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फ़ैल्कोनीडाए

सूची फ़ैल्कोनीडाए

फ़ैल्कोनीडाए (Falconidae) शिकारी पक्षियों का एक जीववैज्ञानिक कुल है जिसमें फ़ैल्कोनीनाए (Falconinae) और पोलीबोरिनाए (Polyborinae) के दो उपकुल सम्मिलित हैं। फ़ैल्कोनीनाए में श्येन, केस्ट्रेल और उनसे सम्बन्धित पक्षी आते हैं, जबकि पोलीबोरिनाए में काराकारा और वन श्येन से सम्बन्धित पक्षी शामिल हैं। कुल मिलाकर फ़ैल्कोनीडाए कुल में लगभग ६० जातियाँ सम्मिलित हैं। यह दिवाचरी होते हैं, यानि दिन से समय सक्रीय होते हैं। इनमें और ऐकीपिट्रीडाए गण (मसलन महाश्येन (ईगल), चील, बाज़) के पक्षियों में एक अंतर यह है कि जहाँ ऐकीपिट्रीडाए अपने पंजो से अपने ग्रास को मारते हैं वहाँ फ़ैल्कोनीडाए जातियाँ अपनी चोंच से यह काम करती हैं। .

15 संबंधों: चील, ऐकीपिट्रीडाए, दिवाचरता, पंजा, पक्षी, प्राणी, फ़ैल्कोनीडाए, बाज़, महाश्येन, रज्जुकी, श्येन, जाति (जीवविज्ञान), गण (जीवविज्ञान), काराकारा, कुल (जीवविज्ञान)

चील

चील, श्येन कुल, फैमिली फैलकोनिडी (Family falconidae), का बहुत परिचित पक्षी है, जिसकी कई जातियाँ संसार के प्राय: सभी देशों में फैली हुई हैं। इनमें काली चील (Black kite), ब्रह्मनी या खैरी चील (Brahminy kite), ऑल बिल्ड चील (Awl billed kite), ह्विसलिंग चील (Whistling kite) आदि मुख्य हैं। चील लगभग दो फुट लंबी चिड़िया है, जिसकी दुम लंबी ओर दोफंकी रहती है। इसका सारा बदन कलछौंह भूरा होता है, जिसपर गहरे रंग के सेहरे से पड़े रहते हैं। चोंच काली और टाँगें पीली होती हैं। बाज, बहरी आदि शिकारी चिड़ियों से इसके डैने बड़े, टाँगें छोटी और चोंच तथा पंजे कमजोर होते हैं। चील उड़ने में बड़ी दक्ष होती है। बाजार में खाने की चीजों पर बिना किसी से टकराए हुए, यह ऐसी सफाई से झपट्टा मारती है कि देखकर ताज्जुब होता है। यह सर्वभक्षी तथा मुर्दाखोर चिड़िया है, जिससे कोई भी खाने की वस्तु नहीं बचने पाती। ढीठ तो यह इतनी होती है कि कभी कभी बस्ती के बीच के किसी पेड़ पर ही अपना भद्दा सा घोंसला बना लेती है। मादा दो तीन सफेद या राखी के रंग के अंडे देती है, जिनपर कत्थई चित्तियाँ पड़ी रहती हैं। .

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ऐकीपिट्रीडाए

ऐकीपिट्रीडाए (Accipitridae) पक्षियों के ऐकीपिट्रीफ़ोर्मीस गण के चार कुलों में से एक है। इसमें छोटे से बड़े आकार की अंकुशाकार चोंच रखने वाली कई जातियाँ हैं। महाश्येन (ईगल), चील, बाज़ और पूर्वजगत गिद्ध इस कुल के सदस्य हैं। .

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दिवाचरता

दिवाचरता प्राणियों एवं पौधों के एक खास वर्ग का गुणधर्म है। दिवाचर उन प्राणियों को कहते हैं जो दिन के समय भोजन की तलाश करते हैं। इस श्रेणी में शाकाहारी और मांसाहारी दोनों ही प्रकार के जीव आते हैं। श्रेणी:जीव विज्ञान श्रेणी:दिन.

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पंजा

पंजा (claw) किसी प्राणी की उंगलियों के अन्त में स्थित वक्रदार और नोकीले उपांग को कहते हैं। यह अक्सर केराटिन के बने होते हैं। अगर उंगलियों के अन्त के उपांग नोकीले न हों तो कभी-कभी उन्हें पंजे की बजाए नख या नाखून भी कहा जाता है। पंजों का प्रयोग पकड़ने व गाढ़ने के लिये किया जाता है। .

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पक्षी

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प्राणी

प्राणी या जंतु या जानवर 'ऐनिमेलिया' (Animalia) या मेटाज़ोआ (Metazoa) जगत के बहुकोशिकीय और सुकेंद्रिक जीवों का एक मुख्य समूह है। पैदा होने के बाद जैसे-जैसे कोई प्राणी बड़ा होता है उसकी शारीरिक योजना निर्धारित रूप से विकसित होती जाती है, हालांकि कुछ प्राणी जीवन में आगे जाकर कायान्तरण (metamorphosis) की प्रकिया से गुज़रते हैं। अधिकांश जंतु गतिशील होते हैं, अर्थात अपने आप और स्वतंत्र रूप से गति कर सकते हैं। ज्यादातर जंतु परपोषी भी होते हैं, अर्थात वे जीने के लिए दूसरे जंतु पर निर्भर रहते हैं। अधिकतम ज्ञात जंतु संघ 542 करोड़ साल पहले कैम्ब्रियन विस्फोट के दौरान जीवाश्म रिकॉर्ड में समुद्री प्रजातियों के रूप में प्रकट हुए। .

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फ़ैल्कोनीडाए

फ़ैल्कोनीडाए (Falconidae) शिकारी पक्षियों का एक जीववैज्ञानिक कुल है जिसमें फ़ैल्कोनीनाए (Falconinae) और पोलीबोरिनाए (Polyborinae) के दो उपकुल सम्मिलित हैं। फ़ैल्कोनीनाए में श्येन, केस्ट्रेल और उनसे सम्बन्धित पक्षी आते हैं, जबकि पोलीबोरिनाए में काराकारा और वन श्येन से सम्बन्धित पक्षी शामिल हैं। कुल मिलाकर फ़ैल्कोनीडाए कुल में लगभग ६० जातियाँ सम्मिलित हैं। यह दिवाचरी होते हैं, यानि दिन से समय सक्रीय होते हैं। इनमें और ऐकीपिट्रीडाए गण (मसलन महाश्येन (ईगल), चील, बाज़) के पक्षियों में एक अंतर यह है कि जहाँ ऐकीपिट्रीडाए अपने पंजो से अपने ग्रास को मारते हैं वहाँ फ़ैल्कोनीडाए जातियाँ अपनी चोंच से यह काम करती हैं। .

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बाज़

बाज़ एक शिकारी पक्षी है जो कि गरुड़ से छोटा होता है। इस प्रजाति में दुनिया भर में कई जातियाँ मौजूद हैं और अलग-अलग नामों से जानी जाती हैं। वयस्क बाज़ के पंख पतले तथा मुड़े हुए होते हैं जो उसे तेज़ गति से उड़ने और उसी गति से अपनी दिशा बदलने में सहायता करते हैं। श्रेणी:शिकारी पक्षी श्रेणी:लोक-नामों के अनुसार पक्षी श्रेणी:ऐकीपिट्रीडाए.

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महाश्येन

महाश्येन (ईगल) शिकार करने वाले बड़े आकार के पक्षी हैं। इस पक्षी को ऊँचाई से ही प्रेम है, धरातल से नहीं। यह धरातल की ओर तभी दृष्टिपात करता है, जब इसे कोई शिकार करना होता है। इसकी दृष्टि बड़ी तीव्र होती है और यह धरातल पर विचरण करते हुए अपने शिकार को ऊँचाई से ही देख लेता है। यूरेशिया और अफ्रीका में इसकी साठ से अधिक प्रजातियाँ स्पेसीज (species)पायी जाती हैं। महाश्येन, फैल्कोनिफॉर्मीज़ (Falconiformes) गण, ऐक्सिपिटर (Accipitres) उपगण, फैल्कानिडी (Falconidae) कुल तथा ऐक्विलिनी (Aquilinae) उपकुल के अंतर्गत है। यह उपकुल दो वर्गों में विभाजित है। ये दो वर्ग ऐक्विला स्थल महाश्येन (Aquila Land Eagle) और हैलिई-एटस, जल महाश्येन (Haliaeetus Sea Eagle) हैं। इस श्येन परिवार में लगभग तीन सौ जातियाँ पाई जाती हैं। ये अनेक जातियाँ स्वभाव तथा आकार प्रकार में एक दूसरे से भिन्न होती हैं तथा विश्व भर में पाई जाती हैं। प्राचीन काल से ही यह साहस एवं शक्ति का प्रतीक माना गया है। संभवत इन्हीं कारणों से सभी राष्ट्रों के कवियों ने इसका वर्णन किया है और इसे रूस, जर्मनी, संयुक्त राज्य आदि देशों में राष्ट्रीय प्रतीक के रूप में माना गया है। भारत में इसे गरुड़ की संज्ञा दी गई है तथा पौराणिक वर्णनों में इसे विष्णु का वाहन कहा गया है। संभवत: तेज गति और वीरता के कारण ही यह विष्णु का वाहन हो सका है। अन्य देशों के भी पौराणिक वर्णनों में इसका वर्णन आता है, जैसे स्कैंडेनेविया में इसे तूफान का देवता माना गया है और यह बताया गया है कि यह देव स्वर्ग लोक के एक छोर पर बैठकर हवा का झोंका पृथ्वी पर फेंकता है। ग्रीसवासियों की, प्राचीन विश्वास के अनुसार, ऐसी धारणा है कि उनके सबसे बड़े देवता, ज़्यूस (Zeus), को इस महाश्येन ने ही सहायतार्थ वज्र प्रदान किया था। भगवान् विष्णु का वाहन होकर भी इस पक्षी की मनोवृत्ति अहिंसक नहीं है। यह मांसभक्षी, अति लोलुप और प्रत्यक्षत: हानि पहुँचानेवाला होता है, तथापि यह उन बहुत से पक्षियों को समाप्त करने में सहायक है, जो कृषि एवं मनुष्यों को हानि पहुँचाते हैं। साथ ही साथ यह हानि पहुँचानेवाले सरीसृप तथा छोटे छोटे स्तनी जीवों को भी समाप्त करता है और इस प्रकार जंतुसंसार का संतुलन बनाए रखता है। .

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रज्जुकी

रज्जुकी (संघ कॉर्डेटा) जीवों का एक समूह है जिसमें कशेरुकी (वर्टिब्रेट) और कई निकट रूप से संबंधित अकशेरुकी (इनवर्टिब्रेट) शामिल हैं। इनका इस संघ मे शामित होना इस आधार पर सिद्ध होता है कि यह जीवन चक्र मे कभी न कभी निम्न संरचनाओं को धारण करते हैं जो हैं, एक पृष्ठ‍रज्जु (नोटोकॉर्ड), एक खोखला पृष्ठीय तंत्रिका कॉर्ड, फैरेंजियल स्लिट एक एंडोस्टाइल और एक पोस्ट-एनल पूंछ। संघ कॉर्डेटा तीन उपसंघों मे विभाजित है: यूरोकॉर्डेटा, जिसका प्रतिनिधित्व ट्युनिकेट्स द्वारा किया जाता है; सेफालोकॉर्डेटा, जिसका प्रतिनिधित्व लैंसलेट्स द्वारा किया जाता है और क्रेनिएटा, जिसमे वर्टिब्रेटा शामिल हैं। हेमीकॉर्डेटा को चौथे उपसंघ के रूप मे प्रस्तुत किया जाता है पर अब इसे आम तौर पर एक अलग संघ के रूप में जाना जाता है। यूरोकॉर्डेट के लार्वा में एक नोटॉकॉर्ड और एक तंत्रिका कॉर्ड पायी जाती है पर वयस्क होने पर यह लुप्त हो जातीं हैं। सेफालोकॉर्डेट एक नोटॉकॉर्ड और एक तंत्रिका कॉर्ड पायी जाती है लेकिन कोई मस्तिष्क या विशेष संवेदना अंग नहीं होता और इनका एक बहुत ही सरल परिसंचरण तंत्र होता है। क्रेनिएट ही वह उपसंघ है जिसके सदस्यों में खोपड़ी मिलती है। इनमे वास्तविक देहगुहा पाई जाती है। इनमे जनन स्तर सदैव त्री स्तरीय पाया जाता है। सामान्यत लैंगिक जनन पाया जाता है। सामान्यत प्रत्यक्ष विकास होता है। इनमे RBC उपस्थित होती है। इनमे द्वीपार्शविय सममिती पाई जाती है। इसके जंतु अधिक विकसित होते है। श्रेणी:जीव विज्ञान *.

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श्येन

श्येन या शिकारा (Falcon) पक्षियों के फ़ैल्को वंश की सदस्य जातियों को कहते हैं। यह शिकारी पक्षी होते हैं जो अंटार्कटिका को छोड़कर विश्व के हर अन्य महाद्वीप में मिलते हैं। कुल मिलाकर इस वंश में लगभग ४० ज्ञात जातियाँ हैं। .

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जाति (जीवविज्ञान)

जाति (स्पीशीज़) जीववैज्ञानिक वर्गीकरण की सबसे बुनियादी और निचली श्रेणी है जाति (अंग्रेज़ी: species, स्पीशीज़) जीवों के जीववैज्ञानिक वर्गीकरण में सबसे बुनियादी और निचली श्रेणी होती है। जीववैज्ञानिक नज़रिए से ऐसे जीवों के समूह को एक जाति बुलाया जाता है जो एक दुसरे के साथ संतान उत्पन्न करने की क्षमता रखते हो और जिनकी संतान स्वयं आगे संतान जनने की क्षमता रखती हो। उदाहरण के लिए एक भेड़िया और शेर आपस में बच्चा पैदा नहीं कर सकते इसलिए वे अलग जातियों के माने जाते हैं। एक घोड़ा और गधा आपस में बच्चा पैदा कर सकते हैं (जिसे खच्चर बुलाया जाता है), लेकिन क्योंकि खच्चर आगे बच्चा जनने में असमर्थ होते हैं, इसलिए घोड़े और गधे भी अलग जातियों के माने जाते हैं। इसके विपरीत कुत्ते बहुत अलग आकारों में मिलते हैं लेकिन किसी भी नर कुत्ते और मादा कुत्ते के आपस में बच्चे हो सकते हैं जो स्वयं आगे संतान पैदा करने में सक्षम हैं। इसलिए सभी कुत्ते, चाहे वे किसी नसल के ही क्यों न हों, जीववैज्ञानिक दृष्टि से एक ही जाति के सदस्य समझे जाते हैं।, Sahotra Sarkar, Anya Plutynski, John Wiley & Sons, 2010, ISBN 978-1-4443-3785-3,...

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गण (जीवविज्ञान)

कुल आते हैं गण (अंग्रेज़ी: order, ऑर्डर; लातिनी: ordo, ओर्दो) जीववैज्ञानिक वर्गीकरण में जीवों के वर्गीकरण की एक श्रेणी होती है। एक गण में एक-दुसरे से समानताएँ रखने वाले कई सारे जीवों के कुल आते हैं। ध्यान दें कि हर जीववैज्ञानिक कुल में बहुत सी भिन्न जीवों की जातियाँ-प्रजातियाँ सम्मिलित होती हैं।, David E. Fastovsky, David B. Weishampel, pp.

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काराकारा

काराकारा (Caracara) पक्षियों के फ़ैल्कोनीडाए कुल के पोलीबोरिनाए (Polyborinae) उपकुल के सदस्य होते हैं, हालांकि कुछ जीववैज्ञानिकों के अनुसार इनका काराकारीनाए (Caracarinae) नामक अलग उपकुल होना चाहिए। इनके साथ वन श्येन भी पोलीबोरिनाए उपकुल में सम्मिलित हैं और दोनों ही शिकारी पक्षी होते हैं। काराकारा दक्षिण व मध्य अमेरिका के निवासी है और इनका उत्तरी विस्तार दक्षिणी संयुक्त राज्य अमेरिका तक है। यह फ़ैल्कोनीडाए कुल की दूसरी, फ़ैल्को, नामक शाखा (जिसमें श्येन आते हैं) के पक्षियों जितनी तेज़ी से नहीं उड़ पाते और न ही यह हवा में उड़ती अन्य चिड़ियाँ का शिकार करने में सक्षम हैं, इसलिए यह यह अक्सर मुर्दाखोर, यानि मृत जानवरों का माँस खाते हुए, भी नज़र आते हैं। .

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कुल (जीवविज्ञान)

वंश आते हैं कुल (अंग्रेज़ी: family, फ़ैमिली; लातिनी: familia, फ़ामिलिया) जीववैज्ञानिक वर्गीकरण में प्राणियों के वर्गीकरण की एक श्रेणी होती है। एक कुल में एक-दुसरे से समानताएँ रखने वाले कई सारे जीवों के वंश आते हैं। ध्यान दें कि हर प्राणी वंश में बहुत-सी भिन्न प्राणियों की जातियाँ सम्मिलित होती हैं।, David E. Fastovsky, David B. Weishampel, pp.

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यहां पुनर्निर्देश करता है:

फ़ैल्कोनीनाए, फ़ैल्कोनीफ़ोर्मीस

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