लोगो
यूनियनपीडिया
संचार
Google Play पर पाएं
नई! अपने एंड्रॉयड डिवाइस पर डाउनलोड यूनियनपीडिया!
मुक्त
ब्राउज़र की तुलना में तेजी से पहुँच!
 

पेशवा बाजीराव द्वितीय

सूची पेशवा बाजीराव द्वितीय

बाजीराव द्वितीय बाजीराव द्वितीय (१७७५ – 1 जनवरी, १८५१), सन १७९६ से १८१८ तक मराठा साम्राज्य के पेशवा थे। इनके समय में मराठा साम्राज्य का पतन होना शुरू हुआ। इनके शासनकाल में अंग्रेजों के साथ संघर्ष शुरू हुआ। बाजीराव द्वितीय आठवाँ और अन्तिम पेशवा (1796-1818) था। वह रघुनाथराव (राघोवा) का पुत्र था। अपने प्रधानमंत्री नाना फड़नवीस से बाजीराव द्वितीय सदा नफ़रत करता रहा। नाना फड़नवीस की मृत्यु के बाद वह स्वयं ही मराठा साम्राज्य की सत्ता सम्भालना चाहता था। बाजीराव द्वितीय एक क़ायर और विश्वासघाती व्यक्ति था, जिसने अंग्रेज़ों की सहायता प्राप्त करके पेशवा का पद प्राप्त किया था। परन्तु अंग्रेज़ों के साथ भी वह सच्चा सिद्ध नहीं हुआ। उसकी धोखेबाज़ी और बेइमानी के कारण अंग्रेज़ों ने उसे बंदी बनाकर बिठूर भेज दिया, जहाँ 1853 ई. में उसकी मृत्यु हो गई। बाजीराव द्वितीय ने अंग्रेज़ों से मित्रता करके उनकी सहायता से 'पेशवा' का पद प्राप्त किया था और उसके लिए कई मराठा क्षेत्र अंग्रेज़ों को दे दिये। बाजीराव द्वितीय स्वार्थी और अयोग्य शासक था तथा महत्त्वाकांक्षी होने के कारण अपने प्रधानमंत्री नाना फड़नवीस से ईर्ष्या करता था। फड़नवीस की मृत्यु 1800 ई. में हो गई और बाजीराव स्वयं ही सत्ता सम्भालने के लिए आतुर हो उठा। लेकिन वह सैनिक गुणों से रहित और व्यक्तिगत रूप से क़ायर था और समझता था, कि केवल छल कपट से ही अपने लक्ष्य को प्राप्त किया जा सकता है। .

18 संबंधों: द्वितीय आंग्ल-मराठा युद्ध, दौलतराव शिंदे, नाना फडनवीस, पुणे, पेशवा, बसई, बिठूर, मराठा, मराठा साम्राज्य, महार, यशवंतराव होलकर, रघुनाथराव, ईस्ट इण्डिया कम्पनी, वसई की संधि, कानपुर, कोरेगाँव की लड़ाई, १ जनवरी, १८१८

द्वितीय आंग्ल-मराठा युद्ध

द्वितीय आंग्ल-मराठा युद्ध मराठा साम्राज्य और ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी के बीच १८०३ से १८०५ के दौरान हुआ था। श्रेणी:मराठा साम्राज्य.

नई!!: पेशवा बाजीराव द्वितीय और द्वितीय आंग्ल-मराठा युद्ध · और देखें »

दौलतराव शिंदे

दौलतराव शिन्दे दौलतराव शिंदे (१७७९ ई. - सन् १८२७ ई.) ग्वालियर के महाराजा थे। उन्होने १७९४ से १८२७ तक अपनी मृत्यु तक शासन किया। .

नई!!: पेशवा बाजीराव द्वितीय और दौलतराव शिंदे · और देखें »

नाना फडनवीस

नाना फडनवीस (1741-1800) 'बालाजी जनार्दन भानु' उर्फ 'नाना फडनवीस' का जन्म सतारा में हुआ था। यह चतुर राजनीतिज्ञ तथा देशभक्त था और इसमें व्यावहारिक ज्ञान तथा वास्तविकता की चेतना जागृत थी। इसमें तीन गुण थे - स्वामिभक्ति, स्वाभिमान, तथा स्वदेशाभिमान। इसके जीवन की यही कसौटी है। इसके सामने तीन समस्यएँ थीं; पेशवा पद को स्थिर रखना, मराठा संघ को बनाए रखना, तथा विदेशियों से मराठा राज्य की रक्षा करना। कुशल राजनीतिज्ञ नाना फडनवीस पर मराठा-संघ की नीति के संचालन का भार 1774 से आया। मराठा संघ के घटक सिंधिया, होल्कर, गायकवाड़ तथा भोसले भी थे। इनमें परस्पर द्वेष और कटुता थी और पक्ष और उपपक्ष थे जिनकी प्रेरणा से अनेक षड्यंत्र, विप्लव, विश्वासघात आदि घृणित कार्य करवाए जा रहे थे। अत: नाना फडनवीस को बड़ी दूरदर्शिता एवं कूटनीतिज्ञता से संघ का कार्य चलाना पड़ा और राज्य के अंदर सुव्यवस्था लाने का भार भी उसपर आ पड़ा। सभी सरदार पेशवा को अपना नेता मानते थे। परंतु पानीपत की तीसरी लड़ाई (1761) के बाद पेशवा का नियंत्रण अत्यंत शिथिल होने लगा था। साथ ही पेशवा के उत्तराधिकार के संबंध में मतभेद और आपसी षड्यंत्र भी चल रहे थे। अत: नाना को दो समस्याओं का हल एक साथ ही करना था। अत: अपने स्वाभिमान की रक्षा करते हुए नाना ने पेशवा की, तथा मराठाराज्य की रक्षा की, तथा मराठा संघ को विछिन्न होने से बचाया। अंग्रेज अपने साम्राज्य को बढ़ाना चाहते थे परंतु नाना ने वर्षानुवर्ष युद्ध करके मराठों के शत्रु अंग्रेजों से पेशवा का साष्टी के अतिरिक्त पूराराज्य जीत लिया। इस प्रकार नाना ने अंग्रेजों की बढ़ती हुई शक्ति को रोका और संघ को विच्छिन्न होने से बचाया। परन्तु नाना की मृत्यु के बाद ही मराठा संघ का अंत हुआ। लार्ड वेलजली के नाना के संबंध के शब्द स्मरणीय हैं। नाना फडनवीस केवल एक योग्य मंत्री ही नहीं था, किंतु वह ईमानदार तथा उच्च आदर्शों से प्रेरित था। उसने अपना पूरा जीवन राज्य के कल्याण के लिए तथा अपने अधिकारियों की कल्याणकामना के लिए उत्सर्ग किया। श्रेणी:भारत का इतिहास श्रेणी:मराठा.

नई!!: पेशवा बाजीराव द्वितीय और नाना फडनवीस · और देखें »

पुणे

पुणे भारत के महाराष्ट्र राज्य का एक महत्त्वपूर्ण शहर है। यह शहर महाराष्ट्र के पश्चिम भाग, मुला व मूठा इन दो नदियों के किनारे बसा है और पुणे जिला का प्रशासकीय मुख्यालय है। पुणे भारत का छठवां सबसे बड़ा शहर व महाराष्ट्र का दूसरा सबसे बड़ा शहर है। सार्वजनिक सुखसुविधा व विकास के हिसाब से पुणे महाराष्ट्र मे मुंबई के बाद अग्रसर है। अनेक नामांकित शिक्षणसंस्थायें होने के कारण इस शहर को 'पूरब का ऑक्सफोर्ड' भी कहा जाता है। पुणे में अनेक प्रौद्योगिकी और ऑटोमोबाईल उपक्रम हैं, इसलिए पुणे भारत का ”डेट्राइट” जैसा लगता है। काफी प्राचीन ज्ञात इतिहास से पुणे शहर महाराष्ट्र की 'सांस्कृतिक राजधानी' माना जाता है। मराठी भाषा इस शहर की मुख्य भाषा है। पुणे शहर मे लगभग सभी विषयों के उच्च शिक्षण की सुविधा उपलब्ध है। पुणे विद्यापीठ, राष्ट्रीय रासायनिक प्रयोगशाला, आयुका, आगरकर संशोधन संस्था, सी-डैक जैसी आंतरराष्ट्रीय स्तर के शिक्षण संस्थान यहाँ है। पुणे फिल्म इन्स्टिट्युट भी काफी प्रसिद्ध है। पुणे महाराष्ट्र व भारत का एक महत्त्वपूर्ण औद्योगिक केंद्र है। टाटा मोटर्स, बजाज ऑटो, भारत फोर्ज जैसे उत्पादनक्षेत्र के अनेक बड़े उद्योग यहाँ है। 1990 के दशक मे इन्फोसिस, टाटा कंसल्टंसी सर्विसे, विप्रो, सिमैंटेक, आइ.बी.एम जैसे प्रसिद्ध सॉफ्टवेअर कंपनियों ने पुणे मे अपने केंन्द्र खोले और यह शहर भारत का एक प्रमुख सूचना प्रौद्योगिकी उद्योगकेंद्र के रूप मे विकसित हुआ। .

नई!!: पेशवा बाजीराव द्वितीय और पुणे · और देखें »

पेशवा

दरबारियों के साथ पेशवा मराठा साम्राज्य के प्रधानमंत्रियों को पेशवा (मराठी: पेशवे) कहते थे। ये राजा के सलाहकार परिषद अष्टप्रधान के सबसे प्रमुख होते थे। राजा के बाद इन्हीं का स्थान आता था। शिवाजी के अष्टप्रधान मंत्रिमंडल में प्रधान मंत्री अथवा वजीर का पर्यायवाची पद था। 'पेशवा' फारसी शब्द है जिसका अर्थ 'अग्रणी' है। पेशवा का पद वंशानुगत नहीं था। आरंभ में, संभवत: पेशवा मर्यादा में अन्य सदस्यों के बराबर ही माना जाता था। छत्रपति राजाराम के समय में पंत-प्रतिनिधि का नवनिर्मित पद, राजा का प्रतिनिधि होने के नाते पेशवा से ज्येष्ठ ठहराया गया था। पेशवाई सत्ता के वास्तविक संस्थापन का, तथा पेशवा पद को वंशपरंपरागत रूप देने का श्रेय ऐतिहासिक क्रम से सातवें पेशवा, बालाजी विश्वनाथ को है। किंतु, यह परिवर्तन छत्रपति शाहू के सहयोग और सहमति द्वारा ही संपन्न हुआ, उसकी असमर्थता के कारण नहीं। यद्यपि बालाजी विश्वनाथ के उत्तराधिकारी बाजीराव ने मराठा साम्राज्य के सीमाविस्तार के साथ साथ अपनी सत्ता को भी सर्वोपरि बना दिया, तथापि वैधानिक रूप से पेशवा की स्थिति में क्रांतिकारी परिवर्तन शाहू की मृत्यु के बाद, बाजीराव के पुत्र बालाजी के समय में हुआ। अल्पवयस्क छत्रपति रामराजा की अयोग्यता के कारण समस्त राजकीय शक्ति संगोला के समझौते (२५ सितंबर १७५०) के अनुसार, पेशवा को हस्तांतरित हो गई, तथा शासकीय केंद्र सातारा की अपेक्षा पुणे निर्धारित किया गया। किंतु पेशवा माधवराव के मृत्युपरांत जैसा सातारा राजवंश के साथ हुआ, वैसा ही पेशवा वंश के साथ हुआ। माधवराव के उत्तराधिकारियों की नितांत अयोग्यता के कारण राजकीय सत्ता उनके अभिभावक नाना फडनवीस के हाथों में केंद्रित हो गई। किंतु आँग्ल शक्ति के उत्कर्ष के कारण इस स्थिति में भी शीघ्र ही महान परिवर्तन हुआ। अंतिम पेशवा बाजीराव द्वितीय को वसई की संधि के अनुसार (३१ दिसम्बर १८०२) अंग्रेजों का प्रभुत्व स्वीकार करना पड़ा; १३ जून १८१७, की संधि के अनुसार मराठा संघ पर उसे अपना अधिकार छोड़ना पड़ा; तथा अंत में तृतीय आंग्ल मराठा युद्ध की समाप्ति पर, मराठा साम्राज्य के विसर्जन के बाद, पदच्युत होकर अंग्रेजों की पेंशन ग्रहण करने के लिये विवश होना पड़ा।; पेशवाओं का शासनकाल-.

नई!!: पेशवा बाजीराव द्वितीय और पेशवा · और देखें »

बसई

बसई एटा जिले के पटियाली प्रखण्ड का एक गाँव है। श्रेणी:एटा जिला के गाँव.

नई!!: पेशवा बाजीराव द्वितीय और बसई · और देखें »

बिठूर

बिठूर, उत्तर प्रदेश में कानपुर के पश्चिमोत्तर दिशा में २७ किमी दूर स्थित एक नगर है। मेरठ के अलावा बिठूर में भी सन १८५७ में भारतीय स्वतंत्रता का प्रथम संग्राम का श्रीगणेश हुआ था। यह शहर उत्तर प्रदेश के औद्योगिक शहर कानपुर से 22 किलोमीटर दूर कन्नौज रोड़ पर स्थित है। बिठूर उत्तर प्रदेश में गंगा किनारे एक ऐसा सोया हुआ सा, छोटा सा क़स्बा है जो किसी ज़माने में सत्ता का केंद्र हुआ करता था। कानपुर के पास आज यहाँ की पुरानी ऐतिहासिक इमारतें, बारादरियाँ और मंदिर जीर्ण-शीर्ण हालत में पड़ी हैं; लेकिन स्थानीय लोगों के पास इतिहास की वो यादें हैं जिनका पाठ हर बच्चे को स्कूल में सिखाया जाता है। ये नानाराव और तात्या टोपे जैसे लोगों की धरती रही है। टोपे परिवार की एक शाखा आज भी बैरकपुर में है और यहीं झाँसी की रानी लक्ष्मी बाई का बचपन बीता। उसी दौर में कानपुर से अपनी जान बचाकर भाग रहे अंग्रेज़ों को सतीचौरा घाट पर मौत के घाट उतार दिया गया। बाद में उसके बदले में अंग्रेज़ों ने गाँव के गाँव तबाह कर दिए औऱ एक एक पेड़ से लटका कर बीस-बीस लोगों को फाँसी दे दी गई। जीत के बाद अँग्रेज़ों ने बिठूर में नानाराव पेशवा के महल को तो मटियामेट कर ही दिया था, जब ताँत्या टोपे के रिश्तेदारों को 1860 में ग्वालियर जेल से रिहा किया गया तो उन्होंने बिठूर लौटकर पाया कि उनका घर भी जला दिया गया है। .

नई!!: पेशवा बाजीराव द्वितीय और बिठूर · और देखें »

मराठा

मराठा (पुरातन रूप से मरहट्टा या मारहट्टा के रूप में लिप्यंतरित) भारत में जातियों का एक समूह मुख्य रूप से महाराष्ट्र राज्य में रहता है। एनसाइक्लोपीडिया ब्रिटानिका के मुताबिक, "मराठा, भारत के इतिहास के बहादुर लोग हैं, इतिहास में प्रचलित हैं और हिंदू धर्म के विजेता हैं।" वे मुख्यतः भारतीय राज्य महाराष्ट्र में रहते हैं। ब्रिटिश राज काल के एक अप्रशिक्षित नृवंशविद वैज्ञानिक रॉबर्ट वाणे रसेल, जो वैदिक साहित्य पर बड़े पैमाने पर अपने शोध का आधार था, ने लिखा कि मराठों को 96 विभिन्न कुलों में विभाजित किया जाता है, जिसे 96 कुलि मराठों या 'शाहनु कुले', के रूप में जाना जाता है, जो की क्षत्रिय है मराठी, में शाहन्नौ का मतलब है 96। सूचियों का सामान्य निकाय अक्सर एक-दूसरे के साथ महान विचरण होता है। .

नई!!: पेशवा बाजीराव द्वितीय और मराठा · और देखें »

मराठा साम्राज्य

मराठा साम्राज्य या मराठा महासंघ एक भारतीय साम्राज्यवादी शक्ति थी जो 1674 से 1818 तक अस्तित्व में रही। मराठा साम्राज्य की नींव छत्रपती शिवाजी महाराज जी ने १६७४ में डाली। उन्होने कई वर्ष औरंगज़ेब के मुगल साम्राज्य से संघर्ष किया। बाद में आये पेशवाओनें इसे उत्तर भारत तक बढाया, ये साम्राज्य १८१८ तक चला और लगभग पूरे भारत में फैल गया। .

नई!!: पेशवा बाजीराव द्वितीय और मराठा साम्राज्य · और देखें »

महार

महार एक प्रमुख सामाजिक समूह है जो महाराष्ट्र राज्य और आसपास के राज्यों में रहता हैं। महार समूह महाराष्ट्र में सबसे बड़ा अनुसूचित जातियों का समूह है, हिंदू जातियों में इसका स्थान दलित जाति का था। महाराष्ट्र की कुल जनसंख्या में 10% महार लोक है। सभी महार आज लगभग बौद्ध बन चूके है। महार महाराष्ट्र की अनुसूचित जाति का कुल 80% हिस्सा है। महाराष्ट्र में बौद्ध एवं महार जनसंख्या 16% है। श्री आर.

नई!!: पेशवा बाजीराव द्वितीय और महार · और देखें »

यशवंतराव होलकर

यशवंतराव होलकर तुकोजी होलकर का पुत्र था। वह उद्दंड होते हुए भी बड़ा साहसी तथा दक्ष सेनानायक था। तुकोजजी की मृत्यु पर (1797) उत्तराधिकार के प्रश्न पर दौलतराव शिंदे के हस्तक्षेप तथा तज्जनित युद्ध में यशवंतराव के ज्येष्ठ भ्राता मल्हरराव के वध (1797) के कारण, प्रतिशोध की भावना से प्रेरित हो यशवंतराव ने शिंदे के राज्य में निरंतर लूट-मार आरंभ कर दी। अहिल्या बाई का संचित कोष हाथ आ जाने से (18000 ई) उसकी शक्ति और भी बढ़ गई। 1802 में उसने पेशवा तथा शिंदे को सम्मिलित सेना को पूर्णतया पराजित किया जिससे पेशवा ने बसई भागकर अंग्रेजों से संधि की (31 दिसम्बर 1802)। फलस्वरूप द्वितीय आंग्ल-मराठा युद्ध छिड़ गया। शिंदे से वैमनस्य के कारण मराठासंघ छोड़ने में यशवंतराव ने बड़ी गलती की क्योंकि भोंसले तथा शिंदे क पराजय के बाद, होलकर को अकेले अंग्रेजों से युद्ध करना पड़ा। पहले ता यशवंतराव ने मॉनसन पर विजय पाई (1804), किंतु, फर्रूखाबाद (नवम्बर 17) तथा डीग (दिसंबर 13) में उसकी पराजय हुई। फलस्वरूप उसे अंग्रेजों से संधि स्थापित करनी पड़ी (24 दिसबंर, 1805) अंत में, पूर्ण विक्षिप्तावस्था में, तीस वर्ष की आयु में उसकी मृत्यु हो गई (28 अक्टूबर 1811)। एक ऐसा भारतीय शासक जिसने अकेले दम पर अंग्रेजों को नाकों चने चबाने पर मजबूर कर दिया था। इकलौता ऐसा शासक, जिसका खौफ अंग्रेजों में साफ-साफ दिखता था। एकमात्र ऐसा शासक जिसके साथ अंग्रेज हर हाल में बिना शर्त समझौता करने को तैयार थे। एक ऐसा शासक, जिसे अपनों ने ही बार-बार धोखा दिया, फिर भी जंग के मैदान में कभी हिम्मत नहीं हारी। इतना महान था वो भारतीय शासक, फिर भी इतिहास के पन्नों में वो कहीं खोया हुआ है। उसके बारे में आज भी बहुत लोगों को जानकारी नहीं है। उसका नाम आज भी लोगों के लिए अनजान है। उस महान शासक का नाम है - यशवंतराव होलकर। यह उस महान वीरयोद्धा का नाम है, जिसकी तुलना विख्यात इतिहास शास्त्री एन एस इनामदार ने 'नेपोलियन' से की है। पश्चिम मध्यप्रदेश की मालवा रियासत के महाराज यशवंतराव होलकर का भारत की आजादी के लिए किया गया योगदान महाराणा प्रताप और झांसी की रानी लक्ष्मीबाई से कहीं कम नहीं है। यशवतंराव होलकर का जन्म 1776 ई. में हुआ। इनके पिता थे - तुकोजीराव होलकर। होलकर साम्राज्य के बढ़ते प्रभाव के कारण ग्वालियर के शासक दौलतराव सिंधिया ने यशवंतराव के बड़े भाई मल्हारराव को मौत की नींद सुला दिया। इस घटना ने यशवंतराव को पूरी तरह से तोड़ दिया था। उनका अपनों पर से विश्वास उठ गया। इसके बाद उन्होंने खुद को मजबूत करना शुरू कर दिया। ये अपने काम में काफी होशियार और बहादुर थे। इसका अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि 1802 ई. में इन्होंने पुणे के पेशवा बाजीराव द्वितीय व सिंधिया की मिलीजुली सेना को मात दी और इंदौर वापस आ गए। इस दौरान अंग्रेज भारत में तेजी से अपने पांव पसार रहे थे। यशवंत राव के सामने एक नई चुनौती सामने आ चुकी थी। भारत को अंग्रेजों के चंगुल से आजाद कराना। इसके लिए उन्हें अन्य भारतीय शासकों की सहायता की जरूरत थी। वे अंग्रेजों के बढ़ते साम्राज्य को रोक देना चाहते थे। इसके लिए उन्होंने नागपुर के भोंसले और ग्वालियर के सिंधिया से एकबार फिर हाथ मिलाया और अंग्रेजों को खदेड़ने की ठानी। लेकिन पुरानी दुश्मनी के कारण भोंसले और सिंधिया ने उन्हें फिर धोखा दिया और यशवंतराव एक बार फिर अकेले पड़ गए। उन्होंने अन्य शासकों से एकबार फिर एकजुट होकर अंग्रेजों के खिलाफ लड़ने का आग्रह किया, लेकिन किसी ने उनकी बात नहीं मानी। इसके बाद उन्होंने अकेले दम पर अंग्रेजों को छठी का दूध याद दिलाने की ठानी। 8 जून 1804 ई. को उन्होंने अंग्रेजों की सेना को धूल चटाई। फिर 8 जुलाई 1804 ई. में कोटा से उन्होंने अंग्रेजों को खदेड़ दिया। 11 सितंबर 1804 ई. को अंग्रेज जनरल वेलेस्ले ने लॉर्ड ल्युक को लिखा कि यदि यशवंतराव पर जल्दी काबू नहीं पाया गया तो वे अन्य शासकों के साथ मिलकर अंग्रेजों को भारत से खदेड़ देंगे। इसी मद्देनजर नवंबर, 1804 ई. में अंग्रेजों ने दिग पर हमला कर दिया। इस युद्ध में भरतपुर के महाराज रंजित सिंह के साथ मिलकर उन्होंने अंग्रेजों को उनकी नानी याद दिलाई। यही नहीं इतिहास के मुताबिक उन्होंने 300 अंग्रेजों की नाक ही काट डाली थी। अचानक रंजित सिंह ने भी यशवंतराव का साथ छोड़ दिया और अंग्रजों से हाथ मिला लिया। इसके बाद सिंधिया ने यशवंतराव की बहादुरी देखते हुए उनसे हाथ मिलाया। अंग्रेजों की चिंता बढ़ गई। लॉर्ड ल्युक ने लिखा कि यशवंतराव की सेना अंग्रेजों को मारने में बहुत आनंद लेती है। इसके बाद अंग्रेजों ने यह फैसला किया कि यशवंतराव के साथ संधि से ही बात संभल सकती है। इसलिए उनके साथ बिना शर्त संधि की जाए। उन्हें जो चाहिए, दे दिया जाए। उनका जितना साम्राज्य है, सब लौटा दिया जाए। इसके बावजूद यशवंतराव ने संधि से इंकार कर दिया। वे सभी शासकों को एकजुट करने में जुटे हुए थे। अंत में जब उन्हें सफलता नहीं मिली तो उन्होंने दूसरी चाल से अंग्रेजों को मात देने की सोची। इस मद्देनजर उन्होंने 1805 ई. में अंग्रेजों के साथ संधि कर ली। अंग्रेजों ने उन्हें स्वतंत्र शासक माना और उनके सारे क्षेत्र लौटा दिए। इसके बाद उन्होंने सिंधिया के साथ मिलकर अंग्रेजों को खदेड़ने का एक और प्लान बनाया। उन्होंने सिंधिया को खत लिखा, लेकिन सिंधिया दगेबाज निकले और वह खत अंग्रेजों को दिखा दिया। इसके बाद पूरा मामला फिर से बिगड़ गया। यशवंतराव ने हल्ला बोल दिया और अंग्रेजों को अकेले दम पर मात देने की पूरी तैयारी में जुट गए। इसके लिए उन्होंने भानपुर में गोला बारूद का कारखाना खोला। इसबार उन्होंने अंग्रेजों को खदेड़ने की ठान ली थी। इसलिए दिन-रात मेहनत करने में जुट गए थे। लगातार मेहनत करने के कारण उनका स्वास्थ्य भी गिरने लगा। लेकिन उन्होंने इस ओर ध्यान नहीं दिया और 28 अक्टूबर 1811 ई. में सिर्फ 35 साल की उम्र में वे स्वर्ग सिधार गए। इस तरह से एक महान शासक का अंत हो गया। एक ऐसे शासक का जिसपर अंग्रेज कभी अधिकार नहीं जमा सके। एक ऐसे शासक का जिन्होंने अपनी छोटी उम्र को जंग के मैदान में झोंक दिया। यदि भारतीय शासकों ने उनका साथ दिया होता तो शायद तस्वीर कुछ और होती, लेकिन ऐसा नहीं हुआ और एक महान शासक यशवंतराव होलकर इतिहास के पन्नों में कहीं खो गया और खो गई उनकी बहादुरी, जो आज अनजान बनी हुई है। .

नई!!: पेशवा बाजीराव द्वितीय और यशवंतराव होलकर · और देखें »

रघुनाथराव

श्रीमन्त रघुनाथराव बल्लाल पेशवा (उपाख्य, राघो बल्लाल या राघो भरारी) (18 अगस्त1734 – 11 दिसम्बर 1783), सन १७७३ से १७७४ तक मराठा साम्राज्य के पेशवा थे। .

नई!!: पेशवा बाजीराव द्वितीय और रघुनाथराव · और देखें »

ईस्ट इण्डिया कम्पनी

लन्दन स्थित ईस्ट इण्डिया कम्पनी का मुख्यालय (थॉमस माल्टन द्वारा चित्रित, १८०० ई) ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी की स्थापना ३१ दिसम्बर १६०० ईस्वी में हुई थी। इसे यदाकदा जॉन कंपनी के नाम से भी जाना जाता था। इसे ब्रिटेन की महारानी ने भारत के साथ व्यापार करने के लिये २१ सालो तक की छूट दे दी। बाद में कम्पनी ने भारत के लगभग सभी क्षेत्रों पर अपना सैनिक तथा प्रशासनिक अधिपत्य जमा लिया। १८५८ में इसका विलय हो गया। .

नई!!: पेशवा बाजीराव द्वितीय और ईस्ट इण्डिया कम्पनी · और देखें »

वसई की संधि

मराठा प्रदेश के राजाओं के आपस में जो संघर्ष चल रहे थे उनमें पूना के निकट हदप्सर स्थान पर बाजीराव द्वितीय को यशवंतराव होल्कर ने पराजित किया। पेशवा बाजीराव भाग कर बसई पहुँचे और ब्रिटिश सत्ता से शरण माँगी। पेशवा का शरण देना ब्रिटिश सत्ता ने सहर्ष स्वीकार किया परंतु इसके लिए बाजीराव को अपमानजनक शर्तों पर संधि करनी पड़ी। यह संधि 31 दिसम्बर 1802 को हुई। इसके अनुसार पेशवा को अपने यहाँ ब्रिटिश सेना की एक टुकड़ी रखने और खर्चे के लिए 26 लाख रुपए की वार्षिक आय का अपना इलाका ईस्ट इंडिया कंपनी को सौंप देने पर सहमत होना पड़ा। संधि की एक शर्त यह भी थी कि अन्य राज्य से अपने संबंधों और व्यवहार के मामलों में पेशवा ईस्ट इंडिया कंपनी के आदेशानुसार काम करेंगे। इस प्रकार मराठा स्वतंत्रता इस संधि के परिणामस्वरूप ब्रिटिश सत्ता के हाथों बिक गई। श्रेणी:भारत का इतिहास.

नई!!: पेशवा बाजीराव द्वितीय और वसई की संधि · और देखें »

कानपुर

कानपुर भारतवर्ष के उत्तरी राज्य उत्तर प्रदेश का एक प्रमुख औद्योगिक नगर है। यह नगर गंगा नदी के दक्षिण तट पर बसा हुआ है। प्रदेश की राजधानी लखनऊ से ८० किलोमीटर पश्चिम स्थित यहाँ नगर प्रदेश की औद्योगिक राजधानी के नाम से भी जाना जाता है। ऐतिहासिक और पौराणिक मान्यताओं के लिए चर्चित ब्रह्मावर्त (बिठूर) के उत्तर मध्य में स्थित ध्रुवटीला त्याग और तपस्या का संदेश दे रहा है। यहाँ की आबादी लगभग २७ लाख है। .

नई!!: पेशवा बाजीराव द्वितीय और कानपुर · और देखें »

कोरेगाँव की लड़ाई

कोरेगाँव की लड़ाई १ जनवरी १८१८ में ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी और मराठा साम्राज्य के पेशवा गुट के बीच, कोरेगाँव भीमा में लड़ी गई। बाजीराव द्वितीय के नेतृत्व में २८ हजार मराठों को पुणे पर आक्रमण करना था। रास्ते में उनका सामना कंपनी की सैन्य शक्ति को मजबूत करने पुणे जा रही एक ८०० सैनिकों की टुकड़ी से हो गया। पेशवा ने कोरेगाँव में तैनात इस कंपनी बल पर हमला करने के लिए २ हजार सैनिक भेजे। कप्तान फ्रांसिस स्टौण्टन के नेतृत्व में कंपनी के सैनिक लगभग १२ घंटे तक डटे रहे। अन्ततः जनरल जोसेफ स्मिथ की अगुवाई में एक बड़ी ब्रिटिश सेना के आगमन की संभावना के कारण मराठा सैन्यदल पीछे हट गए। अंग्रेजो की फूट डालो और राज करो की नीति का ये एक और उदाहरण था। भारतीय मूल के कंपनी सैनिकों में मुख्य रूप से बॉम्बे नेटिव इन्फैंट्री से संबंधित महार रेजिमेंट के सैनिक शामिल थे, और इसलिए महार लोग इस युद्ध को अपने इतिहास का एक वीरतापूर्ण प्रकरण मानते हैं। .

नई!!: पेशवा बाजीराव द्वितीय और कोरेगाँव की लड़ाई · और देखें »

१ जनवरी

१ जनवरी ग्रेगोरी कैलंडर के अनुसार वर्ष का पहला दिन है। वर्ष में अभी और ३६४ दिन बाकी है (लीप वर्ष में ३६५)। .

नई!!: पेशवा बाजीराव द्वितीय और १ जनवरी · और देखें »

१८१८

1818 ग्रेगोरी कैलंडर का एक साधारण वर्ष है। .

नई!!: पेशवा बाजीराव द्वितीय और १८१८ · और देखें »

यहां पुनर्निर्देश करता है:

बाजीराव द्वितीय, बाजीराव २

निवर्तमानआने वाली
अरे! अब हम फेसबुक पर हैं! »