प्रकृति पृथ्वी पर उपस्थित जीवधारियों, जो जल, थल, और नभ में निवास कर रहे है, या कर चुके है, या आगे आकर करेंगे, के प्रति अपना नियम न्याय के रूप में उनके द्वारा किये गये मानसिक, वाचिक, और शरीर से किये गये प्रयासों के प्रति अपनी न्याय प्रक्रिया को लगातार आदिकाल से जारी रखे हुये हैं, यह बुद्धि को धारण करने वाले प्राणियों को बुद्धि के द्वारा, और शारीरिक बल रखने वाले प्राणियों को शारीरिक बल के द्वारा न्याय देती है, देश समाज का कानून एक बार भ्रम में भी रह जाये लेकिन प्रकृति का कानून कभी भ्रम में नहीं रहता, वह अपना अटल न्याय सिद्धान्त जारी रखे हुये हैं, और जब तक सृष्टि का विकास क्रम चल रहा है, तब तक जारी रहेगा.
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