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पगहा जोरी-जोरी रे घाटो

सूची पगहा जोरी-जोरी रे घाटो

पगहा जोरी-जोरी रे घाटो (कतार में लौटती हुई चिड़िया) 2011 में प्रकाशित सुख्यात हिंदी कथाकार रोज केरकेट्टा की कहानियों का पहला संग्रह है। वर्ष 2012 में ‘अयोध्या प्रसाद खत्री स्मृति सम्मान’ से पुरस्कृत इस कथा संग्रह में लेखिका ने आदिवासियों के उस भाव-संसार को बुना है जिसे बौद्धिक व साहित्यिक जगत में ‘ट्राइबल इथोज’ के रूप में जाना जाता है। हिंदी कथा साहित्य में आदिवासी कहन की यह एक अनुपम बानगी है जो पाठकों को नागर साहित्य से इतर एक भिन्न किस्म का आदिम आस्वाद देती है। .

2 संबंधों: रोज केरकेट्टा, आदिवासी साहित्य

रोज केरकेट्टा

रोज केरकेट्टा (5 दिसंबर, 1940) आदिवासी भाषा खड़िया और हिन्दी की एक प्रमुख लेखिका, शिक्षाविद्, आंदोलनकारी और मानवाधिकारकर्मी हैं। आपका जन्म सिमडेगा (झारखंड) के कइसरा सुंदरा टोली गांव में खड़िया आदिवासी समुदाय में हुआ। झारखंड की आदि जिजीविषा और समाज के महत्वपूर्ण सवालों को सृजनशील अभिव्यक्ति देने के साथ ही जनांदोलनों को बौद्धिक नेतृत्व प्रदान करने तथा संघर्ष की हर राह में आप अग्रिम पंक्ति में रही हैं। आदिवासी भाषा-साहित्य, संस्कृति और स्त्री सवालों पर डा.

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आदिवासी साहित्य

आदिवासी साहित्य से तात्पर्य उस साहित्य से है जिसमें आदिवासियों का जीवन और समाज उनके दर्शन के अनुरूप अभिव्यक्त हुआ है। आदिवासी साहित्य को विभिन्न नामों से पूरी दुनिया में जाना जाता है। यूरोप और अमेरिका में इसे, कलर्ड लिटरेचर, स्लेव लिटरेचर और, अफ्रीकन देशों में ब्लैक लिटरेचर और ऑस्ट्रेलिया मेें एबोरिजिनल लिटरेचर, तो अंग्रेजी में इंडीजिनस लिटरेचर, फर्स्टपीपुल लिटरेचर और ट्राइबल लिटरेचर कहते हैं। भारत में इसे हिंदी एवं अन्य भारतीय भाषाओं में सामान्यतः ‘आदिवासी साहित्य’ ही कहा जाता है। .

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