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नन्दा देवी राजजात

सूची नन्दा देवी राजजात

नन्दा देवी राजजात भारत के उत्तरांचल राज्य में होने वाली एक नन्दा देवी की एक धार्मिक यात्रा है। यह उत्तराखंड के कुछ सर्वाधिक प्रसिद्ध सांस्कृतिक आयोजनों में से एक है। यह लगभग १२ वर्षों के बाद आयोजित होती है। अन्तिम जात सन् 2012 में हुयी थी। अगली राजजात सन् 2023 में होगी। लोक इतिहास के अनुसार नन्दा गढ़वाल के राजाओं के साथ-साथ कुँमाऊ के कत्युरी राजवंश की ईष्टदेवी थी। इष्टदेवी होने के कारण नन्दादेवी को राजराजेश्वरी कहकर सम्बोधित किया जाता है। नन्दादेवी को पार्वती की बहन के रूप में देखा जाता है परन्तु कहीं-कहीं नन्दादेवी को ही पार्वती का रूप माना गया है। नन्दा के अनेक नामों में प्रमुख हैं शिवा, सुनन्दा, शुभानन्दा, नन्दिनी। पूरे उत्तराँचल में समान रूप से पूजे जाने के कारण नन्दादेवी के समस्त प्रदेश में धार्मिक एकता के सूत्र के रूप में देखा गया है। रूपकुण्ड के नरकंकाल, बगुवावासा में स्थित आठवीं सदी की सिद्ध विनायक भगवान गणेश की काले पत्थर की मूर्ति आदि इस यात्रा की ऐतिहासिकता को सिद्ध करते हैं, साथ ही गढ़वाल के परंपरागत नन्दा जागरी (नन्दादेवी की गाथा गाने वाले) भी इस यात्रा की कहानी को बयाँ करते हैं। नन्दादेवी से जुडी जात (यात्रा) दो प्रकार की हैं। वार्षिक जात और राजजात। वार्षिक जात प्रतिवर्ष अगस्त-सितम्बर मॉह में होती है। जो कुरूड़ के नन्दा मन्दिर से शुरू होकर वेदनी कुण्ड तक जाती है और फिर लौट आती है, लेकिन राजजात 12 वर्ष या उससे अधिक समयांतराल में होती है। मान्यता के अनुसार देवी की यह ऐतिहासिक यात्रा चमोली के नौटीगाँव से शुरू होती है और कुरूड़ के मन्दिर से भी दशोली और बधॉण की डोलियाँ राजजात के लिए निकलती हैं। इस यात्रा में लगभग २५० किलोमीटर की दूरी, नौटी से होमकुण्ड तक पैदल करनी पड़ती है। इस दौरान घने जंगलों पथरीले मार्गों, दुर्गम चोटियों और बर्फीले पहाड़ों को पार करना पड़ता है। अलग-अलग रास्तों से ये डोलियाँ यात्रा में मिलती है। इसके अलावा गाँव-गाँव से डोलियाँ और छतौलियाँ भी इस यात्रा में शामिल होती है। कुमाऊँ (कुमॉयू) से भी अल्मोडा, कटारमल और नैनीताल से डोलियाँ नन्दकेशरी में आकर राजजात में शामिल होती है। नौटी से शुरू हुई इस यात्रा का दूसरा पड़ाव इड़ा-बधाणीं है। फिर यात्रा लौट कर नौटी आती है। इसके बाद कासुंवा, सेम, कोटी, भगौती, कुलसारी, चैपडों, लोहाजंग, वाँण, बेदनी, पातर नचौणियाँ से विश्व-विख्यात रूपकुण्ड, शिला-समुद्र, होमकुण्ड से चनण्याँघट (चंदिन्याघाट), सुतोल से घाट होते हुए नन्दप्रयाग और फिर नौटी आकर यात्रा का चक्र पूरा होता है। यह दूरी करीब 280 किलोमीटर है। इस राजजात में चौसिंग्या खाडू़ (चार सींगों वाला भेड़) भी शामिल किया जाता है जोकि स्थानीय क्षेत्र में राजजात का समय आने के पूर्व ही पैदा हो जाता है, उसकी पीठ पर रखे गये दोतरफा थैले में श्रद्धालु गहने, श्रंगार-सामग्री व अन्य हल्की भैंट देवी के लिए रखते हैं, जोकि होमकुण्ड में पूजा होने के बाद आगे हिमालय की ओर प्रस्थान कर लेता है। लोगों की मान्यता है कि चौसिंग्या खाडू़ आगे बिकट हिमालय में जाकर लुप्त हो जाता है व नंदादेवी के क्षेत्र कैलाश में प्रवेश कर जाता है। वर्ष 2000 में इस राजजात को व्यापक प्रचार मिला और देश-विदेश के हजारों लोग इसमें शामिल हुए थे। राजजात उत्तराखंड की समग्र संस्कृति को प्रस्तुत करता है। इसी लिये 26 जनवरी 2005 को उत्तरांचल राज्य की झांकी राजजात पर निकाली गई थी। पिछले कुछ वर्षों से पयर्टन विभाग द्वारा रूपकुण्ड महोत्व का आयोजन भी किया जा रहा है। स्थानीय लोगों ने इस यात्रा के सफल संचालन हेतु श्री नन्दादेवी राजजात समिति का गठन भी किया है। इसी समिति के तत्त्वाधान में नन्दादेवी राजजात का आयोजन किया जाता है। परम्परा के अनुसार वसन्त पंचमी के दिन यात्रा के आयोजन की घोषणा की जाती है। इसके पश्चात इसकी तैयारियों का सिलसिला आरम्भ होता है। इसमें नौटी के नौटियाल एवं कासुवा के कुवरों के अलावा अन्य सम्बन्धित पक्षों जैसे बधाण के १४ सयाने, चान्दपुर के १२ थोकी ब्राह्मण तथा अन्य पुजारियों के साथ-साथ जिला प्रशासन तथा केन्द्र एवं राज्य सरकार के विभिन्न विभागों द्वारा मिलकर कार्यक्रम की रुपरेखा तैयार कर यात्रा का निर्धारण किया जाता है। राजजात के नाम पर जिन्दा सामन्तवाद - जयसिंह रावत- चार सींगों वाले मेंढे (चौसिंग्या खाडू) के नेतृत्व में चलने वाली दुनियां की दुर्गमतम्, जटिलतम और विशालतम् धार्मिक पैदल यात्राओं में सुमार नन्दा राजजात अगामी 29 अगस्त से शुरू होने जा रही है। बसन्त पंचमी के अवसर पर घोषित कार्यक्रम के अनुसार पूरे 19 दिन तक चलने के बाद यह यात्रा 16 सितम्बर को सम्पन्न होगी। इस हिमालयी महाकुम्भ में समय के साथ धार्मिक परम्पराएं तो बदलती रही हैं मगर सामन्ती परम्पराएं कब बदलेंगी, यह सवाल मुंह बायें खड़ा हो कर लोकतंत्रकामियों को चिढ़ाता जा रहा है। बद्रीनाथ के कपाटोद्घाटन की ही तरह चमोली गढ़वाल के कासुवा गांव के कुंवरों और नौटी गांव के उनके राजगुरू नौटियालों ने भी इस बसन्त पंचमी को नन्दादेवी राजजात के कार्यक्रम की घोषणा कर दी। कांसुवा गांव के ठाकुर स्वयं को सदियों तक गढ़वाल पर एकछत्र राज करने वाले पंवार वंश के एक राजा अजयपाल के छोटे भाई के वंशज मानते हैं और इसीलिये वे राजा के तौर पर इस हिमालयी धार्मिक पदयात्रा का नेतृत्व करने के साथ ही उसे अपना निजी कार्यक्रम मानते हैं। टिहरी राजशाही के वंशज भी बसन्त पंचमी के दिन हर साल बद्रीनाथ के कपाटोद्घाटन की तिथि तय करते हैं। कुवरों और नौटियालों द्वारा घोषित कार्यक्रम के अनुसार यह यात्रा 29 अगस्त को नौटी से चेलगी और हिमालयी क्षेत्र में 19 पड़ावों के बाद आगामी 16 सितम्बर को वापस लौट जायेगी। इस जोखिमपूर्ण यात्रा के साक्षी बनने के लिये देश विदेश से लोग पहुंचते हैं। लेकिन हैरानी की बात यह है कि जिस कुरूड़ गांव के प्राचीन मंन्दिर से नन्दा देवी की डोली चलनी है उस मंदिर के पुजारियों और हकहुकूकधारियों को दूध की मक्खी की तरह अलग फेंका गया है। राज्य सरकार भी धार्मिक भावनाओं और प्राीन परम्पराओं के बजाय सामन्ती व्यवस्था के साथ दृढ़ता से खड़ी नजर आ रही है। राजजात के लिये उत्तराखण्ड सरकार सहित आयोजन समिति और अन्य सम्बन्धित पक्षों ने तैयारियां शुरू कर दी हैं। इसके साथ ही इस ऐतिहासिक यात्रा का नेतृत्व करने चौसिंग्या खाडू की तलाश भी शुरू हो गयी है। यात्रा से पहले इस तरह का विचित्र मेंढा चांदपुर और दशोली पट्टियों के गावों में से कहीं भी जन्म लेता रहा है। विशेष कारीगरी से बनीं रिंगाल की छंतोलियों, डोलियों और निशानों के साथ लगभग 200 स्थानीय देवी देवता इस महायात्रा में शामिल होते हैं। प्राचीन प्रथानुसार जहां भी यात्रा का पड़ाव होता है उस गांव के लोग यात्रियों के लिये अपने घर खुले छोड़ कर स्वयं गोशालाओं या या अन्यत्र रात गुजारते हैं। समुद्रतल से 13200 फुट की उंचाई पर स्थित इस यात्रा के गन्तव्य होमकुण्ड के बाद रंग बिरंगे वस्त्रों से लिपटे इस मेंढे को अकेले ही कैलाश की ओर रवाना कर दिया जाता है। यात्रा के दौरान पूरे सोलहवें पड़ाव तक यह खाडू या मेंढा नन्दा देवी की रिंगाल से बनी छंतोली (छतरी) के पास ही रहता है। समुद्रतल से 3200 फुट से लेकर 17500 फुट की ऊंचाई क पहुंचने वाली यह 280 किमी लम्बी पदयात्रा 19 पड़ावों से गुजरती है। वाण यात्रा का अन्तिम गाँव है। प्राचीन काल में इसके 22 पड़ाव होने के भी प्रमाण हैं। वाण से आगे की यात्रा दुर्गम होती हैं और साथ ही प्रतिबंधित एवं निषेधात्मक भी हो जाती है। आयोजन समिति के सचिव और राजगुरू के रूप में नौटियाल ब्राह्मणों के प्रतिनिधि के रूप में कार्य कर रहे भुवन नौटियाल तथा उनके पिता देवराम नौटियाल के लेखों के अनुसार वाण से कुछ आगे रिणकीधार से चमड़े की वस्तुएँ जैसे जूते, बेल्ट आदि तथा गाजे-बाजे, स्त्रियाँ-बच्चे, अभक्ष्य पदार्थ खाने वाली जातियाँ इत्यादि राजजात में निषिद्ध हो जाते हैं। अभक्ष्य खाने वाली जातियों का तात्पर्य छिपा नहीं है। इस यात्रा में अब तक अनुसूचितजाति के लोगों की हिस्सेदारी की परम्परा नहीं रही है और राज्य सरकार की इस आयोजन में भागीदारी सीधे-सीधे न केवल सामन्ती व्यवस्था को बल्कि छुआछूत की बुराई को भी मान्यता देती है। हिमालयी जिलों का गजेटियर लिखने वाले ई.टी.

4 संबंधों: नन्दा देवी, भारत, उत्तराखण्ड, २०१२

नन्दा देवी

नंदा देवी समूचे गढ़वाल मंडल और कुमाऊं मंडल और हिमालय के अन्य भागों में जन सामान्य की लोकप्रिय देवी हैं। नंदा की उपासना प्राचीन काल से ही किये जाने के प्रमाण धार्मिक ग्रंथों, उपनिषद और पुराणों में मिलते हैं। रूप मंडन में पार्वती को गौरी के छ: रुपों में एक बताया गया है। भगवती की ६ अंगभूता देवियों में नंदा भी एक है। नंदा को नवदुर्गाओं में से भी एक बताया गया है। भविष्य पुराण में जिन दुर्गाओं का उल्लेख है उनमें महालक्ष्मी, नंदा, क्षेमकरी, शिवदूती, महाटूँडा, भ्रामरी, चंद्रमंडला, रेवती और हरसिद्धी हैं। शिवपुराण में वर्णित नंदा तीर्थ वास्तव में कूर्माचल ही है। शक्ति के रूप में नंदा ही सारे हिमालय में पूजित हैं। नंदा के इस शक्ति रूप की पूजा गढ़वाल में करुली, कसोली, नरोना, हिंडोली, तल्ली दसोली, सिमली, तल्ली धूरी, नौटी, चांदपुर, गैड़लोहवा आदि स्थानों में होती है। गढ़वाल में राज जात यात्रा का आयोजन भी नंदा के सम्मान में होता है। कुमाऊँ में अल्मोड़ा, रणचूला, डंगोली, बदियाकोट, सोराग, कर्मी, पोथिंग, चिल्ठा, सरमूल आदि में नंदा के मंदिर हैं। अनेक स्थानों पर नंदा के सम्मान में मेलों के रूप में समारोह आयोजित होते हैं। नंदाष्टमी को कोट की माई का मेला और नैतीताल में नंदादेवी मेला अपनी सम्पन्न लोक विरासत के कारण कुछ अलग ही छटा लिये होते हैं परन्तु अल्मोड़ा नगर के मध्य में स्थित ऐतिहासिकता नंदादेवी मंदिर में प्रतिवर्ष भाद्र मास की शुक्ल पक्ष की अष्टमी को लगने वाले मेले की रौनक ही कुछ अलग है। .

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भारत

भारत (आधिकारिक नाम: भारत गणराज्य, Republic of India) दक्षिण एशिया में स्थित भारतीय उपमहाद्वीप का सबसे बड़ा देश है। पूर्ण रूप से उत्तरी गोलार्ध में स्थित भारत, भौगोलिक दृष्टि से विश्व में सातवाँ सबसे बड़ा और जनसंख्या के दृष्टिकोण से दूसरा सबसे बड़ा देश है। भारत के पश्चिम में पाकिस्तान, उत्तर-पूर्व में चीन, नेपाल और भूटान, पूर्व में बांग्लादेश और म्यान्मार स्थित हैं। हिन्द महासागर में इसके दक्षिण पश्चिम में मालदीव, दक्षिण में श्रीलंका और दक्षिण-पूर्व में इंडोनेशिया से भारत की सामुद्रिक सीमा लगती है। इसके उत्तर की भौतिक सीमा हिमालय पर्वत से और दक्षिण में हिन्द महासागर से लगी हुई है। पूर्व में बंगाल की खाड़ी है तथा पश्चिम में अरब सागर हैं। प्राचीन सिन्धु घाटी सभ्यता, व्यापार मार्गों और बड़े-बड़े साम्राज्यों का विकास-स्थान रहे भारतीय उपमहाद्वीप को इसके सांस्कृतिक और आर्थिक सफलता के लंबे इतिहास के लिये जाना जाता रहा है। चार प्रमुख संप्रदायों: हिंदू, बौद्ध, जैन और सिख धर्मों का यहां उदय हुआ, पारसी, यहूदी, ईसाई, और मुस्लिम धर्म प्रथम सहस्राब्दी में यहां पहुचे और यहां की विविध संस्कृति को नया रूप दिया। क्रमिक विजयों के परिणामस्वरूप ब्रिटिश ईस्ट इण्डिया कंपनी ने १८वीं और १९वीं सदी में भारत के ज़्यादतर हिस्सों को अपने राज्य में मिला लिया। १८५७ के विफल विद्रोह के बाद भारत के प्रशासन का भार ब्रिटिश सरकार ने अपने ऊपर ले लिया। ब्रिटिश भारत के रूप में ब्रिटिश साम्राज्य के प्रमुख अंग भारत ने महात्मा गांधी के नेतृत्व में एक लम्बे और मुख्य रूप से अहिंसक स्वतन्त्रता संग्राम के बाद १५ अगस्त १९४७ को आज़ादी पाई। १९५० में लागू हुए नये संविधान में इसे सार्वजनिक वयस्क मताधिकार के आधार पर स्थापित संवैधानिक लोकतांत्रिक गणराज्य घोषित कर दिया गया और युनाईटेड किंगडम की तर्ज़ पर वेस्टमिंस्टर शैली की संसदीय सरकार स्थापित की गयी। एक संघीय राष्ट्र, भारत को २९ राज्यों और ७ संघ शासित प्रदेशों में गठित किया गया है। लम्बे समय तक समाजवादी आर्थिक नीतियों का पालन करने के बाद 1991 के पश्चात् भारत ने उदारीकरण और वैश्वीकरण की नयी नीतियों के आधार पर सार्थक आर्थिक और सामाजिक प्रगति की है। ३३ लाख वर्ग किलोमीटर क्षेत्रफल के साथ भारत भौगोलिक क्षेत्रफल के आधार पर विश्व का सातवाँ सबसे बड़ा राष्ट्र है। वर्तमान में भारतीय अर्थव्यवस्था क्रय शक्ति समता के आधार पर विश्व की तीसरी और मानक मूल्यों के आधार पर विश्व की दसवीं सबसे बडी अर्थव्यवस्था है। १९९१ के बाज़ार-आधारित सुधारों के बाद भारत विश्व की सबसे तेज़ विकसित होती बड़ी अर्थ-व्यवस्थाओं में से एक हो गया है और इसे एक नव-औद्योगिकृत राष्ट्र माना जाता है। परंतु भारत के सामने अभी भी गरीबी, भ्रष्टाचार, कुपोषण, अपर्याप्त सार्वजनिक स्वास्थ्य-सेवा और आतंकवाद की चुनौतियां हैं। आज भारत एक विविध, बहुभाषी, और बहु-जातीय समाज है और भारतीय सेना एक क्षेत्रीय शक्ति है। .

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उत्तराखण्ड

उत्तराखण्ड (पूर्व नाम उत्तरांचल), उत्तर भारत में स्थित एक राज्य है जिसका निर्माण ९ नवम्बर २००० को कई वर्षों के आन्दोलन के पश्चात भारत गणराज्य के सत्ताइसवें राज्य के रूप में किया गया था। सन २००० से २००६ तक यह उत्तरांचल के नाम से जाना जाता था। जनवरी २००७ में स्थानीय लोगों की भावनाओं को ध्यान में रखते हुए राज्य का आधिकारिक नाम बदलकर उत्तराखण्ड कर दिया गया। राज्य की सीमाएँ उत्तर में तिब्बत और पूर्व में नेपाल से लगी हैं। पश्चिम में हिमाचल प्रदेश और दक्षिण में उत्तर प्रदेश इसकी सीमा से लगे राज्य हैं। सन २००० में अपने गठन से पूर्व यह उत्तर प्रदेश का एक भाग था। पारम्परिक हिन्दू ग्रन्थों और प्राचीन साहित्य में इस क्षेत्र का उल्लेख उत्तराखण्ड के रूप में किया गया है। हिन्दी और संस्कृत में उत्तराखण्ड का अर्थ उत्तरी क्षेत्र या भाग होता है। राज्य में हिन्दू धर्म की पवित्रतम और भारत की सबसे बड़ी नदियों गंगा और यमुना के उद्गम स्थल क्रमशः गंगोत्री और यमुनोत्री तथा इनके तटों पर बसे वैदिक संस्कृति के कई महत्त्वपूर्ण तीर्थस्थान हैं। देहरादून, उत्तराखण्ड की अन्तरिम राजधानी होने के साथ इस राज्य का सबसे बड़ा नगर है। गैरसैण नामक एक छोटे से कस्बे को इसकी भौगोलिक स्थिति को देखते हुए भविष्य की राजधानी के रूप में प्रस्तावित किया गया है किन्तु विवादों और संसाधनों के अभाव के चलते अभी भी देहरादून अस्थाई राजधानी बना हुआ है। राज्य का उच्च न्यायालय नैनीताल में है। राज्य सरकार ने हाल ही में हस्तशिल्प और हथकरघा उद्योगों को बढ़ावा देने के लिये कुछ पहल की हैं। साथ ही बढ़ते पर्यटन व्यापार तथा उच्च तकनीकी वाले उद्योगों को प्रोत्साहन देने के लिए आकर्षक कर योजनायें प्रस्तुत की हैं। राज्य में कुछ विवादास्पद किन्तु वृहत बाँध परियोजनाएँ भी हैं जिनकी पूरे देश में कई बार आलोचनाएँ भी की जाती रही हैं, जिनमें विशेष है भागीरथी-भीलांगना नदियों पर बनने वाली टिहरी बाँध परियोजना। इस परियोजना की कल्पना १९५३ मे की गई थी और यह अन्ततः २००७ में बनकर तैयार हुआ। उत्तराखण्ड, चिपको आन्दोलन के जन्मस्थान के नाम से भी जाना जाता है। .

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२०१२

२०१२ (MMXII) ग्रेगोरियन कैलेंडर के रविवार को शुरू होने वाला एक अधिवर्ष अथवा लीप ईयर होगा। इस वर्ष को गणितज्ञ ट्यूरिंग, कंप्यूटर के अग्र-दूत और कोड -भंजक, की याद में उनकी सौवीं वर्षगांठ पर एलन ट्यूरिंग वर्ष नामित किया गया है। .

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नंदा देवी राजजात

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