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पुनरावृत्त तनाव क्षति

सूची पुनरावृत्त तनाव क्षति

पुनरावृत्त तनाव क्षति (अंग्रेज़ी:रेपीटीटिव स्ट्रेन इंजरी, लघुरूप:आर.एस.आई), जिसे रेपीटीटिव मोशन इंजरी, रेपीटीटिव मोशन डिसॉर्डर, क्यूमुलेटिव ट्रॉमा डिसॉर्डर आदि नाम भी मिले हैं, मांसपेशियों और तन्त्रिका तन्त्र में समस्या के कारण होने वाली क्षति होती है।। हिन्दुस्तान लाइव। ८ दिसम्बर २००९ आर.एस.आई होने का प्रमुख कारण बार-बार काम को दोहराने, अत्यधिक मानसिक परिश्रम करने। बीबीसी हिन्दी। ५ मार्च २००२, कंपन, याँत्रिक संपीड़न (मैकेनिकल कंप्रेशन) और बैठने की खराब मुद्रा। हिन्दुस्तान लाइव। ८ दिसम्बर २००९ होता है। इस रोग के रोगियों में मुख्यतः तीन तरह के लक्षण देखने में आते हैं। बाहों में दर्द, सहनशक्ति में कमी और कमजोरी जैसी समस्याएं इस तरह की क्षति में आम होती हैं। शारीरिक के साथ-साथ मानसिक समस्या भी होने लगती हैं। २००८ में हुए एक अध्ययन से ज्ञात हुआ है कि ब्रिटेन के ६८ प्रतिशत कर्मचारी आर.एस.आई की समस्या से पीड़ित हैं जिसमें सबसे आम समस्या पीठ, कंधे, हाथ और कलाई की थी। आरएसआई होने के मुख्य कारक खराब तकनीक, कंप्यूटर का सीमा से ज्यादा प्रयोग, जोड़ों का कमजोर होना, प्रतिदिन व्यायाम करने में कमी, अधिक वजन, मानसिक दबाव, अंगुलियों के नाखून लंबे होने, देर रात तक सोने, तनाव और खराब जीवनशैली होते हैं। इसके प्राथमिक लक्षण के रूप में अंगुलियों, हथेली, कुहनी और कंधों में जलन और दर्द होता है। लंबे समय तक कंप्यूटर पर काम करने से दर्द बढ़ सकता है। इन सबके साथ ही सुन्नपन, झनझनाहट, कड़ापन और सूजन आ जाती है और कभी-कभी नसों का नष्ट होना भी दिखाई दिया है। .

9 संबंधों: तन्त्रिका तन्त्र, प्रदर्शक, माउस, श्रम दक्षता संबंधी विज्ञान, कंप्यूटर, कुञ्जीपटल, अवसाद, अंग्रेज़ी भाषा, २००८

तन्त्रिका तन्त्र

मानव का '''तंत्रिकातंत्र''' जिस तन्त्र के द्वारा विभिन्न अंगों का नियंत्रण और अंगों और वातावरण में सामंजस्य स्थापित होता है उसे तन्त्रिका तन्त्र (Nervous System) कहते हैं। तंत्रिकातंत्र में मस्तिष्क, मेरुरज्जु और इनसे निकलनेवाली तंत्रिकाओं की गणना की जाती है। तन्त्रिका कोशिका, तन्त्रिका तन्त्र की रचनात्मक एवं क्रियात्मक इकाई है। तंत्रिका कोशिका एवं इसकी सहायक अन्य कोशिकाएँ मिलकर तन्त्रिका तन्त्र के कार्यों को सम्पन्न करती हैं। इससे प्राणी को वातावरण में होने वाले परिवर्तनों की जानकारी प्राप्त होती तथा एककोशिकीय प्राणियों जैसे अमीबा इत्यादि में तन्त्रिका तन्त्र नहीं पाया जाता है। हाइड्रा, प्लेनेरिया, तिलचट्टा आदि बहुकोशिकीय प्राणियों में तन्त्रिका तन्त्र पाया जाता है। मनुष्य में सुविकसित तन्त्रिका तन्त्र पाया जाता है। .

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प्रदर्शक

प्रदर्शक (मॉनिटर) एक ऐसा यन्त्र है जिस पर संगणक का हर कार्य दिखाई देता है। .

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माउस

माउस की भीतरी संरचना 'माउस' संगणकों में इस्तेमाल होने वाला एक इनपुट उपकरण है। यह कर्सर को चलाकर पटल के वांछित स्थान पर उसे ले जाने तथा इसका नोद्य (बटन) दबाकर उचित विकल्प चुनने में मदद करता है। यह एक छोटा सा यन्त्र है जो कड़े समतल सतह पर हथेली में पकड़कर चलाया जा सकता है। इसमें कम से कम एक नोद्य (बटन) लगा रहता है और कभी-कभी तीन से पाँच नोद्य (बटन) तक लगे रहते हैं। इसमे साधारणत: दो नोद्य तथा पटल (स्क्रीन) पर कर्सर (वैकल्पिक पेंसिल) उपर नीचे ले जाने के लिए एक गोलाकार नोद्य होता है। यह विशेषकर चियोसा (ग्राफिकल यूज़र इन्टरफेस) के लिए महत्वपूर्ण है। .

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श्रम दक्षता संबंधी विज्ञान

एर्गोनॉमिक्स - कार्य, कार्यस्थल और उपकरण अभिकल्पन विज्ञान श्रम दक्षता संबंधी विज्ञान (अंग्रेज़ी:इर्गोनॉमिक्स) कर्मचारियों के स्वास्थ्य को नुकसान पहुंचाए बिना उनकी कार्यक्षमता को बढ़ाया जा सके, ऐसा विज्ञान होता है। यह कार्य, कार्यस्थल और संबंधित उपस्करों के अभिकल्पन का विज्ञान होता है, जो कर्मचारियों की कार्यक्षमता बढ़ाने में सहायक हो। सही इर्गोनॉमिक डिज़ाइन पुनरावृत्त तनाव क्षति यानि आर.एस.आई.

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कंप्यूटर

निजी संगणक कंप्यूटर (अन्य नाम - संगणक, कंप्यूटर, परिकलक) वस्तुतः एक अभिकलक यंत्र (programmable machine) है जो दिये गये गणितीय तथा तार्किक संक्रियाओं को क्रम से स्वचालित रूप से करने में सक्षम है। इसे अंक गणितीय, तार्किक क्रियाओं व अन्य विभिन्न प्रकार की गणनाओं को सटीकता से पूर्ण करने के लिए योजनाबद्ध तरीके से निर्देशित किया जा सकता है। चूंकि किसी भी कार्य योजना को पूर्ण करने के लिए निर्देशो का क्रम बदला जा सकता है इसलिए संगणक एक से ज्यादा तरह की कार्यवाही को अंजाम दे सकता है। इस निर्देशन को ही कम्प्यूटर प्रोग्रामिंग कहते है और संगणक कम्प्यूटर प्रोग्रामिंग भाषा की मदद से उपयोगकर्ता के निर्देशो को समझता है। यांत्रिक संगणक कई सदियों से मौजूद थे किंतु आजकल अभिकलित्र से आशय मुख्यतः बीसवीं सदी के मध्य में विकसित हुए विद्दुत चालित अभिकलित्र से है। तब से अबतक यह आकार में क्रमशः छोटा और संक्रिया की दृष्टि से अत्यधिक समर्थ होता गया हैं। अब अभिकलक घड़ी के अन्दर समा सकते हैं और विद्युत कोष (बैटरी) से चलाये जा सकते हैं। निजी अभिकलक के विभिन्न रूप जैसे कि सुवाह्य संगणक, टैबलेट आदि रोजमर्रा की जरूरत बन गए हैं। परंपरागत संगणकों में एक केंद्रीय संचालन इकाई (सीपीयू) और सूचना भन्डारण के लिए स्मृति होती है। संचालन इकाई अंकगणित व तार्किक गणनाओ को अंजाम देती है और एक अनुक्रमण व नियंत्रण इकाई स्मृति में रखे निर्देशो के आधार पर संचालन का क्रम बदल सकती है। परिधीय या सतह पे लगे उपकरण किसी बाहरी स्रोत से सूचना ले सकते है व कार्यवाही के फल को स्मृति में सुरक्षित रख सकते है व जरूरत पड़ने पर पुन: प्राप्त कर सकते हैं। एकीकृत परिपथ पर आधारित आधुनिक संगणक पुराने जमाने के संगणकों के मुकबले करोड़ो अरबो गुना ज्यादा समर्थ है और बहुत ही कम जगह लेते है। सामान्य संगणक इतने छोटे होते है कि मोबाइल फ़ोन में भी समा सकते है और मोबाइल संगणक एक छोटी सी विद्युत कोष (बैटरी) से मिली ऊर्जा से भी काम कर सकते है। ज्यादातर लोग “संगणकों” के बारे में यही राय रखते है कि अपने विभिन्न स्वरूपों में व्यक्तिगत संगणक सूचना प्रौद्योगिकी युग के नायक है। हालाँकि embedded system|सन्निहित संगणक जो कि ज्यादातर उपकरणों जैसे कि आंकिक श्रव्य वादक|एम.पी.३ वादक, वायुयान व खिलौनो से लेकर औद्योगिक मानव यन्त्र में पाये जाते है लोगो के बीच ज्यादा प्रचलित है। .

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कुञ्जीपटल

कम्प्यूटर का एक कुंजीपटल संगणक की भाषा में कुंजीपटल (की-बोर्ड) एक इनपुट युक्ति है जो की टाइपराइटर के कुंजीपटल में कुछ आवश्यक परिवर्तन करके बनायी गयी है। कुंजीपटल में बहुत से (सैकड़ों) कुंजियाँ या बटन होते हैं जो किसी विशेष तरीके से विन्यस्त (arranged) होते हैं। ये बटन इलेक्ट्रानिक स्विच का काम करते हैं और दबाने पर कम्प्यूटर को एक विशेष डिजिटल संकेत (बाइट) प्रेषित करते हैं जो कि दबायी गयी कुंजी की पहचान होती है। कूजियाँ यांत्रिक हो सकते हैं या इलेक्ट्रानिक। कुंजियों के उपर एक या अधिक संकेत/अक्षर लिखे रहते हैं। हिन्दी भाषा के लिये दो कीबोर्ड होते हैं - इनस्क्रिप्ट जो कि सभी भारतीय भाषाओं का मानक कीबोर्ड है तथा रेमिंगटन जो कि पुराने जमाने के टाइपराइटर पर प्रयोग होता था। .

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अवसाद

अवसाद या डिप्रेशन का तात्पर्य मनोविज्ञान के क्षेत्र में मनोभावों संबंधी दुख से होता है। इसे रोग या सिंड्रोम की संज्ञा दी जाती है। आयुर्विज्ञान में कोई भी व्यक्ति डिप्रेस्ड की अवस्था में स्वयं को लाचार और निराश महसूस करता है। उस व्यक्ति-विशेष के लिए सुख, शांति, सफलता, खुशी यहाँ तक कि संबंध तक बेमानी हो जाते हैं। उसे सर्वत्र निराशा, तनाव, अशांति, अरुचि प्रतीत होती है। अवसाद के भौतिक कारण भी अनेक होते हैं। इनमें कुपोषण, आनुवांशिकता, हार्मोन, मौसम, तनाव, बीमारी, नशा, अप्रिय स्थितियों में लंबे समय तक रहना, पीठ में तकलीफ आदि प्रमुख हैं। इनके अतिरिक्त अवसाद के ९० प्रतिशत रोगियों में नींद की समस्या होती है। मनोविश्लेषकों के अनुसार अवसाद के कई कारण हो सकते हैं। यह मूलत: किसी व्यक्ति की सोच की बुनावट या उसके मूल व्यक्तित्व पर निर्भर करता है। अवसाद लाइलाज रोग नहीं है। इसके पीछे जैविक, आनुवांशिक और मनोसामाजिक कारण होते हैं। यही नहीं जैवरासायनिक असंतुलन के कारण भी अवसाद घेर सकता है। इसकी अधिकता के कारण रोगी आत्महत्या तक कर सकते हैं। इसलिए परिजनों को सजग रहना चाहिए और उनके परिवार का कोई सदस्य गुमसुम रहता है, अपना ज्यादातर समय अकेले में बिताता है, निराशावादी बातें करता है तो उसे तुरंत किसी अच्छे मनोचिकित्सक के पास ले जाएं। उसे अकेले में न रहने दें। हंसाने की कोशिश करें। मनोविश्लेषकों के अनुसार प्राकृतिक तौर पर महिलाएं पुरुषों की अपेक्षा अवसाद की शिकार कम बनती हैं, लेकिन अवांछित दबावों से वह इसकी शिकार हो सकती हैं। इस कारण प्रायः माना जाता है कि महिलाओं को अवसाद जल्दी आ घेरता है। इसके विपरीत पुरुष अक्सर अपनी अवसाद की अवस्था को स्वीकार करने से संकोच करते हैं। मोटे अनुमान के अनुसार दस पुरुषों में एक जबकि दस महिलाओं में हर पांच को अवसाद की आशंका रहती है। अवसाद का संबंध मस्तिष्क के उन्हीं क्षेत्रों द्वारा होता है, जहां से निद्रा चक्र और जागरण की अवस्था नियंत्रित होती है। अवसाद अक्सर दिमाग के न्यूरोट्रांसमीटर्स की कमी के कारण भी होता है। न्यूरोट्रांसमीटर्स दिमाग में पाए जाने वाले रसायन होते हैं जो दिमाग और शरीर के विभिन्न हिस्सों में तारतम्यता स्थापित करते हैं। इनकी कमी से भी शरीर की संचार व्यवस्था में कमी आती है और व्यक्ति में अवसाद के लक्षण दिखाई देते हैं। इस तरह का अवसाद आनुवांशिक होता है। अवसाद के कारण निर्णय लेने में अड़चन, आलस्य, सामान्य मनोरंजन की चीजों में अरुचि, नींद की कमी, चिड़चिड़ापन या कुंठा व्यक्ति में दिखाई पड़ते हैं। अवसाद के कारणों में इसका एक पूरक चिंता (एंग्ज़ायटी) भी है। इसके उपचार में योगासन में प्राणायाम बहुत सहायक सिद्ध हुआ है। कई बार अतिरिक्त चिड़चिड़ापन, अहंकार, कटुता या आक्रामकता अथवा नास्तिकता, अनास्था और अपराध अथवा एकांत की प्रवृत्ति पनपने लगती है या फिर व्यक्ति नशे की ओर उन्मुख होने लगता है। ऐसे में जरूरी है कि हम किसी मनोचिकित्सक से संपर्क करें। व्यक्ति को खुशहाल वातावरण दें। उसे अकेला न छोड़ें तथा छिन्द्रान्वेषण कतई न करें। उसकी रुचियों को प्रोत्साहित कर, उसमें आत्मविश्वास जगाएँ और कारण जानने का प्रयत्न करें। अमेरिका के कुछ वैज्ञानिकों ने गहन शोध के बाद यह दावा किया है कि यदि कोई व्यक्ति लगातार सकारात्मक सोच का अभ्यास करता है, तो वह उसके डिप्रेशन या अवसाद की स्थिति का एकमात्र इलाज हो सकता है। अमेरिकन एकेडमी ऑफ फैमेली फिजिशियन का कहना है कि लोगों को नकारात्मक नहीं सोचना चाहिए। न ही विफलता के भय को लेकर चिंतित होते रहना चाहिए। इनकी बजाय हमेशा सकारात्मक सोच दिमाग में रखना चाहिए जो होगा अच्छा होगा। घर में अन्य सदस्यों को अवसाद की बीमारी होने से भी यह परेशानी महिलाओं को जल्दी पकड़ती है। क्योंकि घर से लगाव पुरुषों के मुकाबले उन्हें ज्यादा होता है। इसके चलते कभी-कभी उनमें आत्महत्या की इच्छा जोर मारने लगती है। इसलिए पुरुषों के मुकाबले महिलाओं का अवसाद ज्यादा खतरनाक होता है। हालांकि मंदी और कॉम्पटीशन के दौर में डिप्रेशन अब युवाओं को भी अपना शिकार बनाने लगा है इसलिए कोशिश यह रखनी चाहिए कि आप खुशनुमा पलों की तलाश करें और सकारात्मक सोच रखें। इससे बचने के उपायों में व्यस्त रहकर मस्त रहना, अपने लिए समय निकालना, संतुलित आहार सेवन, अपने लिए समय निकालना और सामाजिक मेलजोल बढ़ाना मूल उपाय हैं। युवाओं में बढ़ता तनाव .

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अंग्रेज़ी भाषा

अंग्रेज़ी भाषा (अंग्रेज़ी: English हिन्दी उच्चारण: इंग्लिश) हिन्द-यूरोपीय भाषा-परिवार में आती है और इस दृष्टि से हिंदी, उर्दू, फ़ारसी आदि के साथ इसका दूर का संबंध बनता है। ये इस परिवार की जर्मनिक शाखा में रखी जाती है। इसे दुनिया की सर्वप्रथम अन्तरराष्ट्रीय भाषा माना जाता है। ये दुनिया के कई देशों की मुख्य राजभाषा है और आज के दौर में कई देशों में (मुख्यतः भूतपूर्व ब्रिटिश उपनिवेशों में) विज्ञान, कम्प्यूटर, साहित्य, राजनीति और उच्च शिक्षा की भी मुख्य भाषा है। अंग्रेज़ी भाषा रोमन लिपि में लिखी जाती है। यह एक पश्चिम जर्मेनिक भाषा है जिसकी उत्पत्ति एंग्लो-सेक्सन इंग्लैंड में हुई थी। संयुक्त राज्य अमेरिका के 19 वीं शताब्दी के पूर्वार्ध और ब्रिटिश साम्राज्य के 18 वीं, 19 वीं और 20 वीं शताब्दी के सैन्य, वैज्ञानिक, राजनीतिक, आर्थिक और सांस्कृतिक प्रभाव के परिणाम स्वरूप यह दुनिया के कई भागों में सामान्य (बोलचाल की) भाषा बन गई है। कई अंतरराष्ट्रीय संगठनों और राष्ट्रमंडल देशों में बड़े पैमाने पर इसका इस्तेमाल एक द्वितीय भाषा और अधिकारिक भाषा के रूप में होता है। ऐतिहासिक दृष्टि से, अंग्रेजी भाषा की उत्पत्ति ५वीं शताब्दी की शुरुआत से इंग्लैंड में बसने वाले एंग्लो-सेक्सन लोगों द्वारा लायी गयी अनेक बोलियों, जिन्हें अब पुरानी अंग्रेजी कहा जाता है, से हुई है। वाइकिंग हमलावरों की प्राचीन नोर्स भाषा का अंग्रेजी भाषा पर गहरा प्रभाव पड़ा है। नॉर्मन विजय के बाद पुरानी अंग्रेजी का विकास मध्य अंग्रेजी के रूप में हुआ, इसके लिए नॉर्मन शब्दावली और वर्तनी के नियमों का भारी मात्र में उपयोग हुआ। वहां से आधुनिक अंग्रेजी का विकास हुआ और अभी भी इसमें अनेक भाषाओँ से विदेशी शब्दों को अपनाने और साथ ही साथ नए शब्दों को गढ़ने की प्रक्रिया निरंतर जारी है। एक बड़ी मात्र में अंग्रेजी के शब्दों, खासकर तकनीकी शब्दों, का गठन प्राचीन ग्रीक और लैटिन की जड़ों पर आधारित है। .

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२००८

२००८ ग्रेगोरी कैलंडर का एक साधारण वर्ष है। .

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यहां पुनर्निर्देश करता है:

रेपीटीटिव स्ट्रेन इंजरी, आर एस आई

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