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प्रबन्ध विकास

सूची प्रबन्ध विकास

प्रबन्ध विकास (Management development) वह प्रक्रिया है जिसके द्वारा प्रबन्धक अपने प्रबन्धकीय कौशलों को सीखते है और उसे अधिक उन्नत बनाते हैं। किसी भी संगठन की सफलता में उसके प्रबन्धक अत्यन्त ही महत्वपूर्ण होते हैं। सक्षम प्रबन्धकों की पर्याप्त संख्या के बिना, कोई भी संगठन दूसरे मूल्यवान संसाधनों जैसे- पूँजी, प्रौद्योगिकी एवं अन्य के होते हुए भी, विशिष्टता का स्थान ग्रहण करने की अपेक्षा नहीं कर सकता है। प्रत्येक संगठन में ये प्रबन्धक ही होते हैं जो कि संसाधनों एवं क्रियाकलापों का नियोजन संगठन, निर्देशन एवं नियन्त्रण करते है। समय-समय पर, प्रबन्ध प्रतिभाओं के विकास के महत्व को मान्यता प्रदान किये जाने से, इन दिनों अधिकतर संगठन प्रबन्ध विकास पर अत्याधिक ध्यान देने लगे हैं। कुशल प्रबन्धक ही संगठनों को समयानुकूल निश्चित गति प्रदान कर सकते हैं। आने वाले समय में, जबकि व्यावसायिक वातावरण और भी अधिक गतिशील एवं जटिल हो जायेगा, तब प्रबन्धकों का महत्व भी उत्तरोत्तर बढ़ जायेगा। इसके अतिरिक्त, आधुनिक प्रबन्धक की महत्वपूर्ण धारणा यह है कि 'प्रबन्धक जन्मजात नहीं होते बल्कि विकसित किये जात हैं।' प्रबन्ध विकास, एक व्यवस्थित प्रक्रिया है, जिसके द्वारा प्रबन्धक अपनी प्रबन्ध करने की योग्यताओं का विकास करते हैं। यह केवल शिक्षण क औपचारिक पाठ्यक्रम में सहभागिता का ही नहीं,बल्कि वास्तविक कार्य अनुभव का भी परिणाम होता है।प्रबन्ध विकास में संगठन की भूमिका, इसके वर्तमान तथा सम्भावित प्रबन्धकों के लिए कार्यक्रमों का आयोजन तथा विकास के अवसर प्रदान करने की होती है। .

3 संबंधों: प्रबन्धन, प्रौद्योगिकी, पूँजी

प्रबन्धन

व्यवसाय एवं संगठन के सन्दर्भ में प्रबन्धन (Management) का अर्थ है - उपलब्ध संसाधनों का दक्षतापूर्वक तथा प्रभावपूर्ण तरीके से उपयोग करते हुए लोगों के कार्यों में समन्वय करना ताकि लक्ष्यों की प्राप्ति सुनिश्चित की जा सके। प्रबन्धन के अन्तर्गत आयोजन (planning), संगठन-निर्माण (organizing), स्टाफिंग (staffing), नेतृत्व करना (leading या directing), तथा संगठन अथवा पहल का नियंत्रण करना आदि आते हैं। संगठन भले ही बड़ा हो या छोटा, लाभ के लिए हो अथवा गैर-लाभ वाला, सेवा प्रदान करता हो अथवा विनिर्माणकर्ता, प्रबंध सभी के लिए आवश्यक है। प्रबंध इसलिए आवश्यक है कि व्यक्ति सामूहिक उद्देश्यों की पूर्ति में अपना श्रेष्ठतम योगदान दे सकें। प्रबंध में पारस्परिक रूप से संबंधित वह कार्य सम्मिलित हैं जिन्हें सभी प्रबंधक करते हैं। प्रबंधक अलग-अलग कार्यों पर भिन्न समय लगाते हैं। संगठन के उच्चस्तर पर बैठे प्रबंधक नियोजन एवं संगठन पर नीचे स्तर के प्रबंधकों की तुलना में अधिक समय लगाते हैं। kisi bhi business ko start krne se phle prabandh yaani ke managements ki jaroort hoti h .

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प्रौद्योगिकी

२०वीं सदी के मध्य तक मनुष्य ने तकनीक के प्रयोग से पृथ्वी के वायुमंडल से बाहर निकलना सीख लिया था। एकीकृत परिपथ (IC) के आविष्कार ने कम्प्यूटर क्रान्ति को जन्म दिया । प्रौद्योगिकी, व्यावहारिक और औद्योगिक कलाओं और प्रयुक्त विज्ञानों से संबंधित अध्ययन या विज्ञान का समूह है। कई लोग तकनीकी और अभियान्त्रिकी शब्द एक दूसरे के लिये प्रयुक्त करते हैं। जो लोग प्रौद्योगिकी को व्यवसाय रूप में अपनाते है उन्हे अभियन्ता कहा जाता है। आदिकाल से मानव तकनीक का प्रयोग करता आ रहा है। आधुनिक सभ्यता के विकास में तकनीकी का बहुत बड़ा योगदान है। जो समाज या राष्ट्र तकनीकी रूप से सक्षम हैं वे सामरिक रूप से भी सबल होते हैं और देर-सबेर आर्थिक रूप से भी सबल बन जाते हैं। ऐसे में कोई आश्चर्य नहीं होना चाहिये कि अभियांत्रिकी का आरम्भ सैनिक अभियांत्रिकी से ही हुआ। इसके बाद सडकें, घर, दुर्ग, पुल आदि के निर्माण सम्बन्धी आवश्यकताओं और समस्याओं को हल करने के लिये सिविल अभियांत्रिकी का प्रादुर्भाव हुआ। औद्योगिक क्रान्ति के साथ-साथ यांत्रिक तकनीकी आयी। इसके बाद वैद्युत अभियांत्रिकी, रासायनिक प्रौद्योगिकी तथा अन्य प्रौद्योगिकियाँ आयीं। वर्तमान समय कम्प्यूटर प्रौद्योगिकी और सूचना प्रौद्योगिकी का है। .

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पूँजी

पूँजी (Capital) साधारणतया उस धनराशि को कहते हैं जिससे कोई व्यापार चलाया जाए। किंतु कंपनी अधिनियम के अंतर्गत इसका अभिप्राय अंशपूँजी से हैं; न कि उधार राशि से, जिसे कभी कभी उधार पूँजी भी कहते हैं। प्रत्येक कंपनी के लिए यह अनिवार्य है कि वह अपने सीमानियम में अंशपूँजी, जिसे रजिस्टर्ड, प्राधिकृत अथवा अंकित पूँजी कहते हैं, तथा उसके निश्चित मूल्य के अंशों में विभाजन का उल्लेख करे। प्राधिकृत पूँजी के कुछ भाग को निर्गमित (इशू) किया जा सकता है और शेष को आवश्यकतानुसार निर्गमित किया जा सकता है। निर्गमित भाग के अंशों के अंकित मूल्य को निर्गमित पूँजी कहते हैं। जनता जिन अंशों के क्रय के लिए प्रार्थनापात्र दे उनके अंकित मूल्य को प्रार्थित पूँजी (Subscribed captial) तथा अंशधारियों द्वारा जितनी राशि का भुगतान किया जाए उसे दत्तपूँजी (Paid captial) कहते हैं। कंपनी चाहे तो नए अंश निर्गमित करके अंशूपूँजी में वृद्धि कर सकती है, सभी या कुछ पूर्णदत्त अंशों को स्कंधों में परिवर्तित कर सकती है सभी या कुछ अंशों को कम कीमत के छोटे अंशों में परिवर्तित कर सकती है अथवा जिन अंशों का निर्गमन न हुआ हो उन्हें निरस्त कर सकती है। ये सब परिवर्तन तभी संभव हैं जब अंतिर्नियमों (आर्टिकल्स ऑव असोसिएशन) में इनकी व्यवस्था हो। अधिकतर कंपनियों में निम्न प्रकार के अंश होते हैं: 1.

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