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निषादराज

सूची निषादराज

निषादराज निषादों के राजा का उपनाम है। वे ऋंगवेरपुर के राजा थे, उनका नाम गुह था। वे भोईकहार समाज के थे और उन्होंने ही वनवासकाल में राम, सीता तथा लक्ष्मण को गंगा पार करवाया था। भोई समाज आज भी इनकी पुजा करते है। श्रेणी:रामायण के पात्र.

7 संबंधों: भोई, राम, लक्ष्मण, सीता, गुह, कहार, ऋंगवेरपुर

भोई

भोई क्षत्रिय, भोई राजपूत, भोई आदिवासी भोई भारत की एक प्राचीन जाति है। यह एक आखेटक आदिवासी जाति है जिसका उल्लेख महाभारत और रामायणजैसे भारत के प्राचीनतम महाकाव्यों में मिलता है। भोई समाज शैव धर्म के अंग है। वर्णाश्रम व्यवस्था में वे निषाद अवर्ग रहे हैं। ये मूल रूप से आदिवासी हैं। उड़ीसा में भोई राजवंश के उल्लेख इतिहास में उल्लेखित हैं। से जल जंगल और ज़मीन पर आश्रित होकर अपना जीवन यापन प्राकृतिक संसाधनों की सहायता से करते चले आ रहे हैं। महाभारत के भिष्म पितामह की दुसरी माता सत्यवती एक धीवर(निषाद)पुत्री थी,जरासन्ध भी चंद्रवंशी क्षत्रिय कहार चन्देल राजपूत, व एकलव्य निषाद था...मगर कर्म संबोधन कहार जाति के उपजाति वंश की शाखा के ही भाग है बैसे कर्म संबोधन कहार जाति चंद्रवंशी समाज (रवानी) के लोग स्वयं को कश्यप नाम के एक अति प्राचीन हिन्दू ऋषि के गोत्र से उत्पन्न हुआ बतलाते हैं। इस कारण वे अपने नाम के आगे जातिसूचक शब्द कश्यप लगाने में गर्व अनुभव करते हैं।बैसे महाभारत के भिष्म पितामह की दुसरी माता सत्यवती एक धीवर(निषाद)पुत्री थी,मगध साम्राट बहुबली जरासंध महराज भी चंद्रवंशी क्षत्रिय ही थे!बिहार,झारखंड,पं.बंगाल,आसाम में इस समाज को चंद्रवंशी क्षत्रिय समाज कहते है!रवानी या रमानी चंद्रवंसी समाज या कहार जाति की उपजाति या शाखा है। यह भारत के विभिन्न प्रांतों में विभिन्न नामों से पायी जाती है।और रामायण मे प्रभु श्रीरामचंद्र और केवट के संवाद का वर्णन है इस बात से यह साबित होता हे की भोई एक आदिम जाती है .

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राम

राम (रामचन्द्र) प्राचीन भारत में अवतार रूपी भगवान के रूप में मान्य हैं। हिन्दू धर्म में राम विष्णु के दस अवतारों में से सातवें अवतार हैं। राम का जीवनकाल एवं पराक्रम महर्षि वाल्मीकि द्वारा रचित संस्कृत महाकाव्य रामायण के रूप में वर्णित हुआ है। गोस्वामी तुलसीदास ने भी उनके जीवन पर केन्द्रित भक्तिभावपूर्ण सुप्रसिद्ध महाकाव्य श्री रामचरितमानस की रचना की है। इन दोनों के अतिरिक्त अनेक भारतीय भाषाओं में अनेक रामायणों की रचना हुई हैं, जो काफी प्रसिद्ध भी हैं। खास तौर पर उत्तर भारत में राम बहुत अधिक पूजनीय हैं और हिन्दुओं के आदर्श पुरुष हैं। राम, अयोध्या के राजा दशरथ और रानी कौशल्या के सबसे बड़े पुत्र थे। राम की पत्नी का नाम सीता था (जो लक्ष्मी का अवतार मानी जाती हैं) और इनके तीन भाई थे- लक्ष्मण, भरत और शत्रुघ्न। हनुमान, भगवान राम के, सबसे बड़े भक्त माने जाते हैं। राम ने राक्षस जाति के लंका के राजा रावण का वध किया। राम की प्रतिष्ठा मर्यादा पुरुषोत्तम के रूप में है। राम ने मर्यादा के पालन के लिए राज्य, मित्र, माता पिता, यहाँ तक कि पत्नी का भी साथ छोड़ा। इनका परिवार आदर्श भारतीय परिवार का प्रतिनिधित्व करता है। राम रघुकुल में जन्मे थे, जिसकी परम्परा प्रान जाहुँ बरु बचनु न जाई की थी। श्रीराम के पिता दशरथ ने उनकी सौतेली माता कैकेयी को उनकी किन्हीं दो इच्छाओं को पूरा करने का वचन (वर) दिया था। कैकेयी ने दासी मन्थरा के बहकावे में आकर इन वरों के रूप में राजा दशरथ से अपने पुत्र भरत के लिए अयोध्या का राजसिंहासन और राम के लिए चौदह वर्ष का वनवास माँगा। पिता के वचन की रक्षा के लिए राम ने खुशी से चौदह वर्ष का वनवास स्वीकार किया। पत्नी सीता ने आदर्श पत्नी का उदहारण देते हुए पति के साथ वन जाना उचित समझा। सौतेले भाई लक्ष्मण ने भी भाई के साथ चौदह वर्ष वन में बिताये। भरत ने न्याय के लिए माता का आदेश ठुकराया और बड़े भाई राम के पास वन जाकर उनकी चरणपादुका (खड़ाऊँ) ले आये। फिर इसे ही राज गद्दी पर रख कर राजकाज किया। राम की पत्नी सीता को रावण हरण (चुरा) कर ले गया। राम ने उस समय की एक जनजाति वानर के लोगों की मदद से सीता को ढूँढ़ा। समुद्र में पुल बना कर रावण के साथ युद्ध किया। उसे मार कर सीता को वापस लाये। जंगल में राम को हनुमान जैसा मित्र और भक्त मिला जिसने राम के सारे कार्य पूरे कराये। राम के अयोध्या लौटने पर भरत ने राज्य उनको ही सौंप दिया। राम न्यायप्रिय थे। उन्होंने बहुत अच्छा शासन किया इसलिए लोग आज भी अच्छे शासन को रामराज्य की उपमा देते हैं। इनके पुत्र कुश व लव ने इन राज्यों को सँभाला। हिन्दू धर्म के कई त्योहार, जैसे दशहरा, राम नवमी और दीपावली, राम की जीवन-कथा से जुड़े हुए हैं। .

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लक्ष्मण

लक्ष्मण रामायण के एक आदर्श पात्र हैं। इनको शेषनाग का अवतार माना जाता है। रामायण के अनुसार, राजा दशरथ के तीसरे पुत्र थे, उनकी माता सुमित्रा थी। वे राम के भाई थे, इन दोनों भाईयों में अपार प्रेम था। उन्होंने राम-सीता के साथ १४ वर्षो का वनवास किया। मंदिरों में अक्सर ही राम-सीता के साथ उनकी भी पूजा होती है। उनके अन्य भाई भरत और शत्रुघ्न थे। लक्ष्मण हर कला में निपुण थे, चाहे वो मल्लयुद्ध हो या धनुर्विद्या। .

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सीता

सीता रामायण और रामकथा पर आधारित अन्य रामायण ग्रंथ, जैसे रामचरितमानस, की मुख्य पात्र है। सीता मिथिला के राजा जनक की ज्येष्ठ पुत्री थी। इनका विवाह अयोध्या के राजा दशरथ के ज्येष्ठ पुत्र राम से स्वयंवर में शिवधनुष को भंग करने के उपरांत हुआ था। इनकी स्त्री व पतिव्रता धर्म के कारण इनका नाम आदर से लिया जाता है। त्रेतायुग में इन्हे सौभाग्य की देवी लक्ष्मी का अवतार मानते हैं। .

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गुह

R Varma Ram Crosses Saryu गुह ऋंगवेरपुर के राजा थे, उन्हें निषादराज अथवा भीलराज भी कहा जाता था। वे भील जाति के थे उन्होंने ही वनवासकाल में राम, सीता तथा लक्ष्मण का अतिथि सत्कार किया तथा अपना राज्य पर राज करने को कहा था। उनका क्षैत्र गंगा के किनारे था अत: केवट जाति के लोग उन्हें बहुत मानते हैंऔर आज भी उनकी पूजा करते हैं। श्रेणी:रामायण.

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कहार

कहार (अंग्रेजी: Kahar) भारतवर्ष में हिन्दू धर्म को मानने वाली एक जाति है। यह जाति यहाँ हिन्दुओं के अतिरिक्त मुस्लिम व सिक्ख सम्प्रदाय में भी होती है। हिन्दू कहार जाति का इतिहास बहुत पुराना है जबकि मुस्लिम सिक्ख कहार बाद में बने। इस समुदाय के लोग बिहार, पंजाब, हरियाणा और पश्चिमी उत्तर प्रदेश में ही पाये जाते हैं! कहार स्वयं को कश्यप नाम के एक अति प्राचीन हिन्दू ऋषि के गोत्र से उत्पन्न हुआ बतलाते हैं। इस कारण वे अपने नाम के आगे जातिसूचक शब्द कश्यप लगाने में गर्व अनुभव करते हैं।बैसे महाभारत के भिष्म पितामह की दुसरी माता सत्यवती एक धीवर(निषाद)पुत्री थी,मगध साम्राट बहुबली जरासंध महराज भी चंद्रवंशी क्षत्रिय ही थे!बिहार,झारखंड,पं.बंगाल,आसाम में इस समाज को चंद्रवंशी क्षत्रिय समाज कहते है!रवानी या रमानी चंद्रवंसी समाज या कहार जाति की उपजाति या शाखा है। यह भारत के विभिन्न प्रांतों में विभिन्न नामों से पायी जाती है। श्रेणी:जाति"कहर" शब्द को खंडित कर कहार शब्द बना है।,कहर का एक इतिहास रहा है।महाभारत काल मे जब भारत का क्षेत्र फल अखण्ड आर्यबर्त में हुआ करता था,उस समय डाकूओ का प्रचलन जोरो पर था,आज भी हमलोग देख सकते है,पर नाम बदलकर डाकू के जगह फ्रोड, जालसाज, घोटाले,छिनतई ने ले रखी है।,खैर उस समय डाकुओ द्वरा दुल्हन की डोली के साथ जेवरात लूटना एक आम बात थी,लोग भयभीत थे,अइसे में कहर टीम का गठन किया गया था,डोली लुटेरों के रक्षा हेतुं, दुल्हन की डोली के साथ कहर टीम जाती थी और उनकी रक्षा करते हुवे मंजिल तक पहुँचते थे, आप सब ध्यान दे तो शादी की कार्ड पर डोली के आगे और पीछे तलवार लिए कुछ लोग की चित्रांकन देखने को मिलेगा, समय बीतता गया और शब्दों में परिवर्तन होता गया,कहर से कहार बन गया, कहर टीम को जब डोली के साथ जाना ही था,रोजगार और आर्थिक जरुरतो के पूर्ण के लिए कुछ लोग डोली भी खुद ही उठाने का निर्णय लिए थे यही इतिहास रहा है। कहार को संस्कृत में 'स्कंधहार ' कहते हैं....जिसका तात्पर्य होता है,जो अपने कंधे पर भार ढोता है...अब आप 'डोली' (पालकी) उठाना भी कह सकते हो...जोकि ज्यातर हमारे पुर्वज राजघराने की बहु-बेटी को डोली पे बिठाकर एक स्थान से दुसरे स्थान सुरक्षा के साथ वीहर-जंगलो व डाकुओ व राजाघरानें के दुश्मनों से बचाकर ले जाते थे...कर्म संबोधन कहार जाति कमजोर नहीं है...ये लोग अपनी बाहु-बल पे नाज करता है...और खुद को बिहार,झारखंड,प.बंगाल,आसाम में चंद्रवंशी क्षत्रिय कहलाना पसंद करते है...ये समाज जरासंध के वंसज़ है...

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ऋंगवेरपुर

ऋंगवेरपुर रामायणकाल में गंगा के तट पर स्थित एक स्थान का नाम है। ऋंगवेरपुर के राजा निषादराज थे, उनका नाम गुह्य था। वे तीरथराज निषाद के पु्त्र एवं प्रयागराज के पौत्र थे और निषाद राज एक माहान राजा थे श्रेणी:रामायण में स्थान श्रेणी:हिन्दू पुराण आधार.

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