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बचाव (वित्त)

सूची बचाव (वित्त)

वित्त में बचाव, किसी व्यक्ति के ऋण जोखिम को कम करने के उद्देश्य से बाज़ार में स्थापित एक ऐसी स्थिति है, जो अवांछित जोखिम के प्रति, अन्य बाज़ार की किसी प्रतिकूल स्थिति में मूल्यों के उतार-चढ़ाव के मामले में, ऋण जोखिम के प्रति-संतुलन का प्रयास है। इसे हासिल करने के लिए बीमा पॉलिसी, वायदा संविदा, विनिमय, विकल्प संविदा, काउंटर पर कई तरह से शेयरों की ख़रीद-बिक्री और व्युत्पन्न उत्पाद और संभवतः सबसे लोकप्रिय भावी संविदाएं जैसे कई विशिष्ट वित्तीय साधन मौजूद हैं। 1800 के दशक में कृषि पण्य क़ीमतों में पारदर्शी, मानक और कुशल बचाव-व्यवस्था को अनुमत करने के लिए सार्वजनिक वायदा सट्टा बाज़ार स्थापित किए गए; अब इनमें ऊर्जा, बहुमूल्य धातु, विदेशी-मुद्रा के मूल्यों, तथा ब्याज दर उतार-चढ़ाव के लिए बचाव-व्यवस्था हेतु भावी संविदाओं को शामिल करने के लिए, इन्हें विस्तृत किया गया। .

14 संबंधों: ऊर्जा, प्रतिद्वंद्वी (१९७२ फ़िल्म), बहुमूल्य धातु, ब्याज दर, बीमा, मुद्रा (भाव भंगिमा), मुद्रा विनिमय, शिलारस, सट्टा, सम्पत्ति, जोखिम, वित्त, विनिमय, अंश (वित्त)

ऊर्जा

दीप्तिमान (प्रकाश) ऊर्जा छोड़ता हैं। भौतिकी में, ऊर्जा वस्तुओं का एक गुण है, जो अन्य वस्तुओं को स्थानांतरित किया जा सकता है या विभिन्न रूपों में रूपांतरित किया जा सकता हैं। किसी भी कार्यकर्ता के कार्य करने की क्षमता को ऊर्जा (Energy) कहते हैं। ऊँचाई से गिरते हुए जल में ऊर्जा है क्योंकि उससे एक पहिये को घुमाया जा सकता है जिससे बिजली पैदा की जा सकती है। ऊर्जा की सरल परिभाषा देना कठिन है। ऊर्जा वस्तु नहीं है। इसको हम देख नहीं सकते, यह कोई जगह नहीं घेरती, न इसकी कोई छाया ही पड़ती है। संक्षेप में, अन्य वस्तुओं की भाँति यह द्रव्य नहीं है, यद्यापि बहुधा द्रव्य से इसका घनिष्ठ संबंध रहता है। फिर भी इसका अस्तित्व उतना ही वास्तविक है जितना किसी अन्य वस्तु का और इस कारण कि किसी पिंड समुदाय में, जिसके ऊपर किसी बाहरी बल का प्रभाव नहीं रहता, इसकी मात्रा में कमी बेशी नहीं होती। .

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प्रतिद्वंद्वी (१९७२ फ़िल्म)

प्रतिद्वंद्वी 1972 में बनी हिन्दी भाषा की फिल्म है। .

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बहुमूल्य धातु

क़ीमती धातु (Precious metal) ऐसी रासयनिक धातु तत्व होती है जो प्रकृति में दुर्लभ हो और आर्थिक रूप से बहुमूल्य हो। रासायनिक दृष्टि से क़ीमती धातु अन्य तत्वों से कम अभिक्रिया (रियैक्शन) करते हैं। अन्य धातुओं की तुलना में यह अक्सर अधिक चमकीले होते हैं और अधिक मुलायम होने के कारण इन्हें खींचना या मनचाहा आकार देना भी आसान होता है। इन्हें इतिहास में मुद्रा के रूप में बहुत प्रयोग किया गया है लेकिन आधुनिक काल में इन्हें आभूषण, निवेश और औद्योगिक प्रयोगों में ज़्यादा लगाया जाता है। क़ीमती धातुओं में सोना, चाँदी, प्लैटिनम और पैलेडियम अधिक विख्यात हैं, हालांकि कई अन्य धातुएँ भी इस गुट में आती हैं। .

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ब्याज दर

जमा किये गये, उधार दिये गये, या उधार लिये गये किसी धन पर प्रत्येक अवधि (period) में जिस दर से ब्याज लिया/दिया जाता है उसे ब्याज दर (interest rate, या rate of interest) कहते हैं। उदाहरण के लिये, ब्याज दर ८ प्रतिशत वार्षिक हो तो इसका अर्थ है कि प्रत्येक १०० रूपये के जमा पर एक वर्ष में ८ रूपये ब्याज दिया जायेगा। किसी जमा किये/उधार लिये धन पर कुल ब्याज इन बातों पर निर्भर करता है- मूलधन, ब्याज की दर, चक्रवर्धन आवृत्ति (कम्पाउण्डिंग पिरियड), कुल अवधि जिसके लिये धन दिया/लिया गया है। आवर्धन अवधि एक वर्ष, आधा वर्ष, चौथाई वर्ष, एक माह आदि होता है। श्रेणी:वित्त.

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बीमा

बीमा (इंश्योरेंस) उस साधन को कहते हैं जिसके द्वारा कुछ शुल्क (जिसे प्रीमियम कहते हैं) देकर हानि का जोखिम दूसरे पक्ष (बीमाकार या बीमाकर्ता) पर डाला जा सकता है। जिस पक्ष का जोखिम बीमाकर पर डाला जाता है उसे 'बीमाकृत' कहते हैं। बीमाकार आमतौर पर एक कंपनी होती है जो बीमाकृत के हानि या क्षति को बांटने को तैयार रहती है और ऐसा करने में वह समर्थ होती है। बीमा एक प्रकार का अनुबंध (ठेका) है। दो या अधिक व्यक्तियों में ऐसा समझौता जो कानूनी रूप से लागू किया जा सके, अनुबंध कहलाता है। बीमा अनुबंध का व्यापक अर्थ है कि बीमापत्र (पॉलिसी) में वर्णित घटना के घटित होने पर बीमा करनेवाला एक निश्चित धनराशि बीमा करानेवाले व्यक्ति को प्रदान करता है। बीमा करानेवाला जो सामयिक प्रव्याजि (बीमाकिस्त, प्रीमीयम) बीमा करनेवाले को देता रहता है, वही इस अनुबंध का प्रतिदेय है। 'बीमा' शब्द फारसी से आया है जिसका भावार्थ है - 'जिम्मेदारी लेना'। डॉ॰ रघुवीर ने इसका अनुवाद किया है - 'आगोप'। उसका अंग्रेजी पर्याय "इंश्योरेंस" (Insurance) है। बीमा वास्तव में बीमाकर्ता और बीमाकृत के बीच अनुबंध है जिसमें बीमाकर्ता बीमाकृत से एक निश्चित रकम (प्रीमियम) के बदले किसी निश्चित घटना के घटित होने (जैसे कि एक निश्चित आयु की समाप्ति या मृत्यु की स्थिति में) पर एक निश्चित रकम देता है या फिर बीमाकृत की जोखिम से होने वाले वास्तविक हानि की क्षतिपूर्ति करता है। बीमा के आधार के बारे में सोचने पर पता चलता है कि बीमा एक तरह का सहयोग है जिसमें सभी बीमाकृत लोग, जो जोखिम का शिकार हो सकते हैं, प्रीमियम अदा करते हैं जबकि उनमें से सिर्फ कुछ (बहुत कम) को ही, जो वास्तव में नुकसान उठाते हैं, मुआवजा दिया जाता है। वास्तव में जोखिम की संभावना वालों की संख्या अधिक होती है लेकिन किसी निश्चित अवधि में उनमें से केवल कुछ को ही नुकसान होता है। बीमाकर्ता (कंपनी) बीमाकृत पक्षों के नुकसान को शेष बीमाकृत पक्षों में बांटने का काम करती है। .

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मुद्रा (भाव भंगिमा)

---- एक मुद्रा (संस्कृत: मुद्रा, (अंग्रेजी में: "seal", "mark," या "gesture")) हिंदू धर्म और बौद्ध धर्म में एक प्रतीकात्मक या आनुष्ठानिक भाव या भाव-भंगिमा है। जबकि कुछ मुद्राओं में पूरा शरीर शामिल रहता है, लेकिन ज्यादातर मुद्राएं हाथों और उंगलियों से की जाती हैं। एक मुद्रा एक आध्यात्मिक भाव-भंगिमा है और भारतीय धर्म तथा धर्म और ताओवाद की परंपराओं के प्रतिमा शास्त्र व आध्यात्मिक कर्म में नियोजित प्रामाणिकता की एक ऊर्जावान छाप है। नियमित तांत्रिक अनुष्ठानों में एक सौ आठ मुद्राओं का प्रयोग होता है। योग में, आम तौर पर जब वज्रासन की मुद्रा में बैठा जाता है, तब सांस के साथ शामिल शरीर के विभिन्न भागों को संतुलित रखने के लिए और शरीर में प्राण के प्रवाह को प्रभावित करने के लिए मुद्राओं का प्रयोग प्राणायाम (सांस लेने के योगिक व्यायाम) के संयोजन के साथ किया जाता है। नवंबर 2009 में राष्ट्रीय विज्ञान अकादमी में प्रकाशित एक शोध आलेख में दिखाया गया है कि हाथ की मुद्राएं मस्तिष्क के उसी क्षेत्र को उत्तेजित या प्रोत्साहित करती हैं जो भाषा की हैं। .

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मुद्रा विनिमय

मुद्रा विनिमय (कर्रेंसी स्वैप) दो पक्षों के बीच एक मुद्रा में ऋण के विनिमय संबंधी पहलुओं (अर्थात मूलधन और/या ब्याज के भुगतान) का अन्य मुद्रा में ऋण के शुद्ध वर्त्तमान मान वाले समतुल्य पहलुओं के लिए एक विदेशी मुद्रा विनिमय अनुबंध है। देखें विदेशी मुद्रा डेरिवेटिव.

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शिलारस

बिना साफ़ किया शिलारस (कच्चा शिलारस) शिलारस (पेट्रोलियम) एक अत्यधिक उपयोगी पदार्थ हैं, जिसका उपयोग देनिक जीवन में बहुत अधिक होता हैं। शिलारस वास्तव में उदप्रांगारों का मिश्रण होता है। इसका निर्माण भी कोयले की तरह वनस्पतियों के पृथ्वी के नीचे दबने तथा कालांतर में उनके ऊपर उच्च दाब तथा ताप के आपतन के कारण हुआ। प्राकृतिक रूप से पाए जाने वाले शिलारस को अपरिष्कृत तेल (Crude Oil) कहते हैं जो काले रंग का गाढ़ा द्रव होता है। इसके प्रभाजी आसवन (फ्रैक्शनल डिस्टिलेशन) से केरोसिन, पेट्रोल, डीज़ल, प्राकृतिक गैस, वेसलीन,तारकोल ल्यूब्रिकेंट तेल इत्यादि प्राप्त होते हैं। दरअसल जब तेल के भंडार पृथ्वी पर कहीं ढूंढे जाते हैं, तब यह गाढ़े काले रंग का होता है। जिसे क्रूड ऑयल कहा जाता है और इसमें उदप्रांगारों की बहुलता होती है। उदप्रांगारों की खासियत यह होती है कि इनमें मौजूद हाइड्रोजन और प्रांगार के अणु एक दूसरे से विभिन्न श्रृंखलाओं में बंधे होते हैं। ये श्रृंखलाएं तरह-तरह की होती हैं। यही श्रृंखलाएं विभिन्न प्रकार के तेल उत्पादों का स्रोत होती हैं। इनकी सबसे छोटी श्रृंखला मिथेन नामक प्रोडक्ट का आधार बनती है। इनमें लंबी श्रृंखलाओं वाले उदप्रांगारों ठोस जैसे कि मोम या टार नामक उत्पाद का निर्माण करते हैं। सछिद्र चट्टान (4) में शिलारस स्थित है। जब पृथ्वी से तेल खोद कर निकाला जाता है उस वक्त अपरिष्कृत तेल (क्रूड ऑयल) ठोस रूप में होता है। इससे तेल के विभिन्न रूप पाने के लिए अपरिष्कृत तेल में मौजूद उदप्रांगार के विभिन्न चेन को अलग करना पड़ता है। उदप्रांगार के विभिन्न चेनों को अलग करने की प्रक्रिया रासायनिक क्रांस जोड़ने उदप्रांगार कहलाती है। जिसे हम शोधन प्रक्रिया के नाम से जानते हैं। यह शोधन प्रक्रिया शोधन कारखानें (रिफाइनरीज) में होती है। एक तरह से यह शोधन बेहद आसान भी होता है और मुश्किल भी। यह सरल तब होता है जब क्रूड ऑयल में पाए जाने वाले उदप्रांगारों के बारे में पता हो और मुश्किल तब जब इसकी जानकारी नहीं होती है। दरअसल हर प्रकार के उदप्रांगारों का क्वथनांक के, अलग-अलग होता है इस तरह आसवन की प्रक्रिया से उन्हें आसानी से अलग किया जा सकता है। तेल शोधक कारखाना की पूरी प्रक्रिया में यह एक महत्वपूर्ण चरण होता है। दरअसल अपरिष्कृत तेल को अलग-अलग तापमान पर गर्म करके वाष्प एकत्रित करके तथा उसे दोबारा संघनित करके उदप्रांगार की अलग-अलग चेन निकाल ली जाती हैं। तेल शोधक कारखाना (ऑयल रिफाइनरी) में शोधन का यह सबसे सामान्य और पुराना तरीका है। उबलते तापमान का उपयोग करने वाली इस विधि को प्रभाजी आसवन कहते हैं। आसवन का एक तरीका यह भी होता है कि उदप्रांगार की एक लंबी चेन को जैसे का तैसा निकाल लेने के बजाए उसे छोटी-छोटी चेन्स में तोड़कर निकाल लिया जाता है। इस प्रक्रिया को रासायनिक प्रसंस्करण कहते हैं। तो बच्चे अब आप समझ गए होंगे कि पेट्रोल और कैरोसिन के अलावा दूसरे ईंधन कैसे बनते हैं। इस सारी प्रक्रिया में तेल शोधक कारखाना की अहम भूमिका हो .

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सट्टा

मटका या सट्टा एक प्रकार का जुआ है जो भारत के मुंबई में आरम्भ हुआ। आजकल क्रिकेट आदि खेलों में सट्टा लगता है। सट्टा, भारत में अवैध है। मटका के कई प्रकार होते हैं। .

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सम्पत्ति

पूर्वी तथा पश्चिमी समाजों द्वारा संपत्ति का प्रयोग सामाजिक संगठन तथा सामाजिक रहन-सहन के लिए एक अत्यावश्यक वस्तु के रूप में होता रहा है। संपत्ति शब्द का आशय, इससे संबंधित अन्य विचारों से, जिन्हें "वस्तु" या "रेस" (res), "डोमस" (Domus) तथा "स्वामी" (प्रोप्रायटर) आदि शब्दों से व्यक्त किया गया, विकसित हुआ। .

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जोखिम

जोखिम (risk) किसी मूल्य की चीज़ को पाने या खोने की सम्भावना को कहते हैं। जोखिम के कार्यों और प्रक्रियाओं में अनिश्चितता का तत्व उपस्थित होता है। जोखिम एक विस्तृत अवधारणा है जिसका विभिन्न परस्थितियों में विभिन्न प्रकार से विश्लेषण व प्रबंधन किया जाता है। .

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वित्त

सरल रूप में वित्त (Finance) की परिभाषा 'धन या कोश (फण्ड) के प्रबन्धन' के रूप में की जाती है। किन्तु आधुनिक वित्त अनेकों वाणिज्यिक कार्यविधियों का एक समूह है। चूंकि व्यक्ति, व्यापार संस्थान तथा सरकार सभी के काम करने के लिये वित्त अत्यावश्यक है, इसलिये वित्त के क्षेत्र को भी तीन प्रकार से विभाजित किया जाता है-.

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विनिमय

विनिमय का अर्थ है किसी वस्तु के बदले किसी दूसरी वस्तु का आदान-प्रदान करना। जब हम किसी वस्तु के बदले दूसरी वास्तु देते या प्राप्त करते हैं तो वह विनिमय कार्य कहलाता हैं। विनिमय को दो वर्गों में विभाजित किया गया हैं। विनिमय अर्थशास्त्र विषय की विषय सामग्री है। .

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अंश (वित्त)

वित्त में, अंश अथवा शेयर का अर्थ किसी कम्पनी में भाग या हिस्सा होता है। एक कंपनी के कुल स्वामित्व को लाखों करोड़ों टुकड़ों में बाँट दिया जाता है। स्वामित्व का हर एक टुकड़ा एक शेयर होता है। जिसके पास ऐसे जितने ज्यादा टुकड़े, यानी जितने ज्यादा शेयर होंगे, कंपनी में उसकी हिस्सेदारी उतनी ही ज्यादा होगी। लोग इस हिस्सेदारी को खरीद-बेच भी सकते हैं। इसके लिए बाकायदा शेयर बाजार (स्टॉक एक्सचेंज) बने हुए हैं। भारत में बॉम्बे स्टॉक एक्सचेंज (बी॰एस॰ई॰) और नेशनल स्टॉक एक्सचेंज (एन॰एस॰ई॰) सबसे प्रमुख शेयर बाजार हैं। .

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