3 संबंधों: पेशवा बाजीराव द्वितीय, बालाजी बाजी राव, बाजीराव प्रथम।
पेशवा बाजीराव द्वितीय
बाजीराव द्वितीय बाजीराव द्वितीय (१७७५ – 1 जनवरी, १८५१), सन १७९६ से १८१८ तक मराठा साम्राज्य के पेशवा थे। इनके समय में मराठा साम्राज्य का पतन होना शुरू हुआ। इनके शासनकाल में अंग्रेजों के साथ संघर्ष शुरू हुआ। बाजीराव द्वितीय आठवाँ और अन्तिम पेशवा (1796-1818) था। वह रघुनाथराव (राघोवा) का पुत्र था। अपने प्रधानमंत्री नाना फड़नवीस से बाजीराव द्वितीय सदा नफ़रत करता रहा। नाना फड़नवीस की मृत्यु के बाद वह स्वयं ही मराठा साम्राज्य की सत्ता सम्भालना चाहता था। बाजीराव द्वितीय एक क़ायर और विश्वासघाती व्यक्ति था, जिसने अंग्रेज़ों की सहायता प्राप्त करके पेशवा का पद प्राप्त किया था। परन्तु अंग्रेज़ों के साथ भी वह सच्चा सिद्ध नहीं हुआ। उसकी धोखेबाज़ी और बेइमानी के कारण अंग्रेज़ों ने उसे बंदी बनाकर बिठूर भेज दिया, जहाँ 1853 ई. में उसकी मृत्यु हो गई। बाजीराव द्वितीय ने अंग्रेज़ों से मित्रता करके उनकी सहायता से 'पेशवा' का पद प्राप्त किया था और उसके लिए कई मराठा क्षेत्र अंग्रेज़ों को दे दिये। बाजीराव द्वितीय स्वार्थी और अयोग्य शासक था तथा महत्त्वाकांक्षी होने के कारण अपने प्रधानमंत्री नाना फड़नवीस से ईर्ष्या करता था। फड़नवीस की मृत्यु 1800 ई. में हो गई और बाजीराव स्वयं ही सत्ता सम्भालने के लिए आतुर हो उठा। लेकिन वह सैनिक गुणों से रहित और व्यक्तिगत रूप से क़ायर था और समझता था, कि केवल छल कपट से ही अपने लक्ष्य को प्राप्त किया जा सकता है। .
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बालाजी बाजी राव
बालाजी बाजी राव (8 दिसम्बर 1720 – 23 जून 1761) को नाना साहेब के नाम से भी जाना जाता है। वे मराठा साम्राज्य के पेशवा (प्रधानमंत्री) थे। इनके शासनकाल में मराठा साम्राज्य अपने चरम उत्कर्ष पर पहुँचा। श्रेणी:मराठा साम्राज्य.
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बाजीराव प्रथम
पेशवा बाजीराव प्रथम (१७०० - १७४०) महान सेनानायक थे। वे १७२० से १७४० तक मराठा साम्राज्य के चौथे छत्रपति शाहूजी महाराज के पेशवा (प्रधानमन्त्री) रहे। इनको 'बाजीराव बल्लाल' तथा 'थोरले बाजीराव' के नाम से भी जाना जाता है। इन्हें प्रेम से लोग अपराजित हिन्दू सेनानी सम्राट भी कहते थे। इन्होंने अपने कुशल नेतृत्व एवं रणकौशल के बल पर मराठा साम्राज्य का विस्तार (विशेषतः उत्तर भारत में) किया। इसके कारण ही उनकी मृत्यु के २० वर्ष बाद उनके पुत्र के शासनकाल में मराठा साम्राज्य अपने चरमोत्कर्ष पर पहुँच सका। बाजीराव प्रथम को सभी ९ महान पेशवाओं में सर्वश्रेष्ठ माना जाता है। इनके पिता बालाजी विश्वनाथ पेशवा भी शाहूजी महाराज के पेशवा थे। बचपन से बाजीराव को घुड़सवारी करना, तीरंदाजी, तलवार भाला, बनेठी, लाठी आदि चलाने का शौक था। १३-१४ वर्ष की खेलने की आयु में बाजीराव अपने पिताजी के साथ घूमते थे।। वेबदुनिया उनके साथ घूमते हुए वह दरबारी चालों व रीतिरिवाजों को आत्मसात करते रहते थे।यह क्रम १९-२० वर्ष की आयु तक चलता रहा। जब बाजीराव के पिता का अचानक निधन हो गया तो मात्र बीस वर्ष की आयु के बाजीराव को शाहूजी महाराज ने पेशवा बना दिया। जब महाराज शाहू ने १७२० में बालाजी विश्वनाथ के मृत्यूपरांत उसके १९ वर्षीय ज्येष्ठपुत्र बाजीराव को पेशवा नियुक्त किया तो पेशवा पद वंशपरंपरागत बन गया। अल्पवयस्क होते हुए भी बाजीराव ने असाधारण योग्यता प्रदर्शित की। पेशवा बनने के बाद अगले बीस वर्षों तक बाजीराव मराठा साम्राज्य को बढ़ाते रहे। उनका व्यक्तित्व अत्यंत प्रभावशाली था; तथा उनमें जन्मजात नेतृत्वशक्ति थी। अपने अद्भुत रणकौशल, अदम्य साहस और अपूर्व संलग्नता से, तथा प्रतिभासंपन्न अनुज श्रीमान चिमाजी साहिब अप्पा के सहयोग द्वारा शीघ्र ही उसने मराठा साम्राज्य को भारत में सर्वशक्तिमान् बना दिया।हिन्दी विश्वकोश, भाग-7, नागरी प्रचारिणी सभा, वाराणसी, संस्करण 1966, पृष्ठ 339.
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