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प्राचीन आर्य इतिहास का भौगोलिक आधार

सूची प्राचीन आर्य इतिहास का भौगोलिक आधार

भारतीय आर्यों के प्राचीन इतिहास तथा भूगोल का अज्ञान, या तो हमारे आलस्य के कारण या हमारी बहुमूल्य ऐतिहासिक पुस्तकों के शत्रुओं द्वारा नष्ट हो जाने के कारण, अभी तक हमें पूर्ण निश्चय के साथ यह उद्घोषित करने का अवसर नहीं देता कि हमारी प्राचीन आर्य संस्कृति किस श्रेणी तक उस समय पहुंच चुकी थी, जिस समय आधुनिक नव्य-सभ्य राष्ट्रों का उदय तो कौन कहे, नाम व निशान भी नहीं था ! अवश्य ही हमारे प्राचीन इतिहास के अनुशीलन में योरपीय विद्वानों ने जो सहायता पहुंचायी है, वह बहुमूल्य है। विदेशी होकर भी आज तक उन लोगों ने जो कुछ किया, वह आशातीत और हमारी आंखें खोलने के लिये पर्याप्त है। हमारा इतिहास कुछ ख्रीष्टाब्द या विक्रमाब्द से मर्यादित नहीं; यह तो सृष्टि-सनातन और आधुनिक विद्वानों के मस्तिष्क रूपी अनुवीक्षण यन्त्र की दृष्टि से बाहर है। सच पूछा जाय, तो आर्यों का इतिहास ही विश्व का इतिहास है। आज तक यह कोई भी ठीक-ठीक नहीं कह सकता कि आर्यों का सम्पूर्ण इतिहास विश्व की विद्वन्मण्डली को कब दृष्टिगोचर होगा। योरपीय विद्वानों ने अन्धकार से निकलने की युक्ति हमें बता दी है। अब तो हमारा कर्तव्य है कि अपने इतिहास का देदीप्यमान चित्र विश्व के सामने रख दें। पाश्चात्य विद्वानों की प्रायः यह धारणा रही है और है कि भारतवासी आर्य इतिहास लिखना या सुरक्षित रखना नहीं जानते थे। यह विवाद, जो किसी भी भारतीय विद्वान् को असह्य है, बहुत दिनों से चला आ रहा है। प्राचीन इतिहास के अनुशीलन के लिये प्रायः दो परिपाटी चल पड़ी हैं और ऐतिहासिक तत्त्वों का स्पष्टीकरण भी प्रायः दो ज़ुदे-ज़ुदे मार्गों से हो रहा है। पाश्चात्य विद्वान् अवश्य ही समय-निर्धारण में अत्यन्त संकोच और द्वेष बुद्धि से काम लेते आये हैं। यह आज बिल्कुल निर्विवाद है कि हमारे आर्य ऋषि-प्रवर साहित्य, ज्योतिष, विज्ञान, आयुर्वेद आदि समस्त कलाओं में उस पूर्णता तक पहुंच चुके थे, जो आज भी योरप के लिये स्वप्नवत् प्रतीत हो रही है। यह एक सत्य है, जिसे पहले तो नहीं, परन्तु अब प्रत्येक पाश्चात्य विद्वान् मुक्त-कण्ठ से स्वीकार कर रहा है। हाँ, समय निर्धारण का प्रश्न बड़ा ही जटिल है और वह भी इसलिये कि हमारे पास ऐतिहासिक प्रमाणों का अभाव-सा समझा जाता है। हमारे हृदय सम्राट् बाल गंगाधर तिलक का ’ओरायन’ ग्नन्थ इस दिशा में हमें बहुत कुछ प्रकाश में ला चुका है। उनका विचार एवं निष्कर्ष ज्योतिष, गणित और वैदिक ऋचाओं पर अवलम्बित है। सच तो यह है कि जिस समय हम थे, उस समय हमारी जाति के सिवा संसार में और कोई भी सभ्य जाति नहीं के बराबर थी। हमारी ऐतिहासिक प्राचीनता में एक ऐतिहासिक गौरव सन्निहित है। आज "हम" हम नहीं, आज बहुतेरे हम हो गये और इसी हमाहमी में एक भारतीय इतिहास ही नहीं, प्रत्युत विश्व इतिहास झगड़े की चीज़ बन गया। संसार में आर्य और अनार्य दो ही मुख्य जातियां हैं। आर्यों की शाखायें-प्रशाखायें इतनी बढ़ गयी हैं कि उस अन्धकार में इतिहास के पन्ने उलटना बड़ी विकट समस्या है। उस पर एक आश्चर्य यह कि सम्पूर्ण प्राचीन इतिहास के मुख्यतः दो ही आधार हैं-एक तो वैदिक साहित्य और दूसरे भौगोलिक आधार पर पृथ्वी की भिन्न-भिन्न सतहों की खोज। दिन-दिन हमारे इतिहास को नव-नव प्रकाश मिलता जा रहा है। आर्य-इतिहास एक बुझौवल या प्रहेलिका के रूप में हमें मिल रहा है। वैदिक साहित्य की व्याख्यान का रूप दिन-दिन विकसित और गम्भीर होता जा रहा है। सच पूछिये तो वैदिक साहित्य संसार-मात्र का साहित्य हो रहा है। इसमें सभी समान रूप से दिलचस्पी ले रहे हैं। कोई नहीं कह सकता कि भविष्य में हमारे आर्य इतिहास का क्या रूप होगा तथा हमारा अन्तर-राष्ट्रीय सम्बन्ध कैसा रहेगा। हमारा समस्त साहित्य विश्व का साहित्य हो रहा है। कौन कह सकता है कि हमारे दर्शन, साहित्य और इतिहास एक दिन विश्वमात्र के लिये दर्शन, साहित्य और इतिहास नहीं हो जायँगे ? विश्व आज उसी की पुनरावृत्ति कर रहा है, जो आर्य लोग कर चुके हैं; और सम्भवतः वहीं पहुँचेगा, जहाँ हम एक बार पहुँचकर भटक से गये हैं। यह एक ऐतिहासिक सत्य है। यह एक दिन सबके सामने आयेगा। इसी से कहा जाता है कि अन्तर-राष्ट्रीय मिलन का एकमात्र आधार भारतवर्ष होगा; क्योंकि उसकी कुंजी इसी के हाथ मॆं है। हाँ, तो हमारा इतिहास आज एक प्रकार से प्रमाणों के अभाव में Mythology सा बन गया है। पुराण गप्प-सा बन गया है और रामायण और महाभारत को रूपक का रूप मिल गया है ! यह हमारे लिये लाचारी और लज्जा की बात है। भारतीय विद्वान् इसी गुत्थी के सुलझाने का प्रयत्न कर रहे हैं। विद्वद्वर श्रीयुत् के.

1 संबंध: यूराल नदी

यूराल नदी

विमान से ली गई काज़ाख़स्तान में यूराल नदी की एक तस्वीर कैस्पियन सागर में यूराल नदी की विचित्र ऊँगली-जैसी डेल्टा (नदीमुख) यूराल नदी (अंग्रेज़ी: Ural), उराल नदी (रूसी: Урал) या झ़ायक नदी (रूसी: Жайық) रूस और काज़ाख़स्तान से बहने वाली एक नदी है। यह यूराल पहाड़ों के दक्षिणी भाग में उत्पन्न होती है और १,५११ किमी के लम्बे सफ़र के बाद कैस्पियन सागर में मिल जाती है। वोल्गा नदी और डैन्यूब नदी के बाद यह यूरोप की तीसरी सबसे लम्बी नदी है। कैस्पियन सागर के लिए यह वोल्गा नदी के बाद दूसरा सबसे मुख्य जलस्रोत है। .

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