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परमवीर चक्र (धारावाहिक)

सूची परमवीर चक्र (धारावाहिक)

परमवीर चक्र (धारावाहिक) चेतन आनन्द द्वारा निर्मित एक टीवी सीरियल था जो कि १९८८ में दूरदर्शन पर प्रसारित हुआ। .

सामग्री की तालिका

  1. 7 संबंधों: चेतन आनन्द, नसीरुद्दीन शाह, फ़ारुख़ शेख़, सोमनाथ शर्मा, अन्नू कपूर, अब्दुल हमीद, अलबर्ट एक्का

चेतन आनन्द

चेतन आनन्द भारतीय सिनेमा के प्रसिद्ध निर्माता-निर्देशक थे। वह प्रसिद्ध फ़िल्म अभिनेता देव आनन्द के बड़े भाई थे। १९४९ में उन्होंने अपने भाई देव आनन्द के साथ नवकेतन फ़िल्मस् की स्थापना की जो कि फ़िल्मों का निर्माण करने वाली कम्पनी थी। उनकी छोटी बहन शान्ता कपूर प्रसिद्ध फ़िल्म निर्देशक शेखर कपूर की माँ हैं। .

देखें परमवीर चक्र (धारावाहिक) और चेतन आनन्द

नसीरुद्दीन शाह

नसीरुद्दीन शाह हिन्दी फ़िल्मों के एक प्रसिद्ध अभिनेता हैं। नसीरुद्दीन शाह, जिन्हें हिंदी फ़िल्म उद्योग में अदाकारी का एक पैमाना कहा जाए तो शायद ही किसी को एतराज हो। नसीर की काबिलियत का सबसे बड़ा सुबूत है, सिनेमा की दोनों धाराओं में उनकी कामयाबी। नसीर का नाम अगर पैरेलल सिनेमा के सबसे बेहतरीन अभिनेताओं की सूची में शामिल हुआ तो बॉलीवुड की मुख्य धारा या व्यापारिक फ़िल्मों में भी उन्होंने बड़ी कामयाबी हासिल की है। नसीर अपने शानदार अंदाज से मुख्य धारा के चहेते सितारे बन गए, ऐसा सितारा जिसने हर तरह के किरदार को बेहतरीन अभिनय से जिंदा कर दिया। ये सितार जब भी स्क्रीन पर आया देखने वाले के दिल पर उस किरदार की यादगार छाप छोड़ गया। उसकी कॉमेडी ने पब्लिक को खूब गुदगुदाया तो एक्शन में भी उसका अलग ही अंदाज नजर आया। मुख्य धारा सिनेमा में नसीरुद्दीन शाह के सफर की शुरुआत 1980 में आई फ़िल्म 'हम पांच' से हुई। फ़िल्म भले ही व्यापारिक थी, लेकिन इसमें नसीर के अभिनय की गहराई समानांतर सिनेमा वाली फ़िल्मों से कम नहीं थी। गुलामी को अपनी तकदीर मान चुके एक गांव में विद्रोह की आवाज बुलंद करते नौजवान के किरदार में नसीर ने जान फूंक दी। हालांकि फ़िल्म बॉक्स ऑफिस पर कामयाब नहीं रही और एक व्यापारिक एक्टर के तौर पर सफलता साबित करने के लिए नसीर को टिकट खिड़की पर भी बिकाऊ बनने की जरूरत थी। और उनके लिए ये काम किया 'जाने भी दो यारों' ने। बॉलीवुड की ऑल टाइम बेस्ट कॉमेडी फ़िल्मों में शुमार 'जाने भी दो यारों' में रवि वासवानी और नसीर की जोड़ी ने बेजोड़ कॉमिक टाइमिंग दिखाई और फ़िल्म बेहद कामयाब रही। लेकिन कमर्शियल सिनेमा में नसीर की सबसे बड़ी कामयाबी बनी 'मासूम'। बाप और बेटे के रिश्तों को उकेरती 'मासूम' में नसीर ने कमाल की अदाकारी से ना केवल खूब वाहवाही बटोरी बल्कि फ़िल्म भी सुपरहिट हुई और नसीर को एक स्टार का दर्जा मिल गया। नसीर के इस स्टार स्टेटस को और मजबूत किया 1986 में आई सुभाष घई की मल्टीस्टारर मेगाबजट फ़िल्म 'कर्मा' ने। फ़िल्म में नसीर के लिए अपनी छाप छोड़ना आसान नहीं था क्योंकि वहां अभिनय सम्राट "दिलीप कुमार भी थे। और उस दौर के नए नवेले सितारे जैकी श्रॉफ और अनिल कपूर भी थे। 1987 में गुलजार की 'इजाजत' नसीर के लिए कामयाबी का एक और जरिया बन कर आई। एक जज्बाती कहानी, बेहतरीन निर्देशन, शानदार अभिनय और यादगार संगीत। 'इजाजत' ने बॉक्स ऑफिस पर जबरदस्त कामयाबी हासिल की और बतौर व्यापारिक एक्टर नसीर का रुतबा और बढ़ गया। 'त्रिदेव' जैसी सुपरहिट फ़िल्म देकर, 90 का दशक आते-आते नसीर ने व्यापारिक फ़िल्मों में भी अपनी अलग पहचान बना ली थी। 2003 में आई हॉलीवुड फ़िल्म 'द लीग ऑफ एक्सट्रा ऑर्डिनरी जेंटलमेन' में नसीरुद्दीन ने कैप्टन नीमो का किरदार निभाया तो दूसरी तरफ पाकिस्तानी फ़िल्म 'खुदा के लिए' में भी उन्होंने शानदार काम किया। देश से लेकर परदेस तक, नसीरुद्दीन शाह ने अपनी अदाकारी का लोहा सारी दुनिया में मनवाया है। लेकिन नसीर अपनी काबिलियत को खुशकिस्मती का नाम देते हैं। वो कहते हैं, 'मैं खुद को खुशकिस्मत मानता हूं कि मुझे इतने मौके मिले, लेकिन मैं व्यापारिक फ़िल्मों से अभी संतुष्ट नहीं हूँ।' 2008 में आई 'अ वेडनेसडे' ने नसीर की कमाल की अदाकारी का एक और नजराना पेश किया तो 'इश्किया', 'राजनीति', 'सात खून माफ' और 'डर्टी पिक्चर' जैसी फ़िल्मों के जरिए नसीरुद्दीन ने बार-बार ये साबित किया कि एक सच्चे कलाकार को उम्र बांध नहीं सकती। हाल ही में रिलीज हुई फ़िल्म 'मैक्सिमम' में भी नसीर की जोरदार एक्टिंग ने दर्शकों का खूब मनोरंजन किया है। आज के नसीरुद्दीन शाह की बात करें तो शायद ही ऐसा कोई रोल है जो उनपर फिट नहीं बैठे। आखिर वो एक्टर ही ऐसे हैं कि हर रोल के मुताबिक खुद को ढाल लेते हैं। लेकिन एक समय था जब नसीर को दो रोल करने की इच्छा थी जो उस समय उन्हें नहीं मिले। लेकिन बाद 'मिर्जा गालिब', दूरदर्शन धारावाहिक में उन्हें दो रोल मिले जिसमें उन्होंने ग़ालिब का वास्तविक चित्र उभारने की कोशिश की। लेकिन आप जानकर हैरान रह जाएंगे कि गालिब बनने की नसीर की तमन्ना उनके दिल में एक अधूरे ख्वाब की तरह अटकी हुई थी। 1988 में सीरियल बनाने से सालों पहले गुलजार साहब गालिब पर एक फ़िल्म बनाना चाहते थे और उस फ़िल्म में गालिब के तौर पर उनकी दिली इच्छा संजीव कुमार को लेने की थी। नसीर साहब ने इस बारे में बताते हुए कहा, 'मैंने गुलजार भाई को चिठ्ठी लिखी और अपनी फोटोग्राफ्स भेजी, मैंने लिखा कि ये क्या कर रहे हैं, इस फ़िल्म में आपको मुझे लेना चाहिए।' लेकिन संजीव कुमार को दिल का दौरा पड़ गया था और सेहत उनका साथ नहीं दे रही थी। फिर उसके बाद गुलजार साहब के दिल में उस रोल के लिए अमिताभ के नाम का खयाल आया। लेकिन वहां भी बात नहीं बनी और आखिरकार गालिब पर फ़िल्म बनाने का प्लान ही ठंडे बस्ते में पड़ गया। शायद उस वक्त गुलजार को भी नहीं मालूम होगा कि इस किरदार पर तो तकदीर ने किसी और का नाम लिख दिया है। कई साल बाद गुलजार साहब ने एक दिन नसीर को फोन लगाया। नसीर ने बताया, 'एक दिन मुझे गुलजार भाई का फोन आया कि सीरियल में काम करोगे। मैंने पूछा कौन सा सीरियल तो उन्होंने बताया गालिब पर है। मैंने बिना कुछ सोचे फौरन हां कह दिया।' साल 1982 में 'गांधी' के रिलीज होने के अट्ठारह साल बाद कमल हासन ने 'हे राम' बनाई, जिसने नसीर साहब की गांधी बनने की तमन्ना को भी पूरा कर दिया। सधी हुई अदाकरी और बेजोड़ अंदाज से उन्होंने ना केवल गांधी के किरदार में जान डाल दी। बेजोड़ एक्टिंग और गजब की क्षमता से हर तरह के किरदार निभाने वाले नसीर ने अपनी छाप नकारात्मक भूमिकाओं में भी छोड़ी। समानांतर सिनेमा का ये हीरो कमर्शियल फ़िल्मों में एक ख़तरनाक विलेन के तौर पर भी हमेशा याद किया जाता रहेगा। हिन्दी सिनेमा में विलेन का ये नया चेहरा था, खूंखार और अजीबोगरीब शक्ल वाला कोई गुंडा नहीं बल्कि सोफेस्टिकेटेड इंसान जिसके दिमाग में सिर्फ जहर ही जहर था। विलेन का ये किरदार जितना संजीदा था उससे भी ज्यादा संजीदगी से उसे निभाया था नसीरुद्दीन शाह ने। वैसे खलनायक के तौर पर उनकी एक दो फ़िल्में नहीं थीं। 'मोहरा' में उन्होंने दिखाया विलेन का वो चेहरा जो किसी के भी दिल में खौफ पैदा कर सकता है। अंधा होने का नाटक करने वाला एक शिकारी, लेकिन ये नसीर की असली पहचान नहीं थी। नसीर की असली पहचान समानांतर सिनेमा था। सिनेमा की वो धारा जिसमें एक स्टार के लिए कम और एक्टर के लिए गुंजाइश ज्यादा होती है। और ये बात किसी से छुपी नहीं कि नसीर एक एक्टर पहले और स्टार बाद में हैं। समानांतर सिनेमा के इस सितारे ने स्मिता पाटिल, शबाना आजमी, अमरीश पुरी और ओम पुरी जैसे माहिर कलाकारों के साथ मिलकर आर्ट फ़िल्मों को एक नई पहचान दी। 'निशान्त' जैसी सेंसेटिव फ़िल्म से अभिनय का सफर शुरू करने वाले नसीर ने 'आक्रोश', 'स्पर्श', 'मिर्च मसाला', 'भवनी भवाई', 'अर्धसत्य', 'मंडी' और 'चक्र' जैसी फ़िल्मों में अभिनय की नई मिसाल पेश कर दी। .

देखें परमवीर चक्र (धारावाहिक) और नसीरुद्दीन शाह

फ़ारुख़ शेख़

फ़ारुख़ शेख़ (२५ मार्च १९४८ - २७ दिसम्बर २०१३) एक भारतीय अभिनेता, समाज-सेवी और एक टेलीविजन प्रस्तोता थे। उन्हें ७० और ८० के दशक की फ़िल्मों में अभिनय के कारण प्रसिद्धि मिली। वो सामान्यतः एक कला सिनेमा में अपने कार्य के लिए प्रसिद्ध थे जिसे समानांतर सिनेमा भी कहा जाता है। उन्होंने सत्यजित राय और ऋषिकेश मुखर्जी के निर्देशन में भी काम किया। .

देखें परमवीर चक्र (धारावाहिक) और फ़ारुख़ शेख़

सोमनाथ शर्मा

मेजर सोमनाथ शर्मा भारतीय सेना की कुमाऊँ रेजिमेंट की चौथी बटालियन की डेल्टा कंपनी के कंपनी-कमांडर थे जिन्होने अक्टूबर-नवम्बर, १९४७ के भारत-पाक संघर्ष में हिस्सा लिया था। उन्हें भारत सरकार ने मरणोपरान्त परमवीर चक्र से सम्मानित किया। परमवीर चक्र पाने वाले वे प्रथम व्यक्ति हैं। १९४२ में शर्मा की नियुक्ति उन्नीसवीं हैदराबाद रेजिमेन्ट की आठवीं बटालियन में हुई। उन्होंने बर्मा में द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान अराकन अभियान में अपनी सेवाएँ दी जिसके कारण उन्हें मेन्शंड इन डिस्पैचैस में स्थान मिला। बाद में उन्होंने १९४७ के भारत-पाक युद्ध में भी लड़े और ३ नवम्बर १९४७ को श्रीनगर विमानक्षेत्र से पाकिस्तानी घुसपैठियों को बेदख़ल करते समय वीरगति को प्राप्त हो गये। उनके युद्ध क्षेत्र में इस साहस के कारण मरणोपरान्त परम वीर चक्र मिला। .

देखें परमवीर चक्र (धारावाहिक) और सोमनाथ शर्मा

अन्नू कपूर

अन्नू कपूर (उर्दु: ان کپُور) जन्म: २० फरवरी १९५६ भारतीय अभिनेता व टेलीविजन प्रस्तुतकर्ता हैं। .

देखें परमवीर चक्र (धारावाहिक) और अन्नू कपूर

अब्दुल हमीद

कम्पनी क्वार्टर मास्टर हवलदार अब्दुल हमीद (जुलाई १, १९३३ - सितम्बर १०, १९६५) भारतीय सेना की ४ ग्रेनेडियर में एक सिपाही थे जिन्होंने 1965 के भारत-पाक युद्ध के दौरान खेमकरण सैक्टर के आसल उत्ताड़ में लड़े गए युद्ध में अद्भुत वीरता का प्रदर्शन करते हुए वीरगति प्राप्त की जिसके लिए उन्हें मरणोपरान्त भारत का सर्वोच्च सेना पुरस्कार परमवीर चक्र मिला। यह पुरस्कार इस युद्ध, जिसमें वे शहीद हुये, के समाप्त होने के एक सप्ताह से भी पहले १६ सितम्बर १९६५ को घोषित हुआ। मरने से पहले परमवीर अब्दुल हमीद ने मात्र अपनी "गन माउन्टेड जीप" से उस समय अजेय समझे जाने वाले पाकिस्तान के "पैटन टैंकों" को नष्ट किया था। .

देखें परमवीर चक्र (धारावाहिक) और अब्दुल हमीद

अलबर्ट एक्का

लांस नायक अलबर्ट एक्का (27 दिसम्बर 1942 - 3 दिसम्बर 1971) एक भारतीय सैनिक थे जो भारत-पाकिस्तान युद्ध 1971 में हिली की लड़ाई में वीरगति को प्राप्त हो गए थे। इन्हें मरणोपरांत परमवीर चक्र से सम्मानित किया गया था। .

देखें परमवीर चक्र (धारावाहिक) और अलबर्ट एक्का