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निर्णायक प्रबन्धन

सूची निर्णायक प्रबन्धन

किसी कम्पनी के सर्वोच्च प्रबन्धन द्वारा अपने प्रमुख लक्ष्यों को रेखांकित करना तथा उन्हें प्राप्त करने के लिये किये जाने वाले पहलों (initiatives) को निर्णायक प्रबन्धन' (Strategic management) कहते हैं। किसी भी व्यवसाय में पूंजी निवेश धन निर्माण का मूल आधार है। आर्थिक अस्थिरता के परिवेश में प्रत्येक निवेशक अनुकूलतम विनियोग एवं वित्तीय अवसरों का चुनाव कर न्यूनतम जोखिम और अधिकतम प्रत्याय दर पर अपने धन को अधिकतम करना चाहेगा। चूकि प्रबंधन ही विनियोजकों के प्रति उत्तरदायी है इसलिए व्यापारिक वित्तीय प्रबंधन का उद्देश्य होना चाहिए कि वह ऐसा निवेश और वित्तीय निर्णय ले जो सभी निवेशकों को संतुष्ट कर अनुकूलतम वित्तीय स्थिति के समान स्तर पर ला सके। अंशधारकों के हितों की संतुष्टि को ही अंशधारियों के धन के अधिकतम के साधन के रूप में माना जा सकता है। चूंकि पूंजी एक सीमित कारक है, अतः प्रबंधन के समक्ष वैकल्पिक प्रयोगों में सीमित कोषों को आबंटित करने की समस्या विद्यमान रहती है। व्यवसाय अपनी क्षमता एवं सतत् विनियोग अवसरों की खोज द्वारा विनियोजकों की प्रत्याय को बना एवं बढ़ा सके एवं अधिक कोष उत्पन्न करे जो विनियोजकों के लिए लाभदायक हो। अतः समस्त व्यावसायिक आवश्यकताओं में तीन मूलभूत तत्वों का समावेश होना चाहिए-.

2 संबंधों: रणनीति, वित्‍तीय प्रबंधन

रणनीति

रणनीति (Strategy) मूलतः सैन्यविज्ञान से आया हुआ शब्द है, जिसका मतलब है - 'किसी लक्ष्य की प्राप्ति के लिये बनायी गयी कार्ययोजना'। अर्थात, अनिश्चय की स्थिति में, एक या अधिक लक्ष्यों की प्राप्ति के लिये, उच्च स्तर पर बनायी गयी योजना को रणनीति कहते हैं। .

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वित्‍तीय प्रबंधन

वित्तीय प्रबन्धन (Financial management) से आशय धन (फण्ड) के दक्ष एवं प्रभावी प्रबन्धन है ताकि संगठन के लक्ष्यों की प्राप्ति की जा सके। वित्त प्रबन्धन का कार्य संगठन के सबसे ऊपरी प्रबन्धकों का विशिष्ट कार्य है। मनुष्य द्वारा अपने जीवन काल में प्रायः दो प्रकार की क्रियाएं सम्पादित की जाती है - आर्थिक क्रियायें तथा अनार्थिक क्रियाएं। आर्थिक क्रियाओं के अर्न्तगत हम उन समस्त क्रियाओं को सम्मिलित करते हैं जिनमें प्रत्यक्ष अथवा परोक्ष रूप से धन की संलग्नता होती है जैसे रोटी, कपड़े, मकान की व्यवस्था आदि। अनार्थिक क्रियाओं के अन्तर्गत पूजा-पाठ, व अन्य सामाजिक व राजनैतिक कार्यों को सम्मिलित किया जा सकता है। जब हम किसी प्रकार का व्यवसाय करते हैं अथवा उद्योग लगाते हैं अथवा फिर कतिपय तकनीकी दक्षता प्राप्त करके किसी पेशे को अपनाते हैं तो हमें सर्वप्रथम वित्त (finance) धन (money) की आवश्यकता पड़ती है जिसे हम पूँजी (capital) कहते हैं। जिस प्रकार किसी मशीन को चलाने हेतु ऊर्जा के रूप में तेल, गैस या बिजली की आवश्यकता होती है उसी प्रकार किसी भी आर्थिक संगठन के संचालन हेतु वित्त की आवश्यकता होती है। अतः वित्त जैसे अमूल्य तत्व का प्रबन्ध ही वित्तीय प्रबन्धन कहलाता है। व्यवसाय के लिये कितनी मात्रा में धन की आवश्यकता होगी, वह धन कहॉं से प्राप्त होगा और उपयोग संगठन में किस रूप में किया जायेगा, वित्तीय प्रबन्धक को इन्हीं प्रश्नों के उत्तर खोजने पड़ते हैं। व्यवसाय का उद्देश्य अधिकतम लाभ अर्जन करना होता है जो दो प्रकार से किया जा सकता है।.

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यहां पुनर्निर्देश करता है:

रणनीतिक प्रबन्धन

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