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पाँच 'क'

सूची पाँच 'क'

पाँच ककार (पंजाबी: ਪੰਜ ਕਕਾਰ पंज ककार) का अर्थ क शब्द से नाम प्रारंभ होने वाली उन ५ चीजों से है जिन्हें सिखों के दसवें गुरु, गुरु गोबिंद सिंह द्वारा रखे गये सिद्धांतों के अनुसार सभी खालसा सिखों द्वारा धारण किये जाते हैं। गुरु गोविंद सिंह ने सिखों के लिए पांच चीजें अनिवार्य की थीं - केश, कड़ा, कृपाण, कंघा और कच्छा। इन के बिना खालसा वेश पूर्ण नहीं माना जाता। इनमें केश सबसे पहले आता है। .

5 संबंधों: पंजाबी भाषा, बाल, गुरु गोबिन्द सिंह, कच्छा, कंघा

पंजाबी भाषा

पंजाबी (गुरमुखी: ਪੰਜਾਬੀ; शाहमुखी: پنجابی) एक हिंद-आर्यन भाषा है और ऐतिहासिक पंजाब क्षेत्र (अब भारत और पाकिस्तान के बीच विभाजित) के निवासियों तथा प्रवासियों द्वारा बोली जाती है। इसके बोलने वालों में सिख, मुसलमान और हिंदू सभी शामिल हैं। पाकिस्तान की १९९८ की जनगणना और २००१ की भारत की जनगणना के अनुसार, भारत और पाकिस्तान में भाषा के कुल वक्ताओं की संख्या लगभग ९-१३ करोड़ है, जिसके अनुसार यह विश्व की ११वीं सबसे व्यापक भाषा है। कम से कम पिछले ३०० वर्षों से लिखित पंजाबी भाषा का मानक रूप, माझी बोली पर आधारित है, जो ऐतिहासिक माझा क्षेत्र की भाषा है। .

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बाल

अपने सुन्दर बालों को पूरती हुई कन्या बाल (Hair) स्तनधारी प्राणियों के बाह्य चर्म का उद्वर्ध (outer growth) है। कीटों के शरीर पर जो तंतुमय उद्वर्ध होते हैं, उन्हें भी बाल कहते हैं। बाल कोमल से लेकर रुखड़ा, कड़ा (जैसे सूअर का) और नुकीला तक (जैसे साही का) होता है। प्रकृति ने ठंडे गर्म प्रभाव वाले क्षेत्रों में बसने बाले जीवों को बाल दिये हैं, जो जाडे की ॠतु में ठंड से रक्षा करते है और गर्मी में अधिक ताप से सिर की रक्षा करते हैं। जब शरीर से न सहने वाली गर्मी पडती है, तो शरीर से पसीना बहकर निकलता है, वह बालों के कारण गर्मी से जल्दी नहीं सूखता है, किसी कठोर वस्तु से अचानक हुए हमला से भी बाल बचाव करते है। बहुत से मानवेतर स्तनधारियों के शरीर पर मुलायम बाल पाये जाते हैं; इसे 'फर' कहते हैं। बाल की बनावट पक्षियों के परों या सरीसृप के शल्कों से बिल्कुल भिन्न होती है। स्तनधारियों में ह्वेल के शरीर पर सबसे कम बाल होता है। कुछ वयस्क ह्वेल के शरीर पर तो बाल बिल्कुल होता ही नहीं। मनुष्यों में सबसे घना बाल सिर पर होता है। बाल शरीर को सर्दी और गरमी से बचाता है। शरीर के अन्य भागों पर बड़े सूक्ष्म छोटे छोटे रोएँ होते है। पलकों, हथेली, तलवे तथा अँगुलियों और अँगूठों के नीचे के भाग पर बाल नहीं होते। प्रागैतिहासिक काल में मनुष्यों का शरीर झबरे बालों से ढँका रहता था। पर सभ्य मनुष्य के शरीर पर झबरे बाल नहीं होते। इसलिए वह वस्त्र धारण कर अपने शरीर की सर्दी और गरम से रक्षा करता है। मनुष्य के कुछ भागों में, हारमोन के स्राव बनने पर ही बाल उगते हैं, जैसे ओठों पर, काँखों में, लिंगोपरि भागों में इत्यादि। मनुष्यों के लिए बालों के अनेक उपयोग हैं। घोड़ों और बैलों के बाल गद्दों में भरे जाते हैं। कुछ बालों से वार्निश लेपने के बुरुश, दाँत साफ करने के बुरुश बनते हैं। छोटे-छोटे बाल सीमेंट में मिलाकर गृहनिर्माण में प्रयुक्त होते हैं। लंबे-लंबे बालों से कपड़े बुने जाते हैं। ऐसे कपड़े कोट बनाने में लाइनिंग के रूप में काम आते हैं। भेड़ों और कुछ बकरियों से ऊन प्राप्त होते हैं। इनका उपयोग कंबलों और ऊनी वस्त्रों के निर्माण में होता है। ऊँटों और कुछ किस्म के खरगोशों के बाल से भी कपड़े बुने जाते हैं। कुछ पशुओं के बाल बड़े कोमल होते हैं और समूर (फर) के रूप में व्यवहृत होते हैं। .

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गुरु गोबिन्द सिंह

गुरु गोबिन्द सिंह (जन्म: २२ दिसम्बर १६६६, मृत्यु: ७ अक्टूबर १७०८) सिखों के दसवें गुरु थे। उनके पिता गुरू तेग बहादुर की मृत्यु के उपरान्त ११ नवम्बर सन १६७५ को वे गुरू बने। वह एक महान योद्धा, कवि, भक्त एवं आध्यात्मिक नेता थे। सन १६९९ में बैसाखी के दिन उन्होने खालसा पन्थ की स्थापना की जो सिखों के इतिहास की सबसे महत्वपूर्ण घटना मानी जाती है। गुरू गोबिन्द सिंह ने सिखों की पवित्र ग्रन्थ गुरु ग्रंथ साहिब को पूरा किया तथा उन्हें गुरु रूप में सुशोभित किया। बिचित्र नाटक को उनकी आत्मकथा माना जाता है। यही उनके जीवन के विषय में जानकारी का सबसे महत्वपूर्ण स्रोत है। यह दसम ग्रन्थ का एक भाग है। दसम ग्रन्थ, गुरू गोबिन्द सिंह की कृतियों के संकलन का नाम है। उन्होने मुगलों या उनके सहयोगियों (जैसे, शिवालिक पहाडियों के राजा) के साथ १४ युद्ध लड़े। धर्म के लिए समस्त परिवार का बलिदान उन्होंने किया, जिसके लिए उन्हें 'सर्वस्वदानी' भी कहा जाता है। इसके अतिरिक्त जनसाधारण में वे कलगीधर, दशमेश, बाजांवाले आदि कई नाम, उपनाम व उपाधियों से भी जाने जाते हैं। गुरु गोविंद सिंह जहां विश्व की बलिदानी परम्परा में अद्वितीय थे, वहीं वे स्वयं एक महान लेखक, मौलिक चिंतक तथा संस्कृत सहित कई भाषाओं के ज्ञाता भी थे। उन्होंने स्वयं कई ग्रंथों की रचना की। वे विद्वानों के संरक्षक थे। उनके दरबार में ५२ कवियों तथा लेखकों की उपस्थिति रहती थी, इसीलिए उन्हें 'संत सिपाही' भी कहा जाता था। वे भक्ति तथा शक्ति के अद्वितीय संगम थे। उन्होंने सदा प्रेम, एकता, भाईचारे का संदेश दिया। किसी ने गुरुजी का अहित करने की कोशिश भी की तो उन्होंने अपनी सहनशीलता, मधुरता, सौम्यता से उसे परास्त कर दिया। गुरुजी की मान्यता थी कि मनुष्य को किसी को डराना भी नहीं चाहिए और न किसी से डरना चाहिए। वे अपनी वाणी में उपदेश देते हैं भै काहू को देत नहि, नहि भय मानत आन। वे बाल्यकाल से ही सरल, सहज, भक्ति-भाव वाले कर्मयोगी थे। उनकी वाणी में मधुरता, सादगी, सौजन्यता एवं वैराग्य की भावना कूट-कूटकर भरी थी। उनके जीवन का प्रथम दर्शन ही था कि धर्म का मार्ग सत्य का मार्ग है और सत्य की सदैव विजय होती है। .

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कच्छा

कच्छा, भारत की एक प्रमुख जनजाति हैं। .

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कंघा

आधुनिक, साधारण कंघी कंघा या कंघी (comb) वह युक्ति है जिससे बाल एवं अन्य रेशों की सफाई की जाती है या उन्हें सीधा किया जाता है। पुरातत्वविदों द्वारा पाये गये सबसे पुराने सामानों में कंघा भी एक है। फारस के उत्खननों में कोई ५००० वर्ष पुराने एवं अत्यन्त उन्नत (refined) कंघे मिले हैं। .

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यहां पुनर्निर्देश करता है:

पाँच क, पंज ककार, पंच ककार, सिख वेश

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