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परिणामवाद

सूची परिणामवाद

परिणामवाद (Consequentialism) मानदण्डक नीतिशास्त्र के सिद्धांतों में वह विचारधाराएँ हैं जिनके अनुसार किसी क्रिया या व्यवहार की अच्छाई या बुराई का आंकलन अंततः इसी बुनियाद पर होता है कि उस क्रिया का परिणाम अच्छा था या बुरा। परिणामवादियों के अनुसार जिस काम के करने के नतीजे अच्छे हों, वहीं काम भला है। उदाहरण के लिए, अदालत में शपथ लेकर झूठ बोलना अपराध है, लेकिन परिणामवाद के अनुसार यदि ऐसा करने से किसी निर्दोष व्यक्ति की जान बचती है तो ऐसा ही करना चाहिये। परिणामवादियों के लिए लिखित नियमों व कानूनों का पालन करना अपने-आप में एक अच्छी या बुरी बात नहीं होती। .

5 संबंधों: न्यायालय, मानदण्डक नीतिशास्त्र, शपथ, अधिनीतिशास्त्र, अपराध

न्यायालय

लंदन के पुरानी बेली स्थित एक कोर्ट का दृष्य न्यायालय (अदालत या कोर्ट) का तात्पर्य सामान्यतः उस स्थान से है जहाँ पर न्याय प्रशासन कार्य होता है, परंतु बहुधा इसका प्रयोग न्यायाधीश के अर्थ में भी होता है। बोलचाल की भाषा में अदालत को कचहरी भी कहते हैं। .

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मानदण्डक नीतिशास्त्र

मानदण्डक नीतिशास्त्र (Normative ethics) नीतिशास्त्रीय कार्य का अध्ययन हैं। यह दार्शनिक नीतिशास्त्र की शाखा हैं, जो उन प्रश्नों को जाँचती हैं, जिनका उद्गम यह सोचते वक़्त होता हैं कि नैतिक तौर पर किसी को कैसे कार्य करना चाहियें। इसकी व्युपत्ति मानदण्डक से हुई, जिसका सम्बन्ध किसी आदर्श मानक या मॉडल से हैं, या उस पर आधारित हैं, जो, कोई चीज़ करने का सामान्य या उचित तरीका माना जाता हो। मानदण्डक नीतिशास्त्र अधिनीतिशास्त्र (मेटा-ऍथिक्स, meta-ethics) से अलग हैं, क्योंकि वह कार्यों के सही या गलत होने के मानकों का परीक्षण करता हैं, जबकि मेटा-नीतिशास्त्र नैतिक भाषा और नैतिक तथ्यों के तत्वमीमांसा के अर्थ का अध्ययन करता हैं। मानदण्डक नीतिशास्त्र वर्णात्मक नीतिशास्त्र से भी भिन्न हैं, क्योंकि पश्चात्काथित लोगों की नैतिक आस्थाओं की अनुभवसिद्ध जाँच हैं। अन्य शब्दों में, वर्णात्मक नीतिशास्त्र का सम्बन्ध यह निर्धारित करने से हैं कि किस अनुपात के लोग मानते हैं कि हत्या सदैव गलत हैं, जबकि मानदण्डक नीतिशास्त्र का सम्बन्ध इस बात से हैं कि क्या यह मान्यता रखनी गलत हैं। अतः, कभी-कभी मानदण्डक नीतिशास्त्र को वर्णात्मक के बजाय निर्देशात्मक कहा जाता हैं। हालांकि, मेटा-नीतिशास्त्रीय दृष्टि के कुछ संस्करणों में जिन्हें नैतिक यथार्थवाद कहा जाता हैं, नैतिक तथ्य एक ही वक़्त पर, दोनों वर्णात्मक और निर्देशात्मक होते हैं। ज़्यादातर परम्परागत नैतिक सिद्धांत उन सिद्धान्तों पर आधारित हैं जो निर्धारित करते हैं कि कोई कार्य सही या गलत हैं या नहीं। इस शैली में, क्लासिकी सिद्धान्तों में उपयोगितावाद, काण्टीयवाद और कुछ संविदीयवाद के रूप शामिल हैं। यह सिद्धान्त मुश्किल नैतिक निर्णयों का समाधान करने हेतु मुख्यतः नैतिक सिद्धान्तों का व्यापक उपयोग प्रदान करते हैं। .

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शपथ

शपथ (oath) का पारम्परिक अर्थ है - किसी सत्य (तथ्य) या किसी प्रतिग्या का इस प्रकार कथन कि वह पवित्र लगे। .

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अधिनीतिशास्त्र

अधिनीतिशास्त्र (meta-ethics) नीतिशास्त्र की वह शाखा है जो नीतियों के गुणों, दावों, मनोदृष्टि और निर्णयों को समझने का प्रयास करती है। दर्शनशास्त्री अक्सर नीतिशास्त्र की तीन शाखाओं का अध्ययन करते हैं: अधिनीतिशास्त्र, मानदण्डक नीतिशास्त्र (normative ethics) और अनुप्रयुक्त नीतिशास्त्र (applied ethics)। जहाँ मानदण्डक नीतिशास्त्र "मुझे क्या करना चाहिये?" जैसे प्रशनों का उत्तर देने की चेष्टा करते हुए कई विकल्पों में से एक चुनने में सहायता करने का प्रयास करता है, वहाँ अधिनीतिशात्र का प्रयास "अच्छाई क्या है?" और "हम अच्छे और बुरे में अंतर कैसे समझ सकते हैं?" जैसे गूढ़ प्रशनों से जूझता है। अधिनीतिशास्त्र पर बल देने वाले नीतिशास्त्री यह मानते हैं कि किसी नैतिक सिद्धांत को अच्छा या बुरा बताने से पहले यह तत्त्वमीमांसिक स्तर पर समझना आवश्यक है कि अच्छाई और बुराई की परिभाषा क्या है। इसके विपरीत अन्यों का मानना है कि विश्व में अच्छे और बुरे निर्णयों को देखकर हम यह समझ सकते हैं कि अच्छा नैतिक सिद्धांत क्या है और बुरा क्या है। .

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अपराध

अपराध या दंडाभियोग (crime) की परिभाषा भिन्न-भिन्न रूपों में की गई है; यथा,.

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