6 संबंधों: चारा, तृण, पूँछ, भैंस, खुर, कान।
चारा
घास चर रही गाय सायकिल से हरा चारा घर लाया जा रहा है गाय, बैल, भैंस, बकरी, घोड़ा आदि पालतू पशुओं को खिलाये जाने योग्य सभी चीजें चारा या 'पशुचारा' या 'पशु आहार' कहलातीं हैं। पशु को 24 घंटों में खिलाया जाने वाला आहार (दाना व चारा) जिसमें उसकी आवश्यकताओं की पूर्ति हेतु भोज्य तत्व मौजूद हों, पशु आहार कहते हैं। जिस आहार में पशु के सभी आवश्यक पोषक तत्व उचित अनुपात तथा मात्रा में उपलव्ध हों, उसे संतुलित आहार कहते हैं। .
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तृण
धान की पुआल उन्नत विधि से निर्मित तृण का बण्डल धान, गेहूँ, जौ, राई आदि फसलों के डण्ठल को तृण (Straw) कहते हैं। यह कृषि का एक सह-उत्पाद है। तृण बहुत से कार्यों के लिये उपयोगी है जैसे, पशुओं का चारा, ईंधन, पशुओं का बिछौना, छप्पर बनाना, टोकरी बनाना, घर की दीवारें बनाना आदि। तृण को तरह-तरह के गुटके (बण्डल) बनाकर या एक बडी ढेरी बनाकर भण्डारित किया जाता है। .
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पूँछ
पूँछ एक जानवर के शरीर के पृष्ठ भाग का उप-भाग होती है। साधारणत: इसका अर्थ होता है धड़ के पीछे एक लचीला उपांग। यह शरीर का वह अंग होता है जो कि स्तनपायी, सरीसृप तथा पक्षियों में लगभग कूल्हे से निकलता है। हालाँकि पूँछ रज्जुकी में पायी जाती है, लेकिन कुछ अरज्जुकी प्राणी जैसे कि बिच्छू, घोंघा इत्यादि की भी पूँछ-समान उपांग होते हैं जिनको पूँछ कहा जाता है। श्रेणी:प्राणी विज्ञान.
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भैंस
भैंस विश्व में भैंस का वितरण की स्थिति भैंस एक दुधारू पशु है। कुछ लोगों द्वारा भैंस का दूध गाय के दूध से अधिक पसंद किया जाता है। यह ग्रामीण भारत में बहुत उपयोगी पशु है। .
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खुर
एक हिरन के खुर ऊँट के खुर खुर (hoof) कुछ स्तनधारी जानवरों के पाऊँ की उँगलियों के उस अंतिम भाग को कहा जाता है जो उनका भार उठाए और केराटिन नामक नाखून-जैसी सख़्त चीज़ से ढका हो।खुर को सूम भी कहते है। खुर वाले पशुओं को खुरदार या अंग्युलेट (ungulate) कहा जाता है और इनमें बहुत से जाने-पहचाने जानवर शामिल हैं जैसे कि घोड़ा, गधा, ज़ेब्रा, गाय, गेंडा, ऊँट, दरियाई घोड़ा, सूअर, बकरी, तापीर, हिरन, जिराफ़, ओकापी, साइगा और रेनडियर। खुर का किनारा और अंदरूनी भाग दोनों पशु का भार उठाते हैं।, Colin Tudge, Simon and Schuster, 1997, ISBN 978-0-684-83052-0,...
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कान
मानव व अन्य स्तनधारी प्राणियों मे कर्ण या कान श्रवण प्रणाली का मुख्य अंग है। कशेरुकी प्राणियों मे मछली से लेकर मनुष्य तक कान जीववैज्ञानिक रूप से समान होता है सिर्फ उसकी संरचना गण और प्रजाति के अनुसार भिन्नता का प्रदर्शन करती है। कान वह अंग है जो ध्वनि का पता लगाता है, यह न केवल ध्वनि के लिए एक ग्राहक (रिसीवर) के रूप में कार्य करता है, अपितु शरीर के संतुलन और स्थिति के बोध में भी एक प्रमुख भूमिका निभाता है। "कान" शब्द को पूर्ण अंग या सिर्फ दिखाई देने वाले भाग के लिए प्रयुक्त किया जा सकता है। अधिकतर प्राणियों में, कान का जो हिस्सा दिखाई देता है वह ऊतकों से निर्मित एक प्रालंब होता है जिसे बाह्यकर्ण या कर्णपाली कहा जाता है। बाह्यकर्ण श्रवण प्रक्रिया के कई कदमो मे से सिर्फ पहले कदम पर ही प्रयुक्त होता है और शरीर को संतुलन बोध कराने में कोई भूमिका नहीं निभाता। कशेरुकी प्राणियों मे कान जोड़े मे सममितीय रूप से सिर के दोनो ओर उपस्थित होते हैं। यह व्यवस्था ध्वनि स्रोतों की स्थिति निर्धारण करने में सहायक होती है। .
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