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सूत्रकृमि

सूची सूत्रकृमि

एक प्रकार का गोल कृमि सूत्रकृमि या गोल कृमि (नेमैटोड) अपृष्ठवंशी, जलीय, स्थलीय या पराश्रयी प्राणी है। ये सूदूर अन्टार्कटिक तथा महासागरों के गर्तों में भी देखें गएं हैं। इनका शरीर अखंडित, लम्बे पतले धागे जैसा तथा बेलनाकार होता है, इसलिए इसे राउण्डवर्म कहा जाता है। इनको प्राणि जगत में एक संघ की मर्यादा प्राप्त हैं। इनकी लगभग ८०,००० जातियाँ हैं जिसमें से १५,००० से अधिक परजीवी है। इस जन्तु में नर तथा मादा अलग-अलग होते हैं जिसमें नर छोटा तथा पीछे का भाग मुड़ा़ हुआ रहता है किन्तु मादा का शरीर सीधा होता है। नर का जनन अंग क्लोयका के पास होता है किन्तु मादा का जनन अंग वल्वा के रूप में बाहर की ओर खुलता है। इनमें रक्त-परिवहन तंत्र और श्वसन तंत्र नहीं पाये जाते हैं इसलिए श्वसन का कार्य विसरण के द्वारा होता है। .

5 संबंधों: संघ, सूत्रकृमिविज्ञान, विसरण, कोशिकीय श्वसन, अकशेरुकी प्राणी

संघ

रातो द्रस्तांग की तिब्बती बौद्ध मठ के बाहर कुछ भिक्षु (२०१५) संघ संस्कृत का शब्द है- जिसका अर्थ सभा, समुदाय या संगठन है। बुद्धं शरणं गच्छामि। धम्मं शरणं गच्छामि। संघं शरणं गच्छामि।.

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सूत्रकृमिविज्ञान

right सूत्रकृमिविज्ञान (Nematology) के अन्तर्गत विभिन्न प्रकार के सूत्रकृमियों का अध्ययन किया जाता है। सूत्रकृमि (Nematodes) छोटे, पतले, खंडहीन तथा धागे जैसे द्विलैंगिक प्राणी होते हैं जिनके पाद नहीं होते हैं। इन्हें 'गोल कृमि' या 'धागा कृमि' भी कहा जाता है। इनकी अनेक प्रजातियां पौधों की जड़ों तथा उनके भूमिगत भागों पर पलती हैं जबकि कुछ पौधों के वायवीय भागों पर भी आक्रमण करती हैं। ये स्वयं भरण करके, पौधों में कार्यिकीय विकृतियां उत्पन्न करके तथा पौधों को अन्य जैविक एवं अजैविक प्रतिबलों के प्रति संवेदनशील बनाकर उन्हें अत्यधिक आर्थिक क्षति पहुंचाती हैं। भारत की महत्वपूर्ण सूत्रकृमि संबंधी समस्याएं जड़ गांठ सूत्रकृमि (मेलाइडोगायने प्रजातियां) तथा रेनिफार्म (रोटिलैंकलस रेनिफार्मिस) सूत्रकृमि हैं जो सब्जियों तथा दलहनी फसलों पर लगते हैं। इनमें से गेहूं में लगने वाला अनाज का पुटि एवं बाली-कॉकल सूत्रकृमि, सुरंग बनाने वाला सूत्रकृमि (रोडोफोलस सिमिलेस) जो दक्षिण भारत की रोपण फसलों पर लगता है, हमारे देश के प्रमुख सूत्रकृमि हैं। साथ ही, पूर्वी भारत में धान की फसल में तने पर लगने वाला (डिटाइलेंकस एंगस्टस) तथा पत्ती और कली पर लगने वाला (एफेलेंकॉयडिस बेसेई) सूत्रकृमि इन फसलों को काफी क्षति पहुंचाते हैं। कुछ अन्य महत्वपूर्ण सूत्रकृमि हैं नीलगिरि पहाड़ियों में आलू में लगने वाली ग्लोबोडेरा प्रजातियां; सब्जियों, दलहनी एवं तिलहनी फसलों पर आक्रमण करने वाली रेटिलेंकस प्रजातियां, तथा दलहनी फसलों में लगने वाला सूत्रकृमि हेटेरोडेरा कैजानी। .

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विसरण

तीन अलग-अलग समयों पर किसी गैस का विसरण: (१) विसरण के ठीक पहले (२) विसरण के थोडी देर बाद (३) विसरण आरम्भ होने के बहुत देर बाद विसरण के पहले और बाद में दो या दो से अधिक पादार्थों का स्वतः एक दूसरे से मिलकर समांग मिश्रण बनाने की क्रिया को विसरण (डिफ्यूजन) कहते हैं। सजीव कोशिकाओं में अमीनो अम्ल के संवहन में विसरण की मुख्य भूमिका है। .

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कोशिकीय श्वसन

सजीव कोशिकाओं में भोजन के आक्सीकरण के फलस्वरूप ऊर्जा उत्पन्न होने की क्रिया को कोशिकीय श्वसन कहते हैं। यह एक केटाबोलिक क्रिया है जो आक्सीजन की उपस्थिति या अनुपस्थिति दोनों ही अवस्थाओं में सम्पन्न हो सकती है। इस क्रिया के दौरान मुक्त होने वाली ऊर्जा को एटीपी नामक जैव अणु में संग्रहित करके रख लिया जाता है जिसका उपयोग सजीव अपनी विभिन्न जैविक क्रियाओं में करते हैं। यह जैव-रासायनिक क्रिया पौधों एवं जन्तुओं दोनों की ही कोशिकाओं में दिन-रात हर समय होती रहती है। कोशिकाएँ भोज्य पदार्थ के रूप में ग्लूकोज, अमीनो अम्ल तथा वसीय अम्ल का प्रयोग करती हैं जिनको आक्सीकृत करने के लिए आक्सीजन का परमाणु इलेक्ट्रान ग्रहण करने का कार्य करता है। कोशिकीय श्वसन एवं श्वास क्रिया में अभिन्न सम्बंध है एवं ये दोनों क्रियाएँ एक-दूसरे की पूरक हैं। श्वांस क्रिया सजीव के श्वसन अंगों एवं उनके वातावरण के बीच होती है। इसके दौरान सजीव एवं उनके वातावरण के बीच आक्सीजन एवं कार्बन डाईऑक्साइड गैस का आदान-प्रदान होता है तथा इस क्रिया द्वारा आक्सीजन गैस वातावरण से सजीवों के श्वसन अंगों में पहुँचती है। आक्सीजन गैस श्वसन अंगों से विसरण द्वारा रक्त में प्रवेश कर जाती है। रक्त परिवहन का माध्यम है जो इस आक्सीजन को शरीर के विभिन्न भागों की कोशिकाओं में पहुँचा देता है। वहाँ इसका उपयोग कोशिकाएँ अपने कोशिकीय श्वसन में करती हैं। श्वसन की क्रिया प्रत्येक जीवित कोशिका के कोशिका द्रव्य (साइटोप्लाज्म) एवं माइटोकाण्ड्रिया में सम्पन्न होती है। श्वसन सम्बन्धित प्रारम्भिक क्रियाएँ साइटोप्लाज्म में होती है तथा शेष क्रियाएँ माइटोकाण्ड्रियाओं में होती हैं। चूँकि क्रिया के अंतिम चरण में ही अधिकांश ऊर्जा उत्पन्न होती हैं। इसलिए माइटोकाण्ड्रिया को कोशिका का श्वसनांग या शक्ति-गृह (पावर हाउस) कहा जाता है। .

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अकशेरुकी प्राणी

कुछ अकशेरुक प्राणी अकशेरुकी प्राणी (Invertebrate) उन प्राणियों को कहते हैं जिनमें मेरुदंड नहीं होता और न ही किसी अवस्था में मेरुदण्ड विकसित होता है। परिभाषा के अनुसार इसमें कशेरुक प्राणियों के अलावा सभी प्राणी आ जाते हैं। अकशेरुक प्राणियों के कुछ प्रमुख उदाहरण ये हैं - कीट, केकड़ा, झिंगा, घोंघा, ऑक्टोपस, स्टारफिश आदि। .

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यहां पुनर्निर्देश करता है:

नेमाटोडा, नेमैटोडा, राउण्ड वर्म, ऊतक नेमाटोड्स, गोल कृमि, गोल-कृमि, गोलकृमि

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