2 संबंधों: मोक्ष (जैन धर्म), केवल ज्ञान।
मोक्ष (जैन धर्म)
सिद्धशिला जहाँ सिद्ध (जिन्होंने मोक्ष प्राप्त कर लिया है) विराजते है का एक चित्र जैन धर्म में मोक्ष का अर्थ है पुद्ग़ल कर्मों से मुक्ति। जैन दर्शन के अनुसार मोक्ष प्राप्त करने के बाद जीव (आत्मा) जन्म मरण के चक्र से निकल जाता है और लोक के अग्रभाग सिद्धशिला में विराजमान हो जाती है। सभी कर्मों का नाश करने के बाद मोक्ष की प्राप्ति होती हैं। मोक्ष के उपरांत आत्मा अपने शुद्ध स्वरूप (अनन्त ज्ञान, अनन्त दर्शन, अनन्त सुख, और अनन्त शक्ति) में आ जाती है। ऐसी आत्मा को सिद्ध कहते है। मोक्ष प्राप्ति हर जीव के लिए उच्चतम लक्ष्य माना गया है। सम्यक् दर्शन, सम्यक् ज्ञान, सम्यक् चरित्र से इसे प्राप्त किया जा सकता है। जैन धर्म को मोक्षमार्ग भी कहा जाता है। .
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केवल ज्ञान
जैन दर्शन के अनुसार केवल विशुद्धतम ज्ञान को कहते हैं। इस ज्ञान के चार प्रतिबंधक कर्म होते हैं- मोहनीय, ज्ञानावरण, दर्शनवरण तथा अंतराय। इन चारों कर्मों का क्षय होने से केवलज्ञान का उदय होता हैं। इन कर्मों में सर्वप्रथम मोहकर का, तदनन्तर इतर तीनों कर्मों का एक साथ ही क्षय होता है। केवलज्ञान का विषय है- सर्वद्रव्य और सर्वपर्याय (सर्वद्रव्य पर्यायेषु केवलस्य-तत्वार्थसूत्र, १.३०)। इसका तात्पर्य यह है कि ऐसी कोई भी वस्तु नहीं, ऐसा कोई पर्याय नहीं जिसे केवलज्ञान से संपन्न व्यक्ति नहीं जानता। फलत: आत्मा की ज्ञानशक्ति का पूर्णतम विकास या आविर्भाव केवलज्ञान में लक्षित होता हैं। यह पूर्णता का सूचक ज्ञान है। इसका उदय होते ही अपूर्णता से युक्त, मति, श्रुत आदि ज्ञान सर्वदा के लिये नष्ट हो जाते हैं। उस पूर्णता की स्थिति में यह अकेले ही स्थित रहता है और इसी लिये इसका यह विशेष अभिधान है। जैन दर्शन के अनुसार जीव १३वें गुणस्थान में केवल ज्ञान की प्राप्ति करता है। १४ गुणस्थान इस प्रकार है।.
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