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प्रकृति

सूची प्रकृति

प्रकृति, व्यापकतम अर्थ में, प्राकृतिक, भौतिक या पदार्थिक जगत या ब्रह्माण्ड हैं। "प्रकृति" का सन्दर्भ भौतिक जगत के दृग्विषय से हो सकता हैं, और सामन्यतः जीवन से भी हो सकता हैं। प्रकृति का अध्ययन, विज्ञान के अध्ययन का बड़ा हिस्सा हैं। यद्यपि मानव प्रकृति का हिस्सा हैं, मानवी क्रिया को प्रायः अन्य प्राकृतिक दृग्विषय से अलग श्रेणी के रूप में समझा जाता हैं। .

14 संबंधों: तड़ित, दृग्विषय, पश्चिम जावा, पुरुष, प्राकृतिक संसाधन, प्राकृतिक विधि, प्राकृतिक विज्ञान, प्राकृतिक इतिहास, प्रकृति (दर्शन), प्रकृति (धर्म), प्रकृतिवाद (दर्शन), ब्रह्माण्ड, भारतीय दर्शन, भौतिक नियम

तड़ित

तड़ित का दृष्य तड़ित (Lightning) या "आकाशीय बिजली" वायुमण्डल में विद्युत आवेश का डिस्चार्ज होना (एक वस्तु से दूसरी पर स्थानान्तरण) और उससे उत्पन्न कड़कड़ाहट (thunder) को तड़ित कहते हैं। संसार में प्रतिवर्ष लगभग १ करोड़ ६० लाख तड़ित पैदा होते हैं। .

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दृग्विषय

दियासलाई की तिल्ली का जलना एक ऐसी घटना है जिसे देखा जा सकता है; अत: यह एक परिघटना है। observed as appearing differently. दृग्विषय या परिघटना (phenomenon, बहुवचन phenomena, phainomenon, phainein क्रिया से) कोई वह चीज़ हैं जो स्वयं प्रकट होती हैं। भले सदैव नहीं, पर आम तौर पर दृग्विषयों को "चीजें जो दृष्टिगोचर होती हैं" या संवेदन-समर्थ जीवों के "अनुभव" समझे जाते हैं, या वे जो सैद्धान्तिक रूप से हो सकते हैं। यह शब्द इमानुएल काण्ट के द्वारा आधुनिक दार्शनिक प्रयोग में आया, जिन्होंने इसे मनस्विषय के विपरीत बताया। दृग्विषय के विपरीत, मनस्विषय अन्वेषण के द्वारा प्रत्यक्ष रूप से अभिगम्य नहीं हैं। काण्ट Gottfried Wilhelm Leibniz के दर्शन के इस भाग से बेहद प्रभावित थे, जिसमें, दृग्विषय और मनस्विषय पारस्पारिक तकनीकी शब्द थे। श्रेणी:तत्वमीमांसा की अवधारणाएँ.

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पश्चिम जावा

पश्चिम जावा दक्षिणपूर्व एशिया के इण्डोनेशिया देश के जावा द्वीप के पश्चिमी भाग में स्थित एक प्रान्त है। .

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पुरुष

पुरुष शब्द का प्रयोग वैदिक साहित्य में कई जगह मिलता है। जीवात्मा (आत्मा) को कपिल मुनि कृत सांख्य शास्त्र में पुरुष कहा गया है - ध्यान दीजिये इसमें यह लिंग द्योतक न होकर आत्मा द्योतक है। वेदों में नर के लिए पुम् (पुंस, और पुमान) मूलों का इस्तेमाल मिलता है। इसके अलावे बृहदारण्यक उपनिषत में ईश्वर के लिए पुरुष शब्द का इस्तेमाल मिलता है। .

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प्राकृतिक संसाधन

Marquesas Islands) प्राकृतिक संसाधन वो प्राकृतिक पदार्थ हैं जो अपने अपक्षक्रित (?) मूल प्राकृतिक रूप में मूल्यवान माने जाते हैं। एक प्राकृतिक संसाधन का मूल्य इस बात पर निर्भर करता है की कितना पदार्थ उपलब्ध है और उसकी माँग (demand) कितनी है। प्राकृतिक संसाधन दो तरह के होते हैं-.

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प्राकृतिक विधि

प्राकृतिक विधि (Natural law, or the law of nature) विधि की वह प्रणाली है जो प्रकृति द्वारा निर्धारित होती है। प्रकृति द्वारा निर्धारित होने के कारण यह सार्वभौमिक है। परम्परागत रूप से प्राकृतिक कानून का अर्थ मानव की प्रकृति के विश्लेषण के लिए तर्क का सहारा लेते हुए इससे नैतिक व्यवहार सम्बन्धी बाध्यकारी नियम उत्पन्न करना होता था। प्राकृतिक कानून की प्रायः प्रत्यक्षवादी कानून (positive law) से तुलना की जाती है। .

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प्राकृतिक विज्ञान

एक यूकैरियोटिक कोशिका के आरेख में राइबोसोम (३) सहित उपकोशिकीय घटकों के दर्शन ऑर्गैनेल्स: (1) केंद्रिका (2) केन्द्रक (3) राइबोसोम (छोटे बिन्दु) (4) वेसाइकल (5) खुरदुरी अंतर्प्रद्रव्य जालिका (अं जा) (6) गॉल्जीकाय (7) कोशिका कंकाल (8) चिकनी अंतर्प्रद्रव्य जालिका (अं जा) (9) कणाभसूत्र (10) रसधानी (11) कोशिका द्रव (12) लाइसोसोम (13) तारककाय प्राकृतिक विज्ञान प्रकृति और भौतिक दुनिया का व्यवस्थित ज्ञान होता है, या फ़िर इसका अध्ययन करने वाली इसकी कोई शाखा। असल में विज्ञान शब्द का प्रयोग लगभग हमेशा प्रकृतिक विज्ञानों के लिये ही किया जाता है। .

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प्राकृतिक इतिहास

पादपों एवं जन्तुओं के वैज्ञानिक अनुसंधान को प्राकृतिक इतिहास (Natural history) कहते हैं। इसमें प्रयोगों के बजाय प्रेक्षणों पर अधिक ध्यान दिया जाता है। .

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प्रकृति (दर्शन)

दर्शन में, प्रकृति के दो अर्थ होते हैं। पहला, इसका सन्दर्भ उन सारी चीजों के समुच्चय से हैं जो प्राकृतिक हैं, या प्रकृति के विधि के अनुसार सामान्य रूप से काम करते हैं। दूसरी तरफ़, इसका सन्दर्भ वैयक्तिक चीजों के आवश्यक गुणों और कारणों से हैं। श्रेणी:विज्ञान का दर्शन.

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प्रकृति (धर्म)

अनेकों भारतीय दर्शनों में प्रकृति की चर्चा हुई है। प्रकृति मूल कारण, स्वभाव या रूप। सांख्य दर्शन में सत्कार्यवाद के अनुसार कार्य अपने कारण में उत्पत्ति के पूर्व भी वर्तमान रहता है। कारण सूक्ष्म कार्य है तथा कार्य, कारण का स्थूल रूप है। तत्वत: कार्य और कारण में भेद नहीं है। कारण का परिणाम होने से कार्य की अवस्था आती है। संसार मे जो कुछ चेतनाविहीन पदार्थ है वह सुख, दु:ख या मोह का कारण है। अत: ये जड़ पदार्थ किसी ऐसे एक कारण के परिणाम हैं जिसमें सुख, दु:ख और मोह को उत्पन्न करनेवाले गुण वर्तमान हैं। यह कारण सबका मूल होगा और इसका दूसरा कोई कारण न होगा। यह कारण एक और अविभाज्य होगा। इसमें तीनों गुण अपनी साम्यावस्था में स्थित होंगे। ये तीन गुण क्रमश: सत्व, रजस् ओर तमस् कहे गए हैं। इनकी साम्यावस्था ही मूल प्रकृति कही जाती है। यह किसी का विकार नहीं है पर सभी जड़ पदार्थ इसके विकार हैं। पुरुष की सन्निधि से प्रकृति में रजोगुण का परिस्पंद होने से क्रिया उत्पन्न होती हैं। रजोगुण क्रिया का मूल है परन्तु प्रकृति में चेतना न होने से यह क्रिया स्वयंचालित है, किसी चेतन द्वारा चालित नहीं है। गुणों की साम्यावस्था में विक्षोभ होने से बुद्धि या महत् की उत्पत्ति होती है। महत् से अहंकार की, अहंकार से पाँच ज्ञानेंद्रियों, पाँच कर्मेन्द्रियों, मन और पाँच तन्मात्राओं की उत्पत्ति होती है। तन्मात्रों से पंचभूतों की उत्पत्ति मानी गई है। यही प्रकृति का विस्तार है। .

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प्रकृतिवाद (दर्शन)

प्रकृतिवाद (Naturalism) पाश्चात्य दार्शनिक चिन्तन की वह विचारधारा है जो प्रकृति को मूल तत्त्व मानती है, इसी को इस बरह्माण्ड का कर्ता एवं उपादान (कारण) मानती है। यह वह 'विचार' या 'मान्यता' है कि विश्व में केवल प्राकृतिक नियम (या बल) ही कार्य करते हैं न कि कोई अतिप्राकृतिक या आध्यातिम नियम। अर्थात् प्राक्रितिक संसार के परे कुछ भी नहीं है। प्रकृतिवादी आत्मा-परमात्मा, स्पष्ट प्रयोजन आदि की सत्ता में विश्वास नहीं करते। यूनानी दार्शनिक थेल्स (६४० ईसापूर्व-५५० इसापूर्व) का नाम सबसे पहले प्रकृतिवादियों में आता है जिसने इस सृष्टि की रचना जल से सिद्ध करने का प्रयास किया था। किन्तु स्वतन्त्र दर्शन के रूप में इसका बीजारोपण डिमोक्रीटस (४६०-३७० ईसापूर्व) ने किया। प्रकृतिवादी विचारक बुद्धि को विशेष महत्व देते हैं परन्तु उनका विचार है कि बुद्धि का कार्य केवल वाह्य परिस्थितियों तथा विचारों को काबू में लाना है जो उसकी शक्ति से बाहर जन्म लेते हैं। इस प्रकार प्रकृतिवादी आत्मा-परमात्मा, स्पष्ट प्रयोजन इत्यादि की सत्ता में विश्वास नहीं करते हैं। प्रो.

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ब्रह्माण्ड

ब्रह्माण्ड सम्पूर्ण समय और अंतरिक्ष और उसकी अंतर्वस्तु को कहते हैं। ब्रह्माण्ड में सभी ग्रह, तारे, गैलेक्सिया, गैलेक्सियों के बीच के अंतरिक्ष की अंतर्वस्तु, अपरमाणविक कण, और सारा पदार्थ और सारी ऊर्जा शामिल है। अवलोकन योग्य ब्रह्माण्ड का व्यास वर्तमान में लगभग 28 अरब पारसैक (91 अरब प्रकाश-वर्ष) है। पूरे ब्रह्माण्ड का व्यास अज्ञात है, और ये अनंत हो सकता है। .

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भारतीय दर्शन

भारत में 'दर्शन' उस विद्या को कहा जाता है जिसके द्वारा तत्व का साक्षात्कार हो सके। 'तत्व दर्शन' या 'दर्शन' का अर्थ है तत्व का साक्षात्कार। मानव के दुखों की निवृति के लिए और/या तत्व साक्षात्कार कराने के लिए ही भारत में दर्शन का जन्म हुआ है। हृदय की गाँठ तभी खुलती है और शोक तथा संशय तभी दूर होते हैं जब एक सत्य का दर्शन होता है। मनु का कथन है कि सम्यक दर्शन प्राप्त होने पर कर्म मनुष्य को बंधन में नहीं डाल सकता तथा जिनको सम्यक दृष्टि नहीं है वे ही संसार के महामोह और जाल में फंस जाते हैं। भारतीय ऋषिओं ने जगत के रहस्य को अनेक कोणों से समझने की कोशिश की है। भारतीय दार्शनिकों के बारे में टी एस एलियट ने कहा था- भारतीय दर्शन किस प्रकार और किन परिस्थितियों में अस्तित्व में आया, कुछ भी प्रामाणिक रूप से नहीं कहा जा सकता। किन्तु इतना स्पष्ट है कि उपनिषद काल में दर्शन एक पृथक शास्त्र के रूप में विकसित होने लगा था। तत्त्वों के अन्वेषण की प्रवृत्ति भारतवर्ष में उस सुदूर काल से है, जिसे हम 'वैदिक युग' के नाम से पुकारते हैं। ऋग्वेद के अत्यन्त प्राचीन युग से ही भारतीय विचारों में द्विविध प्रवृत्ति और द्विविध लक्ष्य के दर्शन हमें होते हैं। प्रथम प्रवृत्ति प्रतिभा या प्रज्ञामूलक है तथा द्वितीय प्रवृत्ति तर्कमूलक है। प्रज्ञा के बल से ही पहली प्रवृत्ति तत्त्वों के विवेचन में कृतकार्य होती है और दूसरी प्रवृत्ति तर्क के सहारे तत्त्वों के समीक्षण में समर्थ होती है। अंग्रेजी शब्दों में पहली की हम ‘इन्ट्यूशनिस्टिक’ कह सकते हैं और दूसरी को रैशनलिस्टिक। लक्ष्य भी आरम्भ से ही दो प्रकार के थे-धन का उपार्जन तथा ब्रह्म का साक्षात्कार। प्रज्ञामूलक और तर्क-मूलक प्रवृत्तियों के परस्पर सम्मिलन से आत्मा के औपनिषदिष्ठ तत्त्वज्ञान का स्फुट आविर्भाव हुआ। उपनिषदों के ज्ञान का पर्यवसान आत्मा और परमात्मा के एकीकरण को सिद्ध करने वाले प्रतिभामूलक वेदान्त में हुआ। भारतीय मनीषियों के उर्वर मस्तिष्क से जिस कर्म, ज्ञान और भक्तिमय त्रिपथगा का प्रवाह उद्भूत हुआ, उसने दूर-दूर के मानवों के आध्यात्मिक कल्मष को धोकर उन्हेंने पवित्र, नित्य-शुद्ध-बुद्ध और सदा स्वच्छ बनाकर मानवता के विकास में योगदान दिया है। इसी पतितपावनी धारा को लोग दर्शन के नाम से पुकारते हैं। अन्वेषकों का विचार है कि इस शब्द का वर्तमान अर्थ में सबसे पहला प्रयोग वैशेषिक दर्शन में हुआ। .

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भौतिक नियम

प्रकृति के किसी भी अवयव या तंत्र पर प्रयोग करके किये गये प्रेक्षणों पर आधारित 'सामान्यीकरण' भौतिक नियम (physical law) या वैज्ञानिक नियम कहलाते हैं। इन्हें 'प्रकृति के नियम' (law of nature) भी कहते हैं। .

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यहां पुनर्निर्देश करता है:

प्राकृतिक, प्रकृति (निसर्ग)

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