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पूर्णागिरी मेला

सूची पूर्णागिरी मेला

आं अन्नपूर्णा नैनीताल जनपद के पड़ोस में और चंपावत जनपद में अवस्थित पूर्णागिरी का मंदिर अन्नपूर्णा शिखर पर ५५०० फुट की ऊँचाई पर है। कहा जाता है कि दक्ष प्रजापति की कन्या और शिव की अर्धांगिनी सती की नाभि का भाग यहाँ पर विष्णु चक्र से कट कर गिरा था। प्रतिवर्ष इस शक्ति पीठ की यात्रा करने आस्थावान श्रद्धालु कष्ट सहकर भी यहाँ आते हैं। यह स्थान टनकपुर से मात्र १७ कि॰मी॰ की दूरी पर है। अन्तिम १७ कि॰मी॰ का रास्ता श्रद्धालु अपूर्व आस्था के साथ पार करते हैं। लेकिन शरद ॠतु की नवरात्रियों के स्थान पर मेले का आनंद चैत्र की नवरात्रियों में ही अधिक लिया जा सकता है क्योंकि वीरान रास्ता व इसमें पड़ने वाले छोटे-छोटे गधेरे मार्ग की जगह-जगह दुरुह बना देते हैं। चैत्र की नवरात्रियों में लाखों की संख्या में भक्त अपनी मनोकामना लेकर यहाँ आते हैं। अपूर्व भीड़ के कारण यहाँ दर्शनार्थियों का ऐसा ताँता लगता है कि दर्शन करने के लिए भी प्रतीक्षा करनी पड़ती है। मेला बैसाख माह के अन्त तक चलता है। ऊँची चोटी पर गाढ़े गये त्रिशुल आदि ही शक्ति के उस स्थान को इंगित करते हैं जहाँ सती का नाभि प्रवेश गिरा था। पूर्णगिरी क्षेत्र की महिमा और उसके सौन्दर्य से एटकिन्सन भी बहुत अधिक प्रभावित था उसने लिखा है - "पूर्णागिरी के मनोरम दृष्यों की विविधता एवं प्राकृतिक सौन्दर्य की महिमा अवर्णनीय है, प्रकृति ने जिस सर्व व्यापी वर सम्पदा के अधिर्वक्य में इस पर्वत शिखर पर स्वयं को अभिव्यक्त किया है, उत्तरी और दक्षिणी अमेरिका का कोई भी क्षेत्र शायद ही इसकी समता कर सके किन्तु केवल मान्यता व आस्था के बल पर ही लोग इस दुर्गम घने जंगल में अपना पथ आलोकित कर सके हैं।" यह स्थान महाकाली की पीठ माना जाता है, नेपाल इसके बगल में है। जिस चोटी पर सती का नाभि प्रदेश गिरा था उस क्षेत्र के वृक्ष नहीं काटे जाते। टनकपुर के बाद ठुलीगाढ़ तक बस से तथा उसके बाद घासी की चढ़ाई चढ़ने के उपरान्त ही दर्शनार्थी यहाँ पहुँचते हैं। रास्ता अत्यन्त दुरुह और खतरनाक है। क्षणिक लापरवाही अनन्त गहराई में धकेलकर जीवन समाप्त कर सकती है। नीचे काली नदी का कल-कल करता रौख स्थान की दुरुहता से हृदय में कम्पन पैदा कर देता है। रास्ते में टुन्नास नामक स्थान पर देवराज इन्द्र ने तपस्या की, ऐसी भी जनश्रुती है। मेले के लिए विशेष बसों की व्यवस्था की जाती है जो टनकपुर से ठुलीगाढ़ तक निसपद पहुँचा देती है। भैरव पहाड़ और रामबाड़ा जैसे रमणीक स्थलों से गुजरने के बाद पैदल यात्री अपने विश्राम स्थल टुन्नास पर पहुँचते हैं जहाँ भोजन पानी इत्यादि की व्यवस्थायों हैं। यहाँ के बाद बाँस की चढ़ाई प्रारम्भ होती है जो अब सीढियाँ बनने तथा लोहे के पाइप लगने से सुगम हो गयी है। मार्ग में पड़ने वाले सिद्ध बाबा मंदिर के दर्शन जरुरी हैं। रास्ते में चाय इत्यादि के खोमचे मेले के दिनों में लग जाते हैं। नागा साधु भी स्थान-स्थान पर डेरा जमाये मिलते हैं। झूठा मंदिर के नाम से ताँबे का एक विशाल मंदिर भी मार्ग में कोतूहल पैदा करता है। प्राचीन बह्मादेवी मंदिर, भीम द्वारा रोपित चीड़ वृक्ष, पांडव रसोई आदि भी नजदीक ही हैं। ठूलीगाड़ पूर्णागिरी यात्रा का पहला पड़ाव है। झूठे मंदिर से कुछ आगे चलकर काली देवी तथा महाकाल भैंरों वाला का प्राचीन स्थान है जिसकी स्थापना पूर्व कूमार्ंचल नरेश राजा ज्ञानचंद के विद्वान दरबारी पंडित चंद्र त्रिपाठी ने की थी। मंदिर की पूजा का कार्य बिल्हागाँव के बल्हेडिया तथा तिहारी गाँव के त्रिपाठी सम्भालते हैं। वास्तव में पूर्णागिरी की यात्रा अपूर्व आस्था और रमणीक सौन्दर्य के कारण ही बार-बार श्रद्धालुओं और पर्यटकों को भी इस ओर आने को उत्साहित सा करती है। इस नैसर्गिक सौन्दर्य को जो एक बार देश लेता है वह अविस्मरणीय आनंद से विभोर होकर ही वापस जाता है। कुमाऊँ क्षेत्र के कुमैंये, पूरब निवासी पुरबिये, थरुवाट के थारु, नेपाल के गौरखे, गाँव शहर के दंभ छोड़े निष्कपट यात्रा करने वाले श्रद्धालु मेले की आभी को चतुर्दिक फैलायो रहते हैं श्रेणी:नैनीताल श्रेणी:उत्तराखंड के तीर्थ.

3 संबंधों: चम्पावत, नैनीताल, पूर्णागिरी

चम्पावत

चम्पावत भारत के उत्तराखण्ड राज्य के चम्पावत जिले का मुख्यालय है। पहाड़ों और मैदानों के बीच से होकर बहती नदियाँ अद्भुत छटा बिखेरती हैं। चंपावत में पर्यटकों को वह सब कुछ मिलता है जो वह एक पर्वतीय स्थान से चाहते हैं। वन्यजीवों से लेकर हरे-भरे मैदानों तक और ट्रैकिंग की सुविधा, सभी कुछ यहाँ पर है। यह कस्बा समुद्र तल से १६१५ मीटर की ऊँचाई पर स्थित है। चम्पावत कई वर्षों तक कुमाऊँ के शासकों की राजधानी रहा है। चन्द शासकों के किले के अवशेष आज भी चम्पावत में देखे जा सकते हैं। .

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नैनीताल

नैनीताल भारत के उत्तराखण्ड राज्य का एक प्रमुख पर्यटन नगर है। यह नैनीताल जिले का मुख्यालय भी है। कुमाऊँ क्षेत्र में नैनीताल जिले का विशेष महत्व है। देश के प्रमुख क्षेत्रों में नैनीताल की गणना होती है। यह 'छखाता' परगने में आता है। 'छखाता' नाम 'षष्टिखात' से बना है। 'षष्टिखात' का तात्पर्य साठ तालों से है। इस अंचल में पहले साठ मनोरम ताल थे। इसीलिए इस क्षेत्र को 'षष्टिखात' कहा जाता था। आज इस अंचल को 'छखाता' नाम से अधिक जाना जाता है। आज भी नैनीताल जिले में सबसे अधिक ताल हैं। इसे भारत का लेक डिस्ट्रिक्ट कहा जाता है, क्योंकि यह पूरी जगह झीलों से घिरी हुई है। 'नैनी' शब्द का अर्थ है आँखें और 'ताल' का अर्थ है झील। झीलों का शहर नैनीताल उत्तराखंड का प्रसिद्ध पर्यटन स्‍थल है। बर्फ़ से ढ़के पहाड़ों के बीच बसा यह स्‍थान झीलों से घिरा हुआ है। इनमें से सबसे प्रमुख झील नैनी झील है जिसके नाम पर इस जगह का नाम नैनीताल पड़ा है। इसलिए इसे झीलों का शहर भी कहा जाता है। नैनीताल को जिधर से देखा जाए, यह बेहद ख़ूबसूरत है। .

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पूर्णागिरी

पूर्णागिरि मन्दिर भारत के उत्तराखण्ड प्रान्त के टनकपुर में अन्नपूर्णा शिखर पर ५५०० फुट की ऊँचाई पर स्थित है। यह १०८ सिद्ध पीठों में से एक है। यह स्थान महाकाली की पीठ माना जाता है। कहा जाता है कि दक्ष प्रजापति की कन्या और शिव की अर्धांगिनी सती की नाभि का भाग यहाँ पर विष्णु चक्र से कट कर गिरा था। प्रतिवर्ष इस शक्ति पीठ की यात्रा करने आस्थावान श्रद्धालु कष्ट सहकर भी यहाँ आते हैं। .

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यहां पुनर्निर्देश करता है:

पूर्णागिरी मेला, टनकपुर

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