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प्रतिजैविक

सूची प्रतिजैविक

किरबी-ब्यूअर डिस्क प्रसार विधि द्वारा स्टेफिलोकुकस एयूरेस एंटीबायोटिक दवाओं की संवेदनशीलता का परीक्षण.एंटीबायोटिक एंटीबायोटिक से बाहर फैलाना-डिस्क युक्त और एस अवरोध के क्षेत्र में जिसके परिणामस्वरूप aureus का विकास बाधित किया जाता है। आम उपयोग में, प्रतिजैविक या एंटीबायोटिक एक पदार्थ या यौगिक है, जो जीवाणु को मार डालता है या उसके विकास को रोकता है। एंटीबायोटिक रोगाणुरोधी यौगिकों का व्यापक समूह होता है, जिसका उपयोग कवक और प्रोटोजोआ सहित सूक्ष्मदर्शी द्वारा देखे जाने वाले जीवाणुओं के कारण हुए संक्रमण के इलाज के लिए होता है। "एंटीबायोटिक" शब्द का प्रयोग 1942 में सेलमैन वाक्समैन द्वारा किसी एक सूक्ष्म जीव द्वारा उत्पन्न किये गये ठोस या तरल पदार्थ के लिए किया गया, जो उच्च तनुकरण में अन्य सूक्ष्मजीवों के विकास के विरोधी होते हैं। इस मूल परिभाषा में प्राकृतिक रूप से प्राप्त होने वाले ठोस या तरल पदार्थ नहीं हैं, जो जीवाणुओं को मारने में सक्षम होते हैं, पर सूक्ष्मजीवों (जैसे गैस्ट्रिक रसऔर हाइड्रोजन पैराक्साइड) द्वारा उत्पन्न नहीं किये जाते और इनमें सल्फोनामाइड जैसे सिंथेटिक जीवाणुरोधी यौगिक भी नहीं होते हैं। कई एंटीबायोटिक्स अपेक्षाकृत छोटे अणु होते हैं, जिनका भार 2000 Da से भी कम होता हैं। औषधीय रसायन विज्ञान की प्रगति के साथ-साथ अब अधिकतर एंटीबायोटिक्ससेमी सिंथेटिकही हैं, जिन्हें प्रकृति में पाये जाने वाले मूल यौगिकों से रासायनिक रूप से संशोधित किया जाता है, जैसा कि बीटालैक्टम (जिसमें पेनसिलियम, सीफालॉसपोरिन औरकारबॉपेनम्स के कवक द्वारा उत्पादितपेनसिलिंस भी शामिल हैं) के मामले में होता है। कुछ एंटीबायोटिक दवाओं का उत्पादन अभी भी अमीनोग्लाइकोसाइडजैसे जीवित जीवों के जरिये होता है और उन्हें अलग-थलग रख्ना जाता है और अन्य पूरी तरह कृत्रिम तरीकों- जैसे सल्फोनामाइड्स,क्वीनोलोंसऔरऑक्साजोलाइडिनोंससे बनाये जाते हैं। उत्पत्ति पर आधारित इस वर्गीकरण- प्राकृतिक, सेमीसिंथेटिक और सिंथेटिक के अतिरिक्त सूक्ष्मजीवों पर उनके प्रभाव के अनुसार एंटीबायोटिक्स को मोटे तौर पर दो समूहों में विभाजित किया जा सकता हैं: एक तो वे, जो जीवाणुओं को मारते हैं, उन्हें जीवाणुनाशक एजेंट कहा जाता है और जो बैक्टीरिया के विकास को दुर्बल करते हैं, उन्हें बैक्टीरियोस्टेटिक एजेंट कहा जाता है। .

24 संबंधों: टिनिडाजोल, पदार्थ, पादप, प्रतिजन, प्राचीन मिस्र, प्राचीन यूनानी भाषा, प्रजीवगण, प्रोबायोटिक, पेनिसिलिन, फफूंद, फुल्लन, मलेरिया, मेट्रोनिडाजोल, यूनाइटेड किंगडम, रसायन विज्ञान, रासायनिक यौगिक, लोहा, स्तनधारी, सूक्ष्मदर्शी, जीवाणु, औषधि, इंग्लैण्ड, अतिसार, अलेक्ज़ांडर फ्लेमिङ

टिनिडाजोल

टिनिडाजोल एक कार्बनिक यौगिक है। श्रेणी:कार्बनिक यौगिक.

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पदार्थ

रसायन विज्ञान और भौतिक विज्ञान में पदार्थ (matter) उसे कहते हैं जो स्थान घेरता है व जिसमे द्रव्यमान (mass) होता है। पदार्थ और ऊर्जा दो अलग-अलग वस्तुएं हैं। विज्ञान के आरम्भिक विकास के दिनों में ऐसा माना जाता था कि पदार्थ न तो उत्पन्न किया जा सकता है, न नष्ट ही किया जा सकता है, अर्थात् पदार्थ अविनाशी है। इसे पदार्थ की अविनाशिता का नियम कहा जाता था। किन्तु अब यह स्थापित हो गया है कि पदार्थ और ऊर्जा का परस्पर परिवर्तन सम्भव है। यह परिवर्तन आइन्स्टीन के प्रसिद्ध समीकरण E.

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पादप

पादप या उद्भिद (plant) जीवजगत का एक बड़ी श्रेणी है जिसके अधिकांश सदस्य प्रकाश संश्लेषण द्वारा शर्कराजातीय खाद्य बनाने में समर्थ होते हैं। ये गमनागम (locomotion) नहीं कर सकते। वृक्ष, फर्न (Fern), मॉस (mosses) आदि पादप हैं। हरा शैवाल (green algae) भी पादप है जबकि लाल/भूरे सीवीड (seaweeds), कवक (fungi) और जीवाणु (bacteria) पादप के अन्तर्गत नहीं आते। पादपों के सभी प्रजातियों की कुल संख्या की गणना करना कठिन है किन्तु प्रायः माना जाता है कि सन् २०१० में ३ लाख से अधिक प्रजाति के पादप ज्ञात हैं जिनमें से 2.7 लाख से अधिक बीज वाले पादप हैं। पादप जगत में विविध प्रकार के रंग बिरंगे पौधे हैं। कुछ एक को छोड़कर प्रायः सभी पौधे अपना भोजन स्वयं बना लेते हैं। इनके भोजन बनाने की क्रिया को प्रकाश-संश्लेषण कहते हैं। पादपों में सुकेन्द्रिक प्रकार की कोशिका पाई जाती है। पादप जगत इतना विविध है कि इसमें एक कोशिकीय शैवाल से लेकर विशाल बरगद के वृक्ष शामिल हैं। ध्यातव्य है कि जो जीव अपना भोजन खुद बनाते हैं वे पौधे होते हैं, यह जरूरी नहीं है कि उनकी जड़ें हों ही। इसी कारण कुछ बैक्टीरिया भी, जो कि अपना भोजन खुद बनाते हैं, पौधे की श्रेणी में आते हैं। पौधों को स्वपोषित या प्राथमिक उत्पादक भी कहा जाता है। 'पादपों में भी प्राण है' यह सबसे पहले जगदीश चन्द्र बसु ने कहा था। पादपों का वैज्ञानिक अध्ययन वनस्पति विज्ञान कहलाता है। .

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प्रतिजन

प्रतिजन प्रतिरक्षाविज्ञान में, प्रतिजन (antigen) किसी जीवधारी के शरीर में उपस्थित वे अणु हैं जो रोगों से लड़ने की क्षमता उत्पन्न करते हैं। दूसरे शब्दों में, कोई भी पदार्थ जो शरीर के प्रतिरक्षा तंत्र को प्रतिपिण्ड उत्पन्न करने में सहायक होता है, उसको प्रतिजन कहते हैं। http://www.microbiologyinfo.com/antigen-properties-types-and-determinants-of-antigenicity/ श्रेणी:जीव विज्ञान श्रेणी:शब्दावली श्रेणी:सूक्ष्मजैविकी श्रेणी:जैव प्रौद्योगिकी श्रेणी:आण्विक जैविकी.

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प्राचीन मिस्र

गीज़ा के पिरामिड, प्राचीन मिस्र की सभ्यता के सबसे ज़्यादा पहचाने जाने वाले प्रतीकों में से एक हैं। प्राचीन मिस्र का मानचित्र, प्रमुख शहरों और राजवंशीय अवधि के स्थलों को दर्शाता हुआ। (करीब 3150 ईसा पूर्व से 30 ई.पू.) प्राचीन मिस्र, नील नदी के निचले हिस्से के किनारे केन्द्रित पूर्व उत्तरी अफ्रीका की एक प्राचीन सभ्यता थी, जो अब आधुनिक देश मिस्र है। यह सभ्यता 3150 ई.पू.

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प्राचीन यूनानी भाषा

प्राचीन यूनानी भाषा (अथवा प्राचीन ग्रीक, अंग्रेज़ी: Ancient Greek, यूनानी: हेल्लेनिकी) प्राचीन काल के यूनान देश और उसके आस-पास के क्षेत्रों की मुख्य भाषा थी। इसे संस्कृत की बहिन भाषा माना जा सकता है। ये हिन्द-यूरोपीय भाषा-परिवार की यूनानी शाखा में आती है। इसे एक शास्त्रीय भाषा माना जाता है, जिसमें काफ़ी ज़्यादा और उच्च कोटि का साहित्य रचा गया था, जिसमें सबसे ख़ास होमर के दो महाकाव्य इलियाड और ओडेस्सी हैं। इसके व्याकरण, शब्दावली, ध्वनि-तन्त्र और संगीतमय बोली इसे संस्कृत के काफ़ी करीब रख देते हैं। इसकी बोलचाल की बोली कोइने में ही बाइबल का लगभग सारा नया नियम लिखा गया था। .

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प्रजीवगण

प्रजीवगण (प्रोटोज़ोआ) एक एककोशिकीय जीव है। इनकी कोशिका प्रोकैरियोटिक प्रकार की होती है। ये साधारण सूक्ष्मदर्शी यंत्र से आसानी से देखे जा सकते हैं। कुछ प्रोटोज़ोआ जन्तुओं या मनुष्य में रोग उत्पन्न करते हैं, उन्हे रोगकारक प्रोटोज़ोआ कहते हैं। श्रेणी:प्रोटोज़ोआ श्रेणी:मलेरिया.

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प्रोबायोटिक

लैक्टोबैसिलस जीवाणु प्रोबायोटिक जीवाणु है, जो दूध को दही में बदलता है। प्रोबायोटिक एक प्रकार के खाद्य पदार्थ होते हैं, जिसमें जीवित जीवाणु या सूक्ष्मजीव शामिल होते हैं। प्रोबायोटिक विधि रूसी वैज्ञानिक एली मैस्निकोफ ने २०वीं शताब्दी में प्रस्तुत की थी। इसके लिए उन्हें बाद में नोबेल पुरस्कार से भी सम्मानित किया गया था।। हिन्दुस्तान लाइव। १ दिसम्बर २००९ विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार प्रोबायोटिक वे जीवित सूक्ष्मजीव होते हैं जिसका सेवन करने पर मानव शरीर में जरूरी तत्व सुनिश्चित हो जाते हैं।। बिज़नेस भास्कर। २४ मई २००९। डॉ॰ रतन सागर खन्ना ये शरीर में अच्छे जीवाणुओं की संख्या में वृद्धि कर पाचन क्रिया को बेहतर बनाते हैं।। बिज्नेस स्टैण्डर्ड। नेहा भारद्वाज। १८ सितंबर २००८ इस विधि के अनुसार शरीर में दो तरह के जीवाणु होते हैं, एक मित्र और एक शत्रु। भोजन के द्वारा यदि मित्र जीवाणुओं को भीतर लें तो वे धीरे-धीरे शरीर में उपलब्ध शत्रु जीवाणुओं को नष्ट करने में कारगर सिद्ध होते हैं। मित्र जीवाणु प्राकृतिक स्रोतों और भोजन से प्राप्त होते हैं, जैसे दूध, दही और कुछ पौंधों से भी मिलते हैं। अभी तक मात्र तीन-चार ही ऐसे जीवाणु ज्ञात हैं जिनका प्रयोग प्रोबायोटिक रूप में किया जाता है। इनमें लैक्टोबेसिलस, बिफीडो, यीस्ट और बेसिल्ली हैं। इन्हें एकत्र करके प्रोबायोटिक खाद्य पदार्थ में डाला जाता है। वैज्ञानिकों के अब तक के अध्ययन के अनुसार इस तरह से शरीर में पहुंचने वाले जीवाणु किसी प्रकार की हानि भी नहीं पहुंचाते हैं। शोधों में रोगों के रोकथाम में इनकी भूमिका सकारात्मक पाई गई है तथा इनके कोई दुष्प्रभाव भी ज्ञात नहीं हैं। .

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पेनिसिलिन

जापानी बैंड के लिए पेनिसिलिन (बैंड) देखें। पेनिसिलिन की मूल संरचना."R" अस्थिर समूह है। पेनिसिलिन (कभी-कभी संक्षिप्त रूप से पीसीएन (PCN) या पेन (pen) भी कहा जाता है) एंटीबायोटिक का एक समूह है, जिसकी व्युत्पत्ति पेनिसिलियम फंगी से हुई है। पेनिसिलिन एंटीबायोटिक ऐतिहासिक रूप से महत्वपूर्ण हैं, क्योंकि वे पहली दवाएं हैं जो सिफिलिस एवं स्टाफीलोकोकस संक्रमण जैसी बहुत सी पूर्ववर्ती गंभीर बीमारियों के विरुद्ध प्रभावी थीं। पेनिसिलिन आज भी व्यापक रूप से प्रयोग में लाई जा रही हैं, हालांकि कई प्रकार के जीवाणु अब प्रतिरोधी बन चुके हैं। सभी पेनिसिलिन बीटा-लैक्टेम एंटीबायोटिक होते हैं तथा ऐसे जीवाणुगत संक्रमण के इलाज में प्रयोग में लाये जाते हैं जो आम तौर पर ग्राम-पॉज़िटिव, ऑर्गेनिज्म जैसी अतिसंवेदनशीलता के कारण होते हैं। "पेनिसिलिन" शब्द उन पदार्थों के मिश्रण को भी कह सकते हैं जो स्वाभाविक एवं जैविक पद्धति से उत्पादित किये जाते हैं। .

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फफूंद

"आर्मिलेरिया ओस्टोयी" नामक कवक फफूंद या कवक एक प्रकार के पौधे हैं जो अपना भोजन सड़े गले म्रृत कार्बनिक पदार्थों से प्राप्त करते हैं। ये संसार के प्रारंभ से ही जगत में उपस्थित हैं। इनका सबसे बड़ा लाभ इनका संसार में अपमार्जक के रूप में कार्य करना है। इनके द्वारा जगत में से कचरा हटा दिया जाता है। कवक (फंगस, Fungus) जीवों का एक विशाल समुदाय है जिसे साधारणतया वनस्पतियों में वर्गीकृत किया जाता है। इस वर्ग के सदस्य पर्णहरिम (chlorophyll) रहित होते हैं और इनमें प्रजनन बीजाणुओं (spore) द्वारा होता है। ये सभी सूकाय (thalloid) वनस्पतियाँ हैं, अर्थात् इनके शरीर के ऊतकों (tissues) में कोई भेदकरण नहीं होता; दूसरे शब्दों में, इनमें जड़, तना और पत्तियाँ नहीं होतीं तथा इनमें अधिक प्रगतिशील पौधों की भाँति संवहनीयतंत्र (vascular system) नहीं होता। पहले इस प्रकार के सभी जीव एक ही वर्ग कवक के अंतर्गत परिगाणित होते थे, परंतु अब वनस्पति विज्ञानविदों ने कवक वर्ग के अतिरिक्त दो अन्य वर्गों की स्थापना की है जिनमें क्रमानुसार जीवाणु (bacteria) और श्लेष्मोर्णिका (slime mold) हैं। जीवाणु एककोशीय होते हैं जिनमें प्रारूपिक नाभिक (typical nucleus) नहीं होता तथा श्लेष्मोर्णिक की बनावट और पोषाहार (nutrition) जंतुओं की भाँति होता है। कवक अध्ययन के विज्ञान को कवक विज्ञान (mycology) कहते हैं। कुछ लोगों का मत है कि कवक की उत्पत्ति शैवाल (algae) में पर्णहरिम की हानि होने से हुई है। यदि वास्तव में ऐसा हुआ है तो कवक को पादप सृष्टि (Plant kingdom) में रखना उचित ही है। दूसरे लोगों का विश्वास है कि इनकी उत्पत्ति रंगहीन कशाभ (flagellata) या प्रजीवा (protozoa) से हुई है जो सदा से ही पर्णहरिम रहित थे। इस विचारधारा के अनुसार इन्हें वानस्पतिक सृष्टि में न रखकर एक पृथक सृष्टि में वर्गीकृत किया जाना चाहिए। वास्तविक कवक के अंतर्गत कुछ ऐसी परिचित वस्तुएँ आती हैं, जैसे गुँधे हुए आटे (dough) से पावरोटी बनाने में सहायक एककोशीय खमीर (yeast), बासी रोटियों पर रूई की भाँति उगा फफूँद, चर्म को मलिन करनेवाले दाद के कीटाणु, फसल के नाशकारी रतुआ तथा कंडुवा (rust and smut) और खाने योग्य एव विषैली कुकुरमुत्ते या खुंभियाँ (mushrooms)। .

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फुल्लन

अंगुली में सूजन (अन्तर देखिये) शरीर के किसी भाग का अस्थायी रूप से (transient) बढ़ जाना आयुर्विज्ञान में फुल्लन (स्वेलिंग) कहा जाता है। हिन्दी में इसे उत्सेध, फूलना और सूजन भी कहते हैं। ट्यूमर भी इसमें सम्मिलित है। सूजन, प्रदाह के पाँच लक्षणों में से एक है। (प्रदाह के अन्य लक्षण हैं - दर्द, गर्मी, लालिमा, कार्य का ह्रास) यह पूरे शरीर में हो सकती है, या एक विशिष्ट भाग या अंग प्रभावित हो सकता है| एक शरीर का अंग चोट, संक्रमण, या रोग के जवाब में और साथ ही एक अंतर्निहित गांठ की वजह से, प्रफुल्लित हो सकता है| .

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मलेरिया

मलेरिया या दुर्वात एक वाहक-जनित संक्रामक रोग है जो प्रोटोज़ोआ परजीवी द्वारा फैलता है। यह मुख्य रूप से अमेरिका, एशिया और अफ्रीका महाद्वीपों के उष्ण तथा उपोष्ण कटिबंधी क्षेत्रों में फैला हुआ है। प्रत्येक वर्ष यह ५१.५ करोड़ लोगों को प्रभावित करता है तथा १० से ३० लाख लोगों की मृत्यु का कारण बनता है जिनमें से अधिकतर उप-सहारा अफ्रीका के युवा बच्चे होते हैं। मलेरिया को आमतौर पर गरीबी से जोड़ कर देखा जाता है किंतु यह खुद अपने आप में गरीबी का कारण है तथा आर्थिक विकास का प्रमुख अवरोधक है। मलेरिया सबसे प्रचलित संक्रामक रोगों में से एक है तथा भंयकर जन स्वास्थ्य समस्या है। यह रोग प्लास्मोडियम गण के प्रोटोज़ोआ परजीवी के माध्यम से फैलता है। केवल चार प्रकार के प्लास्मोडियम (Plasmodium) परजीवी मनुष्य को प्रभावित करते है जिनमें से सर्वाधिक खतरनाक प्लास्मोडियम फैल्सीपैरम (Plasmodium falciparum) तथा प्लास्मोडियम विवैक्स (Plasmodium vivax) माने जाते हैं, साथ ही प्लास्मोडियम ओवेल (Plasmodium ovale) तथा प्लास्मोडियम मलेरिये (Plasmodium malariae) भी मानव को प्रभावित करते हैं। इस सारे समूह को 'मलेरिया परजीवी' कहते हैं। मलेरिया के परजीवी का वाहक मादा एनोफ़िलेज़ (Anopheles) मच्छर है। इसके काटने पर मलेरिया के परजीवी लाल रक्त कोशिकाओं में प्रवेश कर के बहुगुणित होते हैं जिससे रक्तहीनता (एनीमिया) के लक्षण उभरते हैं (चक्कर आना, साँस फूलना, द्रुतनाड़ी इत्यादि)। इसके अलावा अविशिष्ट लक्षण जैसे कि बुखार, सर्दी, उबकाई और जुखाम जैसी अनुभूति भी देखे जाते हैं। गंभीर मामलों में मरीज मूर्च्छा में जा सकता है और मृत्यु भी हो सकती है। मलेरिया के फैलाव को रोकने के लिए कई उपाय किये जा सकते हैं। मच्छरदानी और कीड़े भगाने वाली दवाएं मच्छर काटने से बचाती हैं, तो कीटनाशक दवा के छिडकाव तथा स्थिर जल (जिस पर मच्छर अण्डे देते हैं) की निकासी से मच्छरों का नियंत्रण किया जा सकता है। मलेरिया की रोकथाम के लिये यद्यपि टीके/वैक्सीन पर शोध जारी है, लेकिन अभी तक कोई उपलब्ध नहीं हो सका है। मलेरिया से बचने के लिए निरोधक दवाएं लम्बे समय तक लेनी पडती हैं और इतनी महंगी होती हैं कि मलेरिया प्रभावित लोगों की पहुँच से अक्सर बाहर होती है। मलेरिया प्रभावी इलाके के ज्यादातर वयस्क लोगों मे बार-बार मलेरिया होने की प्रवृत्ति होती है साथ ही उनमें इस के विरूद्ध आंशिक प्रतिरोधक क्षमता भी आ जाती है, किंतु यह प्रतिरोधक क्षमता उस समय कम हो जाती है जब वे ऐसे क्षेत्र मे चले जाते है जो मलेरिया से प्रभावित नहीं हो। यदि वे प्रभावित क्षेत्र मे वापस लौटते हैं तो उन्हे फिर से पूर्ण सावधानी बरतनी चाहिए। मलेरिया संक्रमण का इलाज कुनैन या आर्टिमीसिनिन जैसी मलेरियारोधी दवाओं से किया जाता है यद्यपि दवा प्रतिरोधकता के मामले तेजी से सामान्य होते जा रहे हैं। .

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मेट्रोनिडाजोल

मेट्रोनिडाजोल एक कार्बनिक यौगिक है। इसका उपयोग प्रतिजैविक दवा के रूप में होता है। श्रेणी:कार्बनिक यौगिक.

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यूनाइटेड किंगडम

वृहत् ब्रिटेन और उत्तरी आयरलैण्ड का यूनाइटेड किंगडम (सामान्यतः यूनाइटेड किंगडम, यूके, बर्तानिया, UK, या ब्रिटेन के रूप में जाना जाने वाला) एक विकसित देश है जो महाद्वीपीय यूरोप के पश्चिमोत्तर तट पर स्थित है। यह एक द्वीपीय देश है, यह ब्रिटिश द्वीप समूह में फैला है जिसमें ग्रेट ब्रिटेन, आयरलैंड का पूर्वोत्तर भाग और कई छोटे द्वीप शामिल हैं।उत्तरी आयरलैंड, UK का एकमात्र ऐसा हिस्सा है जहां एक स्थल सीमा अन्य राष्ट्र से लगती है और यहां आयरलैण्ड यूके का पड़ोसी देश है। इस देश की सीमा के अलावा, UK अटलांटिक महासागर, उत्तरी सागर, इंग्लिश चैनल और आयरिश सागर से घिरा हुआ है। सबसे बड़ा द्वीप, ग्रेट ब्रिटेन, चैनल सुरंग द्वारा फ़्रांस से जुड़ा हुआ है। यूनाइटेड किंगडम एक संवैधानिक राजशाही और एकात्मक राज्य है जिसमें चार देश शामिल हैं: इंग्लैंड, उत्तरी आयरलैंड, स्कॉटलैंड और वेल्स. यह एक संसदीय प्रणाली द्वारा संचालित है जिसकी राजधानी लंदन में सरकार बैठती है, लेकिन इसमें तीन न्यागत राष्ट्रीय प्रशासन हैं, बेलफ़ास्ट, कार्डिफ़ और एडिनबर्ग, क्रमशः उत्तरी आयरलैंड, वेल्स और स्कॉटलैंड की राजधानी.जर्सी और ग्वेर्नसे द्वीप समूह, जिन्हें सामूहिक रूप से चैनल द्वीप कहा जाता है और मैन द्वीप (आईल ऑफ मान), यू के की राजत्व निर्भरता हैं और UK का हिस्सा नहीं हैं। इसके इलावा, UK के चौदह समुद्रपार निर्भर क्षेत्र हैं, ब्रिटिश साम्राज्य, जो १९२२ में अपने चरम पर था, दुनिया के तकरीबन एक चौथाई क्षेत्रफ़ल को घेरता था और इतिहास का सबसे बड़ा साम्रज्य था। इसके पूर्व उपनिवेशों की भाषा, संस्कृति और कानूनी प्रणाली में ब्रिटिश प्रभाव अभी भी देखा जा सकता है। प्रतीकत्मक सकल घरेलू उत्पाद द्वारा दुनिया की छठी बड़ी अर्थव्यवस्था और क्रय शक्ति समानता के हिसाब से सातवाँ बड़ा देश होने के साथ ही, यूके एक विकसित देश है। यह दुनिया का पहला औद्योगिक देश था और 19वीं और 20वीं शताब्दियों के दौरान विश्व की अग्रणी शक्ति था, लेकिन दो विश्व युद्धों की आर्थिक लागत और 20 वीं सदी के उत्तरार्ध में साम्राज्य के पतन ने वैश्विक मामलों में उसकी अग्रणी भूमिका को कम कर दिया फिर भी यूके अपने सुदृढ़ आर्थिक, सांस्कृतिक, सैन्य, वैज्ञानिक और राजनीतिक प्रभाव के कारण एक प्रमुख शक्ति बना हुआ है। यह एक परमाणु शक्ति है और दुनिया में चौथी सर्वाधिक रक्षा खर्चा करने वाला देश है। यह यूरोपीय संघ का सदस्य है, संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में एक स्थायी सीट धारण करता है और राष्ट्र के राष्ट्रमंडल, जी8, OECD, नाटो और विश्व व्यापार संगठन का सदस्य है। .

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रसायन विज्ञान

300pxरसायनशास्त्र विज्ञान की वह शाखा है जिसमें पदार्थों के संघटन, संरचना, गुणों और रासायनिक प्रतिक्रिया के दौरान इनमें हुए परिवर्तनों का अध्ययन किया जाता है। इसका शाब्दिक विन्यास रस+अयन है जिसका शाब्दिक अर्थ रसों (द्रवों) का अध्ययन है। यह एक भौतिक विज्ञान है जिसमें पदार्थों के परमाणुओं, अणुओं, क्रिस्टलों (रवों) और रासायनिक प्रक्रिया के दौरान मुक्त हुए या प्रयुक्त हुए ऊर्जा का अध्ययन किया जाता है। संक्षेप में रसायन विज्ञान रासायनिक पदार्थों का वैज्ञानिक अध्ययन है। पदार्थों का संघटन परमाणु या उप-परमाण्विक कणों जैसे इलेक्ट्रॉन, प्रोटॉन और न्यूट्रॉन से हुआ है। रसायन विज्ञान को केंद्रीय विज्ञान या आधारभूत विज्ञान भी कहा जाता है क्योंकि यह दूसरे विज्ञानों जैसे, खगोलविज्ञान, भौतिकी, पदार्थ विज्ञान, जीवविज्ञान और भूविज्ञान को जोड़ता है। .

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रासायनिक यौगिक

दो या अधिक तत्व जब भार के अनुसार एक निश्चित अनुपात में रासायनिक बन्ध द्वारा जुड़कर जो पदार्थ बनाते हैं उसे रासायनिक यौगिक (chemical compound) कहते हैं। उदाहरण के लिये जल, साधारण नमक, गंधक का अम्ल आदि रासायनिक यौगिक हैं। .

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लोहा

एलेक्ट्रोलाइटिक लोहा तथा उसका एक घन सेमी का टुकड़ा लोहा या लोह (Iron) आवर्त सारणी के आठवें समूह का पहला तत्व है। धरती के गर्भ में और बाहर मिलाकर यह सर्वाधिक प्राप्य तत्व है (भार के अनुसार)। धरती के गर्भ में यह चौथा सबसे अधिक पाया जाने वाला तत्व है। इसके चार स्थायी समस्थानिक मिलते हैं, जिनकी द्रव्यमान संख्या 54, 56, 57 और 58 है। लोह के चार रेडियोऐक्टिव समस्थानिक (द्रव्यमान संख्या 52, 53, 55 और 59) भी ज्ञात हैं, जो कृत्रिम रीति से बनाए गए हैं। लोहे का लैटिन नाम:- फेरस .

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स्तनधारी

यह प्राणी जगत का एक समूह है, जो अपने नवजात को दूध पिलाते हैं जो इनकी (मादाओं के) स्तन ग्रंथियों से निकलता है। यह कशेरुकी होते हैं और इनकी विशेषताओं में इनके शरीर में बाल, कान के मध्य भाग में तीन हड्डियाँ तथा यह नियततापी प्राणी हैं। स्तनधारियों का आकार २९-३३ से.मी.

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सूक्ष्मदर्शी

सूक्ष्मदर्शी या सूक्ष्मबीन (माइक्रोस्कोप) वह यंत्र है जिसकी सहायता से आँख से न दिखने योग्य सूक्ष्म वस्तुओं को भी देखा जा सकता है। सूक्ष्मदर्शी की सहायता से चीजों का अवलोकन व जांच किया जाता है वह सूक्ष्मदर्शन कहलाता है। सूक्ष्मदर्शी का इतिहास लगभग ४०० वर्ष पुराना है। सबसे पहले नीदरलैण्ड में सन १६०० के आस-पास किसी काम के योग्य सूक्ष्मदर्शी का विकास हुआ। .

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जीवाणु

जीवाणु जीवाणु एक एककोशिकीय जीव है। इसका आकार कुछ मिलिमीटर तक ही होता है। इनकी आकृति गोल या मुक्त-चक्राकार से लेकर छड़, आदि आकार की हो सकती है। ये अकेन्द्रिक, कोशिका भित्तियुक्त, एककोशकीय सरल जीव हैं जो प्रायः सर्वत्र पाये जाते हैं। ये पृथ्वी पर मिट्टी में, अम्लीय गर्म जल-धाराओं में, नाभिकीय पदार्थों में, जल में, भू-पपड़ी में, यहां तक की कार्बनिक पदार्थों में तथा पौधौं एवं जन्तुओं के शरीर के भीतर भी पाये जाते हैं। साधारणतः एक ग्राम मिट्टी में ४ करोड़ जीवाणु कोष तथा १ मिलीलीटर जल में १० लाख जीवाणु पाए जाते हैं। संपूर्ण पृथ्वी पर अनुमानतः लगभग ५X१०३० जीवाणु पाए जाते हैं। जो संसार के बायोमास का एक बहुत बड़ा भाग है। ये कई तत्वों के चक्र में बहुत महत्वपूर्ण भूमिका अदा करते हैं, जैसे कि वायुमंडलीय नाइट्रोजन के स्थरीकरण में। हलाकि बहुत सारे वंश के जीवाणुओं का श्रेणी विभाजन भी नहीं हुआ है तथापि लगभग आधी प्रजातियों को किसी न किसी प्रयोगशाला में उगाया जा चुका है। जीवाणुओं का अध्ययन बैक्टिरियोलोजी के अन्तर्गत किया जाता है जो कि सूक्ष्म जैविकी की ही एक शाखा है। मानव शरीर में जितनी भी मानव कोशिकाएं है, उसकी लगभग १० गुणा संख्या तो जीवाणु कोष की ही है। इनमें से अधिकांश जीवाणु त्वचा तथा अहार-नाल में पाए जाते हैं। हानिकारक जीवाणु इम्यून तंत्र के रक्षक प्रभाव के कारण शरीर को नुकसान नहीं पहुंचा पाते। कुछ जीवाणु लाभदायक भी होते हैं। अनेक प्रकार के परजीवी जीवाणु कई रोग उत्पन्न करते हैं, जैसे - हैजा, मियादी बुखार, निमोनिया, तपेदिक या क्षयरोग, प्लेग इत्यादि.

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औषधि

thumb औषधि वह पदार्थ है जिन की निश्चित मात्रा शरीर में निश्चित प्रकार का असर दिखाती है। इनका प्रयोजन चिकित्सा में होता है। किसी भी पदार्थ को औषधि के रूप में प्रयोग करके के लिए उस पदार्थ का गुण, मात्रा अनुसार व्यवहार, शरीर पर विभिन्न मात्राओं में होने वाला प्रभाव आदि की जानकारी अपरिहार्य है। औषधियाँ रोगों के इलाज में काम आती हैं। प्रारंभ में औषधियाँ पेड़-पौधों, जीव जंतुओं से आयुर्वेद के अनुसार प्राप्त की जाती थीं, लेकिन जैसे-जैसे रसायन विज्ञान का विस्तार होता गया, नए-नए तत्वों की खोज हुई तथा उनसे नई-नई औषधियाँ कृत्रिम विधि से तैयार की गईं। .

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इंग्लैण्ड

इंग्लैण्ड (अंग्रेज़ी: England), ग्रेट ब्रिटेन नामक टापू के दक्षिणी भाग में स्थित एक देश है। इसका क्षेत्रफल 50,331 वर्ग मील है। यह यूनाइटेड किंगडम का सबसे बड़ा निर्वाचक देश है। इंग्लैंड के अलावा स्कॉटलैंड, वेल्स और उत्तर आयरलैंड भी यूनाइटेड किंगडम में शामिल हैं। यह यूरोप के उत्तर पश्चिम में अवस्थित है जो मुख्य भूमि से इंग्लिश चैनल द्वारा पृथकीकृत द्वीप का अंग है। इसकी राजभाषा अंग्रेज़ी है और यह विश्व के सबसे संपन्न तथा शक्तिशाली देशों में से एक है। इंग्लैंड के इतिहास में सबसे स्वर्णिम काल उसका औपनिवेशिक युग है। अठारहवीं सदी से लेकर बीसवीं सदी के मध्य तक ब्रिटिश साम्राज्य विश्व का सबसे बड़ा और शकितशाली साम्राज्य हुआ करता था जो कई महाद्वीपों में फैला हुआ था और कहा जाता था कि ब्रिटिश साम्राज्य में सूर्य कभी अस्त नहीं होता। उसी समय पूरे विश्व में अंग्रेज़ी भाषा ने अपनी छाप छोड़ी जिसकी वज़ह से यह आज भी विश्व के सबसे अधिक लोगों द्वारा बोले व समझे जाने वाली भाषा है। .

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अतिसार

अतिसार या डायरिया (अग्रेज़ी:Diarrhea) में या तो बार-बार मल त्याग करना पड़ता है या मल बहुत पतले होते हैं या दोनों ही स्थितियां हो सकती हैं। पतले दस्त, जिनमें जल का भाग अधिक होता है, थोड़े-थोड़े समय के अंतर से आते रहते हैं। .

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अलेक्ज़ांडर फ्लेमिङ

Faroe Islands stamp commemorating Fleming पेन्सिलिन के आविष्कारक अलेक्जेंडर फ्लेमिंग (Sir Alexander Fleming (6 अगस्त 1881 – 11 मार्च 1955)), स्कॉटलैण्ड के जीववैज्ञानिक एवं औषधिनिर्माता (pharmacologist) थे। उनकी प्रसिद्धि पेनिसिलिन के आविष्कारक के रूप में है (१९२८)। उन्होने जीवाणुविज्ञान (बैक्टिरिओलॉजी), रोग-प्रतिरक्षा-विज्ञान ९immunology) एवं रसचिकित्सा (केमोथिरैपी) आदि विषयों के ऊपर अनेक शोधपत्र प्रकाशित किये। उन्होने सन् १९२३ में लिसोजाइम (lysozyme) नामक एंजाइम की खोज भी की। पेनिसिलिन के आविष्कार के लिये उन्हें सन् १९४५ में संयुक्त रूप से चिकित्सा का नोबेल सम्मान दिया गया। .

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यहां पुनर्निर्देश करता है:

एंटीबायोटिक (प्रतिजैविक), ऐन्टीबायोटिक

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