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प्रकार जाति

सूची प्रकार जाति

जीववैज्ञानिक वर्गीकरण। किसी भी वंश में कई जातियाँ आती हैं और प्रकार जाति उनमें से एक ऐसी जाति होती है जिसके नाम पर पूरे वंश का नाम रखा गया हो। जीववैज्ञानिक वर्गीकरण में प्रकार जाति (type species) किसी जीववैज्ञानिक वंश (biological genus) या उपवंश (subgenus) की ऐसी सदस्य जीववैज्ञानिक जाति (species) को कहते हैं जो उस वंश का मानक उदाहरण हो और जिसके नाम पर पूरे वंश का नाम रखा गया हो। इस से मिलती जुलती एक प्रकार वंश की अवधारणा भी है। .

6 संबंधों: प्रकार वंश, जाति (जीवविज्ञान), जीववैज्ञानिक वर्गीकरण, वंश (जीवविज्ञान), कुल (जीवविज्ञान), अवधारणा

प्रकार वंश

जीववैज्ञानिक वर्गीकरण। किसी भी कुल में कई वंश आते हैं और प्रकार वंश उनमें से एक ऐसा वंश होता है जिसके नाम पर पूरे कुल का नाम रखा गया हो। जीववैज्ञानिक वर्गीकरण में प्रकार वंश (type genus) किसी जीववैज्ञानिक कुल (biological family) के ऐसे सदस्य जीववैज्ञानिक वंश (genus) को कहते हैं जो उस कुल का मानक उदाहरण हो और जिसके नाम पर पूरे कुल का नाम रखा गया हो। .

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जाति (जीवविज्ञान)

जाति (स्पीशीज़) जीववैज्ञानिक वर्गीकरण की सबसे बुनियादी और निचली श्रेणी है जाति (अंग्रेज़ी: species, स्पीशीज़) जीवों के जीववैज्ञानिक वर्गीकरण में सबसे बुनियादी और निचली श्रेणी होती है। जीववैज्ञानिक नज़रिए से ऐसे जीवों के समूह को एक जाति बुलाया जाता है जो एक दुसरे के साथ संतान उत्पन्न करने की क्षमता रखते हो और जिनकी संतान स्वयं आगे संतान जनने की क्षमता रखती हो। उदाहरण के लिए एक भेड़िया और शेर आपस में बच्चा पैदा नहीं कर सकते इसलिए वे अलग जातियों के माने जाते हैं। एक घोड़ा और गधा आपस में बच्चा पैदा कर सकते हैं (जिसे खच्चर बुलाया जाता है), लेकिन क्योंकि खच्चर आगे बच्चा जनने में असमर्थ होते हैं, इसलिए घोड़े और गधे भी अलग जातियों के माने जाते हैं। इसके विपरीत कुत्ते बहुत अलग आकारों में मिलते हैं लेकिन किसी भी नर कुत्ते और मादा कुत्ते के आपस में बच्चे हो सकते हैं जो स्वयं आगे संतान पैदा करने में सक्षम हैं। इसलिए सभी कुत्ते, चाहे वे किसी नसल के ही क्यों न हों, जीववैज्ञानिक दृष्टि से एक ही जाति के सदस्य समझे जाते हैं।, Sahotra Sarkar, Anya Plutynski, John Wiley & Sons, 2010, ISBN 978-1-4443-3785-3,...

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जीववैज्ञानिक वर्गीकरण

जीवजगत के समुचित अध्ययन के लिये आवश्यक है कि विभिन्न गुणधर्म एवं विशेषताओं वाले जीव अलग-अलग श्रेणियों में रखे जाऐं। इस तरह से जन्तुओं एवं पादपों के वर्गीकरण को वर्गिकी या वर्गीकरण विज्ञान अंग्रेजी में वर्गिकी के लिये दो शब्द प्रयोग में लाये जाते हैं - टैक्सोनॉमी (Taxonomy) तथा सिस्टेमैटिक्स (Systematics)। कार्ल लीनियस ने 1735 ई. में सिस्तेमा नातूरै (Systema Naturae) नामक पुस्तक सिस्टेमैटिक्स शब्द के आधार पर लिखी थी।, David E. Fastovsky, David B. Weishampel, pp.

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वंश (जीवविज्ञान)

एक कूबड़ वाला ड्रोमेडरी ऊँट और दो कूबड़ो वाला बैक्ट्रियाई ऊँट दो बिलकुल अलग जातियाँ (स्पीशीज़) हैं लेकिन दोनों कैमेलस​ (Camelus) वंश में आती हैं जातियाँ आती हैं वंश (लैटिन: genus, जीनस; बहुवाची: genera, जेनेरा) जीववैज्ञानिक वर्गीकरण में जीवों के वर्गीकरण की एक श्रेणी होती है। एक वंश में एक-दूसरे से समानताएँ रखने वाले कई सारे जीवों की जातियाँ आती हैं। ध्यान दें कि वंश वर्गीकरण के लिए मानकों को सख्ती से संहिताबद्ध नहीं किया गया है और इसलिए अलग अलग वर्गीकरण कर्ता वंशानुसार विभिन्न वर्गीकरण प्रस्तुत करते हैं।, David E. Fastovsky, David B. Weishampel, pp.

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कुल (जीवविज्ञान)

वंश आते हैं कुल (अंग्रेज़ी: family, फ़ैमिली; लातिनी: familia, फ़ामिलिया) जीववैज्ञानिक वर्गीकरण में प्राणियों के वर्गीकरण की एक श्रेणी होती है। एक कुल में एक-दुसरे से समानताएँ रखने वाले कई सारे जीवों के वंश आते हैं। ध्यान दें कि हर प्राणी वंश में बहुत-सी भिन्न प्राणियों की जातियाँ सम्मिलित होती हैं।, David E. Fastovsky, David B. Weishampel, pp.

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अवधारणा

अवधारणा या संकल्पना भाषा दर्शन का शब्द है जो संज्ञात्मक विज्ञान, तत्त्वमीमांसा एवं मस्तिष्क के दर्शन से सम्बन्धित है। इसे 'अर्थ' की संज्ञात्मक ईकाई; एक अमूर्त विचार या मानसिक प्रतीक के तौर पर समझा जाता है। अवधारणा के अंतर्गत यथार्थ की वस्तुओं तथा परिघटनाओं का संवेदनात्मक सामान्यीकृत बिंब, जो वस्तुओं तथा परिघटनाओं की ज्ञानेंद्रियों पर प्रत्यक्ष संक्रिया के बिना चेतना में बना रहता है तथा पुनर्सृजित होता है। यद्यपि अवधारणा व्यष्टिगत संवेदनात्मक परावर्तन का एक रूप है फिर भी मनुष्य में सामाजिक रूप से निर्मित मूल्यों से उसका अविच्छेद्य संबंध रहता है। अवधारणा भाषा के माध्यम से अभिव्यक्त होती है, उसका सामाजिक महत्व होता है और उसका सदैव बोध किया जाता है। अवधारणा चेतना का आवश्यक तत्व है, क्योंकि वह संकल्पनाओं के वस्तु-अर्थ तथा अर्थ को वस्तुओं के बिम्बों के साथ जोड़ती है और हमारी चेतना को वस्तुओं के संवेदनात्मक बिम्बों को स्वतंत्र रूप से परिचालित करने की संभावना प्रदान करती है। .

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