति में नहीं)। इसे जर्मनी के भौतिकशास्त्री एच जी बार्कहाउजेन ने सन् १९२१ में प्रतिपादित किया था। एलेक्ट्रानिक आसिलेटरों के डिजाइन में इसका बहुतायत से प्रयोग होता है। इसके साथ ही ऋणात्मक पुनर्निवेशयुक्त परिपथों (negative feedback) की डिजाइन में भी इसका खूब इस्तेमाल होता है। (जैसे आप-एम्प) बार्कहाउजेन की कसौटी उन परिपथों पर लागू होती है जिनमें फीडबैक लूप उपस्थित हो। इसके अनुसार, ध्यातब्य है कि बार्कहाउजेन कसौटी दोलन के लिये केवल आवश्यक शर्त है किन्तु यह पर्याप्त शर्त नहीं है। अर्थात कुछ ऐसे परिपथ भी हो सकते हैं जो इस कसौटी पर खरे उतरते हैं किन्तु दोलन नहीं करते। इसके विपरीत नाइक्विस्ट की कसौटी किसी लूप के स्थायित्व/अस्थायित्व के लिये आवश्यक एवं पर्याप्त शर्त की व्याख्या करती है। .

7 संबंधों: डिज़ाइन, दोलन, धनात्मक पुनःभरण, नाइक्विस्ट स्थायित्व निकष, नकारात्मक प्रतिपुष्‍टि, लब्धि, इलेक्ट्रॉनिक दोलक

डिज़ाइन

अभिकल्प या डिजाइन (Design) शब्द का उपयोग प्रयुक्त कलाओं, अभियांत्रिकी, वास्तुशिल्प एवं इसी तरह के अन्य सृजनात्मक कार्यों एवं क्षेत्रों में किया जाता है। इसे क्रिया के रूप में एवं संज्ञा के रूप में प्रयोग किया जाता है। क्रिया के रूप में डिजाइन का अर्थ उस प्रक्रिया से है जो किसी उत्पाद, ढांचा, तन्त्र या सामान को अस्तित्व में लाने या उसके विकास के लिये अपनायी जाती है। संज्ञा के रूप में डिजाइन शब्द दो अर्थों में प्रयुक्त होता है-.

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दोलन

इस कमानी व भार के भौतिक तंत्र में दोलन देखा जा सकता है दोलन (oscillation) एक लगातार दोहराता हुआ बदलाव होता है, जो किसी केन्द्रीय मानक स्थिति से बदलकर किसी दिशा में जाता है लेकिन सदैव लौटकर केन्द्रीय स्थिति में आता रहता है। अक्सर केन्द्रीय स्थिति से हटकर दो या दो से अधिक ध्रुवीय स्थितियाँ होती हैं और दोलती हुई वस्तु या माप इन ध्रुवों के बीच घूमता रहता है लेकिन किन्ही दो ध्रुवों के बीच की दूरी तय करते हुए केन्द्रीय स्थिति से अवश्य गुज़रता है। किसी भौतिक तंत्र में हो रहे दोलन को अक्सर कम्पन (vibration) कहा जाता है। .

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धनात्मक पुनःभरण

यदि किसी प्रणाली में धनात्मक पुनःभरण (positive feedback) का गुण मौजूद होता है तो ऐसा तंत्र उसके इनपुट पर आने वाले ब्याघातों (डिस्टर्बैंसेस) के आयाम को और भी अधिक बड़ा बना देते हैं। दूसरे शब्दों में 'क' के कारण अधिक 'ख' उत्पन्न होता है जो और अधिक 'क' को उत्पन्न करता है और वृद्धि का यह क्रम तब तक जारी रहता है जब तक प्रणाली में किसी कारण 'तृप्ति' (सैचुरेशन) न आ जाय। धनात्मक पुनर्भरण का उल्टा 'ऋणात्मक पुनर्भरण' होता है। ऋणात्मक पुनर्भरण से युक्त प्रणाली के इन्पुट पर किसी कारण से कोई संकेत आ जाय तो यह प्रणाली इस तरह व्यवहार करती है कि इनपुट और भी कम हो जाता है। धनात्मक पुनर्भरण के परिणामस्वरूप प्रणाली के कम्पन (oscillations) की इक्सपोनेंशियल वृद्धि होती है। अन्त में प्रायः सभी प्रणालियाँ अरैखिक क्षेत्र (non-linear region) में पहुँच जाती हैं और 'गेन' की कमी के कारण प्रणाली अन्ततः स्थिर (स्टेबल) हो जाती है या इसके पहले ही प्रणाली नष्ट हो जाती है। धनात्मक पुनर्भरण युक्त प्रणाली अन्ततः किसी स्थिर अवस्था में पहुँचकर उसमें 'लैच' (तालाबन्द) हो सकती है। कई जगह धनात्मक पुनर्भरण का उपयोग से इष्ट परिणाम प्राप्त किये जाते हैं। डिजिटल इलेक्ट्रानिकी में धनात्मक पुनर्भरण के द्वारा लॉगिक परिपथों के आउटपुट को 'बीच के वोल्टेज' से दूर भगाकर '1' या '0' की ओर धकेल दिया जाता है। दूसरी तरफ अर्धचालक युक्तियों में 'थर्मल रन-अवे' की समस्या भी धनात्मक पुनर्भरण का ही एक रूप है जिसके कारण युक्तियाँ गरम होकर नष्ट हो जाती हैं। रासायनिक अभिक्रियाओं में धनात्मक पुनर्भरण की स्थिति आने पर अभिक्रिया बहुत तेज गति के बढ़ती है जिससे कुछ स्थितियों में विस्फोट भी हो सकता है। यांत्रिक डिजाइनों में धनात्मक पुनर्भरण के कारण 'टिपिंग प्वाइंट' की स्थिति निर्मित हो सकती है। किसी पुल के कम्पन में धनात्मक पुनर्भरण आ जाय तो वह ढह सकता है। आर्थिक प्रणाली में धनात्मक पुनर्भरण से 'तेजी' (बूम) के बाद 'मंदी' (बस्ट) और फिर 'तेजी' की स्थिति देखी जा सकती है। .

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नाइक्विस्ट स्थायित्व निकष

नियंत्रण सिद्धान्त एवं स्थायित्व सिद्धान्त में, नाइक्विस्ट स्थायित्व निकष (Nyquist stability criterion) नियंन्त्रण प्रणालियों के स्थायित्व से सम्बन्धित एक निकष (कसौटी) है। इसका उपयोग इलेक्ट्रॉनिकी और नियंत्रण प्रणाली इंजीनियरी में एवं अन्य क्षेत्रों में बहुतायत से होता है। यद्यपि नाइक्विस्ट का निकष सर्वाधिक सामान्य स्थायित्व परीक्षणों में से एक है, फिर भी यह केवल समय के साथ अपरिवर्तनशील रैखिक (LTI) प्रणालियों के लिये है। इस निकष का आविष्कार स्वीडेन-अमेरिकी विद्युत इंजीनियर हैरी नाइक्विस्ट ने १९३२ में बेल्ल टेलीफोन प्रयोगशाला में किया था। on .

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नकारात्मक प्रतिपुष्‍टि

इस योजनामूलक चित्र में यदि कुल लब्धि (AB) का मान ऋणात्मक है तो यहाँ नकारात्मक प्रतिपुष्टि है। यदि आउटपुट का कुछ अंश लेकर आउटपुट से पहले किसी बिन्दु पर इस प्रकार जोड़ा (या घटाया) जाय कि आउटपुट पहले से कम हो जाय तो ऐसे प्रतिपुष्टि (फीडबैक) को नकारात्मक प्रतिपुष्टि या ह्रासक प्रतिपुष्टि (निगेटिव फीडबैक) कहते हैं। इलेक्ट्रानिक्स में इसका उपयोग खूब होता है। उदाहरण के लिये, प्रवर्धकों में निगेटिव फीडबैक का उपयोग करने से अनेक लाभ होते हैं। .

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लब्धि

प्रवर्धकों की लब्धि, इनपुट संकेत पर निर्भर करती है। अतः लब्धि का ग्राफ आवृत्ति के फलन के रूप में बनाया जाता है। इलेक्ट्रॉनिक्स में किसी निर्बल संकेत के आयाम (या शक्ति) को बढ़ाना प्रवर्धन (Amplification) कहलाता है। वह परिपथ जो किसी संकेत का आवर्धन करता है, प्रवर्धक कहलाता है। आमतौर पर किसी प्रणाली के संकेत आउटपुट और संकेत इनपुट के अनुपात को प्रवर्धक का प्रवर्धन गुणांक (Amplification factor) अथवा लब्धि (Gain) अथवा अभिलाभ कहते हैं। इसे उसी अनुपात के दशमलव लघुगणक के रूप में भी परिभाषित किया जा सकता है। .

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इलेक्ट्रॉनिक दोलक

क्रॉस कपल्ड एल-सी दोलक, जिसका आउटपुट आरेख में ऊपर दिया है इलेक्ट्रॉनिक दोलक वह इलेक्ट्रॉनिक युक्ति है जो आवर्ती इलेक्टानिक संकेत उत्पन्न करती है। प्रायः ये संकेत साइन तरंग या वर्ग तरंग के होते हैं। निम्न आवृत्ति दोलक वह इलेक्ट्रॉनिक युक्ति होती है, जिसमें प्रत्यावर्ती धारा का उत्पादन होता है। ये धारा २० हर्ट्ज़ से कम आवृत्ति वाली होती है। .

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