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पूज्यपाद

सूची पूज्यपाद

आचार्य पूज्यपाद विक्रम सम्वत की छठीं और ईसा की पाँचवीं शती के बहुश्रुत विद्वान एवं जैन आचार्य हैं। जैन मुनि बनने से पूर्व इनका नाम देवनन्दि था।.

4 संबंधों: सर्वार्थसिद्धि, जैन मुनि, जैन आचार्य, वीरसेन

सर्वार्थसिद्धि

सर्वार्थसिद्धि एक प्रख्यात जैन ग्रन्थ हैं। यह आचार्य पूज्यपाद द्वारा प्राचीन जैन ग्रन्थ तत्त्वार्थसूत्र पर लिखी गयी टीका हैं। इसमें तत्त्वार्थसूत्र के प्रत्येक श्लोक को क्रम-क्रम से समझाया गया है। .

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जैन मुनि

आचार्य भूतबली जी की प्रतिमा आचार्य विद्यासागर पिच्छी, कमंडल, शास्त्र जैन मुनि जैन धर्म में संन्यास धर्म का पालन करने वाले व्यक्तियों के लिए किया जाता हैं। जैन मुनि के लिए निर्ग्रन्थ शब्द का प्रयोग भी किया जाता हैं। मुनि शब्द का प्रयोग पुरुष संन्यासियों के लिए किया जाता हैं और आर्यिका शब्द का प्रयोग स्त्री संन्यासियों के लिए किया जाता हैं।Cort, John E. (2001).

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जैन आचार्य

आचार्य कुन्दकुन्द की प्रतिमा जैन धर्म में आचार्य शब्द का अर्थ होता है मुनि संघ के नायक। दिगम्बर संघ के कुछ अति प्रसिद्ध आचार्य हैं- भद्रबाहु, कुन्दकुन्द स्वामी, आचार्य समन्तभद्र, आचार्य उमास्वामी.

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वीरसेन

आचार्य वीरसेन आठवीँ शताब्दी के भारतीय गणितज्ञ एवं जैन दार्शनिक थे। वे प्रखर वक्ता एवं कवि भी थे। धवला उनकी सबसे प्रसिद्ध रचना है। 'जयधवला' के भी वे रचयिता हैं। उन्होने स्तम्भस्थूण या 'फ्रस्टम' (frustum) का आयतन निकालने की विधि बतायी। वे 'अर्धच्छेद', 'त्रकच्छेद' और 'चतुर्थच्छेद' नाम के काँसेप्ट का प्रयोग करते थे। अर्धच्छेद में देखते हैं कि कोई संख्या कितनी बार में २ से विभाजित होकर अन्ततः १ हो जाती है। वस्तुतः यह २ आधार पर उस संख्या का लघुगणक (log2x) की खोज है। इसी प्रकार 'त्रक्च्छेद' और 'चतुर्च्छेद' क्रमशः (log3x) और (log4x) हैं। आचार्य वीरसेन ने किसी वृत्त की परिधि C और उसके व्यास d के बीच सम्बध के लिये एक सन्निकट सूत्र दिया: d के बड़े मानों के लिये यह सूत्र पाई का मान लगभग π ≈ 355/113 .

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यहां पुनर्निर्देश करता है:

देवननपुज्यपाद, पुज्यपाद

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