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नेपोलियन बोनापार्ट का सैन्य कैरियर

सूची नेपोलियन बोनापार्ट का सैन्य कैरियर

नेपोलियन बोनापार्ट का सैन्य जीवन लगभग २० वर्षों का रहा। नेपोलियन युद्धों में वो फ्रांसीसी सेना के सेनापति रहे। विश्व के इतिहास में वो सैन्य प्रतिभावों और बहतरीन कमांडरों में से एक के रूप में जाने जाते हैं। उन्होंने ६० युद्धों में भाग लिया जिसमें से केवल सात में हार का सामना किया जो उनके पतन के समय थे। वर्ष १८१२ में नेपोलियन द्वारा रूस पर आक्रमण के पश्चात फ़्रांसीसी प्रभुत्व का तेजी से पतन हो गया। वर्ष १८१४ मे नेपोलियन की हार हुई; वो लोट गये और अन्त में वर्ष १८१५ में वाटरलू के युद्ध में अन्तिम रूप से हार गये। उन्होंने अपना बाकी जीवन ब्रिटेन की हिरासत में सैंट हेलेना द्वीप पर बिताया। .

7 संबंधों: तोपख़ाना, तीसरे गुट का युद्ध, नेपोलियन बोनापार्ट, नेपोलियन का रूस पर आक्रमण, नेपोलियन के युद्ध, फ्रांसीसी क्रांतिकारी युद्ध, सन्त हेलेना

तोपख़ाना

२००९ में अफ़्ग़ानिस्तान में एक अमेरिकी तोपख़ाना (आर्टिलरी) दस्ता अपनी तोप चलाते हुए तोपख़ाना या आर्टिलरी (Artillery) किसी फ़ौज या युद्ध में सैनिकों के ऐसे गुट को बोलते हैं जिनके मुख्य हथियार प्रक्षेप्य प्रकृति के होते हैं, यानि जो शत्रु की तरफ़ विस्फोटक गोले या अन्य चीज़ें फेंकते हैं। पुराने ज़माने में तोपख़ानों का प्रयोग क़िले की दीवारों को तोड़कर आक्रामक फौजों को अन्दर ले जाना होता था लेकिन समय के साथ-साथ तोपें हलकी और अधिक शक्तिशाली होती चली गई और अब उन्हें युद्ध की बहुत सी स्थितियों में प्रयोग किया जाता है। आधुनिक युग में तोपख़ाने को ज़मीनी युद्ध का सबसे ख़तरनाक तत्व माना जाता है। प्रथम विश्वयुद्ध और द्वितीय विश्वयुद्ध दोनों में सब से अधिक सैनिकों की मृत्यु तोपख़ानों से ही हुई। १९४४ में सोवियेत तानाशाह जोसेफ़ स्टालिन ने एक भाषण में तोपख़ाने को 'युद्ध का भगवान' बताया।, Seweryn Bialer, Westview Press, 1984, ISBN 978-0-86531-610-2,...

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तीसरे गुट का युद्ध

ऑस्टरलिट्ज़ की लड़ाई में नेपोलियन बोनापार्ट उल्म संग्राम में हारने के बाद ऑस्ट्रियाई सेनाध्यक्ष नेपोलियन को आत्म-समर्पण करते हुए तीसरे गुट का युद्ध (अंग्रेजी: War of the Third Coalition, वॉर ऑफ़ द थ़र्ड कोअलिशन) सन् १८०३ से १८०६ तक चलने वाला एक संग्राम था जिसमें ऑस्ट्रिया, पुर्तगाल, रूस और उनके कुछ अन्य साथी देशों के एक गुट को फ्रांस और उसके साथी देशों ने हरा दिया। इस युद्ध में फ्रांस की तरफ़ का नेतृत्व नेपोलियन बोनापार्ट ने किया। इस युद्ध का सिलसिला तब शुरू हुआ जब नेपोलियन ने इटली और जर्मनी में दख़लअंदाज़ी करनी शुरू करी और स्वयं को फ्रांस के साथ-साथ इटली का भी सम्राट घोषित कर दिया। उस समय फ्रांस और ब्रिटेन के बीच मुठभेड़ें जारी थीं। नेपोलियन की हरकतों से परेशान होकर ऑस्ट्रिया, रूस और ब्रिटेन आपस में मिल गए और "तीसरा गुट" नामक सम्मिलन बन गया। तीसरे गुट और फ़्रांसिसी गुट के दरम्यान यूरोप की भूमि पर कई जंगें हुईं, जिनमें नेपोलियन जीतता गया। इनमें १८०५ का उल्म संग्राम (Ulm Campaign) मशहूर है, जिसमें फ़्रांसिसी और बवारियाई (यानी जर्मनी के बवारिया प्रदेश की) मिलीजुली सेना ने ऑस्ट्रिया को मात दी। इसके बाद सन् १८०६ में ऑस्टरलिट्ज़ की लड़ाई (Battle of Austerlitz) में फ़्रांसिसी फ़ौजों ने रूसी-ऑस्ट्रियाई मिश्रित फ़ौज को भारी पराजय दी, जो तीसरे गुट से बर्दाश्त न हो पाई और यह गुट टूट गया। इसके बाद केवल ब्रिटेन ही नेपोलियन से लड़ता रह गया। नेपोलियन ने ब्रिटेन पर भी नौसैनिक आक्रमण करने की कोशिश करी थी लेकिन २१ अक्टूबर १८०५ में समुद्र पर लड़े गए ट्रफ़ैलगर के युद्ध में उसकी हार हुई। .

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नेपोलियन बोनापार्ट

नेपोलियन बोनापार्ट (15 अगस्त 1769 - 5 मई 1821) (जन्म नाम नेपोलियोनि दि बोनापार्टे) फ्रान्स की क्रान्ति में सेनापति, 11 नवम्बर 1799 से 18 मई 1804 तक प्रथम कांसल के रूप में शासक और 18 मई 1804 से 6 अप्रैल 1814 तक नेपोलियन I के नाम से सम्राट रहा। वह पुनः 20 मार्च से 22 जून 1815 में सम्राट बना। वह यूरोप के अन्य कई क्षेत्रों का भी शासक था। इतिहास में नेपोलियन विश्व के सबसे महान सेनापतियों में गिना जाता है। उसने एक फ्रांस में एक नयी विधि संहिता लागू की जिसे नेपोलियन की संहिता कहा जाता है। वह इतिहास के सबसे महान विजेताओं में से एक था। उसके सामने कोई रुक नहीं पा रहा था। जब तक कि उसने 1812 में रूस पर आक्रमण नहीं किया, जहां सर्दी और वातावरण से उसकी सेना को बहुत क्षति पहुँची। 18 जून 1815 वॉटरलू के युद्ध में पराजय के पश्चात अंग्रज़ों ने उसे अन्ध महासागर के दूर द्वीप सेंट हेलेना में बन्दी बना दिया। छः वर्षों के अन्त में वहाँ उसकी मृत्यु हो गई। इतिहासकारों के अनुसार अंग्रेज़ों ने उसे संखिया (आर्सीनिक) का विष देकर मार डाला। .

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नेपोलियन का रूस पर आक्रमण

नेपोलियन की साम्राज्यवादी आकांक्षा तथा महाद्वीपीय व्यवस्था के प्रश्न पर रूस के साथ उसके संबंध पुनः बिगड़ गए। फलस्वरूप 1812 ई. में नेपोलियन ने रूस पर आक्रमण कर दिया। फ्रांस में इसे 'रूसी अभियान' कहा जाता है जबकि रूस में इसे '१८१२ का देशभक्तिपूर्ण युद्ध'। नेपोलियन की सेना ने नोमेन नदी पार कर रूस की सीमा में प्रवेश किया। रूसी सेनाओं ने फसलों, भंडारों को नष्ट करते हुए पीछे हटने तथा छापामार हमले करते रहने की नीति अपनाई। अनेक कठिनाईयों का सामना करते हुए किसी तरह जब नेपोलियन मास्को पहुुंचा तो उसने पूरे शहर को वीरान पाया। वास्तव में अभी तक फ्रांसीसी सेना अपना खर्च पराजित प्रदेशों से निकालती थी किन्तु इस युद्ध पद्धति और रणनीति से यह संभव नहीं हो सका। नेपोलियन को आशा थी कि जार आत्मसमर्पण कर देगा परन्तु जार आत्मसमर्पण के बजाय साइबेरिया चला गया। नेपोलियन मास्कों में लगभग दो महीने तक शांति प्रस्ताव की प्रतीक्षा में रहा, तभी उसके सैनिकों के लिए खाद्य सामग्री का संकट पैदा हो गया तथा महामारी फैल गई। अतः नेपोलियन को लाचार होकर मॉस्को से लौटाना पड़ा। सेना को भूख, ठंड और रूसियों ने परेशान किया। इस तरह जब नेपोलियन ने रूस की सीमा छोड़ी तब वह अपने 6 लाख में से 5 लाख सैनिक खो चुका था। इस तरह से यह अभियान निरर्थक सिद्ध हुआ। इसकी असफलता का कारण नेपोलियन की हठधर्मिता और रूसी सैनिकों की पीछे हटने की कूटनीति को न समझ पाना था। .

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नेपोलियन के युद्ध

नेपोलियन बोनापार्ट जब तक सत्ता में रहा युद्धों में उलझा रहा जिनसे सारा यूरोप त्रस्त था। इन युद्धों को सम्मिलित रूप से नेपोलियन के युद्ध (Napoleonic Wars) कहा जाता है। १८०३ से लेकर १८१५ तक कोई साठ युद्ध उसने लड़े थे जिसमें से सात में उसकी पराजय हुई (अधिकांशतः अपने अन्तिम दिनों में)। इन युद्धों के फलस्वरूप यूरोपीय सेनाओं में क्रान्तिकारी परिवर्तन हुए। परम्परागत रूप से इन युद्धों को १९७२ में फ्रांसीसी क्रांति के समय शुरू हुए क्रांतिकारी युद्धों की शृंखला में ही रखा जाता है। आरम्भ में फ्रांस की शक्ति बड़ी तेजी से बढ़ी और नैपोलियन ने यूरोप का अधिकांश भाग अपने अधिकार में कर लिया। १८१२ में रूस पर आक्रमण करने के बाद फ्रांस का बड़ी तेजी से पतन हुआ। .

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फ्रांसीसी क्रांतिकारी युद्ध

फ्रांस के क्रान्तिकारी युद्ध (French Revolutionary Wars) युद्धों की एक शृंखला थी जो १७९२ से आरम्भ होकर १८०२ तक चली। ये युद्ध फ्रांसीसी क्रान्ति की उपज थे। श्रेणी:यूरोप का इतिहास.

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सन्त हेलेना

सेंट हेलेना सेंट हेलेना ऑफ कान्सन्टपोल के नाम पर रखा गया दक्षिण अटलांटिक महासागर में ज्वालामुखी के माध्यम से विकसित हुआ एक द्वीप है। यह ब्रिटिश प्रवासी क्षेत्र सेंट हेलेना, एसेन्शन और त्रिस्तान द कुन्हा का एक हिस्सा है। इसकी राजधानी जेम्सटाउन है तथा यहां की आधिकारिक भाषा अंग्रेजी है। इस द्वीप का इतिहास महज 500 साल पुराना है, जब 1502 में पुर्तगालियों ने इस निर्जन द्वीप की खोज की थी। बरमूडा के बाद ब्रिटेन की बची हुई दूसरी सबसे पुरानी कालोनी सेंट हेलेना दुनिया का सबसे दुर्गम क्षेत्र है, जिसका यूरोप से एशिया और दक्षिण अफ्रीका जाने वाले जहाजों के लिए काफी सामरिक महत्व हुआ करता था। कई सदियों तक इस द्वीप का इस्तेमाल ब्रिटेन द्वारा निर्वासितों को रखने के लिए किया गया, जिसमें नेपोलियन बोनापार्ट जैसे व्यक्ति भी शामिल हैं।.

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