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परिधीय संवहिनी रोग

सूची परिधीय संवहिनी रोग

परिधीय संवहिनी रोग (अंग्रेज़ी:पेरिफेरल वैस्कुलर डिज़ीज़, लघु:पीवीडी (PVD), जिसे परिधीय धमनी रोग (पेरिफेरल आर्टरी डिज़ीज़, PAD) या पेरिफेरल आर्टरी ऑक्ल्यूसिव डिज़ीज़ (PAOD) भी कहते हैं, हाथों व पैरों में बड़ी धमनियों के संकरा होने से पैदा होने वाली रक्त के बहाव में रुकावट के कारण होने वाली सभी समस्याओं को कहते हैं। इसका परिणाम आर्थेरोस्क्लेरोसिस, सूजन आदि जिनसे स्टेनोसिस, एम्बोलिज़्म, या थ्रॉम्बस गठन हो सकती है।। हिन्दुस्तान लाइव। १३ अप्रैल २०१० इससे विकट या चिरकालिक एस्केमिया (रक्त आपूर्ति में कमी), विशेषकर पैरों में हो सकती है। यह रोग होने की संभावना उन लोगों में अधिक होती है, जो उच्च रक्तचाप, मधुमेह, उच्च रक्तचाप, उच्च कॉलेस्ट्रॉल और निष्क्रिय जीवनशैली के रोगी होते हैं या उनके रक्त में वसा या लिपिड की मात्रा अधिक होती है। साथ ही धूम्रपान ज्यादा करने वालों को भी ये समस्या होती है।। हिन्दुस्तान लाइव। ४ अगस्त २०१० इसके अलावा, रक्त का थक्का जमने के कारण रक्त-शिराएं अवरोधित हो जाती हैं। इस रोग में रक्त धमनियों की भीतरी दीवारों पर वसा जम जाती है। ये हाथ पाँवों के ऊतकों में रक्त के प्रवाह को रोकता है। रोग के प्राथमिक चरण में चलने या सीढ़ियां चढ़ने पर पैरों और कूल्हों में थकान या दर्द महसूस होता है। इस समय रोगी इन लक्षणों पर ध्यान नहीं देते हैं। समय के साथ-साथ इसके अलावा अन्य लक्षणों में दर्द, सुन्न होना, पैर की माँसपेशियों में भारीपन आते हैं। शारीरिक काम करते समय मांसपेशियों को अधिक रक्त प्रवाह चाहिए होता है। यदि नसें संकरी हो जाएं तो उन्हें पर्याप्त रक्त नहीं मिलता। आराम के समय रक्त प्रवाह की उतनी आवश्यकता नहीं होती इसलिए बैठ जाने से दर्द भी चला जाता है। .

19 संबंधों: दर्द, धमनी, धूम्रपान, परिधीय संवहिनी रोग, पैर, फुल्लन, मधुमेह, रक्त, रक्त चाप, लिपिड, साबुन, हाथ, हृदय रोग, हृदयाघात, वसा, आहारीय रेशा, कोलेस्टेरॉल, अंग्रेज़ी भाषा, उच्च रक्तचाप

दर्द

दर्द या पीड़ा एक अप्रिय अनुभव होता है। इसका अनुभव कई बार किसी चोट, ठोकर लगने, किसी के मारने, किसी घाव में नमक या आयोडीन आदि लगने से होता है। अंतर्राष्ट्रीय पीड़ा अनुसंधान संघ द्वारा दी गई परिभाषा के अनुसार "एक अप्रिय संवेदी और भावनात्मक अनुभव जो वास्तविक या संभावित ऊतक-हानि से संबंधित होता है; या ऐसी हानि के सन्दर्भ से वर्णित किया जा सके- पीड़ा कहलाता है".

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धमनी

धमनियां वे रक्त वाहिकाएं होती हैं, जो हृदय से रक्त को आगे पहुंचाती हैं। पल्मोनरी एवं आवलनाल धमनियों के अलावा सभी धमनियां ऑक्सीजन-युक्त रक्त लेजाती हैं। .

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धूम्रपान

. इसे एक रिवाज के एक भाग के रूप में, समाधि में जाने के लिए प्रेरित करने और आध्यात्मिक ज्ञान को उत्पन्न करने में भी किया जा सकता है। वर्तमान में धूम्रपान की सबसे प्रचलित विधि सिगरेट है, जो मुख्य रूप से उद्योगों द्वारा निर्मित होती है किन्तु खुले तम्बाकू तथा कागज़ को हाथ से गोल करके भी बनाई जाती है। धूम्रपान के अन्य साधनों में पाइप, सिगार, हुक्का एवं बॉन्ग शामिल हैं। ऐसा बताया जाता है कि धूम्रपान से संबंधित बीमारियां सभी दीर्घकालिक धूम्रपान करने वालों में से आधों की जान ले लेती हैं किन्तु ये बीमारियां धूम्रपान न करने वालों को भी लग सकती हैं। 2007 की एक रिपोर्ट के अनुसार प्रत्येक वर्ष दुनिया भर में 4.9 मिलियन लोग धूम्रपान की वजह से मरते हैं। धूम्रपान मनोरंजक दवा का एक सबसे सामान्य रूप है। तंबाकू धूम्रपान वर्तमान धूम्रपान का सबसे लोकप्रिय प्रकार है और अधिकतर सभी मानव समाजों में एक बिलियन लोगों द्वारा किया जाता है। धूम्रपान के लिए कम प्रचलित नशीली दवाओं में भांग तथा अफीम शामिल है। कुछ पदार्थों को हानिकारक मादक पदार्थों के रूप में वर्गीकृत किया गया है जैसे कि हेरोइन, किन्तु इनका प्रयोग अत्यंत सीमित है क्योंकि अक्सर ये व्यवसायिक रूप से उपलब्ध नहीं होते.

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परिधीय संवहिनी रोग

परिधीय संवहिनी रोग (अंग्रेज़ी:पेरिफेरल वैस्कुलर डिज़ीज़, लघु:पीवीडी (PVD), जिसे परिधीय धमनी रोग (पेरिफेरल आर्टरी डिज़ीज़, PAD) या पेरिफेरल आर्टरी ऑक्ल्यूसिव डिज़ीज़ (PAOD) भी कहते हैं, हाथों व पैरों में बड़ी धमनियों के संकरा होने से पैदा होने वाली रक्त के बहाव में रुकावट के कारण होने वाली सभी समस्याओं को कहते हैं। इसका परिणाम आर्थेरोस्क्लेरोसिस, सूजन आदि जिनसे स्टेनोसिस, एम्बोलिज़्म, या थ्रॉम्बस गठन हो सकती है।। हिन्दुस्तान लाइव। १३ अप्रैल २०१० इससे विकट या चिरकालिक एस्केमिया (रक्त आपूर्ति में कमी), विशेषकर पैरों में हो सकती है। यह रोग होने की संभावना उन लोगों में अधिक होती है, जो उच्च रक्तचाप, मधुमेह, उच्च रक्तचाप, उच्च कॉलेस्ट्रॉल और निष्क्रिय जीवनशैली के रोगी होते हैं या उनके रक्त में वसा या लिपिड की मात्रा अधिक होती है। साथ ही धूम्रपान ज्यादा करने वालों को भी ये समस्या होती है।। हिन्दुस्तान लाइव। ४ अगस्त २०१० इसके अलावा, रक्त का थक्का जमने के कारण रक्त-शिराएं अवरोधित हो जाती हैं। इस रोग में रक्त धमनियों की भीतरी दीवारों पर वसा जम जाती है। ये हाथ पाँवों के ऊतकों में रक्त के प्रवाह को रोकता है। रोग के प्राथमिक चरण में चलने या सीढ़ियां चढ़ने पर पैरों और कूल्हों में थकान या दर्द महसूस होता है। इस समय रोगी इन लक्षणों पर ध्यान नहीं देते हैं। समय के साथ-साथ इसके अलावा अन्य लक्षणों में दर्द, सुन्न होना, पैर की माँसपेशियों में भारीपन आते हैं। शारीरिक काम करते समय मांसपेशियों को अधिक रक्त प्रवाह चाहिए होता है। यदि नसें संकरी हो जाएं तो उन्हें पर्याप्त रक्त नहीं मिलता। आराम के समय रक्त प्रवाह की उतनी आवश्यकता नहीं होती इसलिए बैठ जाने से दर्द भी चला जाता है। .

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पैर

पैर या पाँव किसी कशेरुकी प्राणी के शरीर की टाँग के अंत पर स्थित अंग होता है। अक्सर इस पैर का तलुआ धरती के साथ लगकर प्राणी का भार उठाने और उसके चलने में सहायक होता है। .

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फुल्लन

अंगुली में सूजन (अन्तर देखिये) शरीर के किसी भाग का अस्थायी रूप से (transient) बढ़ जाना आयुर्विज्ञान में फुल्लन (स्वेलिंग) कहा जाता है। हिन्दी में इसे उत्सेध, फूलना और सूजन भी कहते हैं। ट्यूमर भी इसमें सम्मिलित है। सूजन, प्रदाह के पाँच लक्षणों में से एक है। (प्रदाह के अन्य लक्षण हैं - दर्द, गर्मी, लालिमा, कार्य का ह्रास) यह पूरे शरीर में हो सकती है, या एक विशिष्ट भाग या अंग प्रभावित हो सकता है| एक शरीर का अंग चोट, संक्रमण, या रोग के जवाब में और साथ ही एक अंतर्निहित गांठ की वजह से, प्रफुल्लित हो सकता है| .

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मधुमेह

डायबिटीज मेलेटस (डीएम), जिसे सामान्यतः मधुमेह कहा जाता है, चयापचय संबंधी बीमारियों का एक समूह है जिसमें लंबे समय तक उच्च रक्त शर्करा का स्तर होता है। उच्च रक्त शर्करा के लक्षणों में अक्सर पेशाब आना होता है, प्यास की बढ़ोतरी होती है, और भूख में वृद्धि होती है।  यदि अनुपचारित छोड़ दिया जाता है, मधुमेह कई जटिलताओं का कारण बन सकता है।  तीव्र जटिलताओं में मधुमेह केटोएसिडोसिस, नॉनकेटोटिक हाइपरोस्मोलर कोमा, या मौत शामिल हो सकती है। गंभीर दीर्घकालिक जटिलताओं में हृदय रोग, स्ट्रोक, क्रोनिक किडनी की विफलता, पैर अल्सर और आंखों को नुकसान शामिल है। मधुमेह के कारण है या तो अग्न्याशय  पर्याप्त इंसुलिन का उत्पादन नहीं करता या शरीर की कोशिकायें इंसुलिन को ठीक से जवाब नहीं करती। मधुमेह के तीन मुख्य प्रकार हैं.

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रक्त

मानव शरीर में लहू का संचरण लाल - शुद्ध लहू नीला - अशु्द्ध लहू लहू या रक्त या खून एक शारीरिक तरल (द्रव) है जो लहू वाहिनियों के अन्दर विभिन्न अंगों में लगातार बहता रहता है। रक्त वाहिनियों में प्रवाहित होने वाला यह गाढ़ा, कुछ चिपचिपा, लाल रंग का द्रव्य, एक जीवित ऊतक है। यह प्लाज़मा और रक्त कणों से मिल कर बनता है। प्लाज़मा वह निर्जीव तरल माध्यम है जिसमें रक्त कण तैरते रहते हैं। प्लाज़मा के सहारे ही ये कण सारे शरीर में पहुंच पाते हैं और वह प्लाज़मा ही है जो आंतों से शोषित पोषक तत्वों को शरीर के विभिन्न भागों तक पहुंचाता है और पाचन क्रिया के बाद बने हानिकारक पदार्थों को उत्सर्जी अंगो तक ले जा कर उन्हें फिर साफ़ होने का मौका देता है। रक्तकण तीन प्रकार के होते हैं, लाल रक्त कणिका, श्वेत रक्त कणिका और प्लैटलैट्स। लाल रक्त कणिका श्वसन अंगों से आक्सीजन ले कर सारे शरीर में पहुंचाने का और कार्बन डाईआक्साईड को शरीर से श्वसन अंगों तक ले जाने का काम करता है। इनकी कमी से रक्ताल्पता (अनिमिया) का रोग हो जाता है। श्वैत रक्त कणिका हानीकारक तत्वों तथा बिमारी पैदा करने वाले जिवाणुओं से शरीर की रक्षा करते हैं। प्लेटलेट्स रक्त वाहिनियों की सुरक्षा तथा खून बनाने में सहायक होते हैं। मनुष्य-शरीर में करीब पाँच लिटर लहू विद्यमान रहता है। लाल रक्त कणिका की आयु कुछ दिनों से लेकर १२० दिनों तक की होती है। इसके बाद इसकी कोशिकाएं तिल्ली (Phagocytosis) में टूटती रहती हैं। परन्तु इसके साथ-साथ अस्थि मज्जा (बोन मैरो) में इसका उत्पादन भी होता रहता है (In 7 steps)। यह बनने और टूटने की क्रिया एक निश्चित अनुपात में होती रहती है, जिससे शरीर में खून की कमी नहीं हो पाती। मनुष्यों में लहू ही सबसे आसानी से प्रत्यारोपित किया जा सकता है। एटीजंस से लहू को विभिन्न वर्गों में बांटा गया है और रक्तदान करते समय इसी का ध्यान रखा जाता है। महत्वपूर्ण एटीजंस को दो भागों में बांटा गया है। पहला ए, बी, ओ तथा दुसरा आर-एच व एच-आर। जिन लोगों का रक्त जिस एटीजंस वाला होता है उसे उसी एटीजंस वाला रक्त देते हैं। जिन पर कोई एटीजंस नहीं होता उनका ग्रुप "ओ" कहलाता है। जिनके रक्त कण पर आर-एच एटीजंस पाया जाता है वे आर-एच पाजिटिव और जिनपर नहीं पाया जाता वे आर-एच नेगेटिव कहलाते हैं। ओ-वर्ग वाले व्यक्ति को सर्वदाता तथा एबी वाले को सर्वग्राही कहा जाता है। परन्तु एबी रक्त वाले को एबी रक्त ही दिया जाता है। जहां स्वस्थ व्यक्ति का रक्त किसी की जान बचा सकता है, वहीं रोगी, अस्वस्थ व्यक्ति का खून किसी के लिये जानलेवा भी साबित हो सकता है। इसीलिए खून लेने-देने में बहुत सावधानी की आवश्यकता होती है। लहू का pH मान 7.4 होता है कार्य.

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रक्त चाप

स्फिगमोमनोमीटर, धमनीय दाब के मापन में प्रयुक्त एक उपकरण. रक्त चाप (BP), रक्त वाहिकाओं की बाहरी झिल्ली पर रक्त संचार द्वारा डाले गए दबाव (बल प्रति इकाई क्षेत्र) है और यह प्रमुख जीवन संकेतों में से एक है। संचरित रक्त का दबाव, धमनियों और केशिकाओं के माध्यम से हृदय से दूर और नसों के माध्यम से हृदय की ओर जाते समय कम होता जाता है। जब अर्थ सीमित ना हो, तब सामान्यतः रक्त चाप शब्द से तात्पर्य '''बाहु धमनीय दाब''' है: अर्थात् बाईं या दाईं ऊपरी भुजा की मुख्य रक्त वाहिका, जो रक्त को हृदय से दूर ले जाती है। तथापि, रक्त चाप को कभी-कभी शरीर के अन्य भागों में भी मापा जा सकता है, जैसे टखनों पर.

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लिपिड

शरीर में लिपिड लिपिड एक अघुलनशील पदार्थ हैं, जो कार्बोहाइड्रेट एवं प्रोटीन के साथ मिलकर प्राणियों एवं वनस्पति के ऊतक का निर्माण करते है। लिपिड को सामान्य भाषा मे कई बार वसा भी कहा जाता है परंतु दोनो मे कुछ अंतर होता है। लिपिड प्राकृतिक रूप से बने अणु होते हैं, जिनमें वसा, मोम, स्टेरॉल, वसा-घुलनशील विटामिन (जैसे विटामिन ए, डी, ई एवं के) मोनोग्लीसराइड, डाईग्लीसराइड, फॉस्फोलिपिड एवं अन्य आते हैं। इनका प्रमुख कार्य शरीर में उर्जा संरक्षण करना, ऊतकों की कोशिका झिल्ली बनाना और हार्मोन और विटामिन के अभिन्न अवयव निर्माण करना होता है। शरीर में कोलेस्ट्रोल तथा ट्राईग्लीसराईड की मात्रा ज्ञात करने हेतु लिपिड प्रोफाईल नामक परीक्षण करवाया जाता है। इसकी जांच से यह अनुमान लगाया जा सकता है कि रोगी की धमनियों मे कोलेस्ट्राल जमा होने और रक्त प्रवाह अवरुद्ध होने की कितनी सम्भावना है? लिपिड अनेक प्रकार के होते हैं, जैसे कि कोलेसटेरोल, काईलोमाईक्रोन इत्यादि। इनका भिन्न प्रकार से उपयोग होता है। कुछ लिपिड आहार के द्वारा प्राप्त होते हैं, तो कुछ लिपिड शरीर में निर्मित होते हैं। फोस्फैटीडाईकोलाइन हैं।स्ट्रायर ''et al.'', पृ. ३३० लिपिड को सारे शरीर में रक्त द्वारा भेजा जाता है। शरीर में पूरे लिपिड का एक संतुलन रहता है और अत्याधिक लिपिड को भविष्य प्रयोग हेतु जमा कर लिया जाता है, या फिर मल त्याग के द्वारा निकाल दिया जाता है। यदि रक्त में किसी कारण से बहुत अधिक लिपिड हो तो, तो यह रक्तवाहिकाओं में जमा होकर उसे संकुचित कर देता है या फिर अवरोधित भी कर देता है। इसको एथ्रोसक्लेरोसिस कहते हैं और यह समय के साथ और बढते जाता है। अंत में यह विभिन्न अंगों में रक्त-प्रवाह को कम करके हानि पहुँचाता है, जैसे कि हृदयाघात या पक्षाघात आदि। .

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साबुन

तरह-तरह के सजावटी साबुन साबुन उच्च अणु भार वाले कार्बनिक वसीय अम्लों के सोडियम या पोटैशियम लवण है। मृदु साबुन का सूत्र C17H35COOK एवं कठोर साबुन का सूत्र C17H35COONa है। साबुनीकरण की क्रिया में वनस्पति तेल या वसा एवं कास्टिक सोडा या कास्टिक पोटाश के जलीय घोल को गर्म करके रासायनिक प्रतिक्रिया के द्वारा साबुन का निर्माण होता तथा ग्लीसराल मुक्त होता है। साधारण तापक्रम पर साबुन नरम ठोस एवं अवाष्पशील पदार्थ है। यह कार्बनिक मिश्रण जल में घुलकर झाग उत्पन्न करता है। इसका जलीय घोल क्षारीय होता है जो लाल लिटमस को नीला कर देता है। .

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हाथ

Tupaia javanica, Homo sapiens हाथ (med./लैटिन: manus, pl. manūs) मानव एवं अन्य अधिकतर मनुष्य-सदृश चतुष्पाद कशेरुकी पशुओं के अगले पादों के जोड़े को कहते हैं, जिसके छोर पर कई (प्रायः पांच) अंगुलियां होती हैं। .

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हृदय रोग

हृदय रोग हृदय शरीर का एक महत्त्वपूर्ण अंग है। मानवों मेंयह छाती के मध्य में, थोड़ी सी बाईं ओर स्थित होता है और एक दिन में लगभग एक लाख बार एवं एक मिनट में 60-90 बार धड़कता है। यह हर धड़कन के साथ शरीर में रक्त को धकेलता करता है। हृदय को पोषण एवं ऑक्सीजन, रक्त के द्वारा मिलता है जो कोरोनरी धमनियों द्वारा प्रदान किया जाता है। यह अंग दो भागों में विभाजित होता है, दायां एवं बायां। हृदय के दाहिने एवं बाएं, प्रत्येक ओर दो चैम्बर (एट्रिअम एवं वेंट्रिकल नाम के) होते हैं। कुल मिलाकर हृदय में चार चैम्बर होते हैं। दाहिना भाग शरीर से दूषित रक्त प्राप्त करता है एवं उसे फेफडों में पम्प करता है और रक्त फेफडों में शोधित होकर ह्रदय के बाएं भाग में वापस लौटता है जहां से वह शरीर में वापस पम्प कर दिया जाता है। चार वॉल्व, दो बाईं ओर (मिट्रल एवं एओर्टिक) एवं दो हृदय की दाईं ओर (पल्मोनरी एवं ट्राइक्यूस्पिड) रक्त के बहाव को निर्देशित करने के लिए एक-दिशा के द्वार की तरह कार्य करते हैं। हृदय में कई प्रकार के रोग हो सकते हैं। इनमें से कुछ इस प्रकार से हैं.

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हृदयाघात

रोधगलन (MI) या तीव्र रोधगलन (AMI) को आमतौर पर हृदयाघात (हार्ट अटैक) या दिल के दौरे के रूप में जाना जाता है, जिसके तहत दिल के कुछ भागों में रक्त संचार में बाधा होती है, जिससे दिल की कोशिकाएं मर जाती हैं। यह आमतौर पर कमजोर धमनीकलाकाठिन्य पट्टिका के विदारण के बाद परिहृद्-धमनी के रोध (रूकावट) के कारण होता है, जो कि लिपिड (फैटी एसिड) का एक अस्थिर संग्रह और धमनी पट्टी में श्वेत रक्त कोशिका (विशेष रूप से बृहतभक्षककोशिका) होता है। स्थानिक-अरक्तता के परिणामस्वरूप (रक्त संचार में प्रतिबंध) और ऑक्सीजन की कमी होती है, अगर लम्बी अवधि तक इसे अनुपचारित छोड़ दिया जाए, तो हृदय की मांसपेशी ऊतकों (मायोकार्डियम) की क्षति या मृत्यु (रोधगलन) हो सकती है। तीव्र रोधगलन के शास्त्रीय लक्षणों में अचानक छाती में दर्द, (आमतौर पर बाएं हाथ या गर्दन के बाएं ओर), सांस की तकलीफ, मिचली, उल्टी, घबराहट, पसीना और चिंता (अक्सर कयामत आसन्न भावना के रूप में वर्णित) शामिल हैं.

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वसा

lipid एक ट्राईग्लीसराइड अणु वसा अर्थात चिकनाई शरीर को क्रियाशील बनाए रखने में सहयोग करती है। वसा शरीर के लिए उपयोगी है, किंतु इसकी अधिकता हानिकारक भी हो सकती है। यह मांस तथा वनस्पति समूह दोनों प्रकार से प्राप्त होती है। इससे शरीर को दैनिक कार्यों के लिए शक्ति प्राप्त होती है। इसको शक्तिदायक ईंधन भी कहा जाता है। एक स्वस्थ व्यक्ति के लिए १०० ग्राम चिकनाई का प्रयोग करना आवश्यक है। इसको पचाने में शरीर को काफ़ी समय लगता है। यह शरीर में प्रोटीन की आवश्यकता को कम करने के लिए आवश्यक होती है। वसा का शरीर में अत्यधिक मात्रा में बढ़ जाना उचित नहीं होता। यह संतुलित आहार द्वारा आवश्यक मात्रा में ही शरीर को उपलब्ध कराई जानी चाहिए। अधिक मात्रा जानलेवा भी हो सकती है, यह ध्यान योग्य है। यह आमाशय की गतिशीलता में कमी ला देती है तथा भूख कम कर देती है। इससे आमाशय की वृद्धि होती है। चिकनाई कम हो जाने से रोगों का मुकाबला करने की शक्ति कम हो जाती है। अत्यधिक वसा सीधे स्रोत से हानिकारक है। इसकी संतुलित मात्रा लेना ही लाभदायक है। .

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आहारीय रेशा

लेग्यूम्स में आहारीय रेशा भरपूर मात्रा में उपस्थित होता है आहारीय रेशा, आहार में उपस्थित रेशे तत्त्व को कहते हैं। ये पौधों से मिलने वाले ऐसे तत्व हैं जो स्वयं तो अपाच्य होते हैं, किन्तु मूल रूप से पाचन क्रिया को सुचारू बनाने का अत्यावश्यक योगदान करते हैं। रेशे शरीर की कोशिकाओं की दीवार का निर्माण करते हैं। इनको एन्ज़ाइम भंग नहीं कर पाते हैं। अतः ये अपाच्य होते हैं।।। हेल्थ एण्ड थेराप्यूटिक। अभिगमन तिथि:११ अक्टूबर, २००९ कुछ समय पूर्व तक इन्हें आहार के संबंध में बेकार समझा जाता था, किन्तु बाद की शोधों से ज्ञात हुआ कि इनमें अनेक यांत्रिक एवं अन्य विशेषतायें होती हैं, जैसे ये शरीर में जल को रोक कर रखते हैं, जिससे अवशिष्ट (मल) में पानी की कमी नहीं हो पाती है और कब्ज की स्थिति से बचे रहते हैं। रेशे वाले भोजन स्रोतों को प्रायः उनके घुलनशीलता के आधार पर भी बांटा जाता है। ये रेशे घुलनशील और अघुलनशील होते हैं। ये दोनों तत्व पौधों से मिलने वाले रेशों में पाए जाते हैं। सब्जियां, गेहू और अधिकतर अनाजों में घुलनशील रेशे की अपेक्षा अघुलनशील रेशा होता है। स्वास्थ्य में योगदान की दृष्टि से दोनों तरह के रेशे अपने-अपने ढंग से काम करते हैं। जहां घुलनशील रेशे से संपूर्ण स्वास्थय पर सकारात्मक प्रभाव पड़ता है, वहीं अघुलनशील रेशे से मोटापा संबंधी समस्या भी बढ़ सकती है। अघुलनशील रेशे पाचन में मदद करते है और कब्ज कम करते है। घुलनशील रेशे सीरम कोलेस्ट्राल कम करते है और अच्छे कोलेस्ट्राल (एच.डी.एल) का अनुपात बढाते है। भोजन में उच्च रेशे वाले आहार से वजन नियंत्रित होता है। ऐसे भोजन को अधिक चबाना पड़ता है एवं अधिक ऊर्जा व्यय होती है। इसके साथ ही रेशा इन्सुलिन के स्तर कोप भी गिराता है, जिससे भूख पर नियंत्रण रहता है, तथा उच्च रेशा आहार पेट में अधिक समय तक रहते हैं, जिससे पेट भरे होने का अहसास भी रहता है। रेशा मल निर्माण को भी प्रभावित करता है और इसे अधिक भारी बनाता है। मल जितना भारी होगा, आंतों से निकलने में उसे उतना ही समय लगेगा। गेहू की चोकर उच्च रेशे से परिपूर्ण होने के कारण मल का भार बढाने में मदद करती है। उसी मात्रा के गाजर या बन्दगोभी के रेशे से दूगनी प्रभावशील है। हिप्पोक्रेटज के अनुसार सम्पूर्ण अनाज की डबल रोटी आंत को साफ़ कर देती है। आहारीय रेशे सभी पौधों में पाए जाते हैं। जिन पौधों में रेशा अधिक मात्र में पाया जाता है, अधिकतर उनसे ही इन्हें प्राप्त किया जाता है। अधिक मात्र वाले फाइबर पौधों को सीधे तौर पर भी आहार में ग्रहण किया जा सकता है या इन्हें उचित विधि से पकाकर भोजन के तौर पर भी खाया जा सकता है। घुलनशील रेशे कई पौधों में पाए जाते हैं जिनसे मिलने वाले खाद्य पदार्थो में जौ, केला, सेब, मूली, आलू, प्याज आदि प्रमुख हैं। अघुलनशील रेशे मक्का, आलू के छिलके, मूंगफली, गोभी और टमाटर में से प्राप्त होते हैं। रसभरी जैसे फल में भी रेशा होता है। घुलनशील रेशे से शरीर को अधिक ऊर्जा मिलती है, जबकि अघुलनशील रेशे से शरीर को ऊर्जा प्राप्त नहीं करनी चाहिए। यह भी ध्यान योग्य है कि दोनों तरीके से शरीर में प्रति ग्राम फाइबर से चार कैलोरी भी जाती है। .

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कोलेस्टेरॉल

कोलेस्ट्रॉल क्रिस्टल का सूक्ष्मदर्शी दर्शन, जल में। छायाचित्र ध्युवीकृत प्रकाश में लिया गया है। कोलेस्ट्रॉल या पित्तसांद्रव मोम जैसा एक पदार्थ होता है, जो यकृत से उत्पन्न होता है। यह सभी पशुओं और मनुष्यों के कोशिका झिल्ली समेत शरीर के हर भाग में पाया जाता है। कोलेस्ट्रॉल कोशिका झिल्ली का एक महत्वपूर्ण भाग है, जहां उचित मात्रा में पारगम्यता और तरलता स्थापित करने में इसकी आवश्यकता होती है। कोलेस्ट्रॉल शरीर में विटामिन डी, हार्मोन्स और पित्त का निर्माण करता है, जो शरीर के अंदर पाए जाने वाले वसा को पचाने में मदद करता है। शरीर में कोलेस्ट्रॉल भोजन में मांसाहारी आहार के माध्यम से भी पहुंचता है यानी अंडे, मांस, मछली और डेयरी उत्पाद इसके प्रमुख स्रोत हैं। अनाज, फल और सब्जियों में कोलेस्ट्रॉल नहीं पाया जाता। शरीर में कोलेस्ट्रॉल का लगभग २५ प्रतिशत उत्पादन यकृत के माध्यम से होता है। कोलेस्ट्रॉल शब्द यूनानी शब्द कोले और और स्टीयरियोज (ठोस) से बना है और इसमें रासायनिक प्रत्यय ओल लगा हुआ है। १७६९ में फ्रेंकोइस पुलीटियर दी ला सैले ने गैलेस्टान में इसे ठोस रूप में पहचाना था। १८१५ में रसायनशास्त्री यूजीन चुरवेल ने इसका नाम कोलेस्ट्राइन रखा था। मानव शरीर को कोलेस्ट्रॉल की आवश्यकता मुख्यतः कोशिकाओं के निर्माण के लिए, हारमोन के निर्माण के लिए और बाइल जूस के निर्माण के लिए जो वसा के पाचन में मदद करता है; होती है। फिनलैंड की राजधानी हेलसिंकी में नैशनल पब्लिक हेल्थ इंस्टीट्यूट के प्रमुख रिसर्चर डॉ॰ गांग हू के अनुसार कोलेस्ट्रॉल अधिक होने से पार्किंसन रोग की आशंका बढ़ जाती है। .

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अंग्रेज़ी भाषा

अंग्रेज़ी भाषा (अंग्रेज़ी: English हिन्दी उच्चारण: इंग्लिश) हिन्द-यूरोपीय भाषा-परिवार में आती है और इस दृष्टि से हिंदी, उर्दू, फ़ारसी आदि के साथ इसका दूर का संबंध बनता है। ये इस परिवार की जर्मनिक शाखा में रखी जाती है। इसे दुनिया की सर्वप्रथम अन्तरराष्ट्रीय भाषा माना जाता है। ये दुनिया के कई देशों की मुख्य राजभाषा है और आज के दौर में कई देशों में (मुख्यतः भूतपूर्व ब्रिटिश उपनिवेशों में) विज्ञान, कम्प्यूटर, साहित्य, राजनीति और उच्च शिक्षा की भी मुख्य भाषा है। अंग्रेज़ी भाषा रोमन लिपि में लिखी जाती है। यह एक पश्चिम जर्मेनिक भाषा है जिसकी उत्पत्ति एंग्लो-सेक्सन इंग्लैंड में हुई थी। संयुक्त राज्य अमेरिका के 19 वीं शताब्दी के पूर्वार्ध और ब्रिटिश साम्राज्य के 18 वीं, 19 वीं और 20 वीं शताब्दी के सैन्य, वैज्ञानिक, राजनीतिक, आर्थिक और सांस्कृतिक प्रभाव के परिणाम स्वरूप यह दुनिया के कई भागों में सामान्य (बोलचाल की) भाषा बन गई है। कई अंतरराष्ट्रीय संगठनों और राष्ट्रमंडल देशों में बड़े पैमाने पर इसका इस्तेमाल एक द्वितीय भाषा और अधिकारिक भाषा के रूप में होता है। ऐतिहासिक दृष्टि से, अंग्रेजी भाषा की उत्पत्ति ५वीं शताब्दी की शुरुआत से इंग्लैंड में बसने वाले एंग्लो-सेक्सन लोगों द्वारा लायी गयी अनेक बोलियों, जिन्हें अब पुरानी अंग्रेजी कहा जाता है, से हुई है। वाइकिंग हमलावरों की प्राचीन नोर्स भाषा का अंग्रेजी भाषा पर गहरा प्रभाव पड़ा है। नॉर्मन विजय के बाद पुरानी अंग्रेजी का विकास मध्य अंग्रेजी के रूप में हुआ, इसके लिए नॉर्मन शब्दावली और वर्तनी के नियमों का भारी मात्र में उपयोग हुआ। वहां से आधुनिक अंग्रेजी का विकास हुआ और अभी भी इसमें अनेक भाषाओँ से विदेशी शब्दों को अपनाने और साथ ही साथ नए शब्दों को गढ़ने की प्रक्रिया निरंतर जारी है। एक बड़ी मात्र में अंग्रेजी के शब्दों, खासकर तकनीकी शब्दों, का गठन प्राचीन ग्रीक और लैटिन की जड़ों पर आधारित है। .

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उच्च रक्तचाप

(HTN) हाइपरटेंशन या उच्च रक्तचाप, जिसे कभी कभी धमनी उच्च रक्तचाप भी कहते हैं, एक पुरानी चिकित्सीय स्थिति है जिसमें धमनियों में रक्त का दबाव बढ़ जाता है। दबाव की इस वृद्धि के कारण, रक्त की धमनियों में रक्त का प्रवाह बनाये रखने के लिये दिल को सामान्य से अधिक काम करने की आवश्यकता पड़ती है। रक्तचाप में दो माप शामिल होती हैं, सिस्टोलिक और डायस्टोलिक, जो इस बात पर निर्भर करती है कि हृदय की मांसपेशियों में संकुचन (सिस्टोल) हो रहा है या धड़कनों के बीच में तनाव मुक्तता (डायस्टोल) हो रही है। आराम के समय पर सामान्य रक्तचाप 100-140 mmHg सिस्टोलिक (उच्चतम-रीडिंग) और 60-90 mmHg डायस्टोलिक (निचली-रीडिंग) की सीमा के भीतर होता है। उच्च रक्तचाप तब उपस्थित होता है यदि यह 90/140 mmHg पर या इसके ऊपर लगातार बना रहता है। हाइपरटेंशन प्राथमिक (मूलभूत) उच्च रक्तचाप तथा द्वितीयक उच्च रक्तचाप के रूप में वर्गीकृत किया जाता है। 90-95% मामले "प्राथमिक उच्च रक्तचाप" के रूप में वर्गीकृत किये जाते हैं, जिसका अर्थ है स्पष्ट अंतर्निहित चिकित्सीय कारण के बिना उच्च रक्तचाप। अन्य परिस्थितियां जो गुर्दे, धमनियों, दिल, या अंतःस्रावी प्रणाली को प्रभावित करती हैं, शेष 5-10% मामलों (द्वितीयक उच्च रक्तचाप) का कारण होतीं हैं। हाइपरटेंशन स्ट्रोक, मायोकार्डियल रोधगलन (दिल के दौरे), दिल की विफलता, धमनियों की धमनी विस्फार (उदाहरण के लिए, महाधमनी धमनी विस्फार), परिधीय धमनी रोग जैसे जोखिमों का कारक है और पुराने किडनी रोग का एक कारण है। धमनियों से रक्त के दबाव में मध्यम दर्जे की वृद्धि भी जीवन प्रत्याशा में कमी के साथ जुड़ी हुई है। आहार और जीवन शैली में परिवर्तन रक्तचाप नियंत्रण में सुधार और संबंधित स्वास्थ्य जटिलताओं के जोखिम को कम कर सकते हैं। हालांकि, दवा के माध्यम से उपचार अक्सर उन लोगों के लिये जरूरी हो जाता है जिनमें जीवन शैली में परिवर्तन अप्रभावी या अपर्याप्त हैं। .

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यहां पुनर्निर्देश करता है:

परिधीय धमनी रोग, पेरिफेरल वैस्कुलर डिज़ीज़, पेरिफेरल वैस्क्युलर डिज़ीज़, पेरिफेरल आर्टरी ऑक्ल्यूसिव डिज़ीज़, पीवीडी

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