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प्रबन्धन

सूची प्रबन्धन

व्यवसाय एवं संगठन के सन्दर्भ में प्रबन्धन (Management) का अर्थ है - उपलब्ध संसाधनों का दक्षतापूर्वक तथा प्रभावपूर्ण तरीके से उपयोग करते हुए लोगों के कार्यों में समन्वय करना ताकि लक्ष्यों की प्राप्ति सुनिश्चित की जा सके। प्रबन्धन के अन्तर्गत आयोजन (planning), संगठन-निर्माण (organizing), स्टाफिंग (staffing), नेतृत्व करना (leading या directing), तथा संगठन अथवा पहल का नियंत्रण करना आदि आते हैं। संगठन भले ही बड़ा हो या छोटा, लाभ के लिए हो अथवा गैर-लाभ वाला, सेवा प्रदान करता हो अथवा विनिर्माणकर्ता, प्रबंध सभी के लिए आवश्यक है। प्रबंध इसलिए आवश्यक है कि व्यक्ति सामूहिक उद्देश्यों की पूर्ति में अपना श्रेष्ठतम योगदान दे सकें। प्रबंध में पारस्परिक रूप से संबंधित वह कार्य सम्मिलित हैं जिन्हें सभी प्रबंधक करते हैं। प्रबंधक अलग-अलग कार्यों पर भिन्न समय लगाते हैं। संगठन के उच्चस्तर पर बैठे प्रबंधक नियोजन एवं संगठन पर नीचे स्तर के प्रबंधकों की तुलना में अधिक समय लगाते हैं। kisi bhi business ko start krne se phle prabandh yaani ke managements ki jaroort hoti h .

30 संबंधों: तनाव प्रबंधन, नेतृत्व, परियोजना प्रबन्धन, पर्यावरण प्रबन्धन, प्रशासन, प्रक्रम प्रबन्धन, पूर्वानुमान, पीटर ड्रकर, भारतीय प्रबन्धन संस्थान, मानव संसाधन प्रबंधन, मूल्य-निर्धारण, लोक प्रशासन, समय प्रबंधन, सहयोग, सामाजिक उद्यमिता, सामग्री प्रबंधन, संचार प्रबंधन, संगठन, संकट प्रबंधन, हेनरी फेयोल, ज्ञान प्रबन्धन, जोखिम, जोखिम प्रबंधन, वित्‍तीय प्रबंधन, वैज्ञानिक प्रबन्धन, ग्राहक संबंध प्रबंधन, आपदा तत्परता, आपूर्ति शृंखला प्रबंधन, अर्थशास्त्रियों की सूची, उत्पाद प्रबंधन

तनाव प्रबंधन

तनाव प्रबंधन का अर्थ है मानसिक तनाव में कमी लाना, विशेषतः पुराने तनाव में। .

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नेतृत्व

नेतृत्व (leadership) की व्याख्या इस प्रकार दी गयी है "नेतृत्व एक प्रक्रिया है जिसमें कोई व्यक्ति सामाजिक प्रभाव के द्वारा अन्य लोगों की सहायता लेते हुए एक सर्वनिष्ट (कॉमन) कार्य सिद्ध करता है। एक और परिभाषा एलन कीथ गेनेंटेक ने दी जिसके अधिक अनुयायी थे "नेतृत्व वह है जो अंततः लोगों के लिए एक ऐसा मार्ग बनाना जिसमें लोग अपना योगदान दे कर कुछ असाधारण कर सकें.

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परियोजना प्रबन्धन

परियोजना प्रबन्धन, किसी परियोजना के किसी विशिष्ट लक्ष्य की प्राप्ति हेतु योजना बनाने, संगठित करने एवं संसाधनों की व्यवस्था करने की विधा का नाम है। .

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पर्यावरण प्रबन्धन

जैसा कि इस नाम से लग सकता है, पर्यावरण प्रबंधन का तात्पर्य पर्यावरण के प्रबंधन से नहीं है, बल्कि आधुनिक मानव समाज के पर्यावरण के साथ संपर्क तथा उसपर पड़ने वाले प्रभाव के प्रबंधन से है। प्रबंधकों को प्रभावित करने वाले तीन प्रमुख मुद्दे हैं राजनीति (नेटवर्किंग), कार्यक्रम (परियोजनायें) और संसाधन (धन, सुविधाएँ, आदि)। पर्यावरण प्रबंधन की आवश्यकता को कई दृष्टिकोणों से देखा जा सकता है। पर्यावरण प्रबंधन के पीछे एक आम विचार तथा प्रेरणा है कैरीयिंग केपेसिटी (वहन क्षमता) की अवधारणा। आसान भाषा में कहें तो वहन क्षमता का तात्पर्य किसी विशेष पर्यावरणीय तंत्र द्वारा अपने भीतर जीवों की अधिकतम संख्या को धारण करने की क्षमता से है। हालाँकि कई संस्कृतियों को ऐतिहासिक रूप से वहन क्षमता की अवधारणा की समझ थी, लेकिन इसका मूल माल्थूसियन थ्योरी में है। अतः, पर्यावरण प्रबंधन का अर्थ केवल पर्यावरण की खातिर उसके संरक्षण से नहीं, बल्कि सम्पूर्ण मानव जाति की खातिर पर्यावरण के संरक्षण से है। उपयुक्त शोषण के इस तत्व, अर्थात प्राकृतिक संसाधनों के सर्वोत्तम उपयोग को ईयू के जल संबंधी दिशा निर्देशों में देखा जा सकता है। .

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प्रशासन

किसी क्षेत्र में विशिष्ट शासन या किन्ही मानव प्रबंधन गतिविधियों को प्रशासन (administration) कहा जा सकता है। प्रशासन से निम्नलिखित का बोध हो सकता है-.

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प्रक्रम प्रबन्धन

प्रक्रम प्रबन्धन (Process management) किसी औद्योगिक या व्यापारिक प्रक्रिया से सम्बन्धित प्रबन्धन (मैनेजमेंट) को कहते हैं। .

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पूर्वानुमान

अज्ञात स्थितियों में तर्कपूर्ण आकलन (estimation) करने को पूर्वानुमान करना (Forecasting) कहते हैं। जैसे दो दिन बाद किसी स्थान के मौसम के बारे में अनुमान लगाना, एक वर्ष बाद किसी देश की आर्थिक स्थिति के बारे में कहना आदि पूर्वानुमान हैं। पूर्वानुमान के साथ अनिश्चितता और खतरा (Risk) का घनिष्ट सम्बन्ध है। आधुनिक युग में पूर्वानुमान के अनेकानेक उपयोग हैं; जैसे - ग्राहक की मांग की योजना बनाना। .

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पीटर ड्रकर

पीटर ड्रकर पीटर ड्रकर (Peter Ferdinand Drucker; 19 नवम्बर 1909 – 11 नवम्बर 2005) एक अमेरिकी प्रबन्धन सलाहकार, शिक्षक एवं लेखक थे। वे मूलतः आस्ट्रिया के निवासी थे। प्रबन्धन शिक्षा के विकास के क्षेत्र में उन्होने नेतृत्व किया। उन्होने 'लक्ष्यों द्वारा प्रबन्धन' (management by objectives) नामक कांसेप्ट दिया। .

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भारतीय प्रबन्धन संस्थान

भारतीय प्रबन्धन संस्थान (आई आई एम) भारत के सर्वोत्तम प्रबंधन संस्थान हैं। प्रबन्धन की शिक्षा के अतिरिक्त ये अनुसंधान व सलाह (कांसल्टेंसी) का कार्य भी करते हैं। वर्तमान में ६ भारतीय प्रबन्धन संस्थान हैं जो बंगलुरू, अहमदाबाद, कोलकाता, लखनऊ, इन्दौर तथा कोझीकोड में स्थित हैं। ये प्रबन्धन में पोस्ट ग्रैजुएट डिप्लोमा की उपाधि प्रदान करते हैं जो एम बी ए के समतुल्य है। इन संस्थानों में प्रवेश अखिल भारतीय स्तर पर होने वाली प्रवेश परीक्षा कामन ऐडमिशन टेस्ट (सी ए टी) के आधार पर होता है। यह परीक्षा दुनिया की सर्वाधिक प्रतिस्पर्धी परिक्षाओं में से है। .

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मानव संसाधन प्रबंधन

मानव संसाधन प्रबंधन (HRM) किसी प्रतिष्ठान की सबसे मूल्यवान उन आस्तियों के प्रबंधन का कौशलगत और सुसंगत दृष्टिकोण है- जो वहां काम कर रहे हैं तथा व्यक्तिगत और सामूहिक रूप से व्यापार के उद्देश्यों की प्राप्ति में योगदान दे रहे हैं। "मानव संसाधन प्रबंधन" और "मानव संसाधन" (HR) शब्दों का स्थान मुख्यतः "कार्मिक प्रबंधन" शब्द ने ले लिया है, जो प्रतिष्ठान में लोगों के प्रबंधन में शामिल प्रक्रियाओं की व्याख्या करता है। सामान्य अर्थ में HRM का मतलब लोगों को रोजगार देना, उनके संसाधनों का विकास करना, उपयोग करना, उनकी सेवाओं को काम और प्रतिष्टान की आवश्यकता के अनुरूप बनाये रखना और बदले में (भरण-पोषण) मुआवजा देते रहना है। .

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मूल्य-निर्धारण

बिक्री पर एक उत्पाद के लिए क़ीमत टैग. मूल्य-निर्धारण यह निर्धारित करने की प्रक्रिया है कि कंपनी अपने उत्पादों के बदले क्या हासिल करेगी.

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लोक प्रशासन

लोक प्रशासन (Public administration) मोटे तौर पर शासकीय नीति (government policy) के विभिन्न पहलुओं का विकास, उन पर अमल एवं उनका अध्ययन है। प्रशासन का वह भाग जो सामान्य जनता के लाभ के लिये होता है, लोकप्रशासन कहलाता है। लोकप्रशासन का संबंध सामान्य नीतियों अथवा सार्वजनिक नीतियों से होता है। एक अनुशासन के रूप में इसका अर्थ वह जनसेवा है जिसे 'सरकार' कहे जाने वाले व्यक्तियों का एक संगठन करता है। इसका प्रमुख उद्देश्य और अस्तित्व का आधार 'सेवा' है। इस प्रकार की सेवा उठाने के लिए सरकार को जन का वित्तीय बोझ करों और महसूलों के रूप में राजस्व वसूल कर संसाधन जुटाने पड़ते हैं। जिनकी कुछ आय है उनसे कुछ लेकर सेवाओं के माध्यम से उसका समतापूर्ण वितरण करना इसका उद्देश्य है। किसी भी देश में लोक प्रशासन के उद्देश्य वहां की संस्थाओं, प्रक्रियाओं, कार्मिक-राजनीतिक व्यवस्था की संरचनाओं तथा उस देश के संविधान में व्यक्त शासन के सिद्धातों पर निर्भर होते हैं। प्रतिनिधित्व, उत्तरदायित्व, औचित्य और समता की दृष्टि से शासन का स्वरूप महत्व रखता है, लेकिन सरकार एक अच्छे प्रशासन के माध्यम से इन्हें साकार करने का प्रयास करती है। .

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समय प्रबंधन

भिन्न-भिन्न कार्यों को करने के लिए लगाये गए समय और उनको करने के क्रम को सोच-विचार कर व्यवस्थित करना समय प्रबंधन (Time management) कहलाता है। समुचित समय प्रबंधन से दक्षता मिलती है, उत्पादकता बढ़ती है और कार्य सही समय पर पूरे होते हैं। समय प्रबंधन के लिए स्वयं का मूल्यांकन करें.

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सहयोग

सहयोग (collaboration) का अर्थ दो या अधिक व्यक्तियों या संस्थाओं का मिलकर काम करना है। सहयोग की प्रक्रिया में ज्ञान का बारंबार तथा सभी दिशाओं में आदान-प्रदान होता है। यह एक समान लक्ष्य की प्राप्ति की दिशा में उठाया गया बुद्धि विषयक कार्य है। यह जरूरी नहीं है कि सहयोग के लिये नेतृत्व की आवश्यक होता है। परन्तु यह आवश्यकता नहीं है कि नेतृत्व का भी सहयोग नहीं होता है। सहयोग एक दुसरे के माध्यम से होता है। फिर भी आपसी सहयोग का होना बहुत जरुरी होता है। एक दुसरे को आगे बढाना चाहिए। इसका मतलब यह नहीं कि किसी भी संस्था के सहयोग करने से आपसी सहयोग कि संभावना बहुत अधिक होती है। फिर भी पारंपरिक या आर्थिक सहयोग का होना बहुत मायने रखता है। सहयोग कि भावना हर मनुष्य में होना चाहिए। और मैं दुसरो के सहयोग कर सकुँ। एक दुसरे के सहयोग से देश हो या मनुष्य कि जीवन में बढता रहता है। सहयोग भी कई प्रकार के होते हैं। आर्थिक हो या तकनिकी सहयोग इसके आदि और भी हो सकते हैं। परन्तु सहयोग एक विशिष्ट कार्य के रूप में होता है। तब पर भी घर हो या बाहर किसी जगह पर सहयोग का आदान-प्रदान किया जा सकता है। परन्तु यह आवश्यक नहीं है कि रुपया से ही सहयोग किया जा सकता है। जीवन में मनुष्य का सहयोग एक कर्तत्व हि नहीं बल्कि मनुष्य की जीवन शैली में सहयोग का होना जरुरी है। सहयोग की कोई सीमा निर्धारित नहीं होता है जो कभी भी किसी व्यक्ति का सहयोग किसका मिल सके। तब पर भी अपने को एक सामान्य की भाँति जीवन में मनुष्य की सहयोग करना चाहिए। किसी संस्था हो या धर्म स्थान को आप सहयोग कर सकते हैं। चाहे हिन्दु की धर्म स्थान हो या मुस्लिम की किसी भी धर्म स्थान या संस्था या सोसाइटी में अपना सहयोग कर सकते हैं। किसी भी देश के नेता दुसरे देश जाते हैं तो वह एक दुसरे को आपसी सहयोग की भावना बनाता है। और दोनों देशों की आपस में सहयोग करता देखा जाता है। तब पर भी दोनों देश के बिच आपसी सहयोग का होना जरुरी होता है। सहयोग किसी भी क्षेत्र में आप दे सकते हैं। आर्थिक हो या तकनीकी एवं अन्य क्षेत्रों में आप सहयोग कर सकते हैं। सहयोग का मतलब होता है किसी भी प्रकार का हो सकता है। विकास हो या ऊर्जा या परमाणु और तकनीक आदि में सहयोग हो सकता है। और किसी भी देश के साथ एक दुसरे के लिए आप किसी भी क्षेत्र में आप सहयोग करने के लिए तैयार हो जाते हैं। क्योंकि सहयोग का अर्थ होता है। एक दुसरे का जब तक किसी भी देश दुसरे देश से सहयोग नहीं करते हैं। तब तक आगे नहीं बढ सकता है। और किसी भी देश चाहता है कि किसी भी देश से सहयोग बना रहे। तभी भी विकास हो सकता है। चाहे नेता हो या साधारण व्यक्ति कोई भी व्यक्ति चाहते हैं कि सहयोग बना रहे। और भारत कि बात है। तो भारत के लिए एक महत्वपुर्ण बात होता है कि किसी भी देश के लिए सहयोग बना होना। जिवन में किसी से भी सहयोग हो सकता है। परन्तु यह कहनाजरुरी नहीं है। कब किसका सहयोग कब मिल जायेगा। क्योंकि कोई किसी को नहीं जानते हैं कि किसका सहयोग किसको मिलेगा। और हर आदमी चाहते हैं कि मुझसे जितना हो सके सहयोग मैं करने के लिए तैयार रहता हुँ। सहयोग हर आदमी की भावना होना चाहिए। कि मैं सहयोग कर सकुँ। क्योंकि जीवन में क्या लेकर आये हैं। यही आदमी का एक मौका मिलता है कि मैं दुसरे का सहयोग कर सकुँ। चाहे अपना हो या पराया किसी को आप सहयोग कर सकते हैं। इसमें किसी पे सहयोग करने के लिये दबाब नहीं बनाया जाता है। क्योंकि सहयोग दबाब का जीज नहीं है। हर आदमी को कोई न कोई सहयोग करता है। चाहें आप कि जिवन में पत्नी हो या गाँव का लोग जरुर सहयोग करता है। यह जरुरी नहीं है कि आप का सहयोग गाँव का हि लोग कर सकते हैं। कहीं और का आदमी भी हो सकते हैं। सहयोग ही एक ऐसे शक्ति प्रदान करता है। जो आदमी को लक्ष्य तक पहुँचाता है। हर आदमी में सहयोग की भाबना होना चाहिए। मनुष्य ही एक ऐसे प्राणी है। जो हर किसी को सहयोग कर सकता है। क्योंकि सहयोग से किसी को सफलता मिलते हैं। तो उसे हमें सहयोग करना चाहिए। किसी भी तरह का सहयोग आप करना चाहते हैं। तो आप कर सकते हैं। सहयोग के लिए किसी को कोई दबाब नहीं दिया जाता है। जो अपनी श्रधा के अनुसार आप दे सकते हैं। लेकिन किसी भी संस्थान के लिये आप अपनी सहयोग का मापदंड आप पर निर्भल करता है। और मैं उसमें किस तरह का भागिदारी बन सके। हर किसी को सहयोग कि भावना होना चाहिए। क्योंकि सहयोग एक ऐसे बात नहीं है। जो दुसरो के लिये किया जा सकता है। परन्तु जब तक किसी भी संस्था के रूप में काम करती है। सहयोग हर आदमी को करना चाहिए। सहयोग से आदमी का मनोवल बदता है। सही समय पर किया गया काम अच्छा माने जाते हैं। सहयोग एक दुसरे के साथ मिलकर किया जाना चाहिए। परन्तु एक अपनी दिशा के अनुसार काम करना चाहिए। आज सहयोग के लिये अपना काम करता है। सहयोग हर गाँव या समाज में होता है। चाहें किसी भी जाति का हो सकता है। पर सहयोग सब कि करनी चहिए। और किसी भी प्रकार का आप को सहयोग करना चाहिए। सहयोग सबसे बड़ा मनुष्य के लिए महत्वपुर्ण काम है। जीवन के सारे पहलु में हमेश सहयोग का बहुत ही महत्त्वपुर्ण भुमिका होती है। हर हरह से मनुष्य का सहयोग करना चाहिए। सहयोग एक ऐसे काम के लिए जो दुसरे के लिए आगे आने का मौका मिल जाता है। सहयोग ही एक है जो हर देश, गाँव, समाज या किसी भी जाति वर्ग का आप सहयोग करते हैं। आपने देखा ही होगा कि जिस तरह का उत्तराखण्ड में बादल फटने से कितने आदमी का मौत हुआ है। उसी तरह समाज को आगे लाने के लिए लोग सहयोग कर रहे हैं। सहयोग एक वैसे चीज है जो हर प्रकार से आप सहयोग कर सकते हैं। जिस तरह का उत्तराखण्ड में हुआ है अगर आप इस में सहयोग नहीं किजिए गा तो किस में किजिए गा। यह बहुत बडी नुकसान हुआ है। देश के लिये। इस लिए सहयोग करना चाहिए। हर जाति धर्म के लिए सहयोग बहुत मैंने रखते हैं। गाँव हो या शहर कहीं पर भी आप किसी प्रकार का सहयोग कर सकते हैं। सहयोग के लिये कोइ पाबंधी नहीं है। किसी भी देश का आदमी कोइ भी देश में सहयोग कर सकता है। भारत में हि नहीं पूरे संसार में आप कहीं भी सहयोग कर सकते हैं। और किसी भी देश में कोइ आदमी सहयोग करना चाहते हैं। तो उस आदमी को कोइ नहीं रोक सकता सहयोग करने से चाहें सरकार हो या आम आदमी कुछ नहीं कर सकते हैं। किसी भी व्यक्ति को पर्सनल काम में बाँधा नहीं करना चाहिए। हर मनुष्य की जीवन में एक व्यक्तिगत रूप से अपनी कोई न कोई ख्याल रखता है। और किसी भी परिस्थिति में वह अपना काम करते रहते हैं। यही कारण होता है। जब लोगों की अपनी भावना होती है कि मैं दुसरो की सहयोग कर सकते हैं। तो इस में किसी को विरोध नहीं करना चाहिए। और जीवन में हर प्रकार का काम करना चाहिए। जो मनुष्य के लिये लाभदायक होती है। वही करना चाहिए। .

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सामाजिक उद्यमिता

सामाजिक उद्यमिता का कार्य करने वाले सामाजिक उद्यमी कहलाते हैं। सामाजिक उद्यमी अपनी पैनी नजर से समाज में व्याप्त किसी समस्या की पहचान करता है। उसके बाद सामाजिक उद्यमिता के सिद्धान्तों का सहारा लेते हुए वह सामाजिक परिवर्तन करके उस समस्या का समाधान निकालता है। जहां व्यापारिक उद्यमी अपना कार्य लाभ और हानि के रूप में मापते हैं, सामाजिक उद्यमी अपनी सफलता का मूल्यांकन समाज पर अपने कार्य द्वारा पडे प्रभाव के रूप में मापते हैं। अधिकांश सामाजिक उद्यमी बिना लाभ के काम करने वाली संस्थाओं अथवा नागरिक समूहों के रूप में कार्य करते हैं। जिस प्रकार व्यापारिक उद्यमिता में नवाचारी उत्पादों या नवाचारी सेवाओं का बहुत महत्व है, उसी तरह सामाजिक उद्यमी के कार्य में सामाजिक नवाचार का बहुत महत्व है। यद्यपि इस शब्द का प्रयोग १९८०/१९९० के दशक से शुरू हुआ, इतिहास में हर काल और हर देश में सामाजिक उद्यमी भरे पडे हैं। महात्मा गांधी, विनोबा भावे, फ्लोरेंस नाइटइंगेल, राबर्ट ओवेन आदि कुछ प्रमुख सामाजिक उद्यमी हैं। आज के समय मे यदि अधिक से अधिक लोग सामाजिक उद्यमिता के क्षेत्र मे आगे आते है तो कै ऐसे काम हो सकते है जिसके लिये सरकारी तन्त्र के आगे हाथ फैलना पडता है। .

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सामग्री प्रबंधन

सामग्री प्रबंधन (Materials management) में स्पेयर पार्ट्स का प्रापण (acquision), खराब हुए अवयवों के प्रतिस्थापन, क्रय का गुणवत्ता नियंत्रण तथा क्रयादेश, शिपिंग एवं भंडारण के मानकों का निर्धारण आदि से संबन्धित विषय है। यह लॉजिस्टिक्स का वह भाग है जो आपूर्ति शृंखला (सप्लाई चेन) के अदृष्य अवयवों से संबन्धित है। .

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संचार प्रबंधन

1) समन्वय में सुविधा - कृत्यों तथा विभागों का समाकलन करते समय समन्वय का पूरा-पूरा ध्यान रखा जाना चाहिए। प्रबन्ध का यह मुख्य कार्य है कि वह कर्मचारी के अलग-अलग कार्यों, प्रयासों, हितों व दृष्टिकोण में एक उचित समन्वय स्थापित करे। संगठन का निर्माण करते समय उपक्रम की क्रियाओं का वर्गीकरण एवं समूहीकरण किया जाता है। उपक्रम के सभी विभाग सामान्य उद्देश्यों की पूर्ति के लिए प्रयासरत रहते हैं जिसके परिणामस्वरूप समन्वय का कार्य सुविधाजनक हो जाता है। (2) अधिकार प्रत्यायोजन में सुविधा - एक अच्छे संगठन में प्रत्येक अधिकारी को अपने कार्यक्षेत्र, उद्देश्यों एवं अधिकारों का स्पष्ट ज्ञान हो जाता है। वह अपने अधीनस्थों को आवश्यक कार्य एवं अधिकार सौंप सकता है। कुशल संगठन अधिकारों के प्रत्यायोजन को सुगम बनाता है। एक कुशल संगठन में एक अधिकारी को यह ज्ञात होता है कि उनके अधीनस्थ कौन-कौन व्यक्ति हैं और किसे क्या-क्या कार्य करना है। सुदृढ़ संगठन यथार्थ एवं प्रभावपूर्ण प्रत्यायोजन को सुविधाजनक बनाता है। (3) भ्रष्टाचार की समाप्ति - संगठन के विभिन्न स्तरों पर निरन्तर नियंत्रण का कार्य किया जाता है। अच्छा संगठन अपने कर्मचारियों में वैयक्तिक गुणों, परिश्रम, दायित्व, भावना आदि को प्रोत्साहित करके भ्रष्टाचार एवं निष्क्रियता को समाप्त करता है। (4) संचार में सुविधा - संगठन के द्वारा संस्था में अधिकारी, अधीनस्थ संबंध स्थापित हो जाते हैं एवं औपचारिक संचार के मार्गों का निर्धारण हो जाता है। जिसके कारण ऊपर से नीचे की ओर आदेशों के प्रवाह में और नीचे से ऊपर की और कर्मचारियों के विचारों, सुझावों एवं समस्याओं के प्रवाह में सुवि धा होती है। (5) अच्छे मानवीय संबंधों को बढ़ावा - प्रभावी संगठन संरचना कार्मिकों में समूह भावना का विकास करती है, एक साथ मिलकर कार्य करने की प्रेरणा देती है तथा मानव के साथ मानवता का व्यवहार करने के लिए प्रेरित करती है। अधिकार-दायित्वों की स्पष्ट व्याख्या, कुशल संचार, प्रत्यायोजन, रूचि के अनुसार कार्य-वितरण, आदेश-निर्देशों की एकता आदि घटकों से श्रेष्ठ मानवीय संबंधों का विकास होता है। (6) मनोबल का विकास - स्वस्थ संगठन में कर्मचारियों के मनोबल में वृद्धि होती है। कर्मचारियों को उनकी योग्यता के अनुरूप ही कार्य दिया जाता है जिससे कर्मचारियों को अपने दायित्वों एवं अधिकारों का स्पष्ट ज्ञान होता है। अतः कर्मचारियों को अच्छा कार्य करने पर प्रशंसा एवं खराब कार्य पर चेतावनी मिलती है जिससे कर्मचारियों के मनोबल में वृद्धि होती है। (7) विशिष्टीकरण को बढ़ावा - संगठन संरचना का निर्माण श्रम विभाजन के आधार पर किया जाता है। संगठन संरचना का मुख्य आधार श्रम विभाजन होता है, जिसमें प्रत्येक व्यक्ति एक विशेष कार्य ही करता है। विशिष्टीकरण से कर्मचारियों की कार्यक्षमता बढ़ती है तथा अधिक उत्पादन का मार्ग प्रशस्त होता है। इसके परिणामस्वरूप व्यक्तियों की कुशलता बढ़ती है। कुशलता बढ़ने से उत्पादन अधिक होता है तथा प्रति इकाई लागत घटती है जिससे लोगों को कम आय में अधिक वस्तुएँ प्राप्त होती है एवं जीवन स्तर में वृद्धि होती है। (8) उपक्रम के कार्यों को व्यवस्थित करना - संगठन प्रत्येक व्यक्ति के लिए निश्चित कार्य, निश्चित स्थान तथा निश्चित साधनों की व्यवस्था करता है, जिससे उपक्रम के कार्य व्यवस्थित रूप से चलते रहते हैं। संगठन व्यवस्था को जन्म देता है। संगठन का अभाव ही अव्यवस्था को जन्म देता है। (9) विकास को बढ़ावा - संगठन विकास का मूल मंत्र है। उपक्रम का विकास संगठन की कुशलता पर निर्भर करता है। बड़े-बड़े उपक्रमों के विकास का इतिहास अच्छे एवं कुशल संगठन की ही कहानी है। कोई भी उपक्रम संगठन के अभाव में विकास की आशा नहीं कर सकता है। (10) रचनात्मक विचारधारा को प्रोत्साहन - संगठन में कार्य करने वाले कर्मचारी रचनात्मक दृष्टिकोण रखते हैं। कर्मचारियों की इच्छा के अनुरूप कार्य मिलने पर वे उसे सम्पन्न करने में सक्षम होते हैं जिससे कर्मचारियों को संतोष प्राप्त होता है। अतः उनकी सोचने समझने की शक्ति बढ़ती है फलस्वरूप रचनात्मक विचारों को प्रोत्साहन मिलता है। (11) व्यवस्था का निर्माण - एक संस्था में छोटी सी गलती समस्त पूंजी विनियोजन को व्यर्थ बना सकती है। अतः संगठन के द्वारा ही मतभेदों एवं अनियमितताओं को उत्पन्न होने से रोका जा सकता है। (12) प्रबन्धकीय कार्य क्षमता में वृद्धि - कर्मचारियों में मधुर संबंध स्थापित करना, कार्य की आवश्यकता के अनुरूप कर्मचारियों की भर्ती, कार्र्यों का वैज्ञानिक आधार पर बंटवारा आदि के द्वारा प्रबन्धकीय कार्य-क्षमता में वृद्धि की जा सकती है। (13) साधनों का अनुकूलतम उपयोग - कर्मचारियों की इच्छा के अनुरूप कार्य मिलने पर उसे वे भली-भांति सम्पन्न करने में सक्षम होते हैं तथा उचित समन्वय के द्वारा कार्यों के दोहराव व अपव्यय को समाप्त किया जा सकता है जिसके कारण साधनों का अनुकूलतम उपयोग होता है। (14) व्यक्तिगत योग्यताओं के मापन का आधार - जब कर्मचारियों को कार्यभार सौंप दिया जाता है तो कर्मचारियों को अपने दायित्व का बोध हो जाता है अतः यह आसानी से पता किया जा सकता है कि कर्मचारी ने सौंपे गये कार्य को किस सीमा तक पूरा किया है जिसके फलस्वरूप कर्मचारी की व्यक्तिगत योग्यता एवं क्षमता का सही मापन हो जाता है। (15) सामूहिक प्रयासों की प्रभावशीलता - संगठित प्रयासों के माध्यम से ही उद्देश्यों की पूर्ति की जा सकती है। इसके माध्यम से ही व्यक्तिगत प्रयासों का एकीकरण किया जाता है। (16) नियंत्रण में सुविधा - कार्यों, अधिकारों एवं दायित्वों के निश्चित होने के कारण संगठन के विभिन्न स्तरों पर अनावश्यक हस्तक्षेप की आवश्यकता नहीं होती है तथा उच्च प्रबन्धकों को केवल महत्त्वपूर्ण नियंत्रण केन्द्रों पर ध्यान देने की आवश्यकता होती है। (17) मानवीय प्रयासों का समुचित उपयोग - विशिष्टीकरण के माध्यम से जब कार्मिकों को अपनी योग्यता, अनुभव एवं रुचि के अनुसार कार्य मिल जाता है तो वे सौंपे गये कृत्य का अपनी योग्यता, कुशलता एवं अनुभव का पूरा उपयोग करके ठीक ढंग से निष्पादन करते हैं। इस प्रकार सुदृढ़ संगठन से “सही व्यक्ति को सही कार्य“ प्रदान करने से उनके प्रयास का समुचित उपयोग सम्भव होता है और समय, श्रम एवं धन का दुरुपयोग नहीं होता। (18) तकनीकी सुधारों का समुचित उपयोग - इस वैज्ञानिक युग में शोध एवं अनुसंधानों के कारण औद्योगिक जगत में आये दिन परिवर्तन होते रहते हैं। इन परिवर्तनों, सुधारों एवं विकसित नवीन तकनीकों की प्रयुक्ति न्यूनतम लागत पर अधिकतम उत्पादन प्राप्त करने के लिए आवश्यक हो जाती है। प्रभावी संगठन द्वारा ही इन नवीन सुधारों का लाभ उठाया जा सकता है। .

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संगठन

संगठन (organisation) वह सामाजिक व्यवस्था या युक्ति है जिसका लक्ष्य एक होता है, जो अपने कार्यों की समीक्षा करते हुए स्वयं का नियन्त्रण करती है, तथा अपने पर्यावरण से जिसकी अलग सीमा होती है। संगठन तरह-तरह के हो सकते हैं - सामाजिक, राजनैतिक, आर्थिक, सैनिक, व्यावसायिक, वैज्ञानिक आदि। .

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संकट प्रबंधन

संकट प्रबंधन वह प्रक्रिया है जिसके द्वारा एक संगठन किसी मुख्य अप्रत्याशित घटना से निपटता है, जिससे उस संगठन, उसके शेयरधारकों, या आम जनता को नुकसान पहुंचने का खतरा रहता हो.

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हेनरी फेयोल

हेनरी फेयोल हेनरी फेयोल (Henri Fayol; 29 जुलाई 1841 – 19 नवम्बर 1925) फ्रांस के खनन इंजीनियर तथा प्रबन्ध-सिद्धान्तकार थे। उन्होने व्यवसाय प्रशासन का सामान्य सिद्धान्त विकसित किया जिसका 20वीं सदी के प्रारंभ में व्यापक प्रभाव था। फेयोल एवं उनके सहकर्मियों ने इस सिद्धान्त का विकास वैज्ञानिक प्रबन्धन के सिद्धान्त के विकास से स्वतंत्र रूप से एवं लगभग उसी काल में किया। प्रबन्धन के आधुनिक संकल्पना के विकास में सबसे प्रभावी योगदान करने वालों में फेयोल का नाम अग्रणी है।.

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ज्ञान प्रबन्धन

ज्ञान प्रबन्धन के अन्तर्गत वे सारे कार्य आते हैं जो संस्थाओं द्वारा ज्ञान को पहचानने, उसके सृजन करने, उसे सम्यक रूप से प्रदर्शित करने, तथा उसके वितरण से सम्बन्ध रखते हैं। .

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जोखिम

जोखिम (risk) किसी मूल्य की चीज़ को पाने या खोने की सम्भावना को कहते हैं। जोखिम के कार्यों और प्रक्रियाओं में अनिश्चितता का तत्व उपस्थित होता है। जोखिम एक विस्तृत अवधारणा है जिसका विभिन्न परस्थितियों में विभिन्न प्रकार से विश्लेषण व प्रबंधन किया जाता है। .

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जोखिम प्रबंधन

जोखिम प्रबंधन के उदाहरण: अंतरराष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन के लिए उच्च प्रभाव जोखिम क्षेत्रों को दर्शाते हुए NASA का दृष्टान्त. जोखिम प्रबंधन का अर्थ है जोखिम की पहचान, मूल्यांकन एवं प्राथमिकीकरण के साथ-साथ संसाधनों का समन्वित तथा आर्थिक प्रयोग कर दुर्भाग्यपूर्ण घटनाओं की संभाव्यता अथवा प्रभाव को न्यूनतम करना, परखना और नियंत्रित करना। डगलस हबॉर्ड "द फ्यूचर ऑफ़ रिस्क मैनेजमेंट: व्हाइ इट्स ब्रॉकेन ऐंड हाउ टु फिक्स इट" पृष्ठ 46, जॉन विले ऐंड संस, 2009 जोखिम वित्तीय बाजारों में अनिश्चितता, परियोजना की असफलता, वैधानिक देयताएं, ऋण जोखिम, दुर्घटनाएं, प्राकृतिक कारणों और अपदाओं यहां तक कि विरोधियों के जान-बूझकर किए गए आक्रमणों के कारण हो सकते हैं। अनेक जोखिम प्रबंधन मानक विकसित किये गए हैं जिनमे परियोजना प्रबंधन संस्थान, राष्ट्रीय विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी संस्थान, बीमांकिक संस्थाएं तथा ISO मानक शामिल हैं। क्या जोखिम प्रबंधन पद्वति परियोजना प्रबंधन, सुरक्षा, अभियांत्रिकी, औद्योगिक प्रक्रियाओं, वित्तीय विभागों, बीमांकिक आकलनों अथवा सार्वजनिक स्वास्थ्य एवं सुरक्षा से सन्दर्भित है - इस बारे में पद्धतियां, परिभाषाएं एवं उद्देश्य व्यापक रूप से भिन्न है। जोखिम प्रबंधन की रणनीतियों में दूसरे पक्ष को जोखिम का हस्तांतरण, जोखिम को टालना, जोखिम में नकारात्मक प्रभाव को कम करना और किसी खास जोखिम के थोड़े बहुत या सभी नतीजों को मान लेना शामिल हैं। जोखिम प्रबंधन के मानकों के कई पहलुओं की आलोचना की जा चुकी है क्योंकि मूल्यांकनों और निर्णयों में विशवास के बढ़ने के बावजूद कोई मापनीय सुधार नहीं हुआ है। .

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वित्‍तीय प्रबंधन

वित्तीय प्रबन्धन (Financial management) से आशय धन (फण्ड) के दक्ष एवं प्रभावी प्रबन्धन है ताकि संगठन के लक्ष्यों की प्राप्ति की जा सके। वित्त प्रबन्धन का कार्य संगठन के सबसे ऊपरी प्रबन्धकों का विशिष्ट कार्य है। मनुष्य द्वारा अपने जीवन काल में प्रायः दो प्रकार की क्रियाएं सम्पादित की जाती है - आर्थिक क्रियायें तथा अनार्थिक क्रियाएं। आर्थिक क्रियाओं के अर्न्तगत हम उन समस्त क्रियाओं को सम्मिलित करते हैं जिनमें प्रत्यक्ष अथवा परोक्ष रूप से धन की संलग्नता होती है जैसे रोटी, कपड़े, मकान की व्यवस्था आदि। अनार्थिक क्रियाओं के अन्तर्गत पूजा-पाठ, व अन्य सामाजिक व राजनैतिक कार्यों को सम्मिलित किया जा सकता है। जब हम किसी प्रकार का व्यवसाय करते हैं अथवा उद्योग लगाते हैं अथवा फिर कतिपय तकनीकी दक्षता प्राप्त करके किसी पेशे को अपनाते हैं तो हमें सर्वप्रथम वित्त (finance) धन (money) की आवश्यकता पड़ती है जिसे हम पूँजी (capital) कहते हैं। जिस प्रकार किसी मशीन को चलाने हेतु ऊर्जा के रूप में तेल, गैस या बिजली की आवश्यकता होती है उसी प्रकार किसी भी आर्थिक संगठन के संचालन हेतु वित्त की आवश्यकता होती है। अतः वित्त जैसे अमूल्य तत्व का प्रबन्ध ही वित्तीय प्रबन्धन कहलाता है। व्यवसाय के लिये कितनी मात्रा में धन की आवश्यकता होगी, वह धन कहॉं से प्राप्त होगा और उपयोग संगठन में किस रूप में किया जायेगा, वित्तीय प्रबन्धक को इन्हीं प्रश्नों के उत्तर खोजने पड़ते हैं। व्यवसाय का उद्देश्य अधिकतम लाभ अर्जन करना होता है जो दो प्रकार से किया जा सकता है।.

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वैज्ञानिक प्रबन्धन

वैज्ञानिक प्रबन्धन (जिसे टेलरवाद और टेलर पद्धति भी कहते हैं) प्रबन्धन का एक सिद्धान्त है जो कार्य-प्रवाह (workflow) का विश्लेषण एवं संश्लेषण करती है और इस प्रकार श्रमिक उत्पादकता को बढ़ाने में सहायता करती है। इसके मूल सिद्धान्त १८८० एवं १८९० के दशकों में फ्रेडरिक विंस्लो टेलर द्वारा प्रतिपादित किये गये जो उनकी रचनाओं "शॉप मैनेजमेन्ट" (१९०५) तथा "द प्रिन्सिपल्स ऑफ साइन्टिफिक मैनेजमेन्ट" (१९११) के द्वारा प्रकाश में आये। टेलर का मानना था कि परिपाटी और "रूल ऑफ थम्ब" पर आधारित निर्णय के स्थान पर ऐसी तरीकों/विधियों का उपयोग किया जाना चाहिये जो कर्मिकों के कार्य का ध्यानपूर्बक अध्ययन के फलस्वरूप विकसित किये गये हों। वस्तुत: टेलरवाद, दक्षता वृद्धि का दूसरा नाम है। उन्नीसवीं शताब्दी के अन्त एवं बीसवीं शताब्दी के प्रारम्भ में मानव-जीवन में दक्षता बढ़ाने, बर्बादी कम करने, प्रयोगाधारित विधियों का उपयोग करने आदि की बहुत चर्चा हुई। टेलरवाद को इनका ही एक अंश माना जा सकता है। .

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ग्राहक संबंध प्रबंधन

SHILENDRA cHAUDHARY ग्राहक संबंध प्रबंधन (CRM), कंपनियों द्वारा ग्राहकों के साथ बातचीत करने के लिए प्रयुक्त तरीक़े हैं। इन पद्धतियों में कर्मचारी प्रशिक्षण और विशेष उद्देश्य के CRM सॉफ्टवेयर शामिल हैं। इसमें ग्राहकों के फ़ोन कॉल और ई-मेल से निपटने पर बल दिया जाता है, हालांकि CRM सॉफ्टवेयर द्वारा एकत्रित जानकारी को बढ़ावा देने और ग्राहक संतुष्टि के लिए मतदान जैसे सर्वेक्षणों के लिए भी इसे इस्तेमाल कर सकते हैं। अक्सर पहल असफल होते हैं, क्योंकि कर्मचारियों को बिना कोई संदर्भ, सहायता और शिक्षा प्रदान किए, कार्यान्वयन केवल सॉफ्टवेयर अधिष्ठापन तक ही सीमित रह जाता है। ग्राहक संबंध प्रबंधन के लिए साधनों का कार्यान्वयन "केवल एक अच्छी तरह से तैयार रणनीति और संचालन की योजना के बाद" ही लागू किया जाना चाहिए.

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आपदा तत्परता

आपातकालीन प्रबंधन एक अंतःविषयक क्षेत्र का सामान्य नाम है जो किसी संगठन की महत्वपूर्ण आस्तियों की आपदा या विपत्ति उत्पन्न करने वाले खतरनाक जोखिमों से रक्षा करने और सुनियोजित जीवनकाल में उनकी निरंतरता सुनिश्चित करने के लिए प्रयुक्त सामरिक संगठनात्मक प्रबंधन प्रक्रियाओं से संबंधित है। आस्तियां सजीव, निर्जीव, सांस्कृतिक या आर्थिक के रूप में वर्गीकृत हैं। खतरों को प्राकृतिक या मानव-निर्मित कारणों के द्वारा वर्गीकृत किया जाता है। प्रक्रियाओं की पहचान के उद्देश्य से संपूर्ण सामरिक प्रबंधन की प्रक्रिया को चार क्षेत्रों में बांटा गया है। ये चार क्षेत्र सामान्य रूप से जोखिम न्यूनीकरण, खतरे का सामना करने के लिए संसाधनों को तैयार करने, खतरे की वजह से हुए वास्तविक नुकसान का उत्तर देने और आगे के नुकसान को सीमित करने (जैसे आपातकालीन निकासी, संगरोध, जन परिशोधन आदि) और यथासंभव खतरे की घटना से यथापू्र्व स्थिति में लौटने से संबंधित हैं। क्षेत्र सार्वजनिक और निजी दोनों में होता है, प्रक्रिया एक सी सांझी होती है लेकिन ध्यान केंद्र विभिन्न होते हैं। आपातकालीन प्रबंधन प्रक्रिया एक नीतिगत प्रक्रिया न होकर एक रणनीतिक प्रक्रिया है अतः यह आमतौर पर संगठन में कार्यकारी स्तर तक ही सीमित रहती है। सामान्य रूप से इसकी कोई प्रत्यक्ष शक्ति नहीं है लेकिन यह सुनिश्चित करने के लिए कि एक संगठन के सभी भाग एक सांझे लक्ष्य पर ध्यान केंद्रित करें, यह सलाहकार के रूप में या कार्यों के समन्वय के लिए कार्य करता है। प्रभावी आपात प्रबंधन संगठन के सभी स्तरों पर आपातकालीन योजनाओं के संपूर्ण एकीकरण और इस समझ पर निर्भर करता है कि संगठन के निम्नतम स्तर आपात स्थिति के प्रबंधन और ऊपरी स्तर से अतिरिक्त संसाधन और सहायता प्राप्त करने के लिए जिम्मेदार हैं। कार्यक्रम का संचालन करने वाले संगठन के सबसे वरिष्ठ व्यक्ति को सामान्य रूप से एक आपातकालीन प्रबंधक या क्षेत्र में प्रयुक्त शब्द से व्युत्पन्न पर आधारित (अर्थात् व्यापार निरंतरता प्रबंधक) कहा जाता है। इस परिभाषा के अंतर्गत शामिल क्षेत्र हैं.

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आपूर्ति शृंखला प्रबंधन

आपूर्ति शृंखला प्रबंधन (SCM) अंतरसम्बद्ध व्यापार के नेटवर्क का प्रबंधन है, जो कि ग्राहकों द्वारा अपेक्षित चरम उत्पाद व्यवस्था और सेवा संकुलों में शामिल होता है (हारलैंड, 1996).

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अर्थशास्त्रियों की सूची

एडम स्मिथ भीमराव अम्बेडकर कार्ल मार्क्स दादा भाई नौरोजी अमर्त्य सेन चाणक्य जीसस ह्युअर्टा डि सोटो .

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उत्पाद प्रबंधन

किसी एक उत्पाद या अनेक उत्पादों से सम्बन्धित आयोजन, पूर्वानुमान लगाना, उत्पादन, विपणन आदि क्रियाओं को समग्र रूप से उत्पाद प्रबन्धन (प्रोडक्ट मैनेजमेण्ट) कहते हैं। श्रेणी:प्रबन्धन *.

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प्रबन्ध, प्रबन्धक, प्रबंधन, प्रबंधक

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