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पागुर

सूची पागुर

पागुर करती हुई गाय पागुर (Rumination) कुछ जानवरों के द्वारा की जाने वाली एक क्रिया है जो उनके भोजन के पाचन की प्रक्रिया का एक भाग है। ये जानवर निगले हुए भोजन (घास, भूसा आदि) को आमाशय से पुनः अपने मुंह में लाते हैं, उसे चबाते हैं और फिर उसे वापस पेट में भेज देते हैं। स्तनधारी प्राणियों की लगभग १५० प्रजातियाँ पागुर करती हैं। पागुर करके ये पशु चारे को और छोटे-छोटे टुकड़ों में बांट देते हैं जिससे भोजन का पाचन आसानी से हो जाता है। पागुर की प्रक्रिया जानवरों के लिये इसलिये उपयोगी है कि भोजन मिलने पर ये जानवर तीव्रता से इसे ग्रहण कर लेते हैं और समय पाकर आराम से पागुर के द्वारा उसे चबाते हैं। बकरी, भेड़, जिर्राफ, याक, भैंस, गाय, ऊँट, हिरन, नीलगाय आदि कुछ पशु हैं जो पागुर करते हैं। श्रेणी:पाचन.

10 संबंधों: ऊँट, नीलगाय, पाचन, बकरी, भैंस, भेड़, याक, स्तनधारी, हिरण, गाय

ऊँट

ऊँट कैमुलस जीनस के अंतर्गत आने वाला एक खुरधारी जीव है। अरबी ऊँट के एक कूबड़ जबकि बैकट्रियन ऊँट के दो कूबड़ होते हैं। अरबी ऊँट पश्चिमी एशिया के सूखे रेगिस्तान क्षेत्रों के जबकि बैकट्रियन ऊँट मध्य और पूर्व एशिया के मूल निवासी हैं। इसे रेगिस्तान का जहाज भी कहते हैं। यह रेतीले तपते मैदानों में इक्कीस इक्कीस दिन तक बिना पानी पिये चल सकता है। इसका उपयोग सवारी और सामान ढोने के काम आता है। यह 7 दिन बिना पानी पिए रह सकता है ऊँट शब्द का प्रयोग मोटे तौर पर ऊँट परिवार के छह ऊँट जैसे प्राणियों का वर्णन करने के लिए किया जाता है, इनमे दो वास्तविक ऊँट और चार दक्षिण अमेरिकी ऊँट जैसे जीव है जो हैं लामा, अलपाका, गुआनाको और विकुना। एक ऊँट की औसत जीवन प्रत्याशा चालीस से पचास वर्ष होती है। एक पूरी तरह से विकसित खड़े वयस्क ऊंट की ऊँचाई कंधे तक 1.85 मी और कूबड़ तक 2.15 मी होती है। कूबड़ शरीर से लगभग तीस इंच ऊपर तक बढ़ता है। ऊँट की अधिकतम भागने की गति 65 किमी/घंटा के आसपास होती है तथा लम्बी दूरी की यात्रा के दौरान यह अपनी गति 40 किमी/घंटा तक बनाए रख सकता है। जीवाश्म साक्ष्यों से पता चलता है कि आधुनिक ऊँट के पूर्वजों का विकास उत्तरी अमेरिका में हुआ था जो बाद में एशिया में फैल गये। लगभग 2000 ई.पू.

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नीलगाय

नीलगाय एक बड़ा और शक्तिशाली जानवर है। कद में नर नीलगाय घोड़े जितना होता है, पर उसके शरीर की बनावट घोड़े के समान संतुलित नहीं होती। पृष्ठ भाग अग्रभाग से कम ऊंचा होने से दौड़ते समय यह अत्यंत अटपटा लगता है। अन्य मृगों की तेज चाल भी उसे प्राप्त नहीं है। इसलिए वह बाघ, तेंदुए और सोनकुत्तों का आसानी से शिकार हो जाता है, यद्यपि एक बड़े नर को मारना बाघ के लिए भी आसान नहीं होता। छौनों को लकड़बग्घे और गीदड़ उठा ले जाते हैं। परन्तु कई बार उसके रहने के खुले, शुष्क प्रदेशों में उसे किसी भी परभक्षी से डरना नहीं पड़ता क्योंकि वह बिना पानी पिए बहुत दिनों तक रह सकता है, जबकि परभक्षी जीवों को रोज पानी पीना पड़ता है। इसलिए परभक्षी ऐसे शुष्क प्रदेशों में कम ही जाते हैं। वास्तव में "नीलगाय" इस प्राणी के लिए उतना सार्थक नाम नहीं है क्योंकि मादाएं भूरे रंग की होती हैं। नीलापन वयस्क नर के रंग में पाया जाता है। वह लोहे के समान सलेटी रंग का अथवा धूसर नीले रंग का शानदार जानवर होता है। उसके आगे के पैर पिछले पैर से अधिक लंबे और बलिष्ठ होते हैं, जिससे उसकी पीठ पीछे की तरफ ढलुआं होती है। नर और मादा में गर्दन पर अयाल होता है। नरों की गर्दन पर सफेद बालों का एक लंबा और सघन गुच्छा रहता है और उसके पैरों पर घुटनों के नीचे एक सफेद पट्टी होती है। नर की नाक से पूंछ के सिरे तक की लंबाई लगभग ढाई मीटर और कंधे तक की ऊंचाई लगभग डेढ़ मीटर होती है। उसका वजन 250 किलो तक होता है। मादाएं कुछ छोटी होती हैं। केवल नरों में छोटे, नुकीले सींग होते हैं जो लगभग 20 सेंटीमीटर लंबे होते हैं। नीलगाय (मादा) नीलगाय भारत में पाई जानेवाली मृग जातियों में सबसे बड़ी है। मृग उन जंतुओं को कहा जाता है जिनमें स्थायी सींग होते हैं, यानी हिरणों के शृंगाभों के समान उनके सींग हर साल गिरकर नए सिरे से नहीं उगते। नीलगाय दिवाचर (दिन में चलने-फिरने वाला) प्राणी है। वह घास भी चरती है और झाड़ियों के पत्ते भी खाती है। मौका मिलने पर वह फसलों पर भी धावा बोलती है। उसे बेर के फल खाना बहुत पसन्द है। महुए के फूल भी बड़े चाव से खाए जाते हैं। अधिक ऊंचाई की डालियों तक पहुंचने के लिए वह अपनी पिछली टांगों पर खड़ी हो जाती है। उसकी सूंघने और देखने की शक्ति अच्छी होती है, परंतु सुनने की क्षमता कमजोर होती है। वह खुले और शुष्क प्रदेशों में रहती है जहां कम ऊंचाई की कंटीली झाड़ियां छितरी पड़ी हों। ऐसे प्रदेशों में उसे परभक्षी दूर से ही दिखाई दे जाते हैं और वह तुरंत भाग खड़ी होती है। ऊबड़-खाबड़ जमीन पर भी वह घोड़े की तरह तेजी से और बिना थके काफी दूर भाग सकती है। वह घने जंगलों में भूलकर भी नहीं जाती। सभी नर एक ही स्थान पर आकर मल त्याग करते हैं, लेकिन मादाएं ऐसा नहीं करतीं। ऐसे स्थलों पर उसके मल का ढेर इकट्ठा हो जाता है। ये ढेर खुले प्रदेशों में होते हैं, जिससे कि मल त्यागते समय यह चारों ओर आसानी से देख सके और छिपे परभक्षी का शिकार न हो जाए। .

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पाचन

पाचन वह क्रिया है जिसमें भोजन को यांत्रि‍कीय और रासायनिक रूप से छोटे छोटे घटकों में विभाजित कर दिया जाता है ताकि उन्हें, उदाहरण के लिए, रक्तधारा में अवशोषित किया जा सके.

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बकरी

बकरी और उसके बच्चे बकरी एक पालतू पशु है, जिसे दूध तथा मांस के लिये पाला जाता है। इसके अतिरिक्त इससे रेशा, चर्म, खाद एवं बाल प्राप्त होता है। विश्व में बकरियाँ पालतू व जंगली रूप में पाई जाती हैं और अनुमान है कि विश्वभर की पालतू बकरियाँ दक्षिणपश्चिमी एशिया व पूर्वी यूरोप की जंगली बकरी की एक वंशज उपजाति है। मानवों ने वरणात्मक प्रजनन से बकरियों को स्थान और प्रयोग के अनुसार अलग-अलग नस्लों में बना दिया गया है और आज दुनिया में लगभग ३०० नस्लें पाई जाती हैं। संयुक्त राष्ट्र खाद्य एवं कृषि संगठन के अनुसार सन् २०११ में दुनिया-भर में ९२.४ करोड़ से अधिक बकरियाँ थीं। .

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भैंस

भैंस विश्व में भैंस का वितरण की स्थिति भैंस एक दुधारू पशु है। कुछ लोगों द्वारा भैंस का दूध गाय के दूध से अधिक पसंद किया जाता है। यह ग्रामीण भारत में बहुत उपयोगी पशु है। .

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भेड़

भेड़ अर्जेंटीना में भेड़ों के झुंड भेड़ एक प्रकार का पालतू पशु है। इसे मांस, ऊन और दूध के लिए पाला जाता है। .

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याक

याक याक (वैज्ञानिक नाम: Bos Grunniens) एक पशु है जो तिब्बत के ठण्डे तथा वीरान पठार, नेपाल और भारत के उत्तरी क्षेत्रों में पाया जाता है। यह काला, भूरा, सफेद या धब्बेदार रंग का होता है। इसका शरीर घने, लम्बे और खुरदरे बालों से ढँका हुआ होता है। इसे कुछ लोग तिब्बत का बैल भी कहते हैं। इसे 'चमरी' या 'चँवरी' या 'सुरागाय' भी कहते हैं। .

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स्तनधारी

यह प्राणी जगत का एक समूह है, जो अपने नवजात को दूध पिलाते हैं जो इनकी (मादाओं के) स्तन ग्रंथियों से निकलता है। यह कशेरुकी होते हैं और इनकी विशेषताओं में इनके शरीर में बाल, कान के मध्य भाग में तीन हड्डियाँ तथा यह नियततापी प्राणी हैं। स्तनधारियों का आकार २९-३३ से.मी.

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हिरण

right एक हिरण एक सर्विडे परिवार का रूमिनंट स्तनपायी जन्तु है। हिरण Cervidae परिवार के सदस्य हैं। एक मादा हिरण एक हरिणी कहा जाता है। एक पुरुष एक हिरन कहा जाता है। हिरण की प्रजातियों में से कई किस्में हैं। हिरण दुनिया भर के कई महाद्वीपों पर पाए जाते हैं। यह स्तनधारी प्रजातियों आमतौर पर वन निवास में रह पाया है। बक्स करने के लिए सींग है करते हैं। डो सींग का अधिकारी नहीं करते हैं। हिरण भी खुरों के अधिकारी। Animals of Hindustan small deer and cows called gīnī, from Illuminated manuscript Baburnama (Memoirs of Babur) श्रेणी:हिरण श्रेणी:स्तनधारी.

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गाय

अभारतीय गाय जर्सीगाय गाय एक महत्त्वपूर्ण पालतू जानवर है जो संसार में प्राय: सर्वत्र पाई जाती है। इससे उत्तम किस्म का दूध प्राप्त होता है। हिन्दू, गाय को 'माता' (गौमाता) कहते हैं। इसके बछड़े बड़े होकर गाड़ी खींचते हैं एवं खेतों की जुताई करते हैं। भारत में वैदिक काल से ही गाय का विशेष महत्त्व रहा है। आरंभ में आदान प्रदान एवं विनिमय आदि के माध्यम के रूप में गाय उपयोग होता था और मनुष्य की समृद्धि की गणना उसकी गोसंख्या से की जाती थी। हिन्दू धार्मिक दृष्टि से भी गाय पवित्र मानी जाती रही है तथा उसकी हत्या महापातक पापों में की जाती है।; गाय व भैंस में गर्भ से संबन्धित जानकारी.

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