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पर्यावरणीय विधि

सूची पर्यावरणीय विधि

पर्यावरणीय विधि अथवा पर्यावरण विधि (अंग्रेज़ी:Environmental law) समेकित रूप से उन सभी अंतर्राष्ट्रीय, राष्ट्रीय अथवा क्षेत्रीय सन्धियों, समझौतों और संवैधानिक विधियों को कहा जाता है जो प्राकृतिक पर्यावरण पर मानव प्रभाव को कम करने और पर्यावरण की संधारणीयता बनाये रखने हेतु हैं। .

6 संबंधों: पर्यावरण (रक्षा) अधिनियम 1986, प्राकृतिक पर्यावरण, भारतीय वन अधिनियम, 1927, राष्ट्रीय हरित प्राधिकरण अधिनियम, 2010, संधारणीयता, वन्यजीव संरक्षण अधिनियम, 1972

पर्यावरण (रक्षा) अधिनियम 1986

पर्यावरण (रक्षा) अधिनियम 1986 एक व्‍यापक विधान है इसकी रूप रेखा केन्‍द्रीय सरकार के विभिन्‍न केन्‍द्रीय और राज्‍य प्राधिकरणों के क्रियाकलापों के समन्‍वयन के लिए तैयार किया गया है जिनकी स्‍थापना पिछले कानूनों के तहत की गई है जैसाकि जल अधिनियम1974 और वायु अधिनियम,1981। मानव पर्यावरण की रक्षा और सुधार करने एवं पेड़-पौधे और सम्‍पत्ति का छोड़कर मानव जाति को आपदा से बचाने के लिए ईपीए पारित किया गया, यह केन्‍द्र सरकार का पर्यावरणीय गुणवत्ता की रक्षा करने और सुधारने, सभी स्रोतों से प्रदूषण नियंत्रण का नियंत्रण और कम करने और पर्यावरणीय आधार पर किसी औद्योगिक सुविधा की स्‍थापना करना/संचालन करना निषेध या प्रतिबंधित करने का अधिकार देता है। ईपीए की संभावना व्‍यापक है पर्यावरण की परिभाषा में जल, वायु, भूमि और जल, वायु, भूमि और मानव जाति के और अन्‍य जीवित जीव-जन्‍तु वनस्‍पति, सूक्ष्‍म जीव एवं सम्‍पत्ति के बीच मौजूद परस्‍पर संबंध शामिल है। कानून आपदा जनक अपशिष्‍ट आपदाजनक अपशिष्‍ट प्रबंधन और प्रचालनों संबंधी भी नियम लागू करता है। अधिनियम में संचालकों, प्राधिकृत करने की परिस्थितियां, निपटान स्‍थलों की स्थितियां, आपदाजनक अपशिष्‍ट आयात करने के नियमों, दुर्घटनाओं की सूचना देना, पैकेजिंग और लेबलिंग अपेक्षाएं और संभावित संचालकों के लिए अपील करने की प्रक्रिया जिन्‍हें प्राधिकृत नहीं किया गया है, को भी पारिभाषित किया गया है। नियमों के विनिर्माण आपदाजनक और नशीले रसायनों का भण्‍डारण और आयात सूक्ष्‍म जीवों, प्रजनन रूप से इंजीनियरिंग जीवों या सेलों पर लागू किया गया है। .

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प्राकृतिक पर्यावरण

प्राकृतिक पर्यावरण में सभी जीवित और निर्जीव पृथ्वी या कुछ उसके क्षेत्र पर स्वाभाविक रूप से होने वाली बातें शामिल हैं। यह एक वातावरण है कि सभी सजीव प्रजातियों की बातचीत शामिल है। प्राकृतिक वातावरण की अवधारणा घटकों द्वारा प्रतिष्ठित किया जा सकता है: पूरी पारिस्थितिक इकाइयों है कि बड़े पैमाने पर मानवीय हस्तक्षेप के बिना प्राकृतिक प्रणालियों के रूप में कार्य सहित सभी वनस्पति, सूक्ष्म जीवाणुओं, मिट्टी, चट्टानों, माहौल और प्राकृतिक घटना है कि अपनी सीमाओं के भीतर होते हैं,.

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भारतीय वन अधिनियम, 1927

भारतीय वन अधिनियम, 1927 मोटे तौर पर पिछले भारतीय वन अधिनियम के आधार पर तैयार किया गया था जो कि ब्रिटिश काल के दोरान कार्यान्वित था। यह उन प्रक्रियाओं को परिभाषित करता है जो किसी क्षेत्र को सुरक्षित वन, संरक्षित वन या ग्राम वन घोषित करती हो। यह जंगल अपराध को परिभाषित करता है, तथा एक आरक्षित वन के अंदर कोनसे कार्य निषिद्ध कृत्यों के अंतर्गत आते है। अभी इस कानून मै बहुत से सशोधन प्रस्तावित है। कई आदिवासी संगठन लंबे अरसे से इस कानून को रद्द करने की मांग करते रहे है। इसलिए इसमें आदिवासी मामलों के मंत्रालय का सहयोग भी लिया जा रहा है। ये तो कुछ भी नही हुआ...आगे हम आपको अपनी वेबसाइट पर बताएंगे। धन्यवाद। .

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राष्ट्रीय हरित प्राधिकरण अधिनियम, 2010

राष्ट्रीय हरित प्राधिकरण अधिनियम, 2010 द्वारा भारत में एक राष्ट्रीय हरित प्राधिकरण (नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल) की स्थापना की गई है। 18 अक्टूबर 2010 को इस अधिनियम के तहत पर्यावरण से संबंधित कानूनी अधिकारों के प्रवर्तन एवं व्यक्तियों और संपत्ति के नुकसान के लिए सहायता और क्षतिपूर्ति देने या उससे संबंधित या उससे जुड़े मामलों सहित, पर्यावरण संरक्षण एवं वनों तथा अन्य प्राकृतिक संसाधनों के संरक्षण से संबंधित मामलों के प्रभावी और त्वरित निपटारे के लिए राष्ट्रीय हरित अधिकरण की स्थापना की गयी। यह एक विशिष्ट निकाय है जो बहु-अनुशासनात्मक समस्याओं वाले पर्यावरणीय विवादों को संभालने के लिए आवश्यक विशेषज्ञता द्वारा सुसज्जित है। यह प्राधिकरण, सिविल प्रक्रिया संहिता (CPC), 1908 के अंतर्गत निर्धारित प्रक्रिया द्वारा बाध्य नहीं होगा, बल्कि नैसर्गिक न्याय के सिद्धांतों द्वारा निर्देशित किया जाएगा। पर्यावरण संबंधी मामलों में अधिकरण का समर्पित क्षेत्राधिकार तीव्र पर्यावरणीय न्याय प्रदान करेगा तथा उच्च न्यायालयों में मुकदमेबाज़ी के भार को कम करने में सहायता करेगा। अधिकरण को आवेदनों या अपीलों के प्राप्त होने के ६ महीने के अंदर उनके निपटान का प्रयास करने का कार्य सौंपा गया है। शुरूआत में एनजीटी को पांच बैठक स्थलों पर स्थापित किया जाना है और यह स्वयं को अधिक पहुंचयोग्य बनाने के लिए सर्किट व्यवस्था का अनुपालन करेगा। अधिकरण की बैठक का मुख्य स्थान नई दिल्ली होगा और साथ ही भोपाल, पुणे, कोलकाता तथा चेन्नई अधिकरण की बैठकों के अन्य चार स्थल होंगे।.

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संधारणीयता

संधारणीयता का अर्थ पारिस्थितिकी विज्ञान में होता है कि कोई जैविक तंत्र कैसे विविधता बनाये रखते हुए लंबे समय तक उत्पादन करता रह सकता है। दीर्घ अवधि से क्रियाशील और जैविक रूप से स्वस्थ आर्द्रभूमियाँ और वन इसके प्रमुख उदाहरण हैं। सामान्य अर्थों में संधारणीयता का अर्थ सीमित प्राकृतिक संसाधनों का इस तरह से उपयोग करना है कि भविष्‍य में वे हमारे लिए समाप्‍त न हो जाएं। संधारणीयता को बनाये रखते हुए मानव विकास की अवधारणा को संधारणीय विकास की संज्ञा दी जाती है और इसके अध्ययन को संधारणीयता विज्ञान कहते हैं। संधारणीयता की संकल्पना मानव-पर्यावरण संबंधों के एक सरल सिद्धांत पर आधारित है कि हमारे अस्तित्व के बने रहने के लिये और मानव कल्याण के लिये जो भी जरूरत की चीजें हैं वे किसी न किसी रूप में हमें अपने प्राकृतिक पर्यावरण से प्राप्त होती हैं। अतः संधारणीयता होना यह सुनिश्चित करना है कि मनुष्य और उसका पर्यावरण एक स्वस्थ और सुसंबद्ध रूप से आपस में संबंधित रहें और ये उत्पादक दशाएँ और विविधता चिरकाल तक बने रहें। इन अर्थों में संधारणीयता संसाधन उपयोग का एक मार्गदर्शक सिद्धांत है जिससे हमारी पृथ्वी और प्राकृतिक पर्यावरण की विविधता, प्राकृतिक उत्पादनशीलता क्षमता और स्थायित्व बने रहें और मानव जीवन चिरकाल तक संकटमुक्त रह सके। संधारणीयता और संधारणीय विकास जैसे शब्दों का उपयोग अस्सी के दशक से काफ़ी प्रचलन में आया जब मार्च 20, 1987 को संयुक्त राष्ट्र की ब्रंटलैण्ड रिपोर्ट जारी हुई और इसमें संधारणीय विकास (sustainable development) का उल्लेख हुआ। संधारणीयता और संधारणीय विकास जैसे शब्दों की पापुलरिटी में लगातार बढ़ोत्तरी के बावज़ूद अगर पर्यावरणीय अवनयन, उपभोग की प्रवृत्तियाँ और आर्थिक समृद्धि की दौड़ और होड़ को गणना में लिया जाए तो इस बात पर अभी भी सवालिया निशान हैं कि मानव सभ्यता संधारणीयता प्राप्त कर पायेगी। --महात्‍मा गाँधी .

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वन्यजीव संरक्षण अधिनियम, 1972

भारतीय वन्य जीव संरक्षण अधिनियम, 1972 भारत सरकार ने सन् 1972 ई॰ में इस उद्देश्य से पारित किया था कि वन्यजीवों के अवैध शिकार तथा उसके हाड़-माँस और खाल के व्यापार पर रोक लगाई जा सके। इसे सन् 2003 ई॰ में संशोधित किया गया है और इसका नाम भारतीय वन्य जीव संरक्षण (संशोधित) अधिनियम 2002 रखा गया जिसके तहत इसमें दण्ड तथा जुर्माना और कठोर कर दिया गया है। 1972 से पहले, भारत के पास केवल पाँच नामित राष्ट्रीय पार्क थे। अन्य सुधारों के अलावा, अधिनियम संरक्षित पौधे और पशु प्रजातियों के अनुसूचियों की स्थापना तथा इन प्रजातियों की कटाई व शिकार को मोटे तौर पर गैरकानूनी करता है। यह अधिनियम जंगली जानवरों, पक्षियों और पौधों को संरक्षण प्रदान करता है| यह जम्मू और कश्मीर जिसका अपना ही वन्यजीव क़ानून है को छोड़कर पूरे भारत में लागू होता है। इसमें कुल 6 अनुसूचियाँ है जो अलग-अलग तरह से वन्यजीवन को सुरक्षा प्रदान करता है।.

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यहां पुनर्निर्देश करता है:

पर्यावरण विधि, पर्यावरण क़ानून, पर्यावरणीय क़ानून

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