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बराज

सूची बराज

एक बराज और उसके फाटक कटक का जोब्रा बराज बराज (barrage) एक विशेष प्रकार का बांध ही है जिसमें बड़े-बड़े द्वारों (गेट) की शृंखला होती है। इन द्वारों को आवश्यकतानुसार बन्द किया या खोला जा सकता है और इस प्रकार इससे होकर बहने वाले जल की मात्रा का नियंत्रण किया जा सकता है। बराजों द्वारा नदियों के प्रवाह तथा उनके जलस्तर को नियंत्रित करके उन्हें सिंचाई के लिये उपयोग किया जाता है। बांध और बराज में मुख्य अन्तर यह है कि बांध निर्माण का मुख्य उद्देश्य किसी जलाशय में जल के भण्डारण के लिये किया जाता है जिसके द्वारा जल का स्तर पर्याप्त रूप से ऊँचा उठ जाता है। .

4 संबंधों: बाँध, बंधिका, सिंचाई, ज्वार-भाटा

बाँध

केरल का करापुजा बांध: यह मिट्टी का बांध है। रोमनकाल में बना और अब तक उपयुक्त बाँध (स्पेन) बाँध एक अवरोध है जो जल को बहने से रोकता है और एक जलाशय बनाने में मदद करता है। इससे बाढ़ आने से तो रुकती ही है, जमा किये गया जल सिंचाई, जलविद्युत, पेय जल की आपूर्ति, नौवहन आदि में भी सहायक होती है। .

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बंधिका

बंधिका या उद्रोध बंधिका या उद्रोध (अंग्रेजी: Weir/वीयर, तमिल: अनई कट्टू) का अर्थ है 'रोक'। नदी के आर पास ऐसा बाँध या रोक जिसके कारण नदी में एक ओर जल का तल ऊँचा हो जाए और जिसके ऊपर से अतिरिक्त जल बह सके, उद्रोध कहलाता है। मछुए लोग नदी में मछली पकड़ने के लिए लकड़ियों की जो दीवार खड़ी कर लेते हैं वह भी कहीं-कहीं वीयर ही कहलाती है। किंतु सामान्यत: इस शब्द का इंजीनियरी में ही प्रयोग होता है। जहाँ उद्देश्य यह रहता है कि जल को पूर्णतया या प्राय: पूर्णतया रोककर जलाशय बना लिया जाए वहाँ डेम या बराज शब्द का प्रयोग किया जाता है। इसे हिंदी में 'बाँध' या 'बँधारा' कहते हैं; उदाहरणत: रेणु बाँध (रेहँड डैम) जिसमें बरसाती पानी रोक रखा जाता है। .

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सिंचाई

गेहूं की सिंचाई पंजाब में सिंचाईसिंचाई मिट्टी को कृत्रिम रूप से पानी देकर उसमे उपलब्ध जल की मात्रा में वृद्धि करने की क्रिया है और आमतौर पर इसका प्रयोग फसल उगाने के दौरान, शुष्क क्षेत्रों या पर्याप्त वर्षा ना होने की स्थिति में पौधों की जल आवश्यकता पूरी करने के लिए किया जाता है। कृषि के क्षेत्र में इसका प्रयोग इसके अतिरिक्त निम्न कारणें से भी किया जाता है: -.

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ज्वार-भाटा

धरती पर स्थित सागरों के जल-स्तर का सामान्य-स्तर से ऊपर उठना ज्वार तथा नीचे गिरना भाटा कहलाता है। ज्वार-भाटा की घटना केवल सागर पर ही लागू नहीं होती बल्कि उन सभी चीजों पर लागू होतीं हैं जिन पर समय एवं स्थान के साथ परिवर्तनशील गुरुत्व बल लगता है। (जैसे ठोस जमीन पर भी) पृथ्वी, चन्द्रमा और सूर्य की पारस्परिक गुरुत्वाकर्षण शक्ति की क्रियाशीलता ही ज्वार-भाटा की उत्पत्ति का प्रमुख कारण हैं। .

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